शाश्वत नियम है परिवर्तन सहज हो वरना पड़ेगा ।

जड़त्व, ठहराव, स्थिरता मोह तज चलना पड़ेगा ।।

गर इस चक्कर में पड़े तो समय तुम्हें पिछड़ा कहेगा ।

प्रगति हमराह को बदलता ताललय सुनना पड़ेगा ।1।

देखना नव प्रभात में, दिन मान पुनः ऊपर उठेगा।

आशा का दामन पकड़ विश्वास से कोपल खिलेगा।

विश्वास को तुम साध लेना फिर मनस ऊँचा उठेगा।

पुरातन इस धरातल पर, नव शुभ्र सा उगने लगेगा।2।

वेदना का मर्म जान कर नव कारवाँ जुड़ने लगेगा।

मर्माशय भेद का समझ मर्मज्ञ मनस बनने लगेगा।

सारे भावों को समझ यह मन मनन करना लगेगा।

सुशासन समागम पर शुभ लाभ नव जुड़ने लगेगा ।3।

नेपथ्य में कुछ शोर है, नेतृत्व सहज करना पड़ेगा।

भीड़ सारी दिशा हीन, दिशाबोध से जुड़ना पड़ेगा।

पत्तियों को जल दिया तो, फर्क भूतल क्या पड़ेगा।

सोच कर सब बातें हवाई जमीन से जुड़ना पड़ेगा।4।

सोचना ये सब छोड़ दें कौन कबकब क्या कहेगा।

आत्मबल केवल सद्कर्म कर संग तेरे रैला चलेगा।

सच से बिल्कुल मत भटकना धैर्य से बढ़ना पड़ेगा।

धैर्य, संयम, वीरता संग उत्साह मेल करना पड़ेगा ।5।

छोड़ दो दुर्भावना सब राष्ट्रवाद अब गढ़ना पड़ेगा।

धीमी गति कुछ नहीं अब, तीव्रता से बढ़ना पड़ेगा।

सीख है इतिहास की, कौशल बदल चलना पड़ेगा।

‘ नाथ ‘ डर कर कुछ नहीं संग्राम तय करना पड़ेगा ।6।

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