यथार्थ वाद का आशय व परिभाषा (Meaning and Definition of Realism)-

वास्तव वाद या यथार्थ वाद का आंग्ल रूपान्तर है ‘Realism’ . शब्द Real की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द  ‘realis’ से हुई है यह शब्द res से बना है जिसका आशय है ‘वस्तु’ इसलिए Realism का शाब्दिक अर्थ हुआ वस्तु के अस्तित्व सम्बन्धी विचार धारा। कहने का आशय है कि मात्र इन्द्रिय जन्य ज्ञान सत्य है इसी लिए ये वाह्य जगत को सत्य मानते हैं मिथ्या नहीं।

यथार्थवाद को विभिन्न विद्वानों ने जिस प्रकार पारिभाषित किया उनमें से कुछ को यहाँ दिया गया है।

स्वामी रामतीर्थ (Ramtheerth) महोदय के अनुसार –

“Realism means a belief or theory which works upon the world as it seems to us.”

यथार्थवाद का अर्थ वह विश्वास या सिद्धान्त है, जो जगत को वैसा ही स्वीकार करता है, जैसा कि  हमें दिखाई देता है।

जे एस रॉस ( J. S. Ross) के अनुसार  

“The doctrine of realism asserts that there is a real-world of things behind and corresponding to the objects of our perception.” 

यथार्थवाद यह स्वीकार करता है कि जो कुछ हम प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं, उनके पीछे तथा मिलता जुलता वस्तुओं का एक यथार्थ जगत है।

बटलर ( Buttler ) महोदय के अनुसार –

“Realism is the reinforcement of our common acceptance of the world as it appears to us.”

यथार्थवाद या वास्तववाद इस संसार को उसी रूप में स्वीकार करता है जिस रूप में उसे दिखाई देता है।

मीमांसाएं –

किसी भी दर्शन के वास्तविक स्वरुप को समझने के लिए यह परम आवश्यक है कि उसकी तत्त्व मीमांसा(Meta Physics), ज्ञान व तर्कमीमांसा(Epistemology and Logic) एवम् मूल्य व आचार मीमांसा(Axiology and Ethics) को समझा जाए। यहाँ इन्ही को इसी क्रम में वर्णित करेंगे।

तत्त्व मीमांसा (Meta Physics )-

यथार्थवादी तात्त्विक विश्लेषण के क्रम में तत्त्व मीमांसक विश्लेषण के आधार पर सरल वास्तव वाद (Naïve Realism), नववास्तव वाद(Neo Realism), आलोचनात्मक वाद  (Critical Realism),मानवतावादी यथार्थवाद ( Humanistic Realism), सामाजिकता वादी यथार्थवाद (Socialistic Realism), ज्ञानेन्द्रिय यथार्थवाद  ( Sense Realism ),अवयव दर्शन (Philosophy of Organism )आदि का अभ्युदय हुआ। इस दर्शन के अनुसार पदार्थ का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है और यह ब्रह्माण्ड पदार्थजन्य है अर्थात इस जगत की उत्पत्ति का मूल कारण भौतिक यानी कि स्थूल तत्त्व हैं। वास्तु के सम्बन्ध में ये अपने ज्ञान को प्रयोग सिद्ध( Empirical  ) मानते हैं। आत्मा को भी पदार्थजन्य चेतन तत्त्व मानते हैं।

ज्ञान व तर्कमीमांसा (Epistemology and Logic) –

यथार्थवादी वस्तु व चेतना दोनों के महत्त्व को स्वीकार करते हैं और ज्ञान प्रक्रिया में ज्ञाता व ज्ञेय दोनों को महत्त्व देते हैं। ज्ञान के स्रोत कर्मेन्द्रियाँ व ज्ञानेन्द्रियाँ हैं जब आँख, कान, नाक, त्वचा, जिह्वा ज्ञान प्राप्ति के साधन हैं तो ये तर्क देते हैं कि वस्तु के ज्ञान का आधार यही ज्ञानेन्द्रियाँ हैं इसलिए इनसे परे ज्ञान नहीं होता ये शाब्दिक ज्ञान को भी प्रत्यक्षीकरण के बाद ही स्वीकारते हैं।

मूल्य व आचार मीमांसा (Axiology and Ethics) –

ये भौतिक संसार को सत्य मानते हुए कहते हैं कि जीवन रक्षा और सुख पूर्वक जीना ही मानव का उद्देश्य है इसके लिए क्रियाशीलता हो और उत्पादकता को बढ़ाया जाए। अगले क्रमिक चरण के रूप में ये उन मूल्यों पर बल देते हैं जिससे मानव को सुखानुभूति हो। मानव में संवेदनशीलता का गुण ये मूल्यों की अनुभूति हेतु आवश्यक मानते हैं साथ ही स्वीकार करते हैं मूल्य सबके लिए सामान नहीं हो सकते अतः आचार संहिता बनाना सम्भव नहीं है।

यथार्थवाद के मूल सिद्धान्त (Basic Principles of Realism) –

  • प्रत्यक्ष जगत ही सत्य है (Phenomenal world is true)-

वह जगत जिसे हम प्रत्यक्षतः अनुभव करते हैं वही सत्य है अर्थात यह भौतिक जगत ही सत्य है जे0 एस0 रॉस महोदय कहते हैं-

“Realism simply affirms the existence of an external world and is therefore the antithesis of subjective Idealism. ”

यथार्थवाद केवल वाह्य जगत की सत्ता को ही स्वीकार करता है। अतः यह आत्मगत आदर्श वाद के विपरीत है।

  • ब्रह्माण्ड पदार्थ पर आधारित है (Universe is based on substance) –

ये पदार्थों की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकारते हैं और संसार को विविध तत्त्वों का योग मानते हैं संसार के सारे परिवर्तन पदार्थों का रूप परिवर्तन ही है।

  • इन्द्रियाँ ज्ञान के द्वार हैं (Senses are the Gateways of knowledge) –

ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन इन्द्रियाँ हैं इन्द्रियाँ ही संवेदना के आधार पर अनुभूति करतीं हैं रसेल महोदय कहते हैं –

“I content that ultimate constituent of matter are not atoms … but sensation. I believe that the stuff of our mental life …….. consists wholly of sensations and images.”

पदार्थ के अन्तिम निर्णायक तत्त्व अणु नहीं हैं, वरन संवेदन हैं। मेरा विश्वास है कि हमारे मानसिक जीवन के रचनात्मक तत्त्व पूर्णतः संवेदनाओं और प्रतिभाओं में निहित होते हैं।

  • मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ पदार्थ (Man is world’s best substance)-

यथार्थवादी मानव को पदार्थ रूप में स्वीकार करते हैं लेकिन उसे अन्य पदार्थों से भिन्न मानते हैं क्यों कि मानव मन रखता है और मन के आधार पर जगत का सुव्यवस्थित ज्ञान प्राप्त कर सुख पूर्वक जीवन यापन के उपागम प्रयुक्त करता है आँख,कान,जिह्वा,नाक,त्वचा के सम्यक प्रयोग से मानव प्रगति करता है अतः यह सर्वश्रेष्ठ पदार्थ है।

  • आंगिक सिद्धान्त (Theory of Organism)-

प्रसिद्द यथार्थवादी व्हॉइटहैड संसार की प्रत्येक वस्तु को समष्टि का एक अंग मानते हैं और कहते हैं की समस्त अवयवों में सम्मिलित रूप से तरंगित प्रक्रिया हो रही है इसी वजह से परिवर्तन हो रहे हैं ये नियमों को शाश्वत न मानकर परिवर्तनशील मानते हैं। ए एन व्हॉइटहैड(A. N. Whitehead) महोदय कहते हैं –

“Realism is a system, which is always organic. Every part of it is itself an active system, a coordinated process. It is not only the result but also the cause itself the world is a wavering element in the process of development. Change is this wavering process is the fundamental quality of the universe. Truth is an essential process of reality. Mind must be accepted as the function of the organ.’’

यथार्थवाद एक व्यवस्था है,जो सदैव आंगिक है। इसका प्रत्येक भाग स्वयम् एक सक्रिय व्यवस्था है,एक समन्वित प्रक्रिया है। यह केवल परिणाम नहीं है,वरन स्वयं कारण भी है, संसार विकास की प्रक्रिया में एक तरंगित अवयव है। परिवर्तन इस तरंगित विश्व का आधारभूत गुण है। सत्य वास्तविकता की एक सारभूत प्रक्रिया है। मन को अवयवी के कार्य रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।

  • आत्मा पदार्थजन्य चेतन तत्व (Soul material born, conscious element)-

मानव में चेतना आत्मिक विकास का प्रतिफल है और चेतना की विलुप्ति ही मरण है अर्थात यथार्थवादियों के अनुसार आत्मा पदार्थजन्य चेतन तत्त्व है।

  • मानव जीवन का उद्देश्य सुखपूर्वक जीना (The aim of human life is to live happily) –

ये कहते हैं कि जीवन का कोई अंतिम उद्देश्य नहीं होता,शरीर जैवकीय पदार्थ है जो क्षीण होकर ख़तम हो जाता है इसलिए इसको स्वस्थ रखने का प्रयास हो और मष्तिस्क व अन्य इन्द्रियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता है जिससे ये सुचारु रूप से कार्य कर सकें।

रस्क (Rusk) महोदय के अनुसार

The aim of new realism is to expound a philosophy which is not inconsistent with the fact of common life and with the development of physical science.”

नवयथार्थवाद का उद्देश्य एक ऐसे दर्शन का प्रतिपादन करना है,जो सामान्य जीवन के तथ्यों तथा भौतिक विज्ञान के विकास के अनुकूल हो।

  •  – वस्तु जगत की नियमितता स्वीकार करना (To accept regularity of materialistic world) –

ये मन को यांत्रिक ढंग से क्रियाशील मानते हैं इसीलिए इनका दृष्टिकोण भी यांत्रिक हो गया है प्रो 0 एम एल मित्तल के अनुसार यथार्थवादी स्वीकार करते हैं कि –

“Experience and knowledge require regularity.”

अनुभव और ज्ञान के लिए नियमितता का होना आवश्यक है।

  • –  प्रयोग पर बल (Emphasis on experiment) –

चूंकि ये तथ्य निरीक्षण ,अवलोकन तथा प्रयोग पर इतना ध्यान देते हैं कि किसी भी तथ्य को तब तक स्वीकार नहीं करते जब तक कि वह निरीक्षण व प्रयोग की कसौटी पर खरा सिद्ध न हो गया हो।  

 यथार्थ वाद के रूप (Forms of Realism) –

Forms of Realism in Education-

यथार्थवादी दृष्टिकोण का अध्ययन करने में इसके कई रूपों के दर्शन होते हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है।

[A] – मानवतावादी यथार्थवाद (Humanistic Realism) –

मानवतावादी यथार्थवादी दृष्टिकोण के समर्थकों में इरेसमस,रैबले और मिल्टन का नाम आता है इनके अनुसार शिक्षा यथार्थवादी होनी चाहिए जिससे मानव वास्तव में सुख से जी सके पॉल मुनरो के शब्दों में –

मानवता वादी यथार्थवाद का उद्देश्य – अपने जीवन की प्राकृतिक एवम् सामाजिक परिस्थितियों का पूर्ण अध्ययन प्राचीन व्यक्तियों के जीवन की व्यापक परिस्थितियों के माध्यम से करना था लेकिन यह कार्य केवल ग्रीक एवम्  रोमन साहित्य के विस्तृत ज्ञान से पूर्ण किया जा सकता था।

[B] – ज्ञानेन्द्रिय यथार्थवाद  (Sense Realism) –

 ज्ञानेन्द्रिय यथार्थवादी दृष्टिकोण के समर्थकों में रिचार्ड मूल कास्टर, फ्रांसिस बेकन, वूल्फगैंग रटके, जॉन एमोस कमेनियस का नाम आता है। ये विचारक ज्ञानेन्द्रियों को ही ज्ञान का आधार मानते हैं। पॉल मुनरो के अनुसार –

“The term (sense Realism) itself is drived from the fundamental belief that knowledge comes through senses.”

 “ज्ञानेन्द्रिय यथार्थवाद उस मौलिक विश्वास से विकसित हुआ है, जो यह मानता है कि ज्ञान प्राथमिक रूप से ज्ञानेन्द्रियों द्वारा होता है।

[C] – सामाजिक यथार्थवाद (Social Realism) –

सामाजिक यथार्थवादी दृष्टिकोण के समर्थकों में माइकेल डी  माण्टेन, जॉन लॉक का नाम आता है,  सामाजिक यथार्थवादी पुस्तकीय शिक्षा के अत्याधिक विरोधी थे इनका उद्देश्य सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति  के माध्यम से जीवन को सुखी बनाना था।  जे एस रॉस के विचारों में इसकी झलक मिलती है –

 “The social realists looking askance at bookish studies, stressed the value of direct studies of man and things, having in mind chiefly the upper class, they advocated a period of travel, a grand tour, which would give real experience of the varied aspects of life.”

सामाजिक यथार्थवादी पुस्तकीय अध्ययन को व्यर्थ समझते हैं तथा मनुष्यों एवं वस्तुओं के प्रत्यक्ष अध्ययन पर बल देते हैं, यद्यपि वे अपने मस्तिष्क में उच्च वर्ग का ही ध्यान रखते हैं। इसी कारण वे लम्बी यात्रा करने के लिए कहते हैं, जिससे वास्तविक जीवन के विभिन्न पहलुओं का यथार्थ अनुभव हो जाए।

[D] – नव यथार्थवाद (Neo- Realism) –

नव यथार्थवाद दृष्टिकोण के समर्थकों में  व्हॉइट हैड व  बर्टेन्ड रसेल का नाम आता है, इस विचारधारा के अनुसार अन्य विभिन्न नियमों की तरह भौतिक विज्ञान के नियम भी परिवर्तनशील हैं ये कुछ विशेष परिस्थितियों में ही सही साबित होते हैं। रस्क महोदय कहते हैं –

“The positive contribution of neo-realism is its acceptance of the methods and results of modern development in physics.”

नव यथार्थवाद का महत्त्वपूर्ण योगदान उन पद्धतियों तथा निष्कर्षों को मान लेने में है जो भौतिक शास्त्र के आधुनिक विकास से प्राप्त हुए हैं।

शिक्षा का सम्प्रत्यय (Concept of Education) –

यथार्थवादियों के अनुसार निरन्तर विकास की प्रक्रिया ही शिक्षा है ये ज्ञान ज्ञान के लिए और ज्ञान मुक्ति के लिए जैसे सिद्धांतों का मुखर विरोध करते हैं इनका कहना है की ज्ञान केवल जीवन के लिए ही होता है। आदर्श वादी अरस्तु  के विचारों को यथार्थवादियों के निकट माना गया जैसे अरस्तु का विचार है कि –

“Education is the creation of healthy mind in a healthy body.”

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करना ही शिक्षा है।

जॉन मिल्टन (JohnMilton) महोदय के अनुसार

मैं पूर्ण तथा उदार शिक्षा उसको कहता हूँ जो व्यक्ति को शान्ति तथा युद्ध, दोनों समय में व्यक्तिगत और सार्वजनिक कार्यों को न्यायोचित ढंग से दक्षता और उदारता के साथ करना सिखाती है।

“I call complete and generous education that which fits a man to perform justly, skillfully and magnanimously all the offices both private and public at peace and war.”

कमेनियस Comenius महोदय ने व्यक्ति और समाज के उत्थान में शिक्षा की भूमिका को स्वीकारते थेउन्होंने कहा –

“Education is the process of social and individual rejenerating force.”

सामाजिक एवं वैयष्टिक शक्तियों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया ही शिक्षा है।

यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएं

Main Characteristics of Realistic Education-

1 – ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल (Emphasis on training of senses)-

यथार्थवादी ज्ञान को इन्द्रिय से ज्ञात स्वीकारते हैं अतः इन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल देते हैं इससे शिक्षा के परिक्षेत्र में सहायक सामग्री व दृश्य श्रव्य सामग्री के महत्त्व को प्रश्रय मिला।

2 – प्रत्ययवाद का विरोध (Opposing of Idealism) –

इन्होने शिक्षा के माध्यम से जीवन को सुखी बनाने पर बल दिया और आदर्शवाद का विरोध किया और कहा कि कोरा आध्यात्मिक सिद्धान्त आज बालक के लिए कोई मायने नहीं रखता। 

3 – वैज्ञानिकता को प्रश्रय (support of science) –

ये बालकों के लिए उपयोगी आधुनिक ज्ञान विज्ञान को आवश्यक समझते हैं और कृत्रिम शिक्षा के स्थान पर प्रकृति की शिक्षा पर बल देते हैं ये चाहते हैं की वैज्ञानिक विषयों को महत्ता प्रदान की जाए।

4 – पुस्तकीय ज्ञान का विरोध (Opposing bookish knowledge)-

ये पुस्तकीय ज्ञान का विरोध करते हैं और कहते हैं कि इससे वस्तु का बोध नहीं होता वे शब्द के स्थान पर वस्तु और वातावरण के ज्ञान को आवश्यक समझते हैं। रॉस महोदय कहते हैं कि –

“Just as naturalism has appeared in the field of education as a protest against artificial teaching methods, so realism has come against the curriculum, which has become bookish, unrealistic and complex.”

 “जिस प्रकार प्रकृतिवाद शिक्षा के क्षेत्र में बनावटी शिक्षण पद्धतियों के विरोध स्वरुप उपस्थित हुआ है, उसी प्रकार यथार्थवाद उस पाठ्यक्रम के विरोध में आया है,जो पुस्तकीय, अवास्तविक एवम् जटिल हो गया है।

5 – व्यावहारिकता पर बल (Emphasis on practicality)-

ये बालक को ऐसा ज्ञान देना चाहते हैं जिससे वह अपने जीवन में आने वाली समयाओं को समाधान तक ले जा सकें। ये ‘ज्ञान के लिए ज्ञान’ जैसे सिद्धान्तों का खंडन करते हैं और व्यावहारिक प्रसन्नता प्राप्त करना चाहते हैं। कमेनियस Comenius ने कहा –

“The ultimate end of man is eternal happiness of God.”

मनुष्य का अंतिम लक्ष्य ईश्वर के साथ शाश्वत प्रसन्नता को पाना है।

6 – नवीन शिक्षण विधियाँ व शिक्षा सूत्र (New Teaching Methods and Education Formulas) –

इन्हें महत्त्वपूर्ण शिक्षण सहायकों के रूप में स्वीकार किया जाता है क्योकि बेकन द्वारा प्रदत्त आगमन विधि आज भी स्वीकार्य है,ये निरीक्षण, परीक्षण,और सामयिक नियमीकरण के आधार पर ज्ञान से सम्बद्ध करना चाहते हैं रटके  और कमेनियस ने प्रभावी शिक्षण सूत्र दिए। वास्तव में यथार्थवादियों ने शिक्षण विधियों के क्षेत्र को दिशा दी।

7 – विस्तृत पाठ्यक्रम (Detailed Curriculum) –

यह इनकी महत्त्वपूर्ण विशेषता में गिना जा सकता है क्योंकि इन्होने विविध व्यवहारिक विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान देकर इसे व्यावहारिक व विस्तृत बनाया जैसा कि कार्टर वी गुड ने कहा –

“The detailed curriculum was a key feature of realism.”

विस्तृत पाठ्यक्रम, यथार्थवाद की एक प्रमुख विशेषता थी।

8 – वैयक्तिकता व सामाजिकता दोनों को समान महत्त्व (Equal importance to both individuality and       sociality) –

ये शिक्षा द्वारा मनुष्य को समाज के लिए उपयोगी बनाना चाहते हैं और वैयक्तिकता और सामाजिकता को समान महत्त्व प्रदान करते हैं। जायसवाल महोदय ने कमेनियस के बारे में लिखा –

कमेनियस की शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को जीवन में सफल बनाना और ज्ञान द्वारा नैतिक तथा धार्मिक भावना का विकास करना है।

यथार्थवादी शिक्षा के उद्देश्य (Realistic Education Objectives) –

1 – जीवन को व्यावहारिक व सुखमय बनाना (To make life practical and happy)

2 – मानसिक शक्तियों का सम्वर्धन (Enhancement of Mental powers)

3 – प्रकृति का ज्ञान कराना (To make knowledge of nature)

4 – सामाजिक पर्यावरण का ज्ञान (Knowledge of the social environment)

5 – वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of scientific attitude)

6 – सुखी जीवन हेतु तैयार करना (Preparing for a happy life)

7 – व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करना (Providing vocational education)

डेविनपोर्ट महोदय के अनुसार –

“No individual shall be obliged to chose between an education without a vocation and vocation without an education.”

कोई भी व्यक्ति किसी व्यवसाय के बिना शिक्षा का चयन न करे, और न बिना शिक्षा के व्यवसाय का चयन करे।

यथार्थवाद और पाठ्यक्रम (Realism and curriculum)-

ये आधुनिक ज्ञान विज्ञान को प्रश्रय प्रदान कर साहित्यिक, काल्पनिक, कलात्मक, दार्शनिक विषयों को द्वित्तीयक स्थान प्रदान करते हैं यथार्थवादी दृष्टिकोण से पाठ्यक्रम को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं –

प्रधान विषय – भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, उद्योग,व्यवसाय, कृषि, शिल्पकार्य, मातृ भाषा व अन्य जीवनोपयोगी विषय

गौड़ विषय – साहित्य,कला,संगीत,दर्शन,इतिहास,भूगोल,नीतिशास्त्र,समाजशास्त्र,कानून आदि।

यथार्थ वाद और शिक्षण विधि (Realism and Teaching Method) –

वस्तु व इन्द्रिय प्रशिक्षण पर ध्यान देने वाले यथार्थवाद में मुख्यतः निम्न शिक्षण विधियों को प्रश्रय मिला है –

भ्रमण विधि, प्रयोग विधि,निरीक्षण विधि, अनुभव आधारित विधि,आगमन विधि,दृश्य श्रव्य सामग्री युक्त विधि व अन्य क्रियात्मक विधियाँ।  

यथार्थ वाद और अनुशासन  (Realism and Discipline ) –

ये विद्यालय का वातावरण घर की तरह बनाना चाहते हैं और प्रेम, सुरक्षा,सहानुभूति के आधार पर न्याय, संयम, स्वतन्त्रता आदि का विकास करना  चाहते हैं। ये वाह्य अनुशासन का विरोध व वस्तुनिष्ठ अनुशासन का समर्थन करते हैं। ये प्रकृतिवादियों के विपरीत नैतिक व धार्मिक विकास को जीवन नियंत्रित करने का साधन मानते हैं।

यथार्थवाद और शिक्षक (Realism and Teacher) –

ये आदर्शवाद की तरह प्रमुख स्थान तो नहीं देते लेकिन उसके महत्त्वपूर्ण स्थान को पूरी तरह नकारते भी नहीं। अध्यापक वातावरण को नियन्त्रित करने के साथ अनुभव द्वारा सीखने का माहौल बनाएं। आचरण की शिक्षा हेतु ये अध्यापकीय प्रशिक्षण पर बल देते हैं।

यथार्थवाद और बालक  (Realism and Child) –

इन्होने बालक केन्द्रित शिक्षा प्रक्रिया को प्रमुख स्थान प्रदान किया है और उनका सर्वांगीण विकास भी  करना चाहता है ये प्रकृतिवादियों की भाँति बालक को स्वतन्त्र छोड़ने की जगह सजग प्रहरी की तरह प्रत्येक गतिविधि व उनकी रुचियों पर ध्यान देते हैं। ये विभिन्न परिस्थितियों व समस्याओं से जूझने हेतु बालक को तैयार करना चाहते हैं।

यथार्थवाद के गुण (Merits of Realism) –

1 – व्यावहारिक शिक्षा

2 – सार्वभौमिक शिक्षा

3 – वैज्ञानिकता को बढ़ावा

4 – व्यावसायिक व प्राविधिक शिक्षा

5 – आगमन विधि का प्रयोग

6 – वस्तुनिष्ठ रीति से तथ्यों का ज्ञान

7 – ज्ञानेन्द्रियों के प्रक्षिक्षण पर बल

8 – वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यों का समन्वय

9 – बालकेन्द्रित शिक्षा

10 – अनुशासन व्यवस्था

यथार्थवाद के दोष (Demerits of Realism) –

1 – भौतिक जगत को अंतिम सत्ता मानना उचित नहीं

2 – आध्यात्मिक सत्ता पर अविश्वास 

3 – शाश्वत मूल्य सत्यम शिवम् सुन्दरम पर अविश्वास 

4 – कला साहित्य, दर्शन,मानविकी विषयों की उपेक्षा 

5 – कल्पना, संवेग,स्थायी भाव को महत्तव नहीं  

6 – नैतिकता को प्रश्रय नहीं

7 – दर्शनों की उपेक्षा केवल भौतिक दर्शन को स्थान

8 – निराशा को प्रश्रय

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