कर्म योगी था पहला कवि
श्रम जल छलकाया होगा,
कथनी करनी में साम्य रहे
भाव यह चढ़ आया होगा।1
श्रम से सबकुछ मिलता है
कहीं यह सुन आया होगा,
श्रमकण हरदम जीवन्त रहें
भाव यह गहराया होगा ।2।
जन्म मरण के चक्कर में
प्रारब्ध बोध आया होगा,
इस बार न कोई कमी रहे
यही समझ आया होगा ।3।
दैन्य, दीन निरख निज छवि
ज्ञान, यह मन आया होगा,
कर्म में रत निष्ठा से रहें
मानस ने समझाया होगा ।4।
सत रज तम मंथन से रवि
मनवा में उग आया होगा,
भाव लावा अनवरत बहे
इस लिए गीत गाया होगा।5।
सीमित शब्दों में कहने का
ये ढंग निकल आया होगा,
जिसे बारम्बार गाते ही रहे
ये सौम्य नज़र आया होगा ।6।
बातों बातों में बहस का क्रम
द्वन्द तक, बढ़ आया होगा,
जन गण में सामन्जस्य रहे
मन लय से भाव गाया होगा।7।
तन मन धन सहित निज छवि
का उचित साम्य पाया होगा,
‘नाथ’ कहीं कोई कमी न रहे
कविता में राग गाया होगा ।8।