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विविध

चित्रगुप्त पूजा / CHITR GUPT POOJA

October 27, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

(वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समय से कदम ताल करता धार्मिक अनुष्ठान)

चित्रगुप्त पूजा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह पर्व मुख्य रूप से कायस्थ समाज द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2025 में चित्रगुप्त पूजा 23 अक्टूबर 2025 (गुरुवार) को मनाई जाएगी। यह तिथि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वित्तीया तिथि के दिन आती है। इस वर्ष दोपहर 1 बजकर 13 मिनट से दोपहर 3 बजकर 28 मिनट तक है सामान्यतः समय के स्थान पर दिन में सूर्योदय के बाद सभी समय शुभ माना  जाता है। इस दिन लोग भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा कर अपने कर्मों के प्रति सजग रहने और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।

चित्रगुप्त पूजा क्यों ?

पौराणिक धार्मिक मान्यता के अनुसार, चित्रगुप्त को यमराज के सचिव के रूप में जाना जाता है। वे प्रत्येक मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मृत्यु के बाद इसी आधार पर व्यक्ति को स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है। माना जाता है कि चित्रगुप्त जी कलम और दवात के प्रतीक हैं, इसलिए इस दिन लेखनी की पूजा भी की जाती है। छात्र, व्यापारी और नौकरीपेशा लोग नए खाते-बही की शुरुआत करते हैं। आजकल विविध विद्वत समाज इस दिन अपने कम्प्यूटर, लैपटॉप, कार्य में प्रयुक्त अन्य संसाधन यथा मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान, डायरी, समय सारिणी और इस वर्ष निर्धारित ध्येय को लिखकर पूर्ण करने हेतु चित्रगुप्तजी के समक्ष रखकर पूर्ण श्रद्धा से पूर्ण करने की शपथ लेते हैं और अपने को कार्य सिद्धि के अनुरूप बनाने का प्रयास करते हैं। आज आत्मबल को अध्यात्म का विशिष्ट सम्बल प्राप्त होता है। आगामी क्रियान्वयन की सम्पूर्ण रूप रेखा के साक्षी भगवान् चित्र गुप्त व साधक स्वयं होता है। इसे अद्यतन पूजन में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। इसी कारण समय से कदमताल करते हुए अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति सुगम हो जाती है आडम्बर से मुक्त यह संकल्प को दृढ करने का बविषिष्ट अवसर है।  

पूजा का महत्व और विधि

इस दिन परिवारजन मिलकर घर में चित्रगुप्त जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करते हैं। कलम, दवात, कागज तथा लेखा-बही को साफ करके पूजा की जाती है। फिर प्रसाद चढ़ाया जाता है और सब लोग धर्म परायणता और ईमानदारी से कर्म करने की प्रतिज्ञा लेते हैं। प्रसाद का सेवन करते हुए भी अपने संकल्प को अधिक दृढ़ बनाने हेतु तत्परता व यथार्थ आधारित निर्णय को मनो मष्तिष्क में स्थापित करते हैं। ज्ञान के महत्त्व को सभी के द्वारा पूर्ण मनोयोग से स्वीकारा जाता है। यथार्थ आधारित कार्य योजना का निर्माण, अवलम्बन व व्यावहारिक उपयोग आज से ही शुरू किया जाता है जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रगति हेतु अपने मंतव्यों और गंतव्यों को क्रिस्टल क्लियर मानस में स्थापित किया जाता है।

अधो वर्णित क्रियाओं व संकल्पों की वजह से इस पूजन का महत्त्व आधुनिक काल में सर्व स्वीकार्य बन जाता है –

01- कलम, दवात, कागज़ जैसे परम्परागत साधन के साथ प्रगति सहयोगी लैपटॉप अद्यतन लेखन साधन, इलेक्ट्रॉनिक संसाधन बोर्ड आदि को श्रद्धा के दायरे में लाना।   

02 – अपने साथ, अपने परिवार व समाज को इस आध्यात्मिक धार्मिक अनुष्ठान में शामिल करना। 

03 – पूजन में सभी वैचारिक साम्य वाले लोगों का यथा योग्य आगमन स्वीकार्य।

04 – निकृष्टतम विचार व लोगों से दूरी व ध्येय के प्रति पूर्ण समर्पण भाव।

05 – विगत अनुभवों के आधार पर भविष्य में प्रगति के विविध सोपानों पर विश्लेषणात्मक अध्ययन व निष्कर्ष।

06 – यथार्थ अवलम्बित कार्य योजना

07 – अध्ययन, अधिगम व नवीन कौशल के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण व स्वयं के साथ समायोजन। 

08 – अध्यात्म व धार्मिक इस अनूठे आयोजन के समय विगत हारों को मानते हुए प्रगति का दृढ सुनिष्चयीकरण।

09 – सकारात्मकता को स्व व्यक्तित्व का अनिवार्य आवश्यक अंग बनाना।

10 – व्यसनों से दूरी व लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण। 

चित्रगुप्त पूजा न केवल आध्यात्मिक, धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सत्य, न्याय और जिम्मेदारी का प्रतीक भी है। इस दिन लोग अपने पिछले कर्मों पर विचार करते हैं और बेहतर भविष्य के लिए संकल्प लेते हैं।

ऊँ श्री चित्र गुप्ताय नमः।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।

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विविध

रक्षा बन्धन

August 8, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

रक्षा बन्धन

सन् 2025 में वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार 09 अगस्त को रक्षा बन्धन पर्व मनाया जाएगा। श्रावण माह की पूर्णिमा 08 अगस्त को दोपहर 12 बजे से शुरू होगी और 09 अगस्त को अपरान्ह एक बजकर चौबीस मिनट पर समाप्त होगी।

रक्षा बन्धन पर्व का प्रारम्भ –

प्राचीन लोकप्रिय कथाओं में वर्णन मिलता है कि द्रोपदी ने भगवान् कृष्ण की घायल हो चुकी अँगुली पर अपनी साड़ी की एक चीयर बाँध दी। मातृ शक्ति द्रौपदी के इस भाव व्यवहार से प्रभावित होकर सोलह कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण ने उनकी रक्षा का वचन दिया और निर्वहन किया। इसी समय से इस परम्परा का प्रारम्भ हुआ।

दुर्लभ महा संयोग –

इस बार रक्षा बन्धन पर भद्रा का साया नहीं है। और 95 वर्ष के उपरान्त सौभाग्य योग के साथ अन्य कई मङ्गलमई योग बन रहे हैं। इसलिए इसे विशेष शुभ मन जा रहा है। इस बार रक्षा बन्धन को उत्तम मानने का एक कारण यह भी है कि इस दिन श्रवण नक्षत्र होगा चन्द्रमा मकर राशि में होंगे जिसके स्वामी भी शनि हैं अतः त्रियोग (श्रवण + शनिवार + शनि ) अत्यन्त लाभकारी व शुभ बन पड़ेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग व द्वि पुष्कर योग का भी निर्माण हो रहा है। धनिष्ठा नक्षत्र के साथ सौभाग्य योग व शोभन योग का शुभ संयोग भी देखने को मिलेगा। निश्चित समयावधि में राखी बाँधने व लक्ष्मी नारायण की उपासना करने से साधक को विशिष्ट अक्षय फल की प्राप्ति होगी तथा घर में खुशहाली, समृद्धि और सुख की वृद्धि होगी।

राखी बाँधने के परम्परागत नियम –

हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा को यह भाई बहन का पावस पर्व रक्षा बंधन मनाया जाता है तिथि का प्रारम्भ होने पर जिस दिन सूर्योदय होता है उस दिन उड़ाया तिथि के अनुसार यह पर्व भी मनायेंगे। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान ध्यान व भगवान् को राखी अर्पित करने के बाद इसे परम्परागत रूप से मनाने के लिए कुछ नियमों का परिपालन करना शुभ स्वीकार किया जाता है।

01 – बहिन भाई की दाहिनी कलाई पर पावस कच्चे धागे को बाँधती है और सामान्यतः इसमें तीन गाँठें लगाना शुभ माना जाता है प्रथम गाँठ लगाते समय भाई की लम्बी उम्र ,द्वित्तीय गाँठ लगाते समय स्वयं अपनी लम्बी उम्र व तृतीय गाँठ लगाते समय रिश्तों में दीर्घकालिक मिठास की कामना की जाती है।

02 – तिलक लगाने  के सम्बन्ध में नियम यह है कि अनामिका अँगुली से ललाट पर शुभ तिलक लगाने के उपरान्त उसे अंगूठे से ऊँचा किया जाता है तत्पश्चात अक्षत लगाकर भाई की दीर्घायु की कामना बहिन करती है जीवन में मिठास घुली रहे यह मानकर मिष्ठान्न से भाई का मुँह मीठा कराती है इसके बाद भाई अपनी क्षमतानुसार बहिन को उपहार प्रदान करते हैं। 

03 – दिशा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि रक्षा सूत्र बांधते समय बहिन का मुख पश्चिम की और होना शुभ स्वीकार किया जाता है जबकि भाई का मुख यदि उत्तरपूर्व की और रहे तो यह सम्यक व शुभ स्वीकार किया जाता है। बहुत से घरों में दिशा सम्बन्धी नियमों को दृढ़ता से परिपालन सुनिश्चित किया जाता है।

04 – देशी घी के दीपक से भ्राता की आरती का भी विधान है अन्त में छोटी बहने बड़े भाई से आशीष की कामना करती हैं और छोटे भाइयों को बड़ी बहनों से आशीष लेना चाहिए।

(कुछ स्थानों पर क्रिया विधि व विश्वासों में अंतर भी होता है )

ब्राह्मण देवता द्वारा अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते समय इस मन्त्र का उच्चारण सामान्यतः किया जाता है –

ऊँ  “येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल।।”

 इसका आशय है कि जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवों के राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, हे रक्षे! तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।

आप सभी को रक्षा बंधन का पावन पर्व शुभ हो जीवन में मङ्गल ही मङ्गल हो। यही पावस शुभेक्षा है।

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विविध

तुलसी लौट आएंगी।

August 3, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

Tulsi will return.

भारत अपने आध्यात्मिक धरातल पर खड़ा है यहाँ जिससे भी हमें कुछ प्राप्त होता है उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना परमावश्यक मानते हैं। इसी क्रम में भारतीय संस्कृति तुलसी को पावन मानती है और इसका वन्दन करती है यह जहाँ हम भारतीयों द्वारा पूजित होती है वहीं भारतीय इसके आध्यात्मिक महत्त्व व औषधीय गुणों से भी परिचित हैं। इसे दन्त रोग, खाँसी, जुकाम, सर्दी,श्वाँस सम्बन्धी रोग व आन्तरिक ऊर्जा वृद्धि हेतु उपयोगी माना जाता है।

तुलसी की विविध प्रजातियाँ / Various varieties of basil – हमारे यहाँ मुख्य रूप से रामा तुलसी और श्यामा तुलसी को लोग अच्छी तरह जानते हैं, रामा तुलसी को ही श्री तुलसी भी कहा जाता है इसकी पत्तियां हरी होती हैं जबकि श्यामा तुलसी की पत्तियाँ श्याम वर्ण की जिसमें बैंगनी रंग की आभा दीखती है। वास्तव में ये दोनों ही ऑसीमम सैक्टम के अन्तर्गत आती हैं इसे भारत में पावस स्वीकारते हैं। कुछ सामान्य प्रजातियों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

01 – ऑसीमम ग्रेटिसिकम ( वन तुलसी या अरण्य तुलसी )

02 – ऑसीमम अमेरिकम ( काली तुलसी )

03 – ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम ( कपूर तुलसी)

04 – ऑसीमम वैसिलिकम (मरुआ तुलसी)

05 – ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम

06 – ऑसीमम विरिडी

07 – ऑसीमम सैक्टम  

विकीपीडिया के अनुसार –

ऑसीमम सैक्टम  एक द्विबीजपत्रीय तथा शाकीय औषधीय पौधा है। तुलसी का पौधा हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग़ में लगाते हैं।

तुलसी का महत्त्व या लाभ / Importance or benefits of Tulsi –

कुछ वनस्पतियाँ ऐसी हैं जिनका वर्णन प्रकृति की अनूठी क्षमता व ममता को व्ययाख्यायित करता मालूम होता है। ऐसी ही दिव्य कीर्ति से युक्त है तुलसी।

इससे मानव को मिलने वाले कुछ लाभों को यहाँ एक ख़ास क्रम में वर्णित करने का प्रयास कर रहा हूँ  –

01 – रोग प्रति रोधक क्षमता वृद्धि / Increases immunity

02 – चोट लगने पर / In case of injury

03 – जलन से निजात हेतु / For relief from irritation

04 – तनाव में कमी हेतु / For reduction in stress

05 – सर्दी जुकाम में / In case of cold and cough

06 – बुखार हेतु / For fever

07 – ध्यान संकेन्द्रण में /For meditation concentration

08 – चरणामृत या प्रसाद हेतु / For charanamrit or prasad

09 – ऊर्जा हेतु हर्बल चाय हेतु / For herbal tea for energy

10 – मोबाइल विकिरण रोकथाम / Mobile radiation prevention

11 – एलोपैथी, यूनानी, होम्योपैथी में विविध औषधि निर्माण /   

         Manufacture of various medicines in Allopathy, Unani and Homeopathy –

12 – मृत्यु के समय / At the time of death

            असल में तुलसी में खनिज और विटामिन की प्रचुर मात्रा है इसमें कैल्शियम, जिंक, विटामिन C , क्लोरोफिल और आयरन मिलता है इसके अतिरिक्त इसमें सिट्रिक एसिड, टारटरिक व मैलिक एसिड भी मिलता है। जो विविध रोगों के निवारण हेतु उपयोगी है।

स्थापन स्थल / Installation site –

सामान्यतः यह घर के आँगन में विराजित होता था लेकिन आजकल घरों का स्वरुप बदलने से इसे बालकनी या उसकी खिड़की पर भी लगाया जा सकता है घर के दरवाजे पर भी इसे लगाते हैं। इसे पर्याप्त धुप हवा मिले इसलिए इसे पूर्वाभिमुख करना अच्छा रहता है। इसे नियमित जल व स्वच्छता की आवश्यकता होती है इसे दक्षिण दिशा, अँधेरे स्थल या बेसमेन्ट में नहीं लगाना चाहिए। जहाँ इसे पूर्व में शुभ मानते हैं वहीं ईशान कोण भी स्थापन हेतु शुभ है उत्तर दिशा इस हेतु धन व समृद्धि की दिशा के रूप में स्वीकारी जाती है। इसे एक या विषम संख्यात्मक मान में लगाएं।

उपहार स्वरुप प्रदत्तीकरण / presentation as a gift –

इसको दूसरों को लगाने हेतु देना भी शुभ लक्षण है। रविवार और एकादशी को इसे देना उचित नहीं माना जाता। घर की तुलसी नहीं देनी चाहिए नया पौधा सम्यक व्यक्ति को देना उचित माना जाता है। आपके द्वारा किसी को तुलसी देना उसके प्रति आपके सम्मान व स्नेह का सूचक है। यह ऊर्जा का वाहक है और लेने वाले के यहॉँ समृद्धि लाता है।

सीमित समय में अति विशिष्ट तुलसी चर्चा दुष्कर है फिर भी यह कहना समीचीन होगा कि भगवान् विष्णु को प्रिय यह पौधा माँ लक्ष्मी का ही एक स्वरुप है जिस घर में यह हरा भरा रहता है यह उनके सौभाग्य व समृद्धि का सूचक है। माँ लक्ष्मी की कृपा आप पर बनी रहे अतः सही स्थल पर सम्यक रूप से अपने यहां इसका स्थापन कर लाभ उठायें। यदि आप सम्यक रूप से गमले में इसे लगाएंगे व इनका यथेष्ट ध्यान रखेंगे तो तुलसी लौट आएंगी।

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विविध

पनीर/Cheese

July 12, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पनीर का उद्भव –

पनीर आज भारत में बहुत लोकप्रिय है। ‘पेनिर’ शब्द फारसी है इसका तुर्की और फ़ारसी में इसका आशय पनीर है। पनीर को संस्कृत में क्षीरज या दधिज कहते हैं। इसे प्रनीरम् कहा जाता है कुछ ग्रन्थों में इसे तक्र पिण्डक भी कहा गया है। पनीर को अंग्रेजी में कॉटेज चीज़ कहा जाता है ,इसे स्पेनिश में Queso कहते हैं। यहाँ हम सहज सम्प्रेषण हेतु पनीर शब्द ही प्रयोग करेंगे।

भारत में प्रमुखतः बिकने वाला पनीर / Mainly sold cheese in India  –

भारत पनीर का बहुत बड़ा बाजार है और यहाँ पनीर की माँग में लगातार इजाफा हो रहा है। मुख्य रूप से यहाँ बिकने वाले पनीर को तीन श्रेणी में रख सकते हैं।

01 – असली पनीर / Real Paneer –

02 – एनालॉग पनीर /Analog Paneer –

03 – नकली पनीर / Fake Paneer –

पनीर उत्पादन व खपत / Cheese production and consumption –

भारत में हर साल 5 लाख टन पनीर की खपत का अनुमान है। यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है और भारत में उत्पन्न दूध की कुल मात्रा में 7 % का प्रयोग पनीर बनाने में किया जाता है 5 किलोग्राम दूध से लगभग एक किलोग्राम पनीर बनता है। भारत में 5 शीर्ष दुग्ध उत्पादक राज्य मिलकर 54 % दुग्ध उत्पादित करते हैं वे  हैं – उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अपने भारत के लोग पनीर को प्रोटीन का प्रमुख स्रोत मानते हैं और इस पर 65 हजार करोड़ प्रति वर्ष वर्तमान में खर्च कर रहे हैं और सन 2033 तक यह खर्चा 2 लाख करोड़ तक पहुँच सकता है। भारत में खपत लगभग 5 लाख टन पनीर प्रतिवर्ष  है जो कि 250 करोड़ लीटर दूध से बन सकेगा। एक आँकड़े के अनुसार 7 % पनीर दूध से बनता है बाकी का अन्दाजा आप लगा ही सकते हैं।

भारतीय पनीर से सम्बन्धित कुछ चौंकाने वाले तथ्य / Some surprising facts related to Indian Paneer –

आप अगर नित्य प्रति का समाचार पत्र ध्यान से देखें तो आये दिन नकली पनीर की खबर से रूबरू होंगे। कुछ समय पूर्व देश की राजधानी से निकट नॉएडा में पुलिस ने 1400 किलो नकली पनीर पकड़ा जो काफी चर्चित रहा। यह उत्तर प्रदेश की अलीगढ स्थित फैक्ट्री में खतरनाक केमिकल की मदद से बनाया गया जिसे पुलिस ने सील भी कर दिया। इससे पहले भी नॉएडा और ग्रेटर नॉएडा के फ़ूड डिपार्टमेण्ट ने 122 पनीर के सैम्पल की जाँच की इसमें 83 % में तो मिलावट पाई गई और 40 % में ऐसे तत्व थे जिन्हें खाने से गंभीर बीमारी का खतरा था। इसी तरह कर्नाटक में पनीर के 163 सैम्पल की जांच करने पर  चार ही पास हुए बाकी फेल। लखनऊ में भी पनीर के 50 % नमूने फेल हुए। कुल मिलाकर ये स्वीकार करने के बहुत से कारण हैं कि हमें मिलाने वाला पनीर घोर शंका से घिरा है।

विगत वर्षों का पनीर उत्पादन और खपत वृद्धि के कारण / Cheese production over the past years and reasons for consumption growth –

विविध आँकड़े ये दर्शाते हैं कि पनीर उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2014 से 2019 तक उत्पादन वृद्धि  प्रति वर्ष 2.2 % थी। 2014 -15 दुग्ध उत्पादन 146. 3 मिलियन टन था जो 5. 62 % की वृद्धि दीखता हुआ 2023-24 में 239 .30 मिलियन टन पर पहुँच गया। FOOD SPECTRUM के अनुसार 2024 में भारतीय पनीर बाजार का मूल्य 107.54 बिलियन रुपये था जो 2033 तक 593 .47 बिलियन रुपए तक पहुँचाने की उम्मीद है। यहाँ पनीर उत्पादन वृद्धि के जो कारण हैं उन्हें इस प्रकार दिया जा सकता है।

01 – डेयरी उद्योग

02 – पनीर उत्पादन

03 – आय वृद्धि

04 – उपभोक्ता की माँग

05 – सुविधाजनक

06 – प्रोटीन सम्बन्धी विश्वास

07 – पैकेजिंग

08 – बनाने में सरल, सुविधाजनक 

09 – सहज उपलब्धता

वर्तमान परिदृश्य पनीर की माँग में लगातार वृद्धि का है आवश्यकता इसके शुद्धतम स्वरुप के उत्पादन व विपणन की है। आशा है भविष्य में वे तरीके निकाले जाएंगे जिससे पनीर किसी की सेहत को नुकसान न पहुँचा सके। आज की स्थिति को देखकर जनमानस इसे सर्वाधिक मिलावटी खाद्य पदार्थ का दर्जा दे तो कोइ अतिश्योक्ति न होगी। आगामी राष्ट्रीय पनीर दिवस 12 जून तक क्या परिवर्तन होगा यह भविष्य के गर्त में है।

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विविध•समाज और संस्कृति

चातुर्मास के सृष्टि सञ्चालक -महाकाल

July 6, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

06 जुलाई 2025 अर्थात अषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी (देव शयनी एकादशी) से सृष्टि का सञ्चालन महाकाल के हाथ में आ जाता है और सम्पूर्ण चातुर्मास भगवान् भोले, हमारे महादेव सृष्टि सञ्चालक की भूमिका का निर्वहन करते हैं।

चातुर्मास – जिन चार महीनों की अवधि चातुर्मास कहलाती है उसका प्रारम्भ देव शयनी एकादशी अर्थात अषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष एकादशी से होता है और कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है ये चार माह ही चातुर्मास कहलाते हैं। इसमें सोलह्कला सम्पूर्ण भगवान् श्री विष्णु विश्राम की अवस्था में रहते हैं।

देव शयनी एकादशी –

सनातन हिन्दू धर्म की दिव्यता विविध अनुष्ठानों त्यौहारों दिवसों के माध्यम से भी परिलक्षित होती है। एकादशी का हिन्दू धर्म में विशिष्ट स्थान है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी होती हैं इनकी संख्या 26 तब होती है जब मलमास या अधिक मास आता है अषाढ़ मास  के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। यह भगवान विष्णु की विश्राम अवधि विविध शास्त्रों में वर्णित है।

            विविध विचारक इसे योग निद्रा अवधि या ऊर्जात्मक विश्राम भी कहते हैं ,जब भगवान विष्णु जगत के पालन कर्त्ता योग निद्रा में होते हैं तब सृष्टि सञ्चालन महाकाल भगवान् शिव में केन्द्रित हो जाता है। पद्म नाभा या देवशयनी एकादशी आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

चार माह का संयम और माहात्मय –

इन चार माह में शुभ कार्य सम्पादित करने से बचा जा सकता है विवाह,गृह,प्रवेश, मुण्डन, यज्ञोपवीत संस्कार आदि इस समय वर्जित रहते हैं। इस समय ध्यान, साधन, व्रत, स्वानुशासन व आत्म संयम पर दिया जाता है।

देव शयनी एकादशी के बारे में कहा गया है की इस दिन भगवान् विष्णु का पूजन करने व व्रत रखने से त्रिदेवों की आराधना का पूण्य फल प्राप्त होता है। चातुर्मास में चूँकि सृष्टि सञ्चालन भगवान् भोले बाबा के हाथ होता है अतः शिव उपासना करने पर विष्णु उपासना के भी सभी फल प्राप्त होते हैं।

साधना समय, व्रत व भोजन व्यवस्था –

देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ होने वाला यह कालखण्ड जिसे विष्णु शयनी एकादशी भी कहा जाता है पद्म पुराण में इसकी सम्यक विवेचना मिलती है इसमें व्रत रखकर प्रत्येक दिन सूर्योदय के समय स्नान ध्यान आदि से निवृत्त होकर श्री हरि विष्णु भगवान् की आराधना करते हैं। अपने अपने क्षेत्रों और विश्वास के अनुसार भगवान् भोले को स्मरण किया जाता है देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास में नियम संयम से रहने का शुभ संकल्प लिया जाता है। शिव उपासना के पीछे तर्क यहभी है कि यह सम्पूर्ण काल खण्ड भगवान् शिव को अत्यन्त मनोहर लगता है इस बीच काँवड़िये भगवान् शिव की आराधना उपासना कर विष्णु उपासना का फल भी अर्जित करते हैं।

इन चार महीनों में दिन में एक बार भोजन करने का विधान है वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्तम स्वास्थय बनाये रखने के लिए सावन के महीने में साग, भाद्र पद माह में दधि या दही का निषेध है। इसी तरह आश्विन मास में दूध तथा कार्तिक मॉस में दाल का सेवन उचित नहीं माना जाता है। प्राचीन ऋषि मनीषियों विज्ञान वेत्ताओं ने उत्तम स्वास्थय को दृष्टिगत रखते हुए यह विधान दिया है। समस्त चराचर की निर्विघ्न विकास यात्रा में चातुर्मास का विशेष स्थान है। इन दिनों तामसिक भोजन ग्रहण न कर और संयमित जीवन यापन के माध्यम से स्वयं को स्वस्थ रखने का प्रयास हो।

भगवान् भोले नाथ सबको आलम्ब प्रदान कर प्रगति उन्मुख करें और भारतीय संचेतना के इन शब्दों को पोषण प्रदान करें व कृपा दृष्टि बनाएरखें।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

           

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विविध

शुभांशु शुक्ला अन्तरिक्ष से …..

June 29, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आज कुम्भ राशि के जातक शुभांशु शुक्ला को अधिकाँश भारतीय बुद्धिजीवी जानते हैं। माता आशा शुक्ला और पिता शम्भु दयाल शुक्ला के तीसरे बच्चे के रूप में इनका जन्म हुआ, प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के सिटी माण्टेसरी स्कूल से प्रारम्भ हुई, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA)से स्नातक करने के उपरान्त भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) बैंगलोर से M.Tech की उपाधि प्राप्त की। कालान्तर में इन्होने दन्त चिकित्सक कामना मिश्रा से विवाह किया।

2006 में भारतीय वायु सेना में शामिल होने वाला यह नौजवान आज 2000 घंटे की उड़ान भर चुका है और Su -30 MKI, मिग-21, MIG -29, जगुआर, हॉक, डोर्नियर और AN -32 उड़ाने का अनुभव प्राप्त कर चुका है शुभांशु शुक्ला ग्रुप कैप्टन मार्च 2024 में बने।

10 अक्टूबर 1985 को जन्मे इस बालक ने 2019 में रूस के यूरी गॉगरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेण्टर से अंतरिक्ष यात्री का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

इन्हें गगन यान कार्यक्रम हेतु इसरो के द्वारा चयनित किया गया और आज ये एक निजी तौर पर वित्तपोषित एक्सिओम मिशन -4 (X -4 )के पायलट के रूप में सुर्ख़ियों में हैं इस मिशन को एक्सिओम स्पेस व NASA के सहयोग से आयोजित किया गया है अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन (ISS ) की यह यात्रा परम शुभ रहे। 140 करोड़ भारतीयों ने ये दुआ और कामना की है।

भारतीय प्रधान मन्त्री और शुभांशु की बातों का सार संक्षेप –

28 जून 2025 को यशस्वी भारतीय प्रधान मन्त्री श्रीयुत नरेन्द्र मोदी जी और ग्रुप कैप्टन शुभांशु की बातचीत का सार बताने से पहले यह बताना उचित होगा कि इनकी  माँ जी और दादीजी दोनों का ही नाम आशा है और आज शुभांशु भारतीय आशा का अवलम्ब व मानक है –  

आज से 41 वर्ष पूर्व भारत के राकेश शर्माजी अन्तरिक्ष में गए थे और तत्कालीन प्रधान मन्त्री महोदया से उनकी बात हुई थी। आज इतिहास उसे दोहरा कर आगे की पटकथा लिख रहा है – जब भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीजी ने अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन से वीडिओ लिंक के माध्यम से बात चीत की तो शुभांशु ने बताया। –

“यहां से भारत बहुत भव्य और बड़ा दिखता है। अनेकता में एकता का भाव साकार होता दिखता है। “

लगभग 1020 सेकण्ड की वार्ता में पीछे लगा भारतीय राष्ट्रीय चक्रध्वज आने वाले सशक्त भारत की आहात को हरदम महसूस करा रहा था। उत्साह से परिपूर्ण शुभांशु ने कहा -“बहुत नया  अनुभव है ऐसी चीजें हो रही हैं, जो दर्शाती हैं कि हमारा भारत किस दिशा में जा रहा है।”

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल ने अपनी अन्तरानुभूति को साझा करते हुए कहा की पृथ्वी से ऑरबिट तक 400 किलोमीटर की छोटी यात्रा सिर्फ मेरी नहीं मेरे देश भारत की भी यात्रा है। उन्होंने आगे कहा यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है और मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ कि मैं यहाँ अपने देश का प्रतिनिधित्व कर पा रहा हूँ।

इस भारतीय लाल ने अन्तरिक्ष से 28000 Km /H  की गति से उड़ते हुए यह अति महत्त्वपूर्ण तथ्य इंगित किया –

“पृथ्वी बिलकुल एक दिखती है, कोई सीमा रेखा दिखाई नहीं देती। ” 

भारतीय वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को पोषित करने वाला यह वाक्यांश दिल को छू गया इसके आलोक में यह अक्षर स्वर्णिम आभा से दमकते हुए महसूस किये जा सकते हैं। –

सर्वे  भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत।

अपना एक और विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा –

हम भारत को मैप पर देखते हैं बाकी देशों का आकार कितना बड़ा है और भारत का कितना ? वह सही नहीं होता, क्योंकि हम 3D ऑब्जेक्ट को 2D पेपर पर उतारते हैं। उनके शब्द –

“भारत सच में बहुत भव्य और बड़ा दीखता है जितना हम मैप पर देखते हैं उससे कहीं ज्यादा बड़ा। अनेकता में एकता का भाव साकार होता है। ”

ऐसा लगा जैसे अथर्ववेद का पुनः उद्घोष हुआ हो –

अथर्ववेद में भी विविधता में एकता के सिद्धांत का उल्लेख है- “जनं बिभ्रति बहुधा विवाचसं नानाधर्मान् पृथिवी यथौकसम्।”

इसका अर्थ है, “पृथ्वी अनेक भाषाओं और धर्मों वाले लोगों को एक घर की तरह धारण करती है।”

अन्तरिक्ष यात्री भारतीय लाल ने सूर्यास्त और सूर्योदय को लेकर कहा कि वे दिन में 16 बार सूर्य को उदय और अस्त होते हुए देख  रहे हैं अपने पैरों के बंधे होने की बात बताते हुए उन्होंने प्रत्युत्तर में गाजर और मूँग दाल हलवे तथा आम रस का जिक्र भी किया।

बिना गुरुत्वाकर्षण के स्थिति कितनी जटिल होगी इसका अहसास हुआ छत, जमीन, या दीवार कहीं भी बमुश्किल सोया जा सकता है। गुरुत्वाकर्षण के अभाव में छोटी छोटी चीजें कितनी मुश्किल होंगी अनुभव करने वाला ही जान सकता है।

शुभांशु – मोदी जी – भारतीय सपना –

यह एक सुखद उम्मीद जगी है। दैनिक जागरण ने एक बॉक्स इसे सुन्दर ढंग से परिलक्षित किया और शीर्षक दिया। –

“हमें खुद का अन्तरिक्ष स्टेशन बनाना है” –

कृतज्ञता युक्त आभार के साथ दैनिक जागरण में छपे शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं –

पी एम के कहने पर उन्होंने युवा पीढ़ी के लिए सन्देश दिया की भारत आज जिस दिशा में जा रहा है,हमने बहुत साहसिक और ऊंचे सपने देखे हैं उन सपनों को पूरा करने  लिए हमें आप सभी की जरूरत है। अन्त में पी एम मोदी ने भारत के संकल्प उनसे साझा किये और कहा कि हमें मिशन गगन यान को आगे बढ़ाना है। हमें अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाना है चन्द्रमा पर भारतीय की लैण्डिंग भी करानी है। इन सारे मिशनों में आपके अनुभव बहुत काम आने वाले हैं। भारत दुनिया के लिए अंतरिक्ष की नई सम्भावनाओं के द्वार खोलने जा रहा है। अब भारत सिर्फ उड़ान नहीं भरेगा ,बल्कि भविष्य में नई उड़ानों के लिए मञ्च तैयार करेगा।

अन्त में शुभांशु और हमारे प्रधान मंत्रीजी ने भारत माता की जय कहकर वार्ता को विराम दिया और Education Aacharya भी यह कह  कर विराम लेगा –

भारत माता की जय

धन्यवाद

जयहिन्द, जय भारत।

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विविध

गांधीजी के तीन बन्दर और आज का मानव

June 16, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

Gandhiji’s three monkeys and today’s human

आज लगभग सर्व स्वीकार्य कथन आपके बीच रखने का मन है वह यह है कि – “अच्छा जहाँ से मिले स्वीकार करना चाहिए।”  – चाहे वह विचार हो, सिद्धान्त हो, प्रेरक वाक्य हो, प्रेरक व्यक्तित्व हो, यथार्थ हो, कड़वा लेकिन सच तथ्य हो, आँख खोलने वाला प्रसंग हो, विशिष्ट भेंट हो आदि आदि। इसी क्रम में हमारे श्रद्धेय गांधीजी को चीन के प्रतिनिधि मण्डल से भेंट स्वरुप तीन बन्दरों की आकृति प्राप्त हुई जो जापान के थे और वहाँ की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते थे।

तीनों बन्दरों के नाम व आशय / Names and meanings of the three monkeys –

1 – MIZARU / मिज़ारू – बुरा न देखो का पावन सन्देश देते हुए यह बन्दर अपनी आँखों को बन्द किए हुए है।

2 – KIKAZARU / किकाजारु – ‘बुरा न सुनो’ का सन्देश सम्प्रेषित करने वाला यह बन्दर अपने कान बन्द किए हुए है।

3 – IWAZARU / इवाजारु – ‘बुरा न बोलो’ का महत्त्व पूर्ण सन्देश प्रदान करते हुए यह बन्दर अपना मुख बन्द किये हुए है।

गांधीजी को यह बन्दर अत्याधिक प्रिय थे और अपने सिद्धान्तों के निकट प्रतीत होते थे। अतः उन्होंने इन्हे अपने गुरु स्वरुप मानकर जीवन भर संजों कर रखे। गांधीजी के सत्य अहिंसा और बुराई से दूर रहने के विचारों को उक्त बन्दरों के संदेशों से प्रश्रय मिला।

MIZARU, KIKAZARU, IWAZARU और आज का मानव –

आज सूचनाएं विद्युत् की गति से उड़ रही हैं और सम्पूर्ण विश्व एक वैश्विक परिवार सा महसूस होता है यदि हम शोध, विज्ञान,दर्शन,उच्च शिक्षा, उच्च तकनीकी आदि विशिष्ट ज्ञान से हटकर सामाजिक परिदृश्य सम्बन्धी दृश्य श्रव्य सामग्री व प्रदर्शित चित्र आदि का विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि समाज पतन के गर्त की और जा रहा है जो सन्देश गांधीजी के उक्त तीनों बन्दरों ने दिए उसके विपरीत कार्य कर रहा है और इसमें हमारे हर आयु वर्ग के लाल और ललनाएँ शामिल हैं। तथाकथित बुद्धिजीवी भी बिगड़ते परिदृश्य के जिम्मेदार हैं अकेले शासन व्यवस्था पर दोष मढ़ना तर्क सांगत नहीं है। वह शर्म, हया, गलती का डॉ मानों किताबी बातें हो गई हों यथार्थ नहीं।

यहाँ हम वृहत परिदृश्य पर बात न कर केवल श्रव्य दृश्य सामग्री का विश्लेषण गांधीजी के तीन बन्दरों और आज के परिदृश्य पर कर रहे हैं –

[i]   – MIZARU  और हम

[ii]   – KIKAZARU और हम

[iii] – IWAZARU और हम

निष्कर्ष / Conclusion –

यदि आज की मानवीय पीढ़ी स्वयं को संरक्षित करते हुए भविष्य को सचमुच सकारात्मक दिशा देना चाहती है तो उसे गांधीजी के तीनों बन्दरों का विशिष्ट आचरण धारण करना होगा।

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विविध

शनि उपासना

June 13, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शनि उपासना

यह एक अत्याधिक महत्त्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है यह मुख्य रूप से शनि देव को प्रसन्न करने और उनके कृपा पात्र बने रहने हेतु किया जाता है इस प्रक्रिया को पूजा मन्त्र जाप व दान द्वारा पूरित किया जाता है।

शनि व्रत की अथ व इति –

व्रत का प्रारम्भ सावन माह के शनिवार या शुक्ल पक्ष के शनिवार से करना विशेष रूप से शुभ है। वैसे किसी भी निर्दोष शनिवार से व्रत शुरू कर सकते हैं। कम से कम शनि व्रत 7 शनिवार का किया जाना चाहिए। और जो भी लोग इसे प्रारम्भ करें इसका उद्द्यापन अवश्य करें।

शनि देव व इनकी उपासना विधि –

हिन्दू धर्म में इन्हे न्याय का देवता कहा जाता है ये सूर्य और छाया के पुत्र हैं इनकी पत्नी चित्र रथ की पुत्री थीं। इन्हें कर्म फल प्रदाता कहा जाता है ये मकर व कुम्भ राशि के स्वामी हैं और तुला राशि में उच्च के होते हैं। शनि देव की पूजा से जीवन में आने वाली परेशानियाँ कम होती हैं व शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसमें इन बिंदुओं पर ध्यान अपेक्षित है। –

01 – सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान

02 – स्नानोपरान्त शनि पूजन सङ्कल्प

03 – मूर्ति या चित्र स्थापन

04 – जल तेल फूल काले तेल का अर्पण

05 – शनि देव का मन्त्राभिषेक करें –

ऊँ शं शनैश्चराय नमः

06 – भोग लगाएं – तिल के लड्डू,  गुड़, कोई फल  

07 – आरती उपरान्त पूजन समापन

08 – दान -तेल, काला तिल, वस्त्र

09 – कथा श्रवण व ध्यान से भी शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।

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विविध

अपराजिता

June 7, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अपराजिता

अपराजिता एक लता है यह दो तरह की मिलती है एक पर सफ़ेद और दूसरी पर नीला फूल आता है। अपराजिता नाम हिंदी व बंगाली में लोकप्रिय है वैसे कई हिंदी भाषी क्षेत्रों में इसे कोयल नाम से भी जानते हैं। इसका पत्ता आगे चौड़ा और पीछे सिकुड़ी सी स्थिति में रहता है। काली मंदिरों में इसी लगाना विशेष शुभ समझा जाता है।

अपराजिता की वल्लरी को विष्णु कान्ता, गो कर्णी, कोयल, काजली, अश्व खुरा आदि नामों से भी जाना जाता है। मुख्यतः वर्षा ऋतू में इस पर फूल व फलियाँ आती हैं। आजकल इसे सौन्दर्य वर्धन हेतु विविध वाटिकाओं में लगाया जा रहा है इसके औषधीय गुण भी मानव का बहुत हित करते हैं।इसके बीजों का रंग काला होता है।

अपराजिता के सामान्य गुण –

अपराजिता के पौधे को घर में लगाने से धन समृद्धि में वृद्धि होती है यह वायु शोधक है इसे ईशान कोण में लगाया जाना मङ्गलकारी माना जाता है। यह महाकाल को अत्यन्त प्रिय है इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है। इसके फूलों को भगवान शिव की पूजा में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।

दोनों प्रकार की अपराजिता कण्ठ को पोषण प्रदान करने के साथ मेधा के विकास में महती भूमिका का निर्वहन करती हैं। यह शीतल, नेत्र विकार से बचाव में सक्षम, बुद्धि वर्धक तथा कुष्ठ, सूजन, त्रिदोष व विष के प्रभाव का शमन करती है।

अपराजिता के विविध भागों का उपयोग –

01 – अपराजिता के पत्तों का प्रयोग बालों पर लगाने व चाय के रूप में किया जाता है।

02 – अपराजिता के बीजों को खाया जा सकता है व चाय के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।

03 – अपराजिता के फूलों से त्वचा को विशेष पोषण मिलता है व इसकी चाय स्फूर्ति प्रदाता है।

अपराजिता के औषधीय लाभ –

 इसके लाभ बहुत सारे हैं उनमें से कुछ को यहां देने का प्रयास है जिन्हे बार बार सिद्ध होते देखा गया है।

01 – मानसिक स्वास्थ्य – बीज – एकाग्रता व ध्यान संकेन्द्रण में मदद

02 – हृदय का सशक्तीकरण – कोलस्ट्रॉल नियन्त्रण व नियमित रक्त संचरण

03 – पाचन सहायक – बीज – पेट में जलन व अपच में सहायक, उदरमित्र 

04 – प्रतिरोधी क्षमता वृद्धि – बीज – रोग प्रतरोधक क्षमता वृद्धि, सजगता में वृद्धि

05 – त्वचा हेतु – फूल – एण्टी ऑक्सीडेंट से युक्त – चहरे पर चमक – स्वस्थ त्वचा – सूजन में कमी।

06 – केश वृद्धि व केश को झड़ने से बचाने हेतु – पत्ते – केश वृद्धि व झड़ने से रोकने में मददगार।

विविध व्याधियों में प्रयोग –

सिर दर्द – फली का 10 बूँद रस नाक में टपकाने से आराम , जड़ के रस का नस्य सूर्योदय से पहले खाली पेट देने से भी आराम मिलता है।

कुक्कुर खाँसी – जड़ का मिश्री युक्त शर्बत चटाने से लाभ

गर्भ स्थापन – श्वेत अपराजिता की 5 ग्राम छाल या पत्तों को बकरी के दूध में पीसकर व शहद मिश्रित कर देने का जादुई परिणाम देखने को मिला है।

इसकी जड़ 1-1 ग्राम दिन में दो बार  बकरी के दूध में पीसकर व शहद मिश्रित कर कुछ दिन देना गिरते गर्भ को रोकने की क्षमता रखता है।

अण्डकोष वृद्धि व सूजन निवारक – इसके बीजों को पीसकर गरम कर लेप करने से सूजन मिटटी है व लाभ होता है।

सुख प्रसव – कमर पर इसकी बेल लपेटने से आराम आता है लेकिन प्रसवोपरान्त इसे तुरंत हटा देना चाहिए।

अपराजिता के नुकसान –

1 – इसका अधिक सेवन एसिडिटी, त्वचा पर रैशेज, एलर्जी, गैस्ट्राइटिस का कारण बन सकता है।

2 – कम हीमोग्लोविन वाले, गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका या इससे बनी चीजों का प्रयोग नहीं करना है।

3 – अपराजिता का अधिक सेवन से शरीर में अतिरिक्त पानी जमा हो सकता है।

4 – अधिक पित्त व रक्त की कमी वाले लोग इसका सेवन न करें।

नोट – योग्य चिकित्सक या विशेषज्ञ के निर्देशानुसार उपयुक्त मात्रा में सेवन करना चाहिए।

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विविध

शंख/ CONCH

June 4, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शंख/ CONCH  

भारत में शंख का प्रयोग आदि काल से होता आया है। विविध ऋषि, मनीषी, वीर, राजा – महाराजा, महा मानव व हिन्दू धर्म में भगवान् भी शंख से सम्बद्ध हैं। दाधीचि शंख को दक्षिणावर्ती या लक्ष्मी शंख के नाम से भी जानते हैं। दक्षिणावर्ती शंख हिन्दू धर्म में शुभ माना जाता है।

रामायण काल के कुछ प्रमुख शंख / Some important conches of Ramayana period –

 रामायण काल में शत्रुघन को भगवान् विष्णु के शंख के अवतार के रूप में देखा जाता है। महाराजा जनक के शंख को पाञ्चजन्य के नाम से जाना जाता है। रावण के शंख का नाम गंगनाभ था। कुम्भकर्ण के शंख का नाम महा शंख था जबकि मेघनाद के शंख का नाम इन्द्र जीत था। विभीषण के शंख का नाम महापाण्डव था।

महाभारत काल के कुछ प्रमुख शंख/ Some important conches of Mahabharata period  –

 महाभारत काल में भगवान् कृष्ण के शंख का नाम पाञ्चजन्य, अर्जुन का शंख देवदत्त, महाराज युधिष्ठिर के शंख का नाम अनन्त विजय, भीम का शंख पौण्ड्र, नकुल का शंख सुघोष सहदेव का शंख मणिपुष्पक था।भीष्म पितामह के शंख का नाम गंगनाभ था। दुर्योधन का शंख विदारक व कर्ण के शंख का नाम हिरण्यगर्भ था।

शंखनाद को आज भी विश्व की महत्त्वपूर्ण पावन ध्वनियों में स्वीकृत किया जाता है इसीलिये विविध धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग किया जाता है।

वर्तमान भारत के शंख / Shells of present-day India –

वर्तमान भारत के जो शंख हैं उन्हें प्राचीन शंखों की भाँति सिद्धि व क्षमता युक्त नहीं स्वीकार किया जाता। आज के भारत में भी बहुत से शंख पाए जाते हैं जिनमें दक्षिणावर्ती शंख, मोती शंख, लक्ष्मी शंख, विष्णु शंख आदि प्रमुख हैं। वामवर्ती शंख को शुभ नहीं माना जाता।

वर्तमान में ऐरावत, कामधेनु, गणेश, अन्नपूर्णा, मणि पुष्पक और पौण्ड्र शंख देखने को मिलते हैं।

शंख बजाने के लाभ / Benefits of blowing conch –

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में युद्ध में तो नहीं लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका प्रयोग महत्त्वपूर्ण माना जाता है। आध्यात्मिक रूप से इसकी महत्ता स्वीकारने के साथ इसकी  मानसिक व शारीरिक महत्ता भी कम नहीं है।शंख बजाने की क्रिया आध्यात्मिक, मानसिक व शारीरिक लाभ प्रदान करती है। नित्यप्रति शंख बजाने से स्वास्थ्य व जीवन में सुधार व विकास सम्भव है। इसके लाभों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं। –

01 – श्वाँस क्षमता अभिवृद्धि

02 – थायरॉयड व स्वर यन्त्र व्यायाम

03 – तनाव मुक्ति

04 – फेफड़े की क्षमता वृद्धि

05 – गले के विविध रोगों से मुक्ति

06 – मानसिक शान्ति

07 – गुदाशय, मूत्राशय, मूत्रमार्ग क्षमता अभिवृद्धि

08 – डायफ्राम व छाती की मांस पेशियों को मज़बूती

09 – रोग प्रतिरोधक क्षमता अभिवृद्धि

10 – चहरे की झुर्रियों में कमी

11 – ब्लॉकेज खोलने में सहायक

12 – सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि

            शंख बजाइये और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़िए.

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