समय के चाक पर नित नया आकार गढ़ता हूँ,

दुनियाँ सो रही होती है, मैं दिन रात पढ़ता हूँ,

समय, समाज, जीवन के संत्रासों से लड़ता हूँ,

अध्यापक  हूँ, क्या  करूँ ?  बस आगे बढ़ता हूँ।

विषमता में  प्रेरणा तलाश, स्वयं को गढ़ता हूँ,

विधार्थियों हित, जीवन्त स्वप्न जगा, अड़ता हूँ,

पँक्तियों बीच छिपा क्या है? तलाश करता हूँ,

विषम हालात में व्यक्तित्व  में लाता दृढ़ता हूँ।

तूफ़ान, झंझा,कालिमा में नव स्वरुप धरता हूँ,

जब समस्त आशादीप बुझ जाएँ  मैं जलता हूँ,

जमाने की नितनई चाललख बारबार मरता हूँ,

नव चेतना के नवस्थापन हेतु प्रयास करता हूँ।

दुर्दशा,  क्रूरता और  आक्रोश, सहन करता हूँ,

शिक्षा राष्ट्रहित शिक्षक शिक्षा हित में गढ़ता हूँ,

समाज, शिक्षक हित में रहने की आशा करता हूँ,

अजब नादान हूँ इस दुनियाँ से प्यार करता हूँ।

प्यार पर गुस्सा नहीं, गुस्से को लाड़ करता हूँ,

गलत तथ्यों के क्षमता भर खिलाफ अड़ता हूँ,

जल सर ऊपर चढ़ता है तो रौद्र रूप धरता हूँ,

दायित्व से भागता नहीं जीवट से पूर्ण करता हूँ। 

आत्म निर्भर बने कल, अतः आह्वान करता हूँ,

स्वयं के पूर्णतः  होम का पूर्ण प्रयास करता हूँ,

जीवन – पर्यन्त चेतना उन्नति आयाम गढ़ता हूँ,

मृत्यु है स्वाभाविक सत्य नाथ स्वागत करता हूँ।

समय के चाक पर नित नया आकार गढ़ता हूँ,

समय के चाक पर नित नया……………………. ।

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