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शिक्षा

शिक्षक स्वायत्तता और जवाबदेही (Teacher autonomy and accountability)

April 24, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षक स्वायत्तता से आशय –

शिक्षक स्वायत्तता का सीधा सादा अर्थ है शिक्षक को उसके निमित्त कार्यों में स्वतन्त्रता। शिक्षक के दायित्व बदलते समय के साथ सामाजिक मांगों के अनुरूप परिवर्तित होते रहते हैं और सारी समस्याओं के निदानीकरण हेतु शिक्षा की और देखा जाता है जिसका निर्वहन शिक्षक को करना होता है शिक्षक को स्वतंत्र चिंतन के साथ स्वायत्त रूप से कार्य करने की आवश्यकता यहीं से पारिलक्षित होने लगती है। शिक्षक स्वायत्तता वस्तुतः अधिगम को प्रभावी व व्यावहारिक बनाने के  लिए  विषयवस्तु की आवश्यकतानुरूप शिक्षक द्वारा बिना किसी बाहरी दवाब से प्रभावित हुए कार्य को परिणति तक पहुँचाने से है।

            यह कोई ऐसी निश्चित सत्ता नहीं है जो कुछ लोगों के पास होती है और कुछ के पास नहीं यह संस्थान,पाठ्यक्रम ,राज्य तन्त्र से सीधे प्रभावित होती है वैतनिक अध्यापक निर्धारित पाठ्यवस्तु को अपनी क्षमता के अनुसार अधिगम कराने हेतु शिक्षण विधियों व सम्प्रेषण के लिए स्वायत्त है। . संजीव बिजल्वाण महोदय ने प्रवाह मई -अगस्त 2015 में ‘अध्यापक स्वायत्तता ‘ नमक लेख में लिखा –

“बदलते सन्दर्भों, मायनों,व भूमिकाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण बात हे शिक्षक और शिक्षार्थी की स्वायत्तता। सीखने और सिखाने की प्रक्रिया तभी लचीली और सन्दर्भ व परिवेश आधारित होगी जब शिक्षक इसके लिए स्वायत्त होगा। ” 

अध्यापक स्वायत्तता से आशय विविध परिसीमाओं के अन्तर्गत शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु शिक्षक द्वारा स्वायत्त रूप से कार्य करने से है।

शिक्षक स्वायत्तता और विविध काल –

a – वैदिक काल

b – बौद्ध काल

c – मुस्लिम काल

d – ब्रिटिश शासन काल

e – आजाद भारतीय कालावधि

आज का अध्यापक एक व्यवस्था (System ) का एक हिस्सा है जो राज्य द्वारा संचालित होता है और यह राजनीति से इतना अधिक प्रभावित है की गलत तथ्यों ,गलत इतिहास व अनावश्यक परोसने से भी नहीं चूकता। व्यवस्था है किसी हाथ में और दिखती दूसरे हाथों में है।

शिक्षक स्वायत्तता का यथार्थ –

जब समाज व राष्ट्र के उत्थान हेतु पाठ्यक्रम निर्माण से लेकर अधिगम तक के सम्पूर्ण कालन्तराल पर विविध विज्ञ अध्यापकों के स्वतन्त्र मौलिक विचारों की छाप दिखाई देने लगेगी कुछ लोगों के निहित स्वार्थों से ऊपर उठ शिक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था एक स्वायत्त पक्षपात पूर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठ राष्ट्रवाद के आलोक में निर्णय लेने में सक्षम होगी। जब वास्तविक अध्यापक शिक्षा की विविध नीतियों के निर्माण से लेकर परिणाम की प्राप्ति तक प्रभावी भूमिका बिना किसी बाहरी दवाब के निभाएगा। वास्तविक अर्थों में शिक्षक स्वायत्तता होगी।

शिक्षक स्वायत्तता व जवाबदेही –

आजाद भारत की सारी व्यवस्थाएं न तो शिक्षा के साथ न्याय कर पाईं और न सम्पूर्ण अध्यापकों के साथ, सभी राजनैतिक पार्टियां शिक्षा के दायित्व से अपना हाथ खींचने में लगीं रहीं। परिणाम यह हुआ कि लगभग 80 %शिक्षा व्यवस्था व्यक्तिगत हाथों में पहुँचकर व्यक्तिगत लाभ का साधन मात्र बनकर रह गयीं। अध्यापक बेचारा बन गया उसके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे और सारी स्वायत्तता अपने सच्चे अर्थ खो बैठी। वर्तमान भारत में सम्पूर्ण शिक्षा की व्यवस्था की जिम्मेदारी का निर्वहन निम्न माध्यम से सम्पन्न होता है और इनमें स्वायत्तता व जवाबदेही की स्थिति में अन्तर स्पष्ट द्रष्टव्य है –

1 – सरकारी संस्थाएं

2 – गैर सरकारी संस्थाएं

1 – सरकारी संस्थाएं –

इसमें सरकारी व अर्धसरकारी संस्थान आते हैं। माध्यमिक स्तर तक अलग अलग राज्यों के बोर्ड व्यवस्थाओं को संभालते हैं सीधे शासन की नीतियों के अनुरूप कार्य सम्पादित होते हैं बहुत बड़े तंत्र के रूप में इनका विकास हुआ है केन्द्रीय व राज्य स्तर पर विभिन्न नियमों विनियमों के आधार पर कार्य सम्पादित होता है।

और अध्यापक स्वायत्तता अलग अलग नियामक सत्ताओं द्वारा कार्य करने के कारण बाधित होती है चूंकि स्वायत्तता व सामञ्जस्य का स्तर निम्न है अतः जवाबदेही का स्तर भी बहुत प्रभावी नहीं बन पड़ा है। इन शिक्षण संस्थाओं में बहुत अधिक परिवर्तन की आवश्यकता है मर्यादित स्वायत्तता व प्रभावी जवाबदेही की उचित व्यवस्था न होने के कारण ,मोटा वेतन देने के बाद भी इनके विश्व स्तरीय बनाने में संदेह है।

 उच्च शिक्षा के स्तर पर स्थिति अत्यन्त दयनीय है इसमें प्रश्नपत्र निर्माण से लेकर उनके मूल्याँकन तक में अध्यापक भागीदारी दिखाई देती है जितने भी अतिरिक्त लाभ के कार्य हैं बखूबी निभाए जाते हैं सिर्फ कक्षा शिक्षण के, अधिकाँश विद्यार्थी अधिकाँश जगह अनुपस्थित रहते हैं नाम मात्र की कक्षागत क्रियाएं होती हैं। शासन के साधनों का उपयोग कम दुरूपयोग अधिक देखने को मिलता है महाविद्यालय से लेकर विश्विविद्यालय तक आमूलचूल परिवर्तन की दरकार है कोई ऐसा विश्वविद्यालय खोजना मुश्किल होगा जहाँ दलाल न हों। अध्यापक स्वायत्तता, शिक्षण वातावरण के अभाव में कुप्रभावित है जवाबदेही के अभाव का प्रभाव कार्यों पर देखा जा सकता है नाम मात्र के लोग जिम्मेदारी से कार्य निर्वहन करते हैं व्यवस्था भ्रष्ट आचरण से प्रभावित दिखती है।

2 – गैर सरकारी संस्थाएं –

शासन की नीतियों के कारण ये संस्थाएं सरकारी संस्थाओं की तुलना में तीन से चार गुने विद्यार्थियों के अधिगम की व्यवस्था कर रही हैं कुछ समितियों द्वारा भी इनका संचालन किया जा रहा है लेकिन इन पर शासन द्वारा निर्धारित संस्थाओं का अप्रत्यक्ष नियंत्रण रहता है ये स्ववित्त पोषित संस्थान, विविध कार्यों हेतु शासन के संस्थानों के अनुरूप कार्य करने को बाध्य होते है जिनके प्रतिनिधि हर कार्य के बदले भौतिक लाभ लेते हैं  प्रायोगिक परीक्षाओं में शतप्रतिशत प्रथम श्रेणी इन्हीं की कृपा दृष्टि का परिणाम है।

अध्यापकों के साथ भेदभाव पूर्ण दृष्टिकोण के कारण न तो इन संस्थाओं को शासन से उचित लाभ मिल पाता है और न इनके अध्यापकों को। समान कार्य के लिए असमान वेतन प्राप्त करने के साथ अल्प वेतन भोगी अध्यापक आयाराम गयाराम की भूमिका में अधिक देखा जाता है। इनकी पूर्ण स्वायत्तता की तो कल्पना ही व्यर्थ है  हाँ अधिगम को प्रभावी बनाने के लिए ये स्वायत्त रूप निर्णय लेते हैं और यह तुलनात्मक रूप से अधिक जवाब देह होते हैं। प्रबन्धन के सीधे सम्पर्क में रहने के कारण ये कार्य दायित्व निर्वहन के प्रति अधिक सजग रहते हैं।

            यदि समग्र रूप से विवेचना की जाए तो यह मानना ही होगा कि कुछ अच्छे लोगों ने ही सम्पूर्ण व्यवस्था को सही दिशा दे रखी है और ये सब जगह हैं इनकी संख्या सीमित है और ये अपने कार्य के प्रति उत्तरदायित्व पूर्ण दृष्टिकोण रखते हैं और जवाबदेही स्वीकार करते हैं। राष्ट्रोत्थान हेतु सीमित शिक्षक स्वायत्तता व जवाबदेही शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर सुनिश्चित करना परम आवश्यक है।

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विविध

आत्म विश्वास/SELFCONFIDENCE

April 22, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आज का मानव जानता बहुत कुछ है पर मानता बहुत कम है। सफलता हर कोइ चाहता है पर प्रयास ओछे रह जाते हैं कभी आत्म विश्वास नहीं जग पाता और कभी अति आत्मविश्वास असफलता का पर्याय बन जाता है। आखिर मानव अपने सपने, अपने मन्तव्य, अपने गन्तव्य तक क्यों नहीं पाते। कभी सारा जीवन किस एक तत्व की कमी के कारण अभिशप्त सा दीख पड़ता है। भाग्य का ताला आखिर खुलता किस चाभी से है जब आप अपने कर्म बोध को जगाकर विश्लेषण करते हैं तब पाएंगे की सफलता की कुञ्जी है आत्मविश्वास । आइए जानते हैं कि किन आठ तत्वों से आत्मविश्वास का शीर्ष स्तर छूकर जीवन को सफल बनाया जा सकता है।

सक्रिय जीवन चर्या (Active Life Style) –

मानव का शरीर गुब्बारे की तरह फूलने के लिए नहीं बना है वह पसीना बहाकर शुचिता कर्मठता का अनुगमन कर लक्ष्य प्राप्ति का साधन है हमेशा ऋगवेद पर आधारित ऐतरेय ब्राह्मण के शब्द ‘चरैवेति चरैवेति’ चलते रहो चलते रहो का उद्घोष कर हमेशा हमें प्रेरणा देते हैं की तन को ,मन को,मस्तिष्क को हमेशा सक्रिय रखना है। हमारे और लक्ष्य के बीच का अन्तराल कम होता चला जाएगा वह महिला पुरुष का अन्तर नहीं देखता पुरुषार्थ की सक्रियता देखता है। इसीलिये स्वामी विवेकानन्द ने कठोपनिषद से दिशाबोधक  उद्घोष किया –

“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।” अर्थात् उठो, जागो, और ध्येय की प्राप्ति तक मत रूको।

अतः अवश्य मानें – जीवन है, चलने का नाम …

सद सङ्गति (Good Fellowship) -आत्म विश्वास का सूर्य तब जाग्रत स्थिति में होता है जब उच्च ऊर्जाओं का समन्वयन होता है इसीलिये उन लोगों का साथ करें,उन लोगों को मॉडल या आदर्श के रूप में स्वीकारें जिनके विचार आपके आत्मिक उत्थान में योग दे सकें यह मुहावरा तो आपने अवश्य सुना होगा कि -खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। आप जैसा बनना चाहते हैं वैसे लोगों का साथ करें।

संयमित जिद –

 जी हाँ जिद जरूरी है, उत्थान के लिए, उत्कर्ष के लिए, प्रगति के लिए इतना जिद्दी तो अपने आप को बनाना होगा कि जो ठान लिया, जो उद्देश्य बना लिया, जो लक्ष्य तय कर लिया उस उद्देश्य को उचित साध्यों से प्राप्त करके रहूँगा और अपने कम्फर्ट जॉन का परित्याग तत्परता से करूंगा।

     याद रखें सफलता का पथ दुरूह होता है कण्टकाकीर्ण होता है ,भयावह दीख पड़ता है पर आत्म विश्वासी उसी पथ का पथिक होता है और अन्ततः विजिट होता है।

            हमें अपनी जिद की पूर्णता हेतु सैद्धान्तिक धरातल की जगह यथार्थ के कठोर धरातल पर संयमित होकर चलना पड़ेगा। किताबी सैद्धान्तिक धरातल पर तैरना सीखें, सुन्दर नृत्य करें, व्यापार में शिखर छुएं आदि सम्भव नहीं है अतः व्यावहारिक कठोर धरातल पर पूर्ण अनुशासन से अपनी मर्यादित जिद पूर्ण करने हेतु उतरना ही होगा। फल के परिपक्व होने में उसमें तीन परिवर्तन परिलक्षित होते हैं वह नम्र हो जाता है , उसमें मिठास आ जाती है, तीसरे उसका रंग बदल जाता है। आत्म विश्वास की परिपक्वता में मानव में इसी परिवर्तन के लक्षण दीखते हैं।

आस्था –

विश्वास रखें आप सफल होंगे,जीवन की छोटी छोटी सफलताओं, उपलब्धियों, प्रशंसा की स्मृतियों को कुरेदकर स्वस्थ धरातल तैयार करें। यदि बचपन के डगमगाने वाले कदम दौड़ने में समर्थ हो सकते हैं तो हमारा आस्था का अवलम्ब, विजय पथ का निर्माण अवश्यम्भावी कर सकता है शङ्कर के उपासक हर हर महादेव, देवी के उपासक जय भवानी के उद्घोष से अन्य मतावलम्बी अपने अपने इष्टों को याद कर जाग्रत स्थिति में आ जाते हैं। सीधे चेतना के अनंत सागर से अविरल परवाह को निरंतरता मिलाती है ऊर्जा के अजस्र स्रोत से आस्था हमको जोड़ती है।

संघर्षशील प्रवृत्ति –

विश्वास रखें। आप ईश्वर की अमूल्य कृति हैं। हम सभी का अस्तित्व किसी न किसी उद्देश्य से जुड़ा है सपनों को साकार करने के लिए मानस में  विचारों के अन्धड़ चलते हैं संघर्ष के विभिन्न उपादान तय करते समय याद रखें समुद्र मन्थन से विभिन्न रत्नों की प्राप्ति हो सकती है तो हमारा चिन्तन, मंथन,द्वन्द संघर्षशील जुझारू प्रवृत्ति अन्ततः हमें सफल बना आत्म विश्वास में वृद्धि सुनिश्चित करेगी। इसी दिशा में मेरी कुछ पंक्तियाँ आपको समर्पित हैं –

जीवन की धूप छाँह, नया मार्ग देती है,

पत्थर, कण्टक,अग्नि संताप हरलेती है,

मार्ग खोज देते हैं, उन्नति, उत्कर्ष का

संघर्षशील प्रवृत्ति अन्ततः तार देती है।      

उत्तम स्वास्थय –

स्वस्थ शरीर स्वस्थ मस्तिष्क का आधार है और आत्म विश्वास का वृक्ष उत्तम स्वास्थय रूपी जड़ों पर विकास के सोपान तय करता है जितने भी प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं सभी ने तमाम व्यस्तताओं के बीच स्वास्थय को संभाले रखने के क्षमता भर प्रयास अवश्य किये हैं। भारतेन्दु हरिश चन्द्र, स्वामी विवेका नन्द, राहुल सांकृत्यायन अपने अल्प स्वस्थ जीवन में जो ज्योति बिखेर गए हैं वह युगों तक हमारा मार्ग दर्शन करेगी।

व्यक्तित्व सुधार –

आज गुणवत्ता प्रबन्धन के युग में व्यक्ति का व्यक्तित्व कार्य की सफलता सशक्त पृष्ठभूमि तैयार करता है कार्य की निरन्तर सफलताएं जो तेज जो ओज पैदा करती हैं वह सञ्चित कर्मों का योग होता है। रामधारी सिंह दिनकर जी ने कहा है –

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके

पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के

हीन मूल की ओर देख जग गलत करे या ठीक

वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।

खुश रहें खुश रहने दें –

यह सर्व विदित है कि जो जैसा करता है उसे वैसा फल मिलता है तो हम सबके लिए खुशियों का आधार बनाएं इससे हम पर भी खुशियां बरसेंगी और उससे आलोकित पथ ही तो आत्मविश्वास हेतु सर्वोत्कृष्ट पथ होगा। चेहरे पर हमेशा विजेता वाली मुस्कान रखें आनन्द में मगन हो सकारात्मक निर्णय लें क्रोध को तिरोहित करें।हमारी खुश रहो और रहने दो की मूल भावना आत्मविश्वास का ऐसा प्रासाद खड़ा करेगी जो चिर स्थाई होगा। 

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शिक्षा

आत्मअभिव्यक्ति/Self Expression

April 18, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आत्म अभिव्यक्ति से आशय (MEANING OF SELF EXPRESSION )-

आत्म अभिव्यक्ति एक महत्त्वपूर्ण व कम व्याख्यायित शब्द है हिन्दी भाषा में आत्म शब्द स्व का परिचायक है और अभिव्यक्ति का आशय सरल शब्दों में प्रगटन से है। विकीपीडिया के अनुसार : –

 “अभिव्यक्ति का अर्थ विचारों के प्रकाशन से है व्यक्तित्व के समायोजन के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अभिव्यक्ति को मुख्य साधन माना है । इसके द्वारा मनुष्य अपने मनोभावों को प्रकाशित करता तथा अपनी भावनाओं को रूप देता है।”

साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि अभिव्यक्ति से आशय प्रगटन से है और स्वयम का प्रगटन चाहे वह किसी भी माध्यम से हो,आत्म अभिव्यक्ति कहलाता है।

आत्म अभिव्यक्ति के प्रकार (TYPES OF SELF EXPRESSION)-

विविध विद्वानों ने इसे विविध प्रकार से विवेचित किया है जिससे इसका स्वरुप जटिल हो गया है लेकिन मुख्य रूप से इसके प्रकारों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है। –

1 – शाब्दिक

 (a )- लिखित

 (b) – मौखिक

2 – अशाब्दिक -समस्त कलाएं

3 – चेतन शारीरिक भाषा  

आत्म अभिव्यक्ति को सुधारने के उपाय   (Ways to improve self expression) –

आत्म अभिव्यक्ति को सुधारने के उपायों को समझने हेतु यह आवश्यक है कि आत्म अभिव्यक्ति को प्रभावित करने वाले कारक  (TYPES OF SELF EXPRESSION) की समझ विकसित करने के साथ निम्न बिंदुओं पर गहनता से सम्पूर्ण क्षमता भर ध्यान दिया जाए। 

शारीरिक भाषा (Body Language) में सुधार हेतु वे सभी प्रयास सम्मिलित किये जाने चाहिए जो कौशल विकास से सम्बंधित हैं।

अशाब्दिक अभिव्यक्ति हेतु निरन्तरता ,जिज्ञासा, धैर्य, क्षमता सम्वर्धन की अनवरत साधना परमावश्यक है।

  आत्म अभिव्यक्ति को प्रभावी बनाने हेतु डॉ ० सतीश बत्रा जी का मानना है कि सम्प्रेषण या अभिव्यक्ति में निम्न का विशेष संज्ञान लिया जाए –

1 – अधिक

2 – अनावश्यक

3 – अप्रिय

4 – अप्रासंगिक

5 – असमय

6 – असम्बन्धित

7 – अपात्र

साथ ही बत्राजी प्रभावी अभिव्यक्ति हेतु KISSSSS पर विशेष जोर देते हैं जिसका आशय है –

K – keep

I – it

S – Simple

S – Short

S – Straight

S – Sense full 

S – Strength of evidence

यानि कि तथ्यों को सम्प्रेषित करने में बात को सरल संक्षिप्त सीधा सार्थक व प्रभावी तरीके से रखा जाए।

अन्त में अध्यापकों से मैं विशेष रूप से कहना चाहूँगा कि वे यदि निम्न पर ध्यान देंगे तो अच्छी आत्म अभिव्यक्ति कर पाएंगे –

T – Talent

E – Evaluation before communication

A – Apologize for mistakes

C – Confusion Removal

H – Harmony

E – Effectiveness

R – Realistic Approach

 वस्तुतः यह तथ्य सर्व विदित है कि जहां चाह वहाँ राह ,यदि आप पूरे आत्म विश्वास से आत्म अभिव्यक्ति प्रभावी बनाने का प्रयास करेंगे तो लक्ष्य की निकटता महसूस करेंगे और जल्दी आपका सपना साकार होगा।

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काव्य

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बूढ़े तोते को कुछ भी रटाते रहो,

ये फितरत है उसकी रटेगा नहीं ।

राजे दिल यूँ कितने छिपाते रहो

मेरा दावा है हमसे छिपेगा नहीं ।

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।1।

तुम पानी पर बरछी चलाते रहो,

वो रवानी है उसमें फटेगा नहीं।

तुम तो चेहरे पे चेहरे लगाते रहो,

जो सच है वो हमसे छिपेगा नहीं। 

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।2।

हम लिखते रहें तुम मिटाते रहो,

सच तो सच है फिर भी मिटेगा नहीं।

हम जलाते रहें तुम बुझाते रहो,

भोर का सूर्य है अब छिपेगा नहीं।   

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।3।

चाहे कितने भी काँटे बिछाते रहो,

काफिला प्यार का अब रुकेगा नहीं।

अमन की बस्तियाँ तुम जलाते रहो,

ज्वार संचेतना का रुकेगा नहीं ।    

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।4।

तुम दामन को दागी बनाते रहो,

यह सिलसिला अब टिकेगा नहीं।

तुम सदा घाव पर घाव लगाते रहे,

इम्तिहाँ हो गई अब सहेगा नहीं।  

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।5।

मधुर रिश्तों का राग ‘नाथ’ गाते रहे,

अब जाकर के समझे फबेगा नहीं।

मीठी बातों से उसे समझाते रहे

भूत लातों का है,वो समझेगा नहीं।      

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं।6। 

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शिक्षा

पाठ्यक्रम मूल्याँकन के मानदण्ड और प्रक्रिया /CRITERIA AND PROCESS OF CURRICULUM EVALUATION

April 15, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षा की त्रिमुखी प्रक्रिया का और अध्यापक व विद्यार्थी के बीच सम्वाद का प्रमुख साधन पाठ्यक्रम ही है। यह इतना अधिक महत्त्वपूर्ण है कि इसके बिना शैक्षिक प्रगति और उसकी क्रमबद्धता की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती। सम्यक पाठ्यक्रम मानव जाति की प्रगतिशीलता का आधार है इसलिए पाठ्यक्रम का कुछ मानदण्डों पर खरा उतरना परमावश्यक है।

पाठ्यक्रम मूल्याँकन के मानदण्ड (CRITERIA  OF CURRICULUM EVALUATION) –

चूँकि पाठ्यक्रम विद्यार्थी के अधिगम का आधार होने के साथ उसके व्यवहार परिवर्तन का भी प्रमुख आलम्ब है अतः यह परम आवश्यक है की उसे निम्न मानदण्डों को अवश्यमेव अपने में समाहित करना चाहिए। पाठ्यक्रम मानदंडों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं।

1 – विश्वसनीयता (Reliability)

2 – वैधता (Validity)

3 – क्रमबद्ध सम्बद्धता (Serial affiliation)

4 – सामन्जस्यता (Harmony)

5 – व्यावहारिकता (Practicality)

6 – लोचशीलता (Elasticity)

पाठ्यक्रम मूल्याँकन की प्रक्रिया (PROCESS OF CURRICULUM EVALUATION) –

पाठ्यक्रम का निर्माण शिक्षा के उद्देश्यों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि इससे अधिगम की सुगमता व व्यवहार में परिवर्तन के गुण की भी अपेक्षा की जाती है ऐसी स्थिति में जाहिर सी बात है कि पाठ्यक्रम के मूल्यांकन की प्रक्रिया शिक्षा व मानव व्यवहार के व्यापक परिदृश्य से सम्बन्ध रखती है। पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के माध्यम से ही यह ज्ञात होता है कि कोई अपने निर्माण का उद्देश्य कहाँ तक पूर्ण करने में सक्षम है। अतः पाठ्यक्रम मूल्यांकन की प्रक्रिया निम्न सोपानों से होकर गुजरती है।

1 – शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति

2 – शैक्षिक स्तर से समन्वयन

3 – प्राप्त अधिगम अनुभव का विवेचन

4 – व्यावहारिक सक्रियता में परिवर्तन

5 – विद्यार्थियों हेतु सार्थकता

6 – अधिगम स्थानान्तरण से अनुकूलता

7 – व्यावहारिक जीवन में उपादेयता

8 – ज्ञानात्मक व भावात्मक पक्ष की प्रबलता

            वस्तुतः पाठ्य क्रम मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है जो एक चक्र पाठ्यक्रम नियोजन -पाठ्यक्रम प्रस्तुतीकरण -विकास प्रक्रिया -मूल्यांकन तक पहुँचती है तत्पश्चात पुनः शुरू हो जाता है  पुनः पाठ्यक्रम नियोजन -पुनः पाठ्यक्रम प्रस्तुतीकरण -पुनः विकास प्रक्रिया -पुनः मूल्यांकन।

क्योंकि मानव की प्रगति काल के सापेक्ष होती है अतः एक बार का मूल्यांकन हर काल का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

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शिक्षा

माह भर में परीक्षा की तैयारी कैसे करें. How to prepare for the exam in a month?

April 10, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आज जहाँ कुछ बच्चे जान बूझ कर पढ़ने से जी चुराते हैं वहीं कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो सचमुच पढ़ना चाहते हैं और परिस्थितियाँ विपरीत हैं। कुछ बच्चे परिवर्तित स्थिति से साम्य बनाकर अपने अभीप्सित प्राप्त करना चाहते हैं।चाहे कारण कोई रहा हो कुछ बच्चों का समय  रेत की तरह हाथ से फिसल गया है  और मात्र एक माह शेष है और उनकी बलवती इच्छा।

सबसे पहले इन सभी की सकारात्मक ऊर्जाओं का वन्दन ,उक्त सारी परिस्थितियाँ अपने विद्यार्थियों, चाहे वो कहीं भी हैं से मुझे मिली हैं उन सभी विद्यार्थियों में से चुने हुए 10 प्रश्न और क्षमता भर उनके उत्तर देने का प्रयास करता हूँ आशा है सभी को जवाब मिल जाएगा। सामान परिस्थिति वाले देश के अन्य अधिगमार्थियों को भी लाभ मिलेगा। वादे के अनुसार किसी भी नाम का उच्चारण नहीं करूंगा ?

प्रश्न – मेरे परिवार का गुजारा एक दूकान से चलता है पिताजी की अस्वस्थता के कारण मैं दूकान पर बैठता हूँ प्रातः 10 बजे सुबह से रात्रि 8 बजे तक का समय दूकान के कार्यों में लग जाता है। परीक्षा की तैयारी कैसे हो ?

उत्तर – ये सही है कि बारह घण्टे कार्य के बाद थकान होती है आप दूकान से आकर अपने आप को तारो ताजा करें स्नान अनुकूल लगे तो किया जा सकता है खाइये पीजिए थोड़ा बहुत समय अपने मनोरञ्जन को दीजिये और सो जाइए कम से कम 6 घण्टे की नींद भी लीजिए तनाव रहित रहिए सब आराम से प्रबंधन हो जाएगा 10 बजे रात्रि से सुबह 4 बजे तक की आराम दायक नींद लीजिये उठिए प्रभु का कृतज्ञता ज्ञापन कीजिये दैनिक कार्यों यथा शौच, दन्त धावन, शेविंग,स्नान आदि से निवृत्त होकर सुबह 5 बजे से 10 बजे तक में से केवल 3 घण्टे अध्ययन को प्रति दिन दीजिए और इसमें चुने हुए कम से कम 4  प्रश्न याद कीजिए। विश्वास रखिये इन प्रश्नों की संख्या कब बढ़ गयी आपको पता ही नहीं चलेगा। 10 दिनों में आपका आत्म विश्वास लौट आएगा। सप्ताहान्त का समुचित प्रयोग करें। आप निश्चित सफल होंगे। 

प्रश्न – मेरे पति सहयोगी प्रवृत्ति के हैं मेरा बच्चा छोटा है मेरे से चिपका रहता है कब और कैसे पढ़ूँ ?

उत्तर – ऐसी स्थिति में आपको समय प्रबन्धन की आवश्यकता है जल्दी सोना और जल्दी उठना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है यह सोचकर आप दोनों समय का ऐसा विभाजन करें कि आप दोनों बच्चे की देखभाल के साथ पूरी नींद ले सकें। पूरी नींद लेने से अधिगम सशक्त होता है यदि आप रात्रि 8 बजे से दो बजे तक सोने का क्रम रखें ,हॉस्टल वाले बच्चों की तरह तो सुबह 2 बजे से पाँच, छः बजे तक अच्छी पढ़ाई हो सकती है बशर्ते की आप यह दिन में नोट कर लें कि रात्रि में क्या क्या याद करना है। सुबह उठने पर आप 30 मिनट प्राणायाम हेतु निकाल कर अपनेआप को रीचार्ज कर सकती हैं। पाँच  छः दिन में स्थिति अनुकूल हो जाएगी स्वास्थय का पूरा ध्यान रखना है।

प्रश्न – मैं एम० एड ० प्रथम वर्ष का छात्र हूँ  आठ घण्टे की प्राइवेट फर्म में सेवा व दो घण्टे आने जाने के व्यय करके जीवनयापन कर रहा हूँ मेरा अवकाश सोमवार को पड़ता है इसलिए केवल सोमवार को व कभी छुट्टी लेकर महाविद्यालय जा पाता हूँ।कब व कैसे तैयारी करूँ ?

उत्तर – जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं। … ये पंक्तियाँ आपको दिशा देंगीं। आप दो दो हफ़्तों में पूरे होने वाले लेक्चर्स यू ट्यूब – Education Aacharya पर देख सुन सकते हैं और वो भी एक घण्टे से भी कम समय में,यानी जब आप बस यात्रा कर रहे होते हैं। यदि लिखा हुआ मैटर चाहिए तो educationaacharya.com से ले सकते हैं। शेष आप जो भी समय निकाल सकते हैं उसे 40 मिनट के कालांश में तोड़ लें व सलेक्टेड स्टडी करें। कुछ भी असम्भव नहीं है।

प्रश्न – मेरा प्रायोगिक कार्य पूर्ण है लघु शोध भी हो चुका है लेकिन अब परीक्षा में लगभग एक माह शेष है प्रश्नों की तैयारी एम० एड ० परीक्षा हेतु कैसे करूँ ?

उत्तर –  घबराने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है इतना प्रायोगिक कार्य पूर्ण होने पर अब समस्त ध्यान पढ़ने पर ही लगाने की आवश्यकता है ,आप यूनिट के हिसाब से 10 -10 उद्धरण (Quotation) लिख लिखकर याद करें।  प्रश्न के शीर्षक उपशीर्षक बार बार लिखकर याद करें। अलग अलग तरह के प्रश्नों में अपने याद किये उद्धरण प्रयुक्त करने की कला सीखें। निश्चित रूप से आप अच्छा कर पाएंगे। स्वयं योजना बनाकर विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों के आधार पर अपने उत्तरों को व्यवस्थित करें।अवश्यमेव कल्याण होगा।

प्रश्न – मैं बी० एड ० द्वित्तीय वर्ष की विद्यार्थी हूँ मेरा लेख बहुत खराब है ब्लैक बोर्ड स्किल से डर लगता है वैसे मैं याद सब कर लेती हूँ सुना भी सकती हूँ पर लेख कैसे सुधारूँ ?

उत्तर – महाकवि वृन्द ने कहा –

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निशान।

इसी में आपके प्रश्नका उत्तर छिपा है  आपको निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है यह ध्यान रखना है अक्षर सीधे लिखे जाएँ अक्षर और अक्षर के बीच की दूरी व शब्द और शब्द की दूरी बराबर रखी जाए। पंक्तियाँ एक दूसरे के समानान्तर रहें। शीघ्र ही वाँछित लाभ मिलेगा। अभ्यास में निरंतरता रखें।

प्रश्न – मैं सॉफ्ट बॉल और मेरी बहिन कबड्डी की खिलाड़ी हैं अभी हम दोनों अन्तर्विश्वविद्यालयी प्रतियोगिता से लौटे हैं क्रीड़ा की तैयारी में पढ़ाई कहीं पीछे छूट गई अब 30 – 35 दिनों में परीक्षा की तैयारी कैसे करें ?

उत्तर – आपसे बस यह कहना है –

          करे कोशिश अगर इंसान तो क्या क्या नहीं मिलता 

          वो सिर उठा कर तो देखे, जिसे रास्ता नहीं मिलता,

         भले ही धूप हो काँटे हों राहों में मगर चलना तो पड़ता है,

         क्योंकि किसी प्यासे को घर बैठे कभी दरिया नहीं मिलता।

         स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मष्तिष्क निवास करता है उचित रणनीति, सही समय विभाजन, लिख लिखकर अभ्यास, विगत वर्षों के प्रश्न पत्र सभी आपकी मदद को तैयार बैठे हैं। विश्वास रखें और एक भी दिन खराब न जाने दें ,गुरुओं से निर्देशन लें। पूर्ण विश्वास है  मैदान की तरह परीक्षा में में भी आपका प्रदर्शन लाजवाब रहेगा। 

प्रश्न – मैं MSW का छात्र हूँ मेरी समस्या यह है कि मैं  याद किया हुआ परीक्षा कक्ष में भूल जाता हूँ, क्या करूँ ?

उत्तर –  कई विद्यार्थी इस समस्या से ग्रस्त हैं सबसे पहले अपने खान पान की आदत में सुधार करना है अधिक गरिष्ठ भोजन से बचना है और तजा सुपाच्य भोजन करना है जब कुण्डलिनी की सारी शक्ति भोजन पचाने में लगी रहती है तब भी ऐसा देखने को मिलता है। दूसरे आत्मविश्वास विकसित करना है प्रश्नो को  निश्चित समय में खुद लिखकर अभ्यास करना है। पर्याप्त पानी का सेवन करना है। प्राणायाम, व्यायाम, ध्यान को दिनचर्या का हिस्सा बनाना है। निश्चित रूप से आशातीत सफलता मिलेगी।

प्रश्न – मैंने  PCM ग्रुप से B.Sc. की है बी० एड ० के बाद ईश्वर कृपा से नौकरी भी मिल गई है हाई स्कूल को पढ़ाता हूँ अब की M.A राजनीति शास्त्र का प्राइवेट फार्म भरा है,इसमें तो फार्मूले भी नहीं होते,  इतना सारा कैसे लिखा जाएगा ?

उत्तर – आप अध्यापक हैं कई विद्यार्थियों के प्रेरणा स्रोत,निश्चित रूप से आपने कहावत सुनी होगी –

 जहाँ चाह वहाँ राह 

आप यकीन मानिए विचार संसार की सबसे ताकतवर शक्ति है और जब आप दृढ़ इच्छा शक्ति से इस दिशा में कार्य करेंगे तो कई पथ प्रकाशित होते चले जाएंगे रही बात फार्मूले की तो वो आप यहां भी बना सकते हैं प्रत्येक शीर्षक का पहले अक्षर को लेकर मिला लीजिये फार्मूला तैयार है। मानलीजिए आपको अपने प्रश्न के उत्तर में 10 उप शीर्षक देने हैं तो आप हेड्स याद करने के साथ 10 अक्षर का फार्मूला बना लीजिये वह दसों शीर्षक क्रम से याद आते जाएंगे।

यहाँ मैंने अपनी क्षमता भर आपके प्रश्नों का समाधान देने का प्रयास किया है लेकिन याद रखें एक ही समस्या के कई समाधान होते हैं इसलिए हिम्मत न हारते हुए हम सबको तब तक प्रयास करना चाहिए जब तक समस्या समाधान न हो जाए अन्त में आपसे यही कहूँगा –

रास्ता किस जगह नहीं होता

सिर्फ हमको पता नहीं होता

छोड़ दें डरकर रास्ता ही हम

ये कोई  रास्ता नहीं होता।  

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दर्शन

EXISTENTIALISM/अस्तित्व वाद

April 7, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अस्तित्व वाद एक ऐसा चिन्तन है जिसे दायरे में कैद करना बहुत मुश्किल है विश्लेषक कई बार इस भ्रम का शिकार हो जाते हैं कि क्या इसे दार्शनिक चिन्तन के परिक्षेत्र में स्वीकारा जाए। वस्तुतः यह एक सङ्कट का दर्शन है मानव आज स्वयं से भी अजनबी होता जा रहा है। यह विविध चिन्तनों के विरोध स्वरुप उत्पन्न हुआ है। और मानव मात्र के अस्तित्व से जुड़ा है, इसीलिए इस वाद के चिन्तन की धुरी मानव व उसका अस्तित्व ही है। अस्तित्ववाद सङ्कट (Crises) का वह दर्शन है जो बीसवीं शताब्दी की देन है और व्यक्ति के मौलिक व्यक्तिगत अस्तित्व पर बल देता है।

सोरेन किर्कगार्द, मार्टिन हीडेगर,जीन पॉल सात्रे वे प्रसिद्ध नाम हैं जो अस्तित्ववाद के पोषकों में सबसे महत्त्वपूर्ण हैं।

सोरेन किर्कगार्द(Soren Kierkegaard) चाहते थे कि व्यक्ति को चयन की पूर्ण स्वतन्त्रता मिले और जो वह बनाना चाहता है उसके लिए वह स्वतंत्र हो।

मार्टिन हीडेगर(Martin Heidegger) मानते थे कि मनुष्य का अस्तित्व नश्वर है सीमित है मृत्यु सभी सम्भावनाओं का अन्त कर देती है और सभी मनुष्यों की मृत्यु निश्चित है।

जीन पॉल सात्रे Jean Paul Satre (1905 -82) ने अपने दर्शन को अस्तित्ववादी स्वीकारा है वह इस दर्शन को किसी का पिछलग्गू नहीं मानता। वे स्वीकार करते हैं कि मनुष्य का अस्तित्व किसी पूर्वसत्ता और सिद्धान्त पर निर्भर नहीं करता बल्कि वे कहते हैं  ‘मैं हूँ इस लिए मेरा अस्तित्व है।’ 

DEFINITIONS OF EXISTENTIALISM

अस्तित्व वाद की परिभाषाएं –

अस्तित्ववाद वह दर्शन है जिसमें मानव की स्वतन्त्रता के सच्चे दर्शन होते हैं इसे हम एक अभिमत के रूप में स्वीकार कर सकते हैं इसे मानव जीवनके प्रति एक दृष्टिकोण कहना भी तर्क संगत होगा आर०एन० बेक महोदय  कहते हैं –

“The term (Existentialism) refers to a type of thinking that Emphasizes human existence and the qualities peculiar to it rather than to nature or Physical world.”

“अस्तित्ववाद एक प्रकार के चिन्तन की और संकेत करता है जो प्रकृति अथवा भौतिक संसार की अपेक्षा मनुष्य के अस्तित्व और उसके गुणों पर बल देता है।”

एक अन्य प्रसिद्ध विचारक एच० एच० टाइटस महोदय कहते हैं –

“Existentialism is an attitude and outlook that Emphasizes human existence that is distinctive qualities of individual persons rather than man in the abstractor nature and the world in general.”

“अस्तित्ववाद सामान्य रूप में विश्व और प्रकृति अथवा सामान्य मानव की अपेक्षा ‘व्यक्ति‘ के रूप में मनुष्य के विशिष्ट गुणों पर जोर देता है।”

अस्तित्ववाद के सम्बन्ध में प्रो ० रमन बिहारी लाल का कहना है –

“अस्तित्ववाद एक ऐसा बन्धनमुक्त चिन्तन है जो नियतिवाद एवं पूर्व निश्चित दार्शनिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और वैज्ञानिक सिद्धान्तों एवं नियमों में विश्वास नहीं करता और यह प्रतिपादन करता है कि मनुष्य का स्वयं में अस्तित्व है और जो वह बनाना चाहता है उसका चयन करने के लिए स्वतंत्र है। इसके अनुसार मनुष्य वह है जो वह बन सका है अथवा बन सकता है और उसका यह बनना उसके स्वयं के प्रयासों पर निर्भर करता है। ”

अस्तित्व वाद की विभिन्न मीमांसाएँ  –

किसी दर्शन किसी को समझना उसकी मीमांसाओं को जानने से सरल हो जाता है आइये सबसे पहले जानते हैं –

अस्तित्ववाद की तत्व मीमांसा (Metaphysics of Existentialism) –

सात्रे चेतना और पदार्थ दोनों की सत्ता के स्वतन्त्र अस्तित्व को स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि वास्तु का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है ,मानव की चेतना में आने से पहले भी वस्तु अस्तित्व में थी,  है और रहेगी। ये मानव के अस्तित्व को व्यक्तिगत मानते थे और विश्वास करते थे कि यह उसके साथ ही समाप्त हो जाने वाला है इनके अनुसार मनुष्य जन्म के साथ अस्तित्व में आता है और मृत्यु के साथ अस्तित्व विहीन हो जाता है। हीदेगर के अनुसार हताशा,चिन्ता तथा इसके द्वारा होने वाला दुःख स्वयं प्रमाणित है इनका अनुभव प्रत्येक मानव करता है।

अस्तित्ववाद की ज्ञान व तर्क मीमांसा (Epistemology of Existentialism) – 

इन विचारकों का मानना था कि मनुष्य जीवन पर्यन्त जो अनुभव विभिन्न माध्यमों से करता है और इस माध्यम से अपनी चेतना और भावनाओं को जिस प्रकार युक्त करता है वही ज्ञान है इस ज्ञान को वह स्वतंत्र तरीकों से विभिन्न विधियों द्वारा प्राप्त करता है। लेकिन यह सत्य तभी स्वीकारा जाएगा जब सत्यापित हो जाएगा। ये अनुभव जनित ज्ञान के ठीक विपरीत विचार को लेकर तर्क द्वारा ज्ञान की सत्यता को प्रमाणित करना आवश्यक मानते हैं।

अस्तित्ववाद की मूल्य व आचार मीमांसा (Values ​​and Ethics of Existentialism)-

ये मानव हेतु किसी पूर्व स्वीकृत मूल्य या आचार संहिता को स्वीकार नहीं करते,इनका तो मूल मन्त्र ही यह है की वह अपने अनुसार चयन के लिए स्वतन्त्र है ये स्वतन्त्रता और उत्तरदायित्व को ही मानव जीवन के आधार भूत मूल्य मानते हैं। सात्रे कहता है कि संसार बहुत कठोर है और इस कठोरता व दुरूहता का सामना कोई तभी कर सकता है यदि वह साहसी हो। अधिकाँश अस्तित्ववादी विचारक मृत्यु को सबसे बड़ा सत्य मानते हैं और स्वीकारते हैं कि मृत्यु का ज्ञान ही मनुष्य को सही मार्ग पर लाता है।

अस्तित्व वाद के मूल तत्व और सिद्धान्त

Fundamental Elements and Principles of Existentialism-

01 – केन्द्र बिन्दु मानव मात्र 

02 – केवल भौतिक जगत सत्य

03 – नियामक सत्ता के बिना ब्रह्माण्ड का अस्तित्व

04 – निराशा व दुःख विशद तत्व

05 – जीवन अन्तिम उद्देश्य विहीन

06 – मानव की स्वतन्त्र सत्ता

07 – चयन की स्वतन्त्रता

08 – विकास की निर्भरता स्वयं पर

अस्तित्ववाद और शिक्षा

Existentialism and Education

अस्तित्ववाद और शिक्षा

Existentialism and Education

शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है और इनका समूचा ध्यान वैयक्तिकता पर है यह दर्शन एक स्वतन्त्र दृष्टिकोण तो रखता है लेकिन कहीं कहीं अन्य दर्शनों को छूटा सा दीखता है वैयक्तिकता के क्षेत्र में यह आदर्शवादियों की तरह वैयक्तिकता के महत्त्व को स्वीकारता है आत्मविकास और आत्म अनुभव के विचार भी आदर्शवादियों से साम्य रखते हैं लेकिन फिर भी यह कई विचारों में इतना अलग है कि पलायन वाद की कोइ गुंजाइश नहीं छोड़ता ये कहते हैं –

“शिक्षा मनुष्य को उसके अस्तित्व और उत्तरदायित्व का बोध कराने की प्रक्रिया होनी चाहिए।”

मानव को अस्तित्वहीनता के दौर से हटाकर उसकी पुनः प्रतिष्ठा के क्रम में शिक्षा को उपयोगी साधन स्वीकार किया है। अस्तित्ववादी दृष्टिकोण से शिक्षा के उद्देश्यों व अंगों पर जो प्रभाव परिलक्षित हुए हैं उन्हें इस प्रकार व्यवस्थित किया जा सकता है।

शिक्षा के उद्देश्य  (Aims of Education ) –

1 – उत्तरदायित्व की क्षमता का विकास (To Development of Responsibility)

2 – अपने भाग्य का निर्माता स्वयं (The maker of own destiny)

3 – सृजनात्मकता का विकास (Development of creativity)

4 – शक्तिशाली व साहसी बनाना (Make strong and courageous)

5 – श्रेष्ठ मानव प्रजाति का विकास (Evolution of the best human species)

पाठ्य क्रम (Curriculum) –

इनके अनुसार व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के कारण विविध विषयों को स्थान मिलना चाहिए। सौन्दर्यात्मकता और भावनाओं का महत्त्व अस्तित्ववादी महसूस करते हैं यही तो उन्हें अन्य प्राणियों से अलग करते हैं इस लिए कला,साहित्य,संगीत विषयों को स्थान मिलना चाहिए। किर्क गार्द मानव को नैतिक प्राणी मानते हैं इसलिए नीति शास्त्र की उपादेयता है। अस्तित्व रक्षार्थ व्यावसायिक विषयों को पाठ्य क्रम में स्थान आवश्यक है। धार्मिक विषयों के स्थान पर ये क्रियात्मक व वैज्ञानिक विषयों को संकट निवारणार्थ रखना चाहते हैं अर्थात भौतिक विज्ञान,रसायन विज्ञान,जीव विज्ञान ,कृषि विज्ञान,चिकित्सा शास्त्र,व तकनीकी विषयों पर बल देना चाहते हैं।

शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –

यह समूह शिक्षण के पक्षधर नहीं हैं इसलिए निर्धारित पूर्व नियोजित शिक्षण विधियों कीजगह स्वाध्याय, चिन्तन, मनन,व अनुभव द्वारा सीखने की महत्ता प्रतिपादित करते हैं व तार्किक विधि का समर्थन करते हैं।ये विविध मंतव्यों हेतु विविध विधियों के समर्थक हैं।

शिक्षक (Teacher) –

इनका विचार है की अध्यापक अपने निर्णय बालकों पर न थोपें बल्कि उन्हें इस योग्य बनाएं कि वे अपने लिए उचित निर्णय ले सकें, विभिन्न परिस्थितियों से लड़ने हेतु उसे समर्थ बनाते हुए यह बोध भी कराना है कि वह अकेला है आत्मबोध से युक्त कर कर्मपथ पर बढ़ने का कौशल विकसित किया जाना है। इस प्रकार अध्यापक की भूमिका दुरूह है।

विद्यार्थी (Student) –

विद्यार्थी चयन हेतु स्वतन्त्र है और इस चयन व स्वतन्त्रता की रक्षा अध्यापक द्वारा की जानी चाहिए ये बालक की पूर्ण स्वतन्त्रता के  समर्थक हैं और उसके सम्मान का कार्य शिक्षा द्वारा सम्पादित होना चाहिए।

विद्यालय (School) –

जिस तरह ये विद्यार्थी की स्वतन्त्रता के पक्षधर हैं ठीक उसी तरह ये विद्यालयों को नियन्त्रण मुक्त रखना चाहते हैं  सामूहिक शिक्षा के स्थान पर व्यक्तिगत शिक्षा के पक्षधर हैं। ये मानते हैं की कुछ सिखाने या बालकों की स्वतन्त्रता छीनने के प्रयास न हों वे अपने आप ही सीखेंगे। कुछ चुने हुए लोगों का  बौद्धिक विकास कर उन्हें उत्तरदायित्व दिया जाना चाहिए।

अनुशासन (Discipline) –

ये मानते हैं की मनुष्य स्वभाव से ही अनुशासन प्रिय है और यदि उससे चयन में गलती हो जाती है तो इसका दुःख वह स्वयं भोगेगा  सुधार कर लेगा। ये किसी भी आचार संहिता के विरोधी थे। इस विचार धारा के अनुसार बालकों द्वारा उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवहार सच्चा अनुशासन है। 

मूल्याङ्कन (Evaluation) –

अस्तित्ववाद पूर्व निश्चित ,मान्यताओं,धारणाओं,मूल्यों,धार्मिक नैतिक अवधारणाओं से छिटक  खड़ा हो गया है। संकट ग्रस्त हेतु इसने आकर्षक छवि बनाने का प्रयास अवश्य किया पर कोइ भी भारतीय विचारक इसे न तो शैक्षिक चिंतन में स्थान दे पायेगा  दार्शनिक चिन्तन में। ये मानव हेतु कोइ ऐसा आलम्ब न दे सका जो उज्जवल भविष्य हेतु  बोधक हो। शिक्षा के हर अंग पर इस वाद का प्रभाव कोई निशाँ न छोड़ सका। इन्हें सब कुछ मानव विरोधी लगता है।यही कह सकते हैं कि इनके इरादे बुरे नहीं थे बस सही रास्ता नहीं बना सके।

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शिक्षा

विश्व विद्यालय की परीक्षा में अच्छे अंक कैसे प्राप्त करें /How to get good marks in university exam?

April 5, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आज जो परिचर्चा आपके समक्ष प्रस्तुत है उसका मूल उद्देश्य विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में अच्छे अंकों की प्राप्ति से है। ध्यान रहे यह परिचर्चा स्नातक, परास्नातक और प्रशिक्षण कार्यक्रम को ध्यान में रखकर की जा रही है। कोरोना काल में प्रश्नों की संख्याऔर समय में जो कमी की गयी थी वह सामान्य स्थिति में पुनः पहले जैसी रहेगी अर्थात वही तीन घण्टे वाला प्रश्नपत्र। यहाँ पूछे गए प्रश्नों के आधार पर प्रभावी उत्तर लेखन (प्रस्तुतीकरण) सम्बन्धी मत दिए जा रहे हैं जिससे निश्चित रूप से अच्छे अंक प्राप्त होंगे।

A -दीर्घ उत्तरीय प्रश्न [Long Answer Type Question]

B – लघु उत्तरीय प्रश्न [Short Answer Type Question] 

C – शब्द संख्या वाले प्रश्न [word count question]

D – अति लघु उत्तरीय प्रश्न [Very Short Answer Type Question]

A –दीर्घ उत्तरीय प्रश्न [Long Answer Type Question] –

1 – प्रश्न सावधानी से पढ़ें और केवल पूछी गई बात का ही उत्तर दें अनावश्यक नहीं।

2 – प्रश्न में ध्यान से देखें क्या अंक विभाजन दिया गया है ?यदि हाँ ,तो उत्तर उसी आधार पर लिखा जाना चाहिए। यदि 16 अंक के प्रश्न में 4 +6 +6  लिखा है तो उत्तर में इस अनुपात का ध्यान रखकर प्रभावोत्पादकता सृजित करनी है।

3 – बड़ा बड़ा लिखकर पृष्ठ भरने का अनर्गल प्रयास कदापि न करें। सम्यक लिखें।

4 – परीक्षक को धोखा देने का कोई प्रयास न करें अपने ऊपर और अपने लेखन कौशल पर नियन्त्रण रखें। रटे हुए शीर्षक की जगह प्रश्न में पूछे गए तथ्यों को शीर्षक के रूप में प्रयोग करें।

5 – अपनी बात के समर्थन में विद्वानों के उद्धरण ( Quotes ) या तथ्यात्मक तर्क(Logic) दें। इन्हें अलग रंग की स्याही से लिख सकते हैं (वर्जित रंग को छोड़कर), रेखांकित(Under Line ) भी किया जा सकता है।

6 – स्वयम् बनाकर उद्धरण (Quotation) न लिखें यह विद्वान् परीक्षकों द्वारा सहज ही पकड़ लिए जाएंगे और आपके सम्पूर्ण मूल्यांकन पर विपरीत प्रभाव डालेंगे।  

7 – उद्धरण को इस तरह लिखें कि वह स्पष्ट नज़र आये यद्यपि आज डॉट पेन या बाल पेन से लिखने का चलन है लेकिन यदि आप इंक पेन या निब वाले पेन से लिखने के अभ्यस्त हैं तो इससे लिखें यदि प्रतिबन्ध नहीं है।

8 – कोई ऐसा अवसर नहीं छोड़ना है जिससे प्रभाव पैदा किया जा सके।

9 – वास्तव में आपके नोट्स ही वह अवलम्ब हैं जो आपको संतुलन या सकारात्मकता प्रदान करते हैं।

10 – योजना, प्रदर्शन, परिमार्जन का चक्र आपके प्रश्नोत्तर लिखने के कौशल में निरन्तर सुधार करेगा।

B – लघु उत्तरीय प्रश्न [Short Answer Type Question] –

1 – लघु उत्तरीय प्रश्न हल करने में ध्यान रखना है कि अति अल्प में प्रभाव पैदा करना है।

2 – केवल उतना ही लिखें जो प्रश्न की मांग हो।

3 – उत्तर बिन्दुवार लिखने का प्रयास करें।

4 – यदि प्रश्न में चार कारण या पाँच उपाय जो व जितना पुछा है उतना ही लिखें।

5 – समय के साथ यथायोग्य साम्य रखें।

6 – गागर में सागर भरने का प्रयास करें लेकिन जितने अंक का प्रश्न है उसी के अनुसार लिखना है।

C – शब्द संख्या वाले प्रश्न [word count question]-

कभी कभी प्रश्न अपने उत्तर हेतु शब्द संख्या का निर्देश साथ लेकर आता है और इसी से उसके आकार का पता चलता है पुछा जा सकता है कि 2000 शब्दों में उत्तर दें या 100 शब्दों में लिखें।

उक्त स्थिति में आपके द्वारा लिखे एक पंक्ति के शब्दों को गईं लीजिये और उसके आधार पर तय कीजिये की उत्तर कितने स्थान में देना है।

उदाहरण स्वरुप यदि मैं एक पंक्ति में औसतन 10 शब्द लिखता हूँ तो 100 शब्दों हेतु 10 पंक्तियाँ पर्याप्त हैं इससे थोड़ा बहुत ज्यादा हो सकता है पर कई पृष्ठ लिखना असंगत होगा।

 पूरे उत्तर के शब्द गिनने में समय बरबाद न करें पहले ही अन्दाज विकसित करें घर पर लिखकर भी ठीक विचार कर सकते हैं। प्रश्न पात्र बांटने से पहले पृष्ठ की पंक्तियाँ गिन सकते हैं।

शब्द सीमा देने का सीधा आशय यह होता है कि प्रश्न के अनुसार उत्तर की चाह स्पष्ट की गयी है।

D – अति लघु उत्तरीय प्रश्न [Very Short Answer Type Question]-

कतिपय विश्व विद्यालय सभी तरह के प्रश्न ,प्रश्नपत्र में शामिल करते हैं जिससे अधिक से अधिक पाठ्य क्रम का प्रतिनिधित्व प्रश्न पात्र कर सके। इसमें अति लघु उत्तरीय प्रश्न विशिष्ट भूमिका का निर्वहन करते हैं। यह संक्षेप में उत्तर की माँग, एक शब्द में उत्तर की माँग या बहु विकल्पीय प्रकार के हो सकते हैं।

इनका उत्तर लिखने में स्पष्टता एक विशेष गुण है जिस खण्ड या भाग का यह प्रतिनिधित्व करते हैं वह लिखें ,और प्रश्नपत्र में इनके लिए निर्धारित प्रश्न नम्बर का उल्लेख करें व प्रश्न की प्रकृति के अनुसार उत्तर लिखें।

अन्त में यह अवश्य कहूँगा की प्रश्न पात्र प्रारम्भ होने से ठीक पहले ित्तरों को लेकर कोइ बहस न करें शांत चित्त से आत्म विश्वास से युक्त होकर परीक्षा कक्ष में जाए प्रसन्न रहें और प्रसन्न रहने दें अनायास किसी से न उलझें क्षमा करें, क्योंकि समय केवल आपका जाया होगा।

परीक्षा हेतु समस्त राष्ट्रीय ऊर्जाओं को हार्दिक शुभ कामना।

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शिक्षा

मूल्य और समाज (VALUE AND SOCIETY)

April 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मूल्य का अर्थ (Meaning of value) –

मूल्य शब्द अंग्रेजी के value शब्द का समानार्थी है यह लैटिन भाषा के Valare शब्द से बना है और इसका अर्थ है योग्यता या महत्त्व। इसे संस्कृत में इष्ट कहा जाता है इष्ट का अर्थ है “वह जो इच्छित है।” वास्तव में मूल्य वह मानदण्ड हैं जिसके द्वारा लक्ष्यों का चुनाव किया जाता है मूल्य एक व्यवस्था है मूल्य यथार्थ तथा आदर्श के विभेद के मध्य संयोजक की भूमिका का निर्वहन करते हैं मूल्यों का बोध विवेक शक्ति उत्पन्न होने पर ही सम्भव होता है। मूल्य चाहे व्यावहारिक हों या आदर्शवादी, पारमार्थिक हों या नैतिक। यह सभी मानव को नैतिक जीवन जीने में सहायक होते हैं।

मूल्य सम्बन्धी भारतीय दृष्टिकोण –

भारतीय मनीषियों ने मानवीय मूल्यों की विवेचना  के कल्याण की कामना करते हुए की है हमारा आदर्श है गरुण पुराण के यह शब्द –

सर्वे भवन्तु सुखिनः।      

सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।

मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥

भारतीय मनीषियों ने मूल्य के लिए पुरुषार्थ शब्द का प्रयोग किया है इनके आधार पर मूल्य इस प्रकार हैं –

भारतीय मूल्य

(1) – आध्यात्मिक मूल्य(Spiritual Value)  मोक्ष Self Perfection

(2) – लौकिक मूल्य (Empirical value)- धर्म (Virtue),  अर्थ (Wealth), काम(Pleasure)

 यहाँ यह कहना प्रासंगिक होगा कि अर्थ और काम वही नैतिक जो धर्मयुक्त हो।  

मनु स्मृति धर्म पथ को मूल्य अनुगमन स्वीकारती है इनके अनुसार  धर्म के गुणों का धारण करने वाला ही मूल्य संरक्षक है इनके अनुसार-

इसे सुनें

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।

अर्थात्:— धर्म के ये दस लक्षण होते हैं:- धृति (धैर्य), क्षमा, दम (मन को अधर्म से हटा कर धर्म में लगाना) अस्तेय (चोरी न करना), शौच (सफाई), इन्द्रियनिग्रह, धी (बुद्धि), विद्या, सत्य, अक्रोध (क्रोध न करना)।

इन दस गुणों से युक्त व्यक्ति धार्मिक है शिक्षोपरान्त आचार्य शिष्य को उपदेश देता था –

सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः

अर्थात सामाजिक गृहस्थ जीवन में  सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय में आलस्य मत करो।और इस प्रकार मूल्यों को दिशा दी गयी है।

यद्यपि चार्वाक दर्शन सुखवादी है। वह साधन और साध्य में अन्तर नहीं मानता। वह साध्य को सदैव सुख मानता है चार्वाक अर्थ और काम दो ही मूल्य मानता है। खाओ पीओ और मौज करो यही उसके मूल्य हैं जब कि अन्य दार्शनिक काम को निम्न कोटि का मूल्य मानते हैं।

पाश्चात्य दृष्टिकोण –

प्लेटो के अनुसार

1 – मूल्य बुद्धि ग्राह्य है न कि इन्द्रिय ग्राह्य पदार्थ

2 – मूल्य और सात का मौलिक अभेद है

3 – मूल्य निरपेक्ष, नित्य स्वरुप सत विषय है 

4 – ज्ञान का परायण क्षेय और क्षय में श्रेष्ठता का सम्पर्क अथवा प्रमाण 

5 – भौतिक और सामाजिक स्तर पर वस्तु का द्योतक वस्तु की नियत रूपता एवम् उसके घटकों का परस्पर          अवरोध मूल्य है।

ह्यूम और सिजविक ने “मनुष्य के नैतिक जीवन को द्वन्दात्मक प्रवृत्तियों का विकास निरूपित कर स्वार्थ और परमार्थ के सहज बोध को मूल्य की संज्ञा दी है।”

अर्बन के अनुसार – “मूल्य वह है जो मानव इच्छाओं की तुष्टि करे। ”

जेम्सवार्ड ने मूल्य को इच्छाओं की सन्तुष्टि करने वाली वस्तु बताया है इच्छा की पूर्ति से सुख का अनुभव होता है इस प्रकार सुखानुभूति में मूल्य की अनुभूति होती है।

हॉफ डिंग के अनुसार -“मूल्य वस्तु या विचार में निहित वह गुण है जिससे हमें तात्कालिक सन्तुष्टि मिलती है या उस संतुष्टि के लिए साधन मिलता है। ”

मूल्यों का सङ्कट (VALUE CRISIS )

आज मूल्य परक अवधारणा में बदलाव आ रहा है पुराने भारतीय मूल्य लुप्त हो रहे हैं हमारी मान्यताएं परम्पराएं और प्राथमिकताएं बदल रही हैं हम आध्यात्मिकता को नकार कर पाश्चात्य जगत के जीवन मूल्यों और उनकी भौतिकवादी सभ्यता को अपनाते जा रहे हैं हमारे जीवन मूल्यों का क्षरण हो रहा है प्रसिद्द अर्थशास्त्री ग्रेशम का नियम है कि

  “खोटा सिक्का अच्छे सिक्के को चलन से बाहर कर देता है। ”

हमारे मूल्यों पर ग्रेशम का नियम पूरी तरह लागू हो रहा है इन मूल्यों के क्षरण के पीछे निम्न कारण उत्तरदाई हैं। –

1 – आधुनिकता का प्रभाव

2 – पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण

3 – भौतिकता वादी सभ्यता के प्रति अप्रत्याशित मोह

4 – अनीश्वरवादी प्रवृत्ति

5 – तर्क प्रधान चिन्तन

6 – वैज्ञानिक प्रवृत्ति का अधकचरा विकास 

क्षरण की इस प्रवृत्ति के बावजूद मानवीय मूल्यों का ह्रास हुआ है नाश नहीं। अवश्य ही वे दब गए हैं परन्तु नष्ट नहीं हुए। भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है जबकि यूनान मिश्र और रोम की संस्कृतियां विलुप्त हो गईं। भारतीय संस्कृति अपनी प्राचीन धरोहर के रूप में मूल्यों को आज भी संचित किये हुए है।

उभरते सामाजिक सन्दर्भ में मूल्य (Values in Emerging Social Context) –

आज देश को अपने सामाजिक ढाँचे को मजबूत करने की सर्वाधिक आवश्यकता महसूस हो रही है देश द्रोही शक्तियां येन केन प्रकारेण इसमें सेंध लगाकर मूल्यों को छिन्न भिन्न करने का हर सम्भव प्रयास कर रही हैं। उभरते सामाजिक सन्दर्भ में निम्न आधारित मूल्यों का सृजन व संरक्षण करना होगा।

1 – समता आधारित

2 – ममता आधारित

3 – दया, करुणा आधारित 

4 – समय आधारित

5 – संविधान आधारित

6 – राष्ट्रवाद आधारित

7 – आदर्श स्थापन

8 – विवेक आधारित

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वाह जिन्दगी !

हम भुला न पाते हैं।

April 2, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।।

यहाँ इस शहर में बहुत मॉल नज़र आते हैं

कृत्रिमता युक्त चेहरे सौम्य न लग पाते हैं,

खो गयीं निमकौरियाँ पावन सी अमराइयाँ

पसीने से सरोबार कई चेहरे याद आते हैं। 

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।1।

खेत की पगडण्डियाँ फिर हमें बुलाते हैं

नंगे पैर चलने की अनुभूतियाँ जगाते  हैं

वर्षा की रिमझिम व मिट्टी की सुगन्धियाँ

आज भी हम को मौन रह कर बुलाते हैं।  

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।2

वो पुराने मञ्जर सुख -दुःख याद दिलाते हैं ,

भूलने की कोशिश की पर भुला न पाते हैं,

वो मेले, वो प्यारे दंगल और वो कबड्डियाँ

आज भी जेहन को खुशनुमा पल लौटाते हैं।  

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।3।

अब ना किसी मैदान में हम पतँग उड़ाते हैं

गुल्ली डण्डा, आइस पाइस कल की बातें हैं

खो गया सब कुछ वो चौपाल की कहानियाँ

टॉकीज में बैठ भी वो सब दिन याद आते हैं     

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।4।

वो रैले, वो झमेले, वो तबेले याद आते हैं

वो सरसों के पीत पुष्प क्यों हमें बुलाते हैं

नहीं भूल पाते चूल्हे चक्की वाली रोटियाँ

ओवन, ए० सी०, फ्रिज कत्तई न भाते हैं।   

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।5।

धीरे – धीरे हम सब यूँ ही बड़े हुए जाते हैं,

वो डालें, वो झूले, नहीं अब हमें बुलाते हैं

वो बरगद, पीपल, शीशम की परछाइयाँ

वो वृक्ष अपने साथी थे बहुत याद आते हैं।    

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।6।

वो लोरियाँ वो सावन गीत झुरझुरी जगाते हैं,

निःस्वार्थ उपजे अनमोल रिश्ते याद आते हैं,

किसी घर में घुस खाई हुई प्यारी चपातियाँ

उस ममता समता से अब अलग हुए जाते हैं।

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।7।

गेंदतड़ी चोरसिपाही सब खेल याद आते हैं,

बगिया में लबासादिया हम भुला न पाते हैं

वो नहर में तैरना और भोली सी बदमाशियाँ

खो गए वो सारे दिन अब साये नज़र आते हैं 

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।8।

बचपन मोबाइल में व्यस्त अब हम पाते हैं,

दौड़ धूप के खेल मोबाइल में खेल पाते है,

बहुत कुछ छूटता इनसे आती हैं बीमारियाँ,

पसीने की कहानियाँ ए ० सी ० में सुनाते हैं।     

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।9।

आज भी कुछ फूल पत्ते किताबों में पाते हैं

ये सब किस्से, यादों की बारात ले आते हैं,

आज भी याद हैं कुछ दीवाने व दीवानियाँ,

पत्नी के गुस्से के कारण हम बाँट न पाते हैं।        

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।10।

बचपन की किताबों की यूँ बहुत सी बातें हैं

वो सारी यादगार आज भी बाँट नहीं पाते हैं

बुजुर्ग सुनाते थे निज बचपन की कहानियाँ

हम नहीं कह पाते, अन्तर दिल जलाते हैं।          

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।11।

आजकल बिन बात के भी हम मुस्कुराते हैं,

बचपन के ठहाके मगर बहुत याद आते हैं,

वो कञ्चे, रस भरी वो सब्जी वाले, वालियाँ

जिन्हें हम भूलना चाहें वो जमकर याद आते हैं।          

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।12।

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