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वाह जिन्दगी !

ये नर तन तो बस माटी है।/Ye Nar Tan To Bas Maati H,

May 14, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ये नर तन तो बस माटी है

आओ, हम इसमें अर्थ भरें,

यह जीवन इक परिपाटी है

अतः दिशा इसकी तय करें ।1।

इस लघु मिट्टी के बरतन में

धर्म अर्थ काम व  मोक्ष भरें

अनुपात सही तय करने में

ऋषि, मुनियों का मार्ग वरें ।2।

ऋषि मुनि का सन्देश वही

हम सद्अर्थों का भान करें

पोंगा पन्थी और रूढ़ न हों

कालानुसार  व्यवहार  करें ।3।

धर्म के सच्चे अर्थ ग्रहण हों

धरम में अब  न अधर्म भरें

संहार हमारा कर्म नहीं हो

रचना पालन का कर्म करें ।4।

जिस आचार में मूल्य न हो

उस पथ पर, पग नहीं धरें

सत्यम्, शिवम्, सुंदरम हों

तो खतरा लेकर, मूल्य वरें ।5।

जनम संग मृत्यु निश्चित है

सहज भाव, स्वीकार  करें

सत, रज, तम भाव शेष है

‘ नाथ ‘ उचित संयोग करें ।6।

ये नर तन तो बस माटी है

आओ, हम इसमें अर्थ भरें,

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काव्य

मनन है अब भी अधूरा/Manan H Ab Bhi Adhoora.

May 11, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

हड़बड़ा कर उठ गया था स्वप्न ने क्या रंग दिखाए

जो भी मानस पटल पर थे दृश्य सुन्दर मन रिझाए

कल्पना संजोए उड़ रहा था चित्र बन पाया न पूरा

मनन  है अब भी  अधूरा, मनन  है अब भी अधूरा ।1।

योग की शाला लगी थी शृद्धा तन – मन में भरी थी

पूर्ण सारी हो रही थी, मन में  मधुर आशा लगी थी

आशा नहीं वो लालसा थी ज्यों बेल पत्री संग धतूरा 

मनन  है अब भी  अधूरा, मनन  है अब भी अधूरा ।2।

यज्ञपूजन चल रहा था यजमान भी सब हवन में थे

मन्त्रोच्चारण हो रहा था पर भाव यूँ  ही अनमने थे

मानव सबसे श्रेष्ठ रचना पर ध्यान हो पाया न पूरा  

मनन  है अब भी  अधूरा, मनन  है अब भी अधूरा ।3।

यम नियम का भान भी था, ज्ञान का संज्ञान भी था

आसन व प्राणायाम भी था समाधि इन्तजाम भी था

लेकिन फिरभी दिख रहा था धारणा कारज अधूरा   

मनन  है अब भी  अधूरा, मनन  है अब भी अधूरा ।4।

ज्वार जैसा उठ रहा था सद् भावनाएं भी प्रबल थीं

समन्दर पूरे उरोज पर था घनघटाएं उमड़ रहीं थीं

चला पूरे जोश में था पर आत्म विश्वास संग फितूरा   

मनन  है अब भी  अधूरा, मनन  है अब भी अधूरा ।5।

तन प्रयाण कर रहा था तब साथी सम्बन्धी भी आये

लोक कार्य सब कर चला था मोक्ष के सपने न आए

मृदङ्ग, ढोलक बज रहा था ‘ नाथ ‘ संग था तानपूरा      

मनन  है अब भी  अधूरा, मनन  है अब भी अधूरा ।6।   

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वाह जिन्दगी !

अज्ञान के विरोध में संज्ञानता रहे।

April 9, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अज्ञान  के  विरोध  में संज्ञानता रहे।

विश्व में, आचार्य की महानता रहे, महानता रहे।।

आवाज  हैं  अनेक, नाद एक राष्ट्र में।

विविध  हैं स्वरुप, ज्योति एक राष्ट्र में।

सद् धरम हैं अनेक, ध्येय एक राष्ट्र में। 

सद् मार्ग हैं अनेक, लक्ष्य एक राष्ट्र में।

ब्रह्म निष्ठा लगन एकता विद्वानता रहे।

विश्व  में, आचार्य  की  महानता  रहे, महानता रहे।।

जाग्रत  हो  विवेक, जगें एक राष्ट्र में।

तरीके  हैं  अनेक, कार्य एक राष्ट्र में।

सोच  हैं अनेक, उद्देश्य एक राष्ट्र में।

वेश  हैं  अनेक, एकत्व एक राष्ट्र में ।

उपनिषद धर्म वेद की प्रधानता रहे ।

विश्व  में,  आचार्य की महानता रहे, महानता रहे।।

सद् मूल्य  हों अमूल्य, रहें  एक राष्ट्र में।

विस्तृत हो दृष्टि कोण, मिलें एक राष्ट्र में।

परम श्रेष्ठ  हों  विचार, गढ़ें एक राष्ट्र  में।

विकसित हो देशप्रेम, खिलें एक राष्ट्र में।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष,  पुरुषार्थता  रहे।

विश्व  में,  आचार्य की महानता रहे, महानता रहे।।

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वाह जिन्दगी !

सद्कर्म करना चाहिए।

March 5, 2020 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जीवन में एैसे कर्म का वरण करना चाहिए,

सर्वजन कल्याण हो, वह कर्म करना चाहिए,

अपने लिए अपनों के हित कर्म करते हैं सभी,

विश्व का कल्याण मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

धर्मअर्थ काममोक्ष हित सद्कर्म करना चाहिए।।

पुरुष हैं पुरुषत्व का ही वरण करना चाहिए,

लिङ्ग भेद कारण ना बने कर्म करना चाहिए,

स्वजन के उत्थान हित, तो काम करते हैं सभी,

जगत कल्याणार्थ हमको करम करना चाहिए।

धर्मअर्थ काममोक्ष हित सद्कर्म करना चाहिए।।

रक्त बह चुका बहुत, रस धार बहना चाहिए,

कटुताप्रश्रय है बहुत सदवचन कहना चाहिए,

क्रोध का अवलम्ब ले सर गरम करते हैं सभी,

करुणा रस आधार ले आचरण करना चाहिए।

धर्मअर्थ काममोक्ष हित सद्कर्म करना चाहिए।।

प्रत्येक रोम महन्त हो वह सन्त बनना चाहिए,

घृणा प्रसरण हो नहीं यह धरम बनना चाहिए,

अपने ज़रा से कार्य पर हम गर्व करते हैं सभी,

कर्मफल जिनका जगत उसे नमन करना चाहिए।

धर्मअर्थ काममोक्ष हित सद्कर्म करना चाहिए।।

भ ग व अ न के अर्थ का प्रसार करना चाहिए,

भू गगन वायु अगन नीर पावस रहना चाहिए,

अपने अपने ईश को ले, क्यों झगड़ते हैं सभी,

ईश्वर सभी का एक है, यह मान लेना चाहिए।

धर्मअर्थ काममोक्ष हित सद्कर्म करना चाहिए।।

त्रितापहारिणी शक्ति शिव मनन करना चाहिए,

दैहिक,दैविक,भौतिक ताप हरण करना चाहिए,

अर्थ शिव कल्याण है क्यों अनजान बनते हैं सभी,

सकल जग कल्याण हित ही करम करना चाहिए।

धर्म अर्थ काम मोक्ष हित सद्कर्म करना चाहिए।

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वाह जिन्दगी !

मृत्यु आनन्द दिलाएगी।

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

तन गाड़ी चलती जानी है, ये परम धाम तक जाएगी,

नहीं चलेगा साथ कोई निज करनी टिकट दिलाएगी,

मोक्ष धाम की टिकट प्राप्ति, सद्कर्मों से हो पाएगी ,

यदि स्तर कुछ निम्न रहा इस जग में पुनः ले आएगी।

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।

अटूट श्रद्धायुक्त विश्वास रखो मृत्यु आनन्द दिलाएगी,

मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा तो अजर कहलाएगी,

नूतन शरीर धारण होगा या हमें मुक्ति मिल जायेगी ,

तय अमरता आत्मा की सद्कर्म से गति मिल पाएगी।

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।

आसक्ति रहेगी यदि बाकी, मृत्यु कठिन हो जाएगी,

अपूर्ण कार्य पूर्ण करने,नवशरीर धर आत्मा आएगी,

जग से सम्बन्ध बिसारोगे तब ही मुक्ति मिल पाएगी,

आनन्द की यात्रा ही इकदिन वांछितलक्ष्य दिलाएगी।

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।

कार्यकारण का पावन निर्धारण ईश सत्ता करवाएगी,

मिथ्या आसक्ति मोक्ष तज, जन्म कारण बन जाएगी,

तनविकार व मनविकार फिर दुनियाँ में भटकाएगी,

बार बार मनन चिन्तन करने में हमें देर लग जायेगी।

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।।

आसक्ति तजोगे यदि तुमसब बुद्धि निर्मल हो जाएगी,

निर्मल चिन्तन से प्राप्त शक्ति, सद्चिन्तन करवाएगी,

सुप्रारब्ध गठन की शक्तिशुभ अच्छे दर्शन से आएगी,

चिन्तन सशक्त हो जाएगा निश्चित मुक्ति मिल जाएगी।

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।।

सब आवागमन क्रमशः टूटेगा, मृत्यु निद्रा सम आएगी,

परमेश्वर में हम लयहोंगे यह सोच आनन्द दिलाएगी,

परमात्मा का परमेश्वर का आलम्ब सृष्टि रख पाएगी,

सारी यात्रा सुगम सुखद होगी मृत्यु थकान मिटाएगी।

आ जाएगा आनन्द हमें,  तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।।

व्यवस्थित होगा ये जीवन व्यवहार में भी लयआएगी,

दुर्भावना समूल भग जाएगी छलछद्म नष्ट हो जाएगी,

जाने की जग से वजह मिले, यात्रा मङ्गल हो जाएगी,

पावन होगा सफर सारा, शवयात्रा पावन हो जाएगी। 

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।।

पावन पावन कारण सुनकर मन में सिहरन आएगी,

मोक्ष हुआ निश्चित या फिर, आत्मा सम्बन्ध बनाएगी,

दोनों ही स्थिति मन सुन लो, जिज्ञासा बढ़ती जाएगी,

सद्कर्म प्रवृत्ति बढ़ेगी तब मन में शान्ति छा जाएगी।

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।। 

दुनियाँ तो आनी जानी है यह भावना मन में आएगी,

इस जग में कर्म पूरे कर के, जाने की बारी आएगी,

यात्रा के आनन्द की सुन, मन में सुगन्ध छा जाएगी,

पुलकित होगा निर्भयमन अंतिम क्षण स्मृति आएगी।         

आ जाएगा आनन्द हमें, तन मृत्यु आनन्द दिलाएगी।।

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काव्य

मृत्यु का अहसास कैसा लगता है ?/MRATYU KA AHSAAS KAISA LAGATA HAI?

September 29, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मृत्यु का अहसास कैसा लगता है ?

होना  जिन्दा लाश कैसा लगता है ?

मृत्यु- पूर्व आभास कैसा लगता है ?

श्वास न बने प्रश्वांस कैसा लगता है ?

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काव्य

मुक्ति मार्ग /MUKTI MAARG

August 30, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मानव स्वयम को जगत का सर्वोत्कृष्ट प्राणी मानता है। विभिन्न सन्त,महन्त,धर्म गुरु इस खिताब को मानव के पक्ष में रख कर श्रेष्ठ तन के रूप में व्याख्यायित करते हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य के जघन्यतम अपराध यही मानव तो कर रहा है ऐसी स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण सवाल चिन्तन को झकझोरते हैं प्रस्तुत प्रारम्भिक चार पंक्तियों में जो सवाल मानसिक द्वन्द ने खड़े किये शेष पंक्तियों में भारतीय परिवेश में समाधान देने का प्रयास है,रखता हूँ आपके पावसआँगन में:-

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