काव्य की गहराई में यूँ डूब जाना चाहिए।

जिन्दगी का दर्दोग़म सब छूट जाना चाहिए।।

छा रही है कालिमा हर सम्त दुनियाँ में यहाँ।

चमचमाता एक सूरज अब उगाना चाहिए।।

दुष्टता बढ़ने लगे जब शान्ति के मैदान में ।

मर्दानगी मुर्दानगी में युद्ध होना चाहिए ।।

लग रहे हों दाग जब बिलकुल गलत अन्दाज में ।

दाग का यह चलन ही बल से मिटाना चाहिए ।।

वार्ता के दौर से हासिल न कुछ होता हो गर ।

‘नाथ’ दौरे दुश्मनी जड़ से मिटाना चाहिए ।।

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