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वाह जिन्दगी !

हम देंगे तुमको आजादी।/Ham Denge Tumko Azadi.

February 28, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी। 

हर कट्टरपन से आज़ादी,

हाँ जाहिलपन से आज़ादी,

इस देश द्रोह से आज़ादी,

हाँ मिल जाएगी आज़ादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी। 

इस फूहड़पन से आज़ादी,

नालायकपन से आज़ादी,

सारे ढोंगों से आज़ादी,

औ गलत सोच से आज़ादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

इस अक्खड़पन से आजादी,

गद्दारीपन से आजादी,

इन भडकावों से आजादी,

गन्दी फितरत से आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

काली सोचों से आजादी,

नाली गड्ढों से आजादी,

लाठी डण्डों से आजादी,

सब बदरंगों से आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हर खूँरेजी से आजादी

टेढ़ी चालों से आजादी

नकली सोचों से आजादी

गन्दे खूनों से आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

नकली धर्मों से आजादी,

हर भेद भाव से आजादी,

आतंक धरम से आजादी,

सारे भरमों से आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।

हम देंगे तुमको आजादी।   

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वाह जिन्दगी !

बोलो बम बम बम भोले।Bolo bolo bam Bhole.

February 21, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

देखो चले शिव भोले,

दिल पृथ्वी का डोले,

चले गौरी को लेने ।

हौले हौले हौले हौले।

बोलो बम बम बम भोले।।      

शैव और अघोरी बोले,

डमरू औ त्रिशूल बोले,

चलो मैय्या को लेने।

कापालिक मृगछाला बोले।

बोलो बम बम बम भोले।।      

गंगा और चन्दा बोले,

भस्मी औ भभूत बोले,

चलो दक्ष सुता लेने।

लक्ष्मी बोलें कश्यप बोले। 

बोलो बम बम बम भोले।।      

सावन बोले शनि बोले,

ब्रह्मा और विष्णु बोले,

चलो गौरी माँ लेने।

कौन बोले क्या बोले।   

बोलो बम बम बम भोले।।      

भूत बोले प्रेत बोले,

नन्दी और दिनेश बोले,

चलो माँ पार्वती लेने।     

ये ,वो,हम सब बोले।

बोलो बम बम बम भोले।।      

मुण्डों की माला बोले,

नाग औ जयमाला बोले,

चलो शैलजा को लेने।

हम बोलें तुम भी बोलो। 

बोलो बम बम बम भोले।।      

बिजली और बादल बोले,

नदिया और  सागर  बोले,

चलो कनखलसुता  लेने।

पर्वत राज हिमालय बोले।  

बोलो बम बम बम भोले।।      

कण्ठी  और माला  बोले,

गोरा  और  काला  बोले,

चलो जननी जगत लेने।

क्या, क्या, क्या बोले।  

बोलो बम बम बम भोले।।      

कजरारे नयन  बोले,

देखो जन जन  बोले,

चलो माँ अम्बा को लेने।

सब नाथों का नाथ बोले।  

बोलो बम बम बम भोले।।      

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वाह जिन्दगी !

ॐ सत्यम, शिवम्, सुन्दरम।/Om Satyam,Shivam,Sundaram.

February 17, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जागा मनवा में अपने धरम,

अब आएगा निश्चित शुभम।

छोड़ो दैन्यता कर्म हो सिंह का,

आ गया मुक्ति मारग सुगम।

आओ जाने हम शिव का मरम,

ॐ   सत्यम,  शिवम्,  सुन्दरम।

अब हटने लगा सब भरम,  

स्वतः होने लगे शुभ करम।

छोड़ दो भीरुता रूप लो वीर का,

अपने रुख को करो कुछ नरम।

आओ जाने हम शिव का मरम,

ॐ   सत्यम,  शिवम्,  सुन्दरम।

दृश्य सुन्दर मनोहर परम,

शिव भजोगे न होगी जलन।

ना विकराल सा रूप महाकाल का,

छाँट देगा सब मन का भरम।

आओ जाने हम शिव का मरम,

ॐ   सत्यम,  शिवम्,  सुन्दरम।

आओ शिव से लगाएं लगन,

महा शिव रात्रि मनाएंगे हम।

नाम लो नाथ का रूप हो मुक्ति का,

पथ होता चले पावनम।

आओ जाने हम शिव का मरम,

ॐ   सत्यम,  शिवम्,  सुन्दरम।

अपने करमों का हो आकलन,

सब करने लगें शुभ करम।

छोड़ दो दुष्टता रूप लो ईश का,

सारे जग में दिखे शंकरम।

आओ जाने हम शिव का मरम,

ॐ   सत्यम,  शिवम्,  सुन्दरम।

काट देगा सब भव बन्धनम,

ॐ नमः शिवाय का भजन।

छोड़ो मोह जग का नाता मात्र शिव का,

बस देगा तुम्हें शुभ फलम।

आओ जाने हम शिव का मरम,

ॐ   सत्यम,  शिवम्,  सुन्दरम।

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वाह जिन्दगी !

आई आई शिव रात्रि आई रे।[AAI AAI SHIV RATRI AAI RE]

February 16, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सबका कल्याण कराएं,

रूप सुन्दर सा बनाएं।

प्रकृति में खुद रम जाएँ,

देव वो सरल कहाएँ। 

उनमें रमने की तिथि आई रे,

आई आई शिव रात्रि आई रे।

सबके मन को भा जाएँ,

जल्दी वो खुश हो जाए।

अपनी किरपा बरसाएं,

रहें वो धूनी रमाएँ।

उनमें रमने की तिथि आई रे,

आई आई शिव रात्रि आई रे।

आओ बेल पत्री लाएं,

धतूरा उन पर चढ़ाएं।

बस उनमें खो जाएँ ,

महाकाल रात्रि मनाएं।

उनमें रमने की तिथि आई रे,

आई आई शिव रात्रि आई रे।

आओ शिव भजन को गाऐं,

केवल उनमें खो जाएँ।

भूतनाथ की महिमा गाएं,

शुभ घड़ी में खुशी मनाएं।

उनमें रमने की तिथि आई रे,

आई आई शिव रात्रि आई रे।

सब को सत्य बोध कराएं,

प्रकृति का सत् समझाएं।

भौतिकता से कट जाएं,

हरदम शिव शिव जप पाएं।

उनमें रमने की तिथि आई रे,

आई आई शिव रात्रि आई रे।

शिव का सत् बोध कराएं,

मिथ्या मान्यताएं हटाएँ।

बस सत्य में रमते जाएँ,

हरक्षण शिव ही शिव गाएं।

उनमें रमने की तिथि आई रे,

आई आई शिव रात्रि आई रे।

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वाह जिन्दगी !

घर में छिप बैठे रहने से जग का कल्याण नहीं होता ।

February 15, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­ऋषि मुनि सोते रह जाते तब उनका मान नहीं होता,

बिन ‘चरैवेति’ की धारणा धारे, महाप्रयाण नहीं होता,

जीवन है, चलने का नाम ठहराव पसन्द नहीं करती,

शायद सुरक्षित रह पाते पर जगत में नाम नहीं होता।

घर में छिप बैठे रहने से जग का कल्याण नहीं होता।

संघर्षों से फिर भगजाने पर बेड़ा भव पार नहीं होता,

गर एकजगह रुकजाते तो जग में व्यापार नहीं होता,

कर्तव्यपथ से भगजाने पर धरती सम्मान नहीं करती,

यदि कूप मण्डूक बने रहते तो ज्ञान प्रसार नहीं होता।

घर में छिप बैठे रहने से जग का कल्याण नहीं होता।

जब तक न अग्नि परीक्षा हो सीता का मान नहीं होता,

श्री रामचन्द्र निज घर रहते पुरुषोत्तम नाम नहीं होता,

धातु न ताप सहन करती तो किसी काम की न रहती,

यदि पूर्वज वीर भाव खोते, तो जग में नाम नहीं होता।

घर में छिप बैठे रहने से जग का कल्याण नहीं होता।

हृदयों के दावानल का, कोई प्रगटी करण नहीं होता,

हम पंगु बनके रहजाते फिर जय श्री वरण नहीं होता,

हम क्या और जग क्या है जिज्ञासा मन में दबी रहती,

वृहताकार रहस्यों का जग के अनावरण भी ना होता।

घर में छिप बैठे रहने से जग का कल्याण नहीं होता।

न अनुसन्धान का क्रम होता दर्शन विज्ञान नहीं होता,

सब हो जाते पोंगा पन्थी ज्ञान का दिनमान नहीं होता,

तो प्राणप्रतिष्ठा की बातें कल्पना भी वरण कैसे करती,

सब वीराना होता जाता, मानवमन उन्माद नहीं होता।

घर में छिप बैठे रहने से जग का कल्याण नहीं होता।

‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’ का महती मन भाव कहाँ होता,

सब कुछ बेसुरा होजाता फिर सुन्दर राग कहाँ होता,

मानवमन अभिव्यक्ति भी फिर सोई – सोई सी रहती,

तो नाथ संकल्पना न होती, नाथों का नाथ नहीं होता।

घर में छिप बैठे रहने से जग का कल्याण नहीं होता।

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वाह जिन्दगी !

व्यक्तित्व / PERSONALITY

February 8, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

व्यक्तित्व वह है जो हैरान परेशान न हो,

छोटीछोटी बात पर कोई घमासान न हो,

चन्दा सूरज में भी लगे है इक बार ग्रहण,

सोच को बदलती चाल से नुकसान न हो।

सोच गुलजार रहे उस में शमशान न हो,

जो प्रगति शील न हो ऐसा उनवान न हो,

यूँ विभीषण ने भी ली थी इक बार शरण,

हो सब हो मगर बौद्धिक अवसान न हो।

किसी बेगैरत पर, यूँ ही मेहर बान न हो,

और याद रहे जरूरतमन्द परेशान न हो,

याद आते, ऐसे लोग जिन्दगी  में हर क्षण,

भले ही उनके पास एक भी मकान न हो।

शब्द मधुर ही रहे भाषा बदजुबान न हो,

ईमान कायम रहे व्यवहार बेईमान न हो,

यूँ आम हो चला है बद नीयती का चलन,

नर्क न बने जीवन, इस लिए गुमान न हो।

सोच बदलो, बे बात ही हलकान मत हो,

चिन्तनद्वार खोलो अगर रोशनदान न हो,

बदलती रहती है दुनियाँ तो क्षणप्रतिक्षण,

व्यक्तित्व है तब गर सोच बियाबान न हो।

पल न गुजरें ऐसे,अधरों पर मुस्कान न हो,

काम अच्छे करो, भले जान पहचान न हो,

गुजर जाने पर रात, आती सूर्य की किरण,

नाथ लगे रहना अनवरत नाम हो या न हो।

व्यक्तित्व वह है जो हैरान परेशान न हो ।

छोटीछोटी बात पर कोई घमासान न हो ।

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वाह जिन्दगी !

अंगार धधकने लगता है।/ANGAAR DHADHAKNE LAGATA HEA,

February 6, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सोते जगते हृदयानल का ज्वाल मचलने लगता है,
कोई दानव भारत का भारत को मसलने लगता है,
जान बूझ निज मतलब से यूँ ही बहकने लगता है,
 सारे स्वार्थ पूर्ण कर वह हमसे छिटकने लगता है,
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।

जब भी वह आवश्यक है जड़ से उखड़ने लगता है,
देखके उसके बर्तावों को मन ये सिसकने लगता है,
मौका आने पर आदतवश धीरेसे सरकने लगता है,
देश का खा, देश के अन्दर ज़हर उगलने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।

संख्या बल बढ़ा बढ़ा जब लाभ लपकने लगता है,
बारबार समझाने पर जो मानव फिसलने लगता है,
संख्या वृद्धि पर बस अपनों में सिमटने  लगता है,
जानबूझ नासमझा बन बस यूँही उछलने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।

कुछ का व्यवहार ही ऐसा है लहू टपकने लगता है,
उनकी बातें ही ऐसी हैं, विश्वास छिटकने लगता है,
पर देश का अन्तर्मन उनके हित तड़पने लगता है,
लेकिन उनकी गद्दारी से ही, लहू उबलने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।

कोई देश के संसाधन खा खुदही चमकने लगता है, 
भोलीसी जनता को जला बेबात विहँसने लगता है,
तब उसके प्रति सबका विश्वास तड़कने लगता है,
कर्तव्य निर्वहन बारी पर आँख झपकने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।

गद्दारी की तैयारी कर खुद  ही संभलने  लगता है,
मज़हब की दीवार बना सर वहाँ पटकने लगता है,
देश के संसाधन को जला लाभ गटकने लगता है,
भारतवंशियों की आँखों में वही खटकने लगता है।    
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।

चादर जला विश्वास की, खुद  ही तुरपने लगता है,
तब ऐसी कौमों के प्रति विश्वास दरकने  लगता है,
अहम् का फूला गुब्बारा फिरसे पिचकने लगता है,
देशहित सिरेसे ठुकरा के बेबात खड़कने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।

कुछ बर्ताव ही ऐसा है आँखों में कसकने लगता है,
बार बार शक बादल फिर पास फटकने लगता है,
उनका ऐसा कारज लख अरमाँ चटकने लगता है,
देश के निर्मल दामनपे जब लहू छिड़कने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
 जब कोई एड़ा बन कर के, पेड़ा झपटने लगता है,
अपनी घर,बस, रेलों को पुरजोर दहकने लगता है,
घाटा क्योंकेवल  देश का हो प्रश्न सुलगने लगता है,
तब हम कैसे क्यों शान्त रहें प्रश्न उछलने लगता है।   
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।

जब बिन अर्थों के प्रश्नों का अम्बार लगने लगता है,
नकली मासूम कुकर्मों से ये देश सुलगने लगता है,
मानस  में आँधी चलती,  विश्वास पनपने लगता है,
नाग को नाथ न दूध पिला सबको डसने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।

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काव्य

ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।

February 5, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अपनी सहिष्णुता अपनों को ही भारी पड़ जाती है,

मर्यादाओं के चक्कर में मति अपनी मारी जाती है,

सीधेसाधे मनवालों के जीवन का हरण हो जाता है,

मार काट सम्प्रदाय बढ़ाना धारणा धर्म हो जाती है।

ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।

जो अपने को हिन्दू कहते उनमें कुछ कुलघाती हैं,

केवल निज स्वार्थ पढ़ा जिसने,नहीं हमारे साथी हैं,

हम यूँही ऊँ शान्ति जपते मन्दिर ध्वंस हो जाता है,

इन घाती भाईयों की फटती फिर क्यों ना छाती है।

ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।

हर हर महादेव बोलें तो किसकी क्षति हो जाती है,

कश्मीरी पण्डित जनसंख्या मसली सताई जाती है,

ना प्रतिकार किया जिसने उनका क्षरण होजाता है,

कुछपन्थ मजहबों के प्रति मानवता उमड़ी जाती है।

ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।

बहेगी शोणित की धारा ये बात कही क्यों जाती है,

राजनीति क्षुद्रता शान्त होती तालाबन्दी हो जाती है,

जिन्ना जैसी आज़ादी का जब नारा लगाया जाता है,

ऐसे लोगों की मंशा पाक साफ़ नज़र क्यों आती है।

ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।

संसाधनों में सीएए विरोध को आग लगाई जाती है,

ये केवल सीएए विरोध नहीं बात समझ ना आती है,

फरेबियों को आगे रख बस स्वार्थ सधवाया जाता है,

तब यहाँ के रहने वालों की क्यों मति मारी जाती है।

ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।

गरिमामयी धर्म स्थलों में क्यों आग लगाई जाती है,

शान्त सहिष्णु जनता क्यों बार बार सताई जाती है,

सद् सिद्धान्त विरोध हित क्यों ढोंग रचाया जाता है,

यह देश द्रोही प्रजाति, आफत में नज़र न आती है।

ऐसा क्यों है हिन्दू हित की बात समझ ना आती है।।

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काव्य

गर है तो है।/GAR HEA TO HEA .

February 2, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मेरी उससे दोस्ती उसको गिला गर है तो है।

मेरी तो चाहत वही, उसमें दग़ा गर है तो है।

मेरी नीयत में बफा है वो खफा गर है तो है।

मैं तो सच्चा दोस्त हूँ उसे दुश्मनी गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मैं देशी फलसफा हूँ उनका जुदा गर है तो है।

मैं तो मिट्टी से बना हूँ, वो स्वर्ण गर है तो है।

मेरा भारत चल पड़ा है वो खड़ा गर है तो है।

मैं प्यारा रहबर रहुँगा वोआतंकी गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मैं तो मधुरिम ही रहूँगा, वो गर बागी है तो है।

मैं संयम से चलूँगा वो उच्छृंखल गर है तो है।

मैं मर्यादा में रहूँगा वो अमर्यादित गर है तो है।

मैं सरल हूँ और रहूँगा वो दुष्कर गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मेरी शिष्टता सखा है वो अराजक गर है तो है।

मेरे मनमें भारत बसा है वो बेमन गर है तो है।

मेरे खून में गर्मी बहुत है, वो सर्द  गर है तो है।

मैं तो मिटने को बना हूँ वो अमर गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मेरा खून है देश को उसका निजी गर है तो है।

मैं तो मिलूँगा धूल में उसे आसमाँ गर है तो है।

मैं मिलजुलकर रहूँगा वो अलहदा गर है तो है।

मेरा स्वर वन्दे मातरम उसको गम गर है तो है

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मैं कफ़न बाँधे चला हूँ, वो छिपा गर है तो है।

मैं कोई फानी नहीं हूँ, उसे शक गर है तो है। 

मैं मृदु चुम्बन बाँटता हूँ वो जहर गर है तो है।

मेरा  तो प्रस्थान तय है, वो अजर गर है तो है।

 मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

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