शिक्षा की त्रिमुखी प्रक्रिया का और अध्यापक व विद्यार्थी के बीच सम्वाद का प्रमुख साधन पाठ्यक्रम ही है। यह इतना अधिक महत्त्वपूर्ण है कि इसके बिना शैक्षिक प्रगति और उसकी क्रमबद्धता की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती। सम्यक पाठ्यक्रम मानव जाति की प्रगतिशीलता का आधार है इसलिए पाठ्यक्रम का कुछ मानदण्डों पर खरा उतरना परमावश्यक है।

पाठ्यक्रम मूल्याँकन के मानदण्ड (CRITERIA  OF CURRICULUM EVALUATION) –

चूँकि पाठ्यक्रम विद्यार्थी के अधिगम का आधार होने के साथ उसके व्यवहार परिवर्तन का भी प्रमुख आलम्ब है अतः यह परम आवश्यक है की उसे निम्न मानदण्डों को अवश्यमेव अपने में समाहित करना चाहिए। पाठ्यक्रम मानदंडों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं।

1 – विश्वसनीयता (Reliability)

2 – वैधता (Validity)

3 – क्रमबद्ध सम्बद्धता (Serial affiliation)

4 – सामन्जस्यता (Harmony)

5 – व्यावहारिकता (Practicality)

6 – लोचशीलता (Elasticity)

पाठ्यक्रम मूल्याँकन की प्रक्रिया (PROCESS OF CURRICULUM EVALUATION) –

पाठ्यक्रम का निर्माण शिक्षा के उद्देश्यों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि इससे अधिगम की सुगमता व व्यवहार में परिवर्तन के गुण की भी अपेक्षा की जाती है ऐसी स्थिति में जाहिर सी बात है कि पाठ्यक्रम के मूल्यांकन की प्रक्रिया शिक्षा व मानव व्यवहार के व्यापक परिदृश्य से सम्बन्ध रखती है। पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के माध्यम से ही यह ज्ञात होता है कि कोई अपने निर्माण का उद्देश्य कहाँ तक पूर्ण करने में सक्षम है। अतः पाठ्यक्रम मूल्यांकन की प्रक्रिया निम्न सोपानों से होकर गुजरती है।

1 – शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति

2 – शैक्षिक स्तर से समन्वयन

3 – प्राप्त अधिगम अनुभव का विवेचन

4 – व्यावहारिक सक्रियता में परिवर्तन

5 – विद्यार्थियों हेतु सार्थकता

6 – अधिगम स्थानान्तरण से अनुकूलता

7 – व्यावहारिक जीवन में उपादेयता

8 – ज्ञानात्मक व भावात्मक पक्ष की प्रबलता

            वस्तुतः पाठ्य क्रम मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है जो एक चक्र पाठ्यक्रम नियोजन -पाठ्यक्रम प्रस्तुतीकरण -विकास प्रक्रिया -मूल्यांकन तक पहुँचती है तत्पश्चात पुनः शुरू हो जाता है  पुनः पाठ्यक्रम नियोजन -पुनः पाठ्यक्रम प्रस्तुतीकरण -पुनः विकास प्रक्रिया -पुनः मूल्यांकन।

क्योंकि मानव की प्रगति काल के सापेक्ष होती है अतः एक बार का मूल्यांकन हर काल का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

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