शनि उपासना

यह एक अत्याधिक महत्त्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है यह मुख्य रूप से शनि देव को प्रसन्न करने और उनके कृपा पात्र बने रहने हेतु किया जाता है इस प्रक्रिया को पूजा मन्त्र जाप व दान द्वारा पूरित किया जाता है।

शनि व्रत की अथ व इति –

व्रत का प्रारम्भ सावन माह के शनिवार या शुक्ल पक्ष के शनिवार से करना विशेष रूप से शुभ है। वैसे किसी भी निर्दोष शनिवार से व्रत शुरू कर सकते हैं। कम से कम शनि व्रत 7 शनिवार का किया जाना चाहिए। और जो भी लोग इसे प्रारम्भ करें इसका उद्द्यापन अवश्य करें।

शनि देव व इनकी उपासना विधि –

हिन्दू धर्म में इन्हे न्याय का देवता कहा जाता है ये सूर्य और छाया के पुत्र हैं इनकी पत्नी चित्र रथ की पुत्री थीं। इन्हें कर्म फल प्रदाता कहा जाता है ये मकर व कुम्भ राशि के स्वामी हैं और तुला राशि में उच्च के होते हैं। शनि देव की पूजा से जीवन में आने वाली परेशानियाँ कम होती हैं व शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसमें इन बिंदुओं पर ध्यान अपेक्षित है। –

01 – सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान

02 – स्नानोपरान्त शनि पूजन सङ्कल्प

03 – मूर्ति या चित्र स्थापन

04 – जल तेल फूल काले तेल का अर्पण

05 – शनि देव का मन्त्राभिषेक करें –

ऊँ शं शनैश्चराय नमः

06 – भोग लगाएं – तिल के लड्डू,  गुड़, कोई फल  

07 – आरती उपरान्त पूजन समापन

08 – दान -तेल, काला तिल, वस्त्र

09 – कथा श्रवण व ध्यान से भी शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।

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