परिवर्तन
के एजेंट और जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक
जीवन की यात्रा शैशव से शुरू होकर बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के पायदान पर पैर रखते हुए बढ़ती है लेकिन
जीवन पर्यन्त माँ – बाप के अतिरिक्त एक और जो हमारी खुशी में आनन्दित होने वाला
व्यक्तित्व होता है वह जिसे दुनियाँ शिक्षक के रूप में जानती है। शिक्षक यूँ तो
बहुत सी भूमिकाओं का निर्वहन करता है लेकिन यहाँ शीर्षक के अनुरूप हम उसके दो
रूपों की चर्चा करेंगे।
परिवर्तन
के एजेंट के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of teacher as an agent of change –
परिवर्तन के एजेंट के रूप में परिवर्तन का प्रमुख अभिकर्त्ता शिक्षक इस लिए है क्योंकि मान बाप जिन गुणों को अपने बच्चे में अधूरा छोड़ देते हैं उसकी पूर्णता का गुरुत्तर दायित्व शिक्षक द्वारा निर्वाहित होता है। टूटे फूटे अक्षरों से धारा प्रवाहित सम्प्रेषण के साथ बालक विश्लेषण और संश्लेषण की शक्ति से युक्त होता है। जीवन पर्यन्त विविध परिवर्तनों के मूल में कहीं नींव ईंट के मानिन्द शिक्षक को नकारा नहीं जा सकता। इसीलिये अरस्तु(Aristotle ) ने कहा –
“जन्म
देने वालों से अच्छी शिक्षा देने वालों को अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए; क्योंकि उन्होंने तो बस जन्म दिया है ,पर उन्होंने जीना सिखाया है।”
“Those who give good education should
be given more respect than those who give birth; Because they have just given
birth, but they have taught how to live.”
जीवन
कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of Teacher as Life Skills Trainer-
जीवन
में बहुत कुछ अधिगमित किया जाता है और व्यवहार में परिवर्तन, आदत का बनना, कार्य कुशलता की वृद्धि परिणाम होता है प्रशिक्षण का। इस प्रशिक्षण
क्रिया को सम्पन्न करने का गुरुत्तर
दायित्व है गुरुवर का। यहॉं
जीवन कौशल प्रशिक्षक आशय जीवन काल में उपयोगी कौशलों के प्रशिक्षण प्रदाता से है . स्कूल, समाज
और जेण्डर सुग्राह्यता में यह प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है।
इसीलिये श्रद्धेय अब्दुल कलाम (Abdul Kalam) जी ने कहा –
“If a country is to be corruption free
and become a nation of beautiful minds, I strongly feel there are three key
societal members who can make a difference. They are the father, the mother and
the teacher.”
“अगर किसी देश को भ्रष्टाचार – मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है
तो, मेरा दृढ़तापूर्वक मानना
है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं. पिता, माता और गुरु.”
परिवर्तन
के एजेंट के रूप में शिक्षक / Teachers as an Agent of Change –
शिक्षक
मार्ग दर्शक, परामर्श दाता, नेतृत्व कर्त्ता और सुविधा प्रदाता के रूप में तो परिवर्तन का वाहक
बनता ही है इसके अलावा भी निम्न कारक उसे परिवर्तन के अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित
करते हैं। –
1 – भाषा बोध / Language Comprehension
2 – अधिगम स्तर समायोजन / Learning Level Adjustment
3 – व्यवहार परिवर्तन / Behavior Change
4 – समय के साथ ताल मेल / Rhythm matching with time
5 – लिंग भेद के प्रति सम्यक दृष्टिकोण विकास / Development of proper attitude
towards gender discrimination
6 – सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास / Development of positive attitude
7 – समस्या समाधान योग्यता / Problem solving ability
8 – व्यक्तित्व परिवर्तक / Personality changer
9 – मानसिक, बौद्धिक
उत्थान / Mental, Intellectual
development
10 – सर्वांगीण विकास / All round development
11 – प्रेरणा प्रदाता / Inspiration provider
विलियम
आर्थर वार्ड (William
Arthur Ward) ने
कितने सुन्दर ढंग से समझाया
‘’The mediocre teacher
tells. The good teacher explains. The superior teacher demonstrates. The great
teacher inspires.”
‘‘एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है. एक
अच्छा शिक्षक समझाता है. एक बेहतर शिक्षक कर के दिखाता है.एक महान शिक्षक प्रेरित
करता है.”
जीवन कौशल
प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक / Teacher as Life Skills Trainer –
जीवन में
उत्तरोत्तर विकास के सोपानों से अपने विद्यार्थी को जोड़ने हेतु शिक्षक विविध
कौशलों में पारंगत कर स्थिति से समायोजन करना चाहता है। कुछ कौशलों को इस प्रकार
क्रम दया जा सकता है –
01 – व्यावसायिक दक्षता कौशल / Professional competence skills
02 – सृजनात्मक कौशल / Creative skill
03 – जागरूकता कौशल / Awareness skill
04 – प्रभावी सम्प्रेषण कौशल / Effective communication skill
05 – समस्या समाधान कौशल / Problem solving skill
06 – निर्णयन कौशल / Decision making skills
07 – संवेग नियन्त्रण कौशल / Emotion control skills
ज्ञान की उन्नति और विषयात्मक परिक्षेत्र में विस्तृत परिवर्तन
ज्ञान
की उन्नति से आशय / Advancement of Knowledge
भारतीय
ज्ञानकाश में ज्ञान से प्रदीप्त विद्वानों की एक विस्तृत श्रृंखला है। निरन्तर
बदलते काल खण्डों ने वैश्विक परिक्षेत्र को बहुत से ज्ञानियों के आलोक से प्रदीप्त
किया है ज्ञान एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया
अपने साथ विविध सकारात्मक परिवर्तन करती चलती है जो ज्ञान की उन्नति का पथ प्रशस्त
करते हैं यद्यपि ज्ञान प्राप्ति का पथ दुरूह व कण्टकाकीर्ण होता है पर इसपर चलने
वाले विज्ञजन लगातार होते आये हैं। इस प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में होने वाली, मानव उत्थान में सहयोगी क्रियात्मक तलाश ही
ज्ञान की उन्नति को परिलक्षित करती है।
ज्ञान की उन्नति की यह बयार अपने साथ
परिवर्तनों की आँधी लेकर चलती है जो विविध विषयात्मक परिक्षेत्र में होते हैं।
DISCIPLINARY AREAS / विषयात्मक परिक्षेत्र –
जब
ऋषियों, मनीषियों,
वैज्ञानिकों, ज्ञानियों की ज्ञान पिपासा नित नए परिक्षेत्र
तलाशती है तो विविध क्षेत्र ज्ञान आप्लावित हो जाते हैं और उनमे व्यापक परिवर्तन
होते हैं यहां जिस डिसिप्लिनरी एरिया की बात की जा रही है वह मुख्यतः बी०एड ०
पाठ्यक्रम से सम्बन्धित हैं उन DISCIPLINARY
AREAS / विषयात्मक
परिक्षेत्र को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है
–
(i) – सामाजिक विज्ञान / Social Science
(ii) – विज्ञान / Science
(iii) – गणित / Mathematic
(iv) – भाषाएँ / Languages
ज्ञान
की उन्नति के प्रभाव / Effects of the Advancement of Knowledge –
Or ज्ञान की उन्नति से विस्तृत परिवर्तन / Sea change due to advancement of
knowledge
जिस
तरह से सूर्य की धूप मुठ्ठी में बन्द नहीं की जा सकती, पुष्प की खुशबू विस्तार पाती ही है उसी प्रकार
ज्ञान की उन्नति का प्रभाव समग्र क्षेत्रों पर पड़ता है निश्चित रूप से बी ० एड ०
पाठ्यक्रम में प्रदत्त विषयात्मक परिक्षेत्र पर भी उनका प्रभाव परिलक्षित होता है
यहां सुविधा की दृष्टि से एक -एक का अध्ययन करेंगे –
1 – सामाजिक विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव
/ Impact
of the Advancement of Knowledge on the Social Sciences
A -विविध
विषयों का अद्वित्तीय संयोजन / Unique Combination of Various Subjects
B
– मानवीय
सम्बन्धों के अध्ययन में अमूल्य योगदान / Invaluable contribution to the study of human relations
C – समृद्ध सामाजिक जीवन का आधार / Base of a prosperous social life
D – स्वस्थ सामाजिक परिवेश / Healthy social environment
E - प्राचीन और अद्यतन का अद्भुत समावेश / wonderful mix of ancient and modern
F - भावी जीवन की तैय्यारी/ Preparation for future life
G – जागरूकता विकास समस्या समाधान में सहायक/Awareness Development Helpful in Problem Solving
H – सत्य व ज्ञान की खोज की प्रेरक / Motivator of search for truth and knowledge
2 – विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव / Impact of the Advancement of
Knowledge on the Science
आज
का युग विज्ञान का युग है और विज्ञान के आधार पर भौतिक युग में हम अपने को यथार्थ
के अधिक निकट पाते हैं ज्ञान के प्रस्फुटन से विज्ञान को भी दिशा मिली और इसने
मानव की जिंदगी आसान करने में अहम् भूमिका अभिनीत की। कुछ परिवर्तन के क्षेत्र इस
प्रकार हैं –
01 – स्वास्थ्य व चिकित्सा /
Health and Medicine
02 – कृषि / Agriculture
03 – उद्योग / Industry
04 - सञ्चार / Communication
05 – परिवहन / Transport
06 – मनोरञ्जन/ Entertainment
07 – खाद्यान्न उत्पादन व संरक्षण / Food production and preservation
08 – अन्तरिक्ष / Space
09 – युद्ध / War
10 - घरेलू साधन / Household appliances
उक्त के अतिरिक्त भी बहुत से परिक्षेत्र गिनाये जा सकते हैं उनमें मुख्य है मूल्य सम्वर्धन - बौद्धिक मूल्य (Intellectual Values), नैतिक मूल्य (Moral Values), व्यावहारिक मूल्य (Practical Values), मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological Values), साँस्कृतिक मूल्य (Cultural Values), सौन्दर्यात्मक मूल्य (Aesthetic value),, व्यावसायिक मूल्य (commercial value) आदि।
गणित
के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes due to advancement of
knowledge in the field of mathematics –
दुनियाँ
में ज्ञान का सागर हिलोरें मार रहा है बहुत सा ज्ञान कल्पना से यथार्थ की और चलता
है तो बहुत सा यथार्थ की मज़बूत नीव पर समस्या समाधान की योग्यता रखता है गणितीय
आधार ऐसा ही है जिसमें एक सिद्धान्त एक दिशा का बारम्बार सत्य यथार्थ बोध कराता
है। ज्ञान की उन्नति ने इसे नीरसता से सरस यथार्थ की और अग्रसारित किया है कुछ
परिवर्तन इस प्रकार हैं –
0 1 – बौद्धिक मूल्य/ Intellectual Value
0 2 - नैतिक मूल्य / Moral Values
0 3 – सामाजिक मूल्य / Social Value
0 4 – प्रयोगात्मक मूल्य / Experimental value
0 5 – अनुशासनात्मक मूल्य / Disciplinary Values
0 6 – सांस्कृतिक मूल्य / Cultural Values
0 7 – जीविको पार्जन मूल्य/ Livelihood Earning Value
0 8 – मनोवैज्ञानिक मूल्य/ Psychological Value
0 9 – कलात्मक मूल्य/ Artistic value
1 0 – अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य/ International value
वास्तव में मानव मानस को सत्य का महत्त्वपूर्ण
बोध गणित ने कराया और दिशा दी इसीलिये प्लेटो महोदय को कहना पड़ा –
“Mathematics is a subject which provides
opportunities for training the mental powers.”
”गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को
प्रशिक्षित करने के अवसर प्रदान करता है।”
भाषा
के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes
brought about by the advancement of knowledge in the field of language –
भाषा ही वह माध्यम है जिसने दूरियों को मिटा निकटता स्थापित करने का
काम किया है ज्ञान की प्रगति ने हमें विविध भाषाओं को समझने में मदद की है और सभी
क्षेत्रों में उच्च प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं परिवर्तनों को इस प्रकार इंगित किया
जा सकता है –
1- ज्ञान
प्राप्ति का प्रमुख साधन / Main source of knowledge
2 – राष्ट्रीय एकता की दिशाबोधक /Guide of National
Integration
3 – विचार विनियम में सरलता / Ease of exchange of
thoughts
4 – व्यक्तित्व निर्माणक/ Personality builder
5 – अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को बढ़ावा /Promotion of
international relations
6 – सामाजिक जीवन का प्रगति आधार / Progress Basis of
Social Life
7 – चिन्तन, मनन का आधार / Thinking, the
basis of meditation
8 – प्रगति का आधार /The basis of progress
9 – कला,सभ्यता,संस्कृति,साहित्य का आधार /The
basis of art, civilization, culture, literature
अब तक का प्रस्तुतीकरण यह भी बोध कराता है कि
और भी बहुत सारे परिवर्तन इसमें शामिल होने से रह गए हैं छोटे से काल खंड में
विवेचना दुष्कर है जैसे शोध परिक्षेत्र
क्रान्ति इसी ज्ञान प्रस्फुटन का परिणाम है अन्यथा यह तीव्रता संभव ही नहीं
थी। ज्ञान की उन्नति मानव को सर्वोत्कृष्ट प्रदान करने में सभी परिक्षेत्रों में
मदद करेगी और सभी क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन निरंतर होते रहेंगे।
भारत वह देश है जो सनातन ज्ञान के अविरल प्रवाह का हामी रहा है ऋषि मुनि परम्परा से आज तक शिक्षा ने विविध आयाम तय किये हैं और आज यह आर्थिक विकास के प्रमुख सम्बल के रूप में जानी जाती है। बदलते सामाजिक परिवेश में जन जन की आकांक्षा के अनुरूप उद्देश्य की प्राप्ति में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आज जब कि यह कहा जाने लगा है की ज्ञान, ज्ञान के लिए नहीं। तो नई भूमिका अपने आप ही बन जाती है और शिक्षा नए परिवेश में सामाजिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बन जाती है। शिक्षा की विविध शाखाएं अर्थोपार्जन हेतु जनमानस की आवश्यकता बन जाती हैं। आर्थिक विकास भी नए आयाम की उपलब्धता हेतु शिक्षा की भूमिका को नकार नहीं सकता।
आर्थिक विकास से आशय / Meaning of Economic Development
आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जो जन जन की आय में उत्तरोत्तर वृद्धि
का सूचक है प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि उस राष्ट्र की आर्टिक प्रगति का
सूचक है लेकिन सकल राष्ट्रीय आय सामान्यतः सकल राष्ट्रीय उत्पाद द्वारा तय होती
है। भारतीय परिवेश में आर्थिक विकास वह अवधारणा है जो आर्थिक,सामाजिक,व
सांस्कृतिक विकास में सकारात्मक योग देती है। परिवर्तन अवश्यम्भावी है लेकिन जब
परिवर्तन राष्ट्र के आर्थिक उत्थान का कारण बने तो शैक्षिक उपादानों का महत्त्व
स्वयं सिद्ध हो जाता है।
जब देश के समस्त साधनों का कुशलतापूर्ण दोहन
देशी साधनों द्वारा इस प्रकार किया जाता है कि उससे प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय
आय सकारात्मक रूप से दीर्घ काल के लिए प्रभावित हो व मानव विकास सूचकांक व मानवीय
जीवन स्तर प्रगति के उत्तरोत्तर सोपान तय करने लगे तब यह आर्थिक विकास का द्योतक
होगा।
आर्थिक विकास की परिभाषा / Definition of Economic Development
कुछ विद्वानों के आर्थिक विकास सम्बन्धी विचारों को कृतज्ञता पूर्वक
हम इसे अधिगमित करने हेतु प्रयुक्त कर सकते हैं।
मेयर व बाल्डविन
महोदय के अनुसार-
“आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थ व्यवस्था की
वास्तविक राष्ट्रीय आय दीर्घकाल में बढ़ती है।”
“Economic
development is the process by which the real national income of an economy
increases in the long run.”
विलियमसन तथा बर्टिक
ने कहा कि
“आर्थिक विकास उस प्रक्रिया को सूचित करता है
जिसके द्वारा किसी देश अथवा प्रदेश के निवासी उपलब्ध संसाधनों का अयोग प्रति
व्यक्ति वस्तु व सेवाओं के उत्पादन में नियमित वृद्धि के लिए करते हैं।”
“Economic development refers to the process by
which the residents of a country or region utilize the available resources for
a steady increase in per capita production of goods and services.”
जैकब वाइनर ने आर्थिक विकास को पारिभाषित करते हुए कहा कि-
”आर्थिक विकास प्रति व्यक्ति आय के स्तरों में
वृद्धि अथवा आय के विद्यमान उच्च स्तरों के अनुरक्षण से संबन्धित है।”
“Economic development is related to increase in the levels
of per capita income or maintenance of existing high levels of income.”
आर्थिक विकास के घटक / Components of Economic Development
मानव समाज की इकाई है सामाजिक आर्थिक स्तर का उन्नयन मानव की आर्थिक
प्रगति से सीधे सम्बन्ध रखती है आर्थिक विकास के सुनिश्चयन हेतु निम्न घटक
महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।
1 – मानवीय घटक
i – अनुकूल वातावरण / friendly
environment
ii – सक्षम प्रबन्धन / Efficient
Management
iii – कुशल श्रमिक / Skilled
workers
iv – उत्तम विकास योजना /Good
development plan
v – आत्म प्रेरणा / self
motivation
vi – उच्च स्तरीय तकनीकी प्रशिक्षण /high
level technical training
vii – मानवीय शक्ति / human power
2 – आर्थिक घटक
i – सुदृढ़ परिवहन व्यवस्था / Strong
Transport System
ii – प्राकृतिक संसाधन / Natural
Resources
iii – पूँजी /Capital
iv – जनसँख्या / Population
v – तकनीकी प्रगति /Technological
Progress
vi – पूँजी उत्पादन अनुपात / Capital
Output Ratio
vii – शासकीय नीतियाँ / Government
Policies
आर्थिक विकास के उद्देश्य / Aims of Economic Development –
भारत में विविध पञ्च वर्षीय योजनाओं द्वारा इन उद्देश्यों की
प्राप्ति के प्रयास हुए लेकिन गलत आर्थिक नियोजन व स्वार्थपरता के कारण वे सम्यक
गति न पकड़ सके। सैद्धान्तिक रूप से इनमें निम्न उद्देश्य पारिलक्षित हुए –
01 – आर्थिक
विकास को गति /Speed up economic
development
02 – आत्मनिर्भरता
/ Self reliance
03 – रोजगार
की उपलब्धता / Availability of employment
04 – गरीबी
उन्मूलन / Poverty Alleviation
05 – निवेश
वृद्धि / Investment Growth
06 – कुशल
श्रम में वृद्धि / Increase in skilled labor
07 – गरीबी
अमीरी की खाई कम करना / Reducing the gap between
poverty and wealth
08 – स्वदेशी को बढ़ावा
/ Promotion of indigenous
आर्थिक विकास
शिक्षा का योगदान /Contribution of
Education to Economic Development
1 – कुशल श्रम की उपलब्धता / Availability of
skilled labor
2 – विविध परिक्षेत्र हेतु विशेषज्ञ /Specialist for
various fields
3 – तकनीकी क्रान्ति /Technological revolution
4 – ग्रामीण उद्योगों हेतु प्रशिक्षण / Training for
Rural Industries
5 – कार्य कुशलता में वृद्धि / Increase work
efficiency
6 – उच्च शिक्षा को प्रश्रय / Patronage of higher
education
7 – प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग /Use of natural
resources
8 – सम्यक प्रबन्धन /Proper management
उक्त विवेचन यह स्पष्ट करता है कि बिना शिक्षा के प्रगति को पंख नहीं
लग सकते यदि बदलती दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलना है तो आर्थिक प्रगति का
सुनिश्चयन करना ही होगा जो बिना गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के सम्भव नहीं।
आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद कुछ सङ्कीर्ण
नेतृत्व शक्तियों की स्वार्थपरता के कारण घाटे का सौदा रहा है और हमारी उदारता
हमें बहुत भारी पड़ी है एक रुपया बराबर एक डॉलर से प्रारम्भ सफर आज रुपए के भारी
अवमूल्यन तक जा पहुँचा है। उदारीकरण विश्व बन्धुत्व या वैश्विक परिवार के विचार
तले पनपने वाली सह अस्तित्व वाली विचार धारा है।
यहाँ जिस उदारीकरण की बात की जा रही है वह
शैक्षिक परिक्षेत्र से सम्बन्धित है। पहले राजा, जमींदार, प्रजा, कारिन्दे आदि शब्द आम थे और शासक वर्ग व कार्य करने वाले
वर्ग हेतु अलग अलग तरह की शिक्षा का प्रावधान था और यह अन्तर कार्य की प्रकृति के
कारण था धीरे धीरे राजा राजवाड़ा वाली व्यवस्था बदल गई और शिक्षा का भेद भी पुरानी
बात हो गई। आज अधिकाँश जगह लोकतान्त्रिक व्यवस्था है और शिक्षा की एक उदार
व्यवस्था है जो किसी से कोई भेद नहीं करती।
उदारवादी
शिक्षा से आशय / Meaning of liberal education –
वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य यह परिलक्षित करता है
कि आज सभी को सभी विषय पढ़ने का अधिकार है। योग्यता, रूचि और आर्थिक क्षमता के आधार पर किसी भी शैक्षिक विषय का ज्ञान
प्राप्त किया जा सकता है इसी को उदारवादी शिक्षा के नाम से जाना जाता है।
प्रसिद्द शिक्षाविद सुरेश भटनागर व मुनेन्द्र कुमार अपनी पुस्तक ‘समकालीन भारत और शिक्षा’ में लिखते हैं –
“उदार शिक्षा सामान्य शिक्षा है, जिसमें साहित्य, कला, सङ्गीत, इतिहास,नीति शास्त्र,राजनीति आदि की शिक्षा की प्रधानता होती
है।”
“Liberal
education is general education, in which education of literature, art, music,
history, ethics, politics, etc. has priority.”
इन विद्वानों ने उदारवादी शिक्षा से इतर अर्थों में उपयोगिता वादी
शिक्षा को लेते हुए कहा –
“उपयोगितावादी शिक्षा में आर्थिक प्रश्न जुड़े
रहते हैं। यह व्यावसायिक, कार्योन्मुख, क्रिया केन्द्रित, अर्थोपार्जन व जीविको पार्जन के उद्देश्यों को
लेकर चलती है। इसमें कला, शिल्प, व्यवसाय, रोजगार परक विषयों की प्रधानता होती है।”
“Economic questions remain attached to
utilitarian education. It runs for the purposes of vocational, work-oriented,
activity-oriented, earning and earning a living. There is importance of art,
craft, business, employment-oriented subjects in this.”
आज की उदारवादी शिक्षा में उक्त दोनों के दर्शन
होते हैं व्यवहार में कोइ भेद नहीं दीखता। कतिपय विद्वान् आज के परिदृश्य में
उदारवादी और उपयोगितावादी शिक्षा के विचार की उपादेयता नहीं स्वीकारते।
उदारवादी शिक्षा का महत्त्व / Importance of liberal education :-
वर्तमान परिदृश्य हमें उदार होने हेतु निर्देशित अवश्य करता है लेकिन
पूर्ण सावधानी की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। हमें ध्यान रखना होगा की हमारी
उदारता हमें और आने वाली पीढ़ी के लिए नुकसान दायक न बन पड़े। निःस्वार्थ भाव से और
सचेष्ट रहकर उदारवादी शिक्षा अपनाने के महत्त्व को इस प्रकार बिन्दुवार वर्णित
किया जा सकता है –
1 – आत्म
अनुशासन स्थापन / Self
discipline
2 – उत्तरदायित्व
युक्त स्वतन्त्रता / Freedom
with responsibility
3 – सकारात्मक
व्यक्तिगत उद्देश्य निर्धारण / Positive personal goal setting
4 – संस्थागत
उच्च प्रतिमान स्थापन / Institutional
high standard setting
5 – सह
अस्तित्व धारणा का विकास / Development of coexistence concept
6 – ध्येय
उन्मुख / Goal oriented
7 – स्वावलम्बन
व उच्च आदर्श स्थापन / Self
reliance and high ideal setting
8 – सद्प्रेरणा
/ motivation
9 – संस्कृति
व सभ्यता का संरक्षण व विकास / Protection and development of culture and civilization
उदारीकरण का मूल्याँकन / Evaluation of Liberalization
उदारीकरण के निष्पक्ष मूल्याङ्कन हेतु उसके लाभों और सीमाओं पर
दृष्टिपात करना आवश्यक है आइए इस के प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करते हैं।
उदारीकरण के लाभ / Benefits of liberalization –
1 – स्वस्थ
प्रतिस्पर्धा / healthy
competition
2 – विश्व
स्तरीय उत्पादन /World
class production
3 – उत्पादन
क्षमता में वृद्धि / Increased
production capacity
4 – तुलनात्मक
ज्ञानात्मक वृद्धि / Comparative
cognitive growth
5 – शोध
स्तर का उच्चीकरण / Upgradation
of research level
6 – तुलनात्मक
अध्ययन सम्भव / Comparative
study possible
उदारीकरण की सीमाएं / Limitations of Liberalization –
उदारीकरण के लाभ अधिकाँश सैद्धान्तिक हैं व्यावहारिक रूप से इसकी
कमियाँ जग जाहिर हैं जिन देशों में राष्ट्रवादी ज्वार देखने को नहीं मिलता या काम
मिलता है वहाँ इसके नकारात्मक प्रभाव अधिक देखने को मिलते हैं। यथा –
1 – स्वदेशी
उद्योगों पर सङ्कट / Crisis
on indigenous industries
2 – बहुराष्ट्रीय
उद्योगों का बेलगाम प्रभाव / Rampant influence of multinationals
3 – शोध
साहित्य की निर्बाध चोरी / Open plagiarism
4 – मूल्यों
में अवनमन / Depression
in Values
5 – राजनीतिक
भ्रष्टाचार को बढ़ावा / Promotion
of political corruption
6 – मुद्रा
अवमूल्यन / Currency
devaluation
7 – राष्ट्रीय
हितों का ह्रास / Loss of
national interest
8 – स्वदेशी
तकनीक को नुकसान / Loss
of indigenous technology
9 – अस्वस्थ
प्रतिस्पर्धा / Unhealthy
competition
उदारीकरण के सच्चे लाभ आदर्श वैश्विक परिदृश्य
में ही सम्भव है सारे राष्ट्र अपने दृष्टिकोण से विचार करते हैं और अभी ऐसी स्थिति
नहीं बनी है सारे राष्ट्र, विश्व को एक परिवार मानने लगे इसीलिये भारत को
बहुत सोच समझ कर सीमित उदारीकरण को राष्ट्रोत्थान के दृष्टिकोण से करना होगा।
स्वयम पहल करके विश्व स्तरीय नेतृत्व को दिशा दी जा सकती है लेकिन हवन करते हाथ
नहीं जलने चाहिए।
वेदान्त दर्शन का नाम लेते ही बोध हो जाता है कि इसमें वेद का अन्तिम
भाग सामाहित है वेद के दो भाग हैं जिन्हे हम ब्राह्मण और मन्त्र नाम से जानते हैं
यज्ञ अनुष्ठान आदि का वर्णन करने वाला भाग ब्राह्मण नाम से जाना जाता है
और देवता की स्तुति में प्रयुक्त स्मारक वाक्य
मन्त्र का बोध कराता है।इन मन्त्रों के समुदाय को संहिता नाम से जाना जाता है ऋक ,यजुः ,साम व अथर्व ये संहिता हैं अर्थात सभी मन्त्र
ऋग्वेद, सामवेद,
यजुर्वेद,और अथर्व वेद नामक संहिताओं में संकलित हैं
ब्राह्मण भाग में कर्म काण्ड की और इस भाग में ज्ञान काण्ड की प्रमुखता है वेदों
का अन्तिम भाग उपनिषद कहलाता है इसे वेदान्त भी कहते हैं।
बादरायण व्यास (चतुर्थ शताब्दी) द्वारा लिखे गए
‘ब्रह्म सूत्र ‘को वेदान्त का आदि ग्रन्थ माना जाता है इसके पश्चात इसपर विविध भाष्य
ग्रन्थ लिखे गए और वेदांत की विविध शाखाओं उप शाखाओं का अभ्युदय हुआ जिसमें शंकर
नवीं शताब्दी का अद्वैत, रामानुजाचार्य तेरहवीं शताब्दी का
विशिष्टाद्वैत, मध्वाचार्य व निम्बार्क तेरहवीं शताब्दी का द्वैत, श्री कण्ठ तेरहवीं शताब्दी का शैव
विशिष्टाद्वैत, श्री पति चौदहवीं शताब्दी का वीर शैव
विशिष्टाद्वैत और बल्लभाचार्य सोलहवीं शताब्दी का शुद्धाद्वैत प्रमुख है। इनमें शंकर और रामानुजाचार्य शिक्षा के
दृष्टिकोण से प्रमुख स्वीकारे जाते हैं।
किसी भी दार्शनिक विचारधारा को समझने के लिए उस
दर्शन की तत्त्व मीमांसा (Metaphysics०), ज्ञान व तर्क मीमांसा (Epistemology
and logic), तथा
मूल्य व आचार मीमांसा(Axiology and Ethics) को जानना आवश्यक है अतः पहले यही समझने का
प्रयास करेंगे।
वेदान्त दर्शन की तत्त्व मीमांसा (Metaphysics
of Vedant Philosophy)
शंकर के अनुसार ब्रह्म ही अन्तिम सत्य (Ultimate
Reality) है
जो ब्रह्माण्ड का कर्त्ता व उपादान कारण होने के साथ अनादि,
अनन्त और निराकार है जगत नाशवान व असत्य है
मानव ज्ञान का स्रोत व अनन्त शक्ति को धारण करने के साथ आत्मघाती है और आत्मा
सर्वज्ञ और सर्व शक्तिमान है। शंकर के अनुसार तत्त्वमसि से आशय है कि तुम (आत्मा)
ब्रह्म हो। रामानुजाचार्य के अनुसार तत्त्वमसि से आशय है ब्रह्म तथा ईश्वर एक है
शंकर ने ब्रह्म को मूल तत्त्व व रामानुजाचार्य ने इसके तीन मूल तत्त्व स्वीकारे
हैं -चित् (चेतन,आत्मा ), अचित् (अचेतन, जड़ ) और ब्रह्म (ईश्वर) । सृष्टि के विनाश होने
पर चित् (चेतन,आत्मा
), अचित्
(अचेतन, जड़
) सूक्ष्म रूप धारण कर लेते हैं और ईश्वर विशिष्ट ही शेष रह जाता है इसीलिये इसे
विशिष्टाद्वैत दर्शन कहते हैं। शंकर के
दर्शन में ब्रह्माण्ड का कर्त्ता व उपादान कारण में भेद न होने के कारण इसे अद्वैत
दर्शन कहते हैं।
वेदान्त दर्शन की ज्ञान व तर्क मीमांसा (Epistemology and logic of Vedant
Philosophy)
शंकर का दर्शन ज्ञान को दो भागों में विभाजित करता है –
1 – परा (आध्यात्मिक) – इनके अनुसार पराविद्या ही मुक्ति का साधन बन
सकती है वेद, ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषद, गीता
आदि के ज्ञान को ये इस श्रेणी में स्थान देते हैं।
2 – अपरा (लौकिकव व्यावहारिक) – वस्तु जगत और मानव जीवन के विभिन्न पक्षों व
ज्ञान को इन्होने अपरा की श्रेणी में रखा है जो मुक्ति का साधन कभी नहीं बन सकते।
रामानुजाचार्य महोदय ने भी ज्ञान को दो भागों में विभाजित
किया है –
1 – धर्मी भूत ज्ञान – इनका इस ज्ञान से आशय कर्त्ता रूप ज्ञान से
है।
2 – धर्म भूत ज्ञान – इस ज्ञान में ये कर्म में विद्यमान ज्ञान को
समाहित करते हैं। ये आत्मोन्नति हेतु इस ज्ञान का समर्थन करते हैं।
वेदान्त दर्शन की मूल्य व आचार मीमांसा (Axiology
and Ethics of Vedant Philosophy)
शंकर के अद्वैत दर्शन के अनुसार वर्णक्रम के प्रति निष्ठां से
उद्देश्य प्राप्ति सुगम होती है अंतिम उद्देश्य मुक्ति को मानते हुए ये इसके दो
विभाग करते हैं एक जीवन मुक्ति और दूसरे विदेह मुक्ति जीवन मुक्ति से आशय है कि
जीवन जीते हुए कर्म फल से अनासक्त होना। विदेह मुक्ति से आशय आवागमन के चक्कर से
मुक्ति से है अर्थात जीवन के अन्त में ब्रह्म तत्त्व की प्राप्ति।
रामानुजाचार्य महोदय भी शंकर की भाँति जीवन का अन्तिम उद्देश्य
मुक्ति ही मानते हैं लेकिन ये जीवन मुक्ति को मुक्ति स्वीकार नहीं करते उनकी
दृष्टि में ब्रह्म (ईश्वर) की प्राप्ति ही मुक्ति है जो भक्ति से मिलती है।
वेदान्त दर्शन की परिभाषा / Definition of of Vedanta philosophy –
वेदान्त दर्शन को प्रो ० रमन बिहारी लाल ने बहुत सरल शब्दों में यूँ
संजोया है –
“वेदान्त दर्शन भारतीय दर्शन की वह विचारधारा है जो इस ब्रह्माण्ड को
ईश्वर (ब्रह्म) द्वारा निर्मित मानती है और उसे इस सृष्टि की स्थिति, उत्पत्ति तथा लय का कारण मानती है यह आत्मा को ब्रह्म का अंश मानती है
और यह प्रतिपादन करती है कि मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य मुक्ति है जिसे ज्ञान
योग, कर्म योग, राज
योग और भक्ति योग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।”
“Vedanta philosophyis that school of Indian philosophy
which considers this universe to be created by God (Brahm) and considers it to
be the cause of the condition, origin, and rhythm of this universe. It
considers the soul as a part of Brahma and it renders that man The ultimate aim
of life is salvation which can be achieved through Jnana Yoga, Karma Yoga, Raja
Yoga, and Bhakti Yoga.”
वेदान्त दर्शन के मूल सिद्धान्त / Basic
principles of Vedanta philosophy –
वेदान्त दर्शन के मूल तत्वों व सिद्धान्तों को इस प्रकार विवेचित
किया जा सकता है –
1 – ब्रह्माण्ड
ब्रह्म (ईश्वर) द्वारा निर्मित /Universe created by Brahma (God)
2 – ब्रह्म
और जगत में ब्रह्म विशिष्ट /Brahma special in Brahma and the world
3 – आत्मा
के ब्रह्म अंश सम्बन्धी विचार /Thoughts on the Soul as the Part of Brahma
4 – मनुष्य
अनन्त ज्ञान और शक्ति का स्रोत / Man is the source of eternal knowledge and power
5 – मनुष्य
का विकास उसके कर्मों पर निर्भर / Development of man depends on his deeds
6 – मानव
जीवन का अन्तिम उद्देश्य मुक्ति / Salvation is the ultimate aim of human life
7 – ज्ञान
योग, भक्ति योग, कर्म
योग के साथ साधन चतुष्टय आवश्यक /
Along with Gyan
Yoga, Bhakti Yoga, Karma Yoga, Sadhana Chatushtaya is essential.
8 – ज्ञान
हेतु श्रवण, मनन, निदिध्यासन
आवश्यक / Listening,
meditation, Nididhyasan is necessary for knowledge
9 – उत्तम
श्रवण, मनन, निदिध्यासन हेतु साधन चतुष्टय आवश्यक /
Sadhana Chatushtaya is
necessary for good hearing,
meditation and Nididhyasan.
i – नित्य अनित्य विवेक
ii – भोग विरक्ति
iii – शम दम संयम
iv – मुमुक्षत्व
वेदान्त दर्शन और शिक्षा /Vedanta
philosophy and Education
आज विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश भारत शिक्षा पर खुल कर विचार
करता है और नए नए आयामों के शिखर को छूने का प्रयास कर रहा है लेकिन हम भारतीय आज
भी जड़ों से नहीं कटे हैं। और जीवन की समग्रता पर विचार करने वाले शंकराचार्यजी और
रामानुज सरीखे विद्वानों के कथनों का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर वेदान्त दर्शन के
गूढ़ तत्वों का मनन करते हैं। यद्यपि इन्होने शिक्षा पर स्वतंत्र रूप से विचार से नहीं
किया है लेकिन इनका मीमांसात्मक विवेचन आज के मानव को सार्थक शिक्षात्मक दिशा देने
में सक्षम है।
शिक्षा का सम्प्रत्यय / Concept of Education –
शंकर का स्पष्ट रूपेण मानना है की शिक्षा का परम उद्देश्य मुक्ति
प्रदान करना है जब मानव में नित्य अनित्य विवेक जागृत हो जाता है और वह समझ जाता
है कि ब्रह्म सत्य है और जगत नश्वर है वह सबमें स्वयं को और स्वयं में सबको देखने
लगता है। शिक्षा अपने उद्देश्य की और अग्रसारित हो जाती
है अर्थात वे छान्दोग्य उपनिषद का सा
विद्याया विमुक्तए का समर्थन करते हैं और शिक्षा को मुक्ति का साधन मानते हैं।
शिक्षा के अंगों पर प्रभाव / Impact on education
शिक्षा के उद्देश्य / Aims of Education
ये जीवन के दो पक्ष परा (आध्यात्मिक) और अपरा
(व्यावहारिक) स्वीकारते हैं और जीवन के उद्देश्यों को इसी आधार पर गठित करते हैं
जिसे इस प्रकार दर्शा सकते हैं –
परा (आध्यात्मिक) उद्देश्य –
1 – मुक्ति का उद्देश्य
अपरा (व्यावहारिक उद्देश्य) –
1 – शारीरिक विकास
2 – मानसिक विकास
3 – नैतिक विकास
4 – वर्ण के अनुसार शिक्षा
5 – साधन चतुष्टय प्राशिक्षण
6 – सर्वाङ्गीण व्यक्तित्व विकास
7 – ब्रह्म ज्ञान प्राप्ति
पाठ्यक्रम
शंकर के अनुसार परा एवं अपरा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु
विविध विषयों का समर्थन करते हैं यथा आध्यात्मिक उत्कर्ष हेतु साहित्य, धर्म, दर्शन
जैसे परमार्थिक विषयों को शामिल करना चाहते हैं और परमार्थिक क्रियाओं अर्थात
अष्टांग योग का समर्थन करते हैं।
परा (व्यावहारिक) उत्थान हेतु भाषा, चिकित्सा शास्त्र, वर्ण
क्रम, गणित के साथ व्यायाम, आसन, ब्रह्मचर्य
को भी शामिल करना चाहते हैं।
रामानुजाचार्य के विचार आधुनिक विचार धारा का समावेशन करते प्रतीत
होते हैं इनके अनुसार सभी जीव ईश्वर की अनुपम रचनाएँ हैं इनमें वर्ण के अनुसार भेद
न करना चाहिए कर्म के अनुसार भेद स्वाभाविक रूप से दृष्टिगत होगा ही। अतः
स्वकर्म के कुशलता पूर्वक सम्पादन हेतु
कर्मानुसार समान शिक्षा का विधान होना चाहिए।
शिक्षण विधियाँ / Teaching Methods
इन्होने अपने शिक्षण उद्देश्यों के अनुरूप ही शिक्षण विधियों का चयन
किया जिन्हे इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –
i – प्रश्नोत्तर
विधि
ii – प्रवचन
विधि
iii – व्याख्या विधि
iv – स्वाध्ययन
विधि
v – प्रत्यक्ष
विधि
vi – श्रवण, मनन,निदिध्यासन
विधि
vii – अध्यारोप – अपवाद विधि
viii – विश्लेषण विधि
अनुशासन / Discipline –
ये आत्म अनुशासन को सर्वोत्कृष्ट स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार
एकाग्रता ही सच्चा अनुशासन लाती है। जब मन, बुद्धि,अहंकार, पर
आत्म नियन्त्रण स्थापित हो तो अनुशासन होगा। जब बिना किसी बाहरी दवाब के अपने आत्म
तत्त्व से प्रेरित होकर सदमार्ग का अनुसरण किया जाए तब सच्चा अनुशासन स्थापित
होगा। शंकर की दृष्टि से सच्चा अनुशासन तभी स्थापित होगा जब अष्टांग के योग मार्ग का अनुसरण होगा।
शिक्षक और शिक्षार्थी / Teacher and Learner
वेदान्त दर्शन की उपादेयता इस सम्बन्ध में विशिष्ट है शङ्कर का
स्पष्ट मानना है की गुरु अपने विद्यार्थी को व्यावहारिक जीवन की शिक्षा दे और साथ
ही यह बोध कराये कि वह ब्रह्म है। ‘तत्त्व
मसि’ अर्थात तू ही ब्रह्म है अन्ततः शिक्षार्थी यह
महसूस करेगा कि ‘अहम् ब्रहास्मि’ अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ।
रामानुजाचार्य के विचार इस सम्बन्ध में पृथक हैं ये मानते हैं की कोइ
पूर्ण नहीं हो सकता ,शिक्षक भी। शिक्षक को फिर भी ज्ञान व आचरण हेतु
उत्कृष्ट प्रयास निरन्तर करते रहने चाहिए।
वेदान्त के अनुसार प्रत्येक शिक्षार्थी अनन्त ज्ञान और ऊर्जा का
स्रोत है और उनमें भिन्नता कर्म की भिन्नता के कारण ही दृष्टिगत होती है।शंकर के
अनुसार ब्रह्म की प्राप्ति हेतु इच्छुक छात्रों को साधन चतुष्टय का अनुपालन करने
के साथ गुरु में श्रद्धा,
भोग से विरक्ति, इन्द्रिय निग्रह, मन
की एकाग्रता के गुणों में उत्तरोत्तर प्रगति के प्रयास अवश्य करने चाहिए।
शिक्षालय / School
नगर के कोलाहल से दूर प्राकृतिक सुरम्य वातावरण से युक्त गुरु गृह ही
उस काल के विद्यालय थे। व्यावहारिक व आध्यात्मिक शिक्षा समुदायों और गुरुकुलों में
दी जाती थी। यहाँ जीवन मुक्ति और साधन चतुष्टय पुष्पित पल्लवित करने के सार्थक
प्रयास होते थे।
वेदान्त दर्शन का मूल्याङ्कन / Evaluation
of Vedanta Philosophy
किसी
भी दर्शन का मूल्याङ्कन उसके गुण दोषों के आधार पर किया जाता है और सामान्यतः उस
काल विशेष के विशिष्ट कालखण्ड की जगह आज के अनुसार समीक्षा की जाती है आइए इस
दर्शन के गन दोषों पर विचार करते हैं।
A – वेदान्त दर्शन के गुण
1 – व्यावहारिकता
2 – इहलोक और अध्यात्म का समन्वय
3 – गुरु शिष्य आदर्श सम्बन्ध
4 – उच्च आदर्श अनुपालन
5 – शिक्षण विधियां
6 – मूल्य बोध
B
– वेदान्त
दर्शन की सीमायें
1 – जन शिक्षा का अभाव 2 – अध्यात्म पर अधिक बल
उपसंहार
/ Epilogue
भारत में शङ्कर के बाद जो भी दार्शनिक विचार
धारा फलीफूली उस पर वेदान्त का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है अद्यतन काल तक की
विकास यात्रा के प्रमुख चिन्तक दयानन्द सरस्वती, मोहन दास करम चन्द्र गाँधी, विवेकानन्द, रबीन्द्र नाथ टैगोर, अरविन्द घोष सभी कहीं न कहीं वेदान्त से प्रभावित रहे
हैं। किसी को योग
क्रिया अच्छी लगती है ,कोई
व्यावहारिकता तो कोई इसके मूल्यों पर नत मस्तक है।
वास्तव में वेदान्त समग्र दृष्टिकोण है समस्त
धर्म व दर्शन इसकी प्रस्फुटित शाखाएं हैं
इसे सार्वभौम व सार्वकालिक दर्शन कहना न्याय सांगत होगा। आज हम जिस धर्म
निरपेक्ष, समाजवादी और वर्गहीन व्यवस्था की बात करते हैं
उसके बीज इसमें संरक्षित हैं। आज की शिक्षा यदि वेदान्त पर आधारित हो तो मन्तव्य
प्राप्ति अपेक्षाकृत सुगम हो जाएगी।