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शिक्षा

बाधा ( Barrier )

February 21, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है

मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।

साथियों जीवन में उतार – चढ़ाव, ऊँच – नीच, उठना – गिरना, खुशी – ग़म, विश्वास – धोखा, दिन -रात, उजाला – अँधेरा आता ही रहता है इन समस्त सामयिक प्रक्रियाओं में परेशानियाँ, बाधाएँ हमें विचलित कर सकती हैं हमारा जीवट, हमारा आत्म बल ही हमें निजात दिला सकता है। हमें समय रहते बाधा निवारण के उपाय करने होते हैं अन्यथा हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं बचता।

यहाँ बाधा से मेरा अभिप्राय किसी भूत बाधा, प्रेत बाधा,तन्त्र बाधा आदि से नहीं है। मेरा बाधा से आशय कार्य की सफलता में बाधक व्यावहारिक तत्वों और मनोभावों से है।

हमें अपने आप में जूझने का माद्दा पैदा करना है किसी विद्वान् ने बहुत सही कहा कि –

हारा वही जो लड़ा नहीं।

ये परेशानियाँ, ये बाधाएं हमें सशक्त बनाती हैं जीवन के कैनवास में रंग भरती हैं रास भरती हैं  श्री राम नरेश त्रिपाठी जी ने तो मृत्यु का भी स्वागत करने की प्रेरणा दी है उन्होंने कहा –

निर्भय स्वागत करो मृत्यु का

मृत्यु एक है, विश्राम स्थल।

जीव जहाँ से फिर चलता है

धारण कर नव जीवन सम्बल।

हमारी परम्पराएँ, हमारी मान्यताएं, हमारे सशक्त पूर्वज सभी हमें बाधाओं से टकराने का निर्देश देते हैं। किसी से धोखा मिलने पर, किसी के छल से, कोई आपत्ति आने पर, अचानक विषम स्थिति पैदा होने पर, हमें अपना मानसिक संतुलन नहीं खोना चाहिए बल्कि और दृढ़ता युक्त होकर अन्य के लिए भी प्रेरणावाहक की भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। याद रखें पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की उन पंक्तियों को जिसमें उन्होंने हुंकार भरी –

बाधाएं आती हैं आएं,

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अँगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालायें,

निज हाथों से हँसते हँसते,        

आग लगा कर जलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।

वक्त साथ कदमताल करते हुए आइए चलते हैं उस पक्ष की ओर जहाँ लोग आपके हतोत्साह का कारण बनेंगे। वे आपको डराते हुए कहेंगे – कहना सरल है करना कठिन। वास्तव में ये वही लोग हैं जो न कुछ खुद कुछ कर सकते हैं और न ही किसी की प्रगति में मील का पत्थर बन सकते हैं इन गति अवरोधकों से बहुत सचेत रहने की जरूरत है। ये किसी भी कार्य के प्रति आपके मन में भय जगा सकते हैं और किसी भी रूप में आ सकते हैं यथा साथी, रिश्तेदार, सम्बन्धी, चिकित्सक, माता, पिता, गुरु या तथाकथित शुभ चिन्तक। कोई भी इस भूमिका को निर्वाहित कर सकता है। आपको अपने आपको आत्मविश्वास से युक्त कर यथार्थ के धरातल पर खड़ा करना है और व्यावहारिक विश्लेषण, संश्लेषण के आधार पर यथोचित निर्णय लेना है याद रखें –

रास्ता किस जगह नहीं होता

सिर्फ हमको पता नहीं होता

छोड़ दें डर कर रास्ता ही हम

ये कोई रास्ता नहीं होता।

इसीलिये शान्त चित्त रहकर हमें स्वयम मार्ग तलाश करना चाहिए। लोग क्या कहेंगे इसकी कत्तई चिन्ता नहीं करनी चाहिए और उन लोगों की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए  कोरे भाग्यवादी होते हैं और कहते फिरते हैं जो भाग्य में लिखा है वही होगा। हमें अपना भाग्य खुद ही गढ़ना है। हम आज जो हैं अपने पूर्व विचार और कर्मों की वजह से हैं। भाग्य पर भरोसे की जगह सम्यक रणनीति बनाकर क्रियान्वयन करें। अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ जी ने कितना सुन्दर भाव अभिव्यक्त किये हैं –

देख कर बाधा विविध, बहुविघ्न घबराते नहीं।

रह भरोसे भाग्य के, दुःख भोग पछताते नहीं।

काम कितना भी कठिन हो किन्तु उकताते नहीं।

भीड़ में चञ्चल बने, जो वीर दिखलाते नहीं।

हो गए एक आन में, उनके बुरे दिन भी भले।

सब जगह सब काल में, वे ही मिले फूले फले।

एक बार हाँ सिर्फ एक बार दृढ़ सङ्कल्प लें, निर्विकल्प होकर सङ्कल्प लें। दृढ़ होकर अपने सपने पूरे करने के लिए चलें। सफलता आपके कदम चूमेगी। अरे हमारा सौभाग्य है हम उस देश में जन्मे हैं जिसमें शरीर के मरने की बात होती है आत्मा की नहीं। भगवान् कृष्ण ने स्वयम् अपने मुख़ार बिन्दु से कहा।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः

न चैनं क्लेदयन्त्यपो न शोषयति मारुतः ॥ 2.23॥

आइए अब आपको उस ओर ले चलता हूँ जहाँ आपके बहुत सारे प्रश्न, उत्तर पा सकते हैं समाधान प्राप्त कर सकते हैं। आखिर आज का सामान्य मानव चाहता क्या है ? धन, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक उन्नति, अच्छे पैसे वाली नौकरी, आजीवन आर्थिक सुरक्षा।  कुछ मानव आध्यात्मिक प्रगति, शोध, अच्छा स्वास्थ्य आदि की भी कामना करते होंगे।

उक्त की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा क्या है ? अगर हम आत्म मंथन करेंगे तो पाएंगे कि सबसे बड़ी बाधा हम स्वयं हैं हम आलस्य, प्रमाद से युक्त हैं हमारे कार्यों में निरन्तरता नहीं है  अपने उद्देश्य की प्राप्ति का जुनून हम अपने आप में जगा नहीं पाए हैं। आधे अधूरे मन से किये गए प्रयास मंजिल तक नहीं पहुँचते यह हम सब जानते हैं फिर भी अपनी असफलता का ठीकरा दूसरे के पर फोड़ने की  आदत बन गयी है। कभी कभी अपनी मेहनत के फल की सहज चोरी देखते हुए भी हम जाग्रत नहीं होते। जिस दिन इन विकारों को हम अपने से दूर कर पाएंगे इस दुनियाँ के विविध आकांक्षित फल हमारे पहलू में होंगे। सफलता, अच्छा स्वास्थ्य, ऊँची प्रतिष्ठा, अच्छा पद, मान सम्मान  इन सबके पीछे  कड़ी मेहनत छिपी है याद रखें सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता।

यदि आप सचमुच सफल होना चाहते हैं तो अपने आप से उक्त प्रश्न करें, समाधान आपके संयत मन में छिपा है। सही दिशा में अनवरत प्रयास  सफलता की कुञ्जी है। बाधा निवारण का उपाय है।

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काव्य

काशीअविनाशी की नाभि ज्ञानवापी है।

February 16, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मन्दिर का भव्य होना, स्वस्थ परिपाटी है

मिटाने में दुष्टों ने, न रखी कसर बाकी है

पौराणिक ग्रंथों ने ज्ञान को जो प्रश्रय दिया

उसी का परिणाम है निशाँ अभी बाकी है।

काशी अविनाशी की नाभि ज्ञानवापी है।1।

बर्बर विध्वंश हुआ, पर पुरातन झाँकी है

खगोलीय, गणितीय, मापन  से आँकी है

काशी में विज्ञों ने, ज्ञान को संरक्षण दिया  

ज्ञानवापी केन्द्र है विस्तार सारी काशी है।

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।2।

लांघता मर्यादा को समझ लो वो पापी है

सत्य जानो, मानो ना, कैसी आपाधापी है

न्याय के मन्दिर ने सत्य को संरक्षण दिया

आ गई अयोध्या पर मथुरा,काशी बाकी है

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।3।   

राम ने मर्यादा गढ़ी, कृष्ण नीति साँची है

प्रलयंकारी शङ्कर ने गढ़ी नगरी काशी है

प्राची के ग्रंथों ने काशी का बखान किया

काशी में ईश विश्वनाथ और ज्ञानवापी है।

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।4।

सत्य सनातन आस्था चेतन जग व्यापी है

स्कन्द पुराण ने, महा महिमा ये बाँची है

भूगोल, अध्यात्म महिमा ने ये सिद्ध किया

अवमुक्तेश्वर ज्ञानप्राप्ति धाम ये काशी है।

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।5।

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