प्रकृतिवाद क्यों उठा (Why did Naturalism arise?)

               अथवा                                        or

प्रकृतिवाद की उत्पत्ति के उत्तरदाई कारण(Causes responsible for arising Naturalism)

पाश्चात्य चिन्तनधारा की दार्शनिकता अठारहवीं शताब्दी के मध्य में वह ज्वार लाई जिससे प्रकृतिवाद उद्भवित हुआ वस्तुतः उक्त तथ्य के स्पष्टीकरण हेतु उस काल की सामाजिक स्थिति का अवलोकन अपरिहार्य प्रतीत होता है, उस काल में जर्मनी में अति धार्मिकता या पूण्य शीलता (Pietism), फ्रांस में जैनसेनिज्म(Jansenism), इंग्लैण्ड में अतिनैतिकतावाद (Puritanism) के आन्दोलन से धर्म में नियम निष्ठता व नियमित विनय (Formalism) बढ़ रहा था, धर्म की कठोरता आडम्बर की उत्पत्ति का कारण बन रही थी।

            लुई चतुर्दश का यह शासनकाल योरोप में फ्रान्स की श्रेष्ठता का काल था, साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, प्रायः सभी क्षेत्रों में फ्रांस दूसरों हेतु आदर्श स्वरुप हो रहा था चर्च सर्वेसर्वा था।  विचार और कार्य के क्षेत्र में उसकी ध्वनि अन्तिम थी। इस निरंकुशता ने धनिक वर्ग को मदमस्त किया व साधारण जन वर्ग इस मस्ती का शिकार बना यथा साधारण लोगों को आलू की तरह भून देना, 164 अपराध होने पर मृत्यु दण्ड (इंग्लैण्ड), कल्पित नास्तिकों पर अत्याचार आदि के परिणाम स्वरुप विरोध की ध्वनि का गुञ्जन हुआ।

            यह मुख्यतः दो तरीकों से हुआ –

(a) – बुद्धि द्वारा विचारों के प्रसार की परिणति प्रकृति वाद में हुई, जिसे बुद्धि द्वारा विरोध या प्रबोध (Enlightenment) कहते हैं। प्रबोध की लहर प्रकृतिवाद के उद्भव का कारण बनी, इस लहर को फैलाने का श्रेय फ्रांस व जर्मनी के दार्शनिकों, स्वतन्त्र विचारकों व आध्यात्मिक लेखकों को है इंग्लैण्ड में लॉक को प्रबोध का प्रतिनिधि कहा जाता है कई विद्वान बौद्धिक शक्ति की प्रथम लहर का प्रतिनिधि वाल्टेयर व उत्तर काल की लहर  का प्रतिनिधि रूसो को स्वीकारते हैं।रूसो के व्यापक प्रभाव को स्वीकारते हुए ही कहा गया कि जो दूसरे सोच रहे थे उसे वाल्टेयर ने कहा परन्तु जो दूसरे अनुभव कर रहे थे उसे रूसो ने कहा।  

(b) – जनवर्ग द्वारा अधिकार प्राप्ति के संघर्ष की परिणति फ्रांस की राज्य क्रान्ति के रूप में हुई और प्रकृतिवाद को आधार मिला।

            इस प्रकार राजनीति, धर्म व विचार के क्षेत्र की निरंकुशता का परिणाम प्रकृति वाद के रूप में अस्तित्व में आया अब धर्म का आधार चर्च नहीं बल्कि मानव स्वभाव नया आदर्श बना।

प्रकृति वाद की परिभाषा –

प्रकृति वाद की परिभाषा देते हुए W.E. Hocking ने  कहा –       

“Naturalism is the type of metaphysics which takes nature as the whole of reality. That is it excludes whatever is supernatural or otherworldly.”

“प्रकृतिवाद तत्त्वमीमांसा का वह रूप है जो प्रकृति को पूर्ण वास्तविकता मानता है अर्थात यह परा प्राकृतिक या दूसरे जगत को अपने क्षेत्र के बाहर रखता है।”

जबकि James Ward महोदय का मानना है कि –

“Naturalism is the doctrine which separates nature from God, subordinates spirit to the matter, and sets up unchangeable laws as supreme.”

“प्रकृतिवाद वह सिद्धान्त है जो प्रकृति को ईश्वर से अलग करता है आत्मा को पदार्थ के अधीन करता है तथा अपरिवर्तनीय नियमों को सर्वोच्च मानता है।”

Thomas and Lang महोदय कहते हैं –

“Naturalism as opposed to Idealism subordinates mind to matter and holds that ultimate reality is material not spiritual.”

प्रकृतिवाद आदर्शवाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधीन मानता है और विश्वास करता है कि अन्तिम वास्तविकता भौतिक है आध्यात्मिक नहीं।”

Joyse महोदय का मानना है

“Naturalism is a system whose silent characteristics is the exclusion of whatever is spiritual or indeed whatever is transcendental of experience from our philosophy of nature and man.”

“प्रकृतिवाद वह तन्त्र है जिसकी प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना है अथवा प्रकृति एवम् मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन में उन बातों को स्थान देना है जो हमारे अनुभवों से परे नहीं हैं।’’

प्रकृतिवाद के प्रकार

तत्त्व ज्ञान की दृष्टि प्रकृतिवाद को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है –

(A) – वैज्ञानिक प्रकृतिवाद –

इसमें भौतिक विज्ञान आधारित प्रकृतिवाद(आकस्मिकता सिद्धान्त ) व जीव विज्ञान आधारित प्रकृतिवाद (डार्विन का विकास वाद )आते हैं।

(B) – यन्त्र वाद

प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएं  (Characteristics of Naturalistic Education) –

(1) – पूर्ण स्वतन्त्रता (Full Freedom)

(2) – बालक केन्द्रित शिक्षा (Child Centered Education)

(3) – प्रगतिशीलता (Progressiveness)

(4) – किताबी ज्ञान का विरोध (Abolition of Bookish Knowledge)

(5) – निषेधात्मक शिक्षा (Negative Education)

Rousseau महोदय इसके समर्थन में कहते हैं –

“The first education ought to be purely negative. It consists not all in teaching virtue or truth but in shielding the heart from vice and the mind from the error.”

“बालक की प्रथम शिक्षा विशुद्ध रूप से निषेधात्मक होनी चाहिए इसमें सत्य और सद्गुण की शिक्षा बिलकुल सम्मिलित न होकर बालक के हृदय को अवगुण से तथा मन को त्रुटि से बचाना निहित है।”

(6) – प्राकृतिक पद्धतियों का अनुसरण (Follow of Natural Process)

प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त

Fundamental Principles of Naturalism –

(1) – ब्रह्माण्ड एक प्राकृतिक रचना

(2) – भौतिक संसार सत्य, इससे परे कोई आध्यात्मिक संसार नहीं 

(3) – आत्मा पदार्थजन्य चेतन तत्व

(4) – सर्वश्रेष्ठ सांसारिक कृति मानव

(5) – मानव विकास एक प्राकृतिक क्रिया

(6) – मानव जीवन का उद्देश्य सुखपूर्वक जीना

(7) – सुखपूर्वक जीने हेतु प्राकृतिक जीवन उत्तम 

(8) – प्राकृतिक जीवन में सामर्थ्य, समायोजन और परिस्थिति पर नियन्त्रण आवश्यक 

(9) – राज्य केवल व्यावहारिक सत्ता

प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य (The Aims of Education According to Naturalism)-

(1) – प्रकृति का अनुसरण – रूसो की प्रसिद्ध कृति ‘एमील’ के अंग्रेजी अनुवाद में विलियम पैने अपने अनुवादकीय प्राक्कथन में लिखते हैं –

“Simplify your methods as much as possible, distrust the artificial aids that complicate the process of learning, bring your people face to face with reality connect symbol with substance, make learning as for as possible process of personal discovery, depend as little as possible on mere authority. This is my interpretation of Rousseau’s follow nature.”

“अपनी पद्धतियों को यथा सम्भव सरल बनाओ, शिक्षण प्रक्रिया को जटिल बनाने वाले कृत्रिम साधनों में विश्वास न करो। अपने शिष्य को यथार्थ का सामना करने दो। प्रतीक को पदार्थ से संयुक्त करो यथा सम्भव सीखने की क्रिया को स्वानुसन्धान की प्रक्रिया बनाओ। केवल शब्द प्रमाण पर बहुत कम निर्भर रहो, मैं रूसो की उक्ति – प्रकृति का अनुसरण करो – का यही तात्पर्य समझता हूँ।”

(2 – मूल प्रवृत्तियों का मार्गान्तीकरण एवम् शोधन

(3) – जीवन संघर्ष की सामर्थ्य का विकास

(4)- पर्यावरण से अनुकूलन

(5) – प्राकृतिक जीवन जीने योग्य बनाना

(6)- पूर्ण सामाजिक जीवन की तैयारी

(7)- व्यक्ति की वैयक्तिकता का विकास

(8)- जातीय गुणों का विकास व संरक्षण

(9)- अवकाश का सदुपयोग

(10) – आत्म रक्षा

प्रकृतिवाद और बालक (Naturalism And Child)-

बालक जन्म के समय विकार रहित, निश्छल, निष्कपट, वर्ग, समुदाय, रीति रिवाज, रूढ़ियों व सामाजिक विकृतियों से मुक्त होता है जबकि मनुष्य इसके विपरीत स्वभाव का होने के कारण सुन्दर की जगह असुन्दर अच्छाई के स्थान पर बुराई प्रत्यारोपित करता है ऐसे दूषित समाज के सम्पर्क में आकर बालक भी स्वाभाविक रूप से विकृत हो जाएगा। प्रकृतिवादी बालकों की शिक्षा व्यवस्था उनकी रूचि, क्षमता और स्वाभाविक विकास को ध्यान में रखकर देना चाहते हैं।

प्रकृतिवाद और अध्यापक (Naturalism and Teacher)-

प्रकृतिवादी बाल केन्द्रित शिक्षा व स्वतन्त्रता पर अधिक बल देते हैं और इस हेतु अध्यापक को वातावरण सृजित करने वाला मानते हैं वे अध्यापक में वैयक्तिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, मानवीय व प्रकृति प्रेम के गुणों को आवश्यक मानते हैं। जिससे वे बालकों की योग्यताओं और अभिरुचियों को जान सकें उनके प्रति समता स्नेह और सहानुभूति के भावों को प्रदर्शित कर सकेंऔर बच्चे उनसे भयभीत न हों। बच्चों को प्रकृति के सानिध्य में लाकर ऐन्द्रिक विकास करने हेतु रूसो ने अध्यापकों का आवाहन करते हुए कहा –

“All wickedness comes from weakness, A child is bad because he is weak make him strong and he will be good.”

“सारे दोष कमजोरी से आते हैं बालक कमजोर है इसलिए बुरा है उसे बलिष्ठ बनाओ और वह अच्छा हो जाएगा।”

प्रकृतिवाद और शिक्षण विधि  (Naturalism and Methods of Teaching )-

ये बाल मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण विधि को समर्थन देते हुए निम्न शिक्षण विधियों का समर्थन करते हैं –

बाल केन्द्रित शिक्षण विधि

क्रिया प्रधान शिक्षण विधि

रूचि आधारित शिक्षण विधि   

भावना आधारित शिक्षण विधि

भ्रमण द्वारा शिक्षण

मुक्तयात्मक शिक्षण विधि 

प्रकृतिवाद और अनुशासन   (Naturalism and Discipline )-

प्रकृतिवादी अध्यापक द्वारा किसी भी प्रकार दण्ड देने के खिलाफ थे उनका मानना था की प्रकृति स्वयं दण्ड देगी। ये मुक्तयात्मक अनुशासन चाहते थे और प्राकृतिक दण्ड व्यवस्था के कायल थे।

प्रकृतिवाद और पाठ्यक्रम   (Naturalism and Curriculum) –

इन्होंने शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, भौतिक विज्ञान पर अधिक व साहित्य, कला, सङ्गीत पर उससे कम, धर्म शास्त्र  व नीति शास्त्र पर कोई ध्यान नहीं दिया।

रूसो ने सैद्धान्तिक ज्ञान का विरोध किया, खेल कूद, तैराकी, घुड़सवारी व हस्त कार्यों को महत्त्व प्रदान किया व नारियों हेतु गृह कार्य को उचित बताया।

हर्बर्ट स्पेंसर महोदय ने क्रिया आधारित पाठ्यक्रम का सुझाव दिया। जो इस प्रकार है –

 प्रकृतिवाद का मूल्यांकन(Estimate of Naturalism) –

मूल्यांकन हेतु गुण दोषों का विवेचन आवश्यक है इसलिए पहले गुण उसके बाद कमियों पर विचार करेंगे।

गुण (Merits) –

प्रकृतिवाद ने शिक्षा के क्षेत्र को दिशा दी जिससे प्रभावित होकर पॉल मुनरो महोदय कहते हैं –

“Naturalism has given impetus to the clear formation of the psychological, Sociological and Scientific conception of Education.”

“प्रकृतिवाद ने शिक्षा की मनोवैज्ञानिक समाजशास्त्रीय तथा वैज्ञानिक धारणा के स्पष्ट निर्माण में प्रत्यक्ष प्रेरणा दी है।”

प्रेरणा के इस प्रभाव को निम्न गुणों में समावेशित देखा जा सकता है –

1 – बाल केन्द्रित शिक्षा का उद्भव

2 – पूर्ण स्वतन्त्रता

3 – दमन का विरोध

4 – बालक अनेक शक्तियों का केन्द्र

5 – प्रजातान्त्रिक सिद्धान्तों को समर्थन

6 – पाठ्यचर्या निर्माण में रूचि, स्वतन्त्रता, स्वक्रिया व विकास पर बल   

7 – डॉल्टन, माण्टेसरी, किण्डर गार्टन व प्रोजेक्ट पद्धति का विकास   

8 – व्यवहार वाद की उत्पत्ति का कारक

9 – समाज शास्त्र के वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा

10 – बाल मनोविज्ञान का शिक्षा में प्रयोग

11 – प्राकृतिक वातावरण में विद्यालय 

दोष (Demerits)-

1 –  स्वतन्त्रता पर आवश्यकता से अधिक बल

2 – प्राकृतिक अनुशासन न्याय आधारित नहीं

3 – भविष्य की उपेक्षा (वर्तमान पर बल)

4 – आध्यात्मिक पक्ष की उपेक्षा

5 – पाठ्य क्रम के महत्त्व में कमी ( बालक पाठ्य क्रम का आधार )

6 – अध्यापक को गौण स्थान

7 – आदर्श विहीनता की स्थिति का जन्म (स्वमूल्यांकन भ्रामक)

8 – उपयोगितावाद को अधिक प्रश्रय (कार्य-परिणाम आकलन)

9 – उच्च शैक्षिक उद्देश्यों का अभाव (लक्ष्य आधारित योजना का अभाव )

10 – पुस्तकों की अवहेलना उचित नहीं (सभ्यता संस्कृति संरक्षित )

11 – वैयक्तिकता को बढ़ावा (समाज विरोधी)

12 – प्रकृतिवादी शिक्षा की अभावात्मक परिकल्पना भ्रामक

       (क्या नहीं सीखना बताया -क्या सीखना नहीं बताया)

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