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वाह जिन्दगी !

उठ जाग मुसाफिर भोर भई ………

September 2, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रातः काल उठने से प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य के दर्शन होते हैं जो लोग प्रकृति की गोद में निवास कर रहे हैं वे प्रकृति की प्रातः कालीन सुषमा की जादुई शक्ति को भलीभाँति अनुभव कर चुके हैं। प्रातः काल में पक्षी कलरव, पुष्प,कली, मञ्जरियाँ, हरीतिमा, प्राची दिशा से मार्तण्ड भगवन का उद्भव,उनकी सुखद रश्मियाँ हमारे शरीर के रोम को पुलकित कर देती हैं। प्रातः कालीन मन्द बयार जीवन का सुखद आधार है। सचमुच प्रातःकालीन प्रदत्त शक्तियों को पैसे द्वारा नहीं खरीदा जा सकता। भोर के अनुपम सौन्दर्य के साथ प्राणवायु की गुणवत्ता का स्तर भी इस समय सर्व श्रेष्ठ होता है। सभी इन लाभों को अर्जित करना भी चाहते हैं लेकिन विविध कारक इसमें बाधा (Barrier) का कार्य करते हैं।

प्रातः कालीन जागरण के समक्ष समस्याएं (Problems facing morning awakening) –

सुबह उठने में बहुत से लोग दिक्कत का अनुभव करते हैं और इन कारणों को अव्यावहारिक नहीं कहा जा सकता। आइये इन पर क्रमशः विचार करते हैं –

01 – देर रात्रि तक जागरण / Staying awake till late night

02 – रात्रि कालीन सेवाएं / Night Services

03 – घर से कार्य / Work from home

04 – रात्रि जागरण आदत / Night waking habit

05 – घरेलू वातावरण / home environment

06 – आलस्य / Laziness                                                                    

07 – तथाकथित आधुनिकता / So-called modernity

08 – अनुपयुक्त गरिष्ठ भोजन व पेय / Inappropriate heavy food and drink

09 – स्वास्थय सम्बन्धी परेशानी / Health problems

10 – शिक्षण संस्थानों की संस्कृति पोषण से विरक्ति /

       Disinterest in nurturing the culture of educational institutions.

प्रातः जागरण समस्या समाधान –

किसी विद्वतजन ने कितना सुन्दर कहा है – ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’। यदि हम अपने मानस को तैयार करें तो अपने शरीर का रिमोट अपने हाथ में आ जाएगा जिसे हम आवश्यकतानुसार निर्देशित कर सकेंगे।स्वामी अमर नाथ जी ने अपने प्रवचन में स्पष्ट रूप से कहा –

कोई मुश्किल नहीं ऐसी है जो आसान न हो।

आदमी वह है जो मुसीबत में परेशान न हो।।

मानस को साध इन व्यवस्थाओं को करने से इस समस्या का भी समाधान सम्भव हो सकेगा।

01 – समय व्यवस्थापन / time management

02 – जल्दी सोयें जल्दी जागें  / Early to bed early to rise

03 – अवकाश सदुपयोग / Utilization of leisure time

04 – आलस्य त्याग / Give up laziness

05 – शारीरिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान / Special attention to physical health

06 – रात्रि कालीन सेवा समायोजन / Night service adjustment

07 – जहाँ चाह वहाँ राह / where there is a will there is a way

08 – शिक्षण संस्थानों की जागरूकता / Awareness of educational institutions

09 – माता, पिता, अध्यापकों का सम्यक आदर्श / Proper role model of mother, father, teachers

10 – स्वस्थ आदत निर्माण / Healthy habit formation

प्रातः जागरण के लाभ /

Benefits of waking up in the morning –

कुछ तथ्य निर्विवाद सत्य है और प्रातः जागरण के लाभों से इन्कार नहीं किया जा सकता। केवल अपने देश में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में प्रातः भ्रमण, प्रातः प्राणायाम, व्यायाम आदि को स्वास्थय हित में स्वीकार किया गया और इस लिए भोर में जागरण परमावश्यक है। इसके लाभों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।    

01 – समय नियोजन में सरलता / Ease of time planning

02 – पूर्ण नींद की उचित व्यवस्था / Proper sleep arrangement

03 – व्यायाम, प्राणायाम, भ्रमण की सम्यक व्यवस्था /

       Proper arrangements for Exercise, Pranayama, Travel

04 – आँखों की सम्यक देखभाल / Proper eye care

05 – जीवन की औसत आयु में वृद्धि / Increase in average age of life

06 – सम्पूर्ण स्वस्थ जीवन हेतु आवश्यक / Necessary for a completely healthy life

07 – आध्यात्मिक उच्चता सम्भव / Spiritual heights possible

08 – सांस्कृतिक विरासत संरक्षण / Cultural heritage protection

उक्त सम्पूर्ण चिन्तन मन्थन हमें गम्भीरता से सचेत करता है विकल्पों में निर्विकल्प होकर हमें प्रातः उठकर उन्नति की नई पट कथा लिखनी होगी। यह प्रातः जागरण, जीवन जागरण का आधार बन सकेगा। भारतीय चिन्तन, मंथन, विश्लेषण, बलिष्ठ होकर विश्व को सम्यक दिशा दे सकेगा। अवधी भाषा में श्रद्धेय वंशीधर शुक्ल ने बहुत सुन्दर लिखा है –

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,

अब रैन कहाँ जो सोवत है।

जो सोवत है, सो खोवत है,

जो जागत है सोई पावत है।।

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वाह जिन्दगी !

EYES/आँखे

July 5, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आँखें शरीर की वह खिड़की हैं जिससे बाहरी परिदृश्य का अवलोकन किया जाता है। मन की आँखों की विविध क्रियाओं का आधार भी यह तन की आँखे ही बनती हैं। तन की इन आँखों पर कवि, लेखक, ग़जलकार, प्रेमियों, ऋषियों, विद्यार्थियों, सभी ने विविध दृष्टिकोण रखे हैं। नयनों के कारण बहुत कुछ नयनाभिराम लगता है। नैसर्गिक सौंदर्य हो या कृत्रिम, देखने का आधार तो ये नेत्र ही हैं। शर्म से झुकी आँखें, क्रोध में घूरती आँखे, सरल स्नेही आँखें, धूर्त आँखें आदि विविध रूप नयनों के ही हैं। नयन कजरारे हों या नीले, भूरे हों या कञ्जे देखभाल तो सभी की परम आवश्यक है और नेत्रों के बारे में जितना जाना जाए उतना कम ही है।

आँखों पर अवलम्बित गीत –

इन गीतों की एक बहुत लम्बी श्रृंखला है। यदि सारे गीतों का सङ्कलन किया जाए तो अत्याधिक श्रम व समय की आवश्यकता होगी। बहुत से विज्ञ जनों ने आंखों पर अवलम्बित गानों की सूची बनाने का प्रयास किया है इन्ही में से एक विशिष्ट व्यक्तित्व हैं डॉ दीपक धीमान जो सम्बद्ध रहे हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्व विद्यालय, श्री नगर, गढ़वाल, उत्तराखण्ड से। इनकी संकलित सूची से गीतों के मुखड़े आपके समक्ष क्रमशः रखने का प्रयास है –

01 – तेरी आँखों के सिवा दुनियाँ में रखा क्या है।

02 – आँखों ही आँखों में इशारा हो गया

03 – अँखियों को रहने दे अँखियों के आस पास

04 – अँखियों के झरोखों से मैंने देखा जो सांवरे

05 – हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू

06 – गोर गोर चाँद से मुख पर, काली काली आँखें हैं 

07 – आपकी आँखों में कुछ, महके हुए से राज हैं 

08 – कजरा मुहब्बत वाला, अँखियों में ऐसा डाला 

09 – इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं

10 – आँखों में क्या जी, सुनहरे सपने 

11 – मैं डूब डूब जाता हूँ शरबती तेरी आँखों की झील सी गहराई में

12 – आँख से छलका आँसू और जा टपका शराब में

13 – हुई आँख नम और ये दिल मुस्कुराया

14 – अँखियाँ मिलाये कभी अँखियाँ चुराए

15 – आँखें भी होती हैं दिल की जुबाँ

16 – आँख है भरी भरी और तुम

17 – आँखें ही न रोई हैं, दिल भी तेरे प्यार में रोया है

18 – ये काली काली आँखें तुरूरू हा हा हा

19 – आँखों में बेस हो तुम,तुम्हें दिल में बसा लूँगा

20 – कत्थई आँखों वाली एक लड़की                       

21 – आँख उठी मुहब्बत ने अंगड़ाई ली

22 – अँखियाँ नू चैन ना आवे, सजना घर आजा 

23 – अँखियाँ उडीक दियां दिल वजा मारदा

24 – बहुत खूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी

25 – शाम से आँख में नमी सी है

26 – आँख की गुस्ताखियाँ माफ़ हों

27 – आँखों में तेरी अजब सी, अजब सी अदाएं हैं

28 – सुरीली अँखियों वाले, सूना है तेरी अँखियों से

29 – तेरी काली अँखियों से जिंद मेरी जागे

30 – तेरी आँखों में मुझे प्यार नज़र आता है

31 – आँखों से तूने यह क्या कह दिया

32 – आँखों में नींद न दिल में करार                                  

33 – सांवली सलोनी तेरी झील सी आँखें

34 – चेहरा है या चाँद खिला है , जुल्फ घनेरी शाम है क्या

       सागर जैसी आँखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या

35 – अपनी आँखों के समन्दर में उतर जाने दे

        तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब क्र मर जाने दे  

36 – रात कली एक ख्वाब में आई और गले का हार हुई

       सुबह को जब हम नींद से जागे उन्हीं से आँखें चार हुईं

37 – कितना हसीन चेहरा कितनी प्यारी आँखें

38 – आँख मारे ओ लड़की आँख मारे

39 – तेरी आँखों का ये काजल

40 – नैन लड़ जइहैं ता मनवा मा खटक होएबे करी

41 – ज़रा नज़रों से कह दो जी, निशाना चूक न जाए 

42 – तुम्हारी नज़रों में हमने देखा

43 – तेरे नैना बड़े दगाबाज रे

44 – तेरे मस्त मस्त दो नैन, मेरे दिल का ले गए चैन 

45 – तेरे नैना बड़े कातिल मार ही डालेंगे

46 – तेरे नैना ,तेरे नैना, तेरे नैना रे

47 – तोसे नैना लागे, मिली जिन्दगी

48 – नैना, जो साँझ ख्वाब देखते थे नैना  

49 – नैनों की जो बात नैना जाने है

50 – नज़र नज़र ढूंढें, तुझे मेरी नज़र

51 – कजरारे कजरारे तेरे नैना कारे कारे

ज्ञान परिमार्जन ,उन्नयन से जुड़े आलेख, कविता, कवित्त, दोहा, चौकड़िया, सवैय्या, फाग, पद, अनुवाद गीत, उद्धरण, कड़वक,  नवगीत, खण्ड काव्य, सोरठा, सबद, बिरहा, पहेलियाँ,  निबन्ध और ग़जलें सभी नयनों से सम्बद्ध रहे हैं।नयनों की दुनियाँ में टहलते हुए जब यथार्त के ठोस धरातल पर कदम रखते हैं तो विशेषज्ञों की चेतावनी याद आती हैं कि आँख के संरक्षण हेतु क्या क्या ध्यान अवश्य रखा जाए।

आँखों के दीर्घ कालिक बचाव हेतु उपाय –

जब इस विचार का मंथन करते हैं  तब सार रूप में ज्ञात होता है कि इस हेतु कुछ कार्य करने चाहिए और कुछ नहीं। आइये इन बिंदुओं पर अमल कर आँखों का संरक्षण करें।

01- सुबह  आँख धोएं।

02 – आँख मलने से बचें।

03 – प्रातः ओस वाली घास पर चलें।

04 – हाथ बार बार धोएं।

05 – तीव्र धुप से आँख बचाएं।

06 – तेज प्रकाश, वेल्डिंग आदि पर दृष्टिपात न करें। 

07 – पर्याप्त जल पियें।

08 – संतुलित आहार लें।

09 – धूम्रपान न करें।

10 – किसी भी नशे से बचें।

11 -स्क्रीन देर तक न देखें।

12 – पर्याप्त निद्रा आवश्यक।

13 -बी० पी ०, शुगर की नियमित जाँच।

14 – बार बार पलक झपकाएं। 

15  –  नेत्र के व्यायाम करें। 

आँखें प्रकृति की अनमोल देन हैं जो हमारे जीवन को आनन्द युक्त बनाने में सहयोग करती हैं थोड़ा सा भी विकार होने पर नेत्र विशषज्ञों की राय अवश्य ली जानी चाहिए। अन्त में यही कहना चाहूँगा –

स्वस्थ नेत्र हर कार्य की क्षमता बढ़ा देते हैं

गर ये परेशान हुए, तो फिर ये रुला देते हैं। .

स्वस्थ रहें काया के साथ नेत्र निरोग रखने का हर प्रयास करें क्योंकि मरणोपरान्त भी ये आँखें किसी के जीवन को रोशन कर सकती हैं याद रखें 10 जून विश्व नेत्र दान दिवस होने के साथ हमें याद दिलाता है कि नेत्रदान महादान है अर्थात जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी।  

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वाह जिन्दगी !

शुद्ध चेतना ही हूँ मैं।

June 28, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

संसार के जड़ जङ्गम हमें प्रभावित करते हैं उनके बारे में सोचने पर जिज्ञासा का प्रबल भाव उत्पन्न होता है और यह कुहासा चिन्तन स्तर उच्च होने के साथ और घनीभूत होता जाता है जब इसका प्रवाह स्वयम् की ओर होता है तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर हम हैं कौन, क्या आदि आदि, लेकिन अपने स्वरुप का बोध सरल नहीं है।

अपने अस्तित्व को गुम करके स्वयम् के विराट से साक्षात्कार हो सकता है जिस प्रकार हवा में तैरता कोई जलकण तब तक लघु है जब तक वह विशाल समुद्र से एकाकार करती है तब स्वयम् को खो देती है। लेकिन खोने के तुरन्त बाद वह समुद्र है उस जैसी बिन्दुओं के समूह से ही विशाल समुद्र बना है जिसकी शक्ति अपरम्पार है, जिसमें बहुमूल्य निधियाँ आज भी विराजमान हैं लेकिन हाय रे मानव तुझे आज भी स्वयम् की तलाश है।और यह तलाश भी बाहर की ओर है जो बढ़कर कर्म न करने आसक्ति की ओर बढ़ रही है हम वह भूल रहे हैं जो भगवान् श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता के द्वित्तीय अध्याय के ४७ वें श्लोक में कहा है –

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

अर्थात

तेरा कर्म करने में ही अधिकार है,उसके फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मों के फल का हेतु मत बन और तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो।

वस्तुतः बाहर की तलाश में कुछ भी मिलने वाला नहीं है जो भी है अन्तर में है। लघु और विराट के भेद को समझने के बाद स्वयम् की दृष्टि समदृष्टा होकर तमाम भित्तियों का अस्तित्व परिवर्तन कर देती हैं। हमारा अस्तित्व जड़ होने से पूर्व चैतन्य का है, निज स्वरुप का बोध होने के साथ सम्बन्धों की तमाम दीवारें धराशाई हो जाती हैं।कोई भी सम्बन्ध अक्षुण्ण नहीं है यह सारे सम्बन्ध काया के हैं कायिक हैं इन सम्बन्धों के साथ दम्भ ही माया की गिरफ्त में आ जाने का द्योतक है।हम देह नहीं हैं बल्कि शुद्ध चैतन्य आत्म तत्व हैं जो कभी नष्ट नहीं होता। श्रीमद्भगवद्गीता के द्वित्तीय अध्याय के २३वें श्लोक में बोध जागरण प्रयास में कहा भी है-

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥2.23॥

अर्थात

इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग जला नहीं सकती। जल इसको गला नहीं सकता, और वायु सुखा नहीं सकती।

जिस तरह जल की बूँद सागर में या फुटबाल या अन्य स्थल में घनीभूत वायु बाहर आकर सम्पूर्ण व्योम हो जाती है ठीक इसी तरह हम सब आत्म तत्त्व जो कि शुद्ध चैतन्य स्वरुप हैं अन्ततः परमात्म में,  उस विराट में लय होकर उससे एकाकार कर लेते हैं और जो किसी भी कारणवश इस स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, वे बारम्बार आवागमन के चक्र में रहते हैं और प्रारब्ध व उसके परिणाम से ग्रसित हो अपने शुद्ध चैतन्य स्वरुप को जानने की दिशा में अग्रसर रहते हैं।ऐसे ही योगी मानस हेतु श्रीमद्भागवद्गीता के द्वित्तीय अध्याय के ६९वें श्लोक में कहा है –

“या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥2.69॥             

अर्थात

सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानन्द की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है।

जब तक स्वयं में शुद्ध चैतन्य आत्म स्वरुप के दर्शन नहीं होते और परमसत्य मानस से उद्भूत नहीं होता तब तक समदृष्टि विकसित नहीं होती इसी कारण हम सभी में उस विशुद्ध चैतन्य आत्म तत्व का दर्शन नहीं कर पाते और इस स्वरुप की काया परिवर्तन की स्थिति बनी रहती है।

आइए इस तरह से समझने का प्रयास करते हैं यदि कोई विशालकाय दीपक ज्योति दैदीप्यमान है और छोटा दीपक उस प्रज्ज्वलित दीपशिखा में अपना अस्तित्व खोकर मिल जाता है, जिसमें तृष्णा, अहंकार और अज्ञान का दीपक, बाती, तेल शेष है वह अपने चैतन्य शुद्ध स्वरुप से आत्म साक्षात्कार नहीं कर सकता।

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वाह जिन्दगी !

सोलह दूनीआठ ……..

March 15, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

झूठ बोलना पाप लिखा है, बाबूजी

सब कुछ अपने -आप लिखा है बाबूजी

देख के बदमाशी, इस सभ्य समाज की

अपने भाग्य में जाप लिखा है, बाबूजी

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।1।

दुष्टों का सत्यानाश लिखा है, बाबूजी

पैसे में छिपा वो पाप लिखा है बाबूजी। 

देख समझ मक्कारी उच्च समाज की,

जीवन को अभिशाप लिखा है बाबूजी।

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।2।

ईमानदारी में दाग लिखा है बाबूजी,

जाल जाल में जाल लिखा है बाबूजी।

देख घटिया निर्माण चाल सरकार की,

नेता को माई बाप लिखा है बाबूजी। 

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।3।

नदी किनारे साँप लिखा है बाबूजी,

रेता रात में साफ़ लिखा है बाबूजी।

देख समझ ताक़त इन ठेकेदारों की,

उनका कर्जा माफ़ लिखा है बाबूजी।  

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।4।

उनका पुण्य प्रताप लिखा है बाबूजी,

श्रम और मजदूरी ख़ाक लिखा है बाबूजी।

श्रम कणो में हिस्सेदारी नाथ बेईमान की,

पूँजी पति का प्रबल प्रताप लिखा है बाबूजी।   

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।

सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।5।

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वाह जिन्दगी !

हर सङ्कट का हल पाता है।

September 29, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जो कर्म को धर्म बनाता है,

हर कार्य सुगम हो जाता है।

रुकना थकना थम जाता है,

तनाव, क्षरण मिट जाता है।

जो काम में ध्यान लगाता है,

हर सङ्कट का हल पाता है।1।

तन, मन का कार्य कराता है,

शक्ति सञ्चय बढ़ जाता है।

श्रमकार्य सही गति पाता है,

मन रुचे,  कार्य हो जाता है।

जो काम में ध्यान लगाता है,

हर सङ्कट का हल पाता है।2।

मन तन एक स्थल पाता है,

अनुभव में ताजगी लाता है।

डर सारा दूर हो जाता है,

भ्रम – तम छँटता जाता है।   

जो काम में ध्यान लगाता है,

हर सङ्कट का हल पाता है।3।

तन काम को खेल बनाता है,

ऊर्जा क्षय रुकता जाता है।

ध्यान मानस शक्ति बढ़ाता है,

और कामचोरी से बचाता है।

जो काम में ध्यान लगाता है,

हर सङ्कट का हल पाता है ।4।

इक नव बन्धन बन जाता है,

कर्म – मर्म समझ में आता है।

चिन्ता का बोझ हट जाता है,

जोश सङ्ग होश मिल जाता है।   

जो काम में ध्यान लगाता है,

हर सङ्कट का हल पाता है ।5।

सब बिगड़े काम बनाता है,

जब चित्त सुदृढ़ हो जाता है।

सङ्कल्प प्रबल हो जाता है,

और मञ्जिल तकपहुँचाता है।

जो काम में ध्यान लगाता है,

हर सङ्कट का हल पाता है।6।

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वाह जिन्दगी !

याद फिर से आ गई है।

July 6, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है।

बचपने में साथ रहकर साथ पढ़ते

यादों की बारात फिर से आ गई है।

उस समय हमसब बहुत मदमस्त रहते

वह याद धुँधली सी जेहन पर छा गई है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।1।

याद है तुमको कि हम आपस में लड़ते

लड़ झगड़ कर मिलन बेला आ गई है।

मिलन बिछुड़न बन गया है ताप सहते

बन तपन जलवाष्प बारिश आ गयी है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।2।

मौसमों की मार को चुपचाप सहते,

याद गुजरे मौसमों की आ  गई  है।

खेल बचपन में जो खेले गिरते पड़ते

उन सभी की याद क्यूँ  कर आ गई है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।3।

गरमियों के मौसमों में लू को सहते

उन दिनों की याद भी पथरा गई है।

आज बारिश देखकर फिर याद बन के 

कोई बदली जिस्म जाँ पर छा गई है।  

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।4।

बचपने में, साथ में जब पेंग भरते

झूले, चितवन यादें फिर से छा गई हैं।

गात पर बिन रंग के जो रंग दिखते

वही रंगत अब असर दिखला गई है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।5।

आज अरसा हो गया बादल को बनते

याद की सिहरन नयन बरसा गई है।

जिन्दगी की शाम में ये क्या हैं लखते

क्यों तुम्हारी याद फिर से भा गई है ?

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।6।   

काश हरियाली में तुम ये देख सकते

अब बिखरी जुल्फों में सफेदी आ गई है।

फिर भी रहे हैं हम तुम्हे ख़्वाबों में तकते

प्यास जन्मों की लबों पर आ गई है।   

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।7।

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वाह जिन्दगी !

बुढ़ापा दूर रखने के 8 अचूक उपाय

May 28, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बचपन, जवानी, बुढ़ापे का एक क्रम है और ये इस क्रम में ही आता है लेकिन हमारी जीवन शैली बुढ़ापे को शीघ्र निमंत्रण दे हमें निष्क्रिय कर रही है जबकि थोड़ा सा सचेत रहकर न हम बुढ़ापे को पीछे धकेल सकते हैं बल्कि बुढ़ापे में भी जवानों जैसे सक्रिय रह सकते हैं। आइये इसके कारण,निवारण पर विचार करते हैं।

1 – जल का सेवन –

जल का यथोचित सेवन होना चाहिए कुछ लोग कम सेवन करते हैं और इसके नुकसान शीघ्र परिलक्षित होने लगते हैं जो कब्ज,किडनी समस्या,ऊर्जा स्तर में कमी ,त्वचा का रुखापन,सिर दर्द आदि के रूप में सामने आता है। जब की अधिक जल का सेवन किडनी का कार्य भार बढ़ा देता है वात, पित्त, कफ के असन्तुलन का भी यह प्रमुख कारण है अधिक पानी के नुकसान बुढ़ापे को करीब लाने में मदद करते हैं।

अतः ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ को ध्यान में रखकर शरीर की मांग के अनुरूप पानी पीना चाहिए। जल घूँट घूँट कर बैठकर ही पीना चाहिए उकड़ूँ बैठकर पीएं तो सबसे अच्छा। फ्रिज के अधिक ठन्डे पानी से बचें। सदा सामान्य ताप युक्त जल का सेवन करें। पानी की स्वच्छता का ध्यान रखा जाए। कहीं का भी पानी न पीने लगें अच्छा होगा अपने साथ स्वच्छ जल रखें। दिन के पूर्वार्ध में अधिक और उत्तरार्ध में अपेक्षाकृत कम जल का सेवन करें।

2 – निद्रा –

संयमित निद्रा शरीर को व्यवस्थित रखने का एक उपक्रम है। आज लोगों को सोने का कार्यक्रम दुष्प्रभावित हुआ है कुछ लोग रात्रि में जागरण करते हैं और दिन में सोते हैं या देर तक सोते रहते हैं। कुछ दिन और रात दोनों में सोने की आदत विकसित कर लेते हैं रात्रि जागरण सम्पूर्ण दिनचर्या बिगाड़ बुढ़ापे को जल्दी बुलाने में मदद करता है,शरीर हर समय थका थका महसूस करता है।

हमारा शरीर रात्रि विश्राम व सूर्योदय के साथ जागृत रहकर कार्य करने में सुगमता महसूस करता है,जल्दी सोना और जल्दी जागना कई रोगों का उपचार है। इसीलिये सुबह को अमृत बेला गया है। त्वचा की चमक या आज वृद्धि का इससे सीधा सम्बन्ध है।

3 – गरिष्ठ भोजन व अधिक नमक –

गरिष्ठ  व अधिक नमक वाला भोजन सीधा झुर्रियों को निमन्त्रण पत्र है,नमक की अधिक मात्रा कोशिकाओं को शीघ्र बूढ़ा करती है जबकि नमक का कम सेवन कोशिकाओं की आयु में वृद्धि करता है। गरिष्ठ भोजन स्वाद में आपको अच्छा लग सकता है पर है वो धीमा जहर ही।एक तो गरिष्ठ और दूसरे काम चबाने से दाँतों का काम भी आँतों को करना पड़ता है जो कब्ज, अम्लता,उदर रोग, मोटापा, अजीर्ण को खुला आमन्त्रण देता है। आजकल जंकफूड और फास्ट फ़ूड ने सेहत का बेड़ा गर्क कर रखा है।शरीर को युवा और दीर्घकालिक क्रियाशील रखने के लिए सहज सुपाच्य व ताजा भोजन खूब चबा चबाकर करना चाहिए।

4 – व्यायाम –

व्यायाम,  प्राणायाम, योगासन, खेलकूद, दंगल, दौड़ आदि वह साधन हैं जिससे शरीर मानसिक रूप से अधिक युवा रहने हेतु तैयार होता है। ब्रह्म मुहूर्त की जादुई हवा तनमन को स्फूर्तिवान रखती है। और इनका अभाव हमें बुढ़ापे की और तेजी से बढ़ाता है।

5 – प्रवाह अवरुद्धन –

हमें मल, मूत्र के आवेग को बल पूर्वक नहीं रोकना चाहिए। शरीर पर अनावश्यक दवाब रखना उचित नहीं। छींक आदि के समय सामान्य ही रहना चाहिए।प्राकृतिक आवेग को रोकने से किडनी व आँतों पर अनावश्यक दवाब पड़ता है। और सम्पूर्ण शरीर इस व्याधि के नुक्सान झेलता है।

6 – नशा –

 सबको पता है होश में रहना परमावश्यक है लेकिन होश खोने वालों की कतार भी छोटी नहीं है। पता नहीं क्यों लोग नशा करते हैं व  अपनी जिन्दगी को छोटा और रोग ग्रस्त कर लेते हैं और जवानी में बुढ़ापे का शिकार हो जाते हैं। हमारा सारा चयापचय बिगड़ जाता है। प्रतिरक्षा तन्त्र ध्वस्त हो जाता है अपने साथ परिवार को गर्त में जाता देख नशेड़ी अवसादग्रस्त हो जाता है मस्तिष्क सोचने समझने की शक्ति खो तेजी से बुढ़ापे की और अग्रसर होता है।

प्रारम्भ से ही सचेत रहें, किसी के नशा करने के आमन्त्रण को सिरे से ठुकरा दें नहीं तो वही बात हो जाएगी मौत आई तो नहीं पर घर तो देख गयी। चिन्ता,परेशानी, समस्या प्रत्येक के जीवन में आती है सम्यक विमर्श करें स्वास्थ्य वर्धक चीजों का सेवन करें। सत्सङ्ग करें कुसंग से बचें। नशा किसी भी रूप में शरीर में प्रवेश न करे हमारा शरीर खुद इसको व्यवस्थित रखने का प्रयास करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय में कितना सुन्दर मार्ग सुझाया है – 

युक्ताहार-विहारस्य युक्त-चेष्टस्य कर्मसु

युक्त-स्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःख-हा ॥ १७ ॥

7 – प्रदूषण –

जल, वायु, ध्वनि के अलावा तमाम अन्य प्रदूषण मानव के जीवन को शीघ्र बुढ़ापे की और खींच कर ख़तम कर रहे हैं जबकि इन पर अंकुश लगाना,परिशोधन करना हमें आता है। मास्क का प्रयोग कोरोना ने हमें सीखा दिया जो दोपहिया वाहन चलाते हुए हेलमेट जितना ही आवश्यक है। प्रदूषण से बचने के यथा शक्ति प्रयास हमें दीर्घकालिक युवा रख सकता है निर्मल जल, वायु, आकाश अपरिहार्य है किसी ने  सचेत किया  –

हमीं गर्क करते हैं जब अपना बेडा तो बतलाओ फिर नाखुदा क्या करेंगे

जिन्हें दर्दे दिल से ही फुर्सत नहीं है फिर वो दर्दे वतन की दवा के करेंगे।

सचेत रहें,हर संभव बचाव का प्रयास करें।

08 – बुढ़ापा दिमाग की खिड़की से आता है। –

मानव मन अद्भुत है और सर्वाधिक सशक्त हैं विचार ,पहले हमारे मन में किसी भी वस्तु,क्रिया,सिद्धान्त को वरण करने का विचार आता है तत्पश्चात हमारी चेष्ठा उसे हमसे सम्बद्ध कर देती है यहाँ तककि हमारे शरीर पर हमारी सोच का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है यदि हम सकारात्मक सोच के हामी हैं तो व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। हम अलग लोगों को अलग अलग मिजाज का देखते हैं यह स्वभाव मानव मन की तरंग दिशा से ही निर्धारित होता है कुछ लोगों को युवावस्था में बुढ़ापे का और कुछ वयो वृद्धों को वृद्ध होने पर भी युवावस्था का आनन्द लेते देखा जा सकता है।

गलत चिन्तन, कामुक चिन्तन, नकारात्मक चिन्तन वह कारक है जो हमें अन्दर से खोखला कर कहीं का नहीं छोड़ता। हम वीर्य,ओज, तेज, स्फूर्ति खो बुढ़ापे के दुष्चक्र में फँस जाते हैं। सकारात्मक सोचें जिन्दादिली को व्यक्तित्व का हिस्सा बनाएं। याद रखें –

‘जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।’     

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वाह जिन्दगी !

अपनी कमजोरी को ताक़त में बदलें।Convert your weakness into strength.

May 9, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

साथियो, हम सब मानव हैं और मानवीय गुणों व मानवीय कमजोरियों से युक्त रहते हैं हमारा अपना मस्तिष्क हमारी सोच ,हमारे विचारों का उद्गम स्थल है जो बहुत सारी बाहरी शक्तियों से प्रभावित होता है और इसी क्रम में हमारा परिचय अपनी कमजोरियों से होता है  जो हमारी प्रगति यात्रा का सबसे बड़ा अवरोधक है आज की प्रस्तुति का मंतव्य ही यह है कि हम अपनी कमजोरियों को ताक़त में कैसे बदलें ?

कमजोरी है क्या ?-

What is weakness?

यह हमारी विचार प्रक्रिया का वह उत्पादन है जो हमारे मस्तिष्क ने हमें दिया है। मस्तिष्क जब किसी कार्य, विचार या कटु अनुभव के आधार पर पलायनवादी दृष्टिकोण अपनाने को विवश करता है वही हमारा कमजोर

बिन्दु है और हमारे व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दुश्मन। कोई भी कमजोरी तब तक कमजोरी है जब तक उसके सशक्तीकरण के प्रयास न किये जाएँ।

एक कमजोर रस्सी कुछ और रेशों के सहयोग से मजबूत हो सकती है इसी तरह कमजोरी सशक्त विचारों से दृढ़ इच्छा शक्ति का रूप धारणकर सबसे सशक्त पहलू का रूप धारण कर सकता है आपने देखा होगा  भौंरा विज्ञान के नियमों को धता बता अपने कमजोर पँखों से बखूबी उड़ता है।

कमजोरी को ताक़त में बदलने के आठ उपाय

Eight steps to turn weakness into strength –

इससे पहले की उन आठ अद्भुत उपायों से आपका परिचय कराऊँ। उनके सुदृढ़ीकरण हेतु मजबूत आधार बनाना आवश्यक होगा। इसीक्रम में आप सभी दिव्य चेतन आत्माओं से यह कहना प्रासंगिक होगा। कि जो कुछ हमारे अवचेतन मन से जुड़ जाता है वह फलीभूत होता है इसीलिए यह तथ्य कि ‘मैं अपनी कमजोरी को ताक़त में बदल सकता हूँ’ गहनता से दोहराएं और इसे चेतना की गहराई तक समाने दें।

यह कमजोरी वास्तव में एक चुनौती पूर्ण अवसर है जिसे पहचानने का अवसर हमें मिला है और इसी लिए कमजोरी का ताक़त में बदलना निश्चित है इसे अवश्यम्भावी बनाने वाले आठ कदम इस प्रकार हैं –

1 – कमजोरी का क्षेत्र पहचानें। (Recognize the region of weakness)

2 – सकारात्मक सोच। (Positive Approach)-

3 – डर का मुकाबला करें। (Face your fears)

4 – सभी विमाओं का गहन चिन्तन (Deep thinking about all dimensions)

5 – सकारात्मक व्यक्तित्वों का साथ (Associate with positive personalities)

6 – एक एक कर कमजोरी का निवारण करें। (Tackle a weakness at a time)

7 – विश्वास सुदृढ़ीकरण (Strengthening belief system)-

8 – स्व व्यक्तित्वानुसार सशक्तीकरण (Empowerment through self personalities)

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वाह जिन्दगी !

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।

May 8, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जोश दमखम के स्वामी थे हम, बताना चाहिए

बच्चे क्या करें, न पूछें फिर भी, बताना चाहिए,

गुमराह न हों, सत्य से वाकिफ कराना चाहिए।

सफेदी यूँही नहीं आई है, ये भी जताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।1।

देश की सीमाएं बदलीं कैसे ये सुनाना चाहिए।

पुनः गलती न हो कहीं राह तो दिखाना चाहिए,

कहाँ, क्या चूक हुई खुल करके जताना चाहिए,

उम्र कुछ नहीं संख्या है यह भी बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।2।

जवानी के दिशा बोधक किस्से सुनाना चाहिए,

जो गलत है गलत है बुरी शै से बचाना चाहिए,

नशा छोड़कर,आदर्श का पाठ पढ़ाना चाहिए,

गन्दा साहित्य नाश करेगा, भेद बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।3।

मूल्य अवरोहण न हो, सत्पथ दिखाना चाहिए,

ग़मों से जूझते कैसे, वह रास्ता बताना चाहिए,

कुछ मानें न मानें मगर, साम्य बैठाना चाहिए,

मगरूर न हों वे, सेहत के राज बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।।

जितना सम्भव हो, समय दर्पण दिखाना चाहिए,

मर्यादा सीमा रेखाएं, बे झिझक बताना चाहिए,

अस्तित्वबोध जरूरी है, दॉँवपेच सिखाना चाहिए,

गुर आत्मरक्षार्थ सभी, बेटियों को बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।।

ठोकरों से बचें कैसे अनुभव से सिखाना चाहिए,

कार्यनिर्वहन कहकर नहीं करके दिखाना चाहिए,

निज समस्या छोड़, देशहित पाठ पढ़ाना चाहिए,

‘नाथ’ यथा समय विश्वबन्धुत्व राग सुनाना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।।

मुक्तक 

शरीर में लहू लावे की तरह बहता है

इसका वही अन्दाज़ दिखाना चाहिए

सौंप रहे हैं, विरासत जिस पीढ़ी को

संरक्षण संवर्द्धन पाठ पढ़ाना चाहिए। 

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वाह जिन्दगी !

हम भुला न पाते हैं।

April 2, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।।

यहाँ इस शहर में बहुत मॉल नज़र आते हैं

कृत्रिमता युक्त चेहरे सौम्य न लग पाते हैं,

खो गयीं निमकौरियाँ पावन सी अमराइयाँ

पसीने से सरोबार कई चेहरे याद आते हैं। 

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।1।

खेत की पगडण्डियाँ फिर हमें बुलाते हैं

नंगे पैर चलने की अनुभूतियाँ जगाते  हैं

वर्षा की रिमझिम व मिट्टी की सुगन्धियाँ

आज भी हम को मौन रह कर बुलाते हैं।  

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।2

वो पुराने मञ्जर सुख -दुःख याद दिलाते हैं ,

भूलने की कोशिश की पर भुला न पाते हैं,

वो मेले, वो प्यारे दंगल और वो कबड्डियाँ

आज भी जेहन को खुशनुमा पल लौटाते हैं।  

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।3।

अब ना किसी मैदान में हम पतँग उड़ाते हैं

गुल्ली डण्डा, आइस पाइस कल की बातें हैं

खो गया सब कुछ वो चौपाल की कहानियाँ

टॉकीज में बैठ भी वो सब दिन याद आते हैं     

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।4।

वो रैले, वो झमेले, वो तबेले याद आते हैं

वो सरसों के पीत पुष्प क्यों हमें बुलाते हैं

नहीं भूल पाते चूल्हे चक्की वाली रोटियाँ

ओवन, ए० सी०, फ्रिज कत्तई न भाते हैं।   

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।5।

धीरे – धीरे हम सब यूँ ही बड़े हुए जाते हैं,

वो डालें, वो झूले, नहीं अब हमें बुलाते हैं

वो बरगद, पीपल, शीशम की परछाइयाँ

वो वृक्ष अपने साथी थे बहुत याद आते हैं।    

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।6।

वो लोरियाँ वो सावन गीत झुरझुरी जगाते हैं,

निःस्वार्थ उपजे अनमोल रिश्ते याद आते हैं,

किसी घर में घुस खाई हुई प्यारी चपातियाँ

उस ममता समता से अब अलग हुए जाते हैं।

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।7।

गेंदतड़ी चोरसिपाही सब खेल याद आते हैं,

बगिया में लबासादिया हम भुला न पाते हैं

वो नहर में तैरना और भोली सी बदमाशियाँ

खो गए वो सारे दिन अब साये नज़र आते हैं 

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।8।

बचपन मोबाइल में व्यस्त अब हम पाते हैं,

दौड़ धूप के खेल मोबाइल में खेल पाते है,

बहुत कुछ छूटता इनसे आती हैं बीमारियाँ,

पसीने की कहानियाँ ए ० सी ० में सुनाते हैं।     

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।9।

आज भी कुछ फूल पत्ते किताबों में पाते हैं

ये सब किस्से, यादों की बारात ले आते हैं,

आज भी याद हैं कुछ दीवाने व दीवानियाँ,

पत्नी के गुस्से के कारण हम बाँट न पाते हैं।        

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।10।

बचपन की किताबों की यूँ बहुत सी बातें हैं

वो सारी यादगार आज भी बाँट नहीं पाते हैं

बुजुर्ग सुनाते थे निज बचपन की कहानियाँ

हम नहीं कह पाते, अन्तर दिल जलाते हैं।          

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।11।

आजकल बिन बात के भी हम मुस्कुराते हैं,

बचपन के ठहाके मगर बहुत याद आते हैं,

वो कञ्चे, रस भरी वो सब्जी वाले, वालियाँ

जिन्हें हम भूलना चाहें वो जमकर याद आते हैं।          

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।12।

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