बूढ़े तोते को कुछ भी रटाते रहो,

ये फितरत है उसकी रटेगा नहीं ।

राजे दिल यूँ कितने छिपाते रहो

मेरा दावा है हमसे छिपेगा नहीं ।

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।1

तुम पानी पर बरछी चलाते रहो,

वो रवानी है उसमें फटेगा नहीं।

तुम तो चेहरे पे चेहरे लगाते रहो,

जो सच है वो हमसे छिपेगा नहीं। 

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।2।

हम लिखते रहें तुम मिटाते रहो,

सच तो सच है फिर भी मिटेगा नहीं।

हम जलाते रहें तुम बुझाते रहो,

भोर का सूर्य है अब छिपेगा नहीं।   

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं 3

चाहे कितने भी काँटे बिछाते रहो,

काफिला प्यार का अब रुकेगा नहीं।

अमन की बस्तियाँ तुम जलाते रहो,

ज्वार संचेतना का रुकेगा नहीं ।    

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं 4

तुम दामन को दागी बनाते रहो,

यह सिलसिला अब टिकेगा नहीं।

तुम सदा घाव पर घाव लगाते रहे,

इम्तिहाँ हो गई अब सहेगा नहीं।  

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं 5

मधुर रिश्तों का राग ‘नाथ’ गाते रहे,

अब जाकर के समझे फबेगा नहीं।

मीठी बातों से उसे समझाते रहे

भूत लातों का है,वो समझेगा नहीं।      

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं।6। 

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