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शोध

Educational Research

March 31, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शैक्षिक अनुसन्धान

मानव की उत्तरोत्तर प्रगति में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योग है समाज में उठने वाली किसी भी समस्या के समाधान हेतु शिक्षा की और देखा जाता है और शिक्षा अपने अनुसंधान पर निर्भर करती है। शैक्षिक अनुसन्धान वह साधन है जो विवेक पूर्ण,व्यवस्थित अध्ययन के माध्यम से समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।

आज प्रत्येक क्षेत्र में सम्यक व व्यवस्थित शोध का आधार लेकर प्रगति की आधार शिला रखी जाती है बजट बनाने, नीति निर्माण,भविष्य के संसाधन विकास हेतु और विविध योजनाओं को उसके अंजाम तक पहुंचाने हेतु शोध की आवश्यकता महसूस की जाती है। शैक्षिक शोध की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयुक्त शोध शैक्षिक शोध कहा जाता है।

शैक्षिक शोध की परिभाषा / Definition of Educational Research –

विविध विद्वानों ने शैक्षिक शोध का अर्थ स्पष्ट करने हेतु अपने भावों को इस प्रकार गुम्फित किया है।

 –जॉन डब्लू बेस्ट (John W Best) के अनुसार

“शैक्षिक अनुसंधान, शैक्षिक परिवेश में छात्र कैसे व्यवहार करते हैं ,के सिद्धान्तों के परीक्षण करने और विकास से सम्बन्धित है।” 

“Educational research is concerned with the development and testing of theories of how students behave in an educational setting.”

प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री John W. Creswell (जॉन डब्ल्यू. क्रेसवेल) के अनुसार

“Educational research is a systematic and organized approach to asking questions, collecting and analyzing data, and effectively reporting findings to understand and improve educational practices and policies.”

“शैक्षिक अनुसंधान प्रश्न पूछने, डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने, तथा शैक्षिक प्रथाओं और नीतियों को समझने और उनमें सुधार करने के लिए निष्कर्षों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का एक व्यवस्थित और संगठित दृष्टिकोण है।”

आर डब्लू एम ट्रैवर्स (R.W.M.Travers) महोदय के अनुसार

“शैक्षिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जो शैक्षिक परिस्थितियों में व्यवहार विज्ञान के विकास की ओर निर्देशित हैं। ”

“Educational research is that activity which is  directed towards development of science behaviour in educational situations.”

An introduction to Educational Research .(1954) p 5

शैक्षिक अनुसन्धान का क्षेत्र / Field of academic research –

जादू शब्द जब संसार में प्रचलित हो रहा होगा तब तक निश्चित से दो वर्गों का अभ्युदय हो चुका     होगा एक वह जो इससे प्रभाव में आ जाए एक वह जो ट्रिक का प्रयोग करके सामने वाले भ्रमित कर सके। वास्तव में जब तक आवरण है और सच्चाई परदे में है विश्व उत्थान बाधित ही रहेगा। सारी सच्चाई को सामने लाने के लिए और तमाम समस्याओं का निदान शोध के आधार पर ही सम्भव है। आज हर क्षेत्र में समस्याएं विद्यमान है शिक्षा जगत भी इससे अछूता नहीं है। शिक्षा क्षेत्र की समस्याओं के निदान में शैक्षिक शोध में अपार सम्भावनाएं छिपी हैं। शैक्षिक अनुसंधान के विविध क्षेत्रों को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।

1 – शिक्षा दर्शन Educational Philosophy

2 – विविध स्तरीय परिक्षेत्र / Different Level Fields

3 – शिक्षा मनोविज्ञान / Educational Psychology

4 – मौलिकता विवेचन / Originality Discussion

5 – शिक्षा का इतिहास / History of Education

6 – शैक्षिक समाजशास्त्र / Educational Sociology

7 – तुलनात्मक शिक्षा / Comparative Education

8 – शैक्षिक प्रशासन / Educational Administration

9 – शैक्षिक मापन व मूल्यांकन /Educational Measurement and Evaluationशैक्षिक शोध का क्षेत्र कोई भी हो शोध अपना कार्य पूर्ण करता ही है शोध वह दिशाबोध है जो हमें सकारात्मक दिशा प्रदान करता है और हम समस्या के निदान तक पहुंचते हैं।

शैक्षिक शोध की आवश्यकता क्यों ? 

Why is educational research needed? –

आज का शैक्षिक शोध कहीं भ्रमित हो गया है। शोध को सही दिशा देने के लिए जो शोध निर्देशक कार्य करा रहे हैं उनमें से कुछ भटक कर स्वार्थी हो गए हैं लेकिन शोध का स्तर कहीं दुष्प्रभावित हो रहा है। लेकिन सत्य स्थापन हेतु फिर भी शोध परमावश्यक है शोध का क्षेत्र व्यापक है और आज के भारत को सकारात्मक शोध की आवश्यकता है निम्न कारणों से शैक्षिक शोध की आवश्यकता है।

01 – ज्ञान परिमार्जन व विकास हेतु /For knowledge refinement and development

02 – उद्देश्य प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन / Important means of achieving the objective

03 – नवीन ज्ञान प्रसार हेतु / For spreading new knowledge

05 – अंतर्राष्ट्रीयता व सद्भावना हेतु /For internationalism and goodwill

06 – उद्देश्य प्राप्ति का व्यवहारिक साधन / Practical means of achieving the objective

07 – ज्ञान पिपासा पूर्ति का प्रमुख साधन / The main means of satisfying the thirst for knowledge

08 – कुशल प्रशासन हेतु / For Efficient administration

09 – अध्यापन की प्राण ऊर्जा स्थायित्व हेतु /For the stability of the life energy of teaching

10 – वैश्विक प्रगति के साथ सामञ्जस्य / Keeping pace with global progress.

11 – विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास हेतु /For the development of the feeling of universal     brotherhood

सच मानो तो आज सत्य शोधक समाज की आवश्यकता है लेकिन भौतिकता की अन्धी दौड़ ने हमारी सोच पर आवरण चढ़ा दिया है जिससे सत्य की वास्तविक अनुभूति नहीं हो पा  रही है। आशा की किरण आने वाले कल में सच्चा शोध ही हो सकता है।

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शोध

ACTION RESEARCH

March 29, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

क्रियात्मक अनुसन्धान

मानव की प्रारम्भिक अवस्था से आज तक बहुत से परिवर्तन हुए हैं और यह परिवर्तन निरन्तर जारी हैं,  विशिष्ट शोध पर्यवेक्षकों की अनुपस्थिति में स्वयम् अध्यापकों, विद्यार्थियों और विविध संस्थानों द्वारा किसी समस्या पर स्वयं शोध क्रिया सम्पन्न की जाती है क्रियात्मक अनुसन्धान के नाम से जानी जाती है। इसके माध्यम से हम अपने क्षेत्र, संस्थान, लोगों की विविध समस्याओं का अध्ययन कर समाधान व कारणों का अध्ययन करते हैं।

इस प्रकार का शोध शिक्षा के क्षेत्र में अपेक्षाकृत शोध का नया दृष्टिकोण है क्रियात्मक अनुसंधान में समस्या से जूझ रहे लोग स्वयं अपनी समस्या को समझने के क्रम में शोध करते हैं विशेषज्ञ की आवश्यकता महसूस नहीं की जाती। इस प्रकार का शोध क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से जाना जाता है। क्रियात्मक अनुसन्धान को भली भाँति समझने हेतु कुछ विद्वानों के दृष्टिकोण का अध्ययन करना सम्यक रहेगा।  

क्रियात्मक अनुसन्धान की परिभाषाएं / Definitions of Action research –

विविध विद्वानों ने तत्सम्बन्धी विविध आयामों को समेटते हुए अपने शब्दों को गुंथित कर जो विचार अभिव्यक्त किये हैं उनमें से कुछ प्रभावी अधिगम के दृष्टिकोण से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।

जे डब्लू बैस्ट (J.W.Best) के अनुसार

“क्रियात्मक अनुसन्धान किसी सिद्धान्त के विकास की अपेक्षा तात्कालिक उपयोग पर केंद्रित रहता है। इसमें वर्तमान स्थानीय परिस्थितियों से सम्बन्धित वास्तविक समस्याओं पर ही बल दिया जाता है।”

“Action research is focused on the immediate application, not on the development of theory. It has placed its emphasis on a real problem- here and now in a local setting.” 1963,p.10

गुड (Good) महोदय के अनुसार

“क्रिया -अनुसन्धान शिक्षकों, निरीक्षकों और प्रशासकों द्वारा अपने निर्णयों और कार्यों की गुणात्मक उन्नति के लिए प्रयोग किये जाने वाला अनुसन्धान है।”

“Action research is research used by teachers, supervisors and administrators to improve the quality of their decisions and action.” p.464

मोले (Mouley) महोदय के अनुसार

“मौके पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान को, जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है। शिक्षा में साधारणतया क्रियात्मक अनुसन्धान के नाम से जाना जाता है। ”

“On the spot research aimed at the solution of an immediate problem is generally known in education as action research.” 1964 p.406

कोरे (Korey) महोदय के अनुसार

“शिक्षा में क्रिया अनुसन्धान, कार्य कर्त्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसन्धान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।”

“Action research in education is research undertaken by practitioners in order that they may improve their practices.” p.241

क्रियात्मक अनुसन्धान की समस्याएं / Problems of action research –

प्रशिक्षणार्थियों को यह जानना परम आवश्यक है कि क्रियात्मक अनुसन्धान हेतु विद्यालय के कौन से विषय हो सकते हैं ? उन्हें समस्या के नाम से जाना जाता है और इसकी विविध समस्याओं को क्रियात्मक अनुसन्धानका क्षेत्र भी कहा जा सकता है मोटे तौर पर कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है ये समस्याएं समय के साथ बदल जाएंगी कुछ नई भी उत्पन्न होंगी। विद्यालय परिक्षेत्र की समस्याओं को इस प्रकार कर्म दिया जा सकता है।

01 – बालमनोविज्ञान व व्यवहार सम्बन्धित समस्याएं / Child psychology and behavior related      problems

02 – शिक्षण अधिगम सम्बन्धित समस्याएं / Problems Related to Teaching Learning

03 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं से सम्बन्धित समस्याएं / Problems related to co-curricular activities 

04 – परीक्षा सम्बन्धित समस्याएं / Examination related problems

05 – अनुशासन सम्बन्धित समस्याएं / Discipline related problems

06 – विद्यालय प्रशासन सम्बन्धित समस्याएं / School administration related problems

07 – अध्यापक सम्बन्धित समस्याएं / Teacher related problems

08 – अभिभावक दखलन्दाजी सम्बन्धित समस्याएं / Problems related to parent interference

विद्यालय में क्रियात्मक अनुसन्धान का प्रयोजन / Purpose of action research in school –

क्रियात्मक अनुसन्धान का प्रयोजन अलग अलग संस्थाओं हेतु उनकी आवश्यकता के दृष्टिकोण से भिन्न हो सकता है। सामान्यतः इसका  विविध तत्सम्बन्धी क्षेत्रों में उन्नयन ही है। विविध विज्ञ जनों के विचारों के आधार पर सामान्यतः यह प्रयोजन कहे जा सकते हैं।

01 – विद्यालयी वातावरण में सिद्धान्तों का परीक्षण / Testing of theories in school environment

02 – प्रजातन्त्रात्मक मूल्यों का स्थापन / Establishment of democratic values ​​

03 – विद्यालय संगठन व व्यवस्था सुधार / Improvement of school organization and system

04 – विद्यालय के चेतना तत्वों का सामान्य उन्नयन / General upgradation of school consciousness    elements

05 – प्रधानाचार्य, प्रबन्धक, निरीक्षक, अध्यापकों व अन्य कर्मचारियों को उत्तर दायित्व के प्रति सजग करना / Making the principal, manager, inspector, teachers and other employees aware of their responsibilities  

06 – जब जागो तब सवेरा का व्यावहारिक प्रयोग। Practical use of Jab Jago Tab Savera.

07 – विद्यालय क्रियाओं में सुधार / Improvement in school activities

08 – सामूहिक कार्यों को सकारात्मक दिशा बोध / Positive direction to collective work

क्रियात्मक अनुसंधान के पद / Steps of Action Research –

क्रियात्मक अनुसन्धान से वांछित फल प्राप्त करने के लिए यह परमावश्यक है कि समस्त आवश्यक पदों पर गम्भीरता पूर्वक कार्य किया जाए। इन पदों को भली भाँति जानने जानने समझने की आवश्यकता है जिन्हे इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।

01 – समस्या को स्पष्ट रूपेण समझना / Understand the problem clearly                   

02 – कार्य प्रस्तावों पर गहन विमर्श / In-depth discussion on work proposals

03 – उद्देश्य व परिकल्पना / Purpose and Hypothesis 

04 – तथ्य संग्रहण व क्रियात्मक कार्यक्रम / Fact gathering and action plan

05 – विश्लेषण व परिणाम / Analysis and results

06 – समस्त क्रियात्मक कार्य का मूल्याङ्कन / evaluation of overall performance

07 – परिणाम का प्रचार प्रसार / Dissemination of results

क्रियात्मक अनुसंधान का महत्त्व  / Importance of Action Research –

हर समाज के अपने नियम, रीति रिवाज और मान्यताएं होती है और इस क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों पर इसका प्रभाव परिलक्षित होता है। संस्थान यान्त्रिक न होकर धरातल पर व्यावहारिक रूप से जुड़े रहें। इस हेतु क्रियात्मक अनुसन्धान और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं आइये इसके महत्त्व पर विचार निम्न बिन्दुओं के आलोक में करते हैं।

1- संस्थान में सुधार का महत्त्व पूर्ण आलम्ब / An important pillar of institutional reform

2 -जनतन्त्रात्मक मूल्य संरक्षक / Guardians of democratic values

3 – यान्त्रिक की जगह व्यावहारिक / Practical instead of mechanical

4 – दैनिक अनुभव से लाभ उठाने हेतु प्रेरक / Motivation to benefit from everyday experience

5 – विद्यालयी शिक्षा के समस्त अंगों के सकारात्मक उत्थान में सक्षम / Capable of positive upliftment of all aspects of school education

6 – विद्यालय का समाज के लघु रूप में स्थापन / Establishing school as a miniature society

7 – छात्रों का सर्वांगीण विकास / All round development of students

8 – परस्पर प्रेम, सहयोग, सद्भावना वृद्धि / Increase in mutual love, cooperation and goodwill

9 – विज्ञान सम्मत विधियों को प्रश्रय /Promotion of scientific methods       

क्रियात्मक अनुसन्धान की महत्ता सर्व विदित है इसे विविध विद्यालयों द्वारा अपनाया जाना आज की आवश्यकता है इसकी महत्ता को समझते हुए कोरे (Corey)महोदय ने उचित ही कहा है –

“हमारे विद्यालय तब तक जीवन के अनुकूल कार्य नहीं क्र सकते हैं, जब तक शिक्षक, छात्र, निरीक्षक, प्रशासक और विद्यालय संरक्षक इस बात की निरन्तर जाँच न करें कि वे क्या क्र रहे हैं। इसी प्रक्रिया को मैं क्रिया अनुसंधान कहता हूँ।”

”Our schools cannot function sustainably unless teachers, students, inspectors, administrators and school patrons constantly examine what they are doing. This process is what I call action research.”

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शिक्षा

Creativity

March 26, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सृजनात्मकता

ज्यों ही हमारी आँख एक नवजात शिशु के रूप में खुलती है हमें विलक्षण जगत के दर्शन होते हैं और बहुत सारे बन्धनों से हम बँधते जाते हैं इस अद्भुत सृष्टि का सृजन करने वाला सृष्टा हमारी ज्ञान परिधि से दूर रहता है और हम उसे ईष्ट या ईश कहते हैं और हम सब ईश अंश है वह पूर्ण है हम उसके अंश मात्र हैं सृजन की सम्पूर्ण शक्ति उस परम पिता में सन्निहित है लेकिन वह सृजन की शक्ति मानव में भी निहित है। जिसे सृजनात्मकता कहते हैं।

सृजनात्मकता  से आशय / Meaning of creativity –

दुनियाँ में विध्वंश और सृजन की शक्तियाँ विद्यमान हैं जिन व्यक्तित्वों को दीर्घ काल तक याद रखा जाता है वे सृजन की शक्ति से संपन्न होते हैं आज विद्यार्थियों को सृजनात्मकता से जोड़ने के लिए यह परमावश्यक है कि उन्हें प्रारम्भ से एक वातावरण प्रदान किया जाए जो नवनिर्माण में सहयोगी हो। सृजनात्मकता से आशय उन शक्तियों से है जो आने वाले कल के लिए नव सिद्धान्त, नव वस्तु, नवोन्मेषी नियम या उस विचार को जन्म देते हैं जो आने वाले कल की प्रगति में सहयोगी हो।ऐसी शक्ति या क्षमता सृजनात्मकता कहलाती है।

सृजनात्मकता सम्बन्धी विविध परिभाषाएं

Various definitions of creativity –

विविध विज्ञ जनों ने अपने विचार स्तर के आधार पर सृजनात्मकता को पारिभाषित करने का प्रयास किया है कुछ प्रसिद्द विचारकों की परिभाषाएं दृष्टव्य हैं।

क्रो एवम् क्रो के अनुसार

“सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।”

“Creativity is a mental process to express the original outcomes.”

ड्रेवडाहल (Drevdahal) के अनुसार –

“सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओं या विचारों का उत्पादन करता है जो अनिवार्य रूप से नए हों और जिन्हे वह व्यक्ति पहले से न जानता हो।”

“Creativity is the capacity of a person to produce composition, products or ideas which are essentially new or novel and previously unknown to the producer.”

Skinner(स्किनर) महोदय के अनुसार

“सृजनात्मक चिन्तन का अर्थ है कि व्यक्ति की भविष्यवाणियां या निष्कर्ष नवीन, मौलिक, अन्वेषणात्मक तथा असाधारण हों। सृजनात्मक चिन्तक वह है जो नए क्षेत्र की खोज करता है, नए निरीक्षण करता है, नई भविष्यवाणियां करता है और नए निष्कर्ष निकालता है।”  

“Creative thinking means that the predictions and or inferences for the individual are new, original, ingenious, unusual. The creative thinker is one who explores new areas and makes new observations, new predictions, new inferences.” 1973 p 529

स्टेन (Sten) महोदय के अनुसार

“जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो, जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी मान्य हो, वह कार्य सृजनात्मक कहलाता है।”

“When it results in a novel work that is accept as tenable or useful or satisfying by a group at some point in time.”

कॉल एवम् ब्रूस (Colle and Bruce) के अनुसार

“सृजनात्मक एक मौलिक उत्पादन के रूप में मानव मन को ग्रहण करके अभिव्यक्त करने और गुणांकन करने की योग्यता एवम् क्रिया है।”

“Creativity is an ability and activity of man’s mind to group, express and appreciate is the form of an original product.”

सृजनात्मकता के कारक / Factors of creativity –

सृजनात्मक मानव होने के लिए उसमें कुछ तत्वों का समावेशन आवश्यक है जिन्हे कुछ विद्वानों ने आवश्यक सोपानों के रूप में भी वर्णित किया है। मन (Munn)महोदय ने सृजनात्मकता के चार कारकों का वर्णन किया है जो इस प्रकार हैं।

01 – तैयारी (Preparation )

02 – इन्क्यूबेशन Incubation -(समस्या से अलगाव) 

03 – प्रेरणा व सहज बोध (Motivation & Illumination)

04 – जाँच पड़ताल व पुनरावृत्ति (Verification & Revision)

गिलफोर्ड [Guilford, J.P] के अनुसार

इन्होंने भी सृजनात्मकता हेतु चार कारकों को महत्त्वपूर्ण माना, जो इस प्रकार हैं –

01 – वर्तमान परिस्थिति से परे जाने की योग्यता (Ability to go beyond the current situation)

02 – समस्या की पुनर्व्याख्या (Re- explanation of Problem)

03 – सामन्जस्य (Adjustment)

04 – अन्यों के विचारों में परिवर्तन (Changing the thought of others)

सृजनात्मकता का पोषण / Nurturing of creativity –

सृजनात्मकता पर न तो किसी का एकाधिकार है और न यह प्रतिभा सम्पन्न लोगों की चेरी है। यह एक दिन में नहीं आती बल्कि निरन्तर चिंतन का परिणाम है। माता, पिता, अध्यापक, विद्यालय, मोटिवेशनल स्पीकर,पुस्तकें सभी इसमें अपनी भूमिका अभिनीत करते हैं। यह ईश्वर प्रदत्त व अर्जित ऐसा गन है जो स्वभाव का अंग बन जाता है और फिर उसी तरह की आदतों का निर्माण होता है। संस्थानों व अध्यापकों द्वारा निम्न बिन्दुओं के आलोक में सृजनात्मकता का पोषण किया जा सकता है।–

01 -स्वप्रेरकत्व को प्रश्रय / fostering self-motivation

02 – स्वविवेक आधारित उत्तर देने की स्वतन्त्रता / Freedom to answer based on one’s own discretion

03- स्वअभिव्यक्ति के अवसर / Opportunities for self expression

04 – मौलिकता को प्रोत्साहन / Encourage originality

05 – लचीलेपन की ग्राह्यता / Flexibility of acceptance

06 – उचित अवसरों की उपलब्धता / Availability of appropriate opportunities

07 – स्वस्थ आदतों का विकास / Development of healthy habits

08 – स्वयं के आदर्श का प्रस्तुतीकरण / Presentation of self-ideal

09 – मूल्याँकन प्रणाली में सुधार / Improvement in the evaluation system

10 – सामुदायिक सृजनात्मक प्रस्तुतियाँ / Community creative presentations

11 – सृजनात्मक चिन्तन अवरोध से बचाव / Avoiding the blockage of creative thinking

12 – झिझक दूर करना / remove hesitation

13 – उचित वातावरण प्रदान करना / provide appropriate enviro

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Uncategorized•शिक्षा

Maxims of Teaching

March 25, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षण के सूत्र

प्रशिक्षितऔर अप्रशिक्षित अध्यापक में अंतर देखने को मिलता है। शासन तन्त्र भले ही समझ न पाया हो कि प्रशिक्षित अध्यापकों के होते हुए भी शिक्षा मित्र को खपाने का प्रयास किया गया और उनके किसी प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं की गयी। शिक्षा स्तर को बनाए रखने हेतु शिक्षण के साथ प्रशिक्षण की व्यवस्था परमावश्यक है। इसमें शिक्षा की तकनीकी, विविध तत्सम्बन्धी साधन शिक्षण व्यवहार, शिक्षण सूत्र आदि सभी आवश्यक हैं।

शिक्षण सूत्रों के माध्यम से अधिगम स्तर को प्रभावी बनाया जा सकता है यह शिक्षण सूत्र क्या होते हैं ?  विविध शिक्षा शास्त्रियों ने इस सम्बन्ध  में क्या कहा और ये कौन कौन से होते हैं आइए इस पर विचार करते हैं। शिक्षण प्रक्रिया को सरल सुबोध सुरुचि पूर्ण और प्रभावशाली बनाने हेतु कुछ नियम व सिद्धान्त जो मनोवैज्ञानिकों व शिक्षा शास्त्रियों द्वारा अनुभव के आधार पर गढ़े जाते हैं शिक्षण सूत्र कहलाते हैं।

शिक्षण प्रक्रिया को व्यवस्थित व सुगम बनाने हेतु प्राप्त मार्गदर्शन जो शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के प्रभावी अधिगम में मदद करते हैं शिक्षण सूत्र कहलाते हैं।

शिक्षण सूत्र की परिभाषाएं / Definitions of teaching maxims –

शिक्षण सूत्र की परिभाषा बहुत सी पुस्तकों को तलाश करने पर भी प्राप्त नहीं हुई फिर अपनी बहुत पुरानी नोटबुक से परिभाषा मिली।

डॉ ० डी ० पी ० गर्ग ने बताया –

“शिक्षण सूत्र वे साधन हैं जो शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाकर अधिगम को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग करते हैं।”

“Teaching maxims are those means which help in making learning successful by making the teaching process effective.”

बिना किसी नाम के एक सार्थक परिभाषा गूगल से प्राप्त हुई –

 “शिक्षण सूत्र, शिक्षण प्रक्रिया को सरल, प्रभावी और वैज्ञानिक बनाने के लिए मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाशास्त्रियों द्वारा विकसित किए गए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं, जो शिक्षण और अधिगम को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।”

“Teaching principles are guiding principles developed by psychologists and educationists to make the teaching process simple, effective and scientific, which helps in improving teaching and learning.”.

एक अन्य विचारक के अनुसार –

“शिक्षण सूत्र सरल दिशा निर्देश या सिद्धान्त के अतिरिक्त और कुछ नहीं है जो शिक्षकों को निर्णय लेने और शिक्षण प्रक्रिया के अनुसार कार्य करने में मदद करते हैं।”

“Teaching formulas are nothing but simple guidelines or principles that help teachers to take decisions and act accordingly in the teaching process.”

शिक्षण के प्रमुख सूत्र / Main maxims of teaching –

 शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया एक अध्यापक को उसका मंतव्य दिला सकती है यदि उसके द्वारा उपयुक्त समय पर उपयुक्त शिक्षण सूत्र प्रयोग किया जाए। यहां प्रमुख सूत्रों के माध्यम से शिक्षण सूत्र को प्रस्तुत करने का प्रयास है।

01 – ज्ञात से अज्ञात की ओर / From Known to the unknown

02 – सरल से कठिन की ओर / From Simple to complex

03 – निश्चित से अनिश्चित की ओर / From Definite to indefinite

04 – विशेष से सामान्य की ओर / From Specific to general

05 – मूर्त से अमूर्त की ओर/ प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर/ From Concrete to abstract

06 – पूर्ण से अंश की ओर / From Whole to the part

07 – आगमन से निगमन की ओर /From induction to deduction

08 – विशेष से सामान्य की ओर / From the particular to the general

09 – विश्लेषण से संश्लेषण की ओर /From analysis to synthesis

10 – मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर / From psychological to logical

11 – ठोस अनुभव से युक्तियुक्त की ओर / From concrete experience to rational

12 – प्रकृति का अनुसरण / Following nature

01 – ज्ञात से अज्ञात की ओर / From Known to the unknown

यह मानवीय स्वभाव है कि जो बाते या तथ्य हमें ज्ञात हैं उनकी ओर हमारा सहज आकर्षण होता है और उस वाद विवाद में हमारी सक्रिय  सहभागिता होती है और यदि उससे जोड़कर हमें कुछ नया सिखा दिया  जाता है तो अधिगम तीव्र व प्रभावी होता है। उदाहर स्वरुप एक नए व्यक्ति से हमें मित्रता करने में समय लग सकता है और यदि कोइ पुराना मित्र हमारा परिचय करा दे तो क्रिया सहज व तीव्र हो जाती है।

02 – सरल से कठिन की ओर / FromSimple to complex

जो तथ्य हमें पूर्व विदित होते हैं वे हमारे लिए सरल होते हैं इसीलिये पूर्व ज्ञान से नए ज्ञान को सम्बद्ध करना आवश्यक व समय की मांग होता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में हम इसी व्यवस्था का अनुकरण कर विद्यार्थी को नवीनतम ज्ञान से जोड़ते हैं। इससे अधिगम को एक व्यवस्था मिलती है और नया अपेक्षाकृत कठिन ज्ञान सहजता से सम्प्रेषित हो पता है और शिक्षार्थियों को पुनर्बलन भी मिलता है इससे प्राप्त अभिप्रेरणा नए अधिगम का आधार बनती है ।

03 – निश्चित से अनिश्चित की ओर / From Definite to indefinite

जिन तथ्यों, विचारों, सिद्धान्तों से हम पूर्व परिचित होते हैं उनपर हमारा सहज विश्वास होता है और उनका सहारा लेकर या आधार लेकर हम अनिश्चित पर भी गंभीरता पूर्वक विचार करने लगते हैं। इसी आधार पर इस शिक्षण सूत्र का जन्म हुआ है। निश्चित से अनिश्चित की और बढ़ने पर अधिगम सहज हो जाता है।

04 – विशेष से सामान्य की ओर / From Specific to general

किसी भी पाठ के स्थाई व व्यवस्थि अधिगम हेतु हमें पहले तत्सम्बन्धी विशेष उदहारण, सिद्धान्त अथवा तथ्य को बताना चाहिए और फिर उसका सामान्यीकरण करना चाहिए। इससे अधिगम सहज व प्रभावी व सहज होगा।

05 – मूर्त से अमूर्त की ओर/ प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर/From Concrete to abstract

स्थूल तथा मूर्त सहजता से अधिगमित होता है और इसका आधार बनाकर कठिन व अमूर्त को समझाया जा सकता है इसी लिए साकार ब्रह्म से निराकार ब्रह्म का विश्लेषण सरल व बोधगम्य हो जाता है। इसलिए किसी नवीन सूक्ष्म ज्ञान से जोड़ने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में स्थूल उदहारण प्रयुक्त करते हैं।

06 – पूर्ण से अंश की ओर /From Whole to the part

पूर्ण निश्चित रूप से अंश से बड़ा होता है इसलिए पूर्ण दिखते ही अपने आप में सम्पूर्ण सामान्य ज्ञान का रेखा चित्र जेहन में समां जाता है इसलिए पहले फूल दिखाकर कर उसके विविध अंगों को समझाना सरल होता है। हाथी दिखाकर बाद में उसके विविध अंगों का विश्लेषण सरल बोधगम्य होगा।

07 – आगमन से निगमन की ओर /From induction to deduction

आगमन विधि एक पूर्व सिद्ध तथ्य नियम, सिद्धान्त के आधार पर अन्य स्थिति में भी उसकी सत्यता प्रमाणित की जाती है इसमें हम अपने उदाहरण, प्रमाण व अनुभव का आधार लेकर समझाते हैं। निगमन में पहले सामान्यीकृत सिद्धांत, तथ्य, नियम को विद्यार्थी के सामने रखते हैं और उदाहरण बाद में बताया जाता है और अधिगम स्थायित्व प्राप्त करता है। इसीलिए शिक्षण सूत्र के रूप में आगमन से निगमन की ओर रखा गया है।

08 – विशेष से सामान्य की ओर / From the particular to the general

एक अच्छे गुरु को अधिगम प्रभावी बनाने हेतु अपने शिक्षण का प्रारम्भ विशेष उदाहरणों, तथ्यों या प्रयोग के माध्यम से करना उत्तम माना जाता है यह आधार अपनी विशिष्ट प्रेरक शक्ति के कारण नियम सम्प्रत्यय का अधिगम सरल हो जाता है।

09 – विश्लेषण से संश्लेषण की ओर /From analysis to synthesis

किसी बात का पता लगाने हेतु , खोज करने के लिए, विशिष्ट अनुसंधान के लिए विश्लेषण एक स्वाभाविक, सहज व व्यवस्थित क्रमबद्ध विधि है इसके आधार पर अधिगम कार्य प्रारम्भ करके अन्ततः हम संश्लेषण की और बढ़ जाते हैं और विश्लेषण के आधार पर संश्लेषण प्रस्तुत कर परिणाम का विवेचन पूर्ण होने पर इसे अनुसन्धानपरक  दृष्टिकोण के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसीलिये प्रभावी अध्यापक अपना शिक्षण हमेशा विश्लेषण से संश्लेषण की और ले जाकर प्रभावी बनाते हैं।

10 – मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर / From psychological to logical

बाल मनोविज्ञान, शिक्षा मनोविज्ञान हमें बच्चे की आवश्यकताओं, रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं, दृष्टिकोण आदि के अध्ययन के प्रति सचेत करते हैं मनोवैज्ञानिकता को आधार बनाकर जब अधिगम सुनिश्चित किया जाता है तो मनोवैज्ञानिकता से तर्क पूर्णता की और बढ़ना पड़ता है इससे व्यूह रचना पाठ्यक्रम सम्प्रेषण, मूल्यांकन, व पृष्ठ पोषण सभी में गुणवत्ता परक प्रगति दृष्टिगत होती है यह अध्यापक व विद्यार्थी दोनों के हिसाब से महत्त्वपूर्ण सूत्र है।

11 – ठोस अनुभव से युक्तियुक्त की ओर / From concrete experience to rational

हर समाज समय के साथ बहुत कुछ अनुभव करता है और समाज की इकाई व्यक्ति भी निरन्तर अनुभवों से सीख लेता रहता है इन अनुभवों के आधार पर उसमें एक विशिष्ट सूझ, दृष्टिकोण, नीर-क्षीर विवेक व तर्क संगत सोच का प्रादुर्भाव होता है अर्थात ठोस अनुभव नीव की ईंट का कार्य करते हैं इसके धरातल पर ही युक्तियुक्त की और बढ़ा जाता है इसी कारण यह शिक्षण सूत्र अधिगम हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है।

12 – प्रकृति का अनुसरण / Following nature –

प्रकृति हमारी प्रथम शिक्षक है और इसकी अधिगम में भूमिका असंदिग्ध है हम प्रकृति का अनुसरण कर अधिगम को  कालिक व स्थाई बना सकते हैं। प्रकृति का अनुसरण ऐसा नैसर्गिक शिक्षण सूत्र है जो निर्विवाद रूप से अत्याधिक महत्त्वपूर्ण है।

             उक्त सम्पूर्ण विवेचन  से यह पूर्णतः स्पष्ट है कि अधिगम प्रक्रिया किसी भी स्तर की हो लेकिन शिक्षण सूत्र का ज्ञान निः सन्देह महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करता है। अध्यापक के व्यक्तित्व में निखार आता है। बिना इसके अध्यापक एक अकुशल श्रमिक की तरह ही है।

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शिक्षा

Kurt-Lewin’s Field theory of Learning

March 23, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कर्ट लेविन का अधिगम सम्बन्धी क्षेत्र सिद्धान्त

कर्ट लेविन महोदय मूलतः एक जर्मन मनोवैज्ञानिक थे  इनका 1890 में हुआ और ये बाद में अमेरिका जाकर बस गए अपने शोध के आधार पर इन्होने 1917 में मनोविज्ञान के क्षेत्र सिद्धान्त पर महत्त्व पूर्ण कार्य किया। अमेरिका के स्टेन फोर्ड(Stanford) और आईऔवा (Iowa) विश्वविद्यालय में इन्होने प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया।

कर्ट लेविन महोदय ने अपने क्षेत्र सिद्धान्त सम्बन्धी विचारों को अभिव्यक्त करते हुए कहा

“मानव व्यवहार व्यक्ति और वातावरण दोनों का प्रतिफल है। जिसे सांकेतिक रूप में B = f (P.E) द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। “

“Human behaviour is the function of both the person and the environment expressed is symbolic term B = f (P.E).”

यहाँ

 B = Behaviour (व्यवहार)

 P = Person (व्यक्ति )

 f  = Field (क्षेत्र )

 E = Environment (वातावरण)

लेविन द्वारा जो उक्त शब्द प्रयोग में लाये गए इन सबके साथ व्यवहार में मनोवैज्ञानिक शब्द भी शामिल है जैसे व्यवहार से आशय मनोवैज्ञानिक व्यवहार से है इनकी फील्ड साइकोलॉजी(Field Psychology) को टोपोलॉजिकल साइकोलॉजी (Topological Psychology) व वेक्टर साइकोलॉजी (Vector Psychology) नाम से भी जानते हैं।

लेविन के क्षेत्र सिद्धान्त में शामिल है जीवन परिक्षेत्र, वेक्टर्स व कर्षण तथा तलरूप (Topology)

जीवन परिक्षेत्र –

[वेक्टर (प्रेरक शक्ति)→ मनोवैज्ञानिक व्यक्ति ( P ) ⇶बाधाएं ⇶ मनोवैज्ञानिक वातावरण + बाधाएं ⇉⇉⇉→ लक्ष्य]                                                                                        जीवन क्षेत्र के बाहर का घेरा                      

वेक्टर्स व कर्षण – 

लेविन ने अपने क्षेत्र सिद्धान्त को समझाने में  जो वेक्टर्स और कर्षण का प्रयोग किया है उसका आशय यह है कि मानव के जीवन परिक्षेत्र में दो तरह की शक्तियां कार्य करती हैं जिनको हम सकारात्मक कर्षण शक्ति व  नकारात्मक कर्षण शक्ति कह सकते हैं जीवन दायरे में लक्ष्य की और ले जाने वाली शक्ति सकारात्मक कर्षण शक्ति कहलाती है और लक्ष्य से दूर ले जाने वाली नकारात्मक कर्षण शक्ति कहलाती है।

इन विशिष्ट कर्षण शक्तियों की वजह से व्यक्ति लक्ष्य की ओर या लक्ष्य से दूर भागता है। इनके प्रभाव से ही लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में बढ़ने हेतु पर्याप्त प्रोत्साहन, प्रेरणा या विपरीत दिशा हतोत्साह का अनुभव करता है।

तल रूप (TPOPLOGY) –

यह अवधारण लेविन महोदय को गणित के परिक्षेत्र से प्राप्त हुई गणित में तलरूप प्रदर्शन ज्यामितीय आकृतियों का प्रयोग होता है इसी अभिव्यक्ति को भीतरी (Inside) और बाहरी (Outside)  तथा सीमा रेखा (Boundary) द्वारा होती है। कौन किसके बाहर , कौन किसके भीतर, कौन किसके पीछे है। इसी कारण टोपोलॉजी की भाषा में अण्डाकार आकृति, गोल आकृति, अनियमित बहुभुज में इनकी रचना और आकृतियों में इतनी विविधता होने के बाद भी कोई अन्तर नहीं माना जाता। लेविन ने टोपोलॉजी की अवधारणा का मानव के जीवन परिक्षेत्र में प्रत्यक्षीकरण और अन्तःक्रियाओं के परिणामस्वरूप विविध बदलावों को दिखाने के लिए बहुत अच्छा उपयोग किया।

Learning and outcomes : Lewin’s Field Theory –

अधिगम का सम्बन्ध मानव के व्यवहार में आने वाले परिवर्तन से है व्यक्ति के व्यवहार में होने वाला यह परिवर्तन क्षेत्र सिद्धांत के आधार पर इस प्रकार समझाया जा सकता है।

लेविन यह मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का एक जीवन दायरा होता है और उसी के मनोवैज्ञानिक दायरे में वह विचरण कर रहा होता है अपने जीवन दायरे के बारे में उसका खुद का प्रत्यक्षीकरण होता है अपनी इसी संज्ञानात्मक संरचना के आधार पर उसे तत्कालीन परिस्थिति और उसमें लक्ष्य प्राप्ति हेतु की जाने वाली क्रियाओं का बोध होता है इस लक्ष्य प्राप्ति हेतु उसे मनोवैज्ञानिक तनाव होता है जो दो तरह से दूर हो सकता है एक तो यह कि उसे लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए या फिर दूसरे इस तरह कि वह अपने जीवन दायरे का पुनः व्यवस्थापन करे। उदाहरण स्वरुप IAS का सपना लेकर चलने वाला असफल होने पर पुनः नए ढंग से तैयारी करे या किसी और पद से जुड़ने के प्रयास में परिवर्तन करे।

अधिगम की यह मनोदशा लेविन के अनुसार यह सिद्ध करती है कि लक्ष्य प्राप्ति हेतु परिस्थिति व समय विशेष पर व्यक्ति अपने जीवन दायरे में परिवर्तन करता है और इसके तीन आधार होते हैं –

01 — भेदी करण [Differentiation]

02 — सामान्यीकरण [Generalization]

03 — पुनः संरचना [Re- structuring]

लेविन की इस अधिगम प्रक्रियाओं या व्यवहार परिवर्तन को बोध गम्य बनाने हेतु भारतीय विद्वान एस ० के ० मंगल महोदय ने निम्न तथ्यों या बिन्दुओं को समाहित किया गया जिससे इसकी व्यवहारिकता दृष्टिगत होती है।

01 — अभिप्रेरणा और अधिगम [Motivation and learning]

02 — समस्या समाधान योहयता का विकास [Development of problem solving ability]

03 — आदतों का निर्माण [Habit Formation]

04 — अधिगम व बौद्धिकता पूर्ण व्यवहार [Learning and intelligent behaviour]

EDUCATIONAL IMPLICATIONS OF FIELD THEORY

क्षेत्र सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता –

01 — अध्यापक द्वारा व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर पृथक निर्देश/Separate instruction by the teacher based on individual differences

02 — उद्देश्य व लक्ष्य स्पष्टीकरण से उसकी प्राप्ति / Achievement of objectives and goals through clarification

03 — सूझबूझ व अन्तःदृष्टि का विकास / Development of understanding and insight

04 — अधिगम क्षेत्र का उचित नियोजन, संगठन व व्यवस्थीकरण / Proper planning, organization and systematization of the learning area

05 — विभेदीकरण, सामान्यीकरण व संरचनाकरण का उपयुक्त प्रशिक्षण / Appropriate training of differentiation, generalization and structuring

06 — अधिगम का उचित नियोजन व्यवस्था तथा प्रबन्धीकरण / Proper planning and management of learning

07 — ‘जीवन दायरे के बाहर का प्रभाव नहीं’ विचार का अधिगम में प्रयोग / Use of the idea of ​​’no influence from outside the sphere of life’ in learning   

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शोध

SUNITA WILLIAM

March 18, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुनीता विलयम्स

19 सितम्बर1965 को अमेरिका के ओहियो राज्य के यूक्लिड नगर स्थित क्लीव लैण्ड में एक बालिका का जन्म हुआ जिसे सुनीता लिन पांड्या विलियम्स के नाम से आज जाना जाता है। इन्होने हाई स्कूल मेसाचुसेट्स से किया और 1987 में  संयुक्त राष्ट्र की नौसैनिक अकादमी से फिजीकल साइंस में बीएस (स्नातक स्तर ) की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से एम एस (इन्जीनियरिंग मेनेजमेन्ट में) की उपाधि प्राप्त की।

ख्याति प्राप्त डॉ० दीपक पण्ड्या जो तन्त्रिका विज्ञानी (एम डी) हैं और भारत के गुजराज प्रान्त से हैं सुनीता की माँ बॉनी जालोकर पाण्ड्या स्लोवेनिया की हैं इनका एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहिन भी हैं जब सुनीता एक वर्ष की भी नहीं हुयी थीं इनके पिता अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन में आकर बसे।

व्यावसायिक जीवन वृत्त –

अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेन्सी NASA में इनका चयन 1998 में हुआ एवम् प्रशिक्षण कार्य प्रारम्भ हुआ। अमेरिका के अन्तरिक्ष मिशन पर  वाली यह दूसरी भारतीय मूल की महिला हैं। प्रथम महिला भारतीय मूल की महिला कल्पना चावला थीं। सुनीता विलियम्स का भारत दौरा सन 2007 के सितम्बर – अक्टूबर माह में हुआ। इन्होने 30 अलग अलग अन्तरिक्ष यानों द्वारा 2770 उड़ानें भरी हैं। सुनीता विलयम्स अमेरिकन हैलीकॉप्टर एसोसिएशन, सोसाइटी ऑफ़ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पाइलेट्स, सोसाइटी ऑफ़ फ्लाइट टेस्ट इन्जीनियर्स  आदि संस्थाओं से भी सम्बद्ध हैं।

व्यक्तिगत जीवन परिदृश्य –

कुशल तैराक व पशु प्रेमी सुनीता की अभी अपनी कोई संतान नहीं है ये धर्मार्थ धन संग्रह में योगदान देती हैं। इन्होने गोताखोरी और मैराथन धाविका के रूप में भी पहचान बनाई है। व्यावहारिक क्षेत्र में नौ सेना पोत चालक, हैलीकॉप्टर पाइलट, परीक्षण पाइलट, पेशेवर नौसैनिक व अब अन्तरिक्ष यात्री के रूप में विश्व पटल पर असाधारण कीर्तिमान बनाने वाली विशिष्ट महिला हैं लगन और आत्म विश्वास से भरपूर यह व्यक्तित्व दिशाबोध व जिन्दादिली की अद्भुत मिसाल है। इन्होने अपने सहपाठी माइकल जे विलियम्स से विवाह किया।

 सम्मान –

भारत सरकार ने सन 2008 में इन्हें विज्ञान एवम् अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त इन्हे नेवी कमेंडेशन मैडल, नेवी एण्ड मैरीन कॉर्प अचीवमेण्ट मैडल तथा ह्यूमेटेरियन सर्विस मैडल आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है।

तत्सम्बन्धी वर्तमान परिदृश्य –

साहस की विशेष प्रतिमान बनीं सुनीता विलयम्स नौ माह से अन्तरिक्ष में फँसी है बहुत से महत्त्वपूर्ण कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने वाली यह विशिष्ट दिव्यात्मा व साथी वुच विल्मोर सचमुच अभिनन्दनीय हैं। स्पेस एक्स का क्रू – 10 मिशन , रविवार (1 6 /03 /2025) को सफलता पूर्वक अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुँच गया। टेक्सास से शुक्रवार को, ड्रेगन केप्सूल  लांच किया गया। दैनिक जागरण ने बताया कि इस उड़ान में नासा के एनी मैकक्लेन, निकोल एयर्स जापान के जेएक्सए से ताकुआ ओनिशी और रूस के किरिल पेस्कोव शामिल थे नासा के अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स, बुच विल्मोर और रूसी अन्तरिक्ष यात्री अलेक्सांद्र गोर्बुनोव स्पेस एक्स के ड्रेगन अन्तरिक्ष  पृथ्वी पर लौटने वाले हैं। लौटने के बाद भी लंबा समय यहां के वातावरण से अनुकूलन में लगता है, क्रू के सदस्यों से मिलन की खुशी की हम केवल कल्पना कर सकते हैं इसकी असली खुशी तो सुनीता ने जो महसूस की उसकी अभिव्यक्ति दुष्कर है।

आज 18 /03 /2025 के दैनिक जागरण से ज्ञात हुआ कि आज  मंगलवार की शाम को सुनीता विलयम्स व बुच विल्मोर की नौ माह बाद वापसी होगी। नासा क्रू -9 मिशन के अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन से पृथ्वी पर लौटने का लाइव कवरेज प्रदान करेगा। मिशन प्रबन्धक 18 मार्च की शाम हेतु अनुकूल परिस्थतियों के आधार पर नज़र बनाये हैं। यद्यपि ड्रेगो केप्सूल की अनडाकिंग ढेर सारे कारकों पर निर्भर करती है और आने के बाद भी बहुत सी समस्याओं से जूझना होता है जैसे दृष्टि पर कुप्रभाव, चलने में मुश्किल, चक्कर आना, बेबी फीट यानी तलवे का बच्चे जैसा मुलायम हो जानाआदि आदि।

लेकिन क्रू मेम्बर्स के साथ गले मिलना, गर्मजोशी से स्वागत करना, डान्स करना, साथ साथ फोटो खिंचवाना खुश दिखना सभी उनकी जिंदादिली की जीवंत मिसाल हैं ऐसे अद्भुत व्यक्तित्वों पर पृथ्वीवासियों को नाज है।                    

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शिक्षा

LEARNING/सीखना

March 3, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

LEARNING : CONCEPT, FACTOR INFLUENSING LEARNING

सीखना: अवधारणा, सीखने को प्रभावित करने वाले कारक

अधिगम या सीखना ही वह जादुई शब्द है जो हमें मानवों की पंक्ति में खड़ा करता है सभी मानव जीवन में नित्य नये अनुभवों को अधिगमित कर व्यवहार में लाते  हैं अनुभव, शब्दावली, व्यवहार सभी में नित्य संशोधन और प्रगति की यह यात्रा ही अधिगम है यह केवल पुस्तकें एक निर्धारित समयावधि में हमें नहीं सिखातीं बल्कि हम जीवन पर्यन्त इस मानसिक प्रक्रिया का आनन्द उठाते हैं।

अधिगम या सीखना एक जन्मजात प्रक्रिया है सीखना अनुभवजन्य है विविध विचारकों ने अधिगम या सीखने को इस प्रकार पारिभाषित किया गया है कुछ परिभाषाएं इस प्रकार हैं –

गेट्स व अन्य  

“अनुभव के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को सीखना या अधिगम कहते हैं।” –

“Learning is the modification of behaviour through experiences,” 1946,p 318

किंग्सले एवं गैरी

“अभ्यास अथवा प्रशिक्षण के फलस्वरूप नवीन तरीके से व्यवहार करने अथवा व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं । “

 “Learning is the process by which behaviour is originated or changed through practice and training.” 1957, p.12

मॉर्गन व गिल्लीलैंड के अनुसार –

“Learning is some modification in the behaviour of the organism as a result of experience which is retained for at least a certain period of time.”

“सीखना अनुभव के परिणामस्वरूप जीव के व्यवहार में कुछ संशोधन है जो कम से कम एक निश्चित अवधि तक बरकरार रहता है।”

क्रो व क्रो के अनुसार –

“सीखना आदतों,ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है। इसमें कार्यों को करने के नवीन तरीके सम्मिलित हैं और इसकी शुरुवात व्यक्ति द्वारा किसी भी बाधा को दूर करने अथवा नवीन परिस्थितियों में अपने समायोजन को लेकर होती है। इसके माध्यम से व्यवहार में उत्तरोत्तर परिवर्त्तन होता रहता है यह व्यक्ति को अपने अभिप्राय अथवा लक्ष्य को पाने में समर्थ बनाती है। “

“Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitudes, it involves new ways of doing things, and it operates in an individual’s attempts to overcome obstacles or to adjust to new situations. It represents progressive change in behaviour…… It enables him to satisfy interests or to attain goals.” 1973. p.225

FACTOR INFLUENSING LEARNING / सीखने को प्रभावित करने वाले कारक –

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों पर यदि यथार्थ चिन्तन, मन्थन किया जाए तो अत्याधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता महसूस होगी। हम यहाँ स्नातक व स्नातकोत्तर के दृष्टिकोण से व भारतीय परिवेश के उच्च शिक्षा स्तर के अधिगम प्रभावी कारकों का अध्ययन करेंगे। उच्च शिक्षा की संस्थाएं जो अस्तित्व में हैं उनमें लगभग 80 %  स्ववित्त पोषित संस्थान हैं और 20 % सरकारी। इन्हें सरकारी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ व्यक्तिगत प्रबन्धन के द्वारा चलाया जाता है। ऐसी स्थिति में निम्न पाँच महत्त्वपूर्ण कारक अधिगम को प्रभावित करने वाले नज़र आते हैं साथ ही अन्य विविध तत्वों पर भी विचार करना होगा –

01 – प्रबन्धन व विश्वविद्यालय से सम्बन्धित कारक / Factors related to management and university 

02 – अधिगमार्थी सम्बन्धित कारक / Learner related factors

03 – शिक्षक सम्बन्धी कारक / Teacher related factors

04 – पाठ्यक्रम सम्बन्धी कारक / Curriculam related factors

05 – प्रक्रिया से सम्बन्धित कारक / Process related factors

01 – प्रबन्धन व विश्वविद्यालय से सम्बन्धित कारक / Factors related to management and university 

        (A) – महाविद्यालय प्रबन्धन का अधिगम पर प्रभाव

        (B) – विश्वविद्यालय का अधिगम पर प्रभाव

02 – अधिगमार्थी सम्बन्धित कारक / Learner related factors –

यहाँ दृष्टिकोण व विद्यार्थी की विविध क्षमताएं सीधे सीधे अधिगम पर प्रभाव डालते हैं   

       (A) – मानसिक स्वास्थय / Mental health

       (B) – शारीरिक स्वास्थय / Physical health

       (C) – मूलभूत क्षमता / Basic capability

       (D) – अभिप्रेरणा स्तर / Motivation level

       (E) – सकारात्मक दृष्टिकोण / Positive attitude

       (F) – दृढ़ इच्छा शक्ति / Strong will power

       (G) – महत्वाकांक्षा / Ambition

03 – शिक्षक सम्बन्धी कारक / Teacher related factors

       (A) – व्यक्तित्व / Personality 

       (B) – शिक्षण कला / Pedagogy 

       (C) – शिक्षण कौशल / Teaching skills

       (D) – शिक्षण सूत्र / Teaching formula

       (E) – मानसिक स्वास्थय / Mental health

       (F) – समायोजन स्तर / Adjustment level

04 – पाठ्यक्रम सम्बन्धी कारक / Curriculam related factors –

       (A) – यथार्थ धरातल आधारित पाठ्यक्रम / real ground based curriculum

       (B) – व्यावहारिक प्रस्तुति योग्यता / Practical presentation ability

       (C) – प्रभावपूर्ण पाठ्यवस्तु आयोजन / Effective curriculum planning

05 – प्रक्रिया से सम्बन्धित कारक / Process related factors

        (A)  – परिस्थिति / Situation.

        (B) – वातावरण / Environment

        (C) – संसाधन / Resources

अन्य विविध कारक / Other miscellaneous factors –

(A) – स्मरण / Remembrance

(B) – विस्मरण /  Oblivion / Forgetting

(C) – थकान / Fatigue

(D) – ध्यान केन्द्रीयकरण / Concentration of attention

(E) – अभिप्रेरणा नियोजन /motivation planning

कैली महोदय के अनुसार –

 “अभिप्रेरणा, अधिगम प्रक्रिया के उचित व्यवस्थापन में केन्द्रीय कारक होता है। किसी प्रकार की भी अभिप्रेरणा सभी प्रकार के अधिगम में अवश्य उपस्थित रहनी चाहिए।”

आंग्ल अनुवाद –

“Motivation is a central factor in the proper organization of the learning process. Motivation of any kind must be present in all types of learning.”

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