शिक्षा
पर तार्किक प्रत्यक्षवाद का प्रभाव (Impact Of Logical
Positivism On Education)-
तार्किक
प्रत्यक्षवाद ने शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्य क्रम, शिक्षक एवम शिक्षार्थी,
शिक्षण विधियों व अनुशासन को स्वानुसार विवेचित
किया जिसे इस प्रकार अभिव्यक्त कर सकते हैं।
उद्देश्य
( Aims ) –
चूंकि
ये ज्ञान का आधार अनुभव जन्य ज्ञान को मानते हैं इस लिए सार्थक निरर्थक, ज्ञान अज्ञान एवम नीर क्षीर विवेक में समर्थ
ज्ञान को शिक्षा के उद्देश्यों में शामिल करना चाहते हैं और भाषा व स्वशक्ति
परिमार्जन पर जोर देते हुए इस प्रकार उद्देश्य निर्धारण करते हैं –
[A ]- सृजनात्मक शक्ति का विकास [Development Of Creativity
]
[B ]- भाषा पर अधिकार [Command on Language]
[C ]- शारीरिक विकास व इन्द्रिय प्रशिक्षण [Physical
Development and Sensuous Training ]
[D ]- विवेक जागरण [ Intellectual Awakening ]
[E ]- विश्वसनीयता एवम वैद्यता [Reliability and
Validity]
[F ]- व्यावसायिक दक्षता [Vocational Efficiency]
पाठ्य
क्रम [Syllabus ]-
इन्होने
विचार, अध्यात्म, पूर्व
निश्चित नैतिकता का खण्डन कर प्राकृतिक विज्ञानों की सत्यता को सिद्ध कर पाठ्यक्रम
हेतु उपयोगी माना। प्रत्यक्ष अनुभव पर अधिक जोर देने के कारण भाषा,
व्याकरण, तार्किकता के महत्त्व को स्वीकार किया।
शिक्षक
और शिक्षार्थी [Teacher
And Learner]-
ये
वैज्ञानिक सोच वाले यथार्थ के धरातल पर खड़े अध्यापकों को शिक्षा प्रसार हेतु
आवश्यक मानते हैं शिक्षा को बालकेन्द्रित करते हुए विद्यार्थियों को उनकी रूचि मानसिक
योग्यता क्षमता को ध्यान में रखते हुए
शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
अनुशासन
[Discipline ] –
ये प्रमाणिकता, वस्तुनिष्ठता, यथार्थता, अनुभववादिता, कट्टरता विरोध धार्मिकनैतिकता विरोध का समर्थन
कर अनुशासन स्थापित करना चाहते हैं।
शिक्षण
विधि [Teaching
Methodology ]-
इस
दर्शन के आधार पर कहा जा सकता है कि ये इन प्रमुख शिक्षण विधियों के समर्थक हैं। –
(1)- करके सीखना (Learning
By Doing)
(2)- भाषा विश्लेषण विधि (Language Analytical Method)
(4)- विज्ञान प्रयोगात्मक विधि (Scientific Experimental Method)
(5)- प्रत्यक्षीकरण विधि (Observation Method )
(6)- आगमन विधि (Inductive Method )
विद्यालय
(SCHOOL)-
ये विद्यालयों
में प्रबन्धकों के साथ विद्यार्थियों एवम अध्यापकों को शामिल करना चाहते हैं। ये
अधिगम के अनुकूल माहौल बनाने व अनुभव के आधार पर उत्तरोत्तर प्रगति के पक्षधर हैं।
ज्ञान, अनुभव का अनुगमन करता है अनुभव तर्क विश्लेषण
और क्रिया का परिणाम होता है अन्तिम निष्कर्ष के रूप में प्राप्त अनुभव का
विश्लेषण भी तर्क के आधार पर किया जाता है इसलिए तार्किक विश्लेषण वाद (Logical Analytic-ism ),तार्किकअनुभववाद Logical Empiricism ),भाषा विश्लेषण वाद(Language Analytic-ism) की जगह तार्किक प्रत्यक्षवाद (Logical Positivism) कहना अधिक युक्ति संगत होगा।
तार्किक
प्रत्यक्षवाद से आशय (Meaning
Of Logical Positivism) –
जो
दर्शन आलोचनात्मक तथा विश्लेषणात्मक चिन्तन पर मुख्य बल देता है कार्यों का
तार्किक विश्लेषण कर कार्य कारक सम्बन्धों को तार्किक आधार देता है,तार्किक प्रत्यक्षवाद कहलाता है।
तार्किक
प्रत्यक्षवाद के विभिन्न अवयवों के विश्लेषणोपरान्त कहा सकता है –
‘तार्किक प्रत्यक्षवाद कोई सामान्य अमूर्त
सिद्धान्त नहीं है यह व्यावहारिकता व तार्किकसकारात्मकता का वह मिश्रण है जो
सत्यापनशीलता का विशेष गुण तार्किक आधार पर रखता है।’
सोलह
कला सम्पूर्ण श्री कृष्णजी ने अपने मुखारबिन्दु से श्रीमद्भगवद गीता के दूसरे
अध्याय के ग्यारहवें श्लोक में तार्किक प्रत्यक्षवाद का उदाहरण प्रस्तुत किया है –
अशोच्यानन्व
शोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्चम
नानुशोचन्ति पण्डिताः।।
अर्थात
श्री केशव ने कहा – तुम पाण्डित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो
शोक करने योग्य नहीं हैं जो विद्वान होते हैं वे न तो जीवित के लिए न ही मृत के
लिए शोक करते हैं।
उक्त
कथन तर्क आधारित है और अन्ततः इसकी सत्यापनशीलता सिद्ध होती है।
तार्किक
प्रत्यक्षवाद को समझने के लिए इसकी मीमांसाओं का विवेचन आवश्यक है।
तार्किक
प्रत्यक्षवाद और
इसकी मीमांसाऐं ( Logical
Positivism and Its Meemansa)-
ज्ञान
के आत्मसातीकरण हेतु उसके दर्शन को जानना और दर्शन के अधिगमन हेतु उसकी तत्व
मीमांसा (Meta Physics), ज्ञान व तर्क मीमांसा(Epistemology and Logic) एवं आचार व मूल्य मीमांसा (Ethics and Axiology ) को जानना आवश्यक है।
तत्व
मीमांसा (Meta Physics)-
यह
मानवीय इन्द्रियों को इतना महत्तव प्रदान करते हैं कि जिसका प्रत्यक्षीकरण इन
इन्द्रियों द्वारा सम्भव है उसको सत्य स्वीकारते हैं आध्यात्मिक जगत, ईश्वर आदि को स्पष्ट रूप से नकारते हैं। इनके
अनुसार मानव अर्जित ज्ञान व कौशल के आधार पर विकास करता हैऔर भौतिक जगत सत्य है
क्योंकि इसका प्रत्यक्ष अनुभव होता है। आध्यात्मिक जगत ,आत्मा परमात्मा को प्रत्यक्ष अनुभव से परे मान
अस्वीकारते हैं।
ज्ञान
व तर्क मीमांसा (Epistemology and Logic) –
ये
किसी भी पूर्व ज्ञान को तब तक ज्ञान नहीं मानते जब तक अनुभव व तर्क द्वारा वह सत्य
स्थापित न हो जाए। तार्किक प्रत्यक्ष वादी प्रत्येक ज्ञान को तार्किक रूप से तभी
अधिगमन योग्य स्वीकारते हैं जब यह व्यावहारिकता सत्यापनीयता,
इन्द्रियों द्वारा अनुभूति सत्यापनीयता व
प्रत्यक्ष सत्यापनीयता की कसौटी पर खरा उतर सके।
आचार
व मूल्य मीमांसा (Ethics
and Axiology) –
ये
आचरण हेतु सहयोग, सहिष्णुता, शान्ति, स्वतन्त्रता, सृजनात्मकता व शोषण हीनता को स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार कोई भी
मूल्य तब तक सारहीन हैं जब तक वह मानव मात्र का कल्याण नहीं करता। उपयोगी मूल्य ही
मानव के आचरण में ग्रहणीय होना चाहिए। बर्ट्रेण्ड रसेल, ए ० जे ० मेयर और कार्नप के विचार इस सन्दर्भ
में महत्त्व पूर्ण है।