समावेशी शिक्षा से विस्तृत परिक्षेत्र सम्बद्ध है यहाँ अधोलिखित तीन बिन्दुओं पर मुख्यतः विचार करेंगे।
1 – समावेशन की अवधारणा और सिद्धान्त /Concept and principles of inclusion
2 – समावेशन के लाभ / Benefits of inclusion
3 – समावेशी शिक्षा की आवश्यकता / Need of inclusive education
समावेशनकीअवधारणाऔरसिद्धान्त /Concept and principles of inclusion –
जब हम समावेशन की बात करते हैं तो यह जानना परमावश्यक है कि यह किनका करना है। समाज में बहुत से लोग हाशिये पर हैं शिक्षण संस्थाओं में अधिगम करने वाले विविध वर्ग हैं कुछ में शारीरिक, कुछ में मानसिक क्षमताएं, अक्षमताएं विद्यमान हैं। हमारे विद्यालयों में अध्यापन करने वाला व्यक्ति समस्त अधिगमार्थियों से उनकी क्षमतानुसार अधिगम क्षेत्र उन्नयन हेतु पृथक व्यवहार कर सभी का समावेशन करना चाहता है।
समावेशन वह क्रिया है जो विविधता युक्त व्यक्तित्वों में निर्दिष्ट क्षमता समान रूप से स्थापन करने हेतु की जाती है।
गूगल द्वारा समावेशन सिद्धान्त तलाशने पर ज्ञात हुआ –
“Inclusive teaching and learning recognizes the right of all students to a learning experience that respects diversity, enables participation, removes barriers and considers a variety of learning needs and preferences.”
समावेशन का यह प्रयास विविध क्षेत्रों में विविध प्रकार से हो सकता है लेकिन यदि हम केवल शिक्षा के दृष्टिकोण से इस पर विचार करें तो प्रसिद्द शिक्षाविद श्री मदन सिंह जी(आर लाल पब्लिकेशन) का यह विचार भी तर्क सङ्गत है –
“In the field of education, inclusive education means the process of restructuring of schools aimed at providing educational and social opportunities to all children.”
समावेशी शिक्षा की प्रक्रियाओं में अधिगमार्थी की उपलब्धि, पाठ्य क्रम पर अधिकार, समूह में प्रतिक्रया, शिक्षण, तकनीक, विविध क्रियाकलाप, खेल, नेतृत्व, सृजनात्मकता आदि को शामिल किया जा सकता है।
समावेशनकेलाभ / Benefits of inclusion –
चूँकि हम शैक्षिक परिक्षेत्र में सम्पूर्ण विवेचन कर रहे हैं अतः समावेशी शिक्षा के लाभों पर मुख्यतः विचार करेंगे। इस हेतु बिन्दुओं का क्रम इस प्रकार संजोया जा सकता है।
01- स्वस्थ सामाजिक वातावरण व सम्बन्ध / Healthy social environment and relationships
02- समानता (दिव्याङ्ग व सामान्य) / Equality
03- स्तरोन्नयन / Upgradation
04 – मानसिक व सामाजिक समायोजन / Mental and social adjustment
05- व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण / Protection of individual rights
06- सामूहिक प्रयास समन्वयन / Coordination of collective efforts
07- समान दृष्टिकोण का विकास / Development of common vision
08- विज्ञजनों के प्रगति आख्यान / Progress stories of experts
09- समानता के सिद्धान्त को प्रश्रय / Support the principle of equality
10- विशिष्टीकरण को प्रश्रय / Support for specialization
11- प्रगतिशीलता से समन्वय / Progressive coordination
12- चयनित स्थानापन्न / Selective placement
समावेशी शिक्षा की आवश्यकता / Need for inclusive education –
जब समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों ? का जवाब तलाशा जाता है तो निम्न महत्त्वपूर्ण बिन्दु दृष्टिगत होते हैं –
01- सौहाद्रपूर्ण वातावरण का सृजन / Creation of harmonious environment
02- सहायता हेतु तत्परता / Readiness for help
03- परस्पर आश्रयता की समझ का विकास / Development of understanding of mutual support
04- जैण्डर सुग्राह्यता / Gender sensitivity
05- विविधता में एकता / Unity in diversity
06- सम्यक अभिवृत्ति विकास / Proper attitude development
07- अद्यतन ज्ञान से सामञ्जस्य / Alignment with updated knowledge
08- विश्व बन्धुत्व की भावना को प्रश्रय / Fostering the spirit of world brotherhood
09- हीनता से मुक्ति / Freedom from inferiority
10- मानसिक प्रगति सुनिश्चयन / Ensuring mental progress
विविध विचारशील मनुष्य के मानस में कभी कभी अद्भुत वेशकीमती विचार सृजित होते हैं जिसे कालान्तर में वह भूल जाता है। विचार गुम हो जाता है और कभी कभी चिन्तन पूर्णतः निठल्ला भी हो सकता है।
यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि सृजित विचार के संचयन हेतु मनुष्य का टाइम फ्री जोन में होना परम आवश्यक है उदाहरण के लिए मैं 58 वर्ष की आयु में चिन्तन हेतु मुक्त होना चाहता था, स्थितियाँ भी सृजित हुईं लेकिन जीविकोपार्जन व आर्थिक आवश्यकता की पूर्ती हेतु मुझे आज भी कार्य करना पड़ता है। जो स्वतंत्र चिंतन में बाधक है और मुझे समाज की समस्याओं पर चिन्तन से विरत करता है। सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है सबकी प्रगति एक साझा जिम्मेदारी है। हम नाकारा होकर स्वयम् को विरत नहीं कर सकते
आप महसूस कर रहे होंगे और वह सही है कि आज का शीर्षक है – दिशा बोधक चिन्तन।
मेरे वैश्विक समकालीन साथियो,
आज हम जिस दुनियाँ में जी रहे हैं और अपने अध्ययन, अधिगम के आधार पर चिन्तन के लायक हो सके हैं। वहाँ हमारे द्वारा जीविकोपार्जन हेतु किए कार्य, हमारा बहुमूल्य चिन्तन का समय छीन लेते हैं। निःसन्देह कार्य करना अच्छी बात है लेकिन समय का ऐसा नियोजन भी परम आवश्यक है कि हम अपने रूचि के क्षेत्र में कार्य हेतु समय निकाल सकें यथा – चिन्तन आधारित सृजन।
आप सभी ने यह महसूस किया होगा कि कभी विचारों का अँधड़ चलता है। बहुत से विचार मानस में मचलते हैं और कभी विचार शून्यता की सी स्थिति हो जाती है। कोई विचार शब्दों की लड़ी बन कागज़ पर नहीं उतर पाता। अक्सर मेरे साहित्यकार साथी, गजलकार, कवि और सार्थक बहस में प्रतिभागी मेरे मित्र यह कहते हैं कि आज पता नहीं क्या हुआ कोई विचार आया ही नहीं और कभी कहते हैं कि आज सृजन पर माँ शारदे की कृपा हो गयी
उक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि कोई भी समय विशेष हो सकता है और उस समय पर अन्य जीविकोपार्जन हेतु कार्य की मजबूरी दुनियाँ को कुछ सार्थकता से वंचित कर देती है।आज U.K, U.S.A, सम्पूर्ण यूरोप, सम्पूर्ण एशिया के समकालीन साथी विचारकों के विचारों से हम वंचित हैं कभी भाषा अवरोध बनती है, कभी समय। समय हो तो कई भाषाएँ सीखकर लाभ उठाया जा सकता है।
प्रश्न उठता है कि समय तो सबके पास समान है कोई इतने ही समय में विशिष्ट बन जाता है और कोई जड़ की स्थिति में रहता है। एक दिन में 86400 सैकण्ड होते हैं और इस समय का सार्थक नियोजन व उस पर अमल हमें सार्थक दिशा बोध दे सकता है। उम्र की और अच्छे स्वास्थय की एक सीमा है और सार्थक दिशाबोधक सृजन हेतु, वैश्विक समाज के सार्थक दिग्दर्शन हैं अच्छा स्वास्थय और अच्छी सोच दोनों आवश्यक है।
इस स्थिति के सम्यक विवेचन से स्पष्ट है कि गुरुओं का दायित्व और गुरुत्तर हो जाता है कि वे अपने विद्यार्थियों को उनके युवा काल में ही यह समझाएं कि वे कठोर परिश्रम और उपार्जन करें। इस आधार पर अपने लिए टाइम फ्री जोन बना सकें। चिन्तन की शक्ति पैसे से नहीं खरीदी जा सकती लेकिन धन चिन्तन में परोक्ष रूप से सहयोग तो करता है। अतिरिक्त धनभोगी को विलास की ओर ले जाकर अभिशप्त करता है। लेकिन एक चिन्तक को स्वस्थ चिन्तन की ओर ले जाकर विश्व के लिए उपयोगी बनाता है।
भारत ऋषियों मुनियों की ज्ञान परम्परा से जुड़ा है। हमारे पूर्वज, ऋषि, मुनि ने आदि काल से आत्म को समझने की कोशिश की, इस नश्वर संसार से उसका क्या सम्बन्ध रहा। इस शोध में बहुत से पड़ाव और तत्व शामिल होते चले गए। क्रमशः अन्तिम सत्य और मानव व्यक्तित्व का अध्ययन करने की विशद आवश्यकता महसूस की गयी। सत्य और अंतिम सत्य की तलाश का कार्य शिक्षा के माध्यम से बखूबी अंजाम दिया गया और मानव व्यक्तित्व का ज्ञान मनोविज्ञान की श्रेणी में आया। भारत में शिक्षा मनोविज्ञान परम सत्य के दार्शनिक सत्य पर अवलम्बित रहा।
मनोविज्ञान को मन का विज्ञान, व्यवहार के विज्ञान आदि नामों से भी जाना गया। व्यावहारिक पक्ष जुड़ने की कारण इसकी आवश्यकता ने नित्य नए आकाश छुए और आज इसका परिक्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। सम्पूर्ण की बात न कर आज हम केवल शिक्षा मनोविज्ञान के सम्बन्ध में विचार करेंगे। प्रसिद्द भारतीय विचारक एस ० के ० मंगल अपनी पुस्तक शिक्षा मनोविज्ञान के पृष्ठ 21 पर लिखते हैं –
“शिक्षा मनोविज्ञान व्यावहारिक मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें मनोविज्ञान विषय के नियम, सिद्धान्त एवं क्रिया विधि आदि को शिक्षा के क्षेत्र में काम में लाने का प्रयत्न किया जाता है।”
आंग्ल अनुवाद
“Educational psychology is that branch of practical psychology in which an attempt is made to use the rules, principles and methods of psychology in the field of education.”
EDUCATIONAL PSYCHOLOGY: Concept & definitions
शैक्षिक मनोविज्ञान: अवधारणा और परिभाषाएँ –
हमारे यहाँ सब कुछ पाश्चात्य ज्ञान से तलाशने की आदत पड़ी और आजादी के बाद भी शासन उसी से प्रभावित रहा इसीलिये भी हम परमुखापेक्षी होते हुए बात की शुरुआत अरस्तु से करते हैं मनोविज्ञान विकास अवधारणा को स्पष्ट करते हुए स्किनर महोदय का मानना है कि –
“शिक्षा मनोविज्ञान का आरम्भ अरस्तु के समय से माना जा सकता है। पर शिक्षा मनोविज्ञान के विज्ञान की उत्पत्ति यूरोप में पेस्टोलॉजी, हर्बर्ट, और फ्रोबेल के कार्यों से हुई, जिन्होंने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक बनाने का प्रयास किया।”
“Educational psychology can be traced back to the time of Aristotle. But the science of educational psychology originated in Europe with the work of Pestalozzi, Herbart, and Froebel, Who tried to make education psychological.”
शिक्षा के द्वारा सत्य विवेचित, शोधित, स्थापित होता है और मानव मन उसे निर्दिष्ट करता है विविध अवधारणायें शिक्षा मनोविज्ञान की महती आवश्यकता अनुभूत करते हैं और विविध विज्ञ जन उसे इस तरह पारिभाषित करते हैं।
सीखने सिखाने को बुनियादी आवश्यकता मानते हुए स्किनर महोदय कहते हैं –
“शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षण एवम् सीखने से सम्बन्धित है।”
“Educational Psychology is that branch of psychology which deals with teaching and learning.” Skinner, 1958, p.1
कुछ इसी तरह की भावों की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है क्रो व क्रो के इन विचारों में –
“शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक के सीखने सम्बन्धी अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।”
“Educational Psychology describes and explains the learning experiences of an individual from birth through old age.” – Crow & Crow, 1973, p.7
समाज और शिक्षा को अभिन्न मानते हुए नौल व अन्य कहते हैं –
” शिक्षा मनोविज्ञान मुख्य रूप से शिक्षा की सामाजिक प्रक्रिया से परिवर्तित या निर्देशित होने वाले मानव व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित है।”
“Educational Psychology is concerned primarily with the study of human behaviour as it is changed or directed under the social process of education”
– Noll & others: Journal of Educational Psychology, 1948, p.361
प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक पील महोदय ने संक्षिप्त व सार गर्भित परिभाषा दी है –
“शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का विज्ञान है। “
“Educational Psychology is the science of Education.” – Peel,1956, p.8
शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र
Scope of Educational Psychology-
सम्पूर्ण परिवेश नित्यप्रति बदल रहा है यह परिवर्तन प्रकृति का नियम है बदलती हुई इस दुनिया की समस्याएं भी नित्य नया नया आकार ले रही हैं ऐसी स्थिति में इसका निश्चित क्षेत्र परिसीमन सम्भव नहीं है और इसे अपरिमित स्वीकार करना पड़ेगा चूँकि यहाँ हम शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की बात कर रहे हैं इसलिए कुछ बिन्दु स्पष्टीकरण हेतु अधिगमकर्ता के दृष्टिकोण से रखने का प्रयास है। –
01 – विशेष योग्यता अध्ययन /Special ability study
02 – वंशानुक्रम वातावरण अध्ययन / Heredity, environment study
03 – सीखने सम्बन्धी अनुभव अध्ययन / Learning experience study
04 – मूल प्रवृत्तियों का अध्ययन / Basic instinct study
05 – परिस्थितिगत व्यवहार का अध्ययन / Study of situational behaviour
06 – प्रेरणाओं के प्रभाव का अध्ययन / Study of the effect of motivations
07 – मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक प्रतिक्रियायों का अध्ययन / Study of mental, physical and emotional reactions
08 – तत्सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन / Study of related problems
09 – शिक्षा के अंगो सम्बन्धी अध्ययन / Study related to parts of education
10 – विविध गुण अवगुण अध्ययन / Study of various merits and demerits
उक्त कुछ बिंदु देने का प्रयास अवश्य किया गया है लेकिन इसके अतिरिक्त इससे अधिक बिन्दु इसमें शामिल किये जा सकते हैं जैसा कि डगलस व हॉलेंड के इन विचारों से स्पष्ट है –
“शिक्षा मनोविज्ञान की विषय सामग्री शिक्षा की प्रक्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति की प्रकृति, मानसिक जीवन और व्यवहार है।”
“The subject matter of Educational Psychology is the nature, mental life and behaviour of the individual undergoing the process of education.” – Douglas & Holland, pp 29-30
इसकी व्यापकता को समझने हेतु स्किनर के ये शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं –
“शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह सब ज्ञान और विधियां सम्मिलित हैं, जो सीखने की प्रक्रिया से अधिक अच्छी प्रकार समझने और अधिक कुशलता से निर्देशित करने के लिए आवश्यक है। ”
“Educational psychology takes for its province all information and techniques pertinent to a better understanding and a more efficient direction of the learning process.” – Skinner
सीखने के स्थानान्तरण से आशय किसी सीखे हुए कार्य या सीखे हुए विषय का विविध परिस्थितियों में प्रयोग करने से है। जब कोई मानव किसी विषय या कौशल या सीखा गया या अर्जित ज्ञान अन्य स्थितियों में प्रयोग करना है तो इसे प्रशिक्षण का या अधिगम का स्थानान्तरण कहा जाता है।इसे पारिभाषित करते हुए क्रो व क्रो महोदय कहते हैं –
“सीखने के एक क्षेत्र में प्राप्त होने वाले ज्ञान या कुशलताओं का तथा सोचने, अनुभव करने और कार्य करने की आदतों का, सीखने के दूसरे क्षेत्र में प्रयोग करना साधारणतः प्रशिक्षण का स्थानान्तरण कहा जाता है।”
“The carry-over of habits of thinking, feeling or working of knowledge or of skills, from one learning area to another, usually is referred to as the transfer of training.” 1973, p.323
अधिगम के स्थानान्तरण को समझाते हुए कोलेनसिक महोदय कहते हैं –
“स्थानान्तरण, पहली परिस्थिति से प्राप्त ज्ञान, कुशलता, आदतों, अभियोग्यताओं या अन्य क्रियाओं का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।”
“Transfer is the application of carry over the knowledge, skills, habits, attitudes or other responses from one situation in which time are initially acquired to some other situation.”
लगभग मिलते जुलते विचार कई विद्वानों ने सम्प्रेषित किये उनमें से एक विद्वान सोरेनसन महोदय ने सरल शब्दों में अभिव्यक्ति इस प्रकार दी –
“स्थानान्तरण में एक उपस्थिति में अर्जित ज्ञान,प्रशिक्षण और आदतों का किसी दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरित किये जाने का उल्लेख होता है।”
“Transfer refers to the transfer of knowledge, training and habits acquired in one situation to another situation.” 1948, p.387
स्थानान्तरण के प्रकार / Types of transfer
प्रशिक्षण का स्थानान्तरण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है –
1-सकारात्मक अधिगम -स्थानान्तरण (Positive transfer of learning)
2-नकारात्मक अधिगम -स्थानान्तरण (Negative transfer of learning)
कुछ अन्य विचारक इसे निम्न दो भागों में भी बाँटते हैं।
1-उदग्र अधिगम स्थानान्तरण / Vertical transfer of learning
2-क्षैतिज अधिगम स्थानान्तरण / Horizontal transfer of learning
or
2-समानान्तर अधिगम स्थानान्तरण / Parallel transfer of learning
अधिगम स्थानान्तरण के सिद्धान्त / Principles of Transfer of Learning –
1 – मन का अनुशासन अवलम्बित शक्ति सिद्धान्त / Discipline of the mind based power theory –
इस सम्बन्ध में प्रसिद्द भारतीय दार्शनिक डॉ ० एस ० एस ० माथुर महोदय अपनी पुस्तक ‘शिक्षा मनोविज्ञान’ के पृष्ठ 358 पर लिखते हैं –
“सामान्य रूप से स्मृति सतर्कता, कल्पना, अवधान, इच्छा शक्ति व भाव आदि मस्तिष्क की शक्तियाँ एक दूसरे से स्वतन्त्र हैं और यह भी मन जाता है कि इनमें से प्रत्येक सुनिश्चित इकाई के रूप में हैं।”
आंग्ल अनुवाद –
“Generally the powers of the brain like memory, alertness, imagination, attention, will power and emotions are independent of each other and it is also believed that each of these exists as a definite unit.”
इसी सम्बन्ध में प्रसिद्द शिक्षा विद एस ० के ० मंगल ने उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट करते हुए अपनी पुस्तक ‘शिक्षा मनोविज्ञान’ के पृष्ठ 282 – 283 पर लिखा –
आंग्ल अनुवाद –
“Generally the powers of the brain like memory, alertness, imagination, attention, will power and emotions are independent of each other and it is also believed that each of these exists as a definite unit.”
इसी सम्बन्ध में प्रसिद्द शिक्षा विद एस ० के ० मंगल ने उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट करते हुए अपनी पुस्तक ‘शिक्षा मनोविज्ञान’ के पृष्ठ 282 – 283 पर लिखा –
2 – समान तत्वों का सिद्धान्त / Principle of similar elements –
समान तत्वों का सिद्धान्त की महत्ता को बताते हुएप्रसिद्द भारतीय दार्शनिक डॉ ० एस ० एस ० माथुर महोदय अपनी पुस्तक ‘शिक्षा मनोविज्ञान’ के पृष्ठ 359 पर क्रो एवं क्रो के विचार को उद्धृत किया है –
“आधुनिक मनोविज्ञान वेत्ता इस तथ्य पर आश्वस्त हैं कि मानसिक क्रियाएं ; जैसे विचार करना, अवधान, स्मृति और तर्क आदि;अलग अलग अपना अस्तित्व नहीं रखती हैं। परन्तु किसी भी स्थिति में ये सब मानसिक क्रियाएं एक दूसरे से मिलकर क्रियाशील होती हैं। “
आंग्ल अनुवाद –
“Modern psychologists are convinced of the fact that mental functions; such as thinking, attention, memory and reasoning etc.; do not exist separately. But in any situation, all these mental functions function in conjunction with each other.”
विविध मनोवैज्ञानिकों ने विविध परीक्षणों के माध्यम से पाया कि अनेक परीक्षणों में जिनमें क्रियाएं समान थीं स्थानान्तरण पाया गया। गेट्स महोदय लिखते हैं –
“यह देखा गया है की समान तत्वों से अधिगमान्तरण का अनुपात अधिक होता है।”
“It has been observed that the rate of transfer is higher with similar elements.”
3 – सामान्य और विशिष्ट तत्वों का सिद्धान्त (Theory of ‘G’ and ‘S’ factors)
मानव में दो प्रकार की बुद्धि होती है सामान्य और विशिष्ट और इन्हीं का सम्बन्ध सामान्य योग्यता और विशिष्ट योग्यता से होता है स्पीयरमैन और विविध मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि इन दोनों प्रकार की योग्यता में से स्थानांतरण केवल सामान्य योग्यता का होता है। इसी लिए कुछ विद्वान् इसे सामान्यीकरण का सिद्धान्त (Principle of generalization) कहना पसंद करते हैं भाटिया महोदय के अनुसार –
“विशिष्ट योग्यताओं का स्थानान्तरण नहीं होता है, पर सामान्य योग्यता का कुछ होता है।”
“There is no transfer in special abilities but there is some in general ability.”
अधिगम स्थानान्तरण हेतु आवश्यक तत्व / Essential elements for transfer of learning
01-निश्चित परिस्थिति /Certain situation –
किसी विशेष परिस्थिति का ज्ञान या कौशल न होने पर पहले सीखे ज्ञान या कौशल का प्रयोग विकल्प रूप में हमारे द्वारा किया जाता है लेकिन रायबर्न महोदय का मानना है –
“स्थानान्तरण, निश्चित परिस्थितियों में निश्चित मात्रा में हो सकता है।”
“There is a certain amount of transference that can take place under certain conditions.” – Ryburn (p213)
02- अधिगमार्थी की सामान्य बुद्धि / General intelligence of the learner
गैरट (Garret p 318 -319) महोदय के अनुसार –
“हाई स्कूल में अध्ययन करने वाले सामान्य बुद्धि के सर्वश्रेष्ठ छात्रों में निम्नतम सामान्य बुद्धि के छात्रों की अपेक्षा स्थानान्तरण करने की योग्यता 20 गुना अधिक होती है।”
“The best average students in high school have a 20 times greater ability to transfer than those with the lowest average intelligence.”
03- अधिगमार्थी की शैक्षिक योग्यता / Educational qualification of the learner
मर्सेल महोदय के अनुसार –
“जब हम किसी बात को वास्तव में सीख लेते हैं तभी उसका स्थानान्तरण कर सकते हैं।”
“Whenever we have really learned anything, we can transfer it.” Mursell (p.225)
04- समान विषयवस्तु /Same subject matter
भाटिया (Bhatiya, p 315 ) महोदय के अनुसार -“यदि दो विषय पूर्ण रूप से समान हैं, तो 100 प्रतिशत स्थानान्तरण हो सकता है। यदि विषय बिलकुल भिन्न है, तो तनिक भी स्थानान्तरण न होना सम्भव है। ”
“If two subjects are completely similar, there may be 100 percent transfer. If the subjects are completely different, there may be no transfer at all.”
05- समान अध्ययन विधियां / Common study methods –
भाटिया (Bhatiya, p 215 ) के अनुसार –
“जिन विषयों की अध्ययन विधियां समान होती हैं उनमें थोड़ा पर वास्तविक स्थानान्तरण होता है।”
“There is little but real transfer between subjects that have similar study methods.”
06- स्थानान्तरण हेतु प्रशिक्षण / Training for transfer
गैरेट(Garrett, p.319) ने लिखा है – “विद्यालय कार्य में स्थानान्तरण की सर्वोत्तम विधि है -स्थानान्तरण की शिक्षा देना।”
“The best way to get transfer in school work is to reach for transfer.”
07- रूचि, अरुचि के विषयों का प्रभाव / Effect of subjects of interest and disinterest-
रूचि के विषय में अधिगम और अन्य क्षेत्र हेतु स्थानान्तरण सुगम व तीव्र गति से होगा क्यों कि एक क्षेत्र की निष्पत्ति से दूसरे क्षेत्र की निष्पत्ति प्रभावित होती है। जैसा कि यलोन व वीनस्टीन ने भी लिखा है। –
“अधिगम के स्थानान्तरण से अभिप्राय है -एक कार्य की निष्पत्ति दूसरी निष्पत्ति से प्रभावित होती है। “
“Transfer of learning means that performance on one task is affected by performance of another task.” – Yelon and Weinstein
08 – अधिगमार्थी की इच्छा /Learner’s desire –
मर्सेल (Mursel, p. 302 ) के अनुसार
“किसी नई परिस्थिति की अधिगम स्थानान्तरण की एक अनिवार्य शर्त है कि सीखने वाले में उसे हस्तान्तरित करने की इच्छा अवश्य होनी चाहिए।”
“An essential condition for the transfer of learning to a new situation is that the learner must have the desire to transfer it.”
अधिगम स्थानान्तरण में शिक्षक की भूमिका/ Role of teacher in transfer of learning –
जिस तरह से माता पिता एक शिशु के लिए पूरी दुनियाँ होते हैं ठीक उसी तरह अध्यापक बालक के विद्यालय में प्रवेश के उपरान्त उसकी दुनियाँ की सर्वाधिक प्रेरक शक्ति है इस लिए उसकी प्रेरणा और अधिगम स्थानान्तरण में उसकी भूमिका सर्वाधिक है शिक्षा के अंगों व विविध तत्व कैसे अधिगम स्थानान्तरण में सहायक हो सकते हैं। आइये देखते हैं इन बिन्दुओं के आलोक में –
01 – पाठ्यक्रम / Curriculum
02 – शिक्षण विधियाँ / Teaching Methods
03 – अनुशासन / Discipline
04 – अध्यापक भूमिका / Teacher Role
05 – छात्र / Students
06 – पूर्व ज्ञान व नवीन ज्ञान की सम्बद्धता /Relation between previous knowledge and new knowledge
07 – सैद्धान्तिकता व व्यवहार का समन्वय / Coordination of theory and practice
08 – स्वप्रयत्न को बढ़ावा / Promotion of self-effort
09 – नवीन अधिगम साधनों की पारस्परिक निर्भरता बोध / Understanding the interdependence of new learning tools
10 – सकारात्मक स्थानान्तरण हेतु प्रेरकत्व / Motivation for positive transfer
उक्त विविध तत्वों से यह स्पष्ट है कि उक्त के अतिरिक्त और भी बहुत सारे बिंदु हो सकते हैं जहां अध्यापक बालक की अधिगम स्तनांतरण में मदद करे क्यों कि आज दुनियाँ बहुत तेजी से बदल रही है और शिक्षा के सारे अंग बदलते परिवेश के साथ तालमेल करने में जुटे हैं। लेकिन अध्यापक भी समाज का अंग है और यदि समाज ,अध्यापक को समस्या मुक्त रखने में भूमिका का सम्यक निर्वहन करेगा तो अधिगम स्थानान्तरण सम्यक व विकासोन्मुख होगा।
किसी शोध कार्य को सम्पन्न करने हेतु जब हम उस विषय का परिचय दे चुके होते हैं और तत्सम्बन्धी साहित्य का अध्ययन कर चुके होते हैं और इसके बाद के महत्त्वपूर्ण चरण पर पहुँचते हैं तो समंकों का एकत्रीकरण सबसे अधिक आवश्यक होता है। सारी गणना, विश्लेषण, परिणाम और उसकी व्याख्या को इसके अवलम्बन की आवश्यकता होती है।समंकों का संग्रहण अपने शोध के अनुसार किया जाता है। ये समंक दो प्रकार के होते हैं जिन्हें विविध प्रकार से हम संग्रहीत करते हैं।
प्राथमिक समंक और इनका संग्रहण / Primary data and its collection
द्वित्तीयक समंक और इनका संग्रहण / Secondary data and its collection
प्राथमिक समंक और इनका संग्रहण / Primary data and its collection –
प्राथमिक समंक उन समंकों को कहा जाता है जिन्हे प्रथम बार नवीन सिरे से इकठ्ठा किया जाता है और इसी कारण ये वास्तविक होते हैं। प्राथमिक समंकों के एकत्रीकरण में व्यावहारिक रूप से अधिक श्रम आवश्यक होता है।
द्वित्तीयक समंक और इनका संग्रहण / Secondary data and its collection –
द्वित्तीयक समंक उन समंकों को कहा जाता है जिन्हें पहले ही किन्ही अन्य माध्यमों से इकट्ठे किया जा चुका होता हैं विविध सांख्यिकीय प्रक्रियाएं पहले ही से पूर्ण की जा चुकी होती हैं। इनका अपने शोध की आवश्यकतानुसार आधार रूप में प्रयोग किया जाता है और इस स्रोत का स्पष्टीकरण भी कर दिया जाता है।
उक्त दोनों प्रकार का संग्रहण चयनित शोध के अनुसार निर्धारित किया जाता है प्राथमिक और द्वित्तीयक समंक अलग अलग तरह से इकट्ठे किये जाते हैं प्राथमिक समंकों को मूल रूपेण इकठ्ठा किया जाता है जबकि द्वित्तीयक समंक कोइ इकट्ठे कर चुका होता है। इनका केवल संकलन स्वनुसार करना होता है। आइये इनके संग्रहण की प्रविधियों पर दृष्टिपात करते हैं।
प्राथमिक समंक संग्रहण प्रविधियाँ / Primary data collection techniques–
इस हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली प्रविधियाँ इस प्रकार हैं –
[A] अवलोकन प्राविधि /Observation technique –
पी ० वी ० यंग (P V Yong ) ने इसे समझाते हुए बताया –
“अवलोकन स्वाभाविक घटना का उसके घटित होने के समय पर आँख के माध्यम से क्रमबद्ध एवम् विचारपूर्वक किया हुआ अध्ययन है। अवलोकन का उद्देश्य जटिल सामाजिक घटना, सांस्कृतिक प्रतिरूप अथवा मानव व्यवहार के अन्तर्गत सार्थक अन्तर्सम्बन्धित तत्वों की प्रकृति एवम् विस्तार को प्रकट करना होता है।”
“Observation is a systematic and deliberate study through the eye of spontaneous occurrence at the time they occur. The purpose of observation is to perceive the nature and extent of significant interrelated elements within complex social phenomena, cultural pattern or human conduct.”
P.V.Young. Scientific social survey and Research. New Delhi. Prentic Hall India (p) limited (1956) p. 154
(01) – नियन्त्रण आधारित / Control based
(a) – नियन्त्रित अवलोकन /Controlled observation
पी ० वी ० यंग (P V Yong ) के अनुसार –
“नियन्त्रित अवलोकन सुनिश्चित एवम् पूर्व व्यवस्थित योजनाओं के अनुसार सम्पन्न किया जाता है, जिसमें यथेष्ट प्रायोगिक प्रक्रिया सम्मिलित की जा सकती है।”
“Controlled Observation is carried on according to define pre-arranged plans which may include considerable experimental Procedure.”
“सामाजिक सम्बन्धों के विषय में अधिकांश ज्ञान जो लोगों के पास है, अनियन्त्रित अवलोकन से व्युत्पादित होता है।”
“Most of the knowledge which people have, about social relations is derived from uncontrolled observation whither participant or non-participant .
W.J.Goodeand P,K.Hatt: p.120
(02) – सहभागिता आधारित / Participation based
(a) – सहभागी अवलोकन / Participant observation –
सहभागी अवलोकन को असंरचित अवलोकन (Unstructured Observation) भी कहते हैं। इसमें अध्ययन से सम्बन्धित समूह का अंग बनकर अवलोकन कर्त्ता तत्सम्बन्धी क्रियाओं में खुद सहभागी बनकर अवलोकन करता है तथा आंकड़े प्राप्त करके अभिलेख तैयार करता है।
असहभागी अवलोकन को संरचित अवलोकन (Structured Observation) भी कहा जाता है। इसमें खुद सहभागी न बनकर सामान्य परिस्थितियों में सम्बन्धित समूह के व्यक्तियों का अवलोकन किया जाता है।
[B] साक्षात्कार प्राविधि (Interview Technique) –
जब शोधकर्त्ता तत्सम्बन्धी प्रयोज्य से उसकी मनोवृत्तियों, रुचियों, योग्यताओं, अभिवृत्तियों से सम्बन्धित तथ्यों का सङ्कलन आमने सामने की बातचीत के माध्यम से करता है। तो इसे साक्षात्कार प्राविधि कहा जाता है। इस सम्बन्ध में जॉन डब्लू बेस्ट (John W Best) के अनुसार
“साक्षात्कार एक मौखिक प्रश्नावली है। उत्तर को लिखे बिना विषयी अथवा साक्षात्कार देने वाला आमने सामने आत्मीयता से वांछित सूचना मौखिक रूप से देता है।”
“The interview is an oral questionnaire installed of writing the response, the subject or interviewer gives the needed information verbally in a face to face relationship.”
John W Best op.cit. p.182
साक्षात्कार से सम्बन्धित तथ्यों के आधार पर सामान्य रूप से चार भागों में विभक्त किया जा सकता है।
1 – उद्देश्य समर्पित साक्षात्कार /Objective dedicated interview –
2 – अन्तः क्रिया आधारित साक्षात्कार / Interaction based interview
3 – संख्या आधारित साक्षात्कार / Number based interview
4 – संरचना आधारित साक्षात्कार / Structure based interview
1 – उद्देश्य समर्पित साक्षात्कार /Objective dedicated interview –
a- निदानात्मक साक्षात्कार / diagnostic interview
b- उपचारात्मक साक्षात्कार / therapeutic interview
c- शोध साक्षात्कार / research interview
2 – अन्तः क्रिया आधारित साक्षात्कार / Interaction based interview
a- केन्द्रित साक्षात्कार / Focused interview
b- अनिर्देशित साक्षात्कार / Unguided interview
c- पुनरावृत्त साक्षात्कार / Repeated interview
3 – संख्या आधारित साक्षात्कार / Number based interview
a- व्यक्तिगत साक्षात्कार
b- सामूहिक साक्षात्कार
4 – संरचना आधारित साक्षात्कार / Structure based interview
विविध सामाजिक परिस्थितियों व समूह के सदस्यों के पारस्परिक व्यावहारिक सम्बन्धों व पसन्द नापसन्द का समाजमिति प्राविधि द्वारा किया जाता है। समाजमितिका अर्थ स्पष्ट करते हुए जॉन डब्लू बेस्ट (John W Best) महोदय ने लिखा है –
“समाजमिति सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन करने के लिए एक प्राविधि है, जो एक समूह में व्यक्तियों के मध्य विद्यमान है।”
“Sociometry is a technique of describing social relationships that exist between individuals in a group.”
John W Best op.cit. p.191
समाजमितीय तकनीक से प्राप्त आंकड़ों को समाजमितीय मेट्रिक्स , समाज आलेख, समाजमितीय सूचकांक आदि के द्वारा विश्लेषित किया जा सकता है।
द्वित्तीयक समंकों का संग्रहण / Collection of Secondary Data
जब द्वित्तीयक समंकों की बात करते हैं तो इसका सीधा सा आशय है कि वह समंक जो पहले ही उपलब्ध है इसको न केवल एकत्रित किया गया है बल्कि इसका विश्लेषण भी किया जा चुका है। द्वित्तीयक समंकों का प्रयोग करते समय शोधार्थी को विविध स्रोतों पर गौर करना होता है। समझ बूझ कर उनका चयन शोधार्थी पर निर्भर करता है। सामान्यतः ये प्रकाशित होते हैं। यथा :-
1 – विविध आधिकारिक वेव साइट्स से
2 – शासन के विविध प्रकाशनों में
3 – अन्तर्राष्ट्रीय निकायों व उनके सहायक संगठनों का प्रकाशन
4 – तकनीकी व व्यापक पत्रिकाओं द्वारा
5 – पुस्तक,पत्रिकाओं व समाचार पत्रों से
6 – विविध बैंक, स्टॉक एक्सचेंज, संघों की रिपोर्ट से
7 – विश्व विद्यालय व अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट द्वारा
8 – विविध ई पत्रिकाओं से
9 – सार्वजनिक रिकार्ड, आंकड़ों व ऐतिहासिक प्रकाशित दस्तावेजों से
भारत के पंजाब प्रान्त में स्वर्ण मन्दिर के पास एक जगह है जिसे जालियाँ वाले बाग़ के नाम से जाना जाता है। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन उस सङ्कीर्ण निकासी वाले बाग़ में लोग त्यौहार को खुशी खुशी मनाने व रॉलेट एक्ट से सम्बन्धित शान्ति पूर्ण सभा का हिस्सा बनने के लिए एकत्रित हुए इसमें बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलायें सभी तरह के व सभी आयु वर्ग के लोग शामिल थे।
अधिकाँश सदस्यों के विरोध के बावजूद 10 मार्च 1919 को दिल्ली की विधान सभा से अराजक और क्रान्तिकारी गतिविधियों को रोकने हेतु जो कला क़ानून पारित हुआ उसे रॉलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः इस एक्ट के द्वारा ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार मिलना था कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना किसी सबूत के दो वर्ष कैद रख सके। इसमें किसी मुकदमें को चलाने की भी आवश्यकता नहीं थी।
यही नहीं समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता भी इस माध्यम से समाप्त हो रही थी गिरफ्तार होने वाले को यह जानने का अधिकार भी नहीं था कि वह क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है जब कोइ निर्दोष साबित होने पर छूट भी जाता था तो उसे जमानत राशि जमा करनी पड़ती थी और वह किसी भी राजनैतिक, धार्मिक, शैक्षिक कार्यक्रम में भाग नहीं ले सकता था।
इन दमनकारी युद्धकालीन नीतियों के खिलाफ जगह विरोध के स्वर उठ रहे थे, भारत की ब्रिटिश सरकार श्रृंखलाबद्ध ढंग से दमनकारी आपात कालीन व्यवस्थाएं बनाकर भारतीय क्रान्ति के अग्रदूतों का यथा सम्भव विनाश करना चाहती थी। इस आहट को महसूस कर जालियाँ वाले बाग़ में शान्ति पूर्ण सभा आयोजित हो रही थी।
ह्त्या काण्ड निर्देश व नर संहार आयोजन –
भारत के इतिहास में ऐसे कई दिवस पड़ते हैं जो निर्दोष भारतीयों के खून से रँगे है माँ भारती के पंजाब प्रान्त की हमारी रणबाँकुरी प्रजाति से आमने सामने शस्त्र सहित भिड़ना अंग्रेजों की औकात से बाहर था इसीलिये जब हजारों निहत्थों का रैला शान्ति पूर्ण विचार मन्थन हेतु जालियां वाले बाग़ में इकठ्ठा हो चूका तब पंजाब प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर सर माइकेल फ्रांसिस ओ डायर के इशारे पर कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर के आदेश पर इस रूह कँपा देने वाले नरसंहार को अमल में लाया गया यह दुष्काण्ड हजारों निहत्थों की जीवन लीला समाप्त करने का कारण बना संकरे रास्ते रोके खड़े ब्रिटिश सैनिक अपने कसाई डायर के आदेश पर बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं सहित सम्पूर्ण उपस्थित जनसमूह पर अंधाधुन्ध गोलीबारी कर रहे थी बहुत से लोग वहाँ एक कुएं में छलांग लगाने को विवश हो गए। इन कसाइयों ने ऊपर से भारतीयों के मृत शरीर उस कुएं में डाल दिए जिससे जिससे वह कुआँ उसमें जीवित लोगों का समाधि स्थल बन जाए .
तत्सम्बन्धी दोनों डायर की अन्तिम परिणति –
13 अप्रैल 1919 को शाम 5 बजकर 37 मिनट पर हुई इस भयङ्कर नर सँहार ने अंग्रेज शासन की चूलें हिला दी, भीड़ पर गोली चलाने की भारत और ब्रिटेन दोनों जगह भारी भर्त्सना हुई। कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर जो अमृतसर के कसाई के नाम से भी जाना जाता है। कालान्तर में ब्रिटेन चला गया और ब्रेन हैमरेज से उसकी मृत्यु हो गई। दूसरा डायर जो उस समय पंजाब का गवर्नर था जिसकी सहमति से नरसंहार की पूर्ण पटकथा लिखी गयी। उस माइकल फ्रांसिस ओ डायर को सरदार ऊधम सिंह ने अपनी शूर वीरता का परिचय देते हुए लन्दन में मार डाला। यद्यपि वीर ऊधम सिंह जिसने जेल में अपना नाम भारत की सांस्कृतिक एक जुटता दर्शाता – मोहम्मद सिंह आज़ाद बताया, को फाँसी की सजा दी गई। इस वीर ने जालियां वाले बाग़ हत्याकाण्ड का बदला लिया 19 जुलाई 1974 को क्रांतिकारी ऊधम सिंह की अस्थियां भारत लाई गईं।
जालियाँ वाले बाग़ के इस भयङ्कर संत्रांश ने हर भारतीय को झकझोर कर रख दिया। जगह जगह विद्रोह कई नए खड़े हुए बहुत से लोगों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्राप्त उपाधियों को दिया। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के आक्रोश पत्र के शब्द हिन्दी में आपके समक्ष रखता हूँ। –
“इस अवस्था में मैं अपने देश के लिए कम से कम यह कह सकता हूँ कि आतंक से गुंग अपने करोड़ों देश वासियों द्वारा भोगी जा रही मूक पीड़ा एवम् संताप को मुखरित करूँ और उसके सभी परिणाम भुगतने के लिए तत्पर रहूँ। अब समय आ गया है जब कि सम्मान के प्रतीक (उपाधियाँ आदि) उनसे विसंगत अपमान के सन्दर्भ में हमें अधिक शर्मिंदा करते हैं। और मैं अपने स्थान पर इन विशेष सम्मानों को झटक कर अपने देश वासियों के साथ खड़ा होना चाहता हूँ। ———–इन्ही कारणों ने मुझे दुखी ह्रदय से मजबूर कर दिया है कि मैं आज महामान्य जी को सत्कार और खेद सहित कहूँ कि मुझे सर की उपाधि से मुक्त किया जाए जो कि सम्राट द्वारा मुझे प्रदान की गयी थी।”- राष्ट्र धर्म’ जुलाई 2021 से साभार
इस घटना ने राष्ट्रवादियों के ह्रदय को विदीर्ण कर दिया। आँखों में रक्त उतरना स्वाभाविक था। बहुत से साहित्यकारों ने अपनी कलम के माध्घ्यम से इसे अभिव्यक्ति दी। कवि कुल शिरोमणियों की श्रृंखला की कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित ‘जालियाँ वाले बाग़ में बसन्त‘ के शब्द और भाव आपकी झोली में रखता हूँ –
शोध की दुनियाँ में समंक एकत्रित करने के बहुत से लोकप्रिय तरीके हैं उन्हीं तरीकों में प्रश्नावली और अनुसूची भी आते हैं यद्यपि इन दोनों ही विधियों में बहुत कुछ प्राकृतिक समानता है। इसी कारण कुछ लोगों को इनमें अन्तर करने में परेशानी महसूस होती है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से दोनों में बहुत सी समानताएं दीख पड़ती हैं। तकनीकी दृष्टि से सूक्ष्म विश्लेषण दोनों के अन्तर का प्रगटन करता है जिसे इस प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है। –
प्रश्नावली/Questionnaire
अनुसूची/Schedule
01-प्रश्नावली को विविध तरीकों से लोगों के पास भेजने की व्यवस्था की जाती है इसे मेल की माध्यम से, डाक से , वाहक के माध्यम से भेजकर उन लोगों तक पहुँचाया जाता है जिनका दृष्टिकोण लेना होता है।
01-अनुसूची को शोधकर्त्ता या उसके प्रगणक के द्वारा ही लेकर जाया जाता है वह दृष्टिकोण जानकार स्वयं भरता है। आवश्यकता होने पर अनुसूची के प्रश्नों या तथ्यों की व्याख्या भी की जाती है।
02-समंकों को एकत्रित करना प्रश्नावली के माध्यम से सस्ता पड़ता है केवल प्रश्नावली को छपवाने का व उसे विविध माध्यम से मंतव्य तक पहुँचाना पर खर्चा करना होता है जो अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है।
02-अनुसूची द्वारा समंकों का एकत्रीकरण अपेक्षाकृत महँगा पड़ता है क्योंकि प्रगणकों को प्रशिक्षण देना या खुद जाकर समंक एकत्रित करने में अच्छाखासा खर्चा हो जाता है।
03 – प्रश्नावली को हम छोड़कर चले आते हैं इसे किसके द्वारा भरा जा रहा है निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। भ्रम की सम्भावना बनी रहती है।
03 -चूँकि अनुसूची हम स्वयं या हमारा प्रगणक खुद उसे पूछ पूछ कर भरता है तो ऐसे में प्रत्यक्ष समक्ष होने से कोई किसी तरह का भ्रम नहीं रह जाता।
04 -प्रश्नावली के बारे में यह सर्व विदित है कि यह जितनी भेजी जाती है उतनी लौटती नहीं। कई बार लोग जान बूझकर प्रश्नावली भरकर नहीं भेजते। बे मन से की गई आलसययुक्त प्रतिक्रिया भी सम्यक नहीं कही जा सकती।
04 -अनुसूची प्रगणक द्वारा भरे जाने के कारण ज्यादा प्रभावी बन पड़ती है सारे जवाब पाने की सम्भावना के उत्तरोत्तर नए आयाम प्राप्त होते हैं क्योंकि प्रगणक और उत्तर देने वाले आमने सामने होते हैं।
05 -प्रश्नावली का प्रयोग करने पर व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं हो पाता जिस माध्यम से प्रश्नावली भरने भेजी जाती है उसी माध्यम से मँगाई जाती है और व्यक्तिगत सम्पर्क सम्भव नहीं हो पाता।
05 – अनुसूची भरने तो प्रगणक स्वयं उपस्थित रहता है और उत्तरदाताओं के साथ सहज, सरल सम्पर्क स्थापित होता है।
06 – प्रश्नावली का प्रयोग करने वाले सभी शोधार्थियों को यह कटु अनुभव होता है कि इसके माध्यम से सम्पूर्ण प्रक्रिया गति नहीं पकड़ पाती और धीमी गति कभी कभी इतनी अधिक होती है कि प्रश्नावली वापस आने की आस भी धूमिल हो जाती है।
06 – अनुसूची का प्रयोग करने पर यह बाधा उपस्थित नहीं हो पाती। और समय पर परिणाम प्राप्त हो जाता है क्योंकि प्रगणक स्वयं सारे कार्य अपनी उपस्थिति में ही पूर्ण कर लेता है।
07 – प्रश्नावली विधि में हम न्यादर्श बड़ा ले सकते हैं क्योंकि इसका बड़े क्षेत्र में वितरण सम्भव होता है और दूरदराज के क्षेत्रों से भी समंक संग्रहण सम्भव हो जाता है।
07 – प्रगणकों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजना सम्भव नहीं हो पाता इसलिए व्यापक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी सम्भव नहीं हो पाता।
08 – प्रश्नावली का उपयोग करने पर अवलोकन विधि का प्रयोग सम्भव नहीं है।
08 -अनुसूची भरने के साथ अवलोकन विधि का प्रयोग निस्संदेह किया जा सकता है।
09 -प्रश्नावली विधि का प्रयोग करने के लिए यह परम आवश्यक है कि उत्तरदाता सहयोग की भावना से युक्त हो और पढ़ा लिखा हो।
09 – अनुसूची का प्रयोग करने पर यह आवश्यक नहीं रह जाता कि उत्तरदाता पढ़ा लिखा ही हो यदि वह निरक्षर होगा तब भी दृष्टिकोण का अंकन किया जा सकता है।
10 – प्रश्नावली के माध्यम से प्राप्त जानकारी अधूरी, अपर्याप्त, गलत, व सन्देहयुक्त होने का जोखिम बना रहता है। कई बार प्रश्नावली के आइटम ही समझ में नहीं आते और जवाब तय कर दिया जाता है।
10 -अनुसूची से प्राप्त जानकारी अधिक सटीक होती है क्योंकि प्रगणक प्रश्न समझ न आने पर स्पष्टीकरण देने के लिए मौजूद रहता है।
11 – प्रश्नावली की गुणवत्ता के साथ उसे आकर्षक बनाने का प्रयास भी करना पड़ता है आन्तरिक गुणवत्ता पर ही प्रश्नावली की सफलता निर्भर करती है।
11 -अनुसूची के परिणामों की विश्वसनीयता गणना करने वाले लोगों की ईमानदारी व क्षमता पर निर्भर करती है इसमें भौतिक रूप या साजसज्जा का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि इसे प्रगड़क द्वारा खुद भरा जाता है।
वैदिक काल से आज तक शिक्षा के क्षेत्र में अंतर दृष्टिगत होते रहे हैं जिस काल की जैसी आवश्यकता होती है शिक्षा उसी तरह के पथ प्रशस्त करती है लेकिन आज शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक प्रसार हुआ है और ज्ञान के विस्फोट जैसी स्थिति दृष्टिगत होने लगी है। शिक्षा के प्रसार के साथ इसकी गुणवत्ता का अवनमन चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। इस क्षेत्र में इतनी जटिल समस्याओं का प्रादुर्भाव हुआ कि उनका समाधान ऊँट के मुँह में जीरे के मानिन्द दिखने लगा।
आज सभी विज्ञ-जन यह महसूस कर रहे हैं कि उक्त समस्याओं का समाधान किसी एक विशेषज्ञ या किसी एक क्षेत्र विशेष द्वारा सम्भव नहीं है आज विविध विषयों के विषय विशेषज्ञ व विशेषज्ञों के विशेष समूह के समन्वित प्रयास से ही समस्या समाधान सम्भव है दूसरे शब्दों में अन्तर विषयक शोध विशेषज्ञों से समस्या समाधान में योग मिल सकता है।
अन्तर-विषयक का अर्थ / Meaning of inter disciplinary –
उदग्र अधिगम और सामानान्तर अधिगम के साथ आज हम अनेकों विषयों को परस्पर सम्बन्धित पाते हैं। अनुसन्धान के क्षेत्र में अन्तर विषयकता से आशय परस्पर सम्बन्धित विषय आधारित शोध विशेषज्ञों के समूह कृत शोध अध्ययनों से है। अतः विविध विषयों के शोध विशेषज्ञों द्वारा एक प्रयोजन को ध्यान में रखकर समस्या समाधान हेतु जो शोध अध्ययन किया जाता है। इस उपागम को अन्तर विषयकता या अन्तर विषयक उपागम (INTERDISCIPLINARY APPROACH) कहा जाता है।
परिभाषाएं / Definitions –
इसको पारिभाषित करते हुए शिक्षा शब्दकोष में कहा गया कि –
“आन्तरिक – विषयक उपागम अध्ययन की एक विधि है, जिसके द्वारा ज्ञान के अनेक पृथक पृथक क्षेत्रों से विशेषज्ञ अथवा श्रेष्ठ शोध कार्यकर्त्ता एक विशेष समस्या के परीक्षण में एक साथ लाये जाते हैं, जो सभी उन उपागमों के लिए प्रासंगिक हैं। “
“Inter – disciplinary approach is a method of study by which experts or the best research workers from many different fields of learning, are brought together in the examination of a particular problem, that is relevant to all their approaches.”
Dictionary of Education, p .311
शिक्षा आयोग ने अपने मत को स्पष्ट करते हुए कहा –
“विभिन्न संस्थानों और शिक्षक वर्ग के लिए पैटर्न्स के मध्य विषयों के नए संयोजन, सहयोग की नई विधियाँ इसके लिए आवश्यक होंगी। क्षेत्र अत्यंत विशाल है परन्तु उदाहरण के तौर पर हम एक क्षेत्र ‘शिक्षा‘ को उद्धृत कर सकते हैं। इसकी समस्याओं का उनकी समस्त जटिलताओं के साथ अध्ययन करने के लिए शिक्षा, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, तुलनात्मक धर्म, अर्थ शास्त्र, लोक प्रशासन और क़ानून के विभागों के मध्य अन्तर – विषयक उपागम आवश्यक हो जाता है।”
“This will need new combinations of subjects, new methods of cooperation between different institutions and new patterns of staffing. The field is vast But by way of illustration, we may refer to one field; education. For a study of its problems in all their complexity, an inter-disciplinary approach is needed between the departments of education, sociology, psychology, comparative religion, economics, public administration and law.”
Report of the Education Commission. P.319
अन्तर विषयक उपागम की विशेषताएं / Features of interdisciplinary approach –
01 – एक विषय विशेषज्ञ सक्षम नहीं / One subject expert is not competent – जटिल समस्या –
02 – विशेषज्ञों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता /Coordinated efforts of experts are required
03 – सामान कार्यविधि / Common methodology
04 – समन्वित विश्लेषण द्वारा परिणाम/ Results through integrated analysis
05 – विविध आवश्यक विषयों को पूर्ण सम्मान।/ Full respect for the diverse disciplines required.
06 – वैधता व विश्वसनीयता / Validity and reliability
07 – समन्वित प्रभावी अनुसन्धान प्रतिवेदन / Coordinated Effective Research Report
अन्तर विषयक उपागम से शैक्षिक शोध में लाभ
Benefits of interdisciplinary approach in educational research –
01 – समन्वित प्रयास से सूक्ष्म विश्लेषण सम्भव / Coordinated efforts make detailed analysis possible
02 – विशेषज्ञों की सहयोग भावना का विकास / Development of a spirit of cooperation among experts
03 – विशेषज्ञों के ज्ञान व अनुभव का लाभ /Benefit from the knowledge and experience of experts
04 – शिक्षा का व्यवस्थित अग्रसरण /Systematic advancement of education
05 – जटिल शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन/Study of complex educational problems
06 – शोध निष्कर्षों की विश्वसनीयता व वैद्यता /Reliability and validity of research findings
07 – शैक्षिक अनुसन्धान का समुन्नत स्तर /Advanced level of educational research
मानव की उत्तरोत्तर प्रगति में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योग है समाज में उठने वाली किसी भी समस्या के समाधान हेतु शिक्षा की और देखा जाता है और शिक्षा अपने अनुसंधान पर निर्भर करती है। शैक्षिक अनुसन्धान वह साधन है जो विवेक पूर्ण,व्यवस्थित अध्ययन के माध्यम से समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।
आज प्रत्येक क्षेत्र में सम्यक व व्यवस्थित शोध का आधार लेकर प्रगति की आधार शिला रखी जाती है बजट बनाने, नीति निर्माण,भविष्य के संसाधन विकास हेतु और विविध योजनाओं को उसके अंजाम तक पहुंचाने हेतु शोध की आवश्यकता महसूस की जाती है। शैक्षिक शोध की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयुक्त शोध शैक्षिक शोध कहा जाता है।
शैक्षिक शोध की परिभाषा / Definition of Educational Research –
विविध विद्वानों ने शैक्षिक शोध का अर्थ स्पष्ट करने हेतु अपने भावों को इस प्रकार गुम्फित किया है।
–जॉन डब्लू बेस्ट (John W Best) के अनुसार
“शैक्षिक अनुसंधान, शैक्षिक परिवेश में छात्र कैसे व्यवहार करते हैं ,के सिद्धान्तों के परीक्षण करने और विकास से सम्बन्धित है।”
“Educational research is concerned with the development and testing of theories of how students behave in an educational setting.”
प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री John W. Creswell (जॉन डब्ल्यू. क्रेसवेल) के अनुसार
“Educational research is a systematic and organized approach to asking questions, collecting and analyzing data, and effectively reporting findings to understand and improve educational practices and policies.”
“शैक्षिक अनुसंधान प्रश्न पूछने, डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने, तथा शैक्षिक प्रथाओं और नीतियों को समझने और उनमें सुधार करने के लिए निष्कर्षों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का एक व्यवस्थित और संगठित दृष्टिकोण है।”
आर डब्लू एम ट्रैवर्स (R.W.M.Travers) महोदय के अनुसार
“शैक्षिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जो शैक्षिक परिस्थितियों में व्यवहार विज्ञान के विकास की ओर निर्देशित हैं। ”
“Educational research is that activity which is directed towards development of science behaviour in educational situations.”
An introduction to Educational Research .(1954) p 5
शैक्षिक अनुसन्धान का क्षेत्र / Field of academic research –
जादू शब्द जब संसार में प्रचलित हो रहा होगा तब तक निश्चित से दो वर्गों का अभ्युदय हो चुका होगा एक वह जो इससे प्रभाव में आ जाए एक वह जो ट्रिक का प्रयोग करके सामने वाले भ्रमित कर सके। वास्तव में जब तक आवरण है और सच्चाई परदे में है विश्व उत्थान बाधित ही रहेगा। सारी सच्चाई को सामने लाने के लिए और तमाम समस्याओं का निदान शोध के आधार पर ही सम्भव है। आज हर क्षेत्र में समस्याएं विद्यमान है शिक्षा जगत भी इससे अछूता नहीं है। शिक्षा क्षेत्र की समस्याओं के निदान में शैक्षिक शोध में अपार सम्भावनाएं छिपी हैं। शैक्षिक अनुसंधान के विविध क्षेत्रों को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।
1 – शिक्षा दर्शन Educational Philosophy
2 – विविध स्तरीय परिक्षेत्र / Different Level Fields
3 – शिक्षा मनोविज्ञान / Educational Psychology
4 – मौलिकता विवेचन / Originality Discussion
5 – शिक्षा का इतिहास / History of Education
6 – शैक्षिक समाजशास्त्र / Educational Sociology
7 – तुलनात्मक शिक्षा / Comparative Education
8 – शैक्षिक प्रशासन / Educational Administration
9 – शैक्षिक मापन व मूल्यांकन /Educational Measurement and Evaluationशैक्षिक शोध का क्षेत्र कोई भी हो शोध अपना कार्य पूर्ण करता ही है शोध वह दिशाबोध है जो हमें सकारात्मक दिशा प्रदान करता है और हम समस्या के निदान तक पहुंचते हैं।
शैक्षिक शोध की आवश्यकता क्यों ?
Why is educational research needed? –
आज का शैक्षिक शोध कहीं भ्रमित हो गया है। शोध को सही दिशा देने के लिए जो शोध निर्देशक कार्य करा रहे हैं उनमें से कुछ भटक कर स्वार्थी हो गए हैं लेकिन शोध का स्तर कहीं दुष्प्रभावित हो रहा है। लेकिन सत्य स्थापन हेतु फिर भी शोध परमावश्यक है शोध का क्षेत्र व्यापक है और आज के भारत को सकारात्मक शोध की आवश्यकता है निम्न कारणों से शैक्षिक शोध की आवश्यकता है।
01 – ज्ञान परिमार्जन व विकास हेतु /For knowledge refinement and development
02 – उद्देश्य प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन / Important means of achieving the objective
03 – नवीन ज्ञान प्रसार हेतु / For spreading new knowledge
05 – अंतर्राष्ट्रीयता व सद्भावना हेतु /For internationalism and goodwill
06 – उद्देश्य प्राप्ति का व्यवहारिक साधन / Practical means of achieving the objective
07 – ज्ञान पिपासा पूर्ति का प्रमुख साधन / The main means of satisfying the thirst for knowledge
08 – कुशल प्रशासन हेतु / For Efficient administration
09 – अध्यापन की प्राण ऊर्जा स्थायित्व हेतु /For the stability of the life energy of teaching
10 – वैश्विक प्रगति के साथ सामञ्जस्य / Keeping pace with global progress.
11 – विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास हेतु /For the development of the feeling of universal brotherhood
सच मानो तो आज सत्य शोधक समाज की आवश्यकता है लेकिन भौतिकता की अन्धी दौड़ ने हमारी सोच पर आवरण चढ़ा दिया है जिससे सत्य की वास्तविक अनुभूति नहीं हो पा रही है। आशा की किरण आने वाले कल में सच्चा शोध ही हो सकता है।
मानव की प्रारम्भिक अवस्था से आज तक बहुत से परिवर्तन हुए हैं और यह परिवर्तन निरन्तर जारी हैं, विशिष्ट शोध पर्यवेक्षकों की अनुपस्थिति में स्वयम् अध्यापकों, विद्यार्थियों और विविध संस्थानों द्वारा किसी समस्या पर स्वयं शोध क्रिया सम्पन्न की जाती है क्रियात्मक अनुसन्धान के नाम से जानी जाती है। इसके माध्यम से हम अपने क्षेत्र, संस्थान, लोगों की विविध समस्याओं का अध्ययन कर समाधान व कारणों का अध्ययन करते हैं।
इस प्रकार का शोध शिक्षा के क्षेत्र में अपेक्षाकृत शोध का नया दृष्टिकोण है क्रियात्मक अनुसंधान में समस्या से जूझ रहे लोग स्वयं अपनी समस्या को समझने के क्रम में शोध करते हैं विशेषज्ञ की आवश्यकता महसूस नहीं की जाती। इस प्रकार का शोध क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से जाना जाता है। क्रियात्मक अनुसन्धान को भली भाँति समझने हेतु कुछ विद्वानों के दृष्टिकोण का अध्ययन करना सम्यक रहेगा।
क्रियात्मक अनुसन्धान की परिभाषाएं/ Definitions of Action research –
विविध विद्वानों ने तत्सम्बन्धी विविध आयामों को समेटते हुए अपने शब्दों को गुंथित कर जो विचार अभिव्यक्त किये हैं उनमें से कुछ प्रभावी अधिगम के दृष्टिकोण से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
जे डब्लू बैस्ट (J.W.Best) के अनुसार
“क्रियात्मक अनुसन्धान किसी सिद्धान्त के विकास की अपेक्षा तात्कालिक उपयोग पर केंद्रित रहता है। इसमें वर्तमान स्थानीय परिस्थितियों से सम्बन्धित वास्तविक समस्याओं पर ही बल दिया जाता है।”
“Action research is focused on the immediate application, not on the development of theory. It has placed its emphasis on a real problem- here and now in a local setting.” 1963,p.10
गुड (Good) महोदय के अनुसार
“क्रिया -अनुसन्धान शिक्षकों, निरीक्षकों और प्रशासकों द्वारा अपने निर्णयों और कार्यों की गुणात्मक उन्नति के लिए प्रयोग किये जाने वाला अनुसन्धान है।”
“Action research is research used by teachers, supervisors and administrators to improve the quality of their decisions and action.” p.464
मोले (Mouley) महोदय के अनुसार
“मौके पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान को, जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है। शिक्षा में साधारणतया क्रियात्मक अनुसन्धान के नाम से जाना जाता है। ”
“On the spot research aimed at the solution of an immediate problem is generally known in education as action research.” 1964 p.406
कोरे (Korey) महोदय के अनुसार
“शिक्षा में क्रिया अनुसन्धान, कार्य कर्त्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसन्धान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।”
“Action research in education is research undertaken by practitioners in order that they may improve their practices.” p.241
क्रियात्मक अनुसन्धान की समस्याएं / Problems of action research –
प्रशिक्षणार्थियों को यह जानना परम आवश्यक है कि क्रियात्मक अनुसन्धान हेतु विद्यालय के कौन से विषय हो सकते हैं ? उन्हें समस्या के नाम से जाना जाता है और इसकी विविध समस्याओं को क्रियात्मक अनुसन्धानका क्षेत्र भी कहा जा सकता है मोटे तौर पर कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है ये समस्याएं समय के साथ बदल जाएंगी कुछ नई भी उत्पन्न होंगी। विद्यालय परिक्षेत्र की समस्याओं को इस प्रकार कर्म दिया जा सकता है।
01 – बालमनोविज्ञान व व्यवहार सम्बन्धित समस्याएं / Child psychology and behavior related problems
02 – शिक्षण अधिगम सम्बन्धित समस्याएं / Problems Related to Teaching Learning
03 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं से सम्बन्धित समस्याएं / Problems related to co-curricular activities
04 – परीक्षा सम्बन्धित समस्याएं / Examination related problems
05 – अनुशासन सम्बन्धित समस्याएं / Discipline related problems
06 – विद्यालय प्रशासन सम्बन्धित समस्याएं / School administration related problems
07 – अध्यापक सम्बन्धित समस्याएं / Teacher related problems
08 – अभिभावक दखलन्दाजी सम्बन्धित समस्याएं / Problems related to parent interference
विद्यालय में क्रियात्मक अनुसन्धान का प्रयोजन / Purpose of action research in school –
क्रियात्मक अनुसन्धान का प्रयोजन अलग अलग संस्थाओं हेतु उनकी आवश्यकता के दृष्टिकोण से भिन्न हो सकता है। सामान्यतः इसका विविध तत्सम्बन्धी क्षेत्रों में उन्नयन ही है। विविध विज्ञ जनों के विचारों के आधार पर सामान्यतः यह प्रयोजन कहे जा सकते हैं।
01 – विद्यालयी वातावरण में सिद्धान्तों का परीक्षण / Testing of theories in school environment
02 – प्रजातन्त्रात्मक मूल्यों का स्थापन / Establishment of democratic values
03 – विद्यालय संगठन व व्यवस्था सुधार / Improvement of school organization and system
04 – विद्यालय के चेतना तत्वों का सामान्य उन्नयन / General upgradation of school consciousness elements
05 – प्रधानाचार्य, प्रबन्धक, निरीक्षक, अध्यापकों व अन्य कर्मचारियों को उत्तर दायित्व के प्रति सजग करना / Making the principal, manager, inspector, teachers and other employees aware of their responsibilities
06 – जब जागो तब सवेरा का व्यावहारिक प्रयोग। Practical use of Jab Jago Tab Savera.
07 – विद्यालय क्रियाओं में सुधार / Improvement in school activities
08 – सामूहिक कार्यों को सकारात्मक दिशा बोध / Positive direction to collective work
क्रियात्मक अनुसंधान के पद / Steps of Action Research –
क्रियात्मक अनुसन्धान से वांछित फल प्राप्त करने के लिए यह परमावश्यक है कि समस्त आवश्यक पदों पर गम्भीरता पूर्वक कार्य किया जाए। इन पदों को भली भाँति जानने जानने समझने की आवश्यकता है जिन्हे इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।
01 – समस्या को स्पष्ट रूपेण समझना / Understand the problem clearly
02 – कार्य प्रस्तावों पर गहन विमर्श / In-depth discussion on work proposals
03 – उद्देश्य व परिकल्पना / Purpose and Hypothesis
04 – तथ्य संग्रहण व क्रियात्मक कार्यक्रम / Fact gathering and action plan
05 – विश्लेषण व परिणाम / Analysis and results
06 – समस्त क्रियात्मक कार्य का मूल्याङ्कन / evaluation of overall performance
07 – परिणाम का प्रचार प्रसार / Dissemination of results
क्रियात्मक अनुसंधान का महत्त्व / Importance of Action Research –
हर समाज के अपने नियम, रीति रिवाज और मान्यताएं होती है और इस क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों पर इसका प्रभाव परिलक्षित होता है। संस्थान यान्त्रिक न होकर धरातल पर व्यावहारिक रूप से जुड़े रहें। इस हेतु क्रियात्मक अनुसन्धान और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं आइये इसके महत्त्व पर विचार निम्न बिन्दुओं के आलोक में करते हैं।
1- संस्थान में सुधार का महत्त्व पूर्ण आलम्ब / An important pillar of institutional reform
2 -जनतन्त्रात्मक मूल्य संरक्षक / Guardians of democratic values
3 – यान्त्रिक की जगह व्यावहारिक / Practical instead of mechanical
4 – दैनिक अनुभव से लाभ उठाने हेतु प्रेरक / Motivation to benefit from everyday experience
5 – विद्यालयी शिक्षा के समस्त अंगों के सकारात्मक उत्थान में सक्षम / Capable of positive upliftment of all aspects of school education
6 – विद्यालय का समाज के लघु रूप में स्थापन / Establishing school as a miniature society
7 – छात्रों का सर्वांगीण विकास / All round development of students
8 – परस्पर प्रेम, सहयोग, सद्भावना वृद्धि / Increase in mutual love, cooperation and goodwill
9 – विज्ञान सम्मत विधियों को प्रश्रय /Promotion of scientific methods
क्रियात्मक अनुसन्धान की महत्ता सर्व विदित है इसे विविध विद्यालयों द्वारा अपनाया जाना आज की आवश्यकता है इसकी महत्ता को समझते हुए कोरे (Corey)महोदय ने उचित ही कहा है –
“हमारे विद्यालय तब तक जीवन के अनुकूल कार्य नहीं क्र सकते हैं, जब तक शिक्षक, छात्र, निरीक्षक, प्रशासक और विद्यालय संरक्षक इस बात की निरन्तर जाँच न करें कि वे क्या क्र रहे हैं। इसी प्रक्रिया को मैं क्रिया अनुसंधान कहता हूँ।”
”Our schools cannot function sustainably unless teachers, students, inspectors, administrators and school patrons constantly examine what they are doing. This process is what I call action research.”