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मनोविज्ञान

PERSONALITY

October 8, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

व्यक्तित्व

आशय व परिभाषाएं / Meaning and Definitions –

व्यक्तित्व शब्द पुरातन काल खण्ड का एक महत्त्वपूर्ण विषयवस्तु है अथर्ववेद में सतोगुणी, रजोगुणी,और तमोगुणी व्यक्तित्वों के बारे में बताया है यह त्रिगुणी अवधारणा मानव चेतना की यात्रा के अंश हैं सत्व,स्थिरता का रज सक्रियता का तथा तम जड़त्व से सम्बद्ध है। इन्हें आगे चलकर सांख्य दर्शन ने अपनाया। श्रीमद्भगवद्गीता में व्यक्तित्व पर सारगर्भित दिशा निर्देश है। सामान्य अर्थों में व्यक्तित्व को बाहरी सौन्दर्य व सद्गुणों के समाविष्ट स्वरुप के रूप में देखा जाता है।

            पाश्चात्य दृष्टिकोण में व्यक्तित्व आंग्ल भाषा के Personality शब्द का समानार्थी है।यह शब्द लेटिन के परसोना (Persona) से विकसित हुआ जिससे आशय है नकली चेहरा या मुखौटा अर्थात उस काल में शरीर रचना, पोशाक, रंगरूप आदि वाह्यगुण व्यक्तित्व में समाहित स्वीकार किये गए।

            विभिन्न दृष्टिकोणों व मतों के कारण अलग अलग विद्वतजनों ने इसे अलग अलग तरह से पारिभाषित किया उनमें से कुछ यहां द्रष्टव्य हैं यथा –

Allport / आलपोर्ट महोदय के अनुसार

“Personality is the dynamic organisation within the individual of those psychophysical systems that determine his unique adjustment to his environment.”

“व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोदैहिक व्यवस्थाओं का संगठन है जो वातावरण के साथ उसका सुसमायोजन स्थापित करता है। ”

munn,N.L के अनुसार

“Personality may be defined as the most characteristic integration of an individual’s structures, modes of behaviour, interests attitudes, capacities, abilities, and aptitudes.”

“व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है।” 

May and Hartshorn महोदय का मानना है कि –

“Personality is that which makes one effective and gives influence over others.”

“व्यक्तित्व, व्यक्ति का वह स्वरुप है जो उसे प्रभावशाली बनाता है और दूसरों को प्रभावित करता है। ”

  Drever महोदय इस सम्बन्ध में कहते हैं –

“Personality is a term used for the integrated and dynamic organization of the physical, mental, moral, and social qualities of the individual, as that manifests itself to other people, in the give and take social life.” 

 “व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग, व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है, जिसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान प्रदान में व्यक्त करता है।”

व्यक्तित्व के प्रकार / Types of Personality –

व्यक्तित्व के कोई निश्चित प्रकार नहीं बताये जा सकते इसीलिये विविध विद्वानों द्वारा इन्हें अलग अलग तरह से वर्गीकृत किया गया है।सामान्यतः इन्हें निम्न तीन भागों में बाँटकर अध्ययन करेंगे –

1 – शरीर बनावट के आधार पर (Based on body composition)

2 – समाजशास्त्रीय प्रकार (Sociological type)

3 – मनोवैज्ञानिक प्रकार (Psychological type)

1 – शरीर बनावट के आधार पर (Based on body composition)–

क्रेचमर (Kretschmer) महोदय इन्हें चार भागों में बाँटा है जो इस प्रकार है –

A – मिलनसार (Pyknic) – सामान्य कद काठी के मृदुभाषी व्यक्ति मित्रता, अच्छे स्वभाव और मिलनसारिता के गुण से युक्त होते हैं  ये समाज से मिलकर चलते हैं।

B – एकान्तप्रिय (Leptosome) – ये कमजोर, शर्मीले, चुप रहने वाले, अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के होते हैं।इन्हें एकान्त पसन्द होता है।  

C – चुस्त (Athletic) – इस प्रकार के व्यक्ति का सीना चौड़ा व उभरा, कन्धे चौड़े, मजबूत माँसपेशियाँ, ताक़तवर भुजाएं, हृस्टपुष्ट स्वस्थ शरीर होता है। इन्हे चुस्त(Athletic) व्यक्तित्व वाला कहते हैं।    

D – मिश्रित (Dysplastic) -इस तरह के व्यक्ति लम्बे, चौड़े, मोटे होते हैं और इनमें ऊपर वर्णित प्रकारों का आंशिक सम्मिश्रण होता है।

2 – समाजशास्त्रीय प्रकार (Sociological type)-

स्प्रेंगर / Spranger  महोदय ने अपनी पुस्तक “Types of Men” में 6 प्रकार के व्यक्तित्व बताए हैं –

1 – वैचारिक (Theoretical) – दार्शनिक, आविष्कारक, वैज्ञानिक आदि को इसमें स्थान दिया जाता है।  

2 – आर्थिक (Economic) – ऐसे व्यक्ति धन को अधिक महत्ता प्रदान करते हैं। व्यवसायी, दुकानदार, उद्योगी आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।

3 – सौन्दर्यात्मक (Esthetic) – सौन्दर्य व कला को महत्ता प्रदान करने वाले इस श्रेणी में आते हैं। यथा चित्रकार, साहित्यकार, कलाकार आदि।

4 – धार्मिक (Religious) – ईश्वर में आस्था रखने वाले,सशक्त आध्यात्मिक पक्ष वाले लोग इसमें आते हैं जैसे संत, पुजारी, पादरी, भक्त, मुल्ला मौलवी इसके तहत आते हैं। 

5 – सामाजिक (Social) – सामाजिक हितों व सामाजिक समस्याओं से जूझने वाले लोग इसमें गिने जाते हैं जैसे विनोबाजी, गाँधीजी, नेल्सन मंडेला,दयानन्द सरस्वती आदि। 

6 – राजनैतिक (Political) – सत्ता, नियन्त्रण, प्रभुसत्ता, राज व्यवस्था के दावपेचों से उलझने वाला इस क्षेत्र में आता है जैसे नेता, मन्त्री, आदि।

3 – मनोवैज्ञानिक प्रकार (Psychological type)-

मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर जिन विद्वानों ने व्यक्तित्व का वर्ग विभाजन किया है उनमें C.G.JUNG को सर्वाधिक स्वीकार किया जाता है इनका पुस्तक “Psychological Types” दिया गया विवरण आज भी महत्ता रखता है इन्होने व्यक्तित्त्व वर्गीकरण इस प्रकार किया है –

1 – बहिर्मुखी (Extrovert) – ऐसा व्यक्तित्व बहुत सामाजिक बाहरी दुनिया से मेलजोल बढ़ाने वाला व्यक्तिगत धन या स्वास्थ्य की कम परवाह कर नई परिस्थितियों से सुसमायोजन कर लेता है। इनका आत्मविश्वास बहुत अच्छा होता है, ये विज्ञापन, भाषण कला, प्रकाशन आदि के द्वारा दूसरों को अपने अनुकूल बना लेते हैं यथा शास्त्रीजी, श्रीमति इन्दिरा गाँधी, नरेन्द्र मोदी जी, विवेकानन्द जी आदि को समझा जा सकता है।   

2 – अन्तर्मुखी (Introvert) – ये बहुधा अपनेआप में खोये रहते हैं किताबें पढ़ना, निर्धनता में खुश रहना, सामाजिक व्यवहार निर्वाहन में संकोची, स्वयं के प्रगटन से परे, शीघ्र दुःखी होने वाला, कम लोचपूर्ण दृष्टिकोण, संसार की परवाह न कर स्वपथ पर अग्रसर, कम बोलने वाला, बहिर्मुखी से अधिक कार्य क्षमता वाला होता है।      

3 – उभयमुखी (Ambivert) – ऐसे व्यक्ति किन्ही परिस्थितियों में अन्तर्मुखी व भिन्न परिस्थिति में बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं आपने भी देखा होगा एक अच्छा लिखने वाला और बोलने वाला एकान्त में कार्य करना पसन्द करता है।

जुंग महोदय ने इस सिद्धान्त की आगे और व्याख्या की है जिससे यह बहुत बड़ा हो जाता है उसने अंतर्मुखी व बहिर्मुखी को चार चार भागों में बांटा है –

1 – विचार प्रधान (Ideological)

2 – तर्क बुद्धि प्रधान (Logic minded)

3 – भाव प्रधान (Sentimental)

4 – दिव्य दृष्टि प्रधान (Celestial vision)

        इस प्रकार हम देखते हैं कि व्यक्तित्व को कई प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। क्रो व क्रो ने विभिन्न दृष्टिकोणों की आलोचना  हुए कहा –

“A general criticism of such classifications is the tendency to place emphasis upon one or another phase of development and to deal with extremes rather than with the mediocrity of human nature.”

“इस प्रकार के वर्गीकरणों की एक सामान्य आलोचना यह है कि यह विकास के किसी न किसी पहलू पर बल देते हैं और सामान्य मानव स्वभाव की अपेक्षा उसके उग्र रूपों की व्याख्या करते हैं।” 

व्यक्तित्व विशेषक / Traits of Personality –

व्यक्तित्व का निर्धारण उसकी विशेषता या गुणों के आधार पर होता है। गैरट महोदय कहते हैं –

“Personality traits are distinctive ways of behaving more or less permanent for a given individual. Personality traits are neat short ways of describing the multifold aspects of behaviour.”

“व्यक्तित्व के गुण व्यवहार करने की निश्चित विधियाँ हैं जो प्रत्येक व्यक्ति में बहुत कुछ स्थाई होती हैं। व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार के बहुसंख्यक स्वरूपों का वर्णन करने की स्पष्ट और संक्षिप्त विधियां हैं।”

व्यक्तित्व के अंगों को हम दो भागों में विभक्त कर विशेषता बता सकते हैं –

1 – प्रत्यक्ष – शारीरिक विशेषक

2 – अप्रत्यक्ष (क्रिया आधारित) – बौद्धिक, सामाजिक, संवेगात्मक,चारित्रिक व अन्य विशेषक।

उक्त विशेषक भी अपने आप में बहुत से गुण रखते हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।

A – शारीरिक विशेषक (Physical Traits)      B – बौद्धिक विशेषक (Intellectual Traits)

                                                                             सामाजिक विशेषक (Social Traits)

                                                                              संवेगात्मक विशेषक (Emotional Traits)

                                                                              चारित्रिक विशेषक (Character Traits)

                                                                              अन्य विशेषक (Other Traits)

व्यक्तित्व के सिद्धान्त / Theories of Personality –

मनोवैज्ञानिकों हेतु यह परमावश्यक हो गया कि व्यक्तित्व का अध्ययन किया जाए लेकिन सच्चाई यह है कि एक नहीं बहुत से कारक हैं जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं विविध वैयक्तिक धारणाओं के आधार पर विविध सिद्धांतों का उदय हुआ है उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धांत देने का यहां प्रयास है –

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त – यह मत सिग्मण्ड फ्रायड की देन है फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व का निर्माण इड (Id), इगो (Ego), सुपर इगो (Supar Ego) से हुआ है।

इड (Id) अचेतन मन है इसमें मूल प्रवृत्तियों व प्राकृतिक इच्छाओं का निवास है ये शीघ्र संतुष्ट होना चाहती हैं तृप्ति चाहती हैं।

इगो (Ego) चेतना बुद्धि, तर्क तथा इच्छा शक्ति है।

सुपर इगो (Supar Ego) इसका निर्माण आदर्शों से होता है।

Sigmund Freud  ने ईगो के बारे में कहा –

“Ego is the part of Id which has been modified by its proximity to the external world and the influence the later has on it and which serves the purpose of receiving stimuli and projecting the organism from them ,like the cortical layer with which a particle of living subustance surrounds itself.”

“इगो, इड का वह भाग है जो वाह्य संसार के अनुमान और संभावना से परिष्कृत होता है और उसका कालान्तर में प्रभाव भी पड़ता है, जो प्राणी को उद्दीपन करने एवं उसके इर्द गिर्द जमी परत के अंश के रूप में व्याप्त रहता है।”

Sigmund Freud  ने सुपर ईगो के बारे में कहा –

“Super Ego that expect of the ego which makes possible the processes of self observation and what is commonly called conscience.”

“सुपर ईगो, ईगो का वह पक्ष है जो आत्म निरीक्षण की प्रक्रिया को सम्भव बनाता है जिसे सामान्य रूप से चेतना कहते हैं। ”

Sigmund Freud महोदय का मानना है कि मानव के व्यक्तित्व का निर्माण इन्हीं तत्वों से मिलकर होता है जो विभिन्न रूप में परिलक्षित होते हैं। 

रचना (Constitution) सिद्धान्त –

इस विचार धारा के प्रतिपादक शैलडॉन / SHELDON महोदय हैं इन्होने व्यक्तित्व के प्राथमिक आधारों की संख्या तीन बताई है –

1 – गोलाकृति (Endomorphy) – इस तरह के लोगों का व्यक्तित्व अलग तरह से परिलक्षित होता है इस व्यक्तित्व के मनुष्य गोल गर्दन, माँस पेशियों का पूर्ण विकसित न होना, चर्बी की वृद्धि आदि गुणों से युक्त होते हैं। 

2 – आयताकृति (Mesomorphy) – इस तरह के व्यक्तित्व में मुख्यतः माँस पेशियों व हड्डियों का विकास परिलक्षित होता है।

3 – लम्बाकृति (Ectomorphy) – इस तरह के व्यक्तित्वों में केंद्रीय स्नायु संस्थान के माँस पेशी तन्तु विकसित होते हैं।

    इस मत के अनुसार मूलतः यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि इसमें शरीर के विभिन्न अंगों को व्यक्तित्व निर्माण का आधार माना जाता है।

प्रतिकारक (Factorial) प्रणाली सिद्धान्त –

इस मत का प्रतिपादन आर ० बी ० कैटल (R. B. Cattell) महोदय द्वारा किया गया। इन्होने बताया मानव चरित्र अनेक कारकों से युक्त होता है इनके अनुसार निम्न तथ्य प्रतिकारक चरित्र का निर्माण करते हैं –

चरित्र की सुन्दरता (Fitness of Character)

सामाजिकता (Sociability)

भावात्मक एकता (Emotional Integration)

कल्पनाशीलता (Imagination)

अभिप्रेरक (Motivator)

उत्सुकता (curiosity)

लापरवाही (Negligence)

उक्त आधारों पर कैटल महोदय ने कहा –

“Personality is, that permits a prediction of what a person will do in a given situation.”

“व्यक्तित्व वह है जो किसी विशेष परिस्थिति में जो कार्य करता है उसका प्रतिरूप ही व्यक्तित्व है। ”

ऑलपोर्ट (Allport) का सिद्धान्त –

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में गोर्डन डब्ल्यू ऑलपोर्ट (Gordon W. Allport) का सिद्धान्त वंशक्रम वातावरण वैयक्तिक भेद पर अवलम्बित है इन्होने वंशक्रम के द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व के जटिल मिश्रण के प्रति न्याय करने ,सामाजिक,स्वाभाविक तथा मनोवैज्ञानिक कारणों के प्रति न्याय करने को कहा है। तथा साथ में विभिन्न सम्प्रदायों तथा व्यक्तित्वों की नवीनता को भी मान्यता देनी चाही है। इन्होने स्पष्टतः स्वीकार किया की प्रवृत्तियों,विशेषताओं तथा वातावरण के प्रति समायोजन से व्यक्तित्व का गठन होता है।

            उक्त सिद्धांतों के अतिरिक्त भी विविध सिद्धांत भी अपनी धमक रखते हैं।  व्यक्तित्व के सिद्धान्तों में विविध दृष्टिकोणों का समावेशन करने पर इसका विशेष वृहत प्रखण्ड प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन इसे यहीं विराम दिया गया है।

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शिक्षा

Dissertation and Viva Voce

October 5, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


लघुशोध और मौखिक परीक्षा

Dissertation या लघु शोध लगभग एम ० एड ० स्तर पर सभी जगह चाहे वहाँ सैमेस्टर प्रणाली लागू हो या वार्षिक परीक्षा हो, पाठ्यक्रम का हिस्सा है। विविध विषयों में परा स्नातक स्तर पर लघु शोध (Dissertation) के साथ ही अस्तित्त्व में है। – लघुशोध और मौखिक परीक्षा (Dissertation and Viva Voce)

आज मुख्यतः इसके प्रभावी ढंग से निष्पादन के विषय में कुछ तथ्य प्रस्तुत किये जाएंगे। यह लघु शोध ही अन्ततः हमारे शोध ग्रन्थ को भी दिशा प्रदान करता है।

लघु शोध आधारित मौखिक परीक्षा को प्रभावी बनाने वाले कारक  

 Factors that make Dissertation Based Viva Effective

सम्पूर्ण रूप में Synopsis(रूप रेखा ), Dissertation(लघु शोध), Research Summary (शोध सार) मिलकर शोध परिक्षेत्र को जाज्वल्यमान बनाते हैं। यही लघु शोध आगे शोध ग्रन्थ लिखने में हमारी मदद करता है और इसीलिए इसकी मौखिक परीक्षा एक वृहद दृष्टिकोण लिए होती है। यही शोध कार्य देश की प्रगति का आधार बनाते हैं। लघुशोध आधारित मौखिक परीक्षा के प्रश्न लघुशोध पर आधारित होते हैं और इन्हे इन बिन्दुओं का आधार लेकर सरलता से साधा जा सकता है –

1 – सामान्य प्रश्न (General question)

2 – समस्या कथन आधारित प्रश्न (Problem statement based questions)

3 – शोध के प्रकार (Types of research)

4 – चर, परिकल्पना, उद्देश्य आधारित तथ्य (Variables, Hypotheses, Objective Based Facts) 

5 – शोध उपकरण व परिकलन आधारित प्रश्न (Research Tools & Calculation Based Questions)

6 – सम्बन्धित साहित्य के अध्ययन पर प्रश्न (Question on study of related literature)

7 – शिक्षा परिक्षेत्र में आपके शोध का लाभ (Benefits of your research in the field of education)

8 – ऐसे शोध के अभाव से देश को नुक्सान (Lack of such research damages the country)

वर्तमान समय में परास्नातक स्तर पर लघु शोध के स्तर में गिरावट देखने को मिली है बहुत कम विद्यार्थी सही ढंग से कार्य कर पा रहे हैं। कारणों का एक मिथ्या पहाड़ है। सुधार हेतु विद्यार्थी, प्राध्यापक, अभिभावक, उच्च शिक्षा  सभी को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। शोधार्थियों की ओर देश की आशाभरी नज़रें हैं। ईमानदारी से कार्य करें, मौखिक परीक्षा स्वतः अच्छी व गरिमामयी होगी।

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शिक्षा

B.Ed. and Viva

October 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


शिक्षा स्नातक और मौखिक परीक्षा

शिक्षण प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA .यद्यपि इसके लिए अंक निर्धारित हैं लेकिन यह ही भविष्य के साक्षात्कार [Interview] का मुख्य आधार है जिस स्तर का VIVA होता है उस स्तर पर आपका कितना अधिकार है और आप सर्वहित में इसका भविष्य में कैसे प्रयोग करेंगे, इसकी झलक इस मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA  से मिल जाती है। आइए B. Ed. स्तर पर अन्ततः होने वाले viva को प्रभावशाली बनाने के लिए हमारे लिए क्या आवश्यक है इस पर विचार करते हैं।

बी० एड ० वायवा हेतु आवश्यक कारक

Factors Required for B.Ed. Viva

यद्यपि पूर्व निर्धारित प्रश्नों की कोई व्यवस्था नहीं होती है इसलिए आपके व्यक्तित्व से लेकर अधिगम क्षमता व उनके व्यावहारिक प्रयोग की परीक्षा इसके माध्यम से हो जाती है। इसे प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न तथ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करते हैं।

1- आधारभूत ज्ञान [Basic knowledge]

2- तत्सम्बन्धी फाइलें व आवश्यक सामग्री [Related files and necessary material]

3- स्वनिर्मित फाइल सम्बन्धी जानकारी [Self-contained file information]

4- अप्राप्त ज्ञान की स्व स्वीकारोक्ति [Self confession of unrealized knowledge]

5- झूठ से परहेज [Abstaining from lies]

6- बहानेबाजी व बहस से दूरी [Distance from excuses and arguments]

7- धारा प्रवाहिता [Fluency]

8- आत्म विश्वास [Self-confidence]

मौखिक परीक्षा के असंरचित (Unstructured) होने की वजह से इसका स्वरुप व्यापक हो जाता है लेकिन यह सत्य का एक आवश्यक दर्पण भी होता है यदि गैर पक्षपात पूर्ण और योग्य व्यक्तित्व द्वारा इसका सम्पादन होता है। यह आज की व्यवस्था का अनिवार्य अंग है इसे सहजता से लिया जाना चाहिए यह आपकी परिपक्वता का द्योतक है।

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मनोविज्ञान

MOTIVATION

September 23, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अभिप्रेरणा

अभिप्रेरणा से आशय व परिभाषाएं (Meaning and definitions of motivation)-

अभिप्रेरणा जीव की वह आन्तरिक स्थिति है जो उसमें क्रियाशीलता उत्पन्न करती है और अपनी उपस्थिति तक चलाती रहती है। यह वह जादू है जो मानव को उसकी शक्तियों से साक्षात्कार कराता है यदि इसकी दिशा ठीक है तो यह एक ऐसा उपागम है जो लक्ष्य की प्राप्ति सुगम कर देता है। अर्थात यह सीधे सीधे हमारे व्यवहार को प्रभावित करता है। वुडवर्थ महोदय कहते हैं –

“A motive is a state of the individual which disposes him for certain behaviour and for seeking certain goals.”

“अभिप्रेरणा व्यक्तियों की दशा का वह समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ती के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।”

जब कि जॉनसन (Johnson) महोदय का विचार है कि –

“Motivation is the influence of general pattern of activities indicating and directing the behaviour of the organism.”

“अभिप्रेरण सामान्य क्रियाकलापों का प्रभाव है जो मानव के व्यवहार को उचित मार्ग पर ले जाती है।”

गुड महोदय का अभिप्रेरणा के विषय में मत है –

“Motivation is the process of arousing, sustaining and regulating an activity.” – Good

“अभिप्रेरणा किसी कार्य को प्रारम्भ करने, जारी रखने तथा सही दिशा में लगाने की प्रक्रिया है।”

मैग्डूगल (McDougall) महोदय का विचार है कि –

“Motives are conditions physiological and psychological within the organism that disposes it to act in certain ways.”

“अभिप्रेरणा वह शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक दशाएं हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती हैं।”

एक अन्य महत्त्व पूर्ण विचारक पी. टी. यंग  महोदय का विचार है –

“Motivation is the process of arousing action sustaining the activities in progress and regulating the pattern of activity.”

“प्रेरणा व्यवहार को जागृत करके क्रिया के विकास का पोषण करने तथा उसकी विधियों को नियमित करने की प्रक्रिया है।” 

उक्त विचारकों के विचारों के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि अभिप्रेरणा या प्रेरणा आवश्यकता से उत्पन्न मनोव्यावहारिक क्रिया है जो लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में कार्यों का सम्पादन कराती है।

अभिप्रेरणा के सिद्धान्त / Principles of motivation –

अभिप्रेरणा हेतु बहुत से सिद्धान्त व मान्यताएं विविध मनोवैज्ञानिकों द्वारा बताये गए हैं इन सिद्धान्तों द्वारा विविध प्रकार से अभिप्रेरणा की व्याख्या की गयी है। जिन्हें अपनी सुविधा के अनुसार इस प्रकार अनुक्रमित किया जा सकता है –

1 – शारीरिक सिद्धान्त / Physiological Theory   –

शरीर की मनोदशा हमेशा एक जैसी नहीं होती इसमें समय समय पर विविध परिवर्तन परिलक्षित होते हैं और इसी कारण शरीर में प्रतिक्रियाएं भी होती रहती हैं और इस प्रतिक्रिया के मूल को यदि हम जानने का प्रयास करें तो वह अभिप्रेरणा ही है।

2 – उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त / Stimulus – Response Theory –

उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त वह सिद्धान्त है जो व्यवहारवादियों द्वारा प्रति पादित किया गया है यह सीखने के सिद्धांत पर ही आधारित है इनके अनुसार मनुष्य का सम्पूर्ण व्यवहार शरीर द्वारा उद्दीपन के परिणाम स्वरुप होने वाली अनुक्रिया है ये मानते हैं की अभिप्रेरणा की इसमें भूमिका नहीं है कोई भी प्रतिक्रिया विशुद्ध रूप से विशिष्ट अनुक्रिया ही है।

इस मान्यता में विविध तथ्यों व अनुभव की अवहेलना की गयी है यद्यपि उद्दीपकों द्वारा विविध अनुक्रियाएं होती हैं लेकिन किसी प्रतिक्रिया के होने में मूलतः अभिप्रेरणा का हाथ होता है।

3 – मूल प्रवृत्यात्मक सिद्धान्त / Instinct Theory – 

 इस सिद्धान्त के अनुसार किसी भी मानव का व्यवहार जन्मजात मूल प्रवृत्तियों द्वारा निर्धारित व संचालित होता है इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मैक्डूगल महोदय द्वारा किया गया लेकिन यह सिद्धान्त अभिप्रेरणा की  पूर्ण व्याख्या करने में सक्षम नहीं है ।

4 – मनो – विश्लेष्णात्मक सिद्धान्त / Psycho-analysis Theory –

यह सिद्धान्त मनोवैज्ञानिक फ्रायड की देन स्वीकारा जाता है यह सिद्धान्त बताता है कि मनुष्य का अभिप्रेरणात्मक व्यवहार दो कारकों द्वारा संचालित होता है . जिनमें से एक तो मूल प्रवृत्तियाँ ही हैं और दूसरा है अवचेतन मन। वह यह भी  मानता है कि दो ही मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं जीवन मूल प्रवृत्ति और दूसरी मृत्यु मूल प्रवृत्ति  जो उसे क्रमशः सृजनात्मक व विध्वंशात्मक व्यवहार हेतु प्रेरित करते हैं। मूल प्रवृत्ति सम्बन्धी यह विचार मनोवैज्ञानिकों को मान्य ही नहीं और दूसरे अवचेतन मन के अलावा चेतन मन और अर्ध चेतन मन के द्वारा भी व्यवहार संचालित होता है अतः फ्रायड महोदय भी पूर्ण स्वीकार्य नहीं।

5- अन्तर्नोद सिद्धान्त / Drive Theory –

यह सिद्धान्त प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक हल महोदय की देन है इन्होने यह बताया कि मनुष्य की आवश्यकताओं के कारण उसमें तनाव पैदा होता हे जिसे मनोविज्ञान की भाषा में अन्तर्नोद उच्चारित करते हैं ये अन्तर्नोद ही उसके विशिष्ट व्यवहार का कारण है कुछ समय पश्चात मनोवैज्ञानिकों ने शारीरिक आवशयकताओं के साथ मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को भी जोड़ लिया लेकिन फिर भी यह सिद्धान्त अपूर्ण ही रहा क्योंकि यह मानव के उच्च ज्ञानात्मक व्यवहार की व्याख्या में सक्षम नहीं बन सका।

6 – इच्छा आधारित सिद्धान्त / Desire based theory –

इस मत के अनुसार मानव का व्यवहार इच्छा will द्वारा निर्धारित होता है बौद्धिक मूल्यांकन द्वारा सृजित इच्छा द्वारा अभिप्रेरणा को दिशा मिलाती है और संकल्प को बल मिलता है लेकिन संवेग/Emotions  व प्रतिवर्त/Reflexis तो इच्छा से अभिप्रेरित नहीं होते।

7 – कुर्ट लेविन सिद्धान्त / Kurt Levin Theory –

                 यह सिद्धान्त एक महत्त्वपूर्ण अधिगम सिद्धान्त है जो यह मानता है कि सीखने में अभिप्रेरणा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है यह सिद्धान्त संयोग, स्मृति, गतिशील प्रक्रिया, व्याख्या, भग्नाशा, आकांक्षा स्तर सभी को समाहित करता है जो मूलतः साक्षी पृष्ठभूमि पर आधारित है।

                   उक्त विवेचन यह स्पष्ट करता है कि अभिप्रेरणा किसी एक कारक से निर्धारित नहीं होती इसीलिये बॉल्स / Bolles तथा फौफ्मैन / Pfaffman का पर्यावरण आधारित प्रोत्साहन सिद्धान्त  व मैसलो/ Maslow का मांग सिद्धान्त भी अभिप्रेरणा के अपूर्ण सिद्धान्त की श्रेणी में ही आते हैं।

अभिप्रेरणा के प्रकार / Types of motivation –

वास्तव में अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है जिन्हे हम आन्तरिक अभिप्रेरणा व वाह्य अभिप्रेरणा में वर्गीकृत कर सकते हैं।

[A] – आन्तरिक अभिप्रेरणा / Internal Motivation  –

इस प्रेरणा को धनात्मक, सकारात्मक, जन्मजात प्राकृतिक, प्राथमिक अभिप्रेरणा के नाम से भी जाना जाता है। आन्तरिक अभिप्रेरणा उसे कहा जाता है जो आन्तरिक अभिप्रेरकों / Internal Motives अर्थात भूख, प्यास, आत्म रक्षा, काम, आदि के कारण उत्पन्न होते हैं।इसमें मानव स्वयं प्रेरित होकर अपनी इच्छा से कार्य करता है।     

[B] – वाह्य अभिप्रेरणा / External Motivation –

इसे ऋणात्मक, कृत्रिम, सामाजिक, द्वित्तीयक अर्जित, अभिप्रेरणा के नाम से भी जाना जाता है। वाह्य अभिप्रेरणा उसे कहा जाता है जो वाह्य अभिप्रेरकों / External Motives अर्थात बाहरी स्थितियों आत्म सम्मान, उच्च सामाजिक स्थान, डॉक्टर, नेता, न्यायाधीश आदि बनने की इच्छा के कारण उत्पन्न होते हैं। निन्दा, प्रशंसा, आलोचना, प्रतियोगिता, पुरस्कार आदि वाह्य अभिप्रेरक हैं।  

                अभिप्रेरणा के प्रकारों को बताने के लिए  तरह तरह के वर्गीकरण प्रस्तुत किये जाते हैं लेकिन यदि हम उनका निष्पक्ष विश्लेषण करें तो उक्त दो ही प्रकार के तहत ही उन्हें रखा जा सकता है।  एक और तथ्य विश्लेषण योग्य है की अभिप्रेरणा हेतु प्रेरक आंतरिक हो या वाह्य उसका वास्तविक स्वरुप तो आन्तरिक ही  होता है उसे ऊर्जा तो आन्तरिक शक्ति से अभिप्रेरण के रूप में मिलती है जो लक्ष्य प्राप्ति तक उसको उत्साहित रखती है।

अधिगम में प्रेरणा की भूमिका / Role of motivation in learning –

अधिगम में अभिप्रेरणा की भूमिका निर्विवाद है यह वह शक्ति है जो सीखने की गति को तीव्र कर देती है प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक वुड वर्थ महोदय ने कहा –

           निष्पत्ति (Achievement) = योग्यता (Ability) + अभिप्रेरणा (Motivation)

उक्त समीकरण चीख चीख कर कह रहा है कि योग्यता के साथ प्रेरणा होने पर ‘सोने पर सुहागा’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।

वास्तव में प्रेरणा अध्यापक के हाथ में ऐसा महत्त्वपूर्ण उपागम है जिससे देश का भविष्य, हमारे विद्यार्थियों का कल सँवारा जा सकता है उनकी अन्तर्निहित क्षमता को उत्कृष्ट रूप से उभारा जा सकता है। राष्ट्र को समर्पित सेवा भावी युवा तैयार किये जा सकते हैं। शैक्षिक उत्कृष्टता के प्रदत्त सोपान तय किये जा सकते हैं अधिगम क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़े जा सकते हैं। तत्सम्बन्धी कुछ बिन्दु  इस प्रकार दिए जा सकते हैं –

01- उत्सुकता जागृति

02- ऊर्जा व्यवस्थापन

03- ध्यान संकेन्द्रण

04- अनवरतता

05- रूचि परिमार्जन

06- स्वस्थ आदतें

07- निर्णयन क्षमता

08- अधिगम इच्छा

09- आवश्यकता पूर्ति सक्षमता

10- सम्यक मार्ग दर्शन

11 – सम्यक साधन चयन

12 – आशावादी भविष्य

               विकास यात्रा में अभिप्रेरणा ऐसा शक्तिशाली साधन है जो हमारे सपने, हमारे अभीप्सित, हमारे लक्ष्य हमें दिला सकता है। एण्डरसन/Anderson महोदय ने उचित ही कहा है। –

“Learning will proceed best if motivated.”

“सीखने की प्रक्रिया सर्वोत्तम रूप से आगे बढ़ेगी यदि वह अभिप्रेरित होगी।”

अभिप्रेरणा कुशल अध्यापक के हाथ में शिक्षा जगत का अमूल्य वरदान है स्किनर/Skinner महोदय तो अभिप्रेरणा को सीखने का राज मार्ग बताते हैंउन्होंने कहा –

“Motivation is the super highway to learning.”

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शिक्षा

Education as a tool of Modernization in the Indian context.

August 6, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


भारतीय सन्दर्भ में आधुनिकीकरण के एक उपकरण के रूप में शिक्षा

भारत में शिक्षा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से अब तक एक बहुत बड़ा सफर तय कर चुका है। बदलते परिवेश के साथ और तत्कालीन परिस्थितियों के साथ जन सामान्य पर पड़ने वाले प्रभाव का इतिहास गवाह रहा है इसने बोलने, आचार, व्यवहार, संस्कृति,  वेश भूषा, रहन सहन में होने वाले परिवर्तनों को बहुत अच्छी तरह से निरीक्षित किया है। इन तमाम परिवर्तनों के आधार पर यह  पूर्वक कहा जा सकता है कि शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण साधन है जो हमारे पूरे परिवेश, सम्पूर्ण समाज को वक्त के साथ चलना सिखा सकता है।शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण उपकरण है जो हमें आधुनिकता से जोड़ सकता है।

आधुनिकी करण क्या है?

What is modernization?

आधुनिकीकरण  वह  प्रत्यय है जो हमें समय के साथ कदमताल करना सिखाता है हर काल की अपनी परम्पराएं, मर्यादाएं, मूल्य होते हैं जो भारत में निरन्तर  परिवर्द्धित व परिवर्तित होते रहे हैं और भारतीयों ने इन्हे आवश्यकतानुसार अङ्गीकार किया है। डॉ ० सत्यदेव सिंह ने आधुनिकीकरण के सन्दर्भ में कहा –

“आधुनिकीकरण एक ऐसी गत्यात्मक प्रक्रिया है जिसमें कोई समाज नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकियों का लाभ लेते हुए परम्परागत अथवा अर्ध परम्परागत स्थिति से हटकर अपने संगठन संरचना, मूल्य, अभिप्रेरणा, उद्देश्य तथा आकांक्षाओं में आवश्यक परिवर्तन कर लेता है।”

“Modernization is such a dynamic process in which a society moves from a traditional or semi-traditional position, taking advantage of the latest scientific techniques, to make necessary changes in its organizational structure, values, motivation, objectives and aspirations.”

आधुनिकीकरण की परिभाषा में व्यक्ति व उसकी ज्ञानात्मक स्थिति के अनुसार यद्यपि परिवर्तन परिलक्षित होते हैं लेकिन कोठारी कमीशन  ने भारतीय समाज के आधुनिकता से जुड़ने के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप से कहा –

“The most distinct feature of modern society, in contrast with a traditional one, is its adoption of a science-based technology.”

“आधुनिक समाज की सबसे विशिष्ट विशेषता, पारंपरिक समाज के विपरीत, विज्ञान आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाना है।”

अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में आधुनिकी करण से आशय बदलते समय के साथ बदलते प्रतिमानों, संसाधनों, वैज्ञानिक प्रगति और आवश्यक प्रगतिशील बदलाव के साथ अनुकूलन करने से है।

Education as a tool of Modernization

आधुनिकीकरण के एक उपकरण के रूप में शिक्षा-

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब हम भारत का आकलन करते हैं तो यह प्रत्यक्षतः अनुभूति होती है कि शिक्षा केवल समस्या समाधान का ही उपकरण नहीं है बल्कि यह वह विशिष्ट उपागम है जो हमें समय के साथ चलना सिखाता है वास्तविक आधुनिकता का सच्चा उपकरण शिक्षा है इसे नकारा नहीं जा सकता। निम्न आधारों पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है –

1 – सामाजिक सकारात्मक परिवर्तन/ Positive Social Change

2 – सांस्कृतिक परिवर्तन / Cultural change

3 – आर्थिक परिवर्तन / Economic change

4 – बौद्धिक परिवर्तन / Intellectual change

5 – मूल्यों व उद्देश्यों में परिवर्तन / Change in values ​​and objectives

6 – विज्ञान व तकनीकी की सहज स्वीकृति / Easy acceptance of science and technology

7 – समन्वय व सामञ्जस्य की बदलती अवधारणा / Concept of coordination and harmony

 8 – कुरीति निवारण में सञ्चारी साधनों का प्रयोग / Use of communicative means in the prevention of      evil.

उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा वह साधन है जो हमें आधुनिकता से जोड़ता है व अन्धानुकरण से बचाता है जो परम आवश्यक है। डॉ सत्य देव सिंह का विचार दृष्टव्य है –

“यदि कोई समाज अन्य समाजों का अन्धानुकरण करता है तो कालान्तर में अन्धानुकरण करने वाला समाज अपना आस्तित्व समाप्त कर सकता है।”

“If a society blindly imitates other societies, then over a period of time the society which blindly imitates its existence.”. 

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शिक्षा

कॉमर्स के विद्यार्थी इण्टर के बाद क्या करें ? What should commerce students do after inter?

July 10, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कॉमर्स वर्तमान समय का एक बहुत व्याहारिक विषय है। बहुधा इन विद्यार्थियों में अधिक व्याहारिक गुण होने की वजह से परिणाम पाने की शीघ्र इच्छा होती है।बाजार वाद व उत्तरोत्तर बढ़ती उपभोक्ता संस्कृति ने इसे आज के परिप्रेक्ष्य में गढ़ने हेतु नए आयाम उपलब्ध कराये हैं। इनमें से कुछ बच्चों के पुश्तैनी प्रतिष्ठान होते हैं तो कई विद्यार्थी अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं। इण्टरमीडिएट परीक्षा परिणाम प्राप्त करने के बाद इनको भी यही समस्या घेरती है की अब क्या करें ?

कालान्तर में व्यवस्थाएं परिवर्तित होती रहती हैं शीघ्र ही वह समय आएगा जब विभिन्न धाराओं कला, वाणिज्य, विज्ञान की जगह विद्यार्थी पसन्दीदा विषय किसी भी  ले सकेंगे। लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में वाणिज्य के कुछ विद्यार्थी गणित विषय बारहवीं में रखते हैं और कुछ नहीं। इससे भी अवसरों में कुछ अन्तर दिखाई देता है।

बारहवीं में गणित के साथ कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–

Course for students having commerce with mathematics in class XII-

1 – C.A. (Charted Accountancy)

2 – B.C.A. (Bachelor of Computer Applications) or IT and Software

3 – B.F.A. (Bachelor of Finance and Accounting)

4 – B.Com. Honours

5 – B.E. (Bachelor of Economics)

6 – B.I.B.S. (Bachelor of International Business and Finance)

7 – B.J.M.S. (Bachelor of Journalism and mass Communication)

8 – B.Sc. Hons (Mathematics)

9 – B.Sc. Hons (Applied Mathematics)

10- B.Sc. (Statistics)

बारहवीं में गणित के बिना कॉमर्स रखने वाले विद्यार्थी हेतु कोर्स–

Course for students having commerce without mathematics in class XII-

1 – B.Com (Bachelor of Commerce)

2 – C.S. (Company Secretary)

3 – B.B.A. (Bachelor of Business Administration)

4 – Bachelors in Hospitality

5 – Bachelors in Event Management

6 – Bachelors of Management Studies

7 – Bachelors in Travel and Tourism

8 – Bachelors in Hotel Management

9 – Bachelor of Vocational Studies

10 – Bachelor of Journalism

11 – Bachelor of Foreign Trade

12 – Bachelor of Business Studies

13 – Bachelor of Social Work

14 – Bachelor of Vocational Studies

15 – Bachelor of Interior Designing

16 – BA LL.B

17 – BBA LL.B

18 – B.A

19 – B.A (Hons)

20 – B.Sc. Animation and media

बारहवीं कॉमर्स के पश्चात डिप्लोमा कोर्स

Diploma course after 12th commerce –

1 – Diploma in Education

2 – Import Export Diploma

3 – Digital Marketing Diploma

4 – Diploma in Industrial Safety

5 – Diploma In Advance Accounting

6 – Diploma in Computer Application

7 – Diploma in Financial Accounting

8 – Diploma in Business Management

9 – Hospitality Diploma

10 – Diploma in Banking and Finance

11 – Diploma in Retail Management

12 – Diploma in Hotel Management

13 – Diploma in Fashion Designing

बारहवीं कॉमर्स के पश्चात प्रोफेशनल कोर्स

Professional course after 12th commerce –

यदि हम आज के हिसाब से कुछ महत्त्वपूर्ण कोर्स देखना चाहें तो इन्हें इस प्रकार भी क्रमित किया जा सकता है –

1 – GST Course

2 – Income Tax Course

3 – Content Marketing

4 – Digital Marketing

5 – Accounting and Taxation

6 – Air Hostess Training

7 – B.A., B. Com., BBA. etc

8 – BA LL.B

9 – Bachlor of Business Management

        कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि रास्ते बहुत सारे हैं बस हमें बहुत सोच समझ कर फैसला करना है। फैसला हो जाने के बाद दृढ़ता से अपनी मंजिल को हासिल करना है। भारत के उत्पादन क्षेत्र को बहुत विस्तृत करने की आवश्यकता है। बाजारवाद का परिदृश्य बदलने हेतु व अपनी मौलिकता को बनाये रखने हेतु वाणिज्य के विद्यार्थियों से देश को बहुत आशा है।

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शिक्षा

इण्टर पास विज्ञानविद्यार्थी क्या करें ? (What should an Intermediate science student do?)

July 3, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जब हम हाई स्कूल उत्तीर्ण कर इण्टरमीडिएट विज्ञान वर्ग में प्रवेश लेते हैं तो तरह तरह के सपने हमारे मनोमष्तिष्क में पल रहे होते हैं यह उम्र ही ऐसी है जो तनाव ,तूफ़ान, सांवेगिक संघर्ष और कल्पना लोकसे हमारा प्रत्यक्षीकरण कराती है लेकिन इण्टर मीडिएट करते करते जागरूक विद्यार्थी के चरण यथार्थ के धरातल को स्पर्श करने लगते हैं। यह काफी कुछ हमारे घर की आर्थिक स्थिति और हमारे मानसिक स्तर से निर्धारित होता है।विविध निरीक्षण बताते हैं कि विज्ञान वर्ग के विद्यार्थियों के साथ उनके मातापिता अन्य वर्ग के विद्यार्थियों की तुलना में अधिक चिन्तित रहते हैं कि अब क्या करें क्या न करें। बच्चे के भविष्य का सवाल है।

आप सभी की समस्या समाधान की ओर यह एक प्रयास है विश्वास है कि यह दिशा बोधक सिद्ध होगा। इण्टर मीडिएट विज्ञान अपने में जीवविज्ञान और गणित के दो दिशामूलक तत्त्व साथ लेकर चलता है। विज्ञान वर्ग से  इण्टरमीडिएट करने के बाद डिप्लोमा कोर्स, कम्प्यूटर कोर्स,फार्मेसी, इन्जीनियरिंग, व चिकित्सा परिक्षेत्र के कई मार्ग खुलते हैं साथ ही मिलते हैं विविध सेवाओं में अवसर। जिन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है। –

इण्टर मीडिएट विज्ञान के बाद डिग्री कोर्स (Degree Course after Intermediate Science)-

विज्ञान वर्ग से इण्टर मीडिएट करने के बाद एक वृहद पटल खुलता है जिन्हे यहाँ पर एक एक करके बताने का प्रयास करेंगे निम्नवत डिग्री कोर्स अपनी रूचि, क्षमता, स्थिति के अनुसार किये जा सकते हैं –

बैचलर ऑफ़ साइंस (B. Sc)

बैचलर ऑफ़ एग्रीकल्चर

बैचलर ऑफ़ फार्मेसी

बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (B. Tech), बैचलर ऑफ़ इन्जीनियरिंग (B.E)

बैचलर ऑफ़ मेडिसिन एन्ड बैचलर ऑफ़ सर्जरी (MBBS)

बैचलर ऑफ़ डेण्टल सर्जरी (BDS)

बैचलर ऑफ़ फीज़ीओथेरेपी (BPT)

बैचलर ऑफ़ होम्योपैथिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BHMS)

बैचलर ऑफ़ आयुर्वैदिक मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BAMS)

बैचलर ऑफ़ यूनानी मेडिसिन एन्ड सर्जरी (BUMS)

माइक्रो बायोलोजी             

बायो टेक्नोलॉजी

बायोइन्फॉर्मेटिक्स / Bioinformatics

जैनेटिक्स

सामान्यतः लम्बे अन्तराल तक यह माना जाता रहा की इण्टर PCM  के बाद बालक इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में जायेगा उसे JEE Main की तैयारी करनी चाहिए और IIT की चाह रखने वालों को JEE Main के साथ JEE एडवान्स भी निकालना का प्रयास करने का प्रयास करना होगा। डिप्लोमा कोर्स से जुड़ने हेतु इलेक्ट्रिकल, सिविल, मेकेनिकल, केमिकल इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों से जुड़ा डिप्लोमा कोर्स किया जा सकता है।

दूसरी और चिकित्सा के क्षेत्र में स्थान बनाने हेतु NEET परीक्षा पास करनी होगी और इसके स्कोर के आधार पर MBBS, BDS, BHMS, या BUMS आदि का स्थान मिलेगा।

लेकिन आज पैरा मेडिकल का एक आकाश भी शीघ्र अर्थोपार्जन का जरिया बन सकता है।

12th PCB के बाद पैरामैडिकल कोर्स –

पैरामेडिकल  का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है जो कक्षा 12 वीं के छात्रों के लिए सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री कोर्स प्रदान करता है। पैरामेडिकल  का यह क्षेत्र पैरामेडिकल डिग्री वालों हेतु करियर का बहुत बड़ा आयाम प्रदान करता है  है। इस कोर्स के लिए न्यूनतम योग्यता 50% अंकों के साथ PCB में 12 वीं पास है। 12th PCB के बाद प्रमुख पैरामैडिकल कोर्स बताने हेतु इस प्रकार क्रमित किये जा सकते हैं यथा –

बी एस सी  इन मेडिकल इमेजिंग टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन एक्स-रे टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इनडायलिसिस टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन मैडिकल रिकॉर्ड

बी एस सी  इन रेडिओग्राफी

बी एस सी  इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन एनेस्थिया टेक्नोलॉजी

बी एस सी  इन ऑप्टोमेट्री

बी एस सी  इन ऑडियोलॉजी एण्ड स्पीच

बी एस सी  इन थिएटर टेक्नोलॉजी

 इसके अलावा बहुत से परिक्षेत्र अपनी जगह बनाते जा रहे हैं।

कम्प्यूटर कोर्स की अपनी एक बहुत बड़ी श्रृंखला  है जिन्हे इण्टर मीडिएट के बाद किया जा  सकता है ।

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शिक्षा

इण्टर पास करने के बाद क्या करें कला वर्ग के विद्यार्थी ?(What should the students of Arts do after passing Inter?)

June 26, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सर्व प्रथम आपको बधाई की आपने जीवन का महत्त्वपूर्ण पड़ाव पार किया है विश्व का बहुत बड़ा पटल आपका स्वागत करने को उत्सुक है। बहुत खुशी होती है की भटकाव की उम्र को धता बता आप जब म्हणत और लगन से इस पड़ाव को पार करते हैं और ऐसे ऐसे प्रश्न पूछते हैं की तबियत खुश हो जाती है लेकिन एक प्रश्न आप सबको चिन्तन के लिए विवश करता है कि अब क्या करें ?

इस प्रश्न का उत्तर सबके लिए अलग अलग होता है क्योंकि सबकी आर्थिक स्थिति, परिस्थितियां, अधिगम स्तर, ऊर्जा स्तर और सपने अलग अलग होते हैं।

इस प्रश्न को सही व सार्थक उत्तर तक ले जाने के प्रयास में ही हुआ है आज का यह सृजन। आपके लिए बहुत से मार्ग खुलते हैं जो आपको आपकी परिस्थिति के अनुसार आगे की पढ़ाई, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम या सेवाकार्य से जोड़ते हैं। विविध कार्यक्रम इस प्रकार हैं –

इण्टर आर्ट्स के बाद डिप्लोमा(Diploma after Inter Arts)-

अध्यापन में डिप्लोमा,विदेशी भाषा में डिप्लोमा,चिकित्स्कीय परिक्षेत्र में डिप्लोमा डिज़ाइनिंग के परिक्षेत्र में डिप्लोमा जैसे फैशन, ज्वैलरी, इंटीरियर, वेब या ग्राफिक्स इनके अलावा भी आज बहुत से नए डिप्लोमा परिक्षेत्र विकसित हो रहे हैं जो आपको शीघ्र कमाने योग्य बना सकते हैं। यथा डिप्लोमा इन 3D एनिमेशन,डिप्लोमा इन मल्टीमीडिया, डिप्लोमा इन एडवरटाइजिंग एंड मार्केटिंग, डिप्लोमा इन ट्रैवल एंड टूरिज्म, डिप्लोमा इन इवेंट मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन साउंड रिकार्डिंग आदि ।

इण्टर आर्ट्स के बाद डिग्री कोर्स (Degree course after inter arts)-
1- बैचलर ऑफ आर्ट्स(बीए)
2-बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए)
3-बैचेलर इन सोशल साइंस
4-बैचेलर इन ह्यूमेनिटी 
5-बैचलर इन जर्नलिज्म 
6-बैचलर ऑफ साइंस (होस्पिटेलिटी एंड ट्रैवल)
7-बीए एलएलबी 
8-बैचलर ऑफ एलीमेन्ट्री एजूकेशन
9-बैचलर ऑफ डिजाइन (एनीमेशन) 
10- विविध कला परिक्षेत्र के ऑनर्स डिग्री कोर्स आदि ।
इण्टर आर्ट्स के बाद सेवाएं (Services after Inter Arts)
शिक्षक /Teacher
वकील /Advocate
फैशन या टेक्सटाइल डिजाइनर/Fashion या textile designer 
होटल मैनेजमेंट / Hotel Management
पत्रकार / Reporter
सरकारी नौकरी /Government job यथा एसएससी मल्टी टास्किंग स्टाफ, एसएससी ग्रेड C और ग्रेड D आशुलिपिक, रेलवे ग्रुप डी (आरआरबी / आरआरसी ग्रुप डी),एसएससी जनरल ड्यूटी कांस्टेबल, आरआरबी सहायक लोको पायलट, इंडियन आर्मी एग्जाम फॉर द पोस्ट ऑफ टेक्निकल एंट्री स्कीम, महिला कांस्टेबलों, सोल्जर्स, कैटरिंग के लिए जूनियर कमीशन अधिकारी।
स्वरोजगार के विविध अवसर (Various self employment opportunities) -
यदि आप नौकर बनने की जगह मालिक बनाना चाहते हैं तो अपने घर के पुश्तैनी कार्य या आपके लिए सम्भव किसी भी स्वरोजगार से स्वयं को जोड़ सकते हैं कोइ कार्य छोटा बड़ा नहीं होता हमारी सोच उसे छोटा बड़ा बनाती है। आप शीघ्र ही कई अन्य को रोजगार देने की स्थिति में आ जाएंगे।
        आज सूचनाएं बिजली की गति से उड़ रही हैं जिन्हे कोई होम सिकनेस नहीं है वे इन अवसरों का लाभ उठा सकते हैं याद रखें एक चूका हुआ अवसर खोई हुई उपलब्धि है कभी हताश निराश  नहीं होना है नित्य बदलता बहुत बड़ा आकाश हमारे सामने है।  परम श्रद्धेय मैथिली शरण जी की पंक्तियों में सन्देश छिपा है आपके लिए -
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।
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मनोविज्ञान

Creativity / सर्जनात्मकता 

June 16, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


सर्जनात्मकता से आशय (Meaning of creativity) :-

इससे आशय आंग्ल भाषा के Creativity से है सर्जनात्मकता शब्द कुछ ऐसे शब्दों द्वारा भी लोगों द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है जो अर्थ में इससे अन्तर रखते हैं जैसे विधायकता, उत्पादकता, खोज आदि जबकि विधायकता से एकत्रीकरण का,उत्पादकता(Productivity) से उत्पादन का और खोज से Search या  Discovery का बोध होता है। सृजनात्मकता को इसका पर्याय या सबसे करीबी माना जा सकता है जब कि सृजन में शून्य का भाव निहित है और सर्जन में वर्तमान या विद्यमान में नवीनता या मौलिकता की सृष्टि करनी पड़ती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्जनात्मकता के समानान्तर सृजनात्मकता, रचनात्मक, सर्जक,उत्पन्न करना, बनाना आदि को आवश्यकता नुसार लिया जा सकता है।

सर्जनात्मकता की परिभाषाएं  (Definitions of creativity) :- 

विविध विद्वानों द्वारा इसे विविध रूप से पारिभाषित किया गया है स्टेन महोदय का मानना है –

“When it results in a novel work that is accept as tenable or useful or satisfying by a group at some point in time.” 

“जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी मान्य हो, वह कार्य सृजनात्मकता कहलाता है। ”

एक अन्य विद्वान् मेडनिक महोदय का मानना है कि –

“Creative thinking consists of forming new combinations of associative elements. Which combinations either meet specified requirements or are in some way useful.The more mutually remote the elements of new combinations. The more creative is the process of solution.”

“सर्जनात्मक चिन्तन में साहचर्य के तत्वों का मिश्रण रहता है जो विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संयोगशील होते हैं या किसी अन्य रूप में लाभ दायक होते हैं। नवीन संयोग के विचार जितने कम होंगे,सृजनात्मकता की सम्भावना उतनी ही अधिक होगी।”

क्रो एण्ड क्रो महोदय का विचार है :-

“Creativity is a mental process to express the original outcomes.”

“सृजनात्मकता मौलिक  परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।”

एक अन्य महत्त्वपूर्ण विचारक सी० वी ० गुड  महोदय का मानना है :-

“A quality of thought to be composed of broad continue upon which all members of the population may be placed in different degrees, the factors of creativity are tentatively described as associate and ideational fluency, originality adaptive and spontaneously flexibility and ability to make logical evaluation 

“सर्जनात्मकता वह विचार है जो किसी समूह में विस्तृत सातत्य का निर्माण करता है सर्जनात्मकता के कारक हैं -साहचर्य, आदर्शात्मक मौलिकता, अनुकूलता,सातत्यता,लोच एवम तार्किक विकास की योग्यता।”

उक्त विचारों के आलोक में कहा जा सकता है कि सर्जनात्मकता में मौलिकता, नवीनता, उपयोगिता, संयोग से सृजन, आवश्यकतानुसार सृजन के गुण विद्यमान रहते हैं। जिनका आधार चिन्तन होता है।

  विद्यार्थियों में सृजनात्मकता की वृद्धि के उपाय (Ways to increase creativity in students) –

1- विद्यार्थियों की प्रतिक्रियाओं को उचित सम्मान (Due respect to the responses of the students)

2 – कल्पना आधारित प्रस्तुतीकरण (Imagination Based Presentation)

3 – पाठ्यक्रम में क्रिया आधारित अधिगम को बढ़ावा (Promotion of action based learning in the curriculum)

4 – सूचना संग्रहण, आकलन विश्लेषण का उपयोग (Information collection, use of assessment analysis)

5 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं से सृजनशीलता का विकास (Development of creativity through co-curricular activities)

6 – उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग (Use of appropriate teaching methods)

7 – तार्किकता का उन्नयन (Upgrading Logic)

8 – अभिव्यक्ति के समुचित अवसर (Reasonable opportunities for expression)

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शिक्षा

पाठ्यक्रम – आशय, परिभाषा, इसकी प्रकृति व घटक

June 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पाठ्य क्रम से आशय /Meaning of Curriculum

सर्व प्रथम यहाँ शब्द पाठ्यक्रम की  विवेचना कर आशय समझने का प्रयास करते हैं। शब्द पाठ्यक्रम लैटिन भाषा के शब्द  ‘Currere’  शब्द से निकला है जिसका आशय है दौड़ का मैदान (Race Course ) अर्थात पाठ्यक्रम (Curriculum) से आशय उस साधन से  है जिसके द्वारा शिक्षा के मन्तव्य प्राप्त किये जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है की यह वह साधन है जिसके माध्यम से शिक्षा लक्ष्यों की प्राप्ति एक तर्कपूर्ण क्रम का अनुसरण कर प्राप्त की जा सकती है।

शिक्षा की तरह पाठ्यक्रम के आशय के सम्बन्ध में भी दो धारणाएं प्रचलित हैं जिसे संकुचित अर्थ व व्यापक अर्थ के नाम से जाना जाता है। संकुचित अर्थ में पाठ्यक्रम भी केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित है लेकिन व्यापक अर्थ में वे सभी ज्ञान व अनुभव आ जाते हैं जिसे नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से प्राप्त करती है साथ ही विद्यालय में अध्यापकीय संरक्षण में विद्यार्थी द्वारा जो भी क्रियाएं सम्पादित होती हैं सारी की सारी पाठ्यक्रम के तहत स्वीकार की जाती हैं इसके अतिरिक्त पाठ्य सहगामी क्रियाएं भी पाठ्यक्रम का ही भाग होती हैं अर्थात वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पाठ्यक्रम से आशय उसके इसी व्यापक स्वरूप से ही है। 

पाठ्यक्रम की परिभाषाएं / Definition of Curriculum  –

 पाठ्यक्रम की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं। जॉनसन महोदय के अनुसार –

“A curriculum is a structured series of intended learning outcomes.” 

“पाठ्यक्रम भावी सीखने के परिणामों की एक संरचित श्रृंखला है।”

एक अन्य विचारक मोनरो महोदय का मानना है –

“Curriculum embodies all the experiences which are utilized by the school to atain the aims of education.”

“पाठ्यचर्या उन सभी अनुभवों को समाहित करती है जो स्कूल द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।”

भारतीय शिक्षाविद डॉ ० एन ० एल ० शर्मा जी कहते हैं –

“Curriculum is the statement of cource content to be learnt and tought during the course of a specific study within a stipulated time period.”

“पाठ्यचर्या एक निश्चित समय अवधि के भीतर एक विशिष्ट अध्ययन के दौरान सीखी और पढ़ी जाने वाली पाठ्यक्रम सामग्री का विवरण है।”

एक सुप्रसिद्ध चिन्तक Cunningham ने अपने भावों को इस प्रकार शब्दों में ढाला है –

“The curriculum is a tool in the hands of into artist (teacher) is mauld his material (the pupil) according to his ideals (objectives) in the studio (the school).

“पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथों में एक उपकरण है जो स्टूडियो (स्कूल) में अपने आदर्शों (उद्देश्यों) के अनुसार अपनी सामग्री (छात्र) को ढालता है।”

वेण्ट और क्रोनबर्ग के अनुसार

“Curriculum is the systematic from the subject matter which is prepared to fulfil the needs of pupils.”

“पाठ्यचर्या उस विषय वस्तु से व्यवस्थित है जो बालकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार की जाती है।”

इस प्रकार पाठ्यक्रम वह साधन मात्र है जो समय की मॉंग के आधार पर कालानुरूप विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है।

पाठ्यक्रम की प्रकृति (Nature of Curriculum)  –

पाठ्यक्रम की प्रकृति के सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता कि यह स्थाई रहेगी। इसकी प्रकृति में स्थान, काल, दिशा, व्यवस्था,दर्शन  आदि के अनुसार परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं। पाठ्यक्रम हर काल की आवश्यकता के अनुसार स्वयम् को व्यवस्थित कर मानवता का कल्याण करता है।पाठ्यक्रम की मूल प्रकृति मानव कल्याण की है डॉ० सोती शिवेन्द्र सिंह व अन्य द्वारा इसकी विशेषता जिसमें इसकी प्रकृति के दर्शन होते हैं भली भाँति विवेचित किया गया है। जो इसके नाम में ही छिपा है यथा –

C – Central point of Education / शिक्षा का केन्द्रीय बिन्दु

U – Utilization of resources / संसाधनों का उपयोग

R – Reform in Education / शिक्षा में सुधार

R – Remedial actions / उपचारात्मक क्रियाऐं

I – Innovation / Infrastructure management. / नवाचार / बुनियादी ढांचा प्रबन्धन

C – Co-curricular and curricular activities / सह-पाठयक्रम और पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियाँ

U – Understanding of Educational objectives /शैक्षिक उद्देश्यों की समझ

L – List of subjects and activities / विषयों और गतिविधियों की सूची

    (Lectures, Laboratory, Library, Learning Material)

U – Understanding of educational demand./ शैक्षिक माँग की स्थिति की समझ

M – Management of educational process / शैक्षिक प्रक्रिया का प्रबंधन।

पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाले घटक  /  Curriculum Affecting Factors –

शिक्षा व्यवस्था का गहन अध्ययन यह स्पष्ट संकेत देता है कि शिक्षा और पाठ्यक्रम का एक दूसरे से गहन सम्बन्ध रहा है इसी आलोक में पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाले घटकों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।

1 – सामाजिक परिवर्तन

2 – शासन व्यवस्था

3 – अध्ययन समितियाँ 

4 – राष्ट्रीय आयोग व विविध समितियाँ

5 – परीक्षा प्रणाली

6 – उद्देश्यों का प्रभाव 

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