गणों के स्वामी गणपति के अपने वाहन डिंक( मूषक का  नाम) के साथ  पधारने पर व दस दिवसीय महोत्सव का शुभारम्भ होने पर शुभारम्भ के देवता  के समक्ष प्रस्तुत हैं भाव सुमन

कारक हो  तुम गजानन, कार्य होता रहता है।

भव -सागर से जीव  बेड़ा पार होता रहता है।

उचित साध्य-साधन एकाकार होता रहता है।

अवलम्ब से तिहारे सारा काम होता रहता है।

 

जहाँ दया,लगन,निष्ठा वाले कर्मवान  रहते  हैं।

वहाँ गणपति गजानन एकदन्त श्रीमान रहते हैं।

जहाँ  लोभ, मोह, लालच,  से अनजान रहते हैं।

वहाँ पर गौरीनन्दन, महाकाय भगवान रहते हैं।

 

त्रिभुवन में मोदक-दाता का आभास रहता है।

वहीं तो मानव मन का देवता निष्पाप रहता है।

जहाँ पर गणनायक विघ्नेश पर विश्वास रहता है।

वहाँ तो परम्परा मर्यादा का अहसास रहता है।

 

जहाँ माँ बाप पर विश्वास का दिनमान रहता है।

वहीं प्रथम  देवता होने  का  सम्मान रहता है।

जहाँ रहते गणपति मेरे वहाँ मधुमास रहता है।

सुख सम्पत्ति व आनन्द  का  निवास रहता है।

 

दीदार को तेरे मन परेशाँ  सा  रहता है।

दर्शन पाकर प्रभुजी  सूना-पन हरता है।

तेरी यादों  में  मन  मेरा तनहा  रहता है।

भाद्रपद में मिलने  का अरमान रहता है।

 

प्रातः काल में जिनका, इन्तज़ार  रहता है।

वह कहीं और नहीं मेरे आसपास रहता है।

उनकी वजह से  ही मेरा  वज़ूद है  शायद,

ये  मैं  नहीं  मुझसे  मेरा विश्वास  कहता है।

 

पार्वती- नन्दन आपका इन्तजार रहता है।

आशा में गजबदन, मन बेकरार  रहता है।

मन उपवन प्रत्याशा में गुलज़ार रहता है।

गणपति के आगमन का विश्वास रहता है।

 

 

 

 

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