Philosophy and Its Branches / दर्शन व इसकी शाखाएं –
दर्शन के लिए अंग्रेजी में जो शब्द आता है वह है Philosophy और इस शब्द का आशय है ज्ञान के प्रति गहन अनुराग (Love of Wisdom) अर्थात दर्शन का जन्म जिज्ञासा से होता है लेकिन भारत के बारे में माना जाता है कि यह जीवन व जगत के असीम दुःख जैसी व्यावहारिक समस्या से छुटकारा दिलाने का साधन है। प्रोफ़ेसर रमन बिहारी लाल के शब्दों में –
“दर्शन शास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के अन्तिम सत्य एवं मानव के वास्तविक स्वरुप, सृष्टि -सृष्टा, आत्मा -परमात्मा, ज्ञान -अज्ञान, ज्ञान प्राप्त करने की विधियों और मानव जीवन के अन्तिम उद्देश्य तथा उसे प्राप्त करने के साधनों की तार्किक विवेचना की जाती है।”
“Philosophy is that branch of knowledge. In which the ultimate truth of the entire universe and the true nature of man, the creation-creator, soul-God, knowledge-ignorance, methods of acquiring knowledge and the ultimate aim of human life and the means to achieve it are logically discussed.”
इस सम्बन्ध में सिसरो महोदय का विचार है कि –
“Philosophy, thou director of our lives, Thou friend of virtue and enemy to vice,
What were we, what were the life of man at all but for thee! “
“दर्शनशास्त्र, हे हमारे जीवन के निर्देशक, हे सद्गुणों के मित्र और दुर्गुणों के शत्रु,
तेरे बिना हम क्या होते, मनुष्य का जीवन क्या होता!”
असल में दर्शन का क्षेत्र इतना व्यापक है कि बिना इसकी शाखाओं को समझे इसे समझना दुष्कर है। इसकी शाखाएं हैं –
01 – तत्त्व मीमांसा (Metaphysics)
02 – ज्ञान मीमांसा (Epistemology)
03 – मूल्य मीमांसा (Axiology)
तत्त्व मीमांसा (Metaphysics)
दर्शनशास्त्र की वह शाखा जो वास्तविकता, अस्तित्व और ब्रह्मांड की मौलिक प्रकृति का अन्वेषण करती है। तत्त्व मीमांसा कहलाती है यह भौतिक विज्ञानों से परे, समय, स्थान, कारणता, संभावना व अस्तित्व जैसे विषयों से जुड़े प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करती है। यह ‘क्या ?’ और ‘क्यों ?’ जैसे प्रश्नों का उत्तर तलाश करती है, इसमें भौतिक दुनिया से परे जाकर परम सत्य और अस्तित्व के सिद्धांतों को समझने का प्रयास किया जाता है ।
तत्त्वमीमांसा को Metaphysics कहते हैं इसमें मेटा से आशय है ‘परे’ व फिजिक्स से आशय है ‘भौतिक दुनिया’ । इस प्रकार Metaphysics से आशय हुआ भौतिक विज्ञान से परे जाकर विविध सिद्धांतों को समझने का प्रयास।
तत्त्व मीमांसा में सृष्टि शास्त्र (Cosmogony), सृष्टि विज्ञान (Cosmology) व सत्ताविज्ञान (Ontology) आते हैं इसमें आत्मा सम्बन्धी तत्त्व ज्ञान (Metaphysics of the Soul) व ईश्वर सम्बन्धी तत्त्व ज्ञान (Theology) भी समाहित है।
तत्त्व मीमांसा की समस्याएं (Problems of Metaphysics) –
01 – ब्रह्माण्ड का निर्माण
02 – ब्रह्माण्ड का स्वरुप
03 – ब्रह्माण्ड का मूल तत्त्व
04 – ब्रह्माण्ड का अन्तिम सत्य
05 – सृष्टि क्या और इसका निर्माण कैसे?
06 – अस्तित्व की प्रकृति
07 – सृष्टि का प्रयोजन
08 – आत्मा परमात्मा सम्बन्धी तत्त्व
09 – मानव जीवन का अन्तिम उद्देश्य
10 – अन्तिम उद्देश्य की प्राप्ति कैसे?
तत्त्व मीमांसा के प्रकार –
इस मीमांसा में तत्त्व से जुड़े मूलभूत प्रश्नों के उत्तर तलाशते हुए बढ़ने पर इसके निम्न रूपों का अध्ययन आवश्यक जान पड़ता है।
01 – तत्त्व विज्ञान (Ontology)
02 – विश्व विज्ञान (Cosmology)
03 – ईश्वर विज्ञान (Theology)
तत्त्व विज्ञान (Ontology)
इसमें द्रव्य को सत्य स्वीकार किया जाता है और यह माना जाता है कि विश्व द्रव्य से बना है द्रव्य को सत्य मानने वाली इस व्यवस्था की तत्त्व मीमांसा की विशेषता को इस प्रकार क्रमित कर सकते हैं।
01 – मूल तत्व द्रव्य
02 – ब्रह्माण्ड प्राकृतिक
03 – द्रव्य में परिवर्तन का कारण वाह्य ऊर्जा
04 – भौतिक संसार सत्य
05 – तत्त्व विज्ञान ही प्रकृति विज्ञान
06 – अध्यात्म और ईश्वर पर अविश्वास
07 – मानव जीवन उद्देश्य सुख प्राप्ति
08 – ज्ञानेन्द्रिय व यथार्थ महत्त्व पूर्ण
09 – नैतिक मूल्यों की जगह परिस्थिति नियन्त्रण आवश्यक
तत्व विज्ञान के प्रमुख सिद्धान्त (Main Principles of Ontology) –
इसके प्रमुख या आधारभूत सिद्धान्तों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।
01 – भौतिक वाद
02 – अध्यात्मवाद
(i) आत्मनिष्ठ अध्यात्म वाद
(ii) वस्तुनिष्ठ प्रत्ययवाद
(iii) निरपेक्ष अध्यात्मवाद
03 – द्वैतवाद (Dualism)
04 – तटस्थ वाद (Neutralism)
05 – निरपेक्ष वाद (Absolutism)
06 – अनेकत्व वाद (Pluralism)
07 – एकत्व वाद (Monism)
विश्व विज्ञान (Cosmology) –
आज सारा विश्व विकास की ओर उन्मुख है ऐसे में इससे सम्बन्धित समस्याएं को यथार्थ मानना सत्य या सम्यक जान पड़ता है, इसका अध्ययन क्षेत्र संसार की उत्पत्ति से सम्बन्धित है, विकासवाद में वैश्विक समस्याएं को यथार्थ मानने वाले विश्व विज्ञान की विशेषता को इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है।
01 – प्रकृति ने विश्व बनाया
02 – सृष्टि का निर्माता ईश्वर
03 – ईश्वर अनन्त व सर्व व्यापी
04 – वैश्विक जीवों में विविधता व विषमता
05 – लिंग भेद की सर्वव्यापकता
06 – मूल रूप में विश्व अपरिवर्तनशील
07 – ईश्वर कृत गुण क्रमिक नहीं
विश्व विज्ञान के प्रमुख सिद्धान्त (Main Principles of Cosmology) –
(01) – सृष्टिवाद व विकास वाद (Creationism and Evolutionism)
(02) – डार्विन का विकास सिद्धान्त (Darwin’s theory of evolution)
विकास क्रम नियम
(i) – जीवन संघर्ष / Struggle for existence
(ii) – आकस्मिक परिवर्तन / Chance Variation
(iii) – योग्यतम की रक्षा / Survival of the fittest
(iv) – आनुवांशिकता / Heredity
ईश्वर विज्ञान /THEOLOGY
यह विज्ञान ईश्वर को अन्तिम सत्य मानता है यह विज्ञान ईश्वर सम्बन्धी अवधारणाओं, प्रश्नों, समस्याओं से सम्बन्धित है।
ईश्वर विज्ञान की विशेषताएं / Features of theology –
इसकी विशेषताओं को इस प्रकार क्रम बद्ध किया जा सकता है –
01 – ईश्वर अमूर्त
02 – ईश्वर अनन्त व पूर्ण
03 – ईश्वर – विश्व का आदि अन्त
04 – ईश्वरीय सत्ता द्वारा विश्व सञ्चालन
05 – ईश्वर सर्वत्र व्याप्त
06 – केवल ईश्वर सत्य
07 – समस्त वैश्विक प्रक्रियाओं में ईश्वरीय हस्तक्षेप
08 – ईश्वर समय स्थान से परे
09 – विश्व का सृजक व पालन कर्त्ता ईश्वर
ईश्वर विज्ञान के प्रमुख सिद्धान्त (Main Principles of Theology) –
ईश्वर से सम्बन्धित प्रश्नों की मीमांसा निम्न सिद्धांतों पर अवलम्बित है।
01 – एकेश्वर वाद (Monotheism)
(i) तटस्थ ईश्वर वाद (Deism)
(ii) सर्वेश्वर वाद (Pantheism)
(iii) ईश्वर वाद (Theism)
(iv) अन्तरातीत ईश्वर वाद (Panentheism)
02 – द्वैतेश्वर वाद (Ditheism)
03 – अनेकेश्वर वाद (Polytheism)

