कर्ट लेविन का अधिगम सम्बन्धी क्षेत्र सिद्धान्त
कर्ट लेविन महोदय मूलतः एक जर्मन मनोवैज्ञानिक थे इनका 1890 में हुआ और ये बाद में अमेरिका जाकर बस गए अपने शोध के आधार पर इन्होने 1917 में मनोविज्ञान के क्षेत्र सिद्धान्त पर महत्त्व पूर्ण कार्य किया। अमेरिका के स्टेन फोर्ड(Stanford) और आईऔवा (Iowa) विश्वविद्यालय में इन्होने प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया।
कर्ट लेविन महोदय ने अपने क्षेत्र सिद्धान्त सम्बन्धी विचारों को अभिव्यक्त करते हुए कहा
“मानव व्यवहार व्यक्ति और वातावरण दोनों का प्रतिफल है। जिसे सांकेतिक रूप में B = f (P.E) द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। “
“Human behaviour is the function of both the person and the environment expressed is symbolic term B = f (P.E).”
यहाँ
B = Behaviour (व्यवहार)
P = Person (व्यक्ति )
f = Field (क्षेत्र )
E = Environment (वातावरण)
लेविन द्वारा जो उक्त शब्द प्रयोग में लाये गए इन सबके साथ व्यवहार में मनोवैज्ञानिक शब्द भी शामिल है जैसे व्यवहार से आशय मनोवैज्ञानिक व्यवहार से है इनकी फील्ड साइकोलॉजी(Field Psychology) को टोपोलॉजिकल साइकोलॉजी (Topological Psychology) व वेक्टर साइकोलॉजी (Vector Psychology) नाम से भी जानते हैं।
लेविन के क्षेत्र सिद्धान्त में शामिल है जीवन परिक्षेत्र, वेक्टर्स व कर्षण तथा तलरूप (Topology)
जीवन परिक्षेत्र –
| [वेक्टर (प्रेरक शक्ति)→ मनोवैज्ञानिक व्यक्ति ( P ) ⇶बाधाएं ⇶ मनोवैज्ञानिक वातावरण + बाधाएं ⇉⇉⇉→ लक्ष्य] जीवन क्षेत्र के बाहर का घेरा |
वेक्टर्स व कर्षण –
लेविन ने अपने क्षेत्र सिद्धान्त को समझाने में जो वेक्टर्स और कर्षण का प्रयोग किया है उसका आशय यह है कि मानव के जीवन परिक्षेत्र में दो तरह की शक्तियां कार्य करती हैं जिनको हम सकारात्मक कर्षण शक्ति व नकारात्मक कर्षण शक्ति कह सकते हैं जीवन दायरे में लक्ष्य की और ले जाने वाली शक्ति सकारात्मक कर्षण शक्ति कहलाती है और लक्ष्य से दूर ले जाने वाली नकारात्मक कर्षण शक्ति कहलाती है।
इन विशिष्ट कर्षण शक्तियों की वजह से व्यक्ति लक्ष्य की ओर या लक्ष्य से दूर भागता है। इनके प्रभाव से ही लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में बढ़ने हेतु पर्याप्त प्रोत्साहन, प्रेरणा या विपरीत दिशा हतोत्साह का अनुभव करता है।
तल रूप (TPOPLOGY) –
यह अवधारण लेविन महोदय को गणित के परिक्षेत्र से प्राप्त हुई गणित में तलरूप प्रदर्शन ज्यामितीय आकृतियों का प्रयोग होता है इसी अभिव्यक्ति को भीतरी (Inside) और बाहरी (Outside) तथा सीमा रेखा (Boundary) द्वारा होती है। कौन किसके बाहर , कौन किसके भीतर, कौन किसके पीछे है। इसी कारण टोपोलॉजी की भाषा में अण्डाकार आकृति, गोल आकृति, अनियमित बहुभुज में इनकी रचना और आकृतियों में इतनी विविधता होने के बाद भी कोई अन्तर नहीं माना जाता। लेविन ने टोपोलॉजी की अवधारणा का मानव के जीवन परिक्षेत्र में प्रत्यक्षीकरण और अन्तःक्रियाओं के परिणामस्वरूप विविध बदलावों को दिखाने के लिए बहुत अच्छा उपयोग किया।
Learning and outcomes : Lewin’s Field Theory –
अधिगम का सम्बन्ध मानव के व्यवहार में आने वाले परिवर्तन से है व्यक्ति के व्यवहार में होने वाला यह परिवर्तन क्षेत्र सिद्धांत के आधार पर इस प्रकार समझाया जा सकता है।
लेविन यह मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का एक जीवन दायरा होता है और उसी के मनोवैज्ञानिक दायरे में वह विचरण कर रहा होता है अपने जीवन दायरे के बारे में उसका खुद का प्रत्यक्षीकरण होता है अपनी इसी संज्ञानात्मक संरचना के आधार पर उसे तत्कालीन परिस्थिति और उसमें लक्ष्य प्राप्ति हेतु की जाने वाली क्रियाओं का बोध होता है इस लक्ष्य प्राप्ति हेतु उसे मनोवैज्ञानिक तनाव होता है जो दो तरह से दूर हो सकता है एक तो यह कि उसे लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए या फिर दूसरे इस तरह कि वह अपने जीवन दायरे का पुनः व्यवस्थापन करे। उदाहरण स्वरुप IAS का सपना लेकर चलने वाला असफल होने पर पुनः नए ढंग से तैयारी करे या किसी और पद से जुड़ने के प्रयास में परिवर्तन करे।
अधिगम की यह मनोदशा लेविन के अनुसार यह सिद्ध करती है कि लक्ष्य प्राप्ति हेतु परिस्थिति व समय विशेष पर व्यक्ति अपने जीवन दायरे में परिवर्तन करता है और इसके तीन आधार होते हैं –
01 — भेदी करण [Differentiation]
02 — सामान्यीकरण [Generalization]
03 — पुनः संरचना [Re- structuring]
लेविन की इस अधिगम प्रक्रियाओं या व्यवहार परिवर्तन को बोध गम्य बनाने हेतु भारतीय विद्वान एस ० के ० मंगल महोदय ने निम्न तथ्यों या बिन्दुओं को समाहित किया गया जिससे इसकी व्यवहारिकता दृष्टिगत होती है।
01 — अभिप्रेरणा और अधिगम [Motivation and learning]
02 — समस्या समाधान योहयता का विकास [Development of problem solving ability]
03 — आदतों का निर्माण [Habit Formation]
04 — अधिगम व बौद्धिकता पूर्ण व्यवहार [Learning and intelligent behaviour]
EDUCATIONAL IMPLICATIONS OF FIELD THEORY
क्षेत्र सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता –
01 — अध्यापक द्वारा व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर पृथक निर्देश/Separate instruction by the teacher based on individual differences
02 — उद्देश्य व लक्ष्य स्पष्टीकरण से उसकी प्राप्ति / Achievement of objectives and goals through clarification
03 — सूझबूझ व अन्तःदृष्टि का विकास / Development of understanding and insight
04 — अधिगम क्षेत्र का उचित नियोजन, संगठन व व्यवस्थीकरण / Proper planning, organization and systematization of the learning area
05 — विभेदीकरण, सामान्यीकरण व संरचनाकरण का उपयुक्त प्रशिक्षण / Appropriate training of differentiation, generalization and structuring
06 — अधिगम का उचित नियोजन व्यवस्था तथा प्रबन्धीकरण / Proper planning and management of learning
07 — ‘जीवन दायरे के बाहर का प्रभाव नहीं’ विचार का अधिगम में प्रयोग / Use of the idea of ’no influence from outside the sphere of life’ in learning

