ਜਾਲੀਆਂ ਵਾਲਾ ਬਾਗ

भारत के पंजाब प्रान्त में स्वर्ण मन्दिर के पास एक जगह है जिसे जालियाँ वाले बाग़ के नाम से जाना जाता है। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन उस सङ्कीर्ण निकासी वाले बाग़ में लोग त्यौहार को खुशी खुशी मनाने व रॉलेट एक्ट से सम्बन्धित शान्ति पूर्ण सभा का हिस्सा बनने के लिए एकत्रित हुए इसमें बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलायें सभी तरह के व सभी आयु वर्ग के लोग शामिल थे।

 अधिकाँश सदस्यों के विरोध के बावजूद 10 मार्च 1919 को दिल्ली की विधान सभा से अराजक और क्रान्तिकारी गतिविधियों को रोकने हेतु जो कला क़ानून पारित हुआ उसे रॉलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः इस एक्ट के द्वारा ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार मिलना था कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना किसी सबूत के दो वर्ष कैद रख सके। इसमें किसी मुकदमें को चलाने की भी आवश्यकता नहीं थी।

यही नहीं समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता भी इस माध्यम से समाप्त हो रही थी गिरफ्तार होने वाले को यह जानने का अधिकार भी नहीं था कि वह क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है जब कोइ निर्दोष साबित होने पर छूट भी जाता था तो उसे जमानत राशि जमा करनी पड़ती थी और वह किसी भी राजनैतिक, धार्मिक, शैक्षिक कार्यक्रम में भाग नहीं ले सकता था।

इन दमनकारी युद्धकालीन नीतियों के खिलाफ जगह विरोध के स्वर उठ रहे थे, भारत की ब्रिटिश सरकार श्रृंखलाबद्ध ढंग से दमनकारी आपात कालीन व्यवस्थाएं बनाकर भारतीय क्रान्ति के अग्रदूतों का यथा सम्भव विनाश करना चाहती थी। इस आहट को महसूस कर जालियाँ वाले बाग़ में शान्ति पूर्ण सभा आयोजित हो रही थी।

ह्त्या काण्ड निर्देश व नर संहार आयोजन –

भारत के इतिहास में ऐसे कई दिवस  पड़ते हैं जो निर्दोष भारतीयों के खून से रँगे है माँ भारती के पंजाब प्रान्त की हमारी रणबाँकुरी प्रजाति से  आमने सामने शस्त्र सहित भिड़ना अंग्रेजों की औकात से बाहर था इसीलिये जब हजारों निहत्थों का रैला शान्ति पूर्ण विचार मन्थन हेतु जालियां वाले बाग़ में इकठ्ठा हो चूका तब पंजाब प्रान्त के तत्कालीन गवर्नर सर माइकेल फ्रांसिस ओ डायर के इशारे पर कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर के आदेश पर इस रूह कँपा देने वाले नरसंहार  को अमल में लाया गया यह दुष्काण्ड हजारों निहत्थों की जीवन लीला समाप्त करने का कारण बना संकरे रास्ते  रोके खड़े ब्रिटिश सैनिक अपने कसाई डायर के आदेश पर बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं सहित सम्पूर्ण उपस्थित जनसमूह पर अंधाधुन्ध गोलीबारी कर रहे थी बहुत से लोग वहाँ एक कुएं में छलांग लगाने को विवश हो गए। इन कसाइयों ने ऊपर से भारतीयों के मृत शरीर उस कुएं में डाल दिए जिससे जिससे वह कुआँ उसमें जीवित लोगों का समाधि स्थल बन जाए .

तत्सम्बन्धी दोनों डायर की अन्तिम परिणति –

13 अप्रैल 1919 को शाम 5 बजकर 37 मिनट पर हुई इस भयङ्कर नर सँहार ने अंग्रेज शासन की चूलें हिला दी, भीड़ पर गोली चलाने की भारत और ब्रिटेन दोनों जगह  भारी भर्त्सना हुई। कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर जो अमृतसर के कसाई के नाम से भी जाना जाता है। कालान्तर में ब्रिटेन चला गया और ब्रेन हैमरेज से उसकी मृत्यु हो गई। दूसरा डायर जो उस समय पंजाब का गवर्नर था जिसकी सहमति से नरसंहार की पूर्ण पटकथा लिखी गयी। उस माइकल फ्रांसिस ओ डायर को सरदार ऊधम सिंह ने अपनी शूर वीरता का परिचय देते हुए लन्दन में मार डाला। यद्यपि वीर ऊधम सिंह जिसने जेल में अपना नाम भारत की सांस्कृतिक एक जुटता दर्शाता – मोहम्मद सिंह आज़ाद बताया, को फाँसी की सजा दी गई। इस वीर ने जालियां वाले बाग़ हत्याकाण्ड का बदला लिया 19 जुलाई 1974 को क्रांतिकारी ऊधम सिंह की अस्थियां भारत लाई गईं।

जालियाँ वाले बाग़ के इस  भयङ्कर संत्रांश ने हर भारतीय को झकझोर कर रख दिया। जगह जगह विद्रोह कई नए  खड़े हुए बहुत से लोगों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्राप्त उपाधियों को  दिया। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के आक्रोश पत्र के शब्द हिन्दी में आपके समक्ष रखता हूँ। –

“इस अवस्था में मैं अपने देश के लिए कम से कम यह कह सकता हूँ कि आतंक से गुंग अपने करोड़ों देश वासियों द्वारा भोगी जा रही मूक पीड़ा एवम् संताप को मुखरित करूँ और उसके सभी परिणाम भुगतने के लिए तत्पर रहूँ। अब समय आ गया है जब कि सम्मान के प्रतीक (उपाधियाँ आदि)  उनसे विसंगत अपमान के सन्दर्भ में हमें अधिक शर्मिंदा करते हैं। और मैं अपने स्थान पर इन विशेष सम्मानों को झटक कर अपने देश वासियों के साथ खड़ा होना चाहता हूँ। ———–इन्ही कारणों ने मुझे दुखी ह्रदय से मजबूर कर दिया है कि मैं आज महामान्य जी को सत्कार और खेद सहित कहूँ कि मुझे सर की उपाधि से मुक्त किया जाए जो कि सम्राट द्वारा मुझे प्रदान की गयी थी।”-  राष्ट्र धर्म’ जुलाई 2021 से साभार

इस घटना ने राष्ट्रवादियों के ह्रदय को विदीर्ण कर दिया। आँखों में रक्त उतरना स्वाभाविक था। बहुत से साहित्यकारों ने अपनी कलम के माध्घ्यम से इसे अभिव्यक्ति दी। कवि कुल शिरोमणियों की श्रृंखला की कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित जालियाँ वाले बाग़ में बसन्त के शब्द और भाव आपकी झोली में रखता हूँ –

यहाँ कोकिला नहीं काग हैं शोर मचाते,

काले काले कीट भ्रमर का भ्रम उपजाते।।

कलियाँ भी अधखिली मिली हैं कंटक कुल से

वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे ।।

परिमल -हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,

हा ! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है ।।

ओ, प्रिय ऋतुराज ! किन्तु धीरे से आना,

यह है शोक स्थान यहां मत शोर मचाना ।।

वायु, चले पर मंद चाल से उसे चलाना,

दुःख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना ।।

कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,

भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनाएँ।।   

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,

तो सुगन्ध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले ।।

किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,

स्मृति  में  पूजा  हेतु  यहाँ  थोड़े  बिखराना।।

कोमल बालक मरे यहाँ  पर गोली खा कर,

कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर ।।

आशाओं से भरे ह्रदय भी छिन्न हुए हैं,

अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं ।।

कुछ कलियाँ अधखिली यहां इसलिए चढ़ाना,

करके उनकी याद अश्रु के ओस बहाना ।।

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर

शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर ।।

यह सब करना किन्तु वहाँ मत शोर मचाना,

यह है शोक स्थान, बहुत धीरे से आना ।।

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