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समाज और संस्कृति

दिशा बोधक चिन्तन।

May 5, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मेरे सम्मानित साथियो

विविध विचारशील मनुष्य के मानस में कभी कभी अद्भुत वेशकीमती विचार सृजित होते हैं जिसे कालान्तर में वह भूल जाता है। विचार गुम हो जाता है और कभी कभी चिन्तन पूर्णतः निठल्ला भी हो सकता है।

यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि सृजित विचार के संचयन हेतु मनुष्य का टाइम फ्री जोन  में होना परम आवश्यक है उदाहरण के लिए मैं 58 वर्ष की आयु में चिन्तन हेतु मुक्त होना चाहता था, स्थितियाँ भी सृजित हुईं लेकिन जीविकोपार्जन व आर्थिक आवश्यकता की पूर्ती हेतु मुझे आज भी कार्य करना पड़ता है। जो स्वतंत्र चिंतन में बाधक है और मुझे समाज की समस्याओं पर चिन्तन से विरत करता है। सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है सबकी प्रगति एक साझा जिम्मेदारी है। हम नाकारा होकर स्वयम् को विरत नहीं कर सकते

            आप महसूस कर रहे होंगे और वह सही है कि आज का शीर्षक है – दिशा बोधक चिन्तन।

मेरे वैश्विक समकालीन साथियो,

 आज हम जिस दुनियाँ में जी रहे हैं और अपने अध्ययन, अधिगम के आधार पर चिन्तन के लायक हो सके हैं। वहाँ हमारे द्वारा जीविकोपार्जन हेतु किए कार्य, हमारा बहुमूल्य चिन्तन का समय छीन लेते हैं। निःसन्देह कार्य करना अच्छी बात है लेकिन समय का ऐसा नियोजन भी परम आवश्यक है कि हम अपने रूचि के क्षेत्र में कार्य हेतु समय निकाल सकें यथा – चिन्तन आधारित सृजन।

आप सभी ने यह महसूस किया होगा कि कभी विचारों का अँधड़ चलता है। बहुत से विचार मानस में मचलते हैं और कभी विचार शून्यता की सी स्थिति हो जाती है। कोई विचार शब्दों की लड़ी बन कागज़ पर नहीं उतर पाता। अक्सर मेरे साहित्यकार साथी, गजलकार, कवि और सार्थक बहस में प्रतिभागी मेरे मित्र यह कहते हैं कि आज पता नहीं क्या हुआ कोई विचार आया ही नहीं और कभी कहते हैं कि आज सृजन पर माँ शारदे की कृपा हो गयी

उक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि कोई भी समय विशेष हो सकता है और उस समय पर अन्य जीविकोपार्जन हेतु कार्य की मजबूरी दुनियाँ को कुछ सार्थकता से वंचित कर देती है।आज U.K, U.S.A, सम्पूर्ण यूरोप, सम्पूर्ण एशिया के समकालीन साथी विचारकों के विचारों से हम वंचित हैं कभी भाषा अवरोध बनती है, कभी समय। समय हो तो कई भाषाएँ सीखकर लाभ उठाया जा सकता है।

प्रश्न उठता है कि समय तो सबके पास समान है कोई इतने ही समय में विशिष्ट बन जाता है और कोई जड़ की स्थिति में रहता है। एक दिन में 86400 सैकण्ड होते हैं और इस समय का सार्थक नियोजन व उस पर अमल हमें सार्थक दिशा बोध दे सकता है। उम्र की और अच्छे स्वास्थय की एक सीमा है और सार्थक दिशाबोधक सृजन हेतु, वैश्विक समाज के सार्थक दिग्दर्शन हैं अच्छा स्वास्थय और अच्छी सोच दोनों आवश्यक है।

इस स्थिति के सम्यक विवेचन से स्पष्ट है कि गुरुओं का दायित्व और गुरुत्तर हो जाता है कि वे अपने विद्यार्थियों को उनके युवा काल में ही यह समझाएं कि वे   कठोर परिश्रम और उपार्जन करें। इस आधार पर अपने लिए टाइम फ्री जोन बना सकें। चिन्तन की शक्ति पैसे से नहीं खरीदी जा सकती लेकिन धन चिन्तन में परोक्ष रूप से सहयोग तो करता है। अतिरिक्त धनभोगी को विलास की ओर ले जाकर अभिशप्त करता है। लेकिन एक चिन्तक को स्वस्थ चिन्तन की ओर ले जाकर विश्व के लिए उपयोगी बनाता है।

विचारों से जुड़ने हेतु आत्मीय धन्यवाद।

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समाज और संस्कृति

जालियाँ वाला बाग़

April 12, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ਜਾਲੀਆਂ ਵਾਲਾ ਬਾਗ

भारत के पंजाब प्रान्त में स्वर्ण मन्दिर के पास एक जगह है जिसे जालियाँ वाले बाग़ के नाम से जाना जाता है। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन उस सङ्कीर्ण निकासी वाले बाग़ में लोग त्यौहार को खुशी खुशी मनाने व रॉलेट एक्ट से सम्बन्धित शान्ति पूर्ण सभा का हिस्सा बनने के लिए एकत्रित हुए इसमें बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलायें सभी तरह के व सभी आयु वर्ग के लोग शामिल थे।

 अधिकाँश सदस्यों के विरोध के बावजूद 10 मार्च 1919 को दिल्ली की विधान सभा से अराजक और क्रान्तिकारी गतिविधियों को रोकने हेतु जो कला क़ानून पारित हुआ उसे रॉलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः इस एक्ट के द्वारा ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार मिलना था कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना किसी सबूत के दो वर्ष कैद रख सके। इसमें किसी मुकदमें को चलाने की भी आवश्यकता नहीं थी।

यही नहीं समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता भी इस माध्यम से समाप्त हो रही थी गिरफ्तार होने वाले को यह जानने का अधिकार भी नहीं था कि वह क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है जब कोइ निर्दोष साबित होने पर छूट भी जाता था तो उसे जमानत राशि जमा करनी पड़ती थी और वह किसी भी राजनैतिक, धार्मिक, शैक्षिक कार्यक्रम में भाग नहीं ले सकता था।

इन दमनकारी युद्धकालीन नीतियों के खिलाफ जगह विरोध के स्वर उठ रहे थे, भारत की ब्रिटिश सरकार श्रृंखलाबद्ध ढंग से दमनकारी आपात कालीन व्यवस्थाएं बनाकर भारतीय क्रान्ति के अग्रदूतों का यथा सम्भव विनाश करना चाहती थी। इस आहट को महसूस कर जालियाँ वाले बाग़ में शान्ति पूर्ण सभा आयोजित हो रही थी।

ह्त्या काण्ड निर्देश व नर संहार आयोजन –

भारत के इतिहास में ऐसे कई दिवस  पड़ते हैं जो निर्दोष भारतीयों के खून से रँगे है माँ भारती के पंजाब प्रान्त की हमारी रणबाँकुरी प्रजाति से  आमने सामने शस्त्र सहित भिड़ना अंग्रेजों की औकात से बाहर था इसीलिये जब हजारों निहत्थों का रैला शान्ति पूर्ण विचार मन्थन हेतु जालियां वाले बाग़ में इकठ्ठा हो चूका तब पंजाब प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर सर माइकेल फ्रांसिस ओ डायर के इशारे पर कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर के आदेश पर इस रूह कँपा देने वाले नरसंहार  को अमल में लाया गया यह दुष्काण्ड हजारों निहत्थों की जीवन लीला समाप्त करने का कारण बना संकरे रास्ते  रोके खड़े ब्रिटिश सैनिक अपने कसाई डायर के आदेश पर बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं सहित सम्पूर्ण उपस्थित जनसमूह पर अंधाधुन्ध गोलीबारी कर रहे थी बहुत से लोग वहाँ एक कुएं में छलांग लगाने को विवश हो गए। इन कसाइयों ने ऊपर से भारतीयों के मृत शरीर उस कुएं में डाल दिए जिससे जिससे वह कुआँ उसमें जीवित लोगों का समाधि स्थल बन जाए .

तत्सम्बन्धी दोनों डायर की अन्तिम परिणति –

13 अप्रैल 1919 को शाम 5 बजकर 37 मिनट पर हुई इस भयङ्कर नर सँहार ने अंग्रेज शासन की चूलें हिला दी, भीड़ पर गोली चलाने की भारत और ब्रिटेन दोनों जगह  भारी भर्त्सना हुई। कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर जो अमृतसर के कसाई के नाम से भी जाना जाता है। कालान्तर में ब्रिटेन चला गया और ब्रेन हैमरेज से उसकी मृत्यु हो गई। दूसरा डायर जो उस समय पंजाब का गवर्नर था जिसकी सहमति से नरसंहार की पूर्ण पटकथा लिखी गयी। उस माइकल फ्रांसिस ओ डायर को सरदार ऊधम सिंह ने अपनी शूर वीरता का परिचय देते हुए लन्दन में मार डाला। यद्यपि वीर ऊधम सिंह जिसने जेल में अपना नाम भारत की सांस्कृतिक एक जुटता दर्शाता – मोहम्मद सिंह आज़ाद बताया, को फाँसी की सजा दी गई। इस वीर ने जालियां वाले बाग़ हत्याकाण्ड का बदला लिया 19 जुलाई 1974 को क्रांतिकारी ऊधम सिंह की अस्थियां भारत लाई गईं।

जालियाँ वाले बाग़ के इस  भयङ्कर संत्रांश ने हर भारतीय को झकझोर कर रख दिया। जगह जगह विद्रोह कई नए  खड़े हुए बहुत से लोगों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्राप्त उपाधियों को  दिया। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के आक्रोश पत्र के शब्द हिन्दी में आपके समक्ष रखता हूँ। –

“इस अवस्था में मैं अपने देश के लिए कम से कम यह कह सकता हूँ कि आतंक से गुंग अपने करोड़ों देश वासियों द्वारा भोगी जा रही मूक पीड़ा एवम् संताप को मुखरित करूँ और उसके सभी परिणाम भुगतने के लिए तत्पर रहूँ। अब समय आ गया है जब कि सम्मान के प्रतीक (उपाधियाँ आदि)  उनसे विसंगत अपमान के सन्दर्भ में हमें अधिक शर्मिंदा करते हैं। और मैं अपने स्थान पर इन विशेष सम्मानों को झटक कर अपने देश वासियों के साथ खड़ा होना चाहता हूँ। ———–इन्ही कारणों ने मुझे दुखी ह्रदय से मजबूर कर दिया है कि मैं आज महामान्य जी को सत्कार और खेद सहित कहूँ कि मुझे सर की उपाधि से मुक्त किया जाए जो कि सम्राट द्वारा मुझे प्रदान की गयी थी।”-  राष्ट्र धर्म’ जुलाई 2021 से साभार

इस घटना ने राष्ट्रवादियों के ह्रदय को विदीर्ण कर दिया। आँखों में रक्त उतरना स्वाभाविक था। बहुत से साहित्यकारों ने अपनी कलम के माध्घ्यम से इसे अभिव्यक्ति दी। कवि कुल शिरोमणियों की श्रृंखला की कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित ‘जालियाँ वाले बाग़ में बसन्त‘ के शब्द और भाव आपकी झोली में रखता हूँ –

यहाँ कोकिला नहीं काग हैं शोर मचाते,

काले काले कीट भ्रमर का भ्रम उपजाते।।

कलियाँ भी अधखिली मिली हैं कंटक कुल से

वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे ।।

परिमल -हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,

हा ! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है ।।

ओ, प्रिय ऋतुराज ! किन्तु धीरे से आना,

यह है शोक स्थान यहां मत शोर मचाना ।।

वायु, चले पर मंद चाल से उसे चलाना,

दुःख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना ।।

कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,

भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनाएँ।।   

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,

तो सुगन्ध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले ।।

किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,

स्मृति  में  पूजा  हेतु  यहाँ  थोड़े  बिखराना।।

कोमल बालक मरे यहाँ  पर गोली खा कर,

कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर ।।

आशाओं से भरे ह्रदय भी छिन्न हुए हैं,

अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं ।।

कुछ कलियाँ अधखिली यहां इसलिए चढ़ाना,

करके उनकी याद अश्रु के ओस बहाना ।।

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर

शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर ।।

यह सब करना किन्तु वहाँ मत शोर मचाना,

यह है शोक स्थान, बहुत धीरे से आना ।।

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समाज और संस्कृति

कपाल भाति / KAPAAL BHATI

February 12, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कपाल भाति / KAPAAL BHATI

कपाल भाति प्राणायाम एक अत्याधिक ऊर्जा युक्त उच्च उदर प्राण आयाम है। कपाल का अर्थ संस्कृत में होता है ललाट या माथा और भाति का आशय है तेज। कपाल भाति को मुख मण्डल पर आभा, ओज या तेज लाने वाले प्राणायाम के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसे योग परिक्षेत्र में षट्कर्म (हठ योग) की एक क्रिया के रूप में मान्यता प्राप्त है। जब हम भाति को स्वच्छता के रूप में स्वीकार करते हैं तो कपाल भाति को मष्तिष्क को स्वच्छ करने या मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को दुरुस्त रखने वाले प्राणायाम के रूप में स्वीकार करते हैं।

कपाल भाति के लाभ /Benefits of Kapal Bhati –

कपाल भाति के लाभ /Benefits of Kapal Bhati –

यूँ तो कपाल भाति आन्तरिक शुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन है लेकिन यह सम्पूर्ण जीवन और व्यक्तित्व को बदलने की क्षमता रखता है

इससे होने वाले लाभों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।

01 – आन्तरिक शोधन में सहायक / Helps in internal purification

02 – अवसाद में कमी / Reduction in depression

03 – शारीरिक भार नियन्त्रण / Body weight control

04 – ओज में वृद्धि / Increase in glow

05 – वजन में कमी / Weight loss

06 – पाचन सहायक / Digestive aid

07 – पेट की चर्बी पर नियन्त्रण / Control belly fat

08 – उच्च रक्त चाप नियन्त्रण / High blood pressure control 

09 –  मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण उपादान /Important Component for Mental Health

10 – कोलस्ट्रोल नियन्त्रण /Cholesterol control

11 – हार्मोन असन्तुलन में सुधार / Improves hormone imbalance

12 – नींद हेतु गुणवत्ता सुधार / Improve sleep quality 

13 – आँख के नीचे के काले घेरे दूर करना / Removing dark circles under the eyes

14 – विषाक्त पदार्थों का निस्तारण /Disposal of toxic substances

15 – अस्थमा नियन्त्रण / Asthma control

16 – गैस व एसिडिटी दूर करने में सहायक/ Helpful in removing gas and acidityसावधानियाँ /Precautions –01 – यह प्राणायाम खाली पेट ही करना है। यदि कुछ खाया है तो उसके 4-5 घण्टे बाद इसे करें। 02 – उच्च रक्तचाप और गैस से पीड़ित होने पर धीमी गति से इस प्राणायाम को करना है। 03 – गर्भावस्था व मासिक चक्र के समय इससे बचें। 04 – पेट घटाने के चक्कर में इसे पूरे दिन बार बार न करें। 05 – कब्ज की स्थिति में इसे न करें जब तक कब्ज से निजात न पा लें। 06 – ज्वर, दस्त या गम्भीर रोग की स्थिति में इसे न करें।  07 – धूल, धूएं, गर्द-गुबार, आँधी आदि में इसे न करें।    08 – गर्म वातावरण में भी इसे न कर सामान्य तापमान पर करना अधिक उत्तम है। 09 – कोई परेशानी या दिक्कत होने पर योग्य योगाचार्य या चिकित्सक देख रेख में इसे करें। 10 – अस्थमा के रोगी धीमी व नियन्त्रित गति से इसे करें ।प्राणायाम हेतु विधि –01 – आरामदायक कुचालक आसान का प्रयोग करें। 02 – सिद्धासन, पद्मासन, आलती पालती मारकर बैठ जाएँ।    03 – सर व रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। 04 – शरीर को ढीला छोड़कर आँख बंद कर सकते हैं। 05 – इस प्राणायाम में केवल श्वांस को बारम्बार बाहर छोड़ना है 06 – पूर्ण विश्वास से प्राणायाम की पूर्णता पर शान्ति अनुभव कर ईष्ट शक्ति के प्रति कृतज्ञता भाव रखें। 07 – धीरे धीरे प्राणायाम की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाएँ। 08 – श्वांस छोड़ने के क्रम में बार बार तेज स्ट्रोक न लगाएं।

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समाज और संस्कृति

बसन्तपञ्चमी / BASANT PANCHAMI

February 1, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बसंत पंचमी ऊर्जा युक्त दिवस है ,भारतीय इसे पूर्ण उल्लास के साथ मनाते हैं इस बार यह 02/02/2025 दिन रविवार को 11. बजकर 53 मिनट से लग रही है जो 03/02/2025 दिन सोमवार को प्रातः 9 बजकर 36 मिनट तक रहेगी। बसन्त पञ्चमी पूर्वान्ह कालिक व्यापिनी तिथि को मनाई जाती है। काशी के विद्वान् उदयातिथि व पूर्वान्ह कालिक व्यापिनी तिथि के हिसाब से इसे 03/02/2025 दिन सोमवार शास्त्र सम्मत स्वीकार कर रहे हैं। वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य प्रो ० चन्द्र मौलि उपाध्याय ने बताया कि ऋषिकेश पञ्चाङ्ग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का विश्व पञ्चाङ्ग या अन्य पारम्परिक पञ्चाङ्ग सबने बसन्त पञ्चमी का पर्व 03/02/2025 दिन सोमवारको ही स्वीकार किया है।

सरस्वती पूजा का प्रारम्भ –

माँ शारदे का बसन्त पञ्चमी के पूजन से सम्बन्धित बहुत सी कहानियाँ वर्णित की जाती हैं। कहा जाता है कि माँ शारदे का कृपा पात्र होने पर जिह्वा पर सरस्वती विराजमान हो जाती है और व्यक्ति नाम, यश, मान, सम्मान , विशिष्ट कीर्ति का अधिकारी हो जाता है। सर्व प्रथम माँ शारदे के पूजन के सन्दर्भ में ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खण्ड में सोलह कला सम्पूर्ण भगवान श्री कृष्ण चन्द्र जी द्वारा पूजित होने का विवरण मिलता है। बसन्त पञ्चमीको इस पूजा के विधान के बारे में यह सर्व स्वीकृत है कि माँ को बसन्ती रंग अत्यन्त प्रिय हैं। इसीलिए योगेश्वर कृष्ण की वैजयन्ती माला, मुकुट, और पीताम्बरी इससे प्रभावित है। श्री कृष्ण भगवान द्वारा सरस्वती को यह वरदान प्रदत्त किया गया कि प्रत्येक माघ शुक्ल की पञ्चमी के दिन ब्रह्माण्ड में तुम्हारा पूजन होगा। विद्यारम्भ के समय प्रेम, श्रद्धा गौरव के साथ पूर्ण आस्था से तुम्हारी पूजा होगी। उन्होंने इस तिथि हेतु कहा। –

“मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलय तक प्रत्येक कल्प में मनुष्य, देवता, मुनिगण, योगी, नाग, गन्धर्व और राक्षस सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह उपचारों द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे।”

कहा जाता है कि तभी से माघ शुक्ल पञ्चमी के दिन बसन्त पञ्चमी  मनाते हैं और सरस्वती पूजन किया जाता है।

धर्म आधारित मान्यता –

यह दिन हाथों में पुस्तक, वीणा, माला, के साथ श्वेत कमल पर विराजित होकर वीणा वादिनी के प्रागट्य का है बसन्त पञ्चमी के इस विशिष्ट दिन से ही बसन्त ऋतु की प्रभावोत्पादकता देखने को मिलती है शास्त्रों में इनके प्रसन्न होने पर देवी काली और माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता का भी विवरण मिलता है विधि विधान के साथ भी शारदे की उपासना बसन्त पञ्चमी को होती है और इसके 40 दिनों के बाद होली पर्व प्रारम्भ होता है।बसन्त को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।

            धार्मिक मान्यता यह भी है कि ये सङ्गीत, कला और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। इसी कारण इस शुभ दिन सरस्वती पूजा विशेष रूप से की जाती है।

संस्थानों में सरस्वती पूजा –

इस विशिष्ट दिन को घरों में प्रतिष्ठानों में, मंदिरों में, शिक्षा के मन्दिर अर्थात विद्यालयों में माँ सरस्वती का पूजा अनुष्ठान होता है। ज्ञान, कला और सङ्गीत की देवी की आराधना विधि विधान से इन संस्थाओं में करने के पीछे कृपा पात्र बनने की कामना भी है। बसन्त पञ्चमी का यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को मनाकर जीवन में ऐश्वर्य, ज्ञान, समृद्धि और सकारात्मकता से जुड़ने का संस्थान को विशेष अवसर मिलता है। भौतिकता की अन्धी दौड़ में यह दिन आध्यात्मिक चिन्तन को आधार प्रदान करता है।

सरस्वती पूजन की वैयक्तिक विधि –

यथा योग्य पूजन सामग्री एकत्रित करने के पश्चात इस भाँति पूजन करना है –

01 – उदया तिथि में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।

02 – पीत वस्त्र धारण करें इसे शुभ माना गया है

03 – भगवान गणेश व माँ शारदे वीणा वादिनी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।

04 – पद्मासन में बैठकर माँ का ध्यान करें। मानसिक रूप से मौन के साथ माँ का ध्यान किया जा सकता है तथा इन शब्दों से माँ के विशद रूप का ध्यान किया जा सकता है।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1

इसका आशय है कि जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।

05 – हल्दी, पीले मीठे चावल, पीले फूल,फल लड्डू आदि का भोग लगाएं।

06 – अन्त में गणेशजी व वीणा वादिनी की आरती कर प्रसाद वितरण करें। 

 पूजा, उपासना की उक्त विधि अधिक लोगों द्वारा इस तरीके को अपनाने के कारण बताई है वैसे आप अपने मानस के आधार पर किसी भी ढंग से माँ शारदे विद्या की देवी की उपासना कर सकते हैं।

माङ्गलिक कार्यों हेतु विशेष शुभ दिन –

समस्त माङ्गलिक कार्यों हेतु इसे विशेष दिन के रूप में मान्यता प्राप्त है यह दिन इतना शुभ मन जाता है कि गृह प्रवेश, मुण्डन, विवाह,नव प्रतिष्ठान प्रारम्भ व किसी भी नवीन कार्य के सम्पादन हेतु इस दिवस की प्रतीक्षा की जाती है।

ऐसा भी विदित है कि सूफी सन्तों ने इसकी शुभता को स्वीकार किया व चिश्ती सम्प्रदाय ने भी इसे मनाने का निर्णय किया। प्रसिद्द विचारक लोचन सिंह बख्शी के अनुसार –

“बसन्त पंचमी एक हिन्दू त्यौहार है जिसे १२वीं शताब्दी में कुछ भारतीय सूफियों द्वारा दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर स्थित मुस्लिम सूफी सन्त की कब्र पर मनाने के लिए अपनाया गया और तबसे यह चिश्ती सम्प्रदाय द्वारा मनाया जाता है।“

उक्त आलोक में कहा जा सकता है कि इस शुभ दिन को सामाजिक, धार्मिक,  सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त है। यह प्रकृति की कायाकल्प के कारण भी शुभता का प्रभावी सन्देश देने में समर्थ है इस दिन पञ्चाङ्ग देखने,दिखाने की आवश्यकता नहीं होती पूर्ण समयावधि ही शुभ है।

दान सम्बन्धी धारणा –

इस दिन की दान सम्बन्धी धारणा भी बहुत व्यावहारिक है। लेखक, कवि, दार्शनिक, कहानीकार, साहित्यकार, शिक्षार्थी, शब्द शिल्पी और विविध सृजन से जुड़े लोगों का यह विशिष्ट दिन है। इसीलिये इनसे जुड़ी वस्तुओं यथा पुस्तक, कलम, पेन्सिल, स्याही,कागज़, चश्मा, आसन आदि का दान पात्रता देखकर सही व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जरूरतमन्दों  नोटबुक, विद्यादान में सहयोग की व्यवस्था बनाई जा सकती है।

बसन्त पंचमी व भोजन –

पीले मीठे पदार्थ और सात्विक भोजन गृहण करने का विधान है सात्विक भोजन करते समय गरिष्ठ भोजन गृहण करने से भी बचना चाहिए तामसिक भोज्य पदार्थों का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए यहाँ तककि लहसुन,प्याज का भी प्रयोग इस दिन वर्जित है। केवल उन पदार्थों का सेवन करें जिससे अधिगम में व्यवधान न हो। केसर गुड़ पीले चावल का इस दिन विशेष महत्त्व है। वास्तव में बसन्ती रंग सुख, समृद्धि, और ऊर्जा का प्रतीक मन जाता है  रंग का पुष्प अर्पित करने के पीछे भी यही मान्यता कार्य करती है। फसल पकने ,हलके जायकेदार भोजन और खुशी का प्रगटन लोग पतङ्ग उड़ाकर करते हैं। 

बसन्त पंचमी व इसका महात्मय – 

इसके महात्मय इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि विद्यारम्भ बिना सरस्वती पूजा के संपन्न नहीं होता। कहा जाता है कि जब व्यास जी ने बाल्मीकि जी से पुराण सूत्र के बारे में पूछा तो वे बताने में असमर्थ रहे इस स्थिति में व्यासजी ने जगदम्बा सरस्वती की स्तुति की और इनकी विशेष कृपा से बाल्मीकि जी को ज्ञान हुआ तत्पश्चात इन्होने  सिद्धान्त को प्रतिपादित किया। माँ शारदे के वर से व्यासजी कवीश्वर बने व उन्होंने पुराणों की रचना की। माँ शारदे की उपासना से ही इन्द्र शब्द शास्त्र व उसका अर्थ समझने में समर्थ हो सके। ज्ञान से शब्द बोध होता है और अनुभव से उसका आशय स्पष्ट होता है। विद्या मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास हेतु है शारीरिक विकास हेतु भोजन व मानसिक उत्थान हेतु विद्या आवश्यक है। इस ज्ञान की प्राप्ति हेतु ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की उपासना श्रेयस्कर है और बसंत पंचमी इस हेतु श्रेष्ठ दिन।                           

                           

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समाज और संस्कृति

SUBHASH CHANDR BOSE

January 22, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुभाष चन्द्र बोस

23/01/1897-18/08/1945

तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।

दिल्ली चलो।

यह ऐसे नारे हैं जो बिना नाम बताये भारतीय आज़ादी के विशिष्ट पुरोधा का नाम मनोमष्तिष्क में झंकृत कर देते हैं। आज जब आज़ादी की लड़ाई का वास्तविक चित्र एक खुले दिमाग का विचारक अपने जेहन में लाता है तो अनायास ही मानस पटल पर आ जाते हैं अमर सेनानी, आजाद हिन्द फ़ौज की पुरुष विंग के कमाण्डर सुभाष चन्द्र बोस।

आज पराक्रम दिवस के अवसर हेतु जिस क्रान्तिकारी बलिदानी भारत के अमूल्य रत्न सुभाष चन्द्र बोस की बात करने जा रहे हैं वह भारत के उड़ीसा प्रान्त के कटक परिक्षेत्र में 23 जनवरी,1897 को जन्मे और कहा जाता है कि हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त,1945,ताइवान के एक चिकित्सालय में आग से बहुत अधिक घायल होने के कारण शहीद हो गए। इनका सम्पूर्ण जीवन भारतीयों हेतु अदम्य साहस और पराक्रम की प्रेरणादाई मिसाल है। इनके सम्पूर्ण जीवन और कार्यवृत्त का चित्रण, विवेचन, प्रस्तुति दुष्कर है अपनी क्षमता भर बात इस अल्पावधि में आपके साथ करने का प्रयास कर रहा हूँ और आज भी उनकी तथाकथित मृत्यु के लगभग 80 वर्षोपरान्त उस वीर की बात करते हुए मैं रोमाञ्चित हूँ।

पिता जानकी नाथ और माता प्रभावती जी का यह सुपुत्र अपनी कर्मसाधना के बल पर भारतीय स्वर्णिम इतिहास के आकाश में महान स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में एक जाज्वल्यमान नक्षत्र बन गया। भारतीय कोटि कोटि हृदयों का यह लाडला बचपन से देशप्रेम, स्वाभिमान और अदम्य  साहस की जीवंत मिसाल था। अंग्रेज शासन के विरुद्ध सहपाठियों का मनोबल बढ़ाने वाला यह बाँका वीर आज़ाद हिन्द फ़ौज जापानी सहयोग से गठित करने में सफल हुआ। बचपन से जवानी की यात्रा में कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाला इस युवक 1920 में प्रशासनिक सेवा परीक्षा में भी चतुर्थ स्थान पर स्थान बनाकर 1921 अंग्रेज विरोध और आजादी प्राप्ति के लक्ष्य के कारण त्यागपत्र दे दिया।

प्रथम बार गांधी को राष्ट्र पिता कहने वाला यह पुरोधा क्रांतिकारी भगत सिंह की फांसी के बाद गाँधी की विचारधारा से पूर्णतः असहमत  हो गया। 1943 में 40,000    भारतीयों के साथ आजाद हिन्द फ़ौज का गठन करने वाला यह मसीहा कालान्तर में अण्डमान निकोबार द्वीप पर प्रथम बार स्वतन्त्र भारत का झण्डा फहराने में समर्थ हुआ। भावातिरेक में उनकी जिन्दगी की किताब का कहीं से कोई भी पृष्ठ जेहन में खुल रहा है। क्रमबद्धता बनाने का प्रयास करता हूँ।

इनके युवाकाल में भारत आन्दोलनजीवी हो चुका था महात्मा गाँधी नेतृत्वकारी शक्ति के रूप में स्थापित थे सुभाषजी भी इनका बहुत आदर करते थे 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हे 6 माह की सजा मिली। बाद में इनका नेहरू व गाँधी से मतैक्य हो गया। नेहरू रिपोर्ट के विरोध में उन्होंने इन्डिपेंडेंट लीग की स्थापना की।  2जुलाई 1940 को भारत रक्षा कानून के तहत इन्हें कलकत्ता में गिरफ्तार कर लिया गया।

यद्यपि दो बार सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन हुआ लेकिन आगे चलकर नेहरूजी, गांधीजी व कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के साथ मतभेद के कारण इन्होने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। इनकी देश के समर्थन की बहुत सारी गतिविधियाँ अंग्रेज सरकार की आँखों में खटक रही थी। फलस्वरूप इन्हें 12 बार जेल की यात्रा करनी पड़ी। विषम स्थिति ने इन्हें तपेदिक का शिकार बना दिया। ये वेश बदलने में बहुत कुशल थे। इन्हें कलकत्ता की प्रेसीडेन्सी जेल में रखा गया और घर में भी नज़रबन्द रखा गया। 17 नवम्बर 1940 को यह आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गए। 28 मार्च 1941 को बर्लिन पहुँच गए, जब ये वेश बदलकर छिपकर यहाँ से भाग गए जिस कार से धनबाद के गोमोह रेलवे स्टेशन  की यात्रा इन्होने पूर्ण की वह अब भी है और वर्तमान प्रधानमन्त्री श्रद्धेय नरेन्द्र मोदीजी को इसके दर्शन का सौभाग्य मिला जिसका जिक्र 19 /01 /2025 को उन्होंने अपने मन की बात कार्यक्रम में भी किया।

आजाद हिन्द रेडियो का गठन , रंगून और सिंगापुर में इनके मुख्यालय का बनना, जर्मनी से भारतीय युद्ध बन्दियों का सुरक्षित निकलना,प्रवासी भारतीयों का समर्थन लेने के साथ  सुभाष चन्द्र बोस ने सक्रिय रूप से बाहरी बड़ी शक्तियों से गठबन्धन की तलाश की और ब्रिटिश सेना के विरोध हेतु आजाद हिन्द फ़ौज नाम से भारतीय राष्ट्रीय सेना बनाई। रास बिहारी, कैप्टन मोहन सिंह,सुभाष चन्द्र बोस ने क्रान्तिकारी आज़ादी का भारतीय जनमानस में प्रत्यारोपण किया ,नेहरू ब्रिगेड , गाँधी ब्रिगेड, आज़ाद ब्रिगेड, सुभाष ब्रिगेड के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लक्ष्मी सहगल की रानी लक्ष्मी बाई ब्रिगेड भी कार्य कर रही थी।

अमेरिका द्वारा हीरोशिमा, नागासाकी पर एटम बम  के हमले ने जापानी सहयोग को बाधित किया एक रास्ता बन्द होने पर दूसरे को तलाशने के क्रम में हमारे नेताजी के शहीद होने की खबर ने भारतीय जनमानस को झकझोर दिया, जो आग इनके द्वारा बोई गयी थी वह ज्वालामुखी बन चुकी थी जगह विरोध के स्वर गूँज रहे थे। विविध सेनाओं के भारतीय वीर बगावत पर उतर आये। अंग्रेजों का यहाँ रुकना अत्याधिक जटिल होता जा रहा था अन्ततः अंग्रेज भारत को आजाद करने के लिए विवश हुए। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली महोदय से पुछा गया कि गाँधीजी का भारत छोड़ो आन्दोलन  सफलता पूर्वक कुचला जा चुका था तो भारत को आजादी क्यों दी गयी ,उनका जवाब था सुभाष चंद्र बोस के कारण ,गांधी नेहरू प्रयास को उन्होंने बहुत मामूली बताया।

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समाज और संस्कृति

महा कुम्भ 2025 / MAHA KUMBH 2025

January 19, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

भारत के प्रमुख प्रदेश, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज नामक स्थान पर महाकुम्भ आयोजन  प्रारम्भ हो चुका है करोड़ों लोग पावन त्रिवेणी में स्नान कर चुके हैं सङ्गम में गङ्गा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है साथ ही समस्त भेदभावों को भूलकर सभी पावनता की इस बयार का आनन्द ले रहे हैं।भारतीय जनमानस कुम्भ के विविध आयामों और मनसा, वाचा, कर्मणा की त्रिवेणी में स्नान के महत्त्व को भी समझते हैं अर्ध कुम्भ, कुम्भ, महाकुम्भ भारत की चरैवेति – चरैवेति संस्कृति की अनवरत यात्रा के पड़ाव हैं हमारे जैसे विविध जीव प्रारब्ध के अनुसार इससे जुड़ पाते हैं।

यह महाकुम्भ मेला कई दृष्टिकोण से विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आध्यात्मिक आयोजन है इस बार तो अनूठा संयोग बन पड़ा है 144 साल के बाद जो पीढ़ियाँ इसका आनन्द उठाने में समर्थ हो पा रही हैं उन्हें इस बेहद खास अवसर का प्रत्यक्षीकरण करने का अवसर मिलेगा।

कुम्भ अवधि  –

दुनियाँ भर से आस्था की डुबकी लगाने लोग भारत आते हैं कुम्भ परम्परा में अर्ध कुम्भ, कुम्भ व महाकुम्भ का यह अवसर क्रमश 6 वर्ष, 12 वर्ष व 144 वर्ष बाद आता है। महाकुम्भ का अवसर कई पीढ़ियों को नसीब नहीं होता। अवधि के सम्बन्ध यह भी बताया जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक साल के बराबर है सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की सापेक्ष स्थिति के अनुसार 12 वर्ष में कुम्भ मेला का आयोजन होता है हरिद्वार और प्रयागराज में 6 वर्ष बाद अर्ध कुम्भ आयोजन होता है 12 कुम्भ पूर्ण होने पर अर्थात 144 वर्षोपरान्त महाकुम्भ के इस स्वरुप का आयोजन होता है।

समुद्र मन्थन और कुम्भ स्थल –

भारतीय पौराणिक कथाओं में समुद्र मन्थन हेतु देवताओं और राक्षसों के प्रयास का वर्णन मिलता है इस समुद्र मन्थन से मिलने वाले 14 तत्वों में अन्तिम वस्तु अमृतयुक्त कलश अर्थात कुम्भ (घड़ा) प्राप्त हुआ। धन्वन्तरि की अमृत कुम्भ के साथ उपस्थिति पर असुरों से बचाने हेतु इन्द्र के पुत्र जयन्त उस घड़े को लेकर भागे सूर्य, सूर्य पुत्र शनि, बृहस्पति और चन्द्रमा रक्षार्थ उनके साथ गए।

इन्द्र पुत्र जयन्त जब इस कुम्भ को लेकर भागे तब भागते समय 12 दिनों में अमृत चार स्थानों पर छलक गया यह स्थल हैं हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन व नासिक।

इन स्थलों पर देवताओं के 12 दिन (मनुष्यों के 12 वर्ष) में कुम्भ या पूर्ण कुम्भ लगता है और 12 कुम्भ अर्थात 144 वर्ष पर महा कुम्भ का आयोजन होता है।

ज्योतिषीय गणना के आधार पर कुम्भ मेले का स्थान नियत किया जाता है 12 वर्ष के अन्तराल का कारण बताते हुए कहा जाता है कि बृहस्पति को सूर्य का चक्कर लगाने में 12 वर्ष का समय लगता है जब बृहस्पति कुम्भ राशि में स्थित होता है तथा सूरज मेष राशि में और चन्द्रमा धनु राशि में होता है तब कुम्भ का आयोजन हरिद्वार में होता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में सूर्य और चन्द्रमा कर्क राशि में होता है तो कुम्भ का आयोजन नासिक त्रयम्बकेश्वर में होता है।

प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन तब होता है जब बृहस्पति वृषभ राशि में व सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होता है।

विविध मुख्य स्नान  – 

भारत में प्राचीनकाल से पंचांग का उपयोग हो रहा है।पंचांग के पांच अंग हैं -वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण। इस आधार पर प्रथम शाही स्नान पौष पूर्णिमा पर 13 जनवरी 2025 को हुआ,  दूसरा शाही स्नान मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025) को सम्पन्न हुआ तीसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या पर किया जाएगा

            मौनी अमावस्या पर शाही स्नान का अत्याधिक आध्यात्मिक महत्व है।भारतीय हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार अमावस्या तिथि 28 जनवरी की शाम 7:35 बजे शुरू होगी और 29 जनवरी की शाम 6:05 बजे खत्म होगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब 29 जनवरी को स्नान किया जाएगा। इस दिन संगम पर 6 करोड़ लोगों की भीड़ उमड़ने का अनुमान है।

भारतीय मनीषियों ने 03 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के दिन कुम्भ स्नान को भी विशिष्ट महत्ता प्रदान की है।

            45 दिन चलने वाले इस सामाजिक आध्यात्मिक महापर्व का प्रत्येक दिन पावस है और किसी दिवस की पावनता काम नहीं है लेकिन फिर भी विद्वानों द्वारा निर्धारित उक्त दिवस विशेष हैं। जो लोग नहीं पहुँच पा रहे हैं वे निराश न हों महा कुम्भ और तीर्थराज प्रयाग का नमन करें और शुद्ध अन्तः चेतना से घर पर स्नान करें क्योंकि मन चंगा तो कठौती में गङ्गा।

सामाजिक व आर्थिक महत्ता –

पापों से मुक्ति और मोक्ष की महत्वाकाँक्षा बहुत लोगों को गंगा में डुबकी लगवाती है लेकिन यह महाकुम्भ हमें सड़ी गली मान्यताओं व जाति-पाँति के भावों को तिरोहित कर उच्च सामाजिक मान्यताओं को अङ्गीकार करने की प्रेरणा देती है और प्रत्येक जीव में दिव्यात्मा के दर्शन करवाती है।

समाज का एक वर्ग कल्पवास की धारणा के साथ आकर यहाँ रुकता हैं बहुत से लोग लम्बे भौतिक झंझावातों से मानसिक शान्ति की तलाश में यहाँ आते हैं कुछ लोग भौतिकता की अन्धी दौड़ से निजात पाने के लिए अध्यात्म की शरण में आते हैं विविध अखाड़ों के दर्शन लाभ के साथ दान आदि देकर सकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव से अपने आप को युक्त करने वालों की भी कमी नहीं है। बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इसमें शामिल हैं स्टीव जॉब्स की पत्नी और बहुत से औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्वामियों के साथ करोड़ों लोगों ने महाकुम्भ में आस्था की डुबकी लगाई। विविध विद्वान्, विविध मन्त्री, धार्मिक आस्था युक्त बहुत सी देशी विदेशी महिलाओं ने महाकुम्भ स्नान किया विज्ञ जनों, विविध ऋषियों, मनीषियों, दिव्यात्माओं और श्रद्धायुक्त आध्यात्मिक जनों का अविरल प्रवाह महाकुम्भ की ओर लगातार बना हुआ है, जो भारतीय विश्व बन्धुत्व की भावना को और प्रगाढ़ करता है।

जब भी बहुत बड़ी भीड़ कहीं एकत्रित होती है तो अपने साथ कई वाणिज्यिक व्यापारिक महत्त्व के अवसर उपलब्ध कराती है।

इस बार इस महाकुम्भ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की आशा है जो रूस और अमेरिका की कुल आबादी से भी अधिक है इस महाकुम्भ के आयोजन हेतु राज्य सरकार ने 7000 करोड़ रुपए का आबण्टन किया है यह महाकुम्भ 26 फरवरी 2025 तक चलेगा और निश्चित रूप से इससे उत्तर प्रदेश सरकार की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी।

आर्थिक विशेषज्ञों ने 2025 के महाकुम्भ मेले से 2 लाख करोड़ के योगदान की उम्मीद जताई है यदि श्रद्धालुओं का औसत व्यय बढ़ेगा तो आय में और अधिक इजाफा होगा।

शीतल जल में डुबकी का प्रभाव –

शीतल जल में डुबकी लगाने से वजन में कमी व मेटाबोलिज्म में सुधार होता है इससे मूड में सकारात्मक बदलाव होता है और दर्द में कमी आती है लेकिन कुछ लोग मांसपेशियों में ऐंठन व हृदय सम्बन्धी कुछ समस्याओं की शिकायत करते हैं। भारतीय श्रद्धालु घर पर स्नान करके पतित पावनी गङ्गा में स्नान करते हैं आकलन में ऐसे लोगों पर दुष्प्रभाव कम देखा गया है।      

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समाज और संस्कृति

Social Control in reference to educational development

June 12, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


शैक्षिक विकास के सन्दर्भ में सामाजिक नियंत्रण

विषय वस्तु को अध्ययन व अधिगम के दृष्टिकोण से निम्न भागों में बाँट कर अध्ययन करेंगे :-

1 – सामाजिक नियन्त्रण की अवधारणा (concept of social control)

2 – सामाजिक नियन्त्रण से आशय व विविध परिभाषाएं

    (Meaning and definitions of social control)

3 – शैक्षिक विकास में सामाजिक नियन्त्रण की भूमिका

    (Role of social control in educational development)

4 – निष्कर्ष (Conclusion)

1 – सामाजिक नियन्त्रण की अवधारणा (concept of social control): –

भारत में सामाजिक नियन्त्रण की अवधारणा सर्वाधिक पुरातन व सनातन है सर्व प्रथम ऋषि परम्पराओं व उनके निर्देशों में इनके दर्शन होते हैं और इनका सर्वाधिक व्यवस्थित रूप कर्म प्रधान वर्ण व्यवस्था में द्रष्टव्य होता है विविध राजाओं, कबीलों व समुदायों की व्यवस्था में भी इसके अंश दिखाई देते हैं। कर्म प्रधान वर्ण व्यवस्था पर विविध विद्वत जनों ने कार्य किया है।

            हम स्वभावतः या उदार या गुलाम मानसिकता के चलते हर विचार की जड़ हिन्दुस्तान से बाहर देखना चाहते हैं इस क्रम में अमेरिका के प्रसिद्द समाज शास्त्री E.A.Ross की 1901 में लिखी गई पुस्तक सोशल कन्ट्रोल (SOCIAL CONTROL) का आधार लिया जाता है इन्होने अपनी पुस्तक में व्यवस्थित रूप से समाज के नियन्त्रण कार्य, संस्थाओं में धर्म, विश्वास कानून नैतिकता लोकमत रीति रिवाज व शिक्षा की भूमिकाओं का वर्णन किया है।

2 – सामाजिक नियन्त्रण से आशय व विविध परिभाषाएं

    (Meaning and definitions of social control)

सामाजिक नियंत्रण से आशय उस नियंत्रण से है जिसमें समाज की उन्नति के बीज छिपे होते हैं इस हेतु जिन मर्यादाओं परम्पराओं व नियमों का अनुपालन आवश्यक होता है  उसके सुनिश्चितीकरण का प्रयास किया जाता है। इसके माध्यम से समूह द्वारा निर्धारित नियमों का अनुपालन कराने हेतु बाध्यकारी शक्तियों को भी प्रयोग में लाया जाता है। वस्तुतः सामाजिक उद्देश्यों व सामाजिक आदर्शों के स्थापन हेतु इनका प्रयोग किया जाता है।

प्रसिद्ध समाजशास्त्री रॉस महोदय कहते हैं –

“सामाजिक नियन्त्रण का तात्पर्य उन तमाम व्यक्तियों से है, जिसके द्वारा समुदाय व्यक्तियों को अपने अनुसार ढालता है। ”

“Social control refers to all those individuals by which the community molds individuals according to itself.”

मैकाइवर व पेज के अनुसार –

“सामाजिक नियन्त्रण से आशय उस तरीके से है जिससे सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था अपने को संगठित बनाये रखती है।”

“Social control refers to the manner in which the whole social system keeps itself organized.”

बोगार्ड के अनुसार –

“सामाजिक नियन्त्रण वह पद्यति है,जिसमें एक समूह अपने सदस्य के व्यवहारों को नियन्त्रित करता है। ”

“Social control is the method in which a group controls the behavior of its members.”

लेण्डिस महोदय के अनुसार –

“सामाजिक नियन्त्रण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक व्यवस्था स्थापित तथा बनाये राखी जाती है।”

“Social control is the process by which social order is established and maintained.”  

आर. जी. स्मिथ महोदय के अनुसार –

“सामाजिक नियन्त्रण उन उद्देश्यों की प्राप्ति है जो उन उद्देश्यों के साधनों के प्रति चेतन सामूहिक अनुकूलन द्वारा होती है।”

“Social control is the attainment of those objectives by conscious collective adaptation to the means of those objectives.”

3 – शैक्षिक विकास में सामाजिक नियन्त्रण की भूमिका

    (Role of social control in educational development)

01- व्यवहार नियन्त्रण द्वारा शैक्षिक विकास (Educational Development by Behavioral Control) 

02- सामाजिक समानता को प्रश्रय (Supporting social equality)

03- स्वीकृत मूल्यों का स्थापन (Establishment of Accepted Values)

04- एकता स्थापन हेतु (To establish unity)

05- व्यावहारिक प्रतिमानों व सामाजिक बुराइयों के प्रति सजगता (Awareness of practical norms and social evils)

06- शैक्षिक सामाजिक उद्देश्यों का गठन (Formation of Educational Social Objectives)

07- विविध निष्पादित कार्यों में सन्तुलन (Balance in various tasks)

08- सुख, शान्ति स्थापन (Happiness, Peace Establishment)

09- समरसता को बढ़ावा (Promote harmony)

10 – रूढ़िवाद से मुक्ति (Freedom from conservatism)

4 – निष्कर्ष (Conclusion):

      सारतः कहा जा सकता है कि निष्पक्ष सामाजिक नियन्त्रण मानव मात्र की प्रगति का एक सुखद उपागम है इससे अन्ततः मानवीय मूल्यों का संरक्षण होगा और मानव की क्रमिक प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षा को नई व्यावहारिक दिशा मिलेगी और यहां की स्थितियों के आधार पर कार्य संपन्न हो सकेंगे।

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समाज और संस्कृति

सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा Social Change & Education

May 11, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

हर समाज के अपने नियम होते हैं मर्यादाएं होती हैं परम्पराएं होती हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि प्रत्येक समाज परिवर्तन व विकास को परिलक्षित कर रहा है। आज सामाजिक परिवर्तन करने वाले बहुत से साधन दीख पड़ते हैं उनमें से शिक्षा परिवर्तन का सशक्त साधन है। डॉ०राधा कृष्णन महोदय कहते हैं :-

 “शिक्षा परिवर्तन का साधन है। जो कार्य साधारण समाजों में परिवार,धर्म और सामाजिक एवम् राजनीतिक संस्थाओं द्वारा किया जाता था, वह आज शिक्षा संस्थाओं द्वारा किया जाता है।”

मूलतः आज शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य सामाजिक परिवर्तन हो चला है।

सामाजिक परिवर्तन [Social Change] –

परिवर्तन प्रकृति का नियम है और सभी परिक्षेत्रों में परिवर्तन दिखाई पड़ रहे हैं इस क्रम में समाज में परिवर्तन भी स्वाभाविक है हाँ परिवर्तन कहीं और किसी समय तीव्र या मन्द देखे जा सकते हैं। गिलिन एवम् गिलिन महोदय कहते हैं –

“We may define social change as variation from the accepted modes of life.”

“सामाजिक परिवर्तन को हम जीवन की स्वीकृत विधियों में होने वाले परिवर्तन के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।”

एम ० डी ० जेन्सन (M.D. Jensan ) महोदय का कहना है –

“Social change may be defined as modification in the ways of doing and thinking of people.”

“सामाजिक परिवर्तन को व्यक्तियों की क्रियाओं और विचारों में होने वाले परिवर्तनों के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है।”

गिन्सबर्ग (Ginsberg) महोदय का मानना है कि –

“By social change, I understand a change in social structure,e.g, the size of society, the composition or balance of its parts or the types of its organization.”

“सामाजिक परिवर्तन से हमारा तात्पर्य सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन होना है, अर्थात समाज के आकार इसके विभिन्न अंगों के बीच सन्तुलन अथवा समाज के संगठन में होने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन है।”

उक्त के आधार पर कहा जा सकता है कि सामाजिक संरचना,सामाजिक सम्बन्धों,सामाजिक संस्थानों, सामाजिक संगठनों और विविध समाजों में आने वाले परिवर्तनों को सामाजिक परिवर्तन कहा जाएगा।

सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका

(Role of education in social change)

शिक्षा समाज  में किस तरह परिवर्तन ला सकती है इसे हम इन बिंदुओं से अधिगमित कर सकते हैं –

1 – शाश्वत मूल्यों को संरक्षण (Preservation of eternal values)

2 – संस्कृति का हस्तान्तरण (Transmission of Culture)

3 – परिवर्तन ग्राह्यता (Change acceptability)

4 – परिवर्तनों का मूल्याँकन (Evaluation of changes)

5 – सामाजिक बुराइयों के अन्त में सहायक (Helpful in ending social evils)

6 – ज्ञान के नए परिक्षेत्रों का विकास (Development of new domains of knowledge)

7 – मानव और समाज के सम्बन्धों को बनाये रखना (Maintaining human and society relations)

8 – सामाजिक परिवर्तनों का नेतृत्व (Leader ship of social change)

9 – सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा (Education for social change)

10 – सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)

         इस प्रकार हम देखते हैं कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन की सशक्त वाहक है तथा मैकाइवर महोदय का यह मानना यथार्थ है कि –

“….our direct concern as sociologists is with social relationships. It is the change in these which alone we shall regard as social change.”

“समाजशास्त्री के रूप में हमारा प्रत्यक्ष सम्बन्ध केवल सामाजिक सम्बन्धों से होता है। इस दृष्टिकोण से केवल सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को ही हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।”

उक्त समस्त बिन्दु सामाजिक बदलाव का सशक्त संकेत देते हैं शिक्षा आयोग की रिपोर्ट में उचित कहा गया कि –

“Education can be used as a powerful instrument of social, economic and political change.”

“शिक्षा को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक परिवर्तन के शक्तिशाली साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।” 

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