यह संसार सचमुच अद्भुत है जो कहीं न कहीं विचारों से उद्भूत है इसी की अधिक सम्भावनाएं भारतीय दृष्टिकोण से भी परिलक्षित होती हैं। यहाँ तककि हमारी आज की सोच हमारे कल का निर्माण करती है हम भारतीय कुछ विचारों में एक दूसरे से अद्भुत साम्य रखते हैं कुछ आदतें व दृष्टिकोण जिन परिणामों तक ले जाते हैं यह भी सामान्य शोध बताने में सक्षम हैं हमारी अपनी ही सोच और उनका व्यवहार कैसे हमारी ही दुश्मन साबित होती है उनमें से पाँच का अध्ययन आप प्रबुद्ध जनों के समक्ष प्रस्तुत है –

1 – सुनकर अनसुनी करना (Ignore after listening)

2 – देखकर अनदेखा करना (Ignore after seeing)

3 – बहाने बाजी (Betting on excuses)

4 – असत्य सम्भाषण (False speech)

5 – नकारात्मक चिन्तन (Negative thinking)

आगे वर्णित तथ्य अनुभव व विविध जनों के दृष्टांतों पर आधारित हैं स्पष्ट रूप से इन्हे दुर्गुणों की श्रेणी में रखा जा सकता है।

1 – सुनकर अनसुनी करना (Ignore after listening)

एक बहुत ही सामान्य सी बात लगती है बचपन में इस लत का शिकार बालक कालान्तर में अपने मस्तिष्क को यह सन्देश भेजने में सफल हो जाता है कि उसने सचमुच कुछ सुना ही नहीं और यह बात उसको बहरेपन की और बढ़ा देती है फिर वह सुनना चाहते हुए भी सुन नहीं पाता।

वह सेवक जोअपने से ऊपर के अधिकारियों की बात को अनसुना करता है वह आलस्य, कामचोरी, संशय, बहरेपन, कान का अनायास बजना, कार्य क्षमता का ह्रास, शारीरिक कम्पन आदि विविध व्याधियों का शिकार देर सबेर होता ही है। कुछ ऐसे लोगों के अध्ययन व लोगों के अनुभवों से आप यह सहज बोध कर सकते हैं।

यदि यह आदत स्वयम् हमको लगती है तो हम स्वयम् अपनी भी नहीं सुन पाते, सोचते रह जाना, कल्पना लोक में विचरण, समय की बर्बादी हम सहज स्वभाव के वशीभूत हो करने लगते हैं। किसी का आर्त्तनाद हमें सुनाई नहीं पड़ता या हम इतने कायर हो चुके होते हैं कि किसी की मदद को तत्पर ही नहीं हो पाते परिणाम स्वरुप एकाकी पन और मानसिक अवसाद हमें घेरने लगता है। तनाव, अकारण भय, चिन्ता हमारा मुकद्दर बनने लगता है। लक्ष्य हमसे दूर भागने लगते हैं। परिश्रम व लगन दूर की कौड़ी लगने लगते हैं।

2 – देखकर अनदेखा करना (Ignore after seeing)-

आँग्ल भाषा में में पहले और दूसरे उप शीर्षक हेतु सामान्यतः एक शब्द  Avoid ही अधिकाँश प्रयोग में लाया जाता है लेकिन हिन्दी में इसके अलग और गूढ़ अर्थ हैं   जिसे शब्द उच्चारण से ही समझा जा सकते है देखने और सुनने के लिए क्रमशः अलग अलग इन्द्रियों चक्षु व कर्ण का प्रयोग होता है।

आजकल लोग अधिक व्यस्त हैं व बाजार वाद के प्रभाव से ग्रस्त हैं कि बहुधा अनदेखा करते हुए स्वयम् सहित अन्य जन दिखाई पड़ते हैं लेकिन जब समय, धर्म, विवेक, ज्ञान और अन्तरात्मा भी हमारी देख कर अनदेखा करने की आदत का शिकार हो जाती है और चल चित्र की भाँति बहुत कुछ हमारे सामने से गुजर जाता है और हम किंकर्त्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं हमारी शक्तियों का क्षय होने लगता है। हमारी सोच दुष्प्रभावित हो जाती है।

‘जैसी करनी वैसी भरनी’ के आधार पर ही हमें प्रतिफल मिलने लगता है। यह स्थिति मानवता के लिए अत्यन्त घातक है हमें एक दूसरे की मदद मानस का विस्तार कर करनी ही चाहिए। चाहे सामने दुश्मन ही क्यों न हो।

3 – बहाने बाजी (Betting on excuses) –

कभी कभी एक अद्भुत तथ्य सामने आता है कि हम किसी कार्य को करने में या किसी वस्तु से किसी की मदद करने में या किसी सलाह द्वारा मार्गदर्शन करने में हम पूर्ण सक्षम होते हैं फिर भी हम किसी बहाने का सहारा ले उस विशिष्ट कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लेते हैं और यह पारिलक्षित होता है की अधिकाँश जनसंख्या इस दुर्गुण से ग्रसित है और हम अपने बच्चों को भी जाने अनजाने में इस दुर्गुण से ग्रसित कर देते हैं। धीरे धीरे यह हमारी आदत और व्यवहार का विशेष भाग हो जाता है।

गिने चुने लोग ही ऐसे होते हैं जो निस्वार्थ सेवा भावी रहकर बहानेबाज़ी की छतरी नहीं लगाते। यह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ लोग होते हैं।इन विशिष्ट व्यक्तित्वों से ही मानवता को सद् पथ मिलता है। इस स्वभाव से भागने पर हम सहज ही अनुशासन प्रियता से भी दूर हो जाते हैं। हम सहज ही अधर्म मार्ग पर बढ़ चलते हैं राम चरित मानस में कहा भी है। –

परहित सरिस धर्म नहीं भाई।

पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।।

यह बहाने बाजी हमें हमारी ही निगाह में गिरा देती है और जब हम इस पर विचार करते हैं तो हमें ग्लानि की अनुभूति होती है। अपना ही स्वार्थी चरित्र हमें मुँह चिढ़ाता हुआ लगता है। हम अपना प्रगति पथ स्वयं अवरुद्ध कर लेते हैं।

4 – असत्य सम्भाषण (False speech) –

यह अत्याधिक खतरनाक दुर्गुण है और हममें से अधिकाँश से बुरी तरह चिपका है साथ ही यह नई पीढ़ी को तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है। हम जब मोबाइल पर होने वाली बातचीत में अपने और दूसरों द्वारा इसका अनायास और बेधड़क प्रयोग देखते हैं केवल परिवार से बाहर के लोगों के साथ ही नहीं यह दुर्गुण आत्मीय सम्बन्धों यथा पिता-पुत्र, पिता – पुत्री, शिष्य -गुरु, माता -पिता, माता-पुत्र, माता -पुत्री, बहन -बहन, भाई-भाई  और मित्रों पड़ोसियों जैसे सम्बन्धों में वजह बेवजह  घुसपैठ बना रहा है।

नैतिक दृष्टि से अत्यन्त धक्का तब लगता है जब झूठ बेवजह, नकली शान दिखाने के लिए, रॉब ग़ालिब करने के लिए, पुराने झूठ को समर्थन देने के लिए आदतवश बोला जाता है। हद तो तब हो जाती है जब हम अपने झूठ में मासूम नव पीढ़ी को भी शामिल कर लेते हैं। शैतान नवपीढ़ी तो बड़ों के सामने इस तरह झूठ बोलती है जैसे नासमझों से बात कर रही है।

जिस देश में सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ने जन्म लिया।जिस देश के विशेष चिन्तक महात्मा गाँधी ने  ‘सत्य ही ईश्वर है।’ का उद्घोष किया उस देश में अकारण असत्य सम्भाषण अत्याधिक अटपटा लगता है। यह दुर्गुण सारे पवित्र सम्बन्धों की नींव हिलाने में सक्षम है। किसी ने सच ही कहा हे कि –

हमीं गर्क करते हैं जब अपना बेड़ा

तो बतलाओ फिर नाखुदा क्या करेंगे।

जिन्हें दर्दे दिल से ही फुर्सत नहीं है

वो दर्दे वतन की दवा क्या करेंगे ?

5 – नकारात्मक चिन्तन (Negative thinking) –

बाहर की दुनियाँ हमारे चिन्तन, मानसिक शान्ति, प्राकृतिक स्वभाव पर हावी होती जा रही है। सुबह के अखबार से लेकर तमाम नोटिफिकेशन, टेलीविज़न के कार्य क्रम, हिंसा, मारधाड़, चोरी, डकैती, बलात्कार, गबन, भ्रष्टाचार की बातें शुद्ध सात्विक मन को नकारात्मकता में डुबो देती हैं। मानव अपने मूल स्वरुप को भूल नकरात्मकता से जुड़ बुराई के आचरण को अंगीकार करने लगता है। यह नकारात्मकता व्यक्तित्व को दुष्प्रभावित कर हमें सामान्य मानवीय गुणों की ग्राह्यता में भी बाधक बन जाती है न शान्ति से सोने देती है न विकास के नए आयामों से जुड़ने देती है। भय, चिन्ता,आक्रात्मकता, चिड़चिड़ापन, असहिष्णुता को सोते जगते हमारे चिन्तन से जोड़ देती है। मानव का सहज,, शान्त, तेजस्वी ,दिव्य स्वरुप खोने लगता है। जो बहुत बड़ी चिन्ता व मूल्य अवनमन का कारण है।

मैं यह कहना चाहूँगा कि सुबह व रात्रि में सोने से पहले कम से कम  दो घण्टे  मोबाइल, अखबार, टेलीविज़न, लेपटॉप स्क्रीन से दूर रहें। आवश्यक पढ़ें अनावश्यक त्यागें। नकारात्मकता से दूर रहकर सकारात्मक विचारों, व्यक्तित्वों, चिन्तन से खुद को जोड़ें।

आज यहाँ जिन पाँच बिन्दुओं पर चर्चा हुई ये हमारे विनाश का कारण हैं यद्यपि इनमें सूक्ष्म अंतर है लेकिन ये आन्तरिक रूप से मिलकर सम्पूर्ण मानवता का बेडा गर्क कर देते हैं। प्रत्येक बुद्धिजीवी, राष्ट्रवादी, देश प्रेमी का कर्त्तव्य है कि इस दुष्चक्र से खुद निकले और सामान्य जन मानस व नव पीढ़ी हेतु प्रगति पथ तैयार करे।  यदि हम सही दिशा दे पाए तो नई पीढ़ी इसका आलम्बन ले अनन्त ऊँचाइयाँ तय करेगी। सभी अपनी क्षमता भर प्रयास करें। हम निश्चित ही सफल होंगे। पूर्ण विश्वास है।

Share: