सृष्टि का आधार सृजन और प्रलय है,जड़ जंगम,सागर,ग्रह उपग्रह ,समस्त भावनाओं,विनाश लीलाओं गर्वीले भाषण,युद्धोन्माद के आदि और अन्त का निरीक्षण हमें बताता है कि अन्ततः सब मिट्टी है।

मैं आदि हूँ अनन्त हूँ मैं फैली दिग दिगन्त हूँ,
मुझी से मेघ गर्जना मैं ही तो विद्युत कौंध हूँ।
सहती सारे बवाल को,ज्वालामुखी के ज्वाल को,
समझी मन के खोट को,परमाणु के विस्फोट को,
मैं मिट्टी हूँ,मैं मिट्टी हूँ।

मैं वर्षा हूँ,मैं शिशिर हूँ और मैं ही तो बसन्त हूँ,
प्रकृति के हर इक रूप में अन्धेरे में या धूप में,
समन्दर का आधार मैं, भाटा मैं और ज्वार मैं,
जंगम के हर श्रृंगार में, शीतलता में अंगार में,
मैं मिट्टी हूँ,मैं मिट्टी हूँ।

आगत भी हूँ भविष्य मैं,भूत भी मैं वर्तमान मैं,
हर प्रश्न का जवाब मैं,तेरा कल और आज मैं,
भारत के हर प्रवाल में,औ चीन की दीवार में,
पुलवामा में,विदेश में,जीवन के हर परिवेश में,
मैं मिट्टी हूँ,मैं मिट्टी हूँ।

धरती के हर श्रृंगार में, आँधी में औ तूफान में,
पृथ्वी के हर प्रकार में, मार्तण्ड में राकेश में
अज्ञ हूँ मैं ,सर्वज्ञ मैं,जीवन में तेरे विज्ञ मैं,
भूगोल मैं अर्थशास्त्र मैं परिचय मेरा इतिहास में
मैं मिट्टी हूँ,मैं मिट्टी हूँ।

सारे अनुष्ठान में स्वधर्म और कर्म कुकर्म में,
याचना,आग्रह,आदेश में स्नेहिल गर्वीले मर्म में
कविता की मीठी तान में तोप बम मिसाइल में
सृजन में, उत्थान में,विनाश विरह के गान में,
मैं मिट्टी हूँ,मैं मिट्टी हूँ।

आदर्श प्रकृतिवाद में, अस्तित्व प्रयोजनवाद में,
वास्तविक यथार्थवाद में, वार और पलट वार में,
अध्यात्म,भौतिक वाद में, मानव के हर विचार में,
पृथ्वी पर और पाताल में,मानव जन्म या संहार में।
मैं मिट्टी हूँ,मैं मिट्टी हूँ।

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