Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • विविध
  • समाज और संस्कृति
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact

शिक्षा
दर्शन
वाह जिन्दगी !
शोध
काव्य
बाल संसार
विविध
समाज और संस्कृति
About
    About the Author
    About Education Aacharya
Contact
Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • विविध
  • समाज और संस्कृति
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact
समाज और संस्कृति

महा कुम्भ 2025 / MAHA KUMBH 2025

January 19, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

भारत के प्रमुख प्रदेश, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज नामक स्थान पर महाकुम्भ आयोजन  प्रारम्भ हो चुका है करोड़ों लोग पावन त्रिवेणी में स्नान कर चुके हैं सङ्गम में गङ्गा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है साथ ही समस्त भेदभावों को भूलकर सभी पावनता की इस बयार का आनन्द ले रहे हैं।भारतीय जनमानस कुम्भ के विविध आयामों और मनसा, वाचा, कर्मणा की त्रिवेणी में स्नान के महत्त्व को भी समझते हैं अर्ध कुम्भ, कुम्भ, महाकुम्भ भारत की चरैवेति – चरैवेति संस्कृति की अनवरत यात्रा के पड़ाव हैं हमारे जैसे विविध जीव प्रारब्ध के अनुसार इससे जुड़ पाते हैं।

यह महाकुम्भ मेला कई दृष्टिकोण से विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आध्यात्मिक आयोजन है इस बार तो अनूठा संयोग बन पड़ा है 144 साल के बाद जो पीढ़ियाँ इसका आनन्द उठाने में समर्थ हो पा रही हैं उन्हें इस बेहद खास अवसर का प्रत्यक्षीकरण करने का अवसर मिलेगा।

कुम्भ अवधि  –

दुनियाँ भर से आस्था की डुबकी लगाने लोग भारत आते हैं कुम्भ परम्परा में अर्ध कुम्भ, कुम्भ व महाकुम्भ का यह अवसर क्रमश 6 वर्ष, 12 वर्ष व 144 वर्ष बाद आता है। महाकुम्भ का अवसर कई पीढ़ियों को नसीब नहीं होता। अवधि के सम्बन्ध यह भी बताया जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक साल के बराबर है सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की सापेक्ष स्थिति के अनुसार 12 वर्ष में कुम्भ मेला का आयोजन होता है हरिद्वार और प्रयागराज में 6 वर्ष बाद अर्ध कुम्भ आयोजन होता है 12 कुम्भ पूर्ण होने पर अर्थात 144 वर्षोपरान्त महाकुम्भ के इस स्वरुप का आयोजन होता है।

समुद्र मन्थन और कुम्भ स्थल –

भारतीय पौराणिक कथाओं में समुद्र मन्थन हेतु देवताओं और राक्षसों के प्रयास का वर्णन मिलता है इस समुद्र मन्थन से मिलने वाले 14 तत्वों में अन्तिम वस्तु अमृतयुक्त कलश अर्थात कुम्भ (घड़ा) प्राप्त हुआ। धन्वन्तरि की अमृत कुम्भ के साथ उपस्थिति पर असुरों से बचाने हेतु इन्द्र के पुत्र जयन्त उस घड़े को लेकर भागे सूर्य, सूर्य पुत्र शनि, बृहस्पति और चन्द्रमा रक्षार्थ उनके साथ गए।

इन्द्र पुत्र जयन्त जब इस कुम्भ को लेकर भागे तब भागते समय 12 दिनों में अमृत चार स्थानों पर छलक गया यह स्थल हैं हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन व नासिक।

इन स्थलों पर देवताओं के 12 दिन (मनुष्यों के 12 वर्ष) में कुम्भ या पूर्ण कुम्भ लगता है और 12 कुम्भ अर्थात 144 वर्ष पर महा कुम्भ का आयोजन होता है।

ज्योतिषीय गणना के आधार पर कुम्भ मेले का स्थान नियत किया जाता है 12 वर्ष के अन्तराल का कारण बताते हुए कहा जाता है कि बृहस्पति को सूर्य का चक्कर लगाने में 12 वर्ष का समय लगता है जब बृहस्पति कुम्भ राशि में स्थित होता है तथा सूरज मेष राशि में और चन्द्रमा धनु राशि में होता है तब कुम्भ का आयोजन हरिद्वार में होता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में सूर्य और चन्द्रमा कर्क राशि में होता है तो कुम्भ का आयोजन नासिक त्रयम्बकेश्वर में होता है।

प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन तब होता है जब बृहस्पति वृषभ राशि में व सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होता है।

विविध मुख्य स्नान  – 

भारत में प्राचीनकाल से पंचांग का उपयोग हो रहा है।पंचांग के पांच अंग हैं -वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण। इस आधार पर प्रथम शाही स्नान पौष पूर्णिमा पर 13 जनवरी 2025 को हुआ,  दूसरा शाही स्नान मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025) को सम्पन्न हुआ तीसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या पर किया जाएगा

            मौनी अमावस्या पर शाही स्नान का अत्याधिक आध्यात्मिक महत्व है।भारतीय हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार अमावस्या तिथि 28 जनवरी की शाम 7:35 बजे शुरू होगी और 29 जनवरी की शाम 6:05 बजे खत्म होगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब 29 जनवरी को स्नान किया जाएगा। इस दिन संगम पर 6 करोड़ लोगों की भीड़ उमड़ने का अनुमान है।

भारतीय मनीषियों ने 03 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के दिन कुम्भ स्नान को भी विशिष्ट महत्ता प्रदान की है।

            45 दिन चलने वाले इस सामाजिक आध्यात्मिक महापर्व का प्रत्येक दिन पावस है और किसी दिवस की पावनता काम नहीं है लेकिन फिर भी विद्वानों द्वारा निर्धारित उक्त दिवस विशेष हैं। जो लोग नहीं पहुँच पा रहे हैं वे निराश न हों महा कुम्भ और तीर्थराज प्रयाग का नमन करें और शुद्ध अन्तः चेतना से घर पर स्नान करें क्योंकि मन चंगा तो कठौती में गङ्गा।

सामाजिक व आर्थिक महत्ता –

पापों से मुक्ति और मोक्ष की महत्वाकाँक्षा बहुत लोगों को गंगा में डुबकी लगवाती है लेकिन यह महाकुम्भ हमें सड़ी गली मान्यताओं व जाति-पाँति के भावों को तिरोहित कर उच्च सामाजिक मान्यताओं को अङ्गीकार करने की प्रेरणा देती है और प्रत्येक जीव में दिव्यात्मा के दर्शन करवाती है।

समाज का एक वर्ग कल्पवास की धारणा के साथ आकर यहाँ रुकता हैं बहुत से लोग लम्बे भौतिक झंझावातों से मानसिक शान्ति की तलाश में यहाँ आते हैं कुछ लोग भौतिकता की अन्धी दौड़ से निजात पाने के लिए अध्यात्म की शरण में आते हैं विविध अखाड़ों के दर्शन लाभ के साथ दान आदि देकर सकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव से अपने आप को युक्त करने वालों की भी कमी नहीं है। बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इसमें शामिल हैं स्टीव जॉब्स की पत्नी और बहुत से औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्वामियों के साथ करोड़ों लोगों ने महाकुम्भ में आस्था की डुबकी लगाई। विविध विद्वान्, विविध मन्त्री, धार्मिक आस्था युक्त बहुत सी देशी विदेशी महिलाओं ने महाकुम्भ स्नान किया विज्ञ जनों, विविध ऋषियों, मनीषियों, दिव्यात्माओं और श्रद्धायुक्त आध्यात्मिक जनों का अविरल प्रवाह महाकुम्भ की ओर लगातार बना हुआ है, जो भारतीय विश्व बन्धुत्व की भावना को और प्रगाढ़ करता है।

जब भी बहुत बड़ी भीड़ कहीं एकत्रित होती है तो अपने साथ कई वाणिज्यिक व्यापारिक महत्त्व के अवसर उपलब्ध कराती है।

इस बार इस महाकुम्भ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की आशा है जो रूस और अमेरिका की कुल आबादी से भी अधिक है इस महाकुम्भ के आयोजन हेतु राज्य सरकार ने 7000 करोड़ रुपए का आबण्टन किया है यह महाकुम्भ 26 फरवरी 2025 तक चलेगा और निश्चित रूप से इससे उत्तर प्रदेश सरकार की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी।

आर्थिक विशेषज्ञों ने 2025 के महाकुम्भ मेले से 2 लाख करोड़ के योगदान की उम्मीद जताई है यदि श्रद्धालुओं का औसत व्यय बढ़ेगा तो आय में और अधिक इजाफा होगा।

शीतल जल में डुबकी का प्रभाव –

शीतल जल में डुबकी लगाने से वजन में कमी व मेटाबोलिज्म में सुधार होता है इससे मूड में सकारात्मक बदलाव होता है और दर्द में कमी आती है लेकिन कुछ लोग मांसपेशियों में ऐंठन व हृदय सम्बन्धी कुछ समस्याओं की शिकायत करते हैं। भारतीय श्रद्धालु घर पर स्नान करके पतित पावनी गङ्गा में स्नान करते हैं आकलन में ऐसे लोगों पर दुष्प्रभाव कम देखा गया है।      

Share:
Reading time: 1 min
Uncategorized•शोध

MERITS AND DEMERIS OF SAMPLING

January 13, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

न्यादर्श के गुण और दोष

शोध का परिक्षेत्र अत्यन्त व्यापक है और किसी भी परिणाम तक पहुँचने हेतु पग पग पर तथ्यों के गुण दोष का विवेचन करने पर यथार्थ का बोध होता है शोध कार्य से सामान्यीकरण तक पहुँचने के लिए भी न्यादर्श के गुण दोषों को समझना परम आवश्यक है। यद्यपि न्यादर्श अत्याधिक उपयोगी है लेकिन इसके भी कुछ गुण दोष हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।

MERITS OF SAMPLING

न्यादर्श के गुण

01 – समय की बचत /Saving of time

02 – श्रम की बचत /Saving of labour

03 – गहन व सूक्ष्म अध्ययन /In-depth and detailed study

04 – प्रशासकीय सुविधा /Administrative convenience

05 – विशिष्ट दशाओं में उपयोगी /Useful in specific conditions

06 – लोच का गुण /Quality of flexibility

07 – मितव्ययता/ Economy

DEMERIS OF SAMPLING

न्यादर्श के दोष अथवा सीमाएं

01 – प्रतिनिधि न्यादर्श चयन दुष्कर / Representative sample selection is difficult

02 – पक्षपात की सम्भावना /Possibility of bias

03 – पर्याप्त ज्ञान का अभाव / Lack of sufficient knowledge

04 – विशिष्ट ज्ञान आवश्यक /Special knowledge required

05 – न्यादर्श पर स्थिर रहना कठिन /Difficult to stick to the sample

06 – न्यादर्श सार्वभौमिक विधि नहीं /Sampling is not a universal method

07 – न्यादर्शन प्रयोज्य की अस्थिरता  / Instability of sampling subject

Share:
Reading time: 1 min
शोध

न्यादर्श के प्रारूप / SAMPLING PATTERN

January 11, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ज्ञान के सम्यक विकास को जो आलम्बन प्राप्त होता है, उसके मूल में विद्यमान है शोध।

शोध प्रारूप में उसे उद्देश्य तक ले जाने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है न्यादर्श।

न्यादर्श का भलीभाँति अधिगम करने के लिए परम आवश्यक है कि न्यादर्श के प्रारूप को अधिगमित किया जाए। आज इसी विषयवस्तु पर विचार का महत्त्वपूर्ण दिवस है।

प्रारूप (FORMAT) –

न्यादर्श के विविध नाम, विविध विधियों और विविध प्रकारों का वर्णन देखने सुनने को मिलता है लेकिन सुविधाजनक और सरलतम सामान्य रूप से अधिगमित करने हेतु न्यादर्श के प्रकारों का इस प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता है। 

                        न्यादर्श  के  प्रकार  / TYPES OF SAMPLING

सम्भाव्यता नमूनाकरण (Probability Sampling)गैर सम्भाव्यता नमूनाकरण  (Non-probability Sampling)
यादृच्छिक न्यादर्श (Random Sampling) स्तरीकृत न्यादर्श (Stratified Sampling) गुच्छ न्यादर्श (Cluster Sampling)         क्रमबद्ध न्यादर्श (Systematic Sampling) बहुस्तरीय न्यादर्श (Multistage Sampling)अभ्यंश न्यादर्श (Quota Sampling) सोद्देश्य न्यादर्श (Purposive Sampling) आकस्मिक न्यादर्श ( Incidental  Sampling) निर्णित न्यादर्श (Judgement Sampling)

 सम्भाव्यता नमूनाकरण (Probability Sampling) –

यादृच्छिकन्यादर्श (Random Sampling) – इस विधि द्वारा जनसँख्या के प्रत्येक सदस्य के चुने जाने की सम्भावना बराबर रहती है इसमें एक का चुना जाना दूसरे पर कोई असर नहीं डालता। प्रसिद्द विचारक गुडे व हैट ने इस सम्बन्ध में कहा –

“The unit of the universe must be so arranged that the selection process give equi-probability of selection to every unit in that universe.” Goode and Hatt,

“दैव निदर्शन के लिए समग्र की सभी इकाइयों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया जाता है कि चयन प्रक्रिया समग्र की प्रत्येक इकाई को चुनाव की सम्भावना प्रदान कर सके।“

कुछ इसी तरह के भाव संजोते हुए Frankyates ने अपनी पुस्तक Sampling methods for Censues and Surveys में कहा –

” देव निदर्शन वह है जिसमें समग्र अथवा जनसँख्या की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में सम्मिलित होने का समान अवसर प्राप्त होता है।“

आंग्ल अनुवाद –

“Random Sampling is one in which every unit of the population or the population as a whole gets an equal opportunity to be included in the sample.”

इसमें सामान्यतः निम्न विधियों को प्रयोग में लाते हैं –

  • लॉटरी विधि २- सिक्का उछालकर ३ – पासा फैंक कर ४- टिपिट तालिका द्वारा (41600 – 10400)

स्तरीकृत न्यादर्श (Stratified Sampling) –

यह विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है इसमें किन्ही विशेषताओं के आधार पर जनसंख्या को अलग अलग स्तरों या वर्गों में बाँट लिया जाता है तत्पश्चात इसी में से यादृच्छिक विधि से अभीष्ट न्यादर्श का चयन कर लेते हैं। जैसा कि Dictionary of Education  के पृष्ठ संख्या 506 पर लिखा  है –

” Stratified Sample is a sample obtained by dividing the entire population into categories or strata according to some factor or factors and sampling proportionality and independently from each categories usually being done randomly.”

“स्तरीकृत न्यादर्श एक न्यादर्श है. जो समस्त समग्र को कुछ तत्व/तत्वों के आधार पर स्तरों / वर्गों में विभाजित करके प्रत्येक श्रेणी से आनुपातिक एवम् स्वतन्त्र रूप से न्यादर्श चुनकर प्राप्त किया जाता है। सामान्यतया न्यादर्श यादृच्छिक रूप से चुना जाता है।“

गुच्छ न्यादर्श (Cluster Sampling)-

इस विधि में कुल जनसंख्या को कुछ इकाइयों में या समूहों में बाँट लेते हैं इसे ग्रुप न्यादर्श भी कहते हैं इन्हीं गुच्छों या समूहों में से यादृच्छिक तरीके से अभीष्ट न्यादर्श को चुन लिया जाता है। जैसा कि Fred N  Karlinger महोदय कहते हैं। –

“Cluster Sampling most used method in survey’s, is the successive random sampling of units or sets or subsets.”

Fred N Karlinger, op ct p 130      

“सर्वेक्षणों में बहुतायत में प्रयुक्त गुच्छ न्यायदर्शन इकाइयों अथवा समूहों अथवा उपसमूहों का क्रमिक यादृच्छिक न्यायदर्शन है।“

क्रमबद्ध न्यादर्श (Systematic Sampling) –

इस विधि में कुल जनसँख्या का संख्यात्मक मान पता होना जरूरी है इस पूरी सूची को किसी भी तरह से जैसे वर्णमाला या क्रमिक नम्बर से क्रमबद्ध कर लेते हैं ,सभी को एक ही विधि से लिखा जाता है इसके बाद एक क्रम से इकाई या व्यक्ति का चयन करते हैं जैसे हर 20 वां व्यक्ति अभीष्ट न्यादर्श में शामिल होगा। अर्थात यदि 1000 में से 50 को न्यादर्श रूप में लेना है तो 1000 में 50 का भाग देने से पता चल जाएगा कि हर 20वां व्यक्ति लेना होगा।

बहुस्तरीय न्यादर्श (Multistage Sampling) –

जब क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत होता है तो इस विधि को प्रयोग में लाया जाता है इसमें इकाइयों का चयन विविध स्तरों से किया जाता है इनको ज्ञात करने हेतु प्रमुख आधार यादृच्छिक न्यादर्शन ही होता है इसमें विविध स्तरों से किसी के भी चयन की सम्भावना बनी रहती है और सभी स्तरों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है। शिक्षा शब्दकोष में पृष्ठ 507 पर लिखा –

” बहु स्तरीय न्यायदर्शन क्रमिक स्तरों में क्रियान्वित किया जाने वाला न्यादर्शन है। उदाहरण के लिए स्तरीकृत समूहों की प्रत्येक संख्या से यादृच्छिक रूप से अनेक समुहों को चुनना। “

” Multistage Sampling is sampling carried out in a successive stages; for example, selecting several clusters randomly from each of a number of stratified clusters.” Dictionary of Education p.507

गैर सम्भाव्यता नमूनाकरण (Non-probability Sampling) –

अभ्यंश न्यादर्श (Quota Sampling) – यह असम्भाव्य न्यादर्श की एक महत्त्वपूर्ण विधि है यह काफी कुछ स्तरीकृत न्यायदर्शन जैसी लगती है लेकिन इसमें प्रत्येक स्तर या वर्ग हेतु कोटा पूर्व निर्धारित होता है जिसकी जानकारी शोधकर्ता को रहती है इसे स्पष्ट करते हुए करलिंगर(Kerlinger)  महोदय कहते हैं –

” असम्भाव्यता न्यादर्श न्यायदर्शन का एक रूप कोटा / अभ्यंश न्यादर्शन है, जिसमें समग्र के स्तरों –यौन, प्रजाति, क्षेत्र और ऐसे ही, का ज्ञान न्यादर्श सदस्यों को चुनने के लिए प्रयुक्त होता है ,जो निश्चित शोध उद्देश्यों के लिए प्रतिनिधिक, विशिष्ट और उपयुक्त हैं।” 

“One form of non probability sampling is Quota Sampling, in which knowledge of strata of the population sex, race, region and so on is used to select sample members that are representative ,typical and suitable for certain research purposes.” Fred N Kerlinger

सोद्देश्य न्यादर्श (Purposive Sampling) –

सोद्देश्य न्यादर्शन विधि में उद्देश्य प्रमुख होता है ,इस उद्देश्य के अनुसा ही शोध कर्त्ता अपनी इच्छाओं व विवेक का प्रयोग करता है उद्देश्यानुरूप विविध इकाइयों का चयन अभीष्ट न्यादर्श हेतु किया जाता है शेष को छोड़ दिया जाता है। समग्र का प्रतिनिधित्व करने वाला न्यादर्श बन सके इस बात का प्रमुखतः ध्यान रखा जाता है। इस सम्बन्ध में Guillford महोदय ने लिखा –

“सोद्देश्य न्यादर्श स्वेच्छा से चयनित (न्यादर्श) है क्योंकि यह एक अच्छा साक्ष्य है ,जो समस्त समग्र का वास्तविक प्रतिनिधि है। “

“A purposive sample is one arbitrarily selected because there is a good evidence that sample is very representative of the total population.”

J.P.Guillford, Fundamentalof statistics in Psychology and Education.(1956) p.199

आकस्मिक न्यादर्श ( Incidental  Sampling) –

यह वह न्यादर्श है जो सहजता से सुविधानुसार उपलब्ध हो जाता है एवम् इसी कारण इसे सुविधाजनक न्यायदर्शन (Convenient Sampling ) के नाम से भी जाना जाता है शिक्षा शब्दकोष में पृष्ठ 506 पर इस सम्बन्ध में लिखा है कि –

“प्रासंगिक न्यादर्श एक एकाकी न्यादर्श के रूप में प्रयुक्त एक समूह है क्योंकि यह सरलता से प्राप्य है।“

“Incidental Sample is a group used as a sample solely because it is readily available.”

Dictionary of Education p. 506

निर्णित न्यादर्श (Judgement Sampling) –

इसमें शोध कर्त्ता अपने किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं निर्णीत इकाइयों के समूह का चयन करता है इस चयनित न्यादर्श को निर्णित न्यादर्श कहा जाता है।

Share:
Reading time: 1 min
शोध

SAMPLING

January 4, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

न्यादर्श

जिस चराचर जगत में मानव रहता है उसमें उस जैसे जीवों की संख्या अरबों खरबों में है। जिस क्षेत्र पर शोध कार्य सम्पन्न किया जाना होता है उसमेंसभी से आंकड़े एकत्रित करना न तर्क संगत है और न व्यावहारिक। जिस तरह भगौने में बनाने वाले चावलों में से एक निकालकर सम्पूर्ण के पकने का अहसास हो जाता है यहाँ एक चावल प्रतिनिधिकारी शक्ति के रूप में कार्य करता है लेकिन मानव चेतन है और प्रत्येक मानव के कार्य व्यवहार सोचने का ढंग पृथक पृथक होता है इसीलिये सम्पूर्ण जनसंख्या में से शोध हेतु प्रतिनिधिकारी संख्या की आवश्यकता होती है उस निश्चित जनसंख्या (Papulation) को ही न्यादर्श (Sample)कहते हैं। मानविकी या सामाजिक शोध कार्यों में न्यादर्श बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। विज्ञान विषयों के परिक्षेत्र में न्यादर्श चयन की समस्या नहीं होती यद्यपि न्यादर्श वहां भी प्रयोग किया जाता है।

न्यादर्श की परिभाषा /  Definition of Sampling –

विविध विद्वानों ने इसे विविध प्रकार से पारिभाषित किया है प्रस्तुत हैं कुछ परिभाषाएं –

गुड व हैट महोदय के अनुसार –

” एक निदर्शन जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि विशाल समग्र का एक छोटा प्रतिनिधि है। “

“A Sample, as the name implies, is a smaller representation of a larger whole,”

Goode & Hatt, Methods in Social Research, p-209

कुछ इसी तरह के भाव सिन पाओ येंग ने भी प्रस्तत किये हैं –

“एक सांख्यिकीय निदर्शन, सम्पूर्ण समूह का प्रतिनिधि अंश है।“

“A statistical sample is a cross -section of the entire group.”

Hsin Pao Yang, Fact Finding with Rural People, p 35

बोगार्डस महोदय के अनुसार

” निदर्शन किसी पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार इकाइयों के समूह में से एक निश्चित प्रतिशत को चयन करना है। “

” Sampling is the selection of certain percentage of a group of items according to a pre determined plans.”

 Bogards, Sociology, p 548

एक अन्य विद्वान् पी ० वी ० यंग के अनुसार –

“एक सांख्यिकीय निदर्शन उस सम्पूर्ण समूह अथवा योग का एक लघु चित्र अथवा प्रतिनिधि अंश है जिसमें से वह निदर्शन लिया गया है। “

“A statistical sample is a miniature picture or cross section of the entire group of aggregate from which the sample taken.”

Scientific Social Survey and Research, p 302

न्यादर्श के चयन की आवश्यकता क्यों ?

/ Why is there a need for sample selection?

01 – समग्र का प्रतिनिधित्व / Representation of the whole

02 – समाज के समुचित निर्देशन हेतु / For proper direction of society

03 – मितव्ययी प्राविधि / Economical method

04 – कुशल समय प्रबन्धन सम्भव / Efficient time management is possible

05 – सम्पूर्ण जनसंख्या का अध्ययन सम्भव / Study of entire population is possible

06 – गहन शुद्धतम जानकारी सम्भव /Deepest and most accurate information possible

07 – असम्भव परिक्षेत्र का अध्ययन सम्भव / Studying the impossible area is possible

न्यादर्श की परिसीमाएं / limitations of sampling –

01 – पूर्वधारणा का प्रभाव /  Effect of prejudice

02 – पक्षपात की सम्भावना / Possibility of bias

03 – पूर्ण जनसँख्या का प्रतिनिधित्व दुष्कर / Difficult to represent the entire population

04 – योग्य कार्यकर्त्ता अभाव / Lack of qualified workers

05 – प्रयोज्य की  गाम्भीर्य हीनता / Serious lack of usability

06 – यादृच्छिक तकनीक सर्वोत्तम तो नहीं / Random technique is not the best

उक्त सम्पूर्ण विवेचन न्यादर्श के बारे में बताने में सक्षम है लेकिन इसके बारे में विस्तार से जानना शोधार्थियों और उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों हेतु आवश्यक है न्यादर्श के प्रारूप पर आगे विचार कर आपके समक्ष रखने का प्रयास किया जाएगा .

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

ऐसा मन ला, तन ला।

December 31, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बदल रहा है साल, बताओ क्या क्या बदला ?

जीवन का कैसा हाल बताओ कितना बदला ?

कुछ हुए खस्ता हाल किसने लिया है बदला ?

क्या हो गया कमाल, मुकद्दर कितना बदला ?

जीवन है दिन चार चीख मत सब ला, सब ला,

बहे सुख की मन्द बयार ऐसा मन ला, तन ला।1।

क्यों मची चीख पुकार लगा जग बदला बदला

किसने किया धमाल, किसने किस पर हमला।

कहाँ था गीत मल्हार, कहाँ बजता बस तबला,

सुख चैन की कहाँ बयार कहाँ है हमला हमला।   

जीवन है दिन चार चीख मत सब ला, सब ला,

बहे सुख की मन्द बयार ऐसा मन ला, तन ला।2।

धर्म पर हुआ प्रहार, कहाँ जीवन -जन बदला,

सुख का कहाँ है सार कहाँ है सब ला,सब ला।

अध्यात्म में सुखसार सँभल, ना तम ला,तम ला

किए क्या क्या बदलाव, किन का जीवन बदला।          

जीवन है दिन चार चीख मत सब ला, सब ला,

बहे सुख की मन्द बयार ऐसा मन ला, तन ला।3।

भौतिकता क्रूर प्रहार, कहे बस हमला हमला,

कैसा स्वास्थ्य सुधार, क्या तन मन कुछ बदला।

है जल का कैसा हाल, प्रबन्धन कितना बदला,

किया पर्यावरण बेहाल वृक्ष कट हो गया गमला।      

जीवन है दिन चार चीख मत सब ला, सब ला,

बहे सुख की मन्द बयार ऐसा मन ला, तन ला।4।

कर ले भूल सुधार, न कह अब हमला हमला,

कर मत कभी प्रहार बनेगा जग बदला बदला।

मत बन पृथ्वी पे भार, मनस मत पगला पगला,

मिला है इक नवसाल चलन हो संभला  संभला।  

जीवन है दिन चार चीख मत सब ला, सब ला,

बहे सुख की मन्द बयार ऐसा मन ला, तन ला।5।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

मैं सहता रहा।

December 17, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

रात किस्से सुबह के मैं कहता रहा,

दिन गुजरते रहे, वक़्त ढलता रहा।

खुशी का कारवाँ यूँ सरकता रहा,

रंग मौसम का प्रतिक्षण बदलता रहा

हर सितम को अन्तिम समझता रहा,

वो जुल्म करते रहे और मैं सहता रहा ।1।

रंग बादल का हरदम बदलता रहा,

तपन बढ़ती रही, ताप बढ़ता रहा।

रंग मौसम का आँखों में घुलता रहा,

मन दहकता रहा दिल सुलगता रहा। 

हर सितम को अन्तिम समझता रहा,

वो जुल्म करते रहे और मैं सहता रहा ।2।

देख दर्पण में सब, कुछ चटकता रहा,

दम तो घुटता रहा मन सिसकता रहा।

बेरुखी वक़्त लख, तन भटकता रहा,

महल सपनों का, यूँ ही दरकता रहा।       

हर सितम को अन्तिम समझता रहा,

वो जुल्म करते रहे और मैं सहता रहा ।3।

देख नीति नियति सिर पटकता रहा,

सबकी सुनता रहा अपनी कहता रहा।

उनके जेहन में लालच बस घुलता रहा,

घाव रिस रिस बहा, मन तड़पता रहा।    

हर सितम को अन्तिम समझता रहा,

वो जुल्म करते रहे और मैं सहता रहा ।4।

प्रेम का पंछी, आँसू निगलता रहा,

गम उदासी भरे बस निरखता रहा।

‘नाथ’ जड़वत संगसंग थिरकता रहा,

पाप बढ़ता रहा, पूण्य घटता रहा।    

हर सितम को अन्तिम समझता रहा,

वो जुल्म करते रहे और मैं सहता रहा ।5।

Share:
Reading time: 1 min
शिक्षा

बौद्ध शिक्षा / BUDDHIST EDUCATION

November 30, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

वैदिक शिक्षा के उत्तरकाल के उपरान्त उसमें आई कतिपय कमियों के निवारणार्थ कतिपय परिवर्तनों की आहट महसूस होने लगी बलि प्रथा समापन , सर्व जन शिक्षा, स्त्री शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा आदि की आवश्यकता महसूस होने लगी ऐसे काल में महान शिक्षक व धर्म पथ निर्देशक महात्मा बुद्ध ने कुछ वैदिक और कुछ आवश्यक नवीन तथ्यों का समावेशन कर एक विशिष्ट शिक्षा पद्धति का विकास किया जिसे बौद्ध शिक्षा के नाम से जाना जाता है यद्यपि इसे धरातल वैदिक शिक्षा से मिला था इसीलिये आर ० के ० मुकर्जी ने अपनी पुस्तक एन्सिएंट इण्डियन एजुकेशन के पृष्ठ 374 पर लिखा –

” उचित रूप से विचार किये जाने पर बौद्ध शिक्षा प्राचीन हिन्दू या ब्राह्मणीय शिक्षा प्रणाली का एक रूप है।“

“Buddhist education rightly regarded is but a phase of the ancient Hindu or Brahmanical system of education.” R.K.Mookerji : Ancient Indian Education, p.374

बौद्ध शिक्षा व्यवस्था / Buddhist Education System –

बौद्ध शिक्षा व्यवस्था के अध्ययन हेतु सुविधा की दृष्टि से दो भागों प्राथमिक और उच्च शिक्षा में बाँट कर अध्ययन करेंगे। पहले प्राथमिक शिक्षा पर विचार करते हैं

प्राथमिक शिक्षा –

बौद्ध शिक्षा व्यवस्था में प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र मठ थे पहले यहाँ केवल धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था थी लेकिन ब्राह्मणीय शिक्षा से प्रतिस्पर्धा के कारण सांसारिक शिक्षा भी दी जानी लगी। 7 वीं शताब्दी में आए चीनी यात्री व्हेनसाँग के लेखों में उल्लिखित है कि प्राथमिक शिक्षा 6 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होती थी और 6 माह तक पढ़ाई जाने वाली पुस्तक सिद्धिरस्तु में 49 अक्षर थे। इसके बाद शब्द विद्या, शिल्पस्थान विद्या, चिकित्सा विद्या, हेतु विद्या, अध्यात्म विद्या आदि पांच विद्याओं के अध्ययन का विधान था। अध्ययन का माध्यम पाली भाषा थी।

उच्च शिक्षा / Higher Education –  उक्त पाँच विद्याओं का अध्ययन करने के उपरान्त प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होती थी तथा उच्च शिक्षा का श्री गणेश होता था। यह शिक्षा बौद्ध मठों में दी जाती थी इसकी प्राप्ति उपरान्त विशेषज्ञता हासिल होती थी। धर्म, व्याकरण, दर्शन, औषधि विज्ञान, ज्योतिष आदि का अधिगम कर विशेष योग्यता की लब्धि होती थी। ए ० एस ० अल्तेकर महोदय ने लिखा –

“मठों ने अपनी उच्च शिक्षा की योग्यता से, जहाँ अध्ययन करने के लिए कोरिया, चीन, तिब्बत,और जावा ऐसे सुदूर देशों के छात्र आकर्षित होते थे, भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को ऊँचा उठा दिया। ” 

“The monasteries raised the international status of India by the efficiency of their higher education, which attracted students from distant countries like Korea, China, Tibet and Jawa.” –  A.S.Altekar, Education in Ancient India, p.234

वास्तव में उस काल में शिक्षा का उत्थान हुआ। नालन्दा, विक्रम शिला, ओदन्तपुरी, जगद्दला, नदिया  आदि उच्च शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे। नालन्दा विश्वविद्यालय को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था यहाँ लगभग 20,000 विद्यार्थियों को 4000 भिक्षुओं द्वारा शैक्षिक कार्य सम्पन्न कराया जाता था . लगभग 800 वर्षों तक भारतीय दर्शन,कला और ज्ञान का प्रसार करने वाला यह अद्भुत केन्द्र बख्तियार खिलजी द्वारा धूल धूसरित कर दिया गया। बी ० पी ० जौहरी, कुलपति, आगरा विश्व विद्यालय, आगरा ने तत्कालीन शिक्षा के सम्बन्ध में अपनी पुस्तक ‘भारतीय शिक्षा का इतिहास’ में पृष्ठ 22 पर लिखा –

“विश्व विद्यालय में बौद्ध धर्म, जैन धर्म, वैदिक धर्म, वेदों, व्याकरण,ज्योतिष,पुराणों दर्शन शास्त्र और ओषधि विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।‘’ 

“Buddhism, Jainism, Vedic religion, Vedas, grammar, astrology, Puranas, philosophy and pharmaceutical science were taught in the university.”

बौद्ध शिक्षा की विशेषताएं / Features of Buddhist education –

बौद्ध शिक्षा व्यवस्था में यज्ञ का स्थान संघ को स्थानान्तरित हो गया बौद्ध संघ की शिक्षा पद्धति इन्हीं संघों पर आधारित थी प्रसिद्द शिक्षाविद आर ० के ० मुकर्जी ने बताया –

 “बौद्ध शिक्षा पद्धति प्रायः बौद्ध संघ की पद्धति है। जिस प्रकार वैदिक युग में यज्ञ संस्कृति के केंद्र थे उसी प्रकार बौद्ध युग में संघ शिक्षा और विद्या के केन्द्र थे। बौद्ध संसार में अपने संघों से पृथक या स्वतंत्र रूप में शिक्षा प्राप्त करने का कोई अवसर नहीं था।”

“The Buddhist system is practically that of the Buddhist order or Sangha. Buddhist education and learning centred round monasteries as Vedic culture centred round the sacrifice. The Buddhist world did not offer any educational opportunities apart from or independently of its monasteries. All education sacred as well as secular, was in the hands of monks,”

बौद्ध संघों ने ज्ञान का जो पथ आलोकित किया उस शिक्षा व्यवस्था की विशेषताओं को बिन्दुवार देने का प्रयास परिलक्षित है –

01 – ज्ञान प्राप्ति वर्ग

02 – विद्यार्थी चयन

03 – विद्यारम्भ आयु – 8(श्रमण) +12(अध्ययन) = 20 भिक्षु (संघ सदस्य )

एफ ० ई ० केई  के अनुसार -” विद्याध्ययन आरम्भ करने की आयु  8 वर्ष थी। प्रवेश के बाद छात्र ‘श्रमण’ ‘सामनेर’ या नवशिष्य कहलाता था।”

According to F.E.K.E. – “The age for starting studies was 8 years. After admission, the student was called ‘Shraman’, ‘Samner’ or Navashishya.”

04 – प्रब्रज्या संस्कार –प्रवेश के समय पबज्जा नामक संस्कार होता था। जिसे प्रव्रज्या संस्कार भी कहा जाता था पबज्जा का अर्थ होता है बाहर जाना। विनय पिटक के अनुसार पबज्जा संस्कार के समय होने वाली क्रिया इस प्रकार थी -श्रमण सर के बाल मुण्डवा कर पीत वस्त्र धारण करता था मठ के भिक्षुओं के चरणों में श्रद्धावनत होने के उपरान्त पालथी मारकर बैठ जाता था और मठ का वरिष्ठ भिक्षु उससे तीन बार कहलवाता था –

बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं  शरणं गच्छामि।

05 – उप सम्पदा संस्कार –  8(श्रमण) +12(अध्ययन) = 20 भिक्षु (संघ सदस्य ) → तत्पश्चात ‘उपसम्पदा संस्कार’

आगरा विश्वविद्यालय के तत्कालीनकुलपति बी ० पी ० जौहरी महोदय ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय शिक्षा का इतिहास’ में बताया –

” ‘उपसम्पदा संस्कार’ संघ के कम से कम 10 योग्य भिक्षुओं की उपस्थिति में होता था। उनमें से एक श्रमण का परिचय कराता था। उसके बाद अन्य भिक्षु उनसे अनेक प्रश्न पूछते थे। उनके उत्तर सुननने के बाद उपस्थित भिक्षु यह निर्णय करते थे कि नवशिष्य ‘उपसम्पदा’ ग्रहण करने का अधिकारी है या नहीं। “

“The ‘Upasampada Sanskar’ took place in the presence of at least 10 qualified monks of the Sangha. One of them would introduce the Shramana. After that the other monks would ask him a number of questions. After hearing his answers, the monks present would decide whether Is the new disciple entitled to receive ‘Upasampada’ or not?

06 – अध्ययन अवधि – 

8 वर्ष पर श्रमण के रूप में प्रवेश  →12वर्ष   (पबज्जा उपरान्त अध्ययन)  + ‘उपसम्पदा संस्कार'(10 वर्ष ) → कुल अध्ययन अवधि  22 वर्ष

07 – विद्यार्थी नियम – बौद्ध शिक्षा प्रणाली में श्रमणों हेतु भिक्षाटन, भोजन, वस्त्र – तिसिवरा, स्नान ,अनुशासन  आदि के सम्बन्ध में पूर्व निर्धारित कठोर नियम थे।  

08 – शिक्षण विधि – श्रवण. मनन. आवृत्ति,वाद विवाद,तर्क, व्याख्या, विश्लेषण आदि विधियों का प्रयोग होता था। आर ० के ० मुकर्जी ने अपनी पुस्तक में ह्वेन सांग के इन विचारों को शिक्षण विधि के सम्बन्ध में उद्धृत किया –

” शिक्षक पाठ्य वास्तु का सामान्य अर्थ बताते हैं और छात्रों को सविस्तार पढ़ाते हैं। वे उन्हें परिश्रम के लिए प्रोत्साहित करते हैं और कुशलता से उन्नति के पथ पर अग्रसर करते हैं। वे क्रियाशून्य छात्रों को निर्देशित करते हैं और मन्द बुद्धि विद्यार्थियों को ज्ञान के अर्जन के लिए उत्सुक करते हैं।”

“The teachers explain the general meaning and teach them the minutiae; they rouse them to activity and skillfully win them to progress; they instruct the inert and sharpen the dull.”

09 – पाठ्यक्रम –

सिद्धिरस्तु नामक बालपोथी का आधार लेकर चलने वाली बौद्ध उच्च शिक्षा विविध ज्ञान विमाओं को अपने आप में समाहित करती थी यथा -बौद्ध धर्म, हिन्दू धर्म, जैन धर्म, राज्य व्यवस्था, प्रशासन, दर्शन शास्त्र, तर्क शास्त्र, औषधि विज्ञान, खगोल विज्ञान,नक्षत्र विद्या, गणन विद्या, पाली, संस्कृत, न्याय शास्त्र आदि।पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में प्रसिद्द शिक्षाविद डॉ राम शकल पाण्डेय के विचार जो उन्होंने अपनी पुस्तक ‘भारत में शिक्षा व्यवस्था का विकास’ के पृष्ठ 38 पर दिए का उल्लेख समीचीन होगा –

“अध्यापन विधियों के अन्तर्गत वेद त्रयी एवम् अठारह शिल्पों का उल्लेख मिलता है। अठारह शिल्पों में धनुर्वेद प्रमुख था। बौद्ध ग्रंथों से ज्ञात होता है कि यहाँ धार्मिक अनुष्ठान अतीन्द्रिय विज्ञान,विधि शिक्षण एवम् आयुर्वेद की शिक्षा प्रदान की जाती थी।”    

10 – गुरु शिष्य सम्बन्ध –

ए ० एस ० अल्तेकर महोदय के अनुसार –

“अपने गुरु के साथ नवशिष्य के सम्बन्धों का स्वरुप पुत्रानुरूप था। वे पारस्परिक सम्मान विश्वास और प्रेम से आबद्ध थे। “

“The relations between the novice and his teacher were final in character; they were united together by mutual reverence, confidence and affection.” – A.S.Altekar : Education in Ancient India, pp 61-62

11 – सामाजिक शिक्षा पद्धति

12 – विज्ञ मण्डलियाँ

मिरडेल महोदय के अनुसार –

“शास्त्रीय विवादों को प्रोत्साहन दिया जाता था। इस प्रकार की विज्ञ मंडलियाँ बौद्ध उच्च  शिक्षा की एक अनोखी विशेषता थी।”

“Scholastic debates were encouraged. Such learned assemblies were a novel feature of Buddhist higher education.”

13 –  सामान्य विद्यालयीकरण –

मिरडेल महोदय के अनुसार –

“मठ विद्यालय बहुत कुछ सामान्य विद्यालयों के समान कार्य करने लगे ,जिनमें बालक अपने परिवारों में रहकर शिक्षा प्राप्त कर सकते थे।”

आंग्ल अनुवाद

“Monastic schools began to function much like normal schools, in which children could receive education while living in their families.”

14 – स्त्री शिक्षा

ए ० एस ० अल्तेकर महोदय के अनुसार –

“स्त्रियों के संघ में प्रवेश की आज्ञा ने स्त्री शिक्षा को ,विशेष रूप से समाज के कुलीन और व्यावसायिक वर्गों की स्त्रियों की शिक्षा को बहुत अधिक प्रोत्साहन दिया। “

“The permission given to women to enter the order gave a fairly good impetus to the cause of female education, especially in aristrocratic and commercial sections of society.”

15 – शिल्प शिक्षा  –

डॉ ० आर ० के ० मुकर्जी के अनुसार

” सिप्पाओं या प्राविधिक तथा वैज्ञानिक शिक्षा के ज्ञान की माँग सामान्य शिक्षा या धार्मिक अध्ययन की माँग से किसी प्रकार कम नहीं थी। “

“The demand for knowledge of the Sippas or for techinical and scientific education was not less keen than that for general education or religious studies.”

            बौद्ध शिक्षा अनूठी विशेषताओं से युक्त थी बौद्ध शिक्षा को नालन्दा, तक्षशिला,विक्रमशिला,बल्लभी,ओदन्त पुरी,नदिया,मिथिला,जगद्दला आदि शिक्षा के उच्च केन्द्रों ने अन्तर्राष्ट्रीय गरिमा प्रदान की।  बौद्धकालीन विश्व-विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त करने वाले शिक्षार्थियों ने चीन, श्री लंका, जापान, सुमात्रा आदि देशों में भी बौद्ध शिक्षाओं का प्रसार किया।

 

Share:
Reading time: 2 min
काव्य

नवक्रान्ति

October 9, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुदर्शन जो धारण करो होश में,

ढाँचा देश द्रोह का बिगड़ जाएगा।

नूतन सा चक्कर चलाओ तो तुम ,

घनचक्कर बना वो नज़र आएगा।

नव क्रान्ति परचम उठाओ तो तुम

राष्ट्रीय चिन्तन स्तर बदल जाएगा । 1 ।

हाथ संग हाथ लेकर दिखो रोष में

कारवाँ तब तुम्हारा प्रगति पायेगा।

दुश्मन से टक्कर की थानों तो तुम,

दुम दबाकर न जाने कहाँ जाएगा। 

नव क्रान्ति परचम उठाओ तो तुम

राष्ट्रीय चिन्तन स्तर बदल जाएगा । 2 ।

यूँ न बैठा करो आप अफ़सोस में,

तन अवसाद, मन पर छा जाएगा।

चिन्ता की चिता गर सजाओगे तुम,

हौसला ये स्वतः यूँ निखर जाएगा।

नव क्रान्ति परचम उठाओ तो तुम

राष्ट्रीय चिन्तन स्तर बदल जाएगा । 3 ।

होश होना जरूरी है अब जोश में

देशहित से मतलब निकल पायेगा।

संभल देश द्रोही को पहचानो तुम,

फिर बेदम हुआ वह नज़र आएगा।

नव क्रान्ति परचम उठाओ तो तुम

राष्ट्रीय चिन्तन स्तर बदल जाएगा । 4 ।

डूबोगे नहीं गर, तुम मद-होश में

कारवाँ कालिमा का ठहर जाएगा

हिम्मत का जलवा दिखाओ तो तुम

डरने वालों का जज़्बा बदल जाएगा

नव क्रान्ति परचम उठाओ तो तुम

राष्ट्रीय चिन्तन स्तर बदल जाएगा ।5।

शामिल पाञ्चजन्य हो अब उद्घोष में,

चलन तम का बेशक बदल जाएगा।

करम राष्ट्रहित आकलित रखना तुम,

देश का आचरण ‘नाथ’ बदल जाएगा।

नव क्रान्ति परचम उठाओ तो तुम

राष्ट्रीय चिन्तन स्तर बदल जाएगा ।6।

Share:
Reading time: 1 min
शिक्षा

JOHN DEWEY / जॉनडीवी (1859-1952)

September 29, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षावादियों की बेहतरीन कण्ठ माला का अद्भुत मोती है जॉन डीवी। विलिम जेम्स से विचारों का जो प्लावन हुआ उससे प्रेरणा पाकर डीवी को जो दिशा मिली उससे जॉन डीवी ने संसार को दिग्दर्शित किया। एक सामान्य से दुकानदार का यह बेटा कालान्तर में सुप्रसिद्ध दार्शनिक के रूप में स्थापित हुआ।

डीवी की रचनाएं / DEWEY’s creations – डीवी महोदय ने अपनी 92 साल की उम्र में लगभग 50 ग्रन्थों की रचना की। इनमें से जो ज्ञात हो पाए उन्हें यहाँ देने का प्रयास किया है –

1 – Interest and Effort as Related to Will – 1896

2 – My Pedagogic Creed – 1897

3 – The School and Society – 1899

4 – The Child and the Curriculum – 1902

5 – Relation of Theory and Practice in the Education of Teachers – 1907

6 – The School and the Child -1907

7 – Moral Principle in Education – 1907

8 – How We Think – 1910

9 – Interest and Effort in Education – 1918

10 – School of Tomorrow – 1915

11 – Democracy and Education – 1916

12 – Reconstruction and Nature in Philosophy – 1920

13 – Human Nature in Conduct -1921

14 – Experience and Nature – 1925

15 – Quest for Certainity – 1929

16 – Sources of a Science Education – 1929

17 – Philosophy and Civilization -1931

18 – Experience and Education – 1938

19 – Education of Today – 1940

20 – Problems of Man –

21 – Knowing and Known –

डीवी दर्शन की मीमांसा / Meemansa’s of Philosophy – 

इस दर्शन की मीमांसाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाएगा कि इसके मूल में क्या है किस आधार पर यह विस्तारित हुआ, इस चिन्तन का दिशा निर्धारण कैसे हुआ इसे खाद पानी कहाँ से मिला। सबसे पहले विचार करते हैं इसकी  तत्त्व मीमांसा (Metaphysics)पर –

तत्त्व मीमांसा / Metaphysics –

विलियम जेम्स की वैचारिक पृष्ठ भूमि को पुष्ट करने वाला यह खुले दिमाग वाला व्यक्तित्व आत्मा परमात्मा की व्याख्या से दूर रहकर भौतिकता पर अवलम्बित रहा। इनका मानना था की संसार अनवरत निर्माण की अवस्था में रहता है यह लगातार परिवर्तनशील है इसमें कोई सर्वकालिक सत्य या  मूल्य हो ही नहीं सकता। निरन्तर बदल रहे सत्य व मूल्यों हेतु प्रयोग किये जाते रहने चाहिए इसी लिए डीवी की विचार धारा प्रयोगवाद (Experimentalism) के नाम से भी जानी जाती है।

ये मानव को सामाजिक प्राणी स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि वही तथ्य सही है जो मानव मात्र हेतु उपयोगी हो। मानव को पूर्ण समर्थ मानते हुए ये कहते हैं कि अपनी समस्त समस्याओं को हल करने में वह समर्थ है अपनी प्रगति का निमित्त वह स्वयम् है विविध विषम परिस्थितियों, झंझावातों से टकराने में जो मानव समर्थ वह स्वयम् अपनी उन्नति का निमित्त कारण है इस उन्नति की कोई निर्धारित सीमा नहीं है इस तरह के विचारों का सम्पोषण करने के कारण ही इनकी विचारधारा नैमेत्तिक वाद (Instrumentalism) के नाम से भी जानी गयी।

ज्ञान और तर्क मीमांसा(Epistemology and logic) – डीवी  का स्पष्ट मत है कि ज्ञान क्रिया अवलम्बित होता है पहले समस्या आती है उसके समाधान हेतु मानव सक्रिय हो जाता है और विविध समाधानों की परिकल्पना बनाता है। इन्हें प्रयोग की कसौटी पर कसता है इस प्रकार प्राप्त सत्य को वह अंगीकृत करता है। इस प्रकार स्वहित और समाजहित हेतु सत्य स्थापन की तात्कालिक व्यवस्था के सोपान हुए –

1 – समस्या

2 – तत्सम्बन्धी विवेचना

 3 – परिकल्पना

4 – प्रायोगिक  कसौटी

 5 – सत्य स्थापन

आचार व मूल्य मीमाँसा (Ethics and Axiology) –  ये अध्यात्म या आध्यात्मिक मूल्यों पर तो विश्वास नहीं करते थे लेकिन मानव और मानव में कोइ भेद नहीं मानते थी इनका विश्वास था कि प्रत्येक मानव को उसकी रूचि, क्षमता व योग्यतानुसार स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए इनका मानना था कि पूर्व निर्धारित आदर्श न लादकर प्रत्येक को अपने लिए खुद आदर्श व सत्य निर्धारण करना चाहिए। जिस आचरण व मूल्य से स्वविकास हो और समाज के विकास में बढ़ा न पहुँचे वह उचित है।

डीवी का शिक्षा दर्शन / Dewey’s philosophy of education –

आजाद भारत के जितने भी प्रधानमन्त्री हुए वे विकास के क्रम में आध्यात्मिक विकास को भी शामिल करते हैं और मनुष्य के समग्र विकास हेतु आवश्यक समझते हैं। डीवी भी मानव जीवन की विशेषता विकास को स्वीकार करता है लेकिन मानव के सामाजिक,शारीरिक व मानसिक विकास की बात प्रमुखतः करता है। वह यह भी स्वीकार करता है कि विकास हेतु अनुकूलन की स्थिति प्राप्ति हेतु वह पर्यावरण को नियन्त्रित करने का भी प्रयास करता है। इसी आधार पर वह शिक्षा के सम्बन्ध में कहता है –

“शिक्षा व्यक्ति में उन सब क्षमताओं का विकास है, जो उसको अपने पर्यावरण पर नियन्त्रण रखने और अपनी सम्भावनाओं की पूर्ति के योग्य बनाए।“

“Education is the development of all those capacities in the individual which will enable him to control his environment and fulfill his possibilities.”

शिक्षा के उद्देश्य / Aims of education –

1 – परिवर्तनशील उद्देश्य

डीवी के अनुसार –

“शिक्षा का सदैव तात्कालिक उद्देश्य होता है और जहाँ तक क्रिया शिक्षा प्रद होगी, उसी साम्य को प्राप्त होगी। “

“Education has all the time an immediate end, so for as activity is educative it reaches that end.”

2 – अनुभव सतत विकास प्रक्रिया

3 – समायोजन क्षमता विकास

 डीवी के अनुसार –

“शिक्षा की प्रक्रिया समायोजन की एक निरन्तर प्रक्रिया है जिसका प्रत्येक अवस्था में उद्देश्य होता है विकास की बढ़ती हुई क्षमता को प्रदान करना।“

अंग्रेजी अनुवाद

“The process of education is a continuous process of adjustment whose aim at each stage is to provide increasing capacity for development.”

4 – लचीले मष्तिष्क का निर्माण

5 – सामाजिक समायोजन में निपुणता

डीवी के अनुसार –

“शिक्षा का कार्य असहाय प्राणी को सुखी नैतिक एवम् कार्य कुशल बनाना है। “

“The function of education is to help growing of helpness young animal in to a happy moral and efficient human being.” -Dewey

6 – लोकतन्त्रीय व्यवस्था विकास

डीवी का शिक्षा के अंगों पर प्रभाव /Impact of Dewey on educational institutions – डीवी वह व्यक्तित्त्व था जो तत्कालीन व्यवस्था में यथार्थ के सन्निकट खड़ा दीख पड़ता था उसकी वाणी ऐसा ही उद्घोष करती थी लोग उससे प्रभावित हो रहे थे उसका जो दृष्टिकोण शिक्षा के विविध अंगों के प्रति था यहाँ संक्षेप में द्रष्टव्य है।–

पाठ्यक्रम / Syllabus – तत्कालीन पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचारों से ये असंतुष्ट थे इनका साफ़ मानना था कि मानव कल्याण हेतु पाठ्यक्रम निर्माण अधोलिखित सिद्धान्तों पर अवलम्बित होने चाहिए –

01 – रूचि का सिद्धान्त / Principle of interest

02 – बालकेन्द्रित शिक्षा का सिद्धान्त /Principle of child centered education

03 – लोच का सिद्धान्त / Principle of elasticity

04 – सक्रियता का सिद्धान्त / Principle of activation

05 – सामाजिक व्यावहारिक अनुभवों का सिद्धान्त /Principle of social practical experiences

06 – उपयोगिता का सिद्धान्त / Principle of utility

07 – सानुबन्धिता का सिद्धान्त / Principle of co-relation

शिक्षण विधि / Teaching method – शिक्षण विधि के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में इनका मानना है कि उचित सामाजिक वातावरण परमावश्यक है बिना सामाजिक चेतना की जाग्रति और सक्रिय क्रियाशीलता के विधि सम्यक आयाम ले ही नहीं पाएगी इन्होने कहा –“समस्त शिक्षा व्यक्ति द्वारा जाति की सामाजिक चेतना में भाग लेने से आगे बढ़ती है।””All education proceeds by the participation of the individual in the social consciousness of the race.”

ये किसी भी पूर्व प्रतिपादित सिद्धान्त अथवा ज्ञान को तब तक स्वीकार नहीं करते जब तक वह प्रयोग की कसौटी पर खरा न उतर जाए। ये प्रयोग को अच्छी शिक्षण विधि स्वीकार करते हैं क्योंकि इसमें अवलोकन / observation, क्रिया / action, स्वानुभव / Self experience, तर्क /Reasoning, निर्णयन / Decision making और परीक्षण सभी शामिल होता है।इसी वजह से ये करके सीखना और स्वानुभव द्वारा सीखने पर सर्वाधिक बल देते हैं। इससे प्रभावित होकर ही इनके शिष्य किल पैट्रिक ने प्रोजेक्ट मेथड (Project method) का सृजन किया। शिक्षण विधि के सम्बन्ध में डीवी के ये शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं  –     “विधि का तात्पर्य पाठ्यक्रम की उस अवस्था से है जो उसको सर्वाधिक उपयोग के लिए व्यवस्थित करती है। ……… विधि पाठ्य वस्तु के विरुद्ध नहीं होती बल्कि वह तो वांछित परिणामों की ओर पाठ्यवस्तु निर्देशन है।”

“Method means that arrangement of subject matter which makes it most effective in use …… Method is not antithetical to subject matter, it is the effective direction of subject matter to desired results.”-Dewey

शिक्षक / Teacher –  यद्यपि ये भौतिकता से ओतप्रोत थे लेकिन गुरु के सम्मान को अपना पूर्ण समर्थन देते हैं और स्वीकार करते हैं कि वह समाज सुधारक, समाज सेवक, सम्यक सामाजिक वातावरण का निर्माता है और ईश्वर का सच्चा प्रतिनिधि है। डीवी महोदय के अनुसार –

“शिक्षक सदैव परमात्मा का सच्चा पैगम्बर होता है। वह परमात्मा के राज्य में प्रवेश कराने वाला होता है। “

“The teacher is always a prophet of true God. He leads  to the kingdom of God.” 

ये स्वीकार करते हैं कि अध्यापक अपने विद्यार्थी का पथ प्रदर्शक और मित्र होता है इसी भावना के आधार पर जी० एस० पुरी लिखते हैं –

“शिक्षक बालक का मित्र तथा पथ प्रदर्शक है। वह अपने छात्रों को सूचनाएं या ज्ञान प्रदान नहीं करता बल्कि वह उनके लिए ऐसी स्थिति या अवसरों को प्रदान करता है जो इन्हें सीखने में सहायता देती है। “

“The teacher is to be friend and a guide to the child .He is not transmit any information or knowledge to his pupils but he has only arrange the situation and opportunities which may enable them to learn.”

विद्यार्थी / Student – वे विद्यार्थी केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था के पक्षधर थे इन्होने अपनी शिक्षा योजना में सब कुछ बाल केन्द्रित रखा है बच्चों की पूर्ण स्वतन्त्रता व चयन की पूरी छूट देते हुए ही अपना आदर्श व मूल्य निर्धारण की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं। बाल केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था व बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम इसी के उदाहरण हैं।

अनुशासन / Discipline – ये शिक्षा को समाजोन्मुखी बनाकर चारित्रिक दृढ़ नागरिक का निर्माण करना चाहते हैं। ये बालक के सहयोग द्वारा उसमे आज्ञा पालन, अनुशासन, विनम्रता आदि गुणों का विकास करना चाहते हैं सहयोग व रूचि के आधार पर अनुशासन स्थापन चाहते हैं प्रजातन्त्र की सुदृढ़ता हेतु सहयोग, आत्म निर्भरता के पद चिन्ह बनाकर अनुशासन  स्थापन का कार्य होना चाहिए।

डीवी के शिक्षा दर्शन की विशेषताएं /Features of Dewey’s educational philosophy –

01 – ;साध्य के ऊपर साधन की महत्ता                                                                   

02 – सत्य परिवर्तनशील

03 – कर्म प्रधान चिन्तन द्वित्तीयक

04 – समस्या (parikalpanaa,kriya nirdhaaran)

05 – योजना पद्धति 

06 – प्रजातन्त्र सर्वश्रेष्ठ

07 – नैमेत्तिक वाद

08 – प्रयोग पर बल

09 – आगमन प्रमुख ,निगमन द्वित्तीयक

10 – प्रयोजनहीन कला व्यर्थ

11 – धर्म सम्बन्धी धारणा

डीवी के शिक्षा दर्शन की सीमाएं  /Limitations of Dewey’s educational philosophy –

01 – साधनको प्रमुख मानना उचित नहीं

02 – विचार द्वित्तीयक कैसे सम्भव

03 – समस्त सत्य स्थापन की प्रायोगिक जाँच सम्भव नहीं

04 – कला सम्बन्धी विचार अव्यावहारिक

05 -धर्म के प्रति संकुचित दृष्टिकोण

06 -आगमन व निगमन दोनों से सत्य स्थापन

07 -सत्य परिवर्तनशील

08 -परिवर्तन को सत्य मानाने पर लक्ष्य निर्धारण सम्भव नहीं

09 – योजना पद्धति अधिक खर्चीली

            उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन यह स्पष्ट करता है कि तत्कालीन रूढ़िवादी समाज को प्रगतिशील बनाने में उसका अपूर्व योगदान है उसने भौतिकता की लब्धि को ध्यान में रखकर शिक्षा को नया आयाम प्रदान करने की कोशिश की लेकिन धर्म के प्रति उसका दृष्टिकोण उचित नहीं कहा जा सकता। सत्य के निर्धारण में उसकी सोच पर आज के परिप्रेक्ष्य में पुनः विचार मन्थन इतना आवश्यक है कि इसके बिना भटकाव की स्थिति आ जायेगी। सत्य निरंतर परिवर्तनशील मानने के कारण इन सिद्धांतों में परिवर्तन आना ही है।

Share:
Reading time: 2 min
शिक्षा

VARIABILITY / विचलनशीलता

September 21, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

विचलन शीलता

जब केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप का अध्ययन किया जाता है तो अंक वितरण के मध्यमान के बारे में अधिगमित होता है परिणामों में विचलन भी देखने को मिलता है कुछ वितरणों में अंक मध्यमान के निकट और कुछ में दूर तक फैले दीख पड़ते हैं। जब किसी अंक वितरण के विविध अंक अपेक्षाकृत अपने मध्यमान के निकट रहते हैं तो विचलन शीलता (Variability) कम होती है लेकिन जब अंकों का विस्तार मध्यमान से अपेक्षाकृत दूर-दूर तक फैला होता है अर्थात विचलित रहता है तब  अंक वितरण की विचलन शीलता (Variability) अधिक होती है।

lindiquist लिन्डक्यूस्टि महोदय विचलनशीलता के सम्बन्ध कहते हैं –

“Variability is the extent to which the scores tend to scatter or spread above and below the average.”

“विचलनशीलता वह अभिसीमा है, जिसके अन्तर्गत अंक अपने मध्यमान से नीचे व ऊपर की ओर वितरित या विचलित रहते हैं।” 

स्पीगेल महोदय विचलनशीलता के सम्बन्ध में कहते हैं। –

“वह सीमा जहां तक आंकड़े अपने मध्यमान मूल्य के दोनों ओर प्रसार की प्रवृत्ति रखते हैं, आंकड़ों का विचलन कहलाती है।”

अनुवाद “The extent to which data tend to spread on either side of its mean value is called variability of data.”

गैरट  महोदय विचलनशीलता के सम्बन्ध में कहते हैं। –

“विचलनशीलता से तात्पर्य आँकड़ों के वितरण या प्रसार से है यह वितरण आंकड़ों की केन्द्रीय प्रवृत्ति के चारों ओर होता है।”

अनुवाद ” Variability refers to the distribution or spread of data. This distribution is around the central tendency of the data.”

Methods Of Measuring Variability

विचलनशीलता को मापने की विधियाँ –

विचलनशीलता को मापने की विधियों को दो प्रमुख भागों में विभक्त कर सकते हैं।

[A] – निरपेक्ष माप /  Absolute Measures of Dispersion

i  – प्रसार / Range

ii – चतुर्थाङ्क विचलन/ Quartile Deviation

iii – माध्य विचलन/ Mean Deviation

iv – मानक विचलन/ Standard Deviation

[B] – सापेक्ष माप / Relative Measures of Dispersion

i  – प्रसार गुणाँक / Coefficient of Range

ii – चतुर्थक विचलन गुणाँक / Coefficient of Quartile Deviation

iii – माध्य विचलन गुणाँक / Coefficient of Mean Deviation

iv – विचलन गुणाँक / Coefficient of Variance

विचलनशीलता ज्ञात करने के उद्देश्य / Objectives of determining deviation – विचलनशीलता सांख्यिकीय परिक्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है इससे हम परिणामों की सटीक स्थिति समझने में सक्षम हुए हैं, सुविधाजनक अध्ययन हेतु विचलनशीलता के अधोलिखित उद्देश्य कहे जा सकते हैं –

1 – मध्यमान की विश्वसनीयता हेतु / For reliability of mean – सांख्यिकीय विश्लेषण में विश्वसनीयता एक महत्त्वपूर्ण कारक है यही समूची गणना का दिशा निर्धारक है  अगर किसी श्रंखला में विचलन कम है तो कहा जाता है कि यह मध्यमान अंक वितरण का सही प्रतिनिधित्व करता है इसके विपरीत यदि श्रंखला में अधिक विचलन दृष्टिगत होता है तो इससे आशय है कि यह मध्यमान अंक वितरण का सही  प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है। इस प्रकार मध्यमान की विश्वसनीयता पुष्ट होती है।

2 – यथार्थ से निकटता हेतु / To be closer to reality – मध्यमान एक प्रतिनिधिकारी शक्ति है और इसका यथार्थ बोध सत्य के निकट लाता है इसके मापन द्वारा ही यह जाना जाता है कि कौन सा परिणाम सत्य के अधिक निकट है, विचलनशीलता का यह मापन अन्य विविध गणितीय विश्लेषण का आधार बनता है और उन्हें ज्ञात करना सरल,सुबोध व लाभकारी हो जाता है ।

3 – विविध श्रृंखलाओं के तुलनात्मक अध्ययन हेतु / For comparative study of various series –   विचलनशीलता का अध्ययन ही दो या अधिक श्रंखलाओं के तुलनात्मक अध्ययन में सक्षम बनाता है यदि विचलनशीलता उच्च कोटि की है तो यह स्वीकार किया जाता है कि यहां आँकड़ों  का सामंजस्य उच्च नहीं है जबकि विचलनशीलता के निम्न कोटि के होने से आशय है कि श्रृंखला में आँकड़े सही समायोजित हैं।

            कुल मिलकर यह कहा जा सकता है विचलन शीलता के अध्ययन ने सांख्यिकीय विश्लेषण के क्षेत्र में हमें अधिक विश्वसनीय और पुष्ट बनाया है इससे परिणाम यथार्थ के अधिक निकट पहुँचे हैं।

Share:
Reading time: 1 min
Page 4 of 40« First...«3456»102030...Last »

Recent Posts

  • शुभांशु शुक्ला अन्तरिक्ष से …..
  • स्वप्न दृष्टा बनें और बनाएं।/Be a dreamer and create it.
  • कविता में राग ………..
  • गांधीजी के तीन बन्दर और आज का मानव
  • शनि उपासना

My Facebook Page

https://www.facebook.com/EducationAacharya-2120400304839186/

Archives

  • June 2025
  • May 2025
  • April 2025
  • March 2025
  • February 2025
  • January 2025
  • December 2024
  • November 2024
  • October 2024
  • September 2024
  • August 2024
  • July 2024
  • June 2024
  • May 2024
  • April 2024
  • March 2024
  • February 2024
  • September 2023
  • August 2023
  • July 2023
  • June 2023
  • May 2023
  • April 2023
  • March 2023
  • January 2023
  • December 2022
  • November 2022
  • October 2022
  • September 2022
  • August 2022
  • July 2022
  • June 2022
  • May 2022
  • April 2022
  • March 2022
  • February 2022
  • January 2022
  • December 2021
  • November 2021
  • January 2021
  • November 2020
  • October 2020
  • September 2020
  • August 2020
  • July 2020
  • June 2020
  • May 2020
  • April 2020
  • March 2020
  • February 2020
  • January 2020
  • December 2019
  • November 2019
  • October 2019
  • September 2019
  • August 2019
  • July 2019
  • June 2019
  • May 2019
  • April 2019
  • March 2019
  • February 2019
  • January 2019
  • December 2018
  • November 2018
  • October 2018
  • September 2018
  • August 2018
  • July 2018

Categories

  • Uncategorized
  • काव्य
  • दर्शन
  • बाल संसार
  • वाह जिन्दगी !
  • विविध
  • शिक्षा
  • शोध
  • समाज और संस्कृति

© 2017 copyright PREMIUMCODING // All rights reserved
Lavander was made with love by Premiumcoding