विषम हालात,तनमन में आग रखना चाहता हूँ,

कालिमा का दौर तीव्र प्रकाश रखना चाहता हूँ,

छा गई है कालिमायें,भारत के इस आकाश में,

स्व प्रयास से, निरभ्र आकाश रखना चाहता हूँ।

देश के कण्टकपथ को आज ढकना चाहता हूँ,

राष्ट्र के उत्थान हित, बुनियाद रखना चाहता हूँ,

छागई है क़ुछ निराशा इस देश के नौजवान में,

जिन्दा हूँ जिन्दादिली अहसास रखना चाहता हूँ।

बद-जुबानी,बद-तमीजी, बन्द करना चाहता हूँ,

बर्छियों की धार को, अब कुन्द करना चाहता हूँ,

स्वार्थ की विष बेल ने, छोड़ा न कुछ इन्सान में,

इस स्वार्थ को परमार्थ में अब बदलना चाहता हूँ।

शीतल, सावन फुहार से भाव रखना चाहता हूँ,

पर हृदय में देश हित, अंगार रखना चाहता हूँ,

द्वेष ने ईर्ष्या सहित कुचला जो प्रेम जहान में

प्रेम के नव अंकुरण का सिर्फ़ सिञ्चन चाहता हूँ।

चिनगारी को फूँस से, मैं  दूर रखना चाहता हूँ,

राष्ट्रद्रोह के शीश को बिल्कुल कुचलना चाहता हूँ,

क्योंकि  इसकी बेल को सींचा है तुच्छ हैवान ने,

हैवानियत की ज़िन्दगी का अन्त करना चाहता हूँ।

दधीचि वाली धरती,पुनः तेजोमय करना चाहता हूँ,

विध्वंसी चाल कुचालों को जड़ से हरना चाहता हूँ,

कुटिल  विदेशी नस्लों को जिसने बुलवाया देश में,

उनके संग इन दुष्टों को भी अब मसलना चाहता हूँ।

जातिवादी मानसिकता, मैं कुचलना चाहता  हूँ,

छोटे- छोटे दायरों से बाहर निकलना चाहता हूँ,

चन्द ज़हरीले जीवों के वंशज छिपे हैं जिस्मों में,

जिस्मों को जहर सहित अब पटकना चाहता हूँ।

धार्मिकता को कट्टरता से आज़ाद करना चाहता हूँ,

अधर्म की धज्जी उड़ाकर सदधर्म रखना चाहता हूँ,

पाशविक पर सात्विक से चेहरे  लगाए हैं जिन्होंने,

नोच कर नकली मुखौटा असली दिखाना चाहता हूँ। 

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