अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात अपने सपने, अपने उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए हम उच्च शिक्षा से जुड़ते हैं। यह शुद्ध ज्ञानात्मक शिक्षा या कोई प्रशिक्षण या तकनीकी शिक्षा हो सकती है। व्यक्ति की स्वशिक्षा के उद्देश्य उसमें निहित होते हैं और ठीक इसी तरह उच्च शिक्षा के अपने कुछ उद्देश्य हैं इन उद्देश्यों को हम इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं।
[A] – व्यक्तिगत बौद्धिक और नैसर्गिक विकास / Personal intellectual and emotional development
(i) – विश्लेषणात्मक चिन्तन /Analytical thinking
(ii) – ज्ञान अधिगमन / Knowledge acquisition
(iii) – जीवन पर्यन्त अधिगम / Lifelong learning
(iv) – व्यक्तिगत क्षमता वृद्धि / Personal capability enhancement
(v) – चारित्रिक विकास / Character development –
[B] – सामाजिक पेशेवर योगदान / Social professional contribution –
(i) – सामाजिक कौशल विकास / Social skills development
(ii) – क्षेत्रीय आर्थिक विकास / Regional economic development
(iii) – सामाजिक क्षमता अभिवृद्धि / Social capacity enhancement
(iv) – वृहत विकास में योगदान / Contribution to macro development
(v) – सांस्कृतिक जागरूकता / Cultural awareness
[C] –स्व परिक्षेत्र में विशिष्ट उद्देश्य / Specific objective in self domain
(i) – विज्ञान व तकनीकी परिक्षेत्र / Science and Technology Zone
1813 के आज्ञापत्र और प्राच्य पाश्चात्य विवाद के समय एक नाम बहुत प्रसिद्द हुआ लेकिन मैकाले को शिक्षा का अग्रदूत कहना उचित नहीं है। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हुई। प्राच्य दल के नेता लार्ड प्रिन्सेप इतिहास की काल कोठरी में गुम हो गया। जो तथ्य मैकाले महोदय को शिक्षा के अग्रदूत के रूप में मानने को तैयार नहीं उसे इस प्रकार क्रम दे सकते हैं।
[01] – राजाराम मोहन राय व उनके सहयोगियों के प्रयास से भारत में अंग्रेजी शिक्षा के पहले माहौल बन चूका था। इसमें ईसाई मिशनरियों व कम्पनी के कर्मचारियों तथा प्रगतिशील भारतीयों का भी योगदान रहा। इसलिए मैकाले को आधुनिक शिक्षा का अग्रदूत मानना उचित नहीं है।
[02] – वेद, पुराण, उपनिषद, अरबी, फारसी साहित्य व संस्कृत साहित्य को मैकाले महत्त्वहीन मानता था उसने बिना इनका अध्ययन किये ही इनकी कटु आलोचना की और यूरोप के अच्छे पुस्तकालय की एक आलमारी से तुलना कर अपनी अज्ञानता ही सिद्ध की।
[03] – मैकाले की अज्ञानता, संकीर्णता व अशिष्टता ने उसे भारतीय दर्शन, इतिहास, ज्योतिष व चिकत्सा शास्त्र का उपहास करने को बाध्य किया लॉर्ड एक्टन ने इस सम्बन्ध में कहा –
“Hi knew nothing respectable before the seventeenth century, nothing of foreign History, Religion, Philosophy, Science, and Art.
– Lord Action. Quoted by Mayhew . The Education of India.
“वह सत्रहवीं शताब्दी के पूर्व के विषय में वस्तुतः कुछ नहीं जानता था और न ही विदेशी इतिहास, धर्म, दर्शन, विज्ञान और कला के विषय में कुछ जानता था।”
[04] – वह भारत में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहता था जो रूचि, विद्वता व विचार में अंग्रेज हो एवम् रक्त व वर्ण में भारतीय। वह पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति को हिन्दुस्तान पर लादकर यहां की सभ्यता व संस्कृति को नष्ट करना चाहता था।
[05] – ये महोदय भारत की धार्मिक एकता को विखण्डित करना चाहता था और धर्म निरपेक्षता की आड़ में ईसाई मिशनरियों को बढ़ावा देना चाहता था जैसा की 1936 में उसके द्वारा अपने पिता को लिखे पात्र की इन पँक्तियों से स्पष्ट है। –
“No Hindu who has received English education never remains attached to his religion. It is my firm belief that if our plans of education are followed up there will not be a single idolater among the respectable classes in Bengal thirty year hence.”
Quoted by C.E.Trevelyn ‘Life and letters of lord Macaulay 1. 455
हिन्दी अनुवाद
“कोई भी हिन्दू ऐसा नहीं है जो अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करके अपने धर्म के प्रति ईमानदारी से लगाव रखता हो। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा योजना को व्यावहारिक रूप प्रदान कर दिया गया तो 30 वर्ष पश्चात बंगाल के उच्च वर्ग में कोई भी मूर्ति पूजक शेष नहीं रह जाएगा।”
[06] – भारतीय प्राच्य भाषाओँ की पूर्ण उपेक्षा कर केवल अँग्रेजी भाषा को शिक्षा माध्यम बनाना किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं था जैसा कि एस ० एन ० मुकर्जी ने लिखा –
“His recommendation about the use of English as the only medium of instruction can not be justified.”
– S.N.Mukerji op.cit.p.81
“शिक्षा के माध्यम के रूप में केवल अँग्रेजी भाषा के उपयोग की उसकी संस्तुति औचित्यपूर्ण नहीं हो सकती है।”
[07] – पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार ने भारतीय जनता को इतना प्रभावित किया कि उन्हें अपना व देश का ध्यान ही न रहा। जिससे भारत अधिक समय तक गुलाम बना रहा।
[08] – भारतीय भाषा व साहित्य की उपेक्षा कर भारतीय ज्ञान और विज्ञान पर उसने एक छद्म आवरण डाल दिया जब कि भारत के श्री मद्भागवद्गीता जैसे ग्रन्थ का बाद में विश्व की अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ। 1904 में लार्ड कर्जन ने कहा। –
“Ever since the cold breath of Macaulay’s rhetoric passed over the field of Indian language and the Indian text books the elementary
education of the pupils in their own tongue shrivelled and pinned.” Lord Curzon in India.p.316
“जब मैकाले की अलंकृत भाषा (अंग्रेजी) की शीत लहर भारतीय भाषाओँ और पाठ्य पुस्तकों के क्षेत्र से होकर गुज़री, तबसे अपनी स्वयं की भाषा में छात्रों की प्रारम्भिक शिक्षा की बेलें कुम्हला गईं और कराहने लगीं।”
[09] – मैकाले, कम्पनी के शासन हेतु सुयोग्य व बफादार कर्मचारी तैयार करना चाहता था उसका उद्देश्य भारत में श्क़्श का प्रसार नहीं था उसने स्वयं लिखा –
“We must at present do our best to form a class, who may be interpreters between us and the millions whom we govern.”
-Macaulays Minute
”हमें इस समय एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहिए जो हमारे और उन लाखों व्यक्तियों के मध्य द्विभाषिया बन सकें जिन पर हम शासन करते हैं।”
वस्तुतः मैकाले भारतीय भाषाओँ, संस्कृति व जनसाधारण की शिक्षा के प्रसार में बाधक बना उसे भारत में आधुनिक शिक्षा की प्रगति का पथ प्रदर्शक अथवा पाश्चात्य शिक्षा का अग्रदूत कहना उचित नहीं। इस सम्बन्ध मेंJames महोदय ने ठीक ही कहा है –
“His pronouncements are too glib, too confident too unqualified and some times error against good taste.”
-H.R.James ; Education and Statmanship in India.
“उसकी घोषणाएं व्यर्थ बकी बकवासों अपने आप पर अपार विश्वास तथा अहम् मान्यताओं से परिपूर्ण थीं कभी कभी उनमें सुरुचि का अभाव प्रस्फुटित होता है।”
व्यक्तिगत विकास में अपनी स्वयं की क्षमता पहचानना, उन्हें विकसित करना व खुद को समाज के उपयोगी सदस्य के रूप में स्थापित करना समाहित है।
हुमायूँ कबीर महोदय कहते हैं –
“यदि व्यक्ति को समाज का सृजनशील सदस्य बनना है तो उसे न केवल स्वयं का विकास करना चाहिए वरन समाज के प्रति भी कुछ योग दान करना चाहिए।”
“If one is to be creative member of society, one must not only sustain one’s own growth but contribute something to the growth of society.”
टी पी नन (T.P.Nunn ) महोदय का मानना है –
“वैयक्तिकता केवल ऐसे वातावरण में विकसित होती है, जहाँ सांझी रुचियों और साँझी क्रियाओं से अपना पोषण कर सकती है। “
“Individuality develops only in a social atmosphere where it can feed on common interests and common activities.”
अतः कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत विकास में सामाजिक विकास के बीज भी संरक्षित रहते हैं।
सामाजिक विकास से आशय / Meaning of social development –
व्यक्ति समाज की इकाई है और व्यक्तियों का समूह समाज है हर समाज के अपने नियम, मर्यादाएं,परम्पराएं ,संस्कृति,आदर्श मूल्य और प्रतिमान होते हैं जिनमें शिक्षा के द्वारा सकारात्मक परिवर्तन आता है इससे समाज का व्यवहार निर्देशित होता है। यह सकारात्मक परिवर्तन विकास को परिलक्षित करता है।
मैकाइवर और पेज महोदय कहते हैं। –
“समाज रीतियों तथा कार्य प्रणालियों की अधिकार तथा पारस्परिक सहयोग की, अनेक समूहों और विभागों की, मानव व्यवहार के नियंत्रणो और स्वतंत्रताओं की एक व्यवस्था है। इस सतत परिवर्तनशील व्यवस्था को हम समाज कहते हैं।”
“Society is a system of uses and procedures of authority and mutual and of many groupings and subdivisions of control of human behavior and of liberties. This ever changing complex system, we call society.”
Unacademy के अनुसार
“सामाजिक विकास का सीधा तात्पर्य गुणात्मक परिवर्तनों से है जीएसके माध्यम से समाज अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सके और अपने कार्यों को स्वयं आकार दे सके।”
“Social development directly means qualitative changes through which society can discharge its responsibilities and shape its own actions.”
BY JU’S के अनुसार –
“सामाजिक विकास का तात्पर्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति की भलाई में समग्र सुधार से है ताकि वे अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सकें।”
“Social development refers to the overall improvement in the well-being of every individual in a society so that they can reach their full potential.”
व्यक्तिगत विकास / Personal development –
01 – व्यक्तिगत कौशल विकास /personal skill development
02 – ज्ञान व क्षमता विकास / knowledge and capacity development
03 – आत्म सुधार / Self Improvement
04 – आत्म जागरूकता / self awareness
05 – जीवन पर्यन्त विकास / Lifelong development
06 – अधिकतम क्षमता प्रयोग / Maximum Potential Utilization
07 – सकारात्मक आत्म परिवर्तन / Positive Self Change
08 – आत्म सम्मान / Self esteem
09 – प्रगतिशीलता / Progressive
10 – मानसिक स्वास्थय परिमार्जन / Mental health improvement
सामाजिक विकास / Social development –
01 – शिक्षा व्यवस्था / Education system
02 – सामाजिक स्वास्थय /Social health
03 – पर्यावरण / Environment
04 – सामाजिक सुरक्षा / Social security
05 – आर्थिक प्रगति / Economic progress
06 – सांस्कृतिक संरक्षण व परिमार्जन / Cultural preservation and refinement
07 – सामाजिक सहभागिता विकास / Social participation development
08 -रोजगार अवसर उपलब्धि / Employment opportunities availability
09 – समस्त सामाजिक वर्ग सशक्तिकरण / Empowerment of all social classes
10 – निरन्तर प्रगतिशीलता / Continuous progressiveness
11 – तकनीक सुग्राह्यता / Technology sensitivity
12 – प्रगतिशील दृष्टिकोण विकास / Progressive approach development
उक्त सम्पूर्ण विवेचन यह सिद्ध करता है की व्यक्तिगत व सामाजिक विकास एक दूसरे के पूरक हैं दोनों में एक दूसरे के पल्लवन के बीज संरक्षित हैं। जैसा की रायबर्न महोदय कहते हैं। –
“समाज की उन्नति प्रत्येक व्यक्ति की होती है। समाज को चाहिए कि वह व्यक्ति के विकास के लिए ऐसे अवसर प्रदान करे जिससे वह समाज को अपना विशेष योगदान दे सके।”
आँग्ल अनुवाद
“The progress of society is dependent on every individual. Society should provide such opportunities for the development of the individual so that he can make his special contribution to the society.
पनीर आज भारत में बहुत लोकप्रिय है। ‘पेनिर’ शब्द फारसी है इसका तुर्की और फ़ारसी में इसका आशय पनीर है। पनीर को संस्कृत में क्षीरज या दधिज कहते हैं। इसे प्रनीरम् कहा जाता है कुछ ग्रन्थों में इसे तक्र पिण्डक भी कहा गया है। पनीर को अंग्रेजी में कॉटेज चीज़ कहा जाता है ,इसे स्पेनिश में Queso कहते हैं। यहाँ हम सहज सम्प्रेषण हेतु पनीर शब्द ही प्रयोग करेंगे।
भारत में प्रमुखतः बिकने वाला पनीर / Mainly sold cheese in India –
भारत पनीर का बहुत बड़ा बाजार है और यहाँ पनीर की माँग में लगातार इजाफा हो रहा है। मुख्य रूप से यहाँ बिकने वाले पनीर को तीन श्रेणी में रख सकते हैं।
01 – असली पनीर /Real Paneer –
02 – एनालॉग पनीर /Analog Paneer –
03 – नकली पनीर / Fake Paneer –
पनीर उत्पादन व खपत / Cheese production and consumption –
भारत में हर साल 5 लाख टन पनीर की खपत का अनुमान है। यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है और भारत में उत्पन्न दूध की कुल मात्रा में 7 % का प्रयोग पनीर बनाने में किया जाता है 5 किलोग्राम दूध से लगभग एक किलोग्राम पनीर बनता है। भारत में 5 शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य मिलकर 54 % दुग्ध उत्पादित करते हैं वे हैं – उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अपने भारत के लोग पनीर को प्रोटीन का प्रमुख स्रोत मानते हैं और इस पर 65 हजार करोड़ प्रति वर्ष वर्तमान में खर्च कर रहे हैं और सन 2033 तक यह खर्चा 2 लाख करोड़ तक पहुँच सकता है। भारत में खपत लगभग 5 लाख टन पनीर प्रतिवर्ष है जो कि 250 करोड़ लीटर दूध से बन सकेगा। एक आँकड़े के अनुसार 7 % पनीर दूध से बनता है बाकी का अन्दाजा आप लगा ही सकते हैं।
भारतीय पनीर से सम्बन्धित कुछ चौंकाने वाले तथ्य / Some surprising facts related to Indian Paneer –
आप अगर नित्य प्रति का समाचार पत्र ध्यान से देखें तो आये दिन नकली पनीर की खबर से रूबरू होंगे। कुछ समय पूर्व देश की राजधानी से निकट नॉएडा में पुलिस ने 1400 किलो नकली पनीर पकड़ा जो काफी चर्चित रहा। यह उत्तर प्रदेश की अलीगढ स्थित फैक्ट्री में खतरनाक केमिकल की मदद से बनाया गया जिसे पुलिस ने सील भी कर दिया। इससे पहले भी नॉएडा और ग्रेटर नॉएडा के फ़ूड डिपार्टमेण्ट ने 122 पनीर के सैम्पल की जाँच की इसमें 83 % में तो मिलावट पाई गई और 40 % में ऐसे तत्व थे जिन्हें खाने से गंभीर बीमारी का खतरा था। इसी तरह कर्नाटक में पनीर के 163 सैम्पल की जांच करने पर चार ही पास हुए बाकी फेल। लखनऊ में भी पनीर के 50 % नमूने फेल हुए। कुल मिलाकर ये स्वीकार करने के बहुत से कारण हैं कि हमें मिलाने वाला पनीर घोर शंका से घिरा है।
विगत वर्षों का पनीर उत्पादन और खपत वृद्धि के कारण / Cheese production over the past years and reasons for consumption growth –
विविध आँकड़े ये दर्शाते हैं कि पनीर उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2014 से 2019 तक उत्पादन वृद्धि प्रति वर्ष 2.2 % थी। 2014 -15 दुग्ध उत्पादन 146. 3 मिलियन टन था जो 5. 62 % की वृद्धि दीखता हुआ 2023-24 में 239 .30 मिलियन टन पर पहुँच गया। FOOD SPECTRUM के अनुसार 2024 में भारतीय पनीर बाजार का मूल्य 107.54 बिलियन रुपये था जो 2033 तक 593 .47 बिलियन रुपए तक पहुँचाने की उम्मीद है। यहाँ पनीर उत्पादन वृद्धि के जो कारण हैं उन्हें इस प्रकार दिया जा सकता है।
01 – डेयरी उद्योग
02 – पनीर उत्पादन
03 – आय वृद्धि
04 – उपभोक्ता की माँग
05 – सुविधाजनक
06 – प्रोटीन सम्बन्धी विश्वास
07 – पैकेजिंग
08 – बनाने में सरल, सुविधाजनक
09 – सहज उपलब्धता
वर्तमान परिदृश्य पनीर की माँग में लगातार वृद्धि का है आवश्यकता इसके शुद्धतम स्वरुप के उत्पादन व विपणन की है। आशा है भविष्य में वे तरीके निकाले जाएंगे जिससे पनीर किसी की सेहत को नुकसान न पहुँचा सके। आज की स्थिति को देखकर जनमानस इसे सर्वाधिक मिलावटी खाद्य पदार्थ का दर्जा दे तो कोइ अतिश्योक्ति न होगी। आगामी राष्ट्रीय पनीर दिवस 12 जून तक क्या परिवर्तन होगा यह भविष्य के गर्त में है।
शोध की दुनिया अपने आप में परिश्रम और लगन के विविध आयामों को अपने आप में समेटकर विशिष्ट कहानी का सृजन करती है। यह बताती है कि समस्त परिकल्पना, उद्देश्य, विश्लेषण, संश्लेषण, गणनाएं किसी शीर्षक के इर्द-गिर्द क्यों परिभ्रमण कर रही थीं और ज्ञान के समुद्र मंथन से क्या प्राप्त हुआ है? जो आने वाले कल में भविष्य को दिशा निर्देश देने में सक्षम है। इस कार्य को सम्पादित करता है रिपोर्ट लेखन।
एक कहावत है जंगल में मोर नाचा किसने देखा, इसका आशय है कि यदि किसी अच्छे कार्य को देखने वाला कोई नहीं तो इसका कोइ मतलब नहीं दूसरे शब्दों में यदि कोई उपलब्धि किसी के संज्ञान में नहीं आ रही तो महत्वहीन है। शोध रिपोर्ट या रिपोर्ट लेखन का यह दायित्व है कि वह किये गए कार्य की महत्ता प्रतिपादित करे तथा सबके संज्ञान में लाये।
रिपोर्ट लेखन, शोधकार्य के अंतिम चरण के रूप में स्वीकार किया जाता है और यह विशिष्ट कौशल के द्वारा सम्पादित होता है इसे लिखने में अत्याधिक सावधानी की अपेक्षा रहती है। इसीलिए इस उद्देश्य पूर्ति हेतु विशेषज्ञों की राय व निर्देशन महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसका उद्देश्य शोध के लाभ को उन तक पहुंचाना है जिनके लिए यह किया गया है शब्द और लेखन का ढंग ऐसा हो जो बोध ग्राह्य हो।
रिपोर्ट लेखन के विविध चरण / Various steps of report writing –
यह शोध कार्य का अंतिम चरण होने के नाते श्रम साध्य और समस्त कार्य का प्रतिनिधित्व करने वाला मुखड़ा है जो विशेष सावधानी की अपेक्षा रखता है इसीलिये अधिगम के दृष्टिकोण से इसके विविध चरणों को इस प्रकार व्यवस्थित कर सकते हैं। –
01 – समग्र का संश्लेषणात्मक तार्किक विश्लेषण / Synthetic logical analysis of the whole
02 – अन्तिम परिणति की तैयारी /Preparing for the final outcome
03 – कच्चा मसौदा/ Rough draft
04 – शुद्धिकरण और पुनः लेखन / Correction and rewriting
05 – ग्रन्थ सूची की तैयारी / Preparation of Bibliography
06 – अन्तिम परिमार्जित रिपोर्ट लेखन / final revised report writing
रिपोर्ट लेखन हेतु रिपोर्ट लेखक के आवश्यक गुण /Essential qualities of a report writer for report writing-
शोध कर्त्ता या रिपोर्ट लेखक इतनी ठोकरें शोध कार्य के दौरान खा चुका होता है कि इस हेतु आवश्यक गुण उसमें विकसित हो जाते हैं लेकिन सामान्य रूप से इन गुणों का होना गरिमायुक्त स्वीकार किया जाता है।
01 – सम्यक स्वनियन्त्रक / Proper self control
02 – त्वरित निर्णयन क्षमता / Quick decision making ability
03 – सम्यक कौशल विकास / Proper skill development
04 – तथ्यों के प्रति तटस्थ / Neutral to facts
05 – शोध मूल्यांकन में सक्षम / Capable of research evaluation
06 – सम्यक प्रबंधकीय गुण / Proper managerial skills
07 – यथार्थवादी / Realistic
08 – क्षमता को उत्कृष्टता में बदलने को तत्पर / Willing to transform potential into excellence
शोध रिपोर्ट हेतु सावधानियाँ /Precautions for research report –
यद्यपि विश्व विद्यालय द्वारा प्रदत्त प्रारूप से बँधकर कार्य किया जाता है और विविध मानकों का भी ध्यान रखा जाता है फिर भी रिसर्च रिपोर्ट को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कुछ सावधानियाँ अपेक्षित हैं –
01 – शोध रिपोर्ट के आकार का निर्धारण /Determining the size of a research report
02 – रुचिपूर्ण / Interesting
03 – चार्ट, ग्राफ और तालिकाओं का सम्यक प्रयोग /Judicious use of charts, graphs and tables
04 – मौलिकता व तार्किक विश्लेषण / Originality and logical analysis
05 – शुद्ध व सम्यक प्रारूप / correct and proper format
06 – परामर्शित स्रोतों की स्पष्ट ग्रन्थ सूची / Clear bibliography of sources consulted
07 – परिशिष्टों का सूचीकरण / Listing of Appendices
अन्त में यह कहना तर्क संगत होगा के बदलते परिवेश के साथ नित्य प्रति परिवर्तनों का दौर जारी है इस लिए हमें वक़्त के साथ कदम ताल करना होगा और समय के साथ नवीनतम परिवर्तित रिपोर्ट लेखन के साथ तालमेल बैठाना होगा।
06 जुलाई 2025 अर्थात अषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी (देव शयनी एकादशी) से सृष्टि का सञ्चालन महाकाल के हाथ में आ जाता है और सम्पूर्ण चातुर्मास भगवान् भोले, हमारे महादेव सृष्टि सञ्चालक की भूमिका का निर्वहन करते हैं।
चातुर्मास – जिन चार महीनों की अवधि चातुर्मास कहलाती है उसका प्रारम्भ देव शयनी एकादशी अर्थात अषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी से होता है और कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है ये चार माह ही चातुर्मास कहलाते हैं। इसमें सोलह्कला सम्पूर्ण भगवान् श्री विष्णु विश्राम की अवस्था में रहते हैं।
देव शयनी एकादशी –
सनातन हिन्दू धर्म की दिव्यता विविध अनुष्ठानों त्यौहारों दिवसों के माध्यम से भी परिलक्षित होती है। एकादशी का हिन्दू धर्म में विशिष्ट स्थान है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी होती हैं इनकी संख्या 26 तब होती है जब मलमास या अधिक मास आता है अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। यह भगवान विष्णु की विश्राम अवधि विविध शास्त्रों में वर्णित है।
विविध विचारक इसे योग निद्रा अवधि या ऊर्जात्मक विश्राम भी कहते हैं ,जब भगवान विष्णु जगत के पालन कर्त्ता योग निद्रा में होते हैं तब सृष्टि सञ्चालन महाकाल भगवान् शिव में केन्द्रित हो जाता है। पद्म नाभा या देवशयनी एकादशी आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
चार माह का संयम और माहात्मय –
इन चार माह में शुभ कार्य सम्पादित करने से बचा जा सकता है विवाह,गृह,प्रवेश, मुण्डन, यज्ञोपवीत संस्कार आदि इस समय वर्जित रहते हैं। इस समय ध्यान, साधन, व्रत, स्वानुशासन व आत्म संयम पर दिया जाता है।
देव शयनी एकादशी के बारे में कहा गया है की इस दिन भगवान् विष्णु का पूजन करने व व्रत रखने से त्रिदेवों की आराधना का पूण्य फल प्राप्त होता है। चातुर्मास में चूँकि सृष्टि सञ्चालन भगवान् भोले बाबा के हाथ होता है अतः शिव उपासना करने पर विष्णु उपासना के भी सभी फल प्राप्त होते हैं।
साधना समय, व्रत व भोजन व्यवस्था –
देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ होने वाला यह कालखण्ड जिसे विष्णु शयनी एकादशी भी कहा जाता है पद्म पुराण में इसकी सम्यक विवेचना मिलती है इसमें व्रत रखकर प्रत्येक दिन सूर्योदय के समय स्नान ध्यान आदि से निवृत्त होकर श्री हरि विष्णु भगवान् की आराधना करते हैं। अपने अपने क्षेत्रों और विश्वास के अनुसार भगवान् भोले को स्मरण किया जाता है देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास में नियम संयम से रहने का शुभ संकल्प लिया जाता है। शिव उपासना के पीछे तर्क यहभी है कि यह सम्पूर्ण काल खण्ड भगवान् शिव को अत्यन्त मनोहर लगता है इस बीच काँवड़िये भगवान् शिव की आराधना उपासना कर विष्णु उपासना का फल भी अर्जित करते हैं।
इन चार महीनों में दिन में एक बार भोजन करने का विधान है वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्तम स्वास्थय बनाये रखने के लिए सावन के महीने में साग, भाद्र पद माह में दधि या दही का निषेध है। इसी तरह आश्विन मास में दूध तथा कार्तिक मॉस में दाल का सेवन उचित नहीं माना जाता है। प्राचीन ऋषि मनीषियों विज्ञान वेत्ताओं ने उत्तम स्वास्थय को दृष्टिगत रखते हुए यह विधान दिया है। समस्त चराचर की निर्विघ्न विकास यात्रा में चातुर्मास का विशेष स्थान है। इन दिनों तामसिक भोजन ग्रहण न कर और संयमित जीवन यापन के माध्यम से स्वयं को स्वस्थ रखने का प्रयास हो।
भगवान् भोले नाथ सबको आलम्ब प्रदान कर प्रगति उन्मुख करें और भारतीय संचेतना के इन शब्दों को पोषण प्रदान करें व कृपा दृष्टि बनाएरखें।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
Meaning of research integrity / शोध अखण्डता से आशय
आज पूरा विश्व विकास के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर नित्य नए विकास के आयाम गढ़ने के लिए अग्रसर है और विकास के ये सोपान शोध की मज़बूत नींव पर ही खड़े होते हैं। ऐसी स्थिति में शोध अखण्डता अत्याधिक महत्त्व पूर्ण हो जाती है। शोध अखण्डता, शोधकर्त्ता के शोध कार्य के प्रति दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। और उम्मीद करती है कि शोध कर्त्ता कर्त्तव्य निष्ठ, ईमानदार, जिम्मेदार और कार्य को पारदर्शी ढंग से परिपूर्ण करने वाला होगा वह अपने शोधकार्य के प्रति इतना समर्पित होगा कि उसका कार्य विश्वसनीयता के मानदण्डों पर खरा उतरे। इसीलिये शोध अखण्डता को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है की शोध अखण्डता से आशय है कि – शोध कार्य को पूर्ण करने में पेशेवर सिद्धांतों के पालन के साथ नैतिक मानदण्डों को प्रश्रय देना।
Essential elements for research integrity/शोध अखण्डता हेतु आवश्यक तत्व –
निम्न तत्वों को सम्मिलित कर शोध अखण्डता को उच्चस्तर का बनाये रखा जा सकता है। –
01 – वस्तुनिष्ठता / Research objectivity
02 – विश्वसनीयता / Reliability
03 – निष्पक्षता युक्त पारदर्शिता / Transparency with fairness
04 – साहित्यिक चोरी से अलगाव / Non-plagiarism
05 – जिम्मेदारी युक्त जवाबदेही / Meaning of accountability with responsibility
06 – स्वतन्त्रता / Independence
07 – उपयुक्त लचीला पन /Appropriate flexibility
08 – सम्यक गोपनीयता /Appropriate confidentiality
09 – उच्च नैतिक मानदण्ड / High ethical standards
10 – निष्कर्षों की जिम्मेदारी / Responsibility for findings
उक्त तथ्यों का ईमानदारी से परिपालन करके शोध अखण्डता को प्रश्रय दिया जा सकता है, शोध अखण्डता व्यक्तिगत शोधकर्त्ताओं को सामाजिक जिम्मेदारी का अहसास कराती है शोध समुदाय और शोध जगत हेतु शोध अखण्डता नींव की मज़बूत आधारशिला है। इससे जिम्मेदार आचरण निर्देशित होता है शोध प्रतिभागियों को गरिमा युक्त सम्मान प्राप्त होता है। सत्य, निष्पक्षता को आलम्ब मिलता है।
काल चक्र परिभ्रमण के साथ पत्रिकाओं का अस्तित्व हमेशा से रहा है और रहेगा। विविध जर्नल में से कोई जर्नल प्रतिष्ठित की श्रेणी में आता है तो उसका आधार बनता है इम्पैक्ट फैक्टर (IMPECT FACTOR) . यह एक तरह से उस जर्नल की प्रभाव और प्रतिष्ठा की माप है। इससे यह ज्ञात होता है कि इसमें उपस्थित लेखों को कितनी बार उद्धृत किया गया है।इम्पैक्ट फैक्टर (IMPACT FACTOR) की गणना/Calculation of IMPACT FACTOR
– इसकी गणना के माध्यम से जर्नल की सापेक्षिक गुणवत्ता व महत्त्व को प्रदर्शित किया जाता है इसकी गणना एक निर्धारित वर्ष में जर्नल में प्रकाशित लेखों को पिछले दो वर्षों में उद्धृत किये जाने वाले औसत अंक के रूप में जो संख्या प्राप्त होती है उसे उसका इम्पेक्ट फैक्टर कहा जाता है।
उदाहरण के लिए यदि किसी जर्नल का 2024 का इम्पैक्ट फैक्टर 3.0 है, तो इसका मतलब है 2022 और 2023 में पब्लिश्ड लेखों को 2024 में औसतन 3 बार उद्धृत किया गया। यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि इम्पैक्ट फैक्टर की गणना सामान्यतः जॉर्नल साइटेशन रिपोर्ट (JSR) में प्रकाशित की जाती है।
इम्पैक्ट फैक्टर (IMPACT FACTOR)का महत्त्व/ Importance of IMPACT FACTOR, –
01 – श्रम साध्य लेखन को दिशा / Direction for laborious writing
02 – जर्नल हेतु उपयुक्त मानक / Appropriate standards for the journal
03 – प्रकाशकों को दिशा बोध / Direction for publishers
04 – जर्नल को प्रसिद्धि / fame to the journal
05 – नए शोध कर्त्ताओं को प्रेरणा / Inspiration to new researchers
06 – लेखकों की मान्यता स्थापन / Establishment of recognition of authors
07 – अभिप्रेरक /Motivator
इम्पैक्ट फैक्टर (IMPACT FACTOR) की सीमाएं/ Limitations of IMPACT FACTOR, –
01 – समग्र प्रभाव का आकलन /Assessment of overall impact
02 – व्यक्तिगत लेखों की गुणवत्ता आकलन में विफल / Fails to assess the quality of individual articles
03 – बेईमानी को प्रश्रय / Encouraging dishonesty
04 – शोध मूल्यांकन हेतु इस पर आश्रय उचित नहीं / It is not appropriate to rely on it for research evaluation
05 – पक्षपात पूर्ण /Biased
अन्ततः यह स्वीकार किया जा सकता है कि यह एक महत्त्वपूर्ण मानक है लेकिन केवल इसी पर निर्भरता उचित नहीं। अतः शोध मूल्यांकन में इसे मात्र मानदण्ड न माना जाए।