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काव्य

काशीअविनाशी की नाभि ज्ञानवापी है।

February 16, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मन्दिर का भव्य होना, स्वस्थ परिपाटी है

मिटाने में दुष्टों ने, न रखी कसर बाकी है

पौराणिक ग्रंथों ने ज्ञान को जो प्रश्रय दिया

उसी का परिणाम है निशाँ अभी बाकी है।

काशी अविनाशी की नाभि ज्ञानवापी है।1।

बर्बर विध्वंश हुआ, पर पुरातन झाँकी है

खगोलीय, गणितीय, मापन  से आँकी है

काशी में विज्ञों ने, ज्ञान को संरक्षण दिया  

ज्ञानवापी केन्द्र है विस्तार सारी काशी है।

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।2।

लांघता मर्यादा को समझ लो वो पापी है

सत्य जानो, मानो ना, कैसी आपाधापी है

न्याय के मन्दिर ने सत्य को संरक्षण दिया

आ गई अयोध्या पर मथुरा,काशी बाकी है

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।3।   

राम ने मर्यादा गढ़ी, कृष्ण नीति साँची है

प्रलयंकारी शङ्कर ने गढ़ी नगरी काशी है

प्राची के ग्रंथों ने काशी का बखान किया

काशी में ईश विश्वनाथ और ज्ञानवापी है।

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।4।

सत्य सनातन आस्था चेतन जग व्यापी है

स्कन्द पुराण ने, महा महिमा ये बाँची है

भूगोल, अध्यात्म महिमा ने ये सिद्ध किया

अवमुक्तेश्वर ज्ञानप्राप्ति धाम ये काशी है।

काशी अविनाशी की, नाभि ज्ञानवापी है।5।

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वाह जिन्दगी !

सुबह कालिमा को यूँ निगलती रहेगी।

August 26, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुबह कालिमा को यूँ निगलती रहेगी,

यह दुनियाँ अजब है, बदलती रहेगी,

गम का अँधेरा मिटेगा उजाला रहेगा,

रूप परिवर्तित प्रकृति सँवरती रहेगी । 

नदी नवपथ बदल के मचलती रहेगी,

खुशी नवरूप धर के उछलती रहेगी,

गम सागर मिटेगा, ज्वार ऐसा उठेगा,

ऋतु भावों पर सरगम थिरकती रहेगी।

यह अँधेरे की दुनियाँ सिमटती रहेगी,

आत्मनिर्भरता अगनी धधकती रहेगी,

कण्टक पथ मिटेगा मार्ग ऐसा बनेगा,

नवआगत पीढ़ियाँ सब बरतती रहेंगी।

निराशा हटाके आशा चमकती रहेगी,

मनस प्रतिकूलता सब चटकती रहेगी,

रूढ़ियाँ तज आत्मविश्वास ऐसा बढ़ेगा,

खुशियाँ हर दामन में खनकती रहेंगी।

भ्रष्टचिन्तन पे बिजली कड़कती रहेगी,

क्रान्ति जनित धड़कन धड़कती रहेगी,

काटकर प्रस्तरों को स्वर्ग ऐसा गढ़ेगा,

कर्म आधार पर आभा पसरती रहेगी ।

विश्व- कल्याण ज्योति चमकती रहेगी,

दिल की कश्ती स्वतः सरकती रहेगी,

लक्ष्य जीवन मिलेंगे भाग्य ऐसा बनेगा,

जनगण मन बगिया ये महकती रहेगी।

सुबह कालिमा को ……………………

निगलती रहेगी…. निगलती रहेगी…

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काव्य

यारब तेरा शुक्रिया है ।

April 5, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

 चन्द पैसे क्या मिले वह घर से रिश्ता तोड़ आया।

मैं तो सज़दे में था जब घर बिलखता छोड़ आया।

हम सब हुए अवाक थे इस जमाने की रफ़्तार से

मेरा बेटा अपने घर से सम्बन्ध सिरे से तोड़ आया। 

कुछ दमड़ियाँ मिलगईं गाँव से शहर दौड़ आया।

मैं पसीने से तरबतर था अम्मी से बस बोल आया।

तबियत कुछ नासाज़ थी बोल कुछ बिगड़े हुए से।

अब्बू ने पैदा किए हैं सो उनके जिम्मे छोड़ आया।

पाँच भइयों चार बहनों से था वो रुख मोड़ आया।

वह अकेला होगया पर खुश है मैं यह बोल आया।

हम को चिन्ता हो रही थी, क्या खायेगा बाज़ार से।

पर उसे चिन्ता नहीं थी घर छोड़ वो जो दौड़ आया।

वो अपने जहाँ में खुश, मुफ़लिसी का दौर आया।

मैं कमजोर होगया सो मुनीमियत भी छोड़ आया।

बच्चे ऑ हम गुजर रहे थे, फाकाकशी के दौर से।

मैं खुदा से कह रहा था, ख़ुदाया क्या कहर ढाया।

कुछ दिनों में सेठ ने, मुझे दुकाँ पर फिर बुलाया।

जुम्मन मियाँ घर न बैठो तुमपर है विश्वास आया।

काम हम करने लगे ऑ सीखे बहुत कुछ दौर से।

जो बेटा घरसे गया था वह टाँग अपनी तोड़ आया।

घर वो अपने आ गया था नहीं उसे हमने बुलाया।

या खुदा तेरा शुकर है,  जिन्दगी में दिन ये लाया।

बेटा बहुत सा सीखआया निकलकर तन्हाइयों से।

यारब तेरा शुक्रिया है जो पूरेघर को फिर मिलाया।

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वाह जिन्दगी !

धुन का पक्का होना चाहिए।

March 29, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आप ही बताओ किस्मत में क्या रक्खा होना चाहिए,

भाग्यफल बनता कर्म से ये ज्ञान पक्का होना चाहिए,

जो करे हमें गुमराह उसे करारा धक्का होना चाहिए,

ठेकेदार जो नक़ली धर्म का हक्का बक्का होना चाहिए।

नव भारत का नौजवान, धुन का पक्का होना चाहिए।1।

बिना किये कुछ न होता विश्वास पक्का होना चाहिए,

मत  उड़ो ऊँचा धरा तल पर पैर रक्खा होना चाहिए,

राय  मानो तार्किक न काल्पनिक गच्चा होना चाहिए,

हो व्यूह रचना यथोचित नहीं तीरतुक्का होना चाहिए।   

नव भारत का नौजवान, धुन का पक्का होना चाहिए।2।

प्रतिज्ञा भीष्म सी मानस में नहीं छक्का होना चाहिए,

कर्महीन नर पावत नाहीं सो मन सच्चा होना चाहिए,

सकल पदारथ हैं जग माही यह पक्का होना चाहिए,

कर्म धुन रख अनवरत हर मुख गस्सा  होना चाहिए।

नव भारत का नौजवान, धुन का पक्का होना चाहिए।3।

न भटकें मृग मारीचिका में भाव अच्छा होना चाहिए,

अति पावस निर्मल रहें हम, मन  बच्चा होना चाहिए,

जो भी करें मन से करें, ना कुछ कच्चा होना चाहिए,

चरित्र बल शुभ भावयुक्त प्रबल  गुच्छा होना चाहिए।

नव भारत का नौजवान, धुन का पक्का होना चाहिए।4।

न हो छाप पाश्चात्य की न मिथ्या चस्का होना चाहिए,

स्वसंस्कृति विकास हित तनमन रक्खा होना चाहिए,

सृजनोत्थान हित दृढ़ श्रृंखला का नक्का होना चाहिए,

अवचेतन मस्तिष्क को राष्ट्रवादी चक्का होना चाहिए।

नव भारत का नौजवान, धुन का पक्का होना चाहिए।5।

तन मन धन सब राष्ट्र का, मनस पक्का होना चाहिए,

भ्रमकूप में न फँसें मन में काशी मक्का होना चाहिए,

कर्म काण्ड पुनः विवेच्य हो मत  पक्का होना चाहिए,

वादप्रतिवाद, विश्लेषणसंश्लेषण अच्छा होना चाहिए।  

नव भारत का नौजवान, धुन का पक्का होना चाहिए।6।

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काव्य

कमियों का क्षरण कर दो।

March 6, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बनकर नैतिकता तुम

कमियों का क्षरण कर दो।

बन जाओ शक्ति मेरी

जीवन को सबल कर दो।

ना कोई क्रन्दन हो

शुभ कर्म का अभिनन्दन।

सद्कर्म करे कोई

तो दिखता अच्छा मन।

नयी लीक पकड़ कर तुम

रूढ़ि का अन्त कर दो।

बनकर नैतिकता तुम

कमियों का क्षरण कर दो।

मानव का स्वार्थीपन

ना दीखे इस जग में।

सब कुछ खोकर अपना

बस प्रीत प्रबल कर दो।

बस प्रीत प्रबल कर दो।

बनकर नैतिकता तुम

कमियों का क्षरण कर दो।

अवसर छीने हमसे

हमें जो भी लगे अच्छे

सब सफल हुए अबतक

हम हो न सके अच्छे।

प्रभु साथ हमें देकर

जीवन को सफल कर दो।

बनकर नैतिकता तुम

कमियों का क्षरण कर दो।

बन जाओ शक्ति मेरी

जीवन को सबल कर दो।

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वाह जिन्दगी !

प्रगति अवरोध नहीं बनते।

March 2, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ऐ मित्र मित्रता करके हम घाती व्यवहार नहीं करते,

विश्वास में ले पीठ पीछे, खञ्जर का वार नहीं करते।

हम बच्चे भारत माता के, मरयादा हनन नहीं करते,

टुकड़े वाली धारा का हम, चिन्तन मनन नहीं करते।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

यलगारों वाली धारणा के, बिलकुल साथ नहीं रहते,

राष्ट्रवाद के संवाहक हम, द्रोही व्यवहार नहीं करते।

हम बेटे हिन्दुस्तान के लुकछिप कर वार नहीं करते,

सिद्धान्त नहीं अपने छलके,  हल्की बात नहीं करते।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

देश में देश द्रोही फिरके हम उनको माफ़ नहीं करते,

मातृशक्ति का वन्दन करके ढोंगी व्यवहार नहीं करते।

मरने मिटने वाले तबके स्वप्निल व्यापार नहीं करते,

देशद्रोही विषबेलों के जड़ बीज संरक्षित नहीं करते।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

करनी भरनी निर्णय करके हम पुनर्विचार नहीं करते,

मृत्यु दण्ड वाले हक़ के विरुद्ध व्यवहार नहीं करते,

हम सब छल छन्द फरेबों के पक्ष में बात नहीं करते,

दुष्टों की गलत धारणा के, राष्ट्र वादी साथ नहीं रहते।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

राष्ट्र का ध्वजवन्दन करके हम गन्दे भाव नहीं रखते,

जो भी देश द्रोही भाव रखे हम उसको माफ़ करते।

भोलेभाले सद्भावों के खिलाफ विषवमन नहीं करते,

रखवाले हम सिद्धान्तों के हम झूठी बात नहीं करते।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

हम लय बद्ध प्रगति करके भद्दे जज्बात नहीं करते,

शुभकामनायें अर्पित करके वैरी सा भाव नहीं रखते,

मतवाले हम देश प्रेम के दुश्मन सा भाव नहीं रखते,

देश का खाके पलबढ़ के हम किसी से रार नहीं रखते।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

पूजक हैं हम मातृ भूमि के द्रोही को प्यार नहीं करते।

संहारक हैं हम दुश्मन के किसी का उधार नहीं रखते,

कृतज्ञ भाव के प्रतिपादक हैं, कृतघ्नता भाव नहीं रखते,

समृद्धि राष्ट्र कारक बन कर, ऊर्जस्वी भाव नहीं तजते ।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

मनस्विता आलम्बन बनकर, कोई दुरभाव नहीं रखते,

आराधक महाकाल बनकर कामी सा भाव नहीं रखते।

ज्ञान सागर का मन्थन कर, रत्नों को पास नहीं रखते,

प्रकृति से सब कुछ पाकर, सब अपने पास नहीं रखते।

स्वराष्ट्रधर्म के संवाहक हम प्रगति अवरोध नहीं बनते।।

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वाह जिन्दगी !

व्यक्तित्व / PERSONALITY

February 8, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

व्यक्तित्व वह है जो हैरान परेशान न हो,

छोटीछोटी बात पर कोई घमासान न हो,

चन्दा सूरज में भी लगे है इक बार ग्रहण,

सोच को बदलती चाल से नुकसान न हो।

सोच गुलजार रहे उस में शमशान न हो,

जो प्रगति शील न हो ऐसा उनवान न हो,

यूँ विभीषण ने भी ली थी इक बार शरण,

हो सब हो मगर बौद्धिक अवसान न हो।

किसी बेगैरत पर, यूँ ही मेहर बान न हो,

और याद रहे जरूरतमन्द परेशान न हो,

याद आते, ऐसे लोग जिन्दगी  में हर क्षण,

भले ही उनके पास एक भी मकान न हो।

शब्द मधुर ही रहे भाषा बदजुबान न हो,

ईमान कायम रहे व्यवहार बेईमान न हो,

यूँ आम हो चला है बद नीयती का चलन,

नर्क न बने जीवन, इस लिए गुमान न हो।

सोच बदलो, बे बात ही हलकान मत हो,

चिन्तनद्वार खोलो अगर रोशनदान न हो,

बदलती रहती है दुनियाँ तो क्षणप्रतिक्षण,

व्यक्तित्व है तब गर सोच बियाबान न हो।

पल न गुजरें ऐसे,अधरों पर मुस्कान न हो,

काम अच्छे करो, भले जान पहचान न हो,

गुजर जाने पर रात, आती सूर्य की किरण,

नाथ लगे रहना अनवरत नाम हो या न हो।

व्यक्तित्व वह है जो हैरान परेशान न हो ।

छोटीछोटी बात पर कोई घमासान न हो ।

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काव्य

गर है तो है।/GAR HEA TO HEA .

February 2, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मेरी उससे दोस्ती उसको गिला गर है तो है।

मेरी तो चाहत वही, उसमें दग़ा गर है तो है।

मेरी नीयत में बफा है वो खफा गर है तो है।

मैं तो सच्चा दोस्त हूँ उसे दुश्मनी गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मैं देशी फलसफा हूँ उनका जुदा गर है तो है।

मैं तो मिट्टी से बना हूँ, वो स्वर्ण गर है तो है।

मेरा भारत चल पड़ा है वो खड़ा गर है तो है।

मैं प्यारा रहबर रहुँगा वोआतंकी गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मैं तो मधुरिम ही रहूँगा, वो गर बागी है तो है।

मैं संयम से चलूँगा वो उच्छृंखल गर है तो है।

मैं मर्यादा में रहूँगा वो अमर्यादित गर है तो है।

मैं सरल हूँ और रहूँगा वो दुष्कर गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मेरी शिष्टता सखा है वो अराजक गर है तो है।

मेरे मनमें भारत बसा है वो बेमन गर है तो है।

मेरे खून में गर्मी बहुत है, वो सर्द  गर है तो है।

मैं तो मिटने को बना हूँ वो अमर गर है तो है।

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मेरा खून है देश को उसका निजी गर है तो है।

मैं तो मिलूँगा धूल में उसे आसमाँ गर है तो है।

मैं मिलजुलकर रहूँगा वो अलहदा गर है तो है।

मेरा स्वर वन्दे मातरम उसको गम गर है तो है

मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

मैं कफ़न बाँधे चला हूँ, वो छिपा गर है तो है।

मैं कोई फानी नहीं हूँ, उसे शक गर है तो है। 

मैं मृदु चुम्बन बाँटता हूँ वो जहर गर है तो है।

मेरा  तो प्रस्थान तय है, वो अजर गर है तो है।

 मैं से आशय राष्ट्रवादी वो अलग गर है तो है।

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काव्य

वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।

January 22, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

वक़्त ने करवट बदल कर गुनगुनाया सुर नया,

मन्थर गति से चल समय नया मौसम बुन गया,

तब्दीलियों ने वक़्त की फिर गीत गाया धुर नया,

समय जो हिस्से का था यह नियति है गुम गया।

वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।

विगत का वह घन घनेरा बिना बरसे उड़ गया,

वक़्त के इस सितम से सीख लो कुछ गुर नया,

मैं तुम्हारे बीच से था इसलिए तुम में गुम गया,

स्पन्दन साज खो चला, गाऊँ कैसे मैं सुर नया।

वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।

शिखरपथ गर चाहते हो सीख लो ये गुण नया,

वक़्त से मिल के चल आगत सुनहरा बुन गया,

वक़्त सबके पास था जो रुकगया वो रुकगया,

जो कुशल था नभ चितेरा वही उससे जुड़गया।

वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।

जो भी पीछे रह गया अन्धेरे पथ पर मुड़ गया,

विजयी हुंकार सुन, आतंक सुर अब चुप गया,

सर्वजन के साथ से सरगम का बनता सुर नया,

वक़्त के संग गर चले सफलतम पथ चुन गया।

वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।

ऐसे ही तो आएगा इस धरा पर अब शुभ नया,

अब जड़ता छोड़दो पथ गुम गया तो गुम गया,

त्यागकर अतीत को पथ चुन नया हाँ चुन नया,

जीत के विश्वास से  रथ विजयपथ पर मुड़गया।

वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।

मैं वक़्त के संग चलरहा नवगीत मेरा बुन गया,

जो मेरी बाधा बने थे कलुष मन अब धुल गया,

मनस पर जो बोझा पड़ा था धीरे धीरे ढुल गया,

अविरल लघु प्रयास से यह तना बाना बन गया।

वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।  

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