जब मन, मन से मिल जाता है,
और धन आगम बन जाता है।
तब इस जाति उस जाति का,
बिलकुल मतलब नही होता है।1।
जब घायल होकर कोई तन
लहू के लिए तड़पता है
वह शोणित है किस जाति का
बिलकुल मतलब नही होता है।2।
जब वृद्ध मरे कोई फाके से,
फिर कोई तेरहवीं करता है।
तब होने वाली उस दावत का
बिलकुल मतलब नही होता है।3।
जब घर पर तेरी माता भूखी है,
और तू भण्डारा करता है।
तब जय माता दी कहने का
बिलकुल मतलब नही होता है ।4।
जब घर पर मातम होता है,
घर का बालक नहीं पढ़ता है।
तब फिर इस तीर्थ यात्रा का,
बिलकुल मतलब नही होता है ।5।
इस जीवन के संघर्षों से ,
बच कर जब कोई निकलता है।
तब केवल कर्मकाण्डों का,
बिलकुल मतलब नही होता है ।6।
घर घोर अभाव में चलता है,
तू दान पूण्य सब करता है।
तब फिर इस आयोजन का
बिलकुल मतलब नही होता है ।7।
तूने खूब कमाया खाया है,
बच्चों को शिक्षा दी ही नहीं ।
तब फिर बन्धु इस जीवन का,
बिलकुल मतलब नही होता है ।8।
जब ट्रेन गई स्टेशन से ,
और बाद में वहाँ पहुँचते हो।
तब क्षमा याचना करने का,
बिलकुल मतलब नही होता है ।9।
फसल सूख गई बिन जल के,
तिनका तिनका बन बिखर गई।
तब फिर घनघोर से वर्षण का
बिलकुल मतलब नही होता है ।10।
क्षुधा- पूर्ति करने को यदि ,
सब डिब्बा बन्द ही खाते हो ।
मानस पर घोर नियन्त्रण का,
बिलकुल मतलब नही होता है ।11।
व्यायाम कभी गर किया नहीं,
रोगों का घर तन बना लिया।
तब बाद के प्राणायामों का,
बिलकुल मतलब नही होता है ।12।
गर जीवन में कुछ करना है,
और काम समय पर किया नहीं।
तब फिर यूँ किए परिश्रम का,
बिलकुल मतलब नही होता है ।13।