रक्षा बन्धन
सन् 2025 में वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार 09 अगस्त को रक्षा बन्धन पर्व मनाया जाएगा। श्रावण माह की पूर्णिमा 08 अगस्त को दोपहर 12 बजे से शुरू होगी और 09 अगस्त को अपरान्ह एक बजकर चौबीस मिनट पर समाप्त होगी।
रक्षा बन्धन पर्व का प्रारम्भ –
प्राचीन लोकप्रिय कथाओं में वर्णन मिलता है कि द्रोपदी ने भगवान् कृष्ण की घायल हो चुकी अँगुली पर अपनी साड़ी की एक चीयर बाँध दी। मातृ शक्ति द्रौपदी के इस भाव व्यवहार से प्रभावित होकर सोलह कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण ने उनकी रक्षा का वचन दिया और निर्वहन किया। इसी समय से इस परम्परा का प्रारम्भ हुआ।
दुर्लभ महा संयोग –
इस बार रक्षा बन्धन पर भद्रा का साया नहीं है। और 95 वर्ष के उपरान्त सौभाग्य योग के साथ अन्य कई मङ्गलमई योग बन रहे हैं। इसलिए इसे विशेष शुभ मन जा रहा है। इस बार रक्षा बन्धन को उत्तम मानने का एक कारण यह भी है कि इस दिन श्रवण नक्षत्र होगा चन्द्रमा मकर राशि में होंगे जिसके स्वामी भी शनि हैं अतः त्रियोग (श्रवण + शनिवार + शनि ) अत्यन्त लाभकारी व शुभ बन पड़ेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग व द्वि पुष्कर योग का भी निर्माण हो रहा है। धनिष्ठा नक्षत्र के साथ सौभाग्य योग व शोभन योग का शुभ संयोग भी देखने को मिलेगा। निश्चित समयावधि में राखी बाँधने व लक्ष्मी नारायण की उपासना करने से साधक को विशिष्ट अक्षय फल की प्राप्ति होगी तथा घर में खुशहाली, समृद्धि और सुख की वृद्धि होगी।
राखी बाँधने के परम्परागत नियम –
हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा को यह भाई बहन का पावस पर्व रक्षा बंधन मनाया जाता है तिथि का प्रारम्भ होने पर जिस दिन सूर्योदय होता है उस दिन उड़ाया तिथि के अनुसार यह पर्व भी मनायेंगे। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान ध्यान व भगवान् को राखी अर्पित करने के बाद इसे परम्परागत रूप से मनाने के लिए कुछ नियमों का परिपालन करना शुभ स्वीकार किया जाता है।
01 – बहिन भाई की दाहिनी कलाई पर पावस कच्चे धागे को बाँधती है और सामान्यतः इसमें तीन गाँठें लगाना शुभ माना जाता है प्रथम गाँठ लगाते समय भाई की लम्बी उम्र ,द्वित्तीय गाँठ लगाते समय स्वयं अपनी लम्बी उम्र व तृतीय गाँठ लगाते समय रिश्तों में दीर्घकालिक मिठास की कामना की जाती है।
02 – तिलक लगाने के सम्बन्ध में नियम यह है कि अनामिका अँगुली से ललाट पर शुभ तिलक लगाने के उपरान्त उसे अंगूठे से ऊँचा किया जाता है तत्पश्चात अक्षत लगाकर भाई की दीर्घायु की कामना बहिन करती है जीवन में मिठास घुली रहे यह मानकर मिष्ठान्न से भाई का मुँह मीठा कराती है इसके बाद भाई अपनी क्षमतानुसार बहिन को उपहार प्रदान करते हैं।
03 – दिशा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि रक्षा सूत्र बांधते समय बहिन का मुख पश्चिम की और होना शुभ स्वीकार किया जाता है जबकि भाई का मुख यदि उत्तरपूर्व की और रहे तो यह सम्यक व शुभ स्वीकार किया जाता है। बहुत से घरों में दिशा सम्बन्धी नियमों को दृढ़ता से परिपालन सुनिश्चित किया जाता है।
04 – देशी घी के दीपक से भ्राता की आरती का भी विधान है अन्त में छोटी बहने बड़े भाई से आशीष की कामना करती हैं और छोटे भाइयों को बड़ी बहनों से आशीष लेना चाहिए।
(कुछ स्थानों पर क्रिया विधि व विश्वासों में अंतर भी होता है )
ब्राह्मण देवता द्वारा अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते समय इस मन्त्र का उच्चारण सामान्यतः किया जाता है –
ऊँ “येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल।।”
इसका आशय है कि जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवों के राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, हे रक्षे! तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
आप सभी को रक्षा बंधन का पावन पर्व शुभ हो जीवन में मङ्गल ही मङ्गल हो। यही पावस शुभेक्षा है।

