गुनना चाहो या ना चाहो
मन की व्यथा बताता हूँ
मैं शिक्षक हूँ भारत का
भारत की कथा सुनाता हूँ।।
हम चाहें या ना चाहें
घटनाएं तो घटती हैं
कुछ घटना स्वाभाविक हैं
कुछ तो साजिशन होती हैं।।
तुम चाहो या ना चाहो
बस मुहरा बनना पड़ता है
जिनका नेता होना था तुम्हें
पिछलग्गू होना होता है।।
फिर सब चाहें या ना चाहें
सबको भुगतना पड़ता है
कितने भी धीर गम्भीर रहो
कश्मीर सा कटना पड़ता है।।
सुनना चाहो या ना चाहो
फिर झूठ भी सुनना पड़ता है
है सच सारा मालूम तुम्हें
पर मुँह को सिलना पड़ता है।
उठना चाहो या ना चाहो
ये तुम पर निर्भर करता है
किसी के रोके रुका नहीं
वक़्त तो चलता रहता है।