कॉमर्स वर्तमान समय का एक बहुत व्याहारिक विषय है। बहुधा इन विद्यार्थियों में अधिक व्याहारिक गुण होने की वजह से परिणाम पाने की शीघ्र इच्छा होती है।बाजार वाद व उत्तरोत्तर बढ़ती उपभोक्ता संस्कृति ने इसे आज के परिप्रेक्ष्य में गढ़ने हेतु नए आयाम उपलब्ध कराये हैं। इनमें से कुछ बच्चों के पुश्तैनी प्रतिष्ठान होते हैं तो कई विद्यार्थी अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं। इण्टरमीडिएट परीक्षा परिणाम प्राप्त करने के बाद इनको भी यही समस्या घेरती है की अब क्या करें ?
कालान्तर
में व्यवस्थाएं परिवर्तित होती रहती हैं शीघ्र ही वह समय आएगा जब विभिन्न धाराओं
कला,
वाणिज्य, विज्ञान की जगह विद्यार्थी पसन्दीदा
विषय किसी भी ले सकेंगे। लेकिन आज के
परिप्रेक्ष्य में वाणिज्य के कुछ विद्यार्थी गणित विषय बारहवीं में रखते हैं और
कुछ नहीं। इससे भी अवसरों में कुछ अन्तर दिखाई देता है।
बारहवीं
में गणित के साथ कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–
Course for students having commerce with mathematics in class XII-
1 – C.A. (Charted Accountancy)
2 – B.C.A. (Bachelor of
Computer Applications) or IT and Software
3 – B.F.A. (Bachelor of
Finance and Accounting)
4 – B.Com. Honours
5 – B.E. (Bachelor of
Economics)
6 – B.I.B.S. (Bachelor
of International Business and Finance)
7 – B.J.M.S. (Bachelor
of Journalism and mass Communication)
8 – B.Sc. Hons
(Mathematics)
9 – B.Sc. Hons (Applied
Mathematics)
10- B.Sc. (Statistics)
बारहवीं
में गणित के बिना कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–
Course for students having
commerce without mathematics in class XII-
1 – B.Com (Bachelor of
Commerce)
2 – C.S. (Company
Secretary)
3 – B.B.A. (Bachelor of
Business Administration)
4 – Bachelors in
Hospitality
5 – Bachelors in Event
Management
6 – Bachelors of Management
Studies
7 – Bachelors in Travel
and Tourism
8 – Bachelors in Hotel
Management
9 – Bachelor of
Vocational Studies
10 – Bachelor of
Journalism
11 – Bachelor of
Foreign Trade
12 – Bachelor of Business
Studies
13 – Bachelor of Social
Work
14 – Bachelor of
Vocational Studies
15 – Bachelor of Interior
Designing
16 – BA LL.B
17 – BBA LL.B
18 – B.A
19 – B.A (Hons)
20 – B.Sc. Animation
and media
बारहवीं
कॉमर्स के पश्चात डिप्लोमा कोर्स
Diploma course after
12th commerce –
1 – Diploma in
Education
2 – Import Export
Diploma
3 – Digital Marketing Diploma
4 – Diploma in
Industrial Safety
5 – Diploma In Advance
Accounting
6 – Diploma in Computer
Application
7 – Diploma in
Financial Accounting
8 – Diploma in Business
Management
9 – Hospitality Diploma
10 – Diploma in Banking
and Finance
11 – Diploma in Retail
Management
12 – Diploma in Hotel
Management
13 – Diploma in Fashion
Designing
बारहवीं
कॉमर्स के पश्चात प्रोफेशनल कोर्स
Professional course
after 12th commerce –
यदि हम आज के
हिसाब से कुछ महत्त्वपूर्ण कोर्स देखना चाहें तो इन्हें इस प्रकार भी क्रमित किया
जा सकता है –
1 – GST Course
2 – Income Tax Course
3 – Content Marketing
4 – Digital Marketing
5 – Accounting and
Taxation
6 – Air Hostess
Training
7 – B.A., B. Com., BBA.
etc
8 – BA LL.B
9 – Bachlor of Business
Management
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रास्ते
बहुत सारे हैं बस हमें बहुत सोच समझ कर फैसला करना है। फैसला हो जाने के बाद दृढ़ता
से अपनी मंजिल को हासिल करना है। भारत के उत्पादन क्षेत्र को बहुत विस्तृत करने की
आवश्यकता है। बाजारवाद का परिदृश्य बदलने हेतु व अपनी मौलिकता को बनाये रखने हेतु
वाणिज्य के विद्यार्थियों से देश को बहुत आशा है।
यह संसार सचमुच अद्भुत है जो कहीं न कहीं
विचारों से उद्भूत है इसी की अधिक सम्भावनाएं भारतीय दृष्टिकोण से भी परिलक्षित
होती हैं। यहाँ तककि हमारी आज की सोच हमारे कल का निर्माण करती है हम भारतीय कुछ
विचारों में एक दूसरे से अद्भुत साम्य रखते हैं कुछ आदतें व दृष्टिकोण जिन
परिणामों तक ले जाते हैं यह भी सामान्य शोध बताने में सक्षम हैं हमारी अपनी ही सोच
और उनका व्यवहार कैसे हमारी ही दुश्मन साबित होती है उनमें से पाँच का अध्ययन आप
प्रबुद्ध जनों के समक्ष प्रस्तुत है –
1 – सुनकर अनसुनी करना
(Ignore after
listening)
2 – देखकर अनदेखा करना (Ignore
after seeing)
3 – बहाने बाजी (Betting on excuses)
4 – असत्य सम्भाषण (False speech)
5 – नकारात्मक चिन्तन (Negative thinking)
आगे वर्णित तथ्य अनुभव व विविध जनों के
दृष्टांतों पर आधारित हैं स्पष्ट रूप से इन्हे दुर्गुणों की श्रेणी में रखा जा
सकता है।
1 – सुनकर अनसुनी करना(Ignore
after listening)–
एक बहुत ही सामान्य सी बात लगती है बचपन में इस
लत का शिकार बालक कालान्तर में अपने मस्तिष्क को यह सन्देश भेजने में सफल हो जाता
है कि उसने सचमुच कुछ सुना ही नहीं और यह बात उसको बहरेपन की और बढ़ा देती है फिर
वह सुनना चाहते हुए भी सुन नहीं पाता।
वह सेवक जोअपने से ऊपर के अधिकारियों की बात को
अनसुना करता है वह आलस्य,
कामचोरी, संशय, बहरेपन, कान
का अनायास बजना, कार्य क्षमता का ह्रास, शारीरिक कम्पन आदि विविध व्याधियों का शिकार
देर सबेर होता ही है। कुछ ऐसे लोगों के अध्ययन व लोगों के अनुभवों से आप यह सहज
बोध कर सकते हैं।
यदि यह आदत स्वयम् हमको लगती है तो हम स्वयम्
अपनी भी नहीं सुन पाते, सोचते रह जाना, कल्पना लोक में विचरण, समय
की बर्बादी हम सहज स्वभाव के वशीभूत हो करने लगते हैं। किसी का आर्त्तनाद हमें
सुनाई नहीं पड़ता या हम इतने कायर हो चुके होते हैं कि किसी की मदद को तत्पर ही नहीं
हो पाते परिणाम स्वरुप एकाकी पन और मानसिक अवसाद हमें घेरने लगता है। तनाव, अकारण भय, चिन्ता
हमारा मुकद्दर बनने लगता है। लक्ष्य हमसे दूर भागने लगते हैं। परिश्रम व लगन दूर
की कौड़ी लगने लगते हैं।
2 – देखकर अनदेखा करना (Ignore
after seeing)-
आँग्ल भाषा में में पहले और दूसरे उप शीर्षक
हेतु सामान्यतः एक शब्द Avoid
ही अधिकाँश प्रयोग में लाया जाता है लेकिन
हिन्दी में इसके अलग और गूढ़ अर्थ हैं
जिसे शब्द उच्चारण से ही समझा जा सकते है देखने और सुनने के लिए क्रमशः अलग
अलग इन्द्रियों चक्षु व कर्ण का प्रयोग होता है।
आजकल लोग अधिक व्यस्त हैं व बाजार वाद के
प्रभाव से ग्रस्त हैं कि बहुधा अनदेखा करते हुए स्वयम् सहित अन्य जन दिखाई पड़ते
हैं लेकिन जब समय, धर्म, विवेक, ज्ञान और अन्तरात्मा भी हमारी देख कर अनदेखा
करने की आदत का शिकार हो जाती है और चल चित्र की भाँति बहुत कुछ हमारे सामने से
गुजर जाता है और हम किंकर्त्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं हमारी शक्तियों का क्षय होने
लगता है। हमारी सोच दुष्प्रभावित हो जाती है।
‘जैसी करनी वैसी भरनी’ के आधार पर ही हमें प्रतिफल मिलने लगता है। यह
स्थिति मानवता के लिए अत्यन्त घातक है हमें एक दूसरे की मदद मानस का विस्तार कर
करनी ही चाहिए। चाहे सामने दुश्मन ही क्यों न हो।
3 – बहाने बाजी (Betting on excuses) –
कभी कभी एक अद्भुत तथ्य सामने आता है कि हम
किसी कार्य को करने में या किसी वस्तु से किसी की मदद करने में या किसी सलाह
द्वारा मार्गदर्शन करने में हम पूर्ण सक्षम होते हैं फिर भी हम किसी बहाने का
सहारा ले उस विशिष्ट कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लेते हैं और यह पारिलक्षित होता है की
अधिकाँश जनसंख्या इस दुर्गुण से ग्रसित है और हम अपने बच्चों को भी जाने अनजाने
में इस दुर्गुण से ग्रसित कर देते हैं। धीरे धीरे यह हमारी आदत और व्यवहार का
विशेष भाग हो जाता है।
गिने चुने लोग ही ऐसे होते हैं जो निस्वार्थ
सेवा भावी रहकर बहानेबाज़ी की छतरी नहीं लगाते। यह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ
लोग होते हैं।इन विशिष्ट व्यक्तित्वों से ही मानवता को सद् पथ मिलता है। इस स्वभाव
से भागने पर हम सहज ही अनुशासन प्रियता से भी दूर हो जाते हैं। हम सहज ही अधर्म
मार्ग पर बढ़ चलते हैं राम चरित मानस में कहा भी है। –
परहित सरिस धर्म नहीं भाई।
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।।
यह बहाने बाजी हमें हमारी ही निगाह में गिरा
देती है और जब हम इस पर विचार करते हैं तो हमें ग्लानि की अनुभूति होती है। अपना
ही स्वार्थी चरित्र हमें मुँह चिढ़ाता हुआ लगता है। हम अपना प्रगति पथ स्वयं
अवरुद्ध कर लेते हैं।
4 – असत्य सम्भाषण (False
speech) –
यह अत्याधिक खतरनाक
दुर्गुण है और हममें से अधिकाँश से बुरी तरह चिपका है साथ ही यह नई पीढ़ी को तेजी
से अपनी गिरफ्त में ले रहा है। हम जब मोबाइल पर होने वाली बातचीत में अपने और
दूसरों द्वारा इसका अनायास और बेधड़क प्रयोग देखते हैं केवल परिवार से बाहर के
लोगों के साथ ही नहीं यह दुर्गुण आत्मीय सम्बन्धों यथा पिता-पुत्र, पिता – पुत्री, शिष्य -गुरु, माता -पिता, माता-पुत्र, माता -पुत्री, बहन -बहन, भाई-भाई और मित्रों पड़ोसियों जैसे सम्बन्धों में वजह बेवजह
घुसपैठ बना रहा है।
नैतिक दृष्टि से
अत्यन्त धक्का तब लगता है जब झूठ बेवजह, नकली शान दिखाने के
लिए, रॉब ग़ालिब करने के लिए, पुराने झूठ को समर्थन
देने के लिए आदतवश बोला जाता है। हद तो तब हो जाती है जब हम अपने झूठ में मासूम नव
पीढ़ी को भी शामिल कर लेते हैं। शैतान नवपीढ़ी तो बड़ों के सामने इस तरह झूठ बोलती है
जैसे नासमझों से बात कर रही है।
जिस देश में सत्यवादी
राजा हरिश्चन्द्र ने जन्म लिया।जिस देश के विशेष चिन्तक महात्मा गाँधी ने ‘सत्य ही ईश्वर है।’ का उद्घोष किया उस देश
में अकारण असत्य सम्भाषण अत्याधिक अटपटा लगता है। यह दुर्गुण सारे पवित्र
सम्बन्धों की नींव हिलाने में सक्षम है। किसी ने सच ही कहा हे कि –
हमीं गर्क करते हैं जब
अपना बेड़ा
तो बतलाओ फिर नाखुदा
क्या करेंगे।
जिन्हें दर्दे दिल से
ही फुर्सत नहीं है
वो दर्दे वतन की दवा
क्या करेंगे ?
5 – नकारात्मक चिन्तन (Negative
thinking) –
बाहर की दुनियाँ हमारे चिन्तन, मानसिक शान्ति, प्राकृतिक स्वभाव पर
हावी होती जा रही है। सुबह के अखबार से लेकर तमाम नोटिफिकेशन, टेलीविज़न के कार्य
क्रम, हिंसा, मारधाड़, चोरी, डकैती, बलात्कार, गबन, भ्रष्टाचार की बातें
शुद्ध सात्विक मन को नकारात्मकता में डुबो देती हैं। मानव अपने मूल स्वरुप को भूल
नकरात्मकता से जुड़ बुराई के आचरण को अंगीकार करने लगता है। यह नकारात्मकता
व्यक्तित्व को दुष्प्रभावित कर हमें सामान्य मानवीय गुणों की ग्राह्यता में भी
बाधक बन जाती है न शान्ति से सोने देती है न विकास के नए आयामों से जुड़ने देती है।
भय, चिन्ता,आक्रात्मकता, चिड़चिड़ापन, असहिष्णुता को सोते
जगते हमारे चिन्तन से जोड़ देती है। मानव का सहज,, शान्त, तेजस्वी ,दिव्य स्वरुप खोने
लगता है। जो बहुत बड़ी चिन्ता व मूल्य अवनमन का कारण है।
मैं यह कहना चाहूँगा
कि सुबह व रात्रि में सोने से पहले कम से कम
दो घण्टे मोबाइल, अखबार, टेलीविज़न, लेपटॉप स्क्रीन से दूर
रहें। आवश्यक पढ़ें अनावश्यक त्यागें। नकारात्मकता से दूर रहकर सकारात्मक विचारों, व्यक्तित्वों, चिन्तन से खुद को
जोड़ें।
आज यहाँ जिन पाँच
बिन्दुओं पर चर्चा हुई ये हमारे विनाश का कारण हैं यद्यपि इनमें सूक्ष्म अंतर है
लेकिन ये आन्तरिक रूप से मिलकर सम्पूर्ण मानवता का बेडा गर्क कर देते हैं। प्रत्येक
बुद्धिजीवी, राष्ट्रवादी, देश प्रेमी का
कर्त्तव्य है कि इस दुष्चक्र से खुद निकले और सामान्य जन मानस व नव पीढ़ी हेतु
प्रगति पथ तैयार करे। यदि हम सही दिशा दे
पाए तो नई पीढ़ी इसका आलम्बन ले अनन्त ऊँचाइयाँ तय करेगी। सभी अपनी क्षमता भर
प्रयास करें। हम निश्चित ही सफल होंगे। पूर्ण विश्वास है।
जब हम हाई स्कूल उत्तीर्ण कर इण्टरमीडिएट विज्ञान वर्ग में प्रवेश लेते हैं तो तरह तरह के सपने हमारे मनोमष्तिष्क में पल रहे होते हैं यह उम्र ही ऐसी है जो तनाव ,तूफ़ान, सांवेगिक संघर्ष और कल्पना लोकसे हमारा प्रत्यक्षीकरण कराती है लेकिन इण्टर मीडिएट करते करते जागरूक विद्यार्थी के चरण यथार्थ के धरातल को स्पर्श करने लगते हैं। यह काफी कुछ हमारे घर की आर्थिक स्थिति और हमारे मानसिक स्तर से निर्धारित होता है।विविध निरीक्षण बताते हैं कि विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों के साथ उनके मातापिता अन्य वर्ग के विद्यार्थियों की तुलना में अधिक चिन्तित रहते हैं कि अब क्या करें क्या न करें। बच्चे के भविष्य का सवाल है।
आप सभी की समस्या समाधान की ओर यह एक प्रयास है विश्वास है कि यह दिशा बोधक सिद्ध होगा। इण्टर मीडिएट विज्ञान अपने में जीवविज्ञान और गणित के दो दिशामूलक तत्त्व साथ लेकर चलता है। विज्ञान वर्ग से इण्टरमीडिएट करने के बाद डिप्लोमा कोर्स, कम्प्यूटर कोर्स,फार्मेसी, इन्जीनियरिंग, व चिकित्सा परिक्षेत्र के कई मार्ग खुलते हैं साथ ही मिलते हैं विविध सेवाओं में अवसर। जिन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है। –
इण्टर मीडिएट विज्ञान के बाद डिग्री कोर्स (Degree Course after Intermediate
Science)-
विज्ञान वर्ग से इण्टर मीडिएट करने के बाद एक
वृहद पटल खुलता है जिन्हे यहाँ पर एक एक करके बताने का प्रयास करेंगे निम्नवत
डिग्री कोर्स अपनी रूचि, क्षमता, स्थिति
के अनुसार किये जा सकते हैं –
बैचलर ऑफ़ साइंस (B. Sc)
बैचलर ऑफ़ एग्रीकल्चर
बैचलर ऑफ़ फार्मेसी
बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (B. Tech), बैचलर ऑफ़ इन्जीनियरिंग (B.E)
बैचलर ऑफ़ मेडिसिन एन्ड बैचलर ऑफ़ सर्जरी (MBBS)
बैचलर ऑफ़ डेण्टल सर्जरी (BDS)
बैचलर ऑफ़ फीज़ीओथेरेपी (BPT)
बैचलर ऑफ़ होम्योपैथिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BHMS)
बैचलर ऑफ़ आयुर्वैदिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BAMS)
बैचलर ऑफ़ यूनानी मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BUMS)
माइक्रो बायोलोजी
बायो टेक्नोलॉजी
बायोइन्फॉर्मेटिक्स / Bioinformatics
जैनेटिक्स
सामान्यतः लम्बे अन्तराल तक यह माना जाता रहा
की इण्टर PCM के बाद बालक इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में जायेगा उसे JEE Main की तैयारी करनी चाहिए और IIT की चाह रखने वालों को JEE Main के साथ JEE एडवान्स
भी निकालना का प्रयास करने का प्रयास करना होगा।
डिप्लोमा कोर्स से जुड़ने हेतु इलेक्ट्रिकल,
सिविल, मेकेनिकल, केमिकल इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों से जुड़ा
डिप्लोमा कोर्स किया जा सकता है।
दूसरी और चिकित्सा के क्षेत्र में स्थान बनाने
हेतु NEET परीक्षा पास करनी होगी और इसके स्कोर के आधार
पर MBBS, BDS, BHMS, या BUMS आदि
का स्थान मिलेगा।
लेकिन आज पैरा मेडिकल का एक आकाश भी शीघ्र
अर्थोपार्जन का जरिया बन सकता है।
12th PCB के बाद पैरामैडिकल कोर्स –
पैरामेडिकल
का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है जो कक्षा 12 वीं के छात्रों के लिए सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री कोर्स प्रदान करता है।
पैरामेडिकल का यह क्षेत्र पैरामेडिकल
डिग्री वालों हेतु करियर का बहुत बड़ा आयाम प्रदान करता है है। इस कोर्स के लिए न्यूनतम योग्यता 50% अंकों के साथ PCB में 12 वीं पास है। 12th PCB के बाद प्रमुख पैरामैडिकल कोर्स बताने हेतु इस प्रकार
क्रमित किये जा सकते हैं यथा –
बी एस सी
इन मेडिकल इमेजिंग टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन एक्स-रे टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इनडायलिसिस टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन मैडिकल रिकॉर्ड
बी एस सी
इन रेडिओग्राफी
बी एस सी
इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन एनेस्थिया टेक्नोलॉजी
बी एस सी
इन ऑप्टोमेट्री
बी एस सी
इन ऑडियोलॉजी एण्ड स्पीच
बी एस सी
इन थिएटर टेक्नोलॉजी
इसके अलावा बहुत से परिक्षेत्र अपनी जगह बनाते
जा रहे हैं।
कम्प्यूटर कोर्स की
अपनी एक बहुत बड़ी श्रृंखला है जिन्हे
इण्टर मीडिएट के बाद किया जा सकता है ।
सर्व प्रथम आपको बधाई की आपने जीवन का महत्त्वपूर्ण पड़ाव पार किया है विश्व का बहुत बड़ा पटल आपका स्वागत करने को उत्सुक है। बहुत खुशी होती है की भटकाव की उम्र को धता बता आप जब म्हणत और लगन से इस पड़ाव को पार करते हैं और ऐसे ऐसे प्रश्न पूछते हैं की तबियत खुश हो जाती है लेकिन एक प्रश्न आप सबको चिन्तन के लिए विवश करता है कि अब क्या करें ?
इस
प्रश्न का उत्तर सबके लिए अलग अलग होता है क्योंकि सबकी आर्थिक स्थिति, परिस्थितियां, अधिगम स्तर,
ऊर्जा स्तर और सपने अलग अलग होते हैं।
इस
प्रश्न को सही व सार्थक उत्तर तक ले जाने के प्रयास में ही हुआ है आज का यह सृजन।
आपके लिए बहुत से मार्ग खुलते हैं जो आपको आपकी परिस्थिति के अनुसार आगे की पढ़ाई, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम या सेवाकार्य से जोड़ते
हैं। विविध कार्यक्रम इस प्रकार हैं –
इण्टर आर्ट्स के बाद डिप्लोमा(Diploma after Inter Arts)-
अध्यापन
में डिप्लोमा,विदेशी भाषा में डिप्लोमा,चिकित्स्कीय परिक्षेत्र में डिप्लोमा
डिज़ाइनिंग के परिक्षेत्र में डिप्लोमा जैसे फैशन, ज्वैलरी, इंटीरियर, वेब
या ग्राफिक्स इनके अलावा भी आज बहुत से नए डिप्लोमा परिक्षेत्र विकसित हो रहे हैं
जो आपको शीघ्र कमाने योग्य बना सकते हैं। यथा डिप्लोमा इन 3D एनिमेशन,डिप्लोमा इन मल्टीमीडिया, डिप्लोमा इन एडवरटाइजिंग एंड मार्केटिंग, डिप्लोमा इन ट्रैवल एंड टूरिज्म,
डिप्लोमा इन इवेंट मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन साउंड रिकार्डिंग आदि ।
इण्टर आर्ट्स के बाद डिग्री कोर्स (Degree course after inter arts)-
1- बैचलर ऑफ आर्ट्स(बीए)
2-बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए)
3-बैचेलर इन सोशल साइंस
4-बैचेलर इन ह्यूमेनिटी
5-बैचलर इन जर्नलिज्म
6-बैचलर ऑफ साइंस (होस्पिटेलिटी एंड ट्रैवल)
7-बीए एलएलबी
8-बैचलर ऑफ एलीमेन्ट्री एजूकेशन
9-बैचलर ऑफ डिजाइन (एनीमेशन)
10- विविध कला परिक्षेत्र के ऑनर्स डिग्री कोर्स आदि ।
इण्टर आर्ट्स के बाद सेवाएं (Services after Inter Arts)
शिक्षक /Teacher
वकील /Advocate
फैशन या टेक्सटाइल डिजाइनर/Fashion या textile designer
होटल मैनेजमेंट / Hotel Management
पत्रकार / Reporter
सरकारी नौकरी /Government job यथा एसएससी मल्टी टास्किंग स्टाफ, एसएससी ग्रेड C और ग्रेड D आशुलिपिक, रेलवे ग्रुप डी (आरआरबी / आरआरसी ग्रुप डी),एसएससी जनरल ड्यूटी कांस्टेबल, आरआरबी सहायक लोको पायलट, इंडियन आर्मी एग्जाम फॉर द पोस्ट ऑफ टेक्निकल एंट्री स्कीम, महिला कांस्टेबलों, सोल्जर्स, कैटरिंग के लिए जूनियर कमीशन अधिकारी।
स्वरोजगार के विविध अवसर (Various self employment opportunities) -
यदि आप नौकर बनने की जगह मालिक बनाना चाहते हैं तो अपने घर के पुश्तैनी कार्य या आपके लिए सम्भव किसी भी स्वरोजगार से स्वयं को जोड़ सकते हैं कोइ कार्य छोटा बड़ा नहीं होता हमारी सोच उसे छोटा बड़ा बनाती है। आप शीघ्र ही कई अन्य को रोजगार देने की स्थिति में आ जाएंगे।
आज सूचनाएं बिजली की गति से उड़ रही हैं जिन्हे कोई होम सिकनेस नहीं है वे इन अवसरों का लाभ उठा सकते हैं याद रखें एक चूका हुआ अवसर खोई हुई उपलब्धि है कभी हताश निराश नहीं होना है नित्य बदलता बहुत बड़ा आकाश हमारे सामने है। परम श्रद्धेय मैथिली शरण जी की पंक्तियों में सन्देश छिपा है आपके लिए -
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।
बहुधा यह दृष्टिगत होता है कि किन्हीं दिनों अधिक समय तक पढ़ने,कार्य करने वाले लोग भी यह शिकायत करते हैं कि अब उतना कार्य या उतनी पढ़ाई नहीं हो पा रही है ऐसी स्थिति में क्या करें। पढ़ाई में मन कैसे लगाएं।
अक्सर यह देखने को मिलता है की अधिकाँश लोग इस स्थिति से गुजरते हैं
लेकिन इस स्थिति से बचाव किया जा सकता है आवश्यकता है निर्विकल्प होकर दिए गए
बिन्दुओं पर विचार कर अमल में लाने की।
पढ़ाई
में मन लगाने के उपाय (Ways to focus on studies) :-
पढ़ाई
या निर्धारित कार्य में मन लगाने हेतु आवश्यक तत्व इस पकार क्रमित किये जा सकते
हैं –
1- मानसिक साम्य (Mental equilibrium)
2 – लक्ष्य निर्धारण (Goal setting)
3 – अधिगम स्थल चयन (Learning site selection)
4 – डर हटाएँ आत्मविश्वास बढ़ाएं (Eliminate Fear Increase Confidence)
5 – दृढ़ निश्चय (Firm determination)
6 – बाधा निवारण (Obstacle avoidance)
7 – विषयवस्तु आधारित समय सारिणी (Theme Based Time Table)
8 – आरम्भ व निरन्तरता (Beginning and continuation)
आशा ही नहीं विश्वास है कि उक्त आधार पर आपके सपने अपने हो जाएंगे और
आप तन्मयता से अध्ययन या स्वकार्य कर पाएंगे।
रूसो का जीवन बहुत से विरोधाभासों का एक समुच्चय है,वह जेनेवा के एक साधारण कसवे में पैदा हुआ
जिसकी माँ बाल्यावस्था में चल बसी और पिता ने उपन्यासों, कल्पना, संवेदना
द्वारा उसे अकाल प्रौढ़ता प्रदान कर दी, वह
दो वर्ष जेनेवा से बाहर रहा जिसमें उसे प्रकृति के प्रति अनुराग जाग्रत हुआ। उसका
निजी जीवन निम्न कोटि का रहा काहिली और बुरी सङ्गति में उसने कई वर्ष व्यतीत किये
बाद में जीवन की कृत्रिमताओं ने उसे व्यथित कर दिया लेकिन इन सारी स्थितियों में
वह अध्ययन करता रहा वह उसकी निम्न कोटि की नौकरी के कारण जैसा भी रहा। कृत्रिमता
के प्रति घृणा का स्तर बढ़ा और प्रतिक्रिया स्वरुप व्यर्थ सामाजिक आदर्श, कृत्रिमता के आवरण में लिपटी चरित्र हीनता को
जब उसने जनमानस के समक्ष रखा तो सुषुप्त जनमानस में क्रांतिकारी ज्वार आ गया और वह
अकस्मात् प्रसिद्द हो गया। अन्ततः वह एक अच्छे अध्यापक, नाटककार, संगीतज्ञ
व लेखक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सृजित किये।
1 – प्रोजेक्शन फॉर द एजुकेशन ऑफ़ एम० डीसेंट मैरी
2 – डिस्कोर्स ऑन द साइंसेज
एन्ड आर्ट्स (1750)
3 – ओरिजिन ऑफ़ इनइक्विलिटी एमंग मैन (1755)
4 – डिस्कोर्सऑन पोलिटिकल इकोनॉमी (1755)
5 – द न्यू हेलाइस (1761)
6 – द सोशल कॉन्ट्रेक्ट (1762)
7 – एमील (1762)
8 – सोशल इनइक्विलिटी(1754)
9 – कॉनफैशन ऑफ़ द विकार ऑफ़
सेवाय
रूसो के अनुसार शिक्षा (Education according to Rousseau)-
1 – शिक्षा
एक स्वाभाविक प्रक्रिया
2 – शिक्षा
के दो रूप
(a) – सार्वभौमिक शिक्षा -राज्य द्वारा जैसा कि
प्लैटो की रिपब्लिक में
(b) – घरेलू शिक्षा – घर द्वारा जैसा कि एमील में
वर्णित
3 – आन्तरिक
शक्ति का विकास सच्ची शिक्षा
Rousseau –
“True education is something
that happens from within the individual. It is an unfolding of his own latent
powers.”
“सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति के भीतर से होती है। यह उसकी अपनी
गुप्त शक्तियों का प्रकटीकरण है।”
4 – शिक्षा
सभी के लिए आवश्यक
5 – शिक्षा
का परम लक्ष्य – सुव्यवस्थित स्वतन्त्रता
रूसो महोदय के अनुसार –
“वही व्यक्ति स्वतन्त्र है जो उसी बात की
कामना करता है जो करना चाहता है और वही करता है जो चाहता है।”
6 – शिक्षा
आयु के अनुसार →शैशवावस्था →बाल्यावस्था →किशोरावस्था →युवावस्था
7 – शिक्षा
का उद्देश्य मानव को मानव बनाना →रूसो
स्वयं कहते हैं कि →
“मैं यह बात स्वीकार करता हूँ कि मेरे पढ़ाने के
बाद वह सबसे पहले मनुष्य बनेगा,न्यायाधीश,सैनिक,पादरी
बाद में। ”
8 – शिक्षा
प्राकृतिक शक्तियों का विस्तार → उन्होंने
स्पष्ट रूप से कहा –
“यह प्राकृतिक शक्तियों का एक विस्तार है न कि
सूचनाओं का एक संग्रह। यह स्वयं जीवन है न कि बाल्यजीवन की रुचियों एवं विषमताओं से दूर भावी जीवन की एक तैयारी। ” ((भाषा और भूगोल थोपना गलत)
शिक्षा के उद्देश्य (Aims of education) –
1 – इन्द्रिय
प्रशिक्षण (Sense training)
2 – शारीरिक
विकास (Physical
development)
3 – बुध्दि
का विकास (Development of intelligence)
4 – भावात्मक
विकास Emotional
development)
5 – जीवन
कला (Life art)
6 – अधिकार
रक्षा (Protection of
rights)
7 -व्यक्तित्व
विकास (Personality development)
पाठ्यक्रम (Syllabus) →
रूसो महोदय ने पाठ्यक्रम को तीन भागों में बाँटा –
A – प्रकृति
सम्बन्धी विषय – प्राकृतिक विज्ञान,भूगोल
आदि
B – मनुष्य
सम्बन्धी विषय – भाषा,मनोविज्ञान,समाजिकशास्त्र, राजनीति शास्त्र,अर्थशास्त्र,आदि।
C – वस्तु
सम्बन्धी विषय – भौतिक शास्त्र और पदार्थ विज्ञान।
4 – युवावस्था
→ धर्म, नीति, इतिहास, कला, संगीत, यौन
शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, अर्थ शास्त्र, राजनीति शास्त्र,सामाजिक
शास्त्र आदि
नारी शिक्षा हेतु गृह
विज्ञान,संगीत,नृत्य,सिलाई,बुनाई,धर्म,नीति
आदि ।
*निषेधात्मक शिक्षा – रूसो महोदय के अनुसार -→
“शिक्षा निषेधात्मक होनी चाहिए। निषेधात्मक शिक्षा का अर्थ आलस्य में
समय बिताना नहीं है बल्कि जो ज्ञान देने के पूर्व बालक के शारीरिक व मानसिक विकास
के द्वारा उसे विचारशील बनाती है वही निषेधात्मक शिक्षा है। इस शिक्षा के द्वारा
बालक अपना अच्छा बुरा पहचानने में समर्थ हो जाता है।”
रूसो तत्कालीन व्यवस्था से इतना दुःखी था कि उसे कहना पड़ा -→
“Take the reverse of the accepted practice and you will
almost always do right.”
“शिक्षा के जितने प्रचलित सिद्धान्त हैं उसके विपरीत कार्य करो तभी
तुम सही काम कर सकोगे।”
शिक्षण विधियाँ (Teaching methods) –
व्यवसाय की शिक्षा तथा हाथों का प्रयोग उसे प्रिय है पुस्तकों में
संलग्नता की जगह हाथों का काम उचित है इस हेतु ‘योजना पद्यति’
का एक रूप उसने दिया। करके सीखना, योजना
पद्यति का वर्णन उसने व्यवहार वाद से पहले ही कर दिया। केवल भाषण व आदेशात्मक
शिक्षा का वह विरोधी था। भ्रमण द्वारा शिक्षा, प्रकृति
निरीक्षण व स्व अनुभव द्वारा शिक्षण पर वह बल देता था। उसने स्वयं शोध व
उपदेशात्मक शिक्षण विधि को स्वीकार किया।
गुरु शिष्य सम्बन्ध (Teacher-disciple relationship) –
वह बालकेन्द्रित शिक्षा पर अधिक बल देता है, अध्यापक शिक्षा हेतु वातावरण सृजित करे उसकी
महती भूमिका परदे के पीछे है। कृत्रिमता से हटाकर प्रकृति सानिध्य में लाने का
कार्य अध्यापक का है उसने ऐन्द्रिक विकास हेतु शिक्षक का आवाहन किया और कहा –
“All wickedness comes from weakness, a child is
bad because hi is weak, make him strong and hi will be good.”
“सारे दोष कमजोरी से आते हैं बालक कमजोर है
इसलिए बुरा है उसे बलिष्ठ बनाओ और वह अच्छा हो जाएगा।”
अनुशासन (Discipline) –
ये बच्चे को समाज से दूर प्राकृतिक वातावरण में रखना चाहते थे इनका
मानना था –
“Everything is good as it comes from the hands of
the author of nature, men maddle with it and it degenerates.”
“सब कुछ अच्छा है क्योंकि यह प्रकृति के लेखक के
हाथों से आता है, पुरुष इसके साथ खिलवाड़ करते हैं और यह पतित हो जाता है।”
इसीलिये इन्होने स्वतन्त्रता का सिद्धान्त व प्राकृतिक परिणामों को
स्वीकारने की बात कही।
विद्यालय (School)-
ये चाहते थे की प्राकृतिक वातावरण में विद्यार्थी स्वतन्त्रता पूर्वक
अध्ययन करें और अध्यापक उनके सहयोगी के रूप में कार्य करें न कि अनुदेशक के रूप
में। बच्चे को प्रेम पूर्वक सिखाएं व अधिकतम स्वतन्त्रता प्रदान करें।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनके कई विचार
अर्थहीन हो चुके हैं लेकिन उनका ‘प्रकृति की ओर लौटो‘
का नारा आज भी प्रासंगिक है और बाल केन्द्रित
शैक्षिक अवधारणाएं आज भी रूसो के विचारों की प्रदक्षिणा करती दीखती हैं। उन्हें
लोकतन्त्र के प्रणेता के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।
इससे आशय आंग्ल भाषा के Creativity से है सर्जनात्मकता शब्द कुछ ऐसे शब्दों द्वारा भी लोगों द्वारा
अभिव्यक्त किया जाता है जो अर्थ में इससे अन्तर रखते हैं जैसे विधायकता, उत्पादकता, खोज
आदि जबकि विधायकता से एकत्रीकरण का,उत्पादकता(Productivity) से उत्पादन का और खोज से Search या Discovery का बोध होता है। सृजनात्मकता को इसका पर्याय या
सबसे करीबी माना जा सकता है जब कि सृजन में शून्य का भाव निहित है और सर्जन में
वर्तमान या विद्यमान में नवीनता या मौलिकता की सृष्टि करनी पड़ती है। वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में सर्जनात्मकता के समानान्तर सृजनात्मकता, रचनात्मक, सर्जक,उत्पन्न करना, बनाना आदि को आवश्यकता नुसार लिया जा सकता है।
सर्जनात्मकता की परिभाषाएं (Definitions of creativity) :-
विविध विद्वानों द्वारा इसे विविध रूप से पारिभाषित किया गया है स्टेन
महोदय का मानना है –
“When it results in a novel work that is accept
as tenable or useful or satisfying by a group at some point in time.”
“जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो जो किसी समय
में समूह द्वारा उपयोगी मान्य हो, वह कार्य सृजनात्मकता कहलाता है। ”
एक अन्य विद्वान् मेडनिक महोदय का मानना है कि –
“Creative thinking consists of forming new
combinations of associative elements. Which combinations either meet specified
requirements or are in some way useful.The more mutually remote the elements of
new combinations. The more creative is the process of solution.”
“सर्जनात्मक चिन्तन में साहचर्य के तत्वों का
मिश्रण रहता है जो विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संयोगशील होते हैं या किसी
अन्य रूप में लाभ दायक होते हैं। नवीन संयोग के विचार जितने कम होंगे,सृजनात्मकता की सम्भावना उतनी ही अधिक होगी।”
क्रो एण्ड क्रो महोदय का विचार है :-
“Creativity is a mental process to express the
original outcomes.”
“सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया
है।”
एक अन्य महत्त्वपूर्ण विचारक सी० वी ० गुड महोदय का मानना है :-
“A quality of thought to be composed of broad
continue upon which all members of the population may be placed in different
degrees, the factors of creativity are tentatively described as associate and
ideational fluency, originality adaptive and spontaneously flexibility and
ability to make logical evaluation
“सर्जनात्मकता वह विचार है जो किसी समूह में
विस्तृत सातत्य का निर्माण करता है सर्जनात्मकता के कारक हैं -साहचर्य, आदर्शात्मक मौलिकता, अनुकूलता,सातत्यता,लोच एवम तार्किक विकास की योग्यता।”
उक्त विचारों के आलोक में कहा जा सकता है कि सर्जनात्मकता में
मौलिकता, नवीनता, उपयोगिता, संयोग से सृजन, आवश्यकतानुसार सृजन के गुण विद्यमान रहते हैं। जिनका आधार चिन्तन
होता है।
विद्यार्थियों में
सृजनात्मकता की वृद्धि के उपाय (Ways to increase creativity in students) –
1- विद्यार्थियों
की प्रतिक्रियाओं को उचित सम्मान (Due respect to the responses of the students)
2 – कल्पना
आधारित प्रस्तुतीकरण (Imagination Based Presentation)
3 – पाठ्यक्रम
में क्रिया आधारित अधिगम को बढ़ावा (Promotion of action based learning in
the curriculum)
4 – सूचना
संग्रहण, आकलन
विश्लेषण का उपयोग (Information collection, use of assessment analysis)
5 – पाठ्य
सहगामी क्रियाओं से सृजनशीलता का विकास (Development of creativity through
co-curricular activities)
6 – उपयुक्त
शिक्षण विधियों का प्रयोग (Use of appropriate teaching methods)
7 – तार्किकता
का उन्नयन (Upgrading
Logic)
8 – अभिव्यक्ति
के समुचित अवसर (Reasonable opportunities for expression)
विषय वस्तु को अध्ययन व अधिगम के दृष्टिकोण से निम्न भागों में बाँट
कर अध्ययन करेंगे :-
1 – सामाजिक
नियन्त्रण की अवधारणा (concept
of social control)
2 – सामाजिक
नियन्त्रण से आशय व विविध परिभाषाएं
(Meaning and definitions of social
control)
3 – शैक्षिक
विकास में सामाजिक नियन्त्रण की भूमिका
(Role of
social control in educational development)
4 – निष्कर्ष
(Conclusion)
1 – सामाजिक नियन्त्रण की अवधारणा (concept of social control): –
भारत में सामाजिक नियन्त्रण की अवधारणा सर्वाधिक पुरातन व सनातन है
सर्व प्रथम ऋषि परम्पराओं व उनके निर्देशों में इनके दर्शन होते हैं और इनका
सर्वाधिक व्यवस्थित रूप कर्म प्रधान वर्ण व्यवस्था में द्रष्टव्य होता है विविध
राजाओं, कबीलों व समुदायों की व्यवस्था में भी इसके अंश
दिखाई देते हैं। कर्म प्रधान वर्ण व्यवस्था पर विविध विद्वत जनों ने कार्य किया
है।
हम स्वभावतः या उदार या गुलाम मानसिकता के चलते
हर विचार की जड़ हिन्दुस्तान से बाहर देखना चाहते हैं इस क्रम में अमेरिका के
प्रसिद्द समाज शास्त्री E.A.Ross की 1901 में लिखी गई पुस्तक सोशल कन्ट्रोल (SOCIAL
CONTROL) का
आधार लिया जाता है इन्होने अपनी पुस्तक में व्यवस्थित रूप से समाज के नियन्त्रण
कार्य, संस्थाओं
में धर्म, विश्वास
कानून नैतिकता लोकमत रीति रिवाज व शिक्षा की भूमिकाओं का वर्णन किया है।
2 – सामाजिक नियन्त्रण से आशय व विविध परिभाषाएं
(Meaning and definitions of social
control)
सामाजिक नियंत्रण से आशय उस नियंत्रण से है जिसमें समाज की उन्नति के
बीज छिपे होते हैं इस हेतु जिन मर्यादाओं परम्पराओं व नियमों का अनुपालन आवश्यक
होता है उसके सुनिश्चितीकरण का प्रयास
किया जाता है। इसके माध्यम से समूह द्वारा निर्धारित नियमों का अनुपालन कराने हेतु
बाध्यकारी शक्तियों को भी प्रयोग में लाया जाता है। वस्तुतः सामाजिक उद्देश्यों व
सामाजिक आदर्शों के स्थापन हेतु इनका प्रयोग किया जाता है।
प्रसिद्ध समाजशास्त्री रॉस महोदय कहते हैं –
“सामाजिक नियन्त्रण का तात्पर्य उन तमाम
व्यक्तियों से है, जिसके द्वारा समुदाय व्यक्तियों को अपने अनुसार
ढालता है। ”
“Social
control refers to all those individuals by which the community molds
individuals according to itself.”
मैकाइवर व पेज के अनुसार –
“सामाजिक नियन्त्रण से आशय उस तरीके से है
जिससे सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था अपने को संगठित बनाये रखती है।”
“Social
control refers to the manner in which the whole social system keeps itself
organized.”
बोगार्ड के अनुसार –
“सामाजिक नियन्त्रण वह पद्यति है,जिसमें एक समूह अपने सदस्य के व्यवहारों को
नियन्त्रित करता है। ”
“Social
control is the method in which a group controls the behavior of its
members.”
लेण्डिस महोदय के अनुसार –
“सामाजिक नियन्त्रण वह प्रक्रिया है जिसके
द्वारा सामाजिक व्यवस्था स्थापित तथा बनाये राखी जाती है।”
“Social
control is the process by which social order is established and
maintained.”
आर. जी. स्मिथ महोदय के अनुसार –
“सामाजिक नियन्त्रण उन उद्देश्यों की प्राप्ति
है जो उन उद्देश्यों के साधनों के प्रति चेतन सामूहिक अनुकूलन द्वारा होती है।”
“Social control is the attainment of those
objectives by conscious collective adaptation to the means of those
objectives.”
3 – शैक्षिक विकास में सामाजिक नियन्त्रण की भूमिका
(Role of social control in educational development)
01- व्यवहार नियन्त्रण द्वारा शैक्षिक विकास(Educational Development by Behavioral
Control)
02- सामाजिक समानता को प्रश्रय (Supporting social equality)
03- स्वीकृत मूल्यों का स्थापन(Establishment of Accepted Values)
04- एकता स्थापन हेतु (To establish unity)
05- व्यावहारिक प्रतिमानों व सामाजिक बुराइयों के
प्रति सजगता(Awareness of practical norms and social evils)
06- शैक्षिक सामाजिक उद्देश्यों का गठन(Formation of Educational Social
Objectives)
07- विविध निष्पादित कार्यों में सन्तुलन(Balance in various tasks)
08- सुख, शान्ति स्थापन(Happiness, Peace Establishment)
09- समरसता को बढ़ावा (Promote harmony)
10 – रूढ़िवाद से मुक्ति(Freedom from conservatism)
4 – निष्कर्ष (Conclusion):
सारतः कहा जा सकता है कि निष्पक्ष सामाजिक नियन्त्रण मानव मात्र की प्रगति का एक सुखद उपागम है इससे अन्ततः मानवीय मूल्यों का संरक्षण होगा और मानव की क्रमिक प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षा को नई व्यावहारिक दिशा मिलेगी और यहां की स्थितियों के आधार पर कार्य संपन्न हो सकेंगे।