वो जो समस्याओँ का अम्बार है,

वही तो मेरे हौसलों का आधार है।

आप लोग क्यों डरे डरे रहते हो

हौसला है तो निश्चित बेड़ा पार है।

निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है ।।

समस्या ही समाधान का आधार है,

इक ओर शीतलता दूजा अँगार है।

भयावह सोच से डरे सहमे रहते हैं,

अँगारों की, तपिश में भी प्यार है।   

निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है ।।

इस जहाँ में प्यार है,रार है,तकरार है,

डर मत हिम्मत रख फिर बेड़ा पार है।

खुशी हो या गम हम स्वीकार करते हैं,

जिन्दगी के संग जिन्दादिली से प्यार है।   

निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है ।।

तुम्हारे अन्तर-तम  में क्यों गुबार है,

क्यों कर बसाया मन में अंधकार है।

क्यों हमेशा आप एकाकी से रहते हो,

समय के साथ चलने की दरकार है ।   

निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है।।

जीवन में उन्नत शिखरों से गर प्यार है,

तो फालतू में डरकर रहना बेकार है।

तुम झंझावातों से भागे भागे रहते हो,

लड़कर कहो संघर्षों से ही प्यार है।

निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है।।

जिंदगी खेल है कभी जीत कभी हार है,

जो जूझता है उनकी जय जय कार है।

लड़ कर ही तो जय का वरण करते हो,

खुद से हारे हुए मन में तो अन्धकार है।

निशानी जख्म की वीर का श्रृंगार है।।

Share: