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वाह जिन्दगी !

महाशक्ति पर्व आया है।

September 29, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शक्ति  की आराधना का,  सम्यक समय आया है,

जागो, जागो सिंह शावको माँ दुर्गा ने जगाया है,

याद रखो, स्वस्थ तनमन सफलता का प्रदाता है,

शैल पुत्री,ब्रह्म चारिणी ने यह अधिगम कराया है।

आया, आया, आया, आया शक्ति -पर्व आया है।।

माँ चन्द्रघण्टा ने घण्टियों से भुवन पावन बनाया है,

उसी से भारत में देश भक्ति का ये उन्माद छाया है,

याद रखो बिन शक्तिसञ्चय काम नहीं चलपाता है,

माँ कूष्माण्डा, स्कन्दमाता ने सिद्ध कर दिखाया है।

आया, आया, आया, आया शक्ति -पर्व आया है।।

माँ कात्यायनी ने वृंदावन में शक्ति रूप पाया है,

शक्ति अधिष्ठात्री, भुवनेश्वरी ने अलख जगाया है,

याद रखो भद्रकाली कार्य भवानी मन जगाता है,

भवानी जागृति ने कालरात्रि में कालरूप पाया है।      

आया, आया, आया, आया शक्ति -पर्व आया है।।      

प्राणआयाम में नवदुर्गा का नवआयाम आया है,

दुष्टदर्प मर्दन हित रक्तदन्तिका रूप मनभाया है,

याद रखो निजतन पौरुष रणविजय  दिलाता है,

अकाट्य रणनीति महागौरी,सिद्धि दात्री छाया है।   

आया, आया, आया, आया शक्ति -पर्व आया है।।

नव्य जागरण भारत हित में भव्य पर्व ये लाया है,

ब्रह्माण्ड शुभस्थापन हो मातृशक्ति को बुलाया है,

याद रखो शक्ति बिन शुभ सृजन नहीं हो पाता है,

प्रदाता शक्ति ने लक्ष्मी,गौरी,शारदा रूप पाया है।   

आया, आया, आया, आया शक्ति -पर्व आया है।।  

शाकम्भरी,छिन्नमस्ता,महेश्वरी रूप याद आया है,

आदि शक्ति माँ काली ने,  आतंक वाद मिटाया है,

याद रखो बिनशक्ति के शिव भी शव हो जाता है,

शक्तिसंचरण निरन्तर हो इसलिए पर्व ये आया है।

आया, आया, आया, आया शक्ति -पर्व आया है।।

आया, आया, आया, महा- शक्ति -पर्व आया है।।

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काव्य

चन्द्रमा का सन्देश।(CHANDRMA KA SANDESH)

September 25, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

चन्द्रयान की आँखों से खुद को  निहारकर आया हूँ,

पावन सन्देशा, पृथ्वीवालो साथ मैं अपने लाया हूँ,

निज जीवनवृत्त अनुभव का पुलिन्दा साथलाया हूँ,

बिन  मिष्ठान्न भिजवाने का शिकवा साथ लाया हूँ। 

पृथ्वी बहना तूने अपना संस्कार बिसरा रक्खा है,

मुझको दिखता यहॉं से तेराघर कितना अच्छा है,

दीर्घ – काल तक तुमने सम्बन्धों का मान रखा है,

तेरा भेजा यान सुना है भारत ने भिजवा रक्खा है।

भारत के लोगों सुन लो निजराज बताने आया हूँ,

नहीं छोड़ता शीतलता आकार बदलता आया हूँ,

तुम भी मानव धर्म न छोड़ो तुम्हें जगाने आया हूँ,

पशुता तुममे घर न कर ले तुम्हें उठाने आया हूँ।

कर्म निरन्तर करता अपना ये स्वधर्म में लाया हूँ,

इस निरन्तरता की सौगन्ध तुम्हें दिलाने आया हूँ,

बदले में स्वास्थ्य, सौन्दर्य, समृद्धि सामने लाया हूँ,

वादा करो कर्म का, फल की व्यवस्था कर आया हूँ।

मौसम परिवर्तन में देखो, निर्विकार रह पाया हूँ,

सुख दुःख में समभाव रहो एक लक्ष्य मैं लाया हूँ,

लक्ष्य सन्धान के तुमसबके तेवर जगाने आया हूँ,

तुम्हारी गीता का तुमको ही पाठ पढ़ाने आया हूँ।

चन्द्रमा का सन्देश सुनो युगधर्म निभाने आया हूँ,

विश्वबन्धुत्व धारणा तुम्हारी मैं प्रयोग में लाया हूँ,

“सर्वे भवन्तु सुखिनः” का स्मरण दिलाने आया हूँ,

विश्व के प्रति कर्तव्यों का अवबोध कराने आया हूँ।

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Uncategorized•काव्य

डगर गाँव की याद आती रही।

September 18, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मुस्कुराता रहा हँस दिखाता रहा,

डगर गाँव की याद आती रही।

नौकरी की खातिर शहर जा रहा,

गाँव की मलिकी याद आती रही।

बन्द कमरे में ही मैं नहाता रहा,

गाँव की बारिशें याद आती रहीं।

बारिश में यहाँ तो छिपता रहा,

गाँव की छत मुझको बुलाती रही।

रौशनी में नहा खिलखिलाता रहा,

खोखली सी हँसी मनपे छाती रही।

तन नकली, खुशियाँ दिखाता रहा,

पर उदासी गहन मनपे आती रही।

खजूर बाजार से घरपे लाता रहा,

पर भुसौली सदा याद आती रही।

चार आमों से यहाँ मन भरता रहा,

आम बगिया मुझको बुलाती रही।

टी० वी० पे किस्से मैं लखता रहा,

गाँव की मण्डली याद आती रही।

अकेले ही ज्वर में, मैं तपता रहा,

गाँव की दादियाँ याद आती रहीं।

होटलों पे यहाँ मैं तो छकता रहा,

रोटियाँ वो, जेहन पे छाती  रहीं।

रोटियों के लिए,  चिल्लाता रहा,

मन ही मन, माँ याद आती रहीं ।     

‘बेटा’सुनने को मैं छटपटाता रहा,

घर की दर कह बेटा बुलाती रही।

इस शहर की तपन में तपता रहा,

अमराइयाँ सहज ही बुलाती रहीं।

शहर में, मैं धन तो कमाता रहा,

उमर खर्च करने, की जाती रही।

अँधेरा.. उजाले को, डसता  रहा,

कालिमा तन में डेरे लगाती रही।

मुस्कुराता रहा हँस दिखाता रहा,

डगर गाँव की याद आती रही।       

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Uncategorized•वाह जिन्दगी !

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।

September 15, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ध्यान बहुत आते हैं वो छुटपन वाले दिन,

काठवाली तख्ती और खड़िया वाले दिन,

मिट्टी से बरफी, लड्डू बनवाने वाले दिन,

खेल खेल में बिनबातों हँसजाने वाले दिन।

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।।   

कुर्सी पे पटली रख बालकटाने वाले दिन,

पुड़िया की स्याही नीलीटिक्की वाले दिन,

छोटी- छोटी रंग बिरङ्गी छतरी वाले दिन,

बालसभा में गीत सुनाते ठुमकी वाले दिन।

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।। 

नवदुर्गों में घरघर जाकर खाने वाले दिन,

वो पत्तों पर चाट पकौड़ी लाने वाले दिन,

ठण्डीठण्डी चुस्की कुल्फी पाने वाले दिन,

रंग बिरंगे टोपी स्वेटर मफलर वाले दिन।

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।।

लुकाछिपी,ऊंचनीच,विषअमृत वाले दिन,

चोरसिपाही,गुल्लीडंडा, कबड्डी वाले दिन,

भाँतिभाँति की वो रंगीली पतंगों वाले दिन,

लूडो कैरम साँपसीढ़ी में झगड़े वाले दिन।     

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।।

आलू के ठप्पों से धमाल मचाने वाले दिन,

टेसू ढाकपलाश के रंगबिखराने वाले दिन,

होली की गुझियों ईद सिवइयों वाले दिन,

भेद मिटाते मिलजुल गलेलगाने वाले दिन।         

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।।

बरसातों में कागज नाव चलाने वाले दिन,

वो पेड़ों पर चढ़ना दौड़ लगाने वाले दिन,

बाबा दादी के किस्सों से, डरने वाले दिन,

माँ बापू की प्यारी-प्यारी डाँटो वाले दिन,            

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।।

अन्त्याक्षरी में देर रात कर देने वाले दिन,

तोताउड़,मैनाउड़ में चाँटे पाने वाले दिन,

कोड़ा है जमालशाही में पीटने वाले दिन,

गुट्टे, लंगड़ी, तैराकी और कंचों वाले दिन।  

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।।

फुलझड़ी,पटाखे व बमलड़ियों वाले दिन,

नईउम्र की नईनई अठखेलियों वाले दिन,

इण्टरवल के याद हैं गेंदतड़ियों वाले दिन,

शरारतों पर, गुरुजनों से पिटने वाले दिन।      

लौटा दो हम सबको प्यारे छुटपन वाले दिन।।   

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Uncategorized•वाह जिन्दगी !

मेरी वो बड़ी वो है।/Meri wo badi wo h.

September 13, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रस्तुत पंक्तियों में ‘मेरी वो बड़ी वो है ‘आप सभी की अपनी अपनी सोच के आधार पर वो के आशय बदल सकते हैं लेकिन यहाँ प्रथम वो से आशय आत्मा और दूसरे वो से आशय शक्तिशाली से है  अर्थात  प्रकृति से जुड़ाव के पश्चात पुरुष (आत्म स्वरुप )को बोध का संज्ञान है (सांख्य) । 

मेरी वो बड़ी वो है।

मन की बात बोलने, बतियाने नहीं देती।

कहीं जाने नहीं देती खो जाने नहीं देती।

समझाऊँ मन इच्छा समझाने नहीं देती।

भारीमन  गुबारों को पिघलाने नहीं देती ।

मेरी वो बड़ी वो है।

जीवनसन्ध्या बेला में सुनाने भी नहीं देती।

ना खुद गीत गाती है गुनगुनाने नहीं देती।

बने आसक्ति उपवन बनाने भी नहीं देती।

सारा आडम्बर कह भजन गाने नहीं देती।

मेरी वो बड़ी वो है।

ख्याल रखे है बहुत गरिष्ठ खाने नहीं देती।

वस्त्र जो पहनता हूँ सलवट आने नहीं देती।

बारिश में खूब भीगने और नहाने नहीं देती।

मौसम बदलते रहते हैं मुस्कुराने नहीं देती।

मेरी वो बड़ी वो है।

बात बे बात वो खिल खिलाने भी नहीं देती।

मनस के मुक्त ज्वार बाहर आने नहीं देती।

मुझे वो पढ़ती रहती है पढ़ाने भी नहीं देती।

हौसला उद्दीप्तकर मदहोश होने नहीं देती।

मेरी वो बड़ी वो है।

शायद समझती है जग में खोने नहीं देती।

मिथ्या तथ्यआलम्ब ले मुझे रोने नहीं देती।

अध्यात्म प्रबल करके ढोंगी होने नहीं देती।

मोक्ष है अन्तिम शुभ,भ्रमित होने नहीं देती।

मेरी वो बड़ी वो है।

दूर जाने नहीं देती और पास आने नहीं देती।

बता अनहद नाद, आह्लाद में खोने नहीं देती।

अन्तर्नाद संज्ञान कह आर्त्तनाद होने नहीं देती।

अन्तर्घट की महत्ता बता बाहर खोने नहीं देती।

मेरी वो बड़ी वो है।

पीने भी नहीं देती और पिलाने भी नहीं देती।

मुझे बहती सरिता बना कुआँ होने नहीं देती।

सर्वे भवन्तु सुखिनः, आभास खोने नहीं देती।

सत्यम् शिवम् सुन्दरम् से पगलाने नहीं देती।

मेरी वो बड़ी वो है।

जाग्रति कुण्डलिनी मति भ्रम होने नहीं देती।

मन भ्रमर को कुमुदिनी में खो जाने नहीं देती।

पुरुष प्रकृति स्पष्टकर अनात्म होने नहीं देती।

सांसारिक भ्रम को हटा, अशुभ होने नहीं देती।     

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वाह जिन्दगी !

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता।

September 4, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

विद्यालय आने भर से गुरुता का वरण नहीं होता

जब अन्तः तम नहीं मिटे, ज्ञानावतरण नहीं होता।

आज गुरु बनने को कुछ तो तुच्छ मार्ग अपनाते हैं।

टी 0 वी 0 पर चिल्लाने से कोई महान नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता।1।

वेदपाठी मात्र लिख देने से वेदों का ज्ञान नहीं होता।

जीवन खप जाता है फिर भी सच्चा ध्यान नहीं होता।

वाह्य आडम्बर के द्वारा  कुछ खुद को गुरू बताते हैं।

जब तक अन्तर्मन में नहीं घटे कोई गुरू नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।2। 

मात्र नेम प्लेट लगवाने से भी कोई गुरू नहीं होता।

हो गुरुता मानस में तन संस्कार विहीन नहीं होता।

लोग गुरू कहलाने को स्वयम को ही भटकाते हैं।

भटके लोगों का निर्देशन पा  बेड़ा पार नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।3। 

 कैसे होगा कोई गुरू जब संस्कृति संज्ञान नहीं होता।

संस्कृति उन्नयन छोड़ो, खुद का परिमाण नहीं होता।

ढोल नगाड़ा साथ में ले, कुछ लोग मण्डली लाते हैं।

संस्कृतिहीन जो खुद ही हैं उनसे उत्थान नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने  से कोई गुरू नहीं होता ।4। 

मूल्य किसे कहते जग में जब तक ये भान नहीं होता।

कौन मूल्य कब आवश्यक ये हमको ज्ञान नहीं होता।

क्यों कर झूठे आडम्बर हम घटिया जाल बिछाते हैं।

मूल्य विहीन मानवता का कभी कल्याण नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से से कोई गुरू नहीं होता ।5। 

केवल नौकरी हथिया लेना गुरुता लक्ष्य नहीं होता।

नौकर,नौकर ही होता उससे बड़ा कार्य नहीं होता।

वो निज वेतन के चक्कर में बस दिन पूरे कर जाता है।

जो ज्ञान जागरण कर न सके कोई गुरू नहीं होता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।6। 

गुरु, गुरुता हित तिल तिल स्वअस्तित्व मिटा जाता।

जो कुछ सीखा है जीवन में वह भी सभी बता जाता।

गुरु द्वारा तो बस दे देने के प्रतिमान बनाये जाते हैं।

कालिमा व्यापक कितनी भी है मार्ग बताया जाता।

केवल गुरु पद पा लेने से से कोई गुरू नहीं होता ।7। 

गुरु मन तो आगत पर सर्वस्व न्यौछावर कर जाता।

उत्तम शिष्यों की खातिर वो जी जाता औ मरजाता।

उसकी क्षमता से निश्चित दिनमान ओज उग आते हैं।

इस दिनमान शृंखला द्वारा ही सद्मार्ग बनाया जाता।

केवल गुरु पद पा लेने से कोई गुरू नहीं होता ।8। 

गुरू परि-पाटी मिटने की नहीं दिखावा चल पाता।

शिष्य तपे इससे पहले  गुरु ज्ञानाग्नि में तप जाता।

गुरुता गुरु द्वारा जग को सद् मार्ग दिखाये जाते हैं ।

जो सद् पात्र होता जग में वह है उसपर चल पाता।

केवल गुरु पद पा लेने  से कोई गुरू नहीं होता ।9। 

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वाह जिन्दगी !

एकाक्षर,रुद्रप्रिय आओगे विश्वास करता हूँ।

September 2, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गौरी नन्दन मन से तुम्हें प्रणाम करता हूँ।

सच कहूँ गौरी-सुत,  एहतिराम करता हूँ।।

दर्शन की तमन्ना है सो इन्तज़ार करता हूँ।

शुभम भाव से क्षमता भर कार्य करता हूँ।।

दोस्तों, दुश्मनों, विघ्नों मध्य मैं विचरता हूँ।

विघ्नविनाशक हैं साथ सो मैं दम्भ भरता हूँ।।

विद्या के मन्दिर में जा,जाकर मैं सँवरता हूँ।

विद्यावारिधि आशीष से ही  मैं निखरता हूँ।।

एकदन्त अपनेआप को कुर्बान करता हूँ।

ईशान पुत्र तेरा ध्यान, बारम्बार करता हूँ।।

कार्य पूर्व प्रथमेश्वर का अवलम्ब रखता हूँ।

दूर्जा कृपा से कार्य सिद्धि बिम्ब रखता हूँ।।

मङ्गलमूर्ति से मंगल का खजाना भरता हूँ।

रिक्त नहींहोता कितनाभी रिक्त करता हूँ।।

शिवपुत्र ,वक्रतुण्ड हरवर्ष प्रयास करता हूँ।

एकाक्षर,रुद्रप्रिय आओगे विश्वास करता हूँ।।   

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