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शिक्षा

HUNTER COMMISSION [1882-83]

September 17, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

हण्टर कमीशन [1882 – 83]

सन् 1854 के घोषणा पत्र के बाद सन् 1857 में प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम हो गया परिणाम स्वरुप जो 20 वर्ष उपरान्त शिक्षा नीति की समीक्षा होती थी वह न  हो सकी और वुड के घोषणा पत्र की अवहेलना कर सरकार मैकाले के निस्यन्दन सिद्धान्त पर चलती रही जन साधारण की शिक्षा का तिरस्कार हुआ। उत्साह पूर्वक चल रहे शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रम भी इससे दुष्प्रभावित हुए।

सन् 1882 में ब्रिटिश संसद ने नए गवर्नर जनरल लार्ड रिपन (Ripon) की नियुक्ति की तब जनरल काउन्सिल ऑफ़ एजुकेशन इन इंडिया नामक संस्था के सदस्यों के शिष्ट मण्डल ने भारतीय शिक्षा नीति के सम्बन्ध में उनसे वार्ता की तब उन्होंने आश्वासन दिया और कहा –

“1854 के घोषणा पत्र ने वस्तुतः भारतीय शिक्षा नीति को स्पष्ट एवम् जोरदार शब्दों में निर्धारित कर दिया है और मेरी इच्छा भी उसी नीति पर चलने की है।”

आँग्ल अनुवाद

“The Declaration of 1854 has essentially laid down the Indian educational policy in clear and strong terms and it is my desire to follow the same policy.”

भारतीय शिक्षा आयोग की नियुक्ति / Appointment of Indian Education Commission –

लार्ड रिपन महोदय ने 3 फरबरी 1882 को विलियम हण्टर की अध्यक्षता में प्रथम भारतीय शिक्षा आयोग की स्थापना की, सर विलियम हण्टर गवर्नर जनरल की कार्य कारिणी के सदस्य के रूप में कार्यरत थे। आयोग का अध्यक्ष बनने पर आयोग ने अपने 20 सदस्यों के साथ कार्य का शुभारम्भ किया इसमें 7 भारतीय प्रतिनिधि थे। इस आयोग में मैसूर के शिक्षा सञ्चालक बी एल राइस मन्त्री व पादरी प्रतिनिधि Dr.  W Millar थे। भारतीय प्रतिनिधि भूदेव मुकर्जी, सैय्यद महमूद, आनन्द मोहन बोस, के ० टी ० तेलंग, पी रंगानन्द मुदालियर, महाराजा जितेन्द्र टैगोर व हाजी गुलाम थे।

हण्टर कमीशन का उद्देश्य व कार्य क्षेत्र / Objective and scope of work of Hunter Commission –

 आयोग की नियुक्ति के प्रस्ताव में इसके उद्देश्य की झलक मिलती है यथा –

“कमीशन का कर्त्तव्य होगा, विशेष रूप से इस बात की जाँच करना कि 1854 के घोषणा पत्र के सिद्धान्तों को किस प्रकार कार्यान्वित किया गया है और ऐसे उपायों के सुझाव देना जो उस घोषणा पत्र में निर्धारित नीति को उत्तरोत्तर कार्यान्वित करने हेतु कमीशन के मतानुसार वांछनीय प्रतीत होते हैं।”

“It will be the duty of the commission to enquire particularly into the matter in which effect has been given to the principles of the Dispatch of 1854 ; and to the suggest such measures as it may think desirable in order to further carrying out of the policy therein laid down.”

इसके अतिरिक्त इसे प्राथमिक प्राथमिक शिक्षा की सूक्ष्म जाँच का कार्यभार सौंपा गया। सार रूपेण कमीशन को निम्न कार्य करने थे –

01 – क्या उच्च व माध्यमिक शिक्षा के कारण प्राथमिक शिक्षा उपेक्षित

02 – प्राथमिक शिक्षा की स्थिति व सम्वर्धन उपाय

03 – राजकीय विद्यालयों की स्थिति व उनकी आवश्यकता

04 – शैक्षिक क्षेत्र में वैयक्तिक प्रयास व सरकारी नीति

05 – शिक्षा व्यवस्था और मिशन स्कूल          

हण्टर आयोग की सिफारिशें व सुझाव / Recommendations and suggestions of Hunter Commission –     आयोग ने भारतीय शिक्षा पर व्यापक दृष्टिकोण से दृष्टिपात किया और विहंगम अवलोकन के उपरान्त अपनी सिफारशों और सुझावों को लेखबद्ध किया लेकिन इसने आँशिक परिवर्तन के साथ 1854 के घोषणा पत्र को ही पुनः  कोई नए तथ्यों का प्रस्तुतीकरण नहीं हुआ। मुख्यतः निम्न अंगों पर ध्यान केंद्रित रहा –

प्राथमिक शिक्षा [Primary Education] – – आयोग ने प्राथमिक शिक्षा नीति, संगठन, आर्थिक व्यवस्था व अध्यापक प्रशिक्षण आदि के सम्बन्ध में निम्न सुझाव व सिफारिशों दीं –

प्राथमिक शिक्षा नीति –

1 – उच्च शिक्षा प्राप्ति का साधन बनाने की जगह यह शिक्षा जन साधारण की शिक्षा प्रसार करे।

2 – व्यावहारिक जीवन में लाभप्रद जीवनोपयोगी विषय शामिल किये जाएँ।

3 – देशी भाषाओं के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।

4 – इसे पूर्ण सरकारी संरक्षण प्रदान किया जाए।

5 – लिखने पढ़ने का सामान्य ज्ञान रखने वालों को ही निम्न पदों पर नियुक्ति की जाए।

6 – पिछड़ी जाति व आदिवासियों के शैक्षिक उन्नयन के अनवरत प्रयास की आवश्यकता है।

7 – इस भारतीय शिक्षा आयोग ने स्पष्टतः कहा –

“जन–साधारण की प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था उसका प्रसार और सुधार भी शिक्षा का वह अंग घोषित किया जाए जिसकी और राज्य के सतत प्रयास पहले से भी अधिकाधिक मात्रा में अब केन्द्रीभूत किये जाएं।”

“It is desirable, in the present circumstances of the country, to declare the elementary education of the masses, its provision, extension and improvement  to be the part of the educational system to which the strenuous efforts of the state should now be directed in a still large measure than here to fore.”  –Indian Education Commission Report.

A – संगठन – शिक्षा सम्बन्धी यथा – प्रबन्ध,विकास व्यय, निरीक्षण आदि का दायित्व नगर पालिकाओं व जिला परिषदों को सौंप कर सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया।

B – पाठ्यक्रम – भौतिक विज्ञान,क्षेत्रमिति,चिकित्सा,बहीखाता व कृषि को शामिल करने के सुझाव के साथ आयोग ने सभी प्रांतों को अपनी परम्परा के अनुसार पाठ्य निर्धारण की छूट प्रदान की।

C – आर्थिक व्यवस्था – इस भारतीय शिक्षा आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के सम्यक विकास हेतु व्यावहारिक और उपयोगी सुझाव प्रस्तुत किये आयोग का मानना था कि –

“The Primary Education should be declared to be that part of the whole system of public instruction which possesses an almost exclusive claim on local funds set apart for education and a large claim on provincial revenues.”

हिन्दी अनुवाद –

“प्राथमिक शिक्षा को सार्वजनिक शिक्षा की सम्पूर्ण प्रणाली का वह भाग घोषित किया जाना चाहिए, जिसका शिक्षा के लिए निर्धारित स्थानीय निधियों पर लगभग अनन्य अधिकार है, तथा प्रान्तीय राजस्व पर भी बड़ा अधिकार है।” 

माध्यमिक शिक्षा [Secondary Education] –

माध्यमिक शिक्षा को विस्तार देने के बारे में भी आयोग ने विचार किया और कहा कि –

“उन सभी जिलों में जहाँ जनहित की दृष्टि से आवश्यक हो, तथा जहाँ के निवासी हाई स्कूल खोलने के लायक धनी न हों, ऐसे जिलों में कम से कम एक मॉडल हाई स्कूल सहायता अनुदान प्रणाली के अन्तर्गत स्थापित किया जाना चाहिए।”

“In all districts where it is necessary in the public interest, and where the inhabitants are not wealthy enough to open a high school, at least one model high school should be established under the grant-in-aid system.”

इसके अतिरिक्त आयोग ने हाई स्कूल के दो भाग करने को कहा एक भाग बच्चों को विश्वविद्यालय प्रवेश में मदद दे और दूसरा अधिक व्यावहारिक, व्यापारिक व असाहित्यिक क्षेत्रों हेतु तैयार करे।

उच्च शिक्षा [Higher Education] –                         

 उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में हंटर आयोग की प्रमुख सिफारिश यह थी कि –

“प्रत्येक कॉलेज को दिए वाले अनुदान की दर का निर्धारण उसके शिक्षकों की संख्या, रख रखाव पर होने वाला व्यय, संस्था की कार्य कुशलता तथा स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।”

आंग्ल अनुवाद –

“The rate of grant-in-aid given to each college should be determined keeping in mind the number of its teachers, expenditure on maintenance, efficiency of the institution and local needs.”

देशी शिक्षा को प्रोत्साहन/Promotion of native education – प्राचीन भारतीय शिक्षा के बारे में आयोग ने कहा –

 “अति दीर्घकाल से कठिनाइयों का सामना करने पर भी इन विद्यालयों का अस्तित्व इस बात का ज्वलन्त प्रमाण था कि वे सजीव तथा लोकप्रिय थे। कमीशन के मतानुसार सरकार से मान्यता तथा आर्थिक सहायता प्राप्त करके देशी पाठ शालाएं राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली में महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर सकती थीं।”

“They have survived a severe competition and have thus proved that they posses both vitality and popularity .The indigenous schools, if recognised and assisted, may be expected to improve their method and fill a useful position in the State System of National Education.”

 – Indian Education Report.

अध्यापक प्रशिक्षण/ Teacher Education – प्रशिक्षण विद्यालय 1882 तक भारत में केवल दो स्थानों पर थे एक लाहौर में और दूसरा मद्रास में। इस सम्बन्ध में आयोग ने ये सिफारिशें कीं –

[1] – निम्न योग्यता वाले छात्राध्यापकों से स्नातकों का प्रशिक्षण काल कम होना चाहिए।

[2] – शिक्षा सिद्धान्त और प्रायोगिक शिक्षा को प्रशिक्षण विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

महिला शिक्षा [Women Education] –

 महिला शिक्षा की दयनीय स्थिति को देखकर इसे हर संभव आगे बढ़ाने पर जोर दिया और सुझाव दिया कि बालिका विद्यालयों तथा साथ साथ बालकों के विद्यालयों की सहायता हेतु प्रत्येक प्रकार से समानअनुपात में धन लिया जाना चाहिए। आयोग की रिपोर्ट में लिखा गया कि –

“यह बात स्पष्ट है कि स्त्री शिक्षा अभी तक अत्यन्त पिछड़ी हुई दशा में है। अतः इस बात की आवश्यकता है कि प्रत्येक सम्भव विधि से इसका पोषण किया जाए।”

“It will have been seen that female education is still in an extremely backward condition, and that is needs to be fostered in every legitimate way.”

                                                                                               – Indian Education Commission Report.

धार्मिक शिक्षा [Religious Education] –

धार्मिक शिक्षा के बारे में आयोग का मानना था कि राज्य की घोषित नीति के अनुरूप राज्य के द्वारा सञ्चालित  शिक्षा संस्थानों  में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।

सरकार व मिशनरियों की भूमिका [ Role of Government and Missonaries] – शैक्षिक प्रगति में सरकार तथा मिशनरी संस्थाओं की भूमका पर विचार कर आयोग ने कहा की कि मिशनरी संस्थाओं को राज्य के सामान्य निरीक्षण के अन्तर्गत अपने स्वतन्त्र पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति होनी चाहिए। जहां तक सम्भव हो तथा आवश्यकता हो, ऐसी संस्थाओं को व्यक्तिगत प्रयासों के लिए आवश्यक सभी प्रकार  प्रोत्साहन तथा सहायता दी जानी चाहिए।

शिक्षा विभाग सम्बन्धी सुझाव – यह सर्व विदित है कि 1854 के घोषणा पत्र से जो प्रान्तीय शिक्षा विभाग बने वे कतिपय दोषों से युक्त थे उनमें सुधार हेतु हण्टर कमीशन ने सुझाव दिए –

01 -समस्त विद्यालयों का निरीक्षण सुनिश्चित करने हेतु प्रत्येक प्रान्त के निरीक्षकों की संख्या में वृद्धि की जाए। 

02 – समीपवर्ती विद्यालयों के छात्रों को एक विद्यालय में न बुलाकर प्रत्येक विद्यालय में निरीक्षकों द्वारा परीक्षा लेना सुनिश्चित किया जाए।

03 – शिक्षा कार्य से जुड़े सहायक निरीक्षकों के वेतन में वृद्धि की जाए।

04 – प्रत्येक उस विद्यालय का निरीक्षण अनिवार्य किया जाए जिसे सहायता अनुदान मिलता हो।

05 – जिला निरीक्षक के पदों पर यूरोपियनों की अपेक्षा भारत के नागरिकों को अधिक नियुक्त किया जाए।

हरिजन व पिछड़ी जातियों की शिक्षा – आयोग ने अपने अध्ययन में पाया कि ये जातियाँ दीर्घकाल से सामाजिक संरचना में निम्न स्तर पर रही हैं इन्हें यकायक सामान्य स्तर पर लाना सम्भव नहीं है अतः धीरे धीरे निम्न प्रयास होने चाहिए।

01 – हरिजन व पिछड़ी जातियों हेतु समस्त विद्यालयों के द्वार खोल दिए जाएँ जी स्थानीय संस्थाओं, नगरपालिकाओं या सरकार द्वारा चलाये जा रहे हों।

02 – जिन कतिपय स्थानों पर इनके प्रवेश पर अन्य जातियों द्वारा विरोध प्रकट किया जाए वहां इनके लिए विशेष विद्यालय स्थापित किये जाएँ।

03 – जनता की इच्छा के विरुद्ध शिक्षक तथा शिक्षाधिकारी हरिजनों व पिछड़ी जातियों के छात्रों को विद्यालय में प्रवेश न दें।

04 – बुद्धिमानी व चातुर्य कौशल के माध्यम से जातीय भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया जाए।

पहाड़ी जातियों व आदिवासियों की शिक्षा – अपने अध्ययन के आधार पर आयोग यह समझ गया कि अब तक की व्यवस्थाएं पहाड़ी जातियों व आदिवासियों की शिक्षा में असफल रही हैं अतः आयोग ने अधोलिखित सुझाव दिए –

01 – यह शिक्षा व्यक्तिगत प्रयासों पर नहीं छोड़ी जा सकती अतः यह आवश्यक है की सरकार उनके लिए विशेष प्रकार के विद्यालयों का निर्माण करे।

02 – इन जातियों की शिक्षा व्यवस्था कर रही गैर सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाए।

03 – इन जातियों के छात्रों की शिक्क्षा व्यवस्था निः शुल्क राखी जाए।

04 – आदिवासी क्षेत्रों के समीप ही उन्हें पढ़ने हेतु आकर्षित करने का प्रयास हो

05 – इन जातियों के शिक्षार्थियों को इसी जाति के शिक्षकों द्वारा पढ़ाने की व्यवस्था की जाए।

06 – यदि कोई आदिवासी भाषा माध्यम के रूप में प्रयोग की जा सकती हो तो उस भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।

07 – इन्हें ऐसी शिक्षा प्रदान की जाए जिससे ये पास की सभ्य जातियों से सम्बन्ध कायम करने के लायक हो जाएँ।

08 – इन जातियों के अध्यापकों को नार्मल स्कूलों में सामान्य शिक्षा के साथ कम समय में तैयार करने का प्रयास किया जाए।

सहायता अनुदान प्रणाली हेतु सिफारिशें – इस क्षेत्र में आयोग ने विशद विश्लेषण के आधार पर जो सुझाव दिए उनमें कुछ विशेष को यहां देने का प्रयास है –

01 – यदि व्यक्तिगत संस्थाओं को शिक्षा की सामान्य प्रणाली का आवश्यक अंग स्वीकार नहीं किया गया तो व्यक्तिगत प्रबंधकों की संस्थाए सफल नहीं हो सकतीं। गैर सरकारी संस्थाओं के प्रबंधकों के परामर्श पर उनके छात्रों को प्रमाण पत्रों, छात्र वृत्तियों व अन्य जन विभूषणों की प्रतियोगिता में समान आधार पर प्रवेश सुनिश्चित होना चाहिये। 

02 – गैर सरकारी विद्यालय के प्रबन्धकों, अध्यापकों, विभाग के अधिकारियों को सभी विभागीय परीक्षाओं के संचालन में यथा सम्भव जोड़ा जाना चाहिए। 

03 – किसी गैर सरकारी विद्यालय को केवल इस आधार पर अनुदान से वंचित न किया जाए की वह सरकारी विद्यालय के समीप है।

04 – विद्यालय की स्थिति, योगदान, कार्य क्षमता, प्रान्तीय आवश्यकता, स्थानीय योगदान के आधार पर अनुदान राशि देने हेतु नियमों में संशोधन किया जाए। इमारत,उपकरण,फर्नीचर, आदि पर मिलने वाले अनुदान की राशि,अवधि व विविध दशाओं का स्पष्ट वर्णन किया जाना चाहिए।    

05 – सहायता अनुदान के प्रार्थना पत्र का कार्यालयी उत्तर दिया जाना चाहिए व अस्वीकृत होने की दशा में स्पष्ट कारण बताये जाने चाहिए।

06 – बिना विलम्ब के अनुदान नियत समय पर दिया जाना चाहिए।

07 – अनुदान स्थानीयता व संस्था के वर्ग पर निर्भर हो, पिछड़े जिले, कन्या विद्यालय, निम्न जाति विद्यालय, पिछड़े समुदाय के विद्यालय को अधिक सहायता मिलनी चाहिए।

08 – जो विषय अधिक महत्त्व के समझे जाएँ उन्हें तथा सहायता प्राप्त संस्था के विस्तार हेतु हर बजट में अधिक राशि स्वीकृत की जाए।

09 – समान पाठ्य पुस्तक,समान पाठ्यक्रम व व्यावहारिकता का सम्यक सम्मिश्रण किया जाए। 

10 –  आवश्यक योग्यता से युक्त भारतीयों को विद्यालय निरीक्षक बनाना चाहिए।     

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