जब प्रारब्ध के फलने से

शिशु आगमन हो जाता है।

मात पिता के चिन्तन से

कर्मों का वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है  । 1 ।

केवल एक हाथ के चलने से

वह तो थप्पड़ हो जाता है।

क्रोध संचरण हो मन से

प्रेम विघटन हो जाता है ।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 2 ।

अँगुष्ठ अंगुलियाँ कसने से

मुष्टिका स्वरुप हो जाता है।

क्रोध धधकता नेत्रों से

प्रेम भाव भी खो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 3 ।

इन हाथों के टकराने से

ताली का चलन हो जाता है।

यह ताली बजती जब लय से

भावों का वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 4 ।

दाएं बांयें इन हाथों से

कुछ नाम पुकारे जाते हैं।

उनकी कर्त्तव्य निपुणता से

कहने का चलन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 5 ।

यह हस्त छुलें जब चरणों से

सुब कुछ पावन हो जाता है।

शक्ति मिलती उन चरणों से

आशीष वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 6 ।

जब हाथ जुड़ उठें श्रद्धा से

दुआ का मन हो जाता है।

पावस विचार उठते मन से

पावन आचरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 7 ।

जब हाथ बढ़ें कुछ लम्बे से

तब आलिङ्गन हो जाता है।

जय माल युक्त इन हाथों से

वर वधु मिलन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 8 ।

इन हाथों के स्पर्शों से

मृदुता संचरण हो जाता है।

श्रद्धा और नमन के भावों से

बस अभिनन्दन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 9 ।

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