पिया के दर्द की शिद्दत

बस दीवानी समझती है।

जल बिन जी नहीं सकते

तड़प मछली समझती है ।1।

नयन की भीगती भाषा

अश्रु पीड़ा समझती है।

स्वरों में दर्द है कितना 

ये वीणा भी समझती है ।2।

न तो मीरा  समझती है

न राधा ही, समझती है।

हृदय की वेदनाओं को

कृष्ण लीला समझती है।3।

कोई सजना सँवरता है

कोई सजनी सँवरती है।

मिटाकर है बनाया फिर

समझती एक हस्ती है ।4।

कोई  दुर्गा  समझती है

कोई काली समझती है।

मनः  सम्वेदनाओं  को

बस  माँ  ही समझती है।5।

ये तुम, क्या समझते हो

ये वह, क्या समझती है।

एक ईश्वर के, बन्दे सब

सूझ पर क्या समझती है।6।

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