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Uncategorized•शोध

MERITS AND DEMERIS OF SAMPLING

January 13, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

न्यादर्श के गुण और दोष

शोध का परिक्षेत्र अत्यन्त व्यापक है और किसी भी परिणाम तक पहुँचने हेतु पग पग पर तथ्यों के गुण दोष का विवेचन करने पर यथार्थ का बोध होता है शोध कार्य से सामान्यीकरण तक पहुँचने के लिए भी न्यादर्श के गुण दोषों को समझना परम आवश्यक है। यद्यपि न्यादर्श अत्याधिक उपयोगी है लेकिन इसके भी कुछ गुण दोष हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।

MERITS OF SAMPLING

न्यादर्श के गुण

01 – समय की बचत /Saving of time

02 – श्रम की बचत /Saving of labour

03 – गहन व सूक्ष्म अध्ययन /In-depth and detailed study

04 – प्रशासकीय सुविधा /Administrative convenience

05 – विशिष्ट दशाओं में उपयोगी /Useful in specific conditions

06 – लोच का गुण /Quality of flexibility

07 – मितव्ययता/ Economy

DEMERIS OF SAMPLING

न्यादर्श के दोष अथवा सीमाएं

01 – प्रतिनिधि न्यादर्श चयन दुष्कर / Representative sample selection is difficult

02 – पक्षपात की सम्भावना /Possibility of bias

03 – पर्याप्त ज्ञान का अभाव / Lack of sufficient knowledge

04 – विशिष्ट ज्ञान आवश्यक /Special knowledge required

05 – न्यादर्श पर स्थिर रहना कठिन /Difficult to stick to the sample

06 – न्यादर्श सार्वभौमिक विधि नहीं /Sampling is not a universal method

07 – न्यादर्शन प्रयोज्य की अस्थिरता  / Instability of sampling subject

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Frequency Distribution and Class Interval

July 27, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आवृत्ति वितरण और वर्ग अन्तराल

आवृत्ति वितरण / Frequency Distribution –

जब समंक एकत्रीकरण में कोई अंक बार बार आता है या वह पुनः पुनः दीख पड़ रहा है इसे ही आवृत्ति नाम से जाना जाता है और जितनी बार वह अंक आता है उसे उसकी आवृत्ति कहा जाएगा। मान लीजिये शिक्षा शास्त्र की परीक्षा में 50 विद्यार्थियों को इस प्रकार प्राप्तांक प्राप्त हुए।

46, 57, 48, 57, 48, 76, 73, 80, 76, 83, 57, 48, 46, 57, 73, 48, 78, 48, 80, 73, 48, 76, 76, 46, 73, 81, 80, 78, 73, 76, 73, 65, 78, 83, 57, 48, 57, 46, 76, 73, 80, 73, 65, 73, 48, 46, 48,  83, 73, 76 .

 प्राप्ताङ्कआवृत्तिसंचयी आवृत्ति
460505
480914
570620
650323
731033
760639
780342
800446
810147
830350

वर्ग अन्तराल (Class Interval) –

आवृत्ति वितरण को जब हम प्रदर्शित करते हैं तो ऊपरी और निचली वर्ग सीमा को तालिका के माध्यम से निरूपित करते हैं अर्थात यह प्रत्येक वर्ग की चौड़ाई ही होती है इस समूहीकृत आवृत्ति वितरण को समावेशी वर्ग अन्तराल के आधार पर क्रमबद्ध किया जा सकता है।

वर्ग अन्तराल सूत्र :-

वर्ग अन्तराल = उच्चतम सीमा – निम्नतम सीमा

अर्थात वर्ग अन्तराल ज्ञात करने के लिए किसी वर्ग की उच्चतम सीमा से उसी वर्ग की निम्नतम सीमा को घटा देते हैं.

वर्ग अन्तराल हेतु उदाहरण  (Example for Class Interval) –

वर्ग अन्तराल को वास्तविक ऊपरी परास तथा निचली वास्तविक परास के मध्य जो जो वास्तविक अन्तर होता है उसे ही वर्ग अंतराल कहा जाता है इसे हम निम्न उदाहरण के माध्यम से अच्छी तरह समझ सकते हैं –

(यहाँ हम ऊपर प्रयुक्त समंकों का ही प्रयोग कर रहे हैं। )

वर्ग अन्तराल (Class Interval) or C Iआवृत्ति (Freequency) or f
40 – 5014
50 – 606
60 – 703
70 – 8023
80 – 904

इस उदाहरण के माध्यम से तथ्य पूर्णतः स्पष्ट हो गए होंगे।

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यह सब रस्ते के पत्थर हैं.

January 29, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

यह सब रस्ते के पत्थर हैं,

अक्सर हट जाया करते हैं। 

ये दिल पर रखा बोझ नहीं,

जिससे मर जाया करते हैं।

जीवन के रास्ते दूभर हैं

समतल हो जाया करते हैं।

चलने की हिम्मत की ही नहीं

यूँ, क्यूँ डर जाया करते हैं।

दिखने को काले बादल हैं,

ये भ्रम फैलाया करते हैं।

गर्जन तर्जन सब किया यहीं

फिर, ये उड़ जाया करते हैं।

इस जग के किस्से नश्वर हैं

किसी समय डराया करते हैं।

मन की हलचल बोझ नहीं

प्रश्न हल हो जाया करते हैं।

जो मार्ग के काँकड़ पाथर हैं,

सब राज बताया करते हैं।

जिनकी किस्मत में गति नहीं,

वो ‘नाथ’ दब जाया करते हैं।

यह सब रस्ते के पत्थर हैं,

अक्सर हट जाया करते हैं ।।


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Uncategorized•वाह जिन्दगी !

संस्थान सही हाथों में है। 

February 17, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गर संस्था खुद परिवार बने, संस्थान सही हाथों में है।

छल और प्रपञ्च से दूर रहे,  संस्थान सही हाथों में है।

यह सच है, दुनिया वाले, पथ में कण्टक बिछवायेंगे।

गर उन सबसे बच के निकले, संस्थान सही हाथों में है। ।1।

मानवीय मूल्य का ख्याल रखे, संस्थान सही हाथों में है।

यदि भूल के भी भटकाव न हो, संस्थान सही हाथों में है।

जब हम दायित्व निर्वहन कर, संस्था को उन्नत बनाएंगे। 

कर्म को उचित सम्मान मिले, संस्थान सही हाथों में है। ।2।

जब दिन प्रतिदिन परवान चढ़े, संस्थान सही हाथों में है।

जब वह समाज की दिशा गढ़े, संस्थान सही हाथों में है।

हमसब समाज संग मिलकर के यह करतब दिखलाएंगे।

जब सभी कर्त्तव्य निर्वहन करें, संस्थान सही हाथों में है। ।3।

सब भेद – भाव को भूल चलें, संस्थान सही हाथों में है।

ना जातिवाद को प्रश्रय मिले, संस्थान सही हाथों में है।

आवाहन और सौगन्ध यही हिलमिल समरसता लाएँगे।

पावन परिवार का साथ मिले, संस्थान सही हाथों में है। ।4।

चापलूसी को न जगह मिले, संस्थान सही हाथों में है।

मर्यादा रीति और नीति बढे ,संस्थान सही हाथों में है।   

संस्था की मान प्रतिष्ठा हित नित कदम उठाए जाएंगे।

संस्था को नवसम्मान मिले , संस्थान सही हाथों में है। ।5।

हो वादों का अम्बार नहीं, संस्थान सही हाथों में है।

निष्ठा को उसका मूल्य मिले,संस्थान सही हाथों में है।   

निष्ठा, लगन, उत्साह सहित पथ प्रशस्त कर जाएंगे।

स्वप्नों का नाथ किला न ढहे, संस्थान सही हाथों में है।।6।

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Uncategorized•दर्शन

मानवता वाद (HUMANISM)

January 21, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ममानवतावाद का उद्भव एक विशेष प्रकार की मानव स्थिति की अनुभूति पर निर्भर है तथा वह अनुभूति इस मानवीय संवेदना की है जिससे आधुनिक काल का मानव घिरा है, विज्ञान एवम् टैक्नोलॉजी की प्रगति से युक्त मानसिकता, विज्ञान की मानकीकरण की विकृति, विश्व युद्ध की विभीषिकाओं की स्पष्ट अनुभूति, मानव के संत्रास, कुण्ठा, निराशा, चिंता, अकेलापन व नीरसता की स्पष्ट अनुभूति – इसकी पृष्ठभूमि में मानवतावादी दृष्टि सर्जित होती है प्रोटागोरस (Protagoras) ने 480 से 490 ईसा पूर्व कहा-

“मानव सभी बातों का माप दण्ड है जो है वह वास्तविक है और जो नहीं है वह वास्तविक नहीं है।”

“Man is the measure of all things; of what is, that it is, of what is not, that it is not.”

मानवतावाद का आशय उस वाद से है जिसमें मनुष्य के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है इसमें मानव ही सबकुछ है वह किसी का प्रतीक मात्र नहीं है उसकी वैयक्तिकता पहचानी जा सकती है।

डॉ 0 राधाकृष्णन ने ऑक्सफ़ोर्ड में अपने एक भाषण में कहा था –

“Man has become the philosopher of man. A new humanism is on the horizon. But this time it embraces the whole of mankind.”

– Dr. Radha Krishanan

“मनुष्य मनुष्य का दार्शनिक हो गया है। एक नया मानवतावाद क्षितिज पर उदीयमान है किन्तु इस बार वह सम्पूर्ण मानवता को अपने में समेटे हुए है।”

मानवतावाद सम्बन्धी विचारधारा अनेक पाश्चात्य व भारतीय दार्शनिकों के चिन्तन का विषय रही है डॉ राधा कृष्णन, जाकिर हुसैन, जवाहर लाल नेहरू, विवेकानन्द, रबीन्द्र नाथ टैगोर सभी इसका समर्थन करते दीखते हैं यह दर्शन मानवता को दर्शाता है।     

मानवतावादी दर्शन वह दर्शन है जो मनुष्य को सर्वोपरि मानता है उनके अनुसार मनुष्य ही इस संसार का केन्द्र बिंदु है वह अपने भाग्य का निर्माण खुद करता है।

ब्रह्मवादियों तथा निरपेक्ष वादियों के अनुसार –

“ब्रह्म कोई अतिरिक्त या पारलौकिक सत्ता नहीं है यह मनुष्य के स्वरुप का ही एक आयाम है।”

वर्तमान में मानव पहचान की जो बेचैनी है उसके बीज इतिहास के अकुलाहट युक्त पृष्ठों के बीच छिपे हैं इतिहास भी समस्त सृजन में मानव की भूमिका को नज़र अन्दाज करने के पक्ष में नहीं है मैस्लो(Maslow) महोदय कहते हैं –

“Humanism is a word which is used by writers in many different senses, One of these implies that man makes up the entire framework of human thought, that there is no God, no super human reality to which he can be related or can relate himself.”

“मानवतावाद एक ऐसा शब्द है जो विभिन्न लेखकों द्वारा विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त किया गया है इनमें से एक में यह अर्थ निहित है कि मनुष्य मानव विचार की समस्त पृष्ठ भूमि है, ईश्वर नहीं है, कोई अति मानवीय वास्तविकता नहीं है जिससे मनुष्य को जोड़ा जा सके।”

वैज्ञानिक मानवतावाद (Scientific Humanism )-

वैज्ञानिक मानवता वाद जीवन के प्रति मानव केन्द्रित दृष्टिकोण है, वैज्ञानिक मानवतावाद सृष्टि के प्रति उसके दृष्टिकोण एवम् जीवन के लक्षण तथा मान्यताओं, सत्य के स्वरुप आदि के सम्बन्ध में विशिष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है नेहरू जी ने मानवतावाद एवम् वैज्ञानिक प्रवृत्ति के बीच के संश्लेषण को वैज्ञानिक मानवतावाद का दर्जा दिया था।

वैज्ञानिक मानवतावादी सृष्टि को भ्रम न मानकर सत्य व विभिन्न सम्भावनाओं से युक्त मानते हैं वैज्ञानिक मानवतावाद एक ऐसा दृष्टिकोण है जो केवल वैज्ञानिक या केवल मानवीय नहीं है वैज्ञानिक मानवतावाद जीवन के प्रति मानव केन्द्रित दृष्टिकोण है इस सम्बन्ध में साबिरा जैदी कहती हैं-

“It affirms in a resounding voice the dignity and value of man and asserts unequivocaly that human happiness is the highest goal of all social reforms.”

“यह मनुष्य की गरिमा व मूल्य की ध्वनि को पुनः गुंजरित करता है और मानता है कि सभी समाज सुधारकों के लिए मनुष्य का सुख ही सर्वोच्च भद्र या शिव है।”

वैज्ञानिक मानवतावाद की शैक्षिक मान्यताएं (Educational premises of Scientific Humanism)-

1 – शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण

2 – सर्जनात्मकता

3 – उत्तर दायित्व निर्वहन व स्वतन्त्रता के उचित प्रयोग हेतु शिक्षा महत्त्वपूर्ण

4 – व्यावहारिकता व व्यवसाय प्रयोजन आवश्यक

मीमांसा आधारित संक्षिप्त विवेचन-

किसी भी दर्शन को अधिगमित करने हेतु मीमांसाओं की महती भूमिका है मानवतावाद के वास्तविक अर्थ को समझने हेतु उसकी तत्त्व मीमांसा (Metaphysics), ज्ञान व तर्क मीमांसा (Epistemology and Logic),एवं आचार व मूल्य मीमांसा (Ethics and Axiology)  संक्षेप में प्रस्तुत हैं –

तत्त्व मीमांसा – ये प्रकृति को मूल तत्त्व मानते हैं और किसी अलौकिक सत्ता पर विश्वास नहीं करते। भौतिक जगत को सत्य मानते हुए मनुष्य को प्रकृति की श्रेष्ठतम रचना स्वीकार करते हैं।

ज्ञान व तर्क मीमांसा – इनके अनुसार सच्चे ज्ञान  श्रेणी में पदार्थजन्य जगत व उसकी समस्त क्रियाएं आती हैं विवेक आधारित ज्ञान   व तर्क की कसौटी पर खरा सत्य ही ज्ञान की श्रेणी में आएगा। 

 आचार व मूल्य मीमांसा – मानवतावादियों की बड़ी संख्या प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, सुन्दरता,सामाजिक समानता, न्याय आदि को आचरण में उतारने व मूल्य के  रूप में स्वीकारने की बात करते हैं इनके अनुसार सम्पूर्ण मानवता की भलाई सबसे बड़ा मूल्य है।

मानवतावाद की प्रमुख विशेषताएं (Chief Characteristics Of Humanism)-

1 – यह संसार सत्य है भ्रम नहीं। यह निरन्तर विकास की असीम सम्भावनाओं से युक्त है। 

2 – मानव सेवा हेतु मानवता वाद का अभ्युदय हुआ है।

3 – मानव शक्तिशाली है व अपनी समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है।

4 – मानव एक सृजनात्मक जीव है।

5 – मानव असीम प्रगति उन्मुख सम्भावनाओं से युक्त है और अपने भाग्य का निर्माता है।

6 – मानवतावाद का मानव शिवम् व सुन्दरम की धारणा से युक्त है।

7 – मानवतावाद मानव को सबसे गुणयुक्त स्वीकार करता है।

8 – यह संस्कृति का पुनः जागरण करना चाहता है तथा यह मानवीय संस्कृति के पुनरुद्धार हेतु विश्व रंगमञ्च पर अवतरित हुआ है।

9 – यह वाद विकासोन्मुखता पर विश्वास करता है और मानव को इस हेतु विवेकयुक्त प्राणी स्वीकार करता है।

10 – मानवतावाद मानवीय प्रकृति को लचीला, परिवर्तनशील व सहयोगी मानता है।

मानवतावादी शिक्षा का उद्देश्य (Aims of Humanistic Education)-

1 – आत्म विश्वास जाग्रत करना

2 – समस्त अन्तर्निहित शक्तियों का विकास

3 – मानवता का अधिकतम कल्याण

4 – मानव को सुखी बनाना

5 – समालोचनात्मक रचनात्मकता का विकास

“The cultivation of constructive criticism and a critical constructiveness should be one of the foremost aims of education, according to scientific humanism.”  – Sabira K Zaidi : Education and Humanism  (Indian Institute of Advanced Studies, Shimla 1971 p.110) 

6 – सशक्त चेतना का विकास

7 – समाज का विशिष्ट अंग बनाने हेतु आत्मबोध जाग्रत करना

8 – मानसिक स्वास्थ्य

9 – मानवीय मूल्य व सद् विवेक जागरण

10 – आत्म अनुशासन की भावना का विकास

“Education to be complete must be human, it must include not only the training of intellect but the refinement of the heart and discipline of the spirit.” – Dr. Radha Krishanan

“शिक्षा पूर्ण होने के लिए मानवीय होना चाहिए, इसमें न केवल बुद्धि का प्रशिक्षण शामिल करना चाहिए वरन ह्रदय का परिष्करण तथा आत्मा का अनुशासन भी।”

मानवतावाद व पाठ्यक्रम (Humanism and Curriculum)-

मानवतावादी पाठ्यक्रम में हृदय, आत्मिक विकास और मानवता पर विशेष ध्यान देना चाहते हैं इस सम्बन्ध में डॉ 0 राधा कृष्णन के शब्द भी यही इशारा करते हैं। – “No education can be regarded as complete if it neglects the heart and the spirit.”

“कोई भी शिक्षा पूर्ण नहीं समझी जा सकती यदि वह हृदय तथा आत्मा की उपेक्षा करती है।”

मानवतावादी भाषा के विकास के साथ मानवोपयोगी विषयों से मानव को जोड़ना चाहते हैं इसीलिये मानवतावादी उद्देश्यानुरूप निम्न विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहते हैं –

शिक्षा के उद्देश्य              —————————-     विषय

मानसिक विकास             —————————-   कला, तर्क शास्त्र, विज्ञान, गणित

शारीरिक विकास              —————————- व्यायाम, योग, शिल्प, क्रियात्मक शिक्षा

आध्यात्मिक विकास     —————————-  दर्शन, मूल्य शिक्षा, नीतिशास्त्र, धर्म शास्त्र

सामाजिक विकास       ————————–  इतिहास, साहित्य, संस्कृति, समाज विज्ञान, दार्शनिक व शिक्षा शास्त्रियों की जीवनी

उक्त के अतिरिक्त मानवतावादी हर उस विषयवस्तु का समर्थन करते हैं जो मानवतावादी विचार के प्रसार में आवश्यक हो।

शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –

ये जीवन से सम्बन्धित व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करते हुए अधिगम कराना चाहते हैं इसीलिये तर्क विधि, प्रश्नोत्तर विधि, समस्या समाधान विधि, वाद विवाद विधि पर विशेष जोर देते हैं ये उच्च मानवीय संवेदना को समेटे हुए इन्द्रिय अनुभूत ज्ञान को भी विवेक और तर्क की कसौटी पर परखने के बाद आत्मसाती करण की प्रेरणा देते हैं।

मानवतावाद व शिक्षक (Humanism and Teacher)-

मानवतावादी चाहते हैं की शिक्षण कार्य उन लोगों को मिले जो मानवीय दृष्टिकोण पर बल देने वाले हों जैसा कि ब्रुबेकर (Brubacher) महोदय कहते हैं –

“Humanism emphasises human nature and the human point of view.”

“मानवतावाद मानव स्वभाव एवम् मानवीय दृष्टिकोण पर बल देता है।”

मानवतावादी शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अध्यापक क्रान्तिकारी मानवतावादी हो एवम् निम्न गुणों से युक्त हो –

1 – शिक्षक, शिक्षण जैसे महान दायित्व बोध में सक्षम हो। 

2 – अपने क्षेत्र का विद्वान् हो।

3 – मानसिक, आध्यात्मिक, शारीरिक, आन्तरिक आदि विविध शक्तियों के सम्यक विकास हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वहन के योग्य हो। 

4 – मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समझ कर विकास का पथ प्रशस्त करने वाला हो।

5 – सकारात्मक विकास व प्रेरणा देने में सक्षम हो।

मानवतावाद व शिक्षार्थी (Humanism and Student)-

ये शिक्षार्थियों की स्वतन्त्रता व व्यक्तित्व का आदर करते हैं  तथा शिक्षक व शिक्षार्थी के बीच शासक व शासित जैसे सम्बन्धों के घोर विरोधी हैं। मानवतावादी प्रेम व सहयोग आधारित सम्बन्धों की उम्मीद रखकर अध्यापकों से मानवतावादी दृष्टिकोण की अपेक्षा करते हैं और चाहते हैं कि वे अपने बालकों को भय द्वन्द व तनाव से दूर रखें। इससे विद्यार्थियों में मानवीय गुणों का विकास किया जा सकेगा।

शिक्षा के अन्य विविध पक्ष –

1 – जन शिक्षा

2 – स्त्री शिक्षा

3 – व्यावसायिक शिक्षा

4 – धार्मिक शिक्षा

5 – यथार्थ शिक्षा

मूल्यांकन (Evaluation)-

मानवतावाद शिक्षा द्वारा मानव को मानवता का पाठ पढ़ाकर श्रेष्ठ नागरिक बनाना चाहता है यह सम्पूर्ण मानवता को एक मानकर मनुष्य को विश्व का मूलभूत बिन्दु व  केन्द्र मानता है यह धर्म, जाति, राज्य, समाज किसी का भी विरोधी नहीं है यह मात्र मानव मानव को अलग करने वाली संकीर्णताओं का विरोध करता है यह विध्वंसक आयुधों को उचित नहीं समझता जिसने मानव मात्र के समक्ष अस्तित्व का खतरा पैदा कर दिया है।

ये तर्क को ज्ञान का आधार मानते हैं इनके पाठ्यक्रम,शिक्षक, शिक्षार्थी,शिक्षण विधि विद्यालय आदि के विचारों का मूल मन्तव्य मूल्य आधारित मानवीय गन्तव्य निर्धारित करना है। व्यक्तिगत भिन्नता, जन शिक्षा, सामान शिक्षा,मूल्य आधारित शिक्षा,तर्क शक्ति उन्नयन,सृजनात्मकता उन्नयन सम्बन्धी विचार स्वागत योग्य हैं लेकिन धर्म की जगह धार्मिक संकीर्णताओं से दूर रहने की प्रेरणा दी जानी चाहिए।

Encyclopidia Britannica में मानवतावाद को सही पारिभाषित किया गया –

“Humanism is the attitude of mind which attaches primary importance to mean and to his faculties, affairs, temporal aspirations and well being,

“मानवता वाद मनुष्य के मस्तिष्क की वह अभिवृत्ति है जो मनुष्य को और उसके विभिन्न पक्षों, कार्यों, इच्छाओ और उसके हित को सर्वाधिक महत्त्व देती है।”

इन्होने स्वार्थी और संकीर्ण मानसिकता को दिशा देने का भरपूर प्रयास किया लेकिन सार्थक परिणाम आज भी दूर की कौड़ी जान पड़ते हैं मानवीय विकास के विभिन्न आयामों को समेटने के बावजूद इनकी शिक्षा दर्शन को देन अप्रभावी है इसे सच्चे धार्मिक दर्शन के आधारिक अवलम्ब की आवश्यकता है।

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Uncategorized•वाह जिन्दगी !

दीर्घ कालिक युवा ऊर्जा बनाये रखने के उपाय।

May 18, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

दीर्घ कालिक युवा ऊर्जा बनाये रखने के उपाय | Way to keep yourself young for long time

हमें जीवन पर्यन्त क्रियाशील रहने के लिए और शैथिल्य या बुढ़ापे में भी युवाओं जैसी ऊर्जा बनाये रखने हेतु मष्तिस्क की जाग्रत स्थिति बनाये रखने के लिए निम्न बिंदुओं पर कार्य करना होगा।

महत्त्वपूर्ण तथ्य  ( Important Facts )-

(0 1) – मष्तिस्क के वातायन में सकारात्मक विचारों के नवीनतम झोंके आने दें।

(0 2) – मष्तिस्क को आदेश दें कि हमेशा सक्रिय रहना सम्भव है।

(0 3) – हल्का व्यायाम हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।

(0 4) – प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया जाना चाहिए।

(0 5) – टहलना एवम् खुश रहना चमत्कारिक प्रभाव देगा।  

(0 6) – सुपाच्य भोजन, फल आदि ग्रहण करके पेट ठीक रखा जाना चाहिए। 

(0 7) – जल की पर्याप्त मात्रा का सेवन करें।

(0 8) – स्वच्छ वस्त्र ,शुचिता एवं एवम् उत्तम वातावरण में रहें।

(09) – आध्यात्मिक चिन्तन को दिनचर्या का अनिवार्य अंग बनाएं।

(10) – कम बोलें, खुश रहें, खुश रहने दें के सिद्धान्त पर कार्य करें।   

(11) – अपने से कम उम्र के लोगों से मिलें उनके अच्छे विचारों का स्वागत करें।

(12) –  पुरानी अनावश्यक वस्तुओं के मोह से बचें।

(13) – अनावश्यक वस्तु एवम् विचार संग्रह न करें।

(14) –  यथोचित व यथा समय पर्याप्त नींद लें।

                        उक्त तथ्यों से जुड़कर आप अवश्य कह उठेंगे, वाह जिन्दगी।

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Uncategorized•वाह जिन्दगी !

क्रोध पतन है…………

March 25, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

क्रोधाग्नि से तजकर सुधबुध मानस तम में खो जाता है,

तम का जब बढ़ता प्रभाव सारा विवेक ही सो जाता है,

साँसे तेजी से चलने लगतीं, मुख रक्त वर्ण  हो जाता है,

तामस तत्व क्रोध कहलाता मृदु भावों को खो आता है।

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।1।

गुस्सा अहम प्रभाव बढ़ाता तन मन वहमी हो जाता है,

क्रोध ज्वाल रिश्ते नाते खा बस बीज नाश बो जाता है,

सारे सम्बन्ध तिरोहित होते जग अन जाना हो जाता है,

संसार खोखला सा लगता क्रोध जब हावी हो जाता है।

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।2।

दुर्वासा सा स्वभाव होता मन सम्मोहन में खो जाता है,

स्मृति भ्रम तब होने लगता हरण बुद्धि का हो जाता है,

कारण पतन का बुद्धिभ्रम प्राण का संकट हो जाता है,

आनन्द मार्गी स्रोतों का मृदुजल कहाँ पर खो जाता है।

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।3।

तन क्रोध का कारण बनता खो क्रोध ऋषि हो जाता है,

क्रोध नियन्त्रित हो जाने पर मन शीतल सा हो जाता है,

शीतलता भाव बढ़ते जाने से सौम्य स्वभाव हो जाता है,

मृदु सौम्यभाव प्रगति पाने से, अहंकार ही खो जाता है।

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।4।

क्रोधानल में घी ना पड़ता जागरण विवेक हो जाता है,  

प्यार पे गुस्सा नहीं पौढ़ता, प्यार में गुस्सा खो जाता है,

क्रोधी आवरण खो जाने से देवत्व अंकुरण हो जाता है,  

सरल आचरण हो जाता, सम्पूर्ण क्रोध ही खो जाता है।

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।5।

शुभ चिन्ह प्रगट होते सत हावी रज तम पे हो जाता है,

आवेग आनन्दम बढ़ जाता क्रोध तिरोहित हो जाता है,

बढ़ता जब सत का प्रभाव सर्वत्र आनन्दम हो जाता है,

कलुष सभी मानस के मिटते चरित्र निर्मल हो जाता है।

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।6।

जीवन जब सम्यक तपजाता क्रोध किधर खो जाता है,

गुण न गरल का तब बढ़ता पुरुषोत्तम तन हो जाता है,

मर्यादा की भावना बढ़ती, विनयशील मन हो जाता है,

पतन का कारण होता ज्ञात सत का उद्भव हो जाता है।       

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर यह क्यों हो जाता है।7।

गुस्से का विप्लवी भाव ऐसा पथ लहूलुहान हो जाता है,

मानव जब गुस्सा खो देता वह मन मोहक हो जाता है,

वैराग्य विनय वो कारण है कलुषित मानस धो जाता है,

क्षरित क्रोध होने से ‘नाथ’ पावस अन्तस्तल हो जाता है।

क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर यह क्यों हो जाता है।8।

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पितृत्व का श्रृंगार है।(Pitratv Ka Shrangaar h.)

November 20, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पिता परम पिता परमेश्वर प्रदत्त अनुपम उपहार है,

बच्चों हित फलदाई वृक्ष और संगिनी का, श्रृंगार है,

सब है गर पिता साथ है बिन पिता जीवन अनाथ है,

पितृहीन बालक लाचार है, माँ का जीवन अंगार है।

बच्चों की  खिलखिलाहट व पारिवारिक संस्कार है,

अति विस्तार है उसका वह परिवार की सरकार है,

पारिवारी जनों के लिए वो, दिशाबोधक विश्वनाथ है,

हिचकोले खाती घर नैय्या का वह प्रमुख आधार है। 

बेटे बेटियों के स्वप्न पूर्णता का, वही दृढ़ आधार है,

परिश्रम लगन निष्ठा का वह साकार प्रत्यक्षाकार है,

कण्टकाकीर्ण दुरूहमार्ग पर विपत्ति में जो साथ है,

पिता कहा जाता उसे जो त्याग का खास प्रकार है।

दुनियाँ के मरुस्थल में हरियाली का एक प्रकार है,

भय, चिन्ता, असुरक्षा भाव का, वो करता संहार है,

प्रगति समृद्धि बच्चों की उसी का सर्वाधिक हाथ है,

अपेक्षित संस्कार हस्तान्तरण का वह मुख्याधार है।

बच्चों के मन मन्दिर में, जगदीश का जो प्रकार है,

मान, मर्यादा संस्थापना का, वह मुख्य मूर्तिकार है,

वन्दनीय पौरुष जगत का, वह तो मात्र इक पार्थ है,

अधिकार छोड़ कर्तव्यों का बस लगरहा अम्बार है।    

निजआदर्शों का आराधक आगत का पालनहार है,

स्वयं के सारे दुःख छिपा सर्वसुख का वह आधार है,

उससे जन्मी जो  रचना है, भविष्य में प्रकाशनार्थ है,

हर कृति को सुन्दरतम करना, पितृत्व का श्रृंगार है।

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शोषण मुक्त समाज बने इसलिए जगाने आया हूँ।

October 15, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

काल चक्र परिवर्तन का सन्देश दिखाने लाया हूँ,

जन्माधारित वर्णव्यवस्था का मैं खण्डन लाया हूँ,

नेता बनके समाज का जिसने समाज को लूटा है,

उन नेताओं के चेहरे  का, नकाब हटाने आया हूँ ।

शोषण मुक्त समाज बने इसलिए जगाने आया हूँ। ।

बदलते भारत में एकता का पैगाम सुनानेआया हूँ,

अधर्म की ठेकेदारी का, आज विखण्डन लाया हूँ,

इस ठेकेदारी ने, हर समाज को गलत ही कूता है,

सुध खोई मानवता जागे, हाँ उसे उठाने आया हूँ।

शोषण मुक्त समाज बने इसलिए जगाने आया हूँ। ।

कबूतरों की पहरे दारी से, मैं बाज़ हटाने आया हूँ,

समरसता की धार बहे हर मस्तक चन्दन लाया हूँ,

मद्यपान विषश्रृंखला ने जमकर समाज को लूटा है,

राष्ट्रवाद का नशा चढ़े , धूम्रपान मिटाने आया हूँ।

शोषण मुक्त समाज बने इसलिए जगाने आया हूँ । ।

दहेजप्रथा और बालश्रम का जहर जलाने आया हूँ,

इन दोनों के निवारण कारण ही तो वन्दन लाया हूँ,

दोनों कुरीतियों के, कारण कइयों का दिल टूटा है,

किसीके अरमाँ मतकुचलो हाँ यही बताने आया हूँ।

शोषण मुक्त समाज बने इसलिए जगाने आया हूँ । ।

जाति के भेदभाव तज दो अब दर्पसुलाने आया हूँ,

आदर्श गढ़ो व साथ चलो सबका मण्डन लाया हूँ,

गैर जिम्मेदार हरकतों से सम्बन्ध मूल्य से छूटा है,

उन सभी भ्रष्ट गद्दारों को आइना दिखाने आया हूँ।

शोषण मुक्त समाज बने इसलिए जगाने आया हूँ। ।

तुम साथचलो हम साथचलें ये बोझउठाने आया हूँ,

कुचले सामाजिक तत्वों का लेकर क्रन्दन आया हूँ,

वर्षों के शोषण खिलाफ, शोषितों में गुस्सा फूटा है,

उस तेवर की ऊर्जा को, सद् मार्ग सुझाने आया हूँ।

शोषण मुक्त समाज बने इसलिए जगाने आया हूँ । ।

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Uncategorized•काव्य

डगर गाँव की याद आती रही।

September 18, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मुस्कुराता रहा हँस दिखाता रहा,

डगर गाँव की याद आती रही।

नौकरी की खातिर शहर जा रहा,

गाँव की मलिकी याद आती रही।

बन्द कमरे में ही मैं नहाता रहा,

गाँव की बारिशें याद आती रहीं।

बारिश में यहाँ तो छिपता रहा,

गाँव की छत मुझको बुलाती रही।

रौशनी में नहा खिलखिलाता रहा,

खोखली सी हँसी मनपे छाती रही।

तन नकली, खुशियाँ दिखाता रहा,

पर उदासी गहन मनपे आती रही।

खजूर बाजार से घरपे लाता रहा,

पर भुसौली सदा याद आती रही।

चार आमों से यहाँ मन भरता रहा,

आम बगिया मुझको बुलाती रही।

टी० वी० पे किस्से मैं लखता रहा,

गाँव की मण्डली याद आती रही।

अकेले ही ज्वर में, मैं तपता रहा,

गाँव की दादियाँ याद आती रहीं।

होटलों पे यहाँ मैं तो छकता रहा,

रोटियाँ वो, जेहन पे छाती  रहीं।

रोटियों के लिए,  चिल्लाता रहा,

मन ही मन, माँ याद आती रहीं ।     

‘बेटा’सुनने को मैं छटपटाता रहा,

घर की दर कह बेटा बुलाती रही।

इस शहर की तपन में तपता रहा,

अमराइयाँ सहज ही बुलाती रहीं।

शहर में, मैं धन तो कमाता रहा,

उमर खर्च करने, की जाती रही।

अँधेरा.. उजाले को, डसता  रहा,

कालिमा तन में डेरे लगाती रही।

मुस्कुराता रहा हँस दिखाता रहा,

डगर गाँव की याद आती रही।       

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