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वाह जिन्दगी !

सघन अन्तः तम को मिटाने चला हूँ।

May 2, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मैं  लघु  हूँ, वृहद से मिलाने चला हूँ।

सघन अन्तः तम को मिटाने चला हूँ। 

क्या हूँ मैं, क्या और लाने चला हूँ

मनस को मनस से मिलाने चला हूँ

छोड़ो जाति बन्धन छोड़ो बेड़ियाँ तुम

चलो आज अन्तर. मिटाने चला हूँ ।

आत्म हूँ मैं, तन यह तपाने चला हूँ

सुधारस इसजग को पिलाने चला हूँ 

तोड़ो सारे बन्धन छोड़ो वेदना तुम

तुम्हीं को, तुम्हीं से मिलाने चला हूँ।

चेतना हूँ मैं सत्पथ को लाने चला हूँ

कृत्रिम सारे बन्धन, मिटाने चला हूँ

छोड़ोसारे अन्धेरे, व अज्ञानता तुम

ज्ञानपथ पर चलो, ये बताने चला हूँ।

अज्ञ हूँ विज्ञजन से मिलाने चला हूँ

अन्तस के अन्तर, मिटाने चला हूँ

छोड़ो भेद सारे, तोड़ो रूढ़ियाँ तुम

रूढ़ियों को मिटा ज्योति लाने चला हूँ।

मैं हूँ कतरा, समन्दर बुलाने चला हूँ

अनन्त विस्तार परिचय बताने चला हूँ

छोड़ो वर्ण अन्तर, तोड़ो दायरे तुम  

दायरों को मैं जड़ से हटाने चला हूँ।

मैं मानव हूँ, मानवता लाने चला हूँ 

मानव मानव का अन्तर मिटाने चला हूँ

छोड़ो सब कलुषता तोड़ो दम्भघट तुम

दम्भ पथ ‘नाथ’ तपन से जलाने चला हूँ।

मैं  लघु  हूँ, वृहद से मिलाने चला हूँ ।

सघन अन्तः तम को मिटाने चला हूँ ।

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वाह जिन्दगी !

मिलेगा परमात्मा। [ Milega Parmatma ]

April 30, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अब नहीं कोई मेरा साथ दो परमात्मा

धर्मपथ नहीं सूझता हाथ दो धरमात्मा

ना दीखता कुछ यहाँ, गहन अन्धकार है

साथ गर ना मिले, होगा सारा खात्मा।1।

कुछ नहीं सूझे बस, साथ दो जीवात्मा

आत्मबल है टूटता साथ दो दिव्यात्मा

चेतना ना सुध रही सघनतम विकार है

विकारों के साथ, कैसे बनूँ पुण्यआत्मा।2।

इच्छा संग लालसा क्या मैं हूँ दुरआत्मा

आसक्ति युक्त मन है लय है बस आत्मा

लोभ मोह लालच है मानस पर जाल है

जाल में उलझे रहे कैसे हो शुभ आत्मा ।3।

प्रभु ऐसा ज्ञान दो अध्यात्म ले ध्रुवआत्मा

अब नहीं भटके पथ जान ले चिर आत्मा  

चैतन्य हो मनस, छंट जाए तम प्रसार है

मिले दिव्य प्रकाश तेज युक्त हो आत्मा ।4।

सच है मृत शरीर है, ना कि मृत आत्मा

तृप्ति होती इच्छा है न होती तृप्त आत्मा

वैराग्य गर न जगे आसक्ति अन्धकार है

आसक्ति के साथ न होगी  मुक्त आत्मा ।5।

लोभ मोह क्षणिक हैं सत्य है सत् आत्मा

विकार सारे तन के हैं शुद्ध दिव्यआत्मा

ये जीवन अनन्त यात्रा का इक प्रकार है

आसक्ति नाथ मिटेगी मिलेगा परमात्मा ।6।

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वाह जिन्दगी !

जीवनपथ मुक्ति तक जाता है।

April 28, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

धारित जीवन मिलकर शरीर से नवलक्ष्य लाता है। 
पशु एवम् वृक्ष शरीर से लक्ष्य दूभर हो जाता है।
जीवन है जितना ज्ञात सम्पूर्ण चित्र नहीं आता है।
स्थल तुलना में जल का जीवन से गहरा नाता है।।
मानव तन ही ऐसा है लक्ष्य चिन्तन से  आता है।
चिन्तन,मनन,निदिध्यासन मानो जग का त्राता है।
धर्म नहीं अधर्म ही है वह जो झगड़ा ले आता है।
मानव दानव हो जाता है गर विवेक मर जाता है।।
जीवन में सारा दिशाबोध जोश होश से आता है।
अर्थहीन और लक्ष्यहीन, पथ विभ्रम खो जाता है।
ना हो जीवन दिशा हीन, तो सुबोध जग जाता है।
मिटता अँधेरा तामसी सात्विक उजाला आता है।।
जीवनपथ में कटु, मृदु, दुःख, सुख सब आता है।
कोई कहे इसे नाटक कोई शतरंज कह जाता है।
कोई निराशा, हताशा कह, इसमें खोता जाता है।
कोई आशा जिज्ञासा में आनन्द खुशी को पाता है।।
कहे पहेली कोई, चौसर पासे तुलना ले आता है।
कोई इसको मृग तृष्णा कह माया जाल गाता है।
वादविवाद व विश्लेषण सच इसका जग नाता है।
लेकिन तन जीवन खो कर, अर्थ हीन हो जाता है।।
धनधन चिल्लाने वालों का भी निधन हो जाता है।
जीवन साधन भर है जो लक्ष्य रखो सध जाता है।
गर भ्रमित लक्ष्य है नाथ जीवन व्यर्थ हो जाता है।
कार्मिक लेखा से, जीवनपथ मुक्ति तक जाता है।।

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वाह जिन्दगी !

काम को दायित्व समझो।

April 27, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

काम को दायित्व समझो,

फिर बोझ सा हट जाएगा।

एैसा जब स्वतः करोगे

तब नूतन सवेरा आएगा ।1।

मानव हो मानवता समझो,

कर्तव्य – बोध तब आएगा।

स्वकलुष जब धुलने लगोगे,

जग प्रेममय हो जाएगा ।2।

पहले समय के भाव समझो

तब मौसम समझ में आएगा।

हर काल से तब लय करोगे,

यह जीवन मुस्कुराएगा ।3।

ज्ञान से जड़ चेतन समझो,

तब मूल्य बढ़ता जाएगा।

नेतृत्व तब करने लगोगे,

सम्भव सब हो जाएगा ।4।

समय को बहुमूल्य समझो,

तब ही समझ में आएगा।

मूल्य ज्यों  गिनने  लगोगे,

ये भारत समझ में आएगा ।5।

सजग हो पुरुषार्थ समझो,

तब जग समझ में आएगा।

संस्कृति समझने जब लगोगे,

सब पता ‘नाथ’ लग जाएगा ।6।

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वाह जिन्दगी !

शुभ कामना स्वीकार कर लें।

April 17, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जन्म पावन पर्व पर शुभ कामना स्वीकार कर लें।

असीम अनन्त मृदु मंगल भावना स्वीकार कर लें।1।

बढ़ रहें हैं आप अब इस अमल पर संज्ञान कर लें।

व्यूह रचना वयानुसार समय रहते स्वीकार कर लें।2।

अभीष्ट ध्येय जो आपका चैतन्य रह विचार कर लें।

अग्रजों का आशीष ले स्वमनस पर विश्वास कर लें।3।

प्रतिस्पर्धाऐं हैं अधिक इस हेतु कुछ सन्धान कर लें।

ध्यान रख निजस्वास्थ्य का समयचक्र तैयार कर लें।4।

तथ्य धारने से पूर्व अनुचित उचित का ध्यान कर लें।

मर्यादा में रहें, आदर्श जीवन मूल्यों से प्यार कर लें ।5।

मिथ्या धारणाऐं, रूढ़ि तज कर्म पर विश्वास कर लें।

‘नाथ’ दे दिल से दुआएं आत्म बल का साथ कर लें।6। 

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वाह जिन्दगी !

तुम कौन हो और क्यों यहाँ……..?

April 15, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पहले तय करो कि आखिर जानना क्या चाहते हो।

क्या जान सत्य सिद्धान्त, यह मानना भी चाहते हो।

मानना ही सच्चा धर्म है गर जानना तुम चाहते हो।

या फिर सब जान कर, बस भागना तुम चाहते हो।

तुम कौन हो, क्यों यहाँ,क्या क्या बताना चाहते हो ।1। 

क्या सत्य को असत्य बताकर बरगलाना चाहते हो।

क्यों फरेब के अम्बार में, सच्चाई दबाना चाहते हो।

अधर्म को क्यों सद्धर्म का चोला पहनाना चाहते हो।

मन की समग्र गन्दगी, कब तक छिपाना चाहते हो ।

तुम कौन हो, क्यों यहाँ,क्या क्या बताना चाहते हो ।2।

चालाक और पथभ्रष्ट हो चेहरा छिपाना चाहते हो।

हरहाल में तुम श्रेष्ठ हो यह सिद्ध करना चाहते हो।

ज़ाहिर सारे कारनामे फिर क्यों छिपाना चाहते हो।

क्या झूठ की सौन्दर्य महिमा ही दिखाना चाहते हो।   

तुम कौन हो, क्यों यहाँ,क्या क्या बताना चाहते हो ।3।

झूठ को हद से बढ़ाकर सत्पथ छिपाना चाहते हो।

क्या अधर्म अच्छा बता धर्म पथ मिटाना चाहते हो।

सच से तुम नज़रें चुरा कर क्या दिखाना चाहते हो।

सच आइने सा चमकता क्योंकर घुमाना चाहते हो।     

तुम कौन हो, क्यों यहाँ,क्या क्या बताना चाहते हो ।4। 

खोपड़ी में कुछ नहीं स्वनाटक दिखाना चाहते हो।

जिसके पिछलग्गू हो उसे महान बताना चाहते हो।

संसार की सारी शक्तियों से, भारी होना चाहते हो।

सात्विक से तामसिक को श्रेष्ठतम बताना चाहते हो।  

तुम कौन हो, क्यों यहाँ,क्या क्या बताना चाहते हो ।5।

यदि उत्थानपथ प्रशस्तकर धर्म निभाना चाहते हो।

छोड़ो सङ्कीर्णता, गर विश्वबन्धुत्व बढ़ाना चाहते हो।

जग को निर्देश मत दो यदि कुछ बताना चाहते हो।

खुदकर पूर्व दिखाओ, गर कुछ सिखाना चाहते हो। 

तुम कौन हो, क्यों यहाँ,क्या क्या बताना चाहते हो ।6।

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वाह जिन्दगी !

तन शुभ मन से जोड़ा जाए ।

April 12, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

झूठे सिखा रहे हमको कि सच कैसे बोला जाए,

गूंगे सिखा रहे हमको, मुख कितना खोला जाए,

मातपिता ने जन्म दे हमको कहाँ पे फंसा दिया,

लँगड़े सिखा रहे देखो,कि अब कैसे दौड़ा जाए।

राष्ट्रीय संस्कार यही, तन शुभ मन से जोड़ा जाए । 1 ।

लोभी सिखा रहे हमको लालच कैसे छोड़ा जाए,

ढोंगी सिखा रहे हमको, ढोंग से मुख मोड़ा जाए,

वक़्त ने मतिभ्रम फैलाके चौराहे पर खड़ा किया,    

अन्धे सिखा रहे हमको सदमार्ग पथ खोला जाए।

राष्ट्रीय संस्कार यही, तन, शुभ मन से जोड़ा जाए ।2 ।

ठेकेदार धर्म के सिखा रहे नया देव खोजा जाए,

माली खुद ही सिखा रहे पुष्पों को यूँ तोड़ा जाए,

पाश्चात्य संस्कृति नकल ने दोराहे पे खड़ा किया,

टी 0 वी 0 सिखा रहा कैसे प्रेमपाश जोड़ा जाए।

राष्ट्रीय संस्कार यही, तन शुभ मन से जोड़ा जाए ।3 ।

भ्रष्ट मण्डली सिखा रही सत्पथ कैसे पकड़ा जाए,

गटक के बोतल बता रहे हैं नशा कैसे छोड़ा जाए,

समय चक्र पारिस्थिकी ने हमको कैसे बड़ा किया,

नंगे सिखा रहे हमको मर्यादा का पथ खोजा जाए।

राष्ट्रीय संस्कार यही, तन शुभ मन से जोड़ा जाए ।4 ।

जो ठाने है घर हीनों का, जीवन कैसे मसला जाए,

यातायात संरक्षण का उससे पाठ कैसे सीखा जाए,

नए नए धन कुबेरों ने हमको सब कुछ भुला दिया,

रावण सिखा रहे हमको कैसे सीतापथ खोजा जाए।

राष्ट्रीय संस्कार यही, तन शुभ मन से जोड़ा जाए ।5 ।

सद्गुरु सिखा रहे येही खुदपर विश्वास किया जाए,

अनुभव का सत साथमें ले सत्य प्रकाश किया जाए,

अन्धविश्वास रूढ़ता ने, भ्रम चौराहे पर खड़ा किया,

सारे नव युवको जागो, अब नव भारत शोधा जाए।

राष्ट्रीय संस्कार यही, तन शुभ मन से जोड़ा जाए ।6 ।

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वाह जिन्दगी !

नाथ ये सब समझता है।

April 11, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कोई  श्री राम कहता है,

कोई कान्हा समझता है,

पर भक्तोंका पागलपन,

केवल भोले समझता है ।1।

कोई वृन्दावन कहता है,

कोई  श्री धाम कहता है,

गुजरता जो है दुनियाँ से,

वो जय श्रीराम कहता है ।2।

कोई  पतवार तकता है,

कोई  नौका निरखता है,

यह नौका चल रही कैसे,

सिर्फ माँझी समझता है ।3।

कोई  लैला  समझती है,

कोई  मजनूं समझता है,

भोगों  में  क्या  रक्खा है,

यह अन्तर्मन समझता है  ।4।

इबादत  कोई करता है, 

कोई  पूजा  समझता है,

दिल में चल रहा है क्या,

मेरा रब सब समझता है ।5।

कई चालें, वो चलती है,

कई  चालें, तू चलता है,

मन में कैसी हलचल है,

नाथ ये सब समझता है ।6।

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वाह जिन्दगी !

क्यों धन सर्वोपरि हो जाता है ?

April 10, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

साधन है, वह साध्य नहीं है,

बोध कहीं क्यों, खो जाता है।

बड़े बड़ों का साम्य न रहता,

बुद्धि विवेक सब सो जाता है।

क्यों धन सर्वोपरि हो जाता है?

धन कृत्रिम, ध्रुव सत्य नहीं है,

भाव कहीं क्यों, खो जाता है।

नैतिकता का ध्यान न रहता,

काला स्याह मन हो जाता है।

क्यों धन सर्वोपरि हो जाता है ?

वह मृग तृष्णा है, सत्य नहीं है,

यह चिन्तन, क्यों खो जाता है।

माया का भ्रम जाल बस रहता,

सच धूमिल पर्दे में हो जाता है।

क्यों धन सर्वोपरि हो जाता है ?

स्वास्थय की सुधबुध ही नहीं है,

दौलत हित तन दौड़ा जाता है?

निज तनहित का ज्ञान न रहता,

मनुष्य मशीन सा, हो जाता है ? 

क्यों धन सर्वोपरि हो जाता है ?

धारित पद, गरिमा ही नहीं है ,

गलत सलत सब कर जाता है,

कोई ईष्ट फिर ध्यान न रहता,

भौतिकता में फँस खो जाता है।

क्यों धन सर्वोपरि हो जाता है ?

चैतन्य तो हैं, मर्यादित नहीं है,

दोहरा सा मानक हो जाता है।

सत्य का कोई संज्ञान न रहता ,

खुद का आत्मबल खो जाता है, 

क्यों धन सर्वोपरि हो जाता है ?

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वाह जिन्दगी !

अज्ञान के विरोध में संज्ञानता रहे।

April 9, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अज्ञान  के  विरोध  में संज्ञानता रहे।

विश्व में, आचार्य की महानता रहे, महानता रहे।।

आवाज  हैं  अनेक, नाद एक राष्ट्र में।

विविध  हैं स्वरुप, ज्योति एक राष्ट्र में।

सद् धरम हैं अनेक, ध्येय एक राष्ट्र में। 

सद् मार्ग हैं अनेक, लक्ष्य एक राष्ट्र में।

ब्रह्म निष्ठा लगन एकता विद्वानता रहे।

विश्व  में, आचार्य  की  महानता  रहे, महानता रहे।।

जाग्रत  हो  विवेक, जगें एक राष्ट्र में।

तरीके  हैं  अनेक, कार्य एक राष्ट्र में।

सोच  हैं अनेक, उद्देश्य एक राष्ट्र में।

वेश  हैं  अनेक, एकत्व एक राष्ट्र में ।

उपनिषद धर्म वेद की प्रधानता रहे ।

विश्व  में,  आचार्य की महानता रहे, महानता रहे।।

सद् मूल्य  हों अमूल्य, रहें  एक राष्ट्र में।

विस्तृत हो दृष्टि कोण, मिलें एक राष्ट्र में।

परम श्रेष्ठ  हों  विचार, गढ़ें एक राष्ट्र  में।

विकसित हो देशप्रेम, खिलें एक राष्ट्र में।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष,  पुरुषार्थता  रहे।

विश्व  में,  आचार्य की महानता रहे, महानता रहे।।

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