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शिक्षा

E – Learning

May 2, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ई  – अधिगम

ई – अधिगम, अधिगम का वह प्रकार है जिसमें अधिगम हेतु मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक माध्यम या स्रोतों की मदद ली जाती है, इसमें दृश्य व  दृश्य- श्रव्य साधनों के माध्यम से अधिगम को सरल बनाया जाता है इन साधनों में माइक्रो फोन, दृश्य व दृश्य श्रव्य टेप सी ० डी ०, डी ० वी ० डी ०,  पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क आदि  प्रयोग किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक अधिगम में सूचना व सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग मुख्यतः होता है इसके अन्तर्गत टेली कॉन्फ्रेंसिंग, कम्प्यूटर कॉन्फ्रेंसिंग, वीडिओ कॉन्फ्रेंसिंग, ऑन लाइन लाइब्रेरी, ई मेल, चैटिंग आदि आते हैं। इन सबमें इण्टरनेट व वेव तकनीकी प्रयुक्त की जाती है। आधुनिकतम कम्प्यूटर, बहु माध्यम नेट वर्किंग, इलेक्ट्रॉनिक अधिगम के प्रमुख सहायक हैं।

रोजेन वर्ग महोदय (2001)  ने बताया –

“ई – अधिगम से तात्पर्य इण्टरनेट तकनीकियों के ऐसे उपयोग से है जिनसे विविध प्रकार के ऐसे रास्ते खुलें जिनके द्वारा ज्ञान और कार्य क्षमताओं में वृद्धि की जा सके।”  

“E-learning refers to the use of Internet technologies that open up a variety of avenues through which knowledge and work abilities can be enhanced.”ई–अधिगम के लाभ / Benefits of e-learning – 1- कभी भी कहीं भी अधिगम0 2- प्रभावी अधिगम सामग्री 0 3- शिक्षण विधियों का प्रभावी अधिगम 0 4- स्वगति से अधिगम 0 5- तत्सम्बन्धी गैजेट्स का सम्यक उपयोग 0 6- परम्परागत संसाधन से वंचितों को वरदान 0 7- मानसिक स्तर, कौशल व रूचि अनुसार अध्ययन  0 8- आवश्यकतानुसार अध्ययन 0 9- उपचारात्मक व निदानात्मक शिक्षण 10 – विविधता में एकता के दर्शन 11 – गुणवत्ता युक्त प्रभावी माध्यम 12 – स्व क्षमतानुसार अध्ययनई–अधिगम की सीमाएं / Limitations of e-learning –01 – शिक्षा का यांत्रिकीकरण 02 – अधिगम कर्त्ताओं की नकारात्मकता 03 – वांछित कौशलों का अभाव 04 – अन्तः क्रिया का अभाव 05 – व्यक्तिगत संसाधनों का अभाव 06 – साधनविहीन विद्यालय 07 – प्रशिक्षण रहित शिक्षक08 – ऊर्जा संसाधनों का अभाव 09 – जागरूकता अभाव 10 – परम्परागत रूढ़िवादी सोच

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शिक्षा

ASSISSMENT

May 1, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आकलन 

आकलन शिक्षार्थियों के अधिगम और विकास के बारे में पता लगाने का व्यवस्थित आधार है इससे विद्यार्थी को अधिगमित करने और विकसित होने में मदद मिलती है यह जानकारी एकत्र करने, विश्लेषण करने और उपयोग करने की प्रक्रिया है। यह प्राथमिकताओं को तय करने, सूचना प्राप्ति और आवश्यकताओं को ज्ञात करने की महत्त्व पूर्ण पद्धति है। विद्यार्थियों की उपलब्धि को ज्ञात करते समय अध्यापक द्वारा किसी मानक के आधार  पर मूल्य निर्णय करना आकलन कहलाता है।

इरविन के अनुसार –

“आकलन छात्रों के व्यवस्थित विकास के आधार का अनुमान है। यह किसी भी वस्तु को पारिभाषित कर चयन, रचना,संग्रहण,विश्लेषण,व्याख्या और सूचनाओं का उपयुक्त प्रयोग कर छात्र विकास तथा अधिगम को बढ़ाने की प्रक्रिया है।”  

“Assessment is an estimate of the basis of systematic development of students. It is the process of defining any object, selecting, creating, collecting, analyzing, interpreting and using information appropriately to enhance student development and learning.”

NEED OF ASSISMENT (आकलन की आवश्यकता) –

विद्यार्थियों किन अधिगम की क्षमता ही उसकी प्रगति का प्रमुख आधार बनती है अतः क्षमता का आकलन परम आवश्यक है। अधोवर्णित बिंदुओं के आधार पर इसकी आवश्यकता को समझा जा सकता है।

01 – विविध विषयात्मक परिक्षेत्र में अधिगम

02 – कौशल विकास व समन्वय

03 – स्वस्थ व उपयोगी जीवन स्तर की प्राप्ति

04 – आत्म प्रेरणा व रुचयात्मक विकास 

05 –  सु समायोजन हेतु

06 – समय के साथ कदमताल हेतु

07 – सम्यक प्रतिक्रिया अभिव्यंजन हेतु

08 – आत्म मूल्यांकन व आत्म विश्लेषण हेतु 

09 – दीर्घकालिक अधिगम हेतु

10 – समसामयिक मुद्दों के प्रति जागरूकता

IMPORTANCE OF  ASSISMENT (आकलन की महत्ता) –

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिवेश से बेखबर रहकर नहीं रहा जा सकता इसलिए यह आवश्यक है कि निरन्तर स्वआकलन किया जाए और यथार्थ के धरातल पर रहकर प्रगति सुनिश्चित की जाए। इस आकलन की महत्ता को इन बिंदुओं के आधार पर विवेचित किया जा सकता है। –

1 – शक्ति परिक्षेत्र/ Areas of strength

2- कमजोरी के क्षेत्र / Areas of weakness

3- प्रेरणा  / Motivation                                       

4- पृष्ठपोषण / feedback

5- प्रगति सुधार / Improving progress

6 – जवाबदेही / Accountability

7- अद्यतन जानकारी  Up to date information

8- क्षमता सुधार  Performance Improvement

9- निर्णयन क्षमता / Decision making capacity

                उक्त सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट है कि आकलन आज महत्त्वपूर्ण परिक्षेत्र है और समय रहते सम्यक आकलन प्रगति के नए आयाम गढ़ सकता है। आकलन की आवश्यकता व महत्त्व दूरगामी नीति में सहायक सिद्ध होते हैं। विविध राजनीतिक पार्टी स्व आकलन करती रहती हैं उसी तरह व्यक्तिगत स्तर पर भी यह परमावश्यक है।

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शिक्षा

VISUAL ARTS IN EDUCATION

April 30, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

                                                 शिक्षा में दृश्य कला

कलाकार अपने संवेगों, भावों, अनुभूतियों, कल्पनाओं आदि के प्रदर्शन के लिए विविध प्रकार की कलाओं को माध्यम बनाता है इन विविध कलाओं में दृश्य कला, कला कृतियों का वह स्वरुप है जिसका भाव मुख्यतः दृश्य  होता है वे दृश्य इन्द्रियों द्वारा पहचानी जाती हैं तथा दृश्य भाव और सौन्दर्य का प्रकाशन करती हैं।

Definition of visual arts / दृश्य कला की परिभाषा –

कल्पनाशीलता व चिन्तन के घटक जब वातावरण की विविध शक्तियों से द्वन्द कर अपना प्रगटन कलाकार के माध्यम से इस प्रकार करते हैं कि अन्य चक्षुओं के आनन्द का कारण बनते हैं। तब कला का यह स्वरुप दृश्य कला के नाम से जाना जाता है। विकिपीडिआ के अनुसार –

“दृश्य कला, कला का वह रुप है जो मुख्यतः दृश्य प्रकृति की होती है जैसे -रेखा चित्र, चित्र कला, मूर्ति कला,…….. “

“Visual art is that form of art which is mainly of visual nature such as drawing, painting, sculpture,……”

स्टडी.कॉम के अनुसार –

“दृश्य कला से तात्पर्य उन कला रूपों से है जो दृश्य माध्यमों से अपना संदेश, अर्थ और भावना व्यक्त करते हैं।”

“Visual arts refers to those art forms that express their message, meaning and emotion through visual means.”

दृश्य कला की परिभाषा को शर्मा व सक्सैना (आर लाल बुक डिपो)  ने इन शब्दों में बांधने का प्रयास किया है –

“Visual arts are the such arts in which the articles made by an artist create their effect visually, it means they create visual experience of beauty and express feelings visually.”

“दृश्य कलाएँ ऐसी कलाएँ हैं जिनमें किसी कलाकार द्वारा बनाई गई वस्तुएँ दृश्य रूप से अपना प्रभाव पैदा करती हैं, इसका अर्थ है कि वे सौंदर्य का दृश्य अनुभव पैदा करती हैं और भावनाओं को दृश्य रूप से व्यक्त करती हैं।”

उक्त विविध परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि दृश्य कला उस कला को कहा जाता है जिसमें कलाकार की कृतियाँ दृश्य प्रभाव का प्रादुर्भाव करती हैं यह दृश्य कलाएं वह दृश्य सामग्री प्रस्तुत करती हैं जो नेत्रों को को आनन्द प्रदान करे। इन नयनाभिराम दृश्यों के उदाहरण यत्र तत्र सर्वत्र दीख पड़ते हैं जैसे भव्य महल, आकर्षक मूर्तियां, आकर्षक आभूषण, सुन्दर वस्तुयें ,कला कृतियों, भित्ति चित्रों,किलों,परकोटों, गुम्बदों आदि के रूप में ।ये दृश्य कलाएं मुख्यतः 5 भागों में बांटी जा सकती हैं।

1 – चित्र कला

2 – मूर्ति कला

3 – वास्तु कला

4 – नृत्य कला

5 – दृश्य श्रव्य कला

Importance of visual arts in Education

शिक्षा में दृश्य कला का महत्व –

शिक्षा में दृश्य कला के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा इंगित किया जा सकता है। –

1 – प्रभावी अधिगम 

2 – प्रेरणा व व्यावहारिकता

3 – समन्वय कौशल विकास

4 – व्यक्तित्व का समग्र विकास

5 – कल्पना शक्ति व रचनात्मक शक्ति वृद्धि

6 – सशक्त अभिव्यक्ति

7 – पैकेजिंग

8 – रोजगार प्राप्ति

9 – आत्म विश्वास वृद्धि

10 – मनोवैज्ञानिक दृढ़ता

11 – निर्णयन क्षमता

12 – ध्यान संकेन्द्रण व तार्किक क्षमता विकास

इन विविध महत्त्वों को दृष्टिगत रखते हुए कहा जा सकता है कि दृश्य कला की प्रभाव शीलता में निरन्तर वृद्धि हो रही है बी डिज़ाइनिंग, बी आर्क आदि का प्रभावी विकास इन दृश्य कलाओं को और नए आयाम देंगे। ऐसी ऐसी कलाओं का विकास हो रहा है जो मानव सभ्यता के विकास में निश्चित ही नए आयाम जोड़ेंगी।

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शिक्षा

CURRICULUM EVALUATION

April 28, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन

काल चक्र के परिभ्रमण के साथ जो पाठ्यक्रम बनाया जाता है उसके मूल्यांकन द्वारा ही यह औचित्य सिद्ध होता है कि यह प्रासंगिक है अथवा नहीं। पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन में यह जानने का प्रयास निहित है कि जिन व्यवहार गत परिवर्तनों, उद्देश्यों, निर्देशनों, दिशाओं और मार्ग दर्शन की अपेक्षा पाठ्यक्रम से की गयी थी वह कहाँ तक प्राप्त हुए हैं विविध स्तरों पर विविध विद्यालयी पाठ्यक्रम समाज, राष्ट्र, व्यक्ति, नैतिकता, मूल्य आदि को ध्यान में रखने के साथ ज्ञान के बोधात्मक स्तर के  विकास  को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं और अन्त में पाठ्यक्रम मूल्यांकन में इन्हे ही जानने का प्रयास किया जाता है कि उक्त उद्देश्य किस स्तर तक प्राप्त हुए हैं। इसी आधार पाए उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण की अवधारणा का विकास हुआ।

आशय व परिभाषा (Meaning and definition) –

पाठ्यचर्या विकास का एक महत्त्वपूर्ण नितान्त आवश्यक चरण है पाठ्यचर्या मूल्याङ्कन। इसके माध्यम से ही यह ज्ञात किया जाता है कि पाठ्यक्रम अपना उद्देश्य प्राप्त कर पा रहा है या नहीं। साथ ही यह अधिगम में कितना सहयोगी सिद्ध हो रहा है यह भी मूल्याङ्कन से ही ज्ञात होता है। डेविस 1980 ने बताया –

“It is the process of delineating obtaining, and providing information useful for making decisions and judgement about curricula.”

“यह पाठ्यक्रम के बारे में निर्णय लेने और निर्णय लेने के लिए उपयोगी जानकारी प्राप्त करने और प्रदान करने की प्रक्रिया है।“

एक अन्य विचारक मार्श (2004) ने बताया –

“It is the process of examining the goals, rationale and structure.”

“यह लक्ष्यों, तर्क और संरचना की जांच करने की प्रक्रिया है।“

Criteria and process of Good Curriculum Evaluation / अच्छे पाठ्यचर्या मूल्यांकन के मानदण्ड और प्रक्रिया-

यद्यपि पाठ्यचर्या मूल्यांकन के परिक्षेत्र में बहुत कार्य होना शेष है फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि पाठ्यचर्या मूल्यांकन में निम्न मानदण्डों को ध्यान में रखना चाहिए तथा मूल्याङ्कन प्रक्रिया हेतु इन्हीं बिन्दुओं को तरजीह दी जानी चाहिए।

01 – निर्धारित उद्देश्य प्राप्यता / Attainment of set objective

02- वस्तुनिष्ठता / Objectivity

03- क्रम बद्धता / Sequentiality

04- विश्वसनीयता / Reliability

05- वैधता /Validity

06- व्यापक दृष्टिकोण / Broad perspective

07- दूरदर्शिता / Foresight

08- व्यावहारिकता / Practicality

09 – सहभागिता / Participation

पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन के प्रकार / Types of curriculum evaluation

पाठ्यक्रम मूल्याङ्कन मुख्य रूप से तीन प्रकार का कहा जा सकता है जो इस प्रकार हैं –

1 – निर्माणात्मक मूल्यांकन / Formative evaluation –

यह पाठ्यक्रम विकास के दौरान होता है। इसका उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रम के सुधार में योगदान देना है। किसी कार्यक्रम की खूबियों का मूल्यांकन उसके विकास की प्रक्रिया के दौरान किया जाता है। मूल्यांकन परिणाम प्रोग्राम डेवलपर्स को गति प्रदान करते हैं और उन्हें प्रोग्राम में पाई गई खामियों को ठीक करने में सक्षम बनाते हैं।

2- योगात्मक मूल्यांकन / Summative evaluation –

योगात्मक मूल्यांकन में किसी पाठ्यक्रम के अंतिम प्रभावों का मूल्यांकन उसके बताए गए उद्देश्यों के आधार पर किया जाता है। यह पाठ्यक्रम के पूरी तरह से विकसित होने और संचालन में आने के बाद होता है।

3- नैदानिक ​​मूल्यांकन / Diagnostic evaluation –

नैदानिक ​​​​मूल्यांकन दो उद्देश्यों की ओर निर्देशित होता है या तो छात्रों को निर्देशात्मक स्तर (जैसे माध्यमिक विद्यालय) की शुरुआत में उचित स्थान पर रखना या अध्ययन के किसी भी क्षेत्र में छात्रों के सीखने में विचलन के अंतर्निहित कारण की खोज करना।

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शिक्षा

INDIAN FESTIVALS AND THEIR ARTISTIC SIGNIFICANCE IN EDUCATION

April 22, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

भारतीय पर्वों का शिक्षा में कलात्मक महत्त्व

किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति पर अवलम्बित होती है और इस संस्कृति का विकास दीर्घकालिक सभ्यता और उस क्षेत्र के व्यक्तित्वों के कठिन प्रयासों से गढ़ा जाता है।जब किसी राष्ट्र की पीढ़ियाँ दीर्घकाल तक मर्यादाओं और परम्पराओं का अनुपालन करती हैं तब रीति रिवाज और धरती से जुडी व्यवस्थाओं का उद्भव होता है। वे सर्वस्वीकार्य तब हो पाती हैं जब उनसे आस्था और विश्वास जुड़ता है। इन आस्था, विश्वास, परम्पराओं का सहज जुड़ाव पर्वों से इस प्रकार हो जाता है कि पर्व और कला आपस में इतने गुत्थमगुत्था हो जाते हैं कि समरस हो जाते हैं।

भारत पर्वों का देश है इससे लोक कलाएं स्वाभाविक रूप से ऐसी जुड़ गई हैं जिससे अलगाव की सोच भी मानस को  व्यथित करती है। भारत में जहां विविधताओं के दर्शन होते हैं वहीं देवी देवताओं के प्रति अगाध श्रद्धा भाव परिलक्षित होता है यहाँ भूमि पूजन किया जाता है और पृथ्वी को माँ कहा जाता है। यहाँ का सहज उद्घोष है –

 ‘जननी  जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’‘

धरती माँ के प्रति श्रद्धा की अभिव्यञ्जना अलग अलग परिक्षेत्र में विविध रूपों में होती है और इन सब का आधार बनती है कला।कला से माँ का श्रृंगार कर मानस को आध्यात्मिक आलम्बन मिलता है। विविध त्यौहारों पर धार्मिक भावना का प्रगटन विविध कलात्मक स्वरूपों  से दृष्टिगत होता है।

कलात्मक महत्ता स्थापित करती रीतियाँ व पर्व (Rituals and festivals establishing artistic importance) –

माँ भारती का श्रृंगार भूमि व भित्ति के विविध श्रंगारों में विविध पर्वों पर स्वाभाविक रूप से दिखाई पड़ता है। कुछ को यहाँ उल्लिखित करने का प्रयास है यथा

1 – रंगोली – भारत के विभिन्न प्रान्तों में रंगोली के विविध स्वरुप दृष्टिगत होते हैं वर्तमान में रंगोली बनाने हेतु गेहूँ या चावल का आटा, हल्दी, विभिन्न रंगों के लकड़ी व पत्थर के बुरादे, अबीर, गुलाल, खड़िया, विविध भूसी, विविध रंगीन चूर्ण आदि प्रयुक्त होता है। इस माध्यम से भूमि को विविध रूप अलंकृत करते हैं इनमें पत्तियों, फूलों, बेलबूटों, मङ्गलमय प्रतीकों  का प्रयोग दीख पड़ता है लेकिन इस माध्यम से ईश्वर का स्वागत (Welcome to God) अभिव्यंजित होता है। विकीपीडिया के अनुसार –

“रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा और लोक कला है अलग अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली में भिन्नता हो सकती है लेकिन इसके पीछे निहित भावना और संस्कृति में पर्याप्त समानता है। इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है।”

2 – माण्डना  – यह राजस्थानी लोक कला का बेहतरीन उदाहरण है वहाँ मेहँदी माण्डने की प्रथा भी पुरातन काल से प्रचलित है विवाहित, कुँवारियाँ विविध त्योहारों पर हाथ, पैरों पर मेहँदी माण्डने का कार्य उत्साह पूर्वक करती रही हैं आज यह शरीर के विविध अंगो तक विस्तार प् चूका है और पुरुष भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। राजस्थान में विविध पर्वों, विवाह समारोहों,और उत्सवों में आज भी इसकी धूम देखी जा  सकती है। यह आलेखन केवल भूमि तक सीमित नहीं है बल्कि दीवारों,खम्भों,वाहनों आदि पर भी इन्हें बनाया जाता है। दीवाली पर चमकदार रंगों से और होली पर विविध अबीर ,गुलाल व् अन्य रंगों तक से यह चित्रण किया जाता है।

3 – अल्पना – इसमें ज्यामितीय चित्रण की प्रधानता रहती है बंगाल में इसका अधिक प्रचलन है गीली खड़िया, पत्र रस, हल्दी, चावल का अहपन आदि से विभिन्न त्यौहारों पर दीवारों पर देवी देवताओं का चित्रण किया जाता है। विधिवत पूजा भी की जाती है।

4 – गोदना – शरीर की खाल पर गुदना गुदाने की प्रथा बहुत प्राचीन है इसमें कुछ भी चित्रित करवाया जा सकता है अपने ईष्ट का चित्र, नाम, गहना, पुष्प, बेल बूटे, कुल देवता, विविध वंशों से जुड़े चित्र, विविध पर्वों के आराध्य आदि।

5 – साँझी – यह कला उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में अधिक प्रचलित है इसमें सम्पूर्ण चित्रण गोबर की पतली पतली बत्तियों के माध्यम से किया जाता है इससे सम्पूर्ण आकृति को पूर्ण कर लिया जाता है और पत्तियों व गहनों का प्रयोग कर उसे और प्रभावी बनाया जाता है विविध फिल्मों में आपने ये आकृतियाँ देखि होंगी। नवरात्रि के देवी स्वरुप की परम्परागत रूप से साँझी के माध्यम से आज भी बनाया और पूजा जाता है।

6 – विविध पर्वों पर विशिष्ट कलात्मक चित्रण –

भारत में यूँ तो विविध पर्वों की लम्बी श्रृंखला कला से युक्त रही है यहाँ कुछ को देने भर का प्रयास है।

i – अहोई

ii – करवा चौथ

iii – गोवर्धन पूजा

iv – चित्र गुप्त पूजा

v  – जन्माष्टमी

vi – दुर्गा पूजा

            अन्ततः कहा जा सकता है कि भारत में पर्वों और कलाओं का अटूट सम्बन्ध है सामाजिक अभिव्यक्त का कलाएं प्रबलतम साधन हैं और भारत में उत्तरोत्तर आनन्द प्राप्ति का कला पवित्र साधन है। कला और पर्व का यह सम्मिलन हमें सत्यम्, शिवम्,सुन्दरम्,से जोड़ता है।

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शिक्षा

नींद / SLEEP

March 12, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कभी कभी हम किसी को देखकर अनायास ही कह उठते आज आप बहुत तरोताज़ा दिख रहे हैं जवाब मिलता है आज वास्तव में पूरी गहरी नींद लेने को मिली है। सचमुच नींद किसी वरदान से कम नहीं कही जा सकती। एक अच्छी नींद शरीर के सभी अंगों हेतु टॉनिक का काम करती है जब हम सोते हैं तो हमारे शरीर के कई अंग विषाक्त पदार्थों को साफ़ करते हैं नींद शरीर के अन्दर के भागों के साथ त्वचा हेतु भी बहुत आवश्यक है। हमारे आँख बन्द करने से शरीर के दूसरे अंग आम करना बन्द नहीं करते। नाइट शिफ्ट में काम करने वाले मेहनतकश विविध स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहते हैं।

नींद से आशय / Meaning of sleep –

विकिपीडिया के अनुसार –

“निद्रा एक उन्नत निर्माण क्रिया विषयक (एनाबोलिक) स्थिति है, जो विकास पर जोर देती है और रोगक्षम तन्त्र (इम्यून), तंत्रिका तंत्र, कंकालीय और मांसपेशी प्रणाली में नई जान दाल देती है सभी स्तनपायियों में, सभी पक्षियों और अनेक सरीसृपों, उभयचरों और मछलियों में इसका अनुपालन होता है।”

एक अन्य परिभाषा के अनुसार –

“निद्रा अपेक्षाकृत निलंबित संवेदी और संचालक गतिविधि की चेतना की एक प्राकृतिक बार बार आने वाली रूपांतरित स्थिति है जो लगभग सभी स्वैछिक मांसपेशियों की निष्क्रियता की विशेषता लिए होता है।“

इतिहास वेत्ता डॉ ० निर्मल कुमार के अनुसार –

“निद्रा प्राकृतिक रूप से शरीर को तरोताज़ा रखने का उपाय है।”

जबकि डॉ ० कविता का मानना है -“निद्रा एक ऊर्जावान शक्ति के रूप में नई सुबह का आभास कराती है व अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु दृढ़ बनाती है।”

इसी क्रम में डॉ०  शालिनी ने बताया -“शारीरिक व मानसिक टूटफूट को व्यवस्थित कर निद्रा अग्रिम कार्यों हेतु स्वस्थ उपादान है।”

उक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से यह तो स्पष्ट है कि पूरी नींद शरीर हेतु आवश्यक है।

अनिद्रा के कारण –

अनिद्रा के बहुत से कारण हैं उनमें से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं –

01 – भूख से अधिक भोजन

02 – मानसिक तनाव

03 – परिश्रम की कमी

04 – प्रमाद

05 – गृह क्लेश

06 – अनियमित श्रम

07 – अंग्रेजी औषधि व कैफीन युक्त पदार्थों का अधिक सेवन

08 – चिन्ता

09 – उच्च आकांक्षा स्तर

10 –  डर

11 – सन्तोष का अभाव

इस सम्बन्ध में एक कवि ने तो यहां तक कहा कि –

सरस्वती भूखी कविता है, लक्ष्मी को सन्तोष नहीं है।

और और की चाह और है मरघट आया होश नहीं है।

नींद पूरी न होने के नुकसान –

01 – व्यवहार दुष्प्रभावित

02 – शारीरिक स्वास्थ्य ह्रास

03 – मानसिक स्वास्थय दुष्प्रभावित

गम्भीर चिन्तक डॉ ० जे ० पी ० गौतम का विचार है –

निद्रा वह दशा है जो व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक थकान को दूर कर नवऊर्जा के संचरण का कारण बनती है। “

04 – कार्य क्षमता ह्रास

05 – क्रोध वृद्धि

06 – अवसाद

07 – मानसिक तनाव

08 – निर्णयन दुष्प्रभावित

09 – स्मृति ह्रास

10 – दुर्घटना वृद्धि

11 – मोटापा

12 – व्याधि निमन्त्रण

13 – रोग प्रतिरोधी क्षमता में ह्रास

14 – सृजनात्मक चिन्तन ह्रास

भूगोल वेत्ता डॉ ० टी ० पी ० सिंह का विचार है –

“निद्रा मानव जीवन हेतु ऊर्जा का वह प्राकृतिक स्रोत है जो किसी भी जीव या मानव में पुनः ऊर्जा व्यवस्थापन करता है। “

15 –  जैविक घड़ी दुष्प्रभावित

16 – थकान व निराशा

अच्छी नींद हेतु उपाय  –

01 – शारीरिक श्रम

एक प्रमुख शिक्षाविद डॉ ० राज कुमार गोयल ने कहा –

“चेतन मन की क्रियाओं को निरन्तर सुव्यवस्थित रूप से करने हेतु महत्त्वपूर्ण साधन है निद्रा।”

02 – नियमित व्यायाम व भ्रमण

आँग्ल भाषा के विद्वान् डॉ ० एस ० डी ० शर्मा  का विचार है –

“नींद शरीर की ऊर्जा को पुनर्जीवित करने का प्रमुख नैसर्गिक साधन है।”

03 – प्राणायाम व ध्यान

04 – तेल मालिश

05 – अँगुलियों के अग्र भाग पर दवाब

06 – गर्दन के पीछे अँगूठे से दबाना

07 – आराम दायक बिस्तर

08 – सोने जागने का समय निर्धारण

मेरे अनुसार –

जल्दी सोऊँगा जल्दी उठ जाऊँगा,

तेल मालिश करूँ, जोर अजमाऊँगा

है अखाड़े की मिट्टी बुलाती मुझे,

मैं वहाँ जाऊँगा हाँ वहाँ जाऊँगा।

09 – नशे से परहेज

10 – अंग्रेजी दवा व कैफीन का न्यूनतम प्रयोग

बचपन की याद मेरे शब्दों में –

बिन कहानी के दादी सुलाती न थीं

बिना पौ फटे वो जगाती न थीं

रात भर नींद तुमको क्यों आती नहीं

नींद की गोलियाँ तो जरूरी न थीं।  

11 – स्वस्थ व सकारात्मक चिन्तन

12 – गरिष्ठ भोजन से बचाव

13 – सन्तुलित आहार

14 – स्वस्थ आदत निर्माण

मेरे विचार में –

रात भर जागने से क्या फ़ायदा, भोर का वक़्त निद्रा में खो जाएगा,

रात में नींद लेने का है क़ायदा, गर भूलोगे  इसे भाग्य  सो जाएगा।

15 – स्वास्थ्य मूल्य निर्धारण

कुछ आदतें ऐसी होती हैं जो जीवन बदलने की क्षमता रखती हैं और यदि आप इसे सम्पूर्ण देखते व पढ़ते हैं तो निश्चित रूप से आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होगा। पूर्ण नींद न लेने के क्या नुकसान हैं। नींद न आने के क्या कारण हैं ?अच्छी नींद लाने के क्या उपाय हैं यह सब जानकर अपने जीवन में सार्थक परिवर्तन किया जा सकता है।

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शिक्षा

ELECTIC TENDENCIES IN EDUCATION / शिक्षा में उदार प्रवृत्तियाँ

March 10, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

याद रहे यहाँ उदारवाद (Liberalism) और उपयोगितावाद(Utilitarianism) की बात करने नहीं जा रहे हैं उदारवाद व  उपयोगितावाद आपके शिक्षा शास्त्र के इस पाठ्यक्रम का हिस्सा न होकर यहाँ केवल उदार प्रवृत्तियों की बात है।

शिक्षा में उदार प्रवृत्तियों से आशय  (Meaning of liberal tendencies in education) –

प्रवृति का अर्थ आदत और स्वभाव होता है। शिक्षा के परिक्षेत्र में क्या उदार दृष्टिकोण उद्भवित हुआ है ? इसी का अध्ययन यहाँ किया जाना है। ज्ञान की विकास यात्रा में शिक्षा विविध काल में विविध विचारों से प्रभावित होती रही है यदि हम यूरोप के प्राचीन काल  वर्णन करें तो हमें देखने को मिलता है कि उस समय स्वामी और सेवक की शिक्षा में अन्तर दृष्टिगत होता है। राजा, स्वामी, जमींदार आदि को उदार शिक्षा प्रदान की जाती थी जबकि जनसाधारण को शिल्प या व्यवसाय सिखाया जाता था। उदार शिक्षा में धर्म शास्त्र, नीति शास्त्र, राजनीति, साहित्य, कला, इतिहास, संगीत आदि प्रधान रूप से सिखाया जाता था। शिक्षा में उदार दृष्टिकोण का सम्यक विकास हेतु हर सम्भव प्रयास होते थे। जो शिक्षा स्वभाव और आदतों में उदार भाव को प्रश्रय प्रदान करे वही उदार शिक्षा की श्रेणी में आती थी।

               उदार प्रवृत्ति की शिक्षा सामान्य शिक्षा है जिसमें साहित्य, कला, संगीत, इतिहास, नीति शास्त्र, राजनीति शास्त्र आदि की शिक्षा की प्रधानता होती है। जिनका सम्बन्ध उदार मन, विशाल मनस से होता है। उपयोगिता वादी शिक्षा में आर्थिक प्रश्न जुड़े रहते हैं यह व्यावहारिक, व्यावसायिक, कार्योन्मुख, क्रिया केन्द्रित, अर्थोपार्जन व जीविकोपार्जन मात्र के उद्देश्यों को लेकर चलती है।

उदार प्रवृत्ति शिक्षा के उद्देश्य / Objectives of Liberal Education –

उदार प्रवृत्ति शिक्षा सम्पूर्ण व्योम के उत्थान जैसे महती उद्देश्य को लेकर चलती है और भारत के इस उद्देश्य का ही उद्घोष करती है –

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

उदार प्रवृत्ति के आलोक में शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार निर्धारित किये जा सकते हैं।

1 – उदार मूल्य स्थापन

2 – चारित्रिक विकास

3 – उत्तम स्वास्थय 

4 – शिवम्  प्रवृत्ति

5 – सत्य आलम्बन

6 – सुन्दरम् स्थापन 

7 – आध्यात्मिक उत्थान

8 – आत्मोत्सर्ग की भावना

शिक्षा के विविध अंगों पर उदार प्रवृत्तियों का प्रभाव / Impact of liberal tendencies on various parts of education –

समस्त ज्ञानालोक ही उदार प्रवृत्ति शिक्षा के परिक्षेत्र में आता है लेकिन यहॉं हम प्रमुख अंगों पर उदार प्रवृत्ति शिक्षा के प्रभावों का अध्ययन करेंगे।

1 – शिक्षक (Teacher) –

शिक्षा में उदार प्रवृत्ति के अवतरण का प्रभाव आचार्य पर साफ़ परिलक्षित हो रहा है वह वर्तमान की शिक्षण सहायक सामग्री को अधिगम प्रभावी बनाने हेतु सम्यक प्रयोग कर रहा है। आज के अध्यापक ने विविध पुरानी सड़ी गली मान्यताओं का परित्याग कर उदारता को स्वयं में प्रश्रय दिया है और समस्त विद्यार्थियों के उत्थान हेतु यथा सम्भव प्रयासरत है यद्यपि शासन अध्यापकों के साथ न्याय में असफल रहा है लेकिन अध्यापक ने कर्त्तव्य की बलिवेदी पर यथा सम्भव स्वयं की आहुति दी है घर और समाज का कलुषित वातावरण, प्रतिकूल वातावरण उदात्त भावना का बाधक नहीं बन सका है। बालक का उदार दृष्टिकोण युक्त सर्वाङ्गीण विकास विद्यालय और सच्चे अध्यापक का ध्येय है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डॉ राम शकल पाण्डेय ने लिखा। –

“आओ हम अपने समस्त विवादों एवं आपसी कलह को समाप्त कर स्नेह की इस भव्य धारा को सर्वत्र प्रवाहित कर दें।”

“Let us end all our disputes and mutual discord and let this grand stream of love flow everywhere.”

2 – विद्यार्थी (Student) –

शिक्षा के उदार दृष्टिकोण से प्रभावित शिक्षा में विद्यार्थी मानवीय उदार दृष्टिकोण से युक्त होना चाहिए। हर तरह के कट्टर दृष्टिकोण से विरत होकर मानवता का उत्थान और सम्यक दृष्टिकोण का विकास उदार शिक्षा का ध्येय है। शिक्षा की उदार प्रवृत्ति विद्यार्थी में विश्वबन्धुत्व और आवश्यक गुण  ग्राह्यता पर जोर देती है इसी लिए कहा गया कि –

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्!!

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् !!

3 – पाठ्यक्रम (Syllabus) –

समय के साथ कदमताल करते हुए शिक्षा ने अपने स्वरुप में विविध परिवर्तन किये हैं पहले इसमें साहित्य, कला, सङ्गीत, इतिहास, नीति शास्त्र, राजनीति विज्ञान आदि को ही प्रश्रय मिला था लेकिन आज की आवश्यकता के अनुरूप विविध विज्ञानों व व्यावहारिक तकनीकी ज्ञान को भी अब इसमें समाहित किया गया है।

विकिपीडिया का दृष्टिकोण है –

उदार शिक्षा (Liberal education) मध्ययुग के ‘उदार कलाओं’ की संकल्पना (कांसेप्ट) पर आधारित शिक्षा को कहते है। वर्तमान समय में ‘ज्ञान युग’ (Age of Enlightenment) के उदारतावाद पर आधारित शिक्षा को उदार शिक्षा कहते हैं। वस्तुतः उदार शिक्षा’ शिक्षा का दर्शन है जो व्यक्ति को विस्तृत ज्ञान, प्रदान करती है तथा इसके साथ मूल्य, आचरण, नागरिक दायित्वों का निर्वहन आदि सिखाती है। उदार शिक्षा प्रायः वैश्विक एवं बहुलतावादी दृष्टिकोण देती है।

अतः उक्त से सम्बन्धित सभी विषय पाठ्यक्रम में समाहित होंगे।

4 – शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –

अधिगम को प्रभावी बनाने हेतु पारम्परिक शिक्षण विधियों के साथ नवाचार से जन्मी शिक्षण विधियों का इस परिक्षेत्र में स्वागत है सामान्यतः प्रवचन विधि, व्याख्या विधि, प्रदर्शन विधि, तार्किक विधि, उदाहरण विधि, व्याख्यान विधि, शास्त्रार्थ, सेमीनार और विविध नव सञ्चार विधियों को इसमें सम्यक स्थान प्राप्त है। मनोवैज्ञानिक विधियों के साथ जो भी नवीन शिक्षण विधियाँ उदार शैक्षिक दृष्टिकोण विकास में सहयोग प्रदान कर सकती हैं उपयोग में लाई जा सकती हैं।

5 – अनुशासन (Discipline) –

उदार दृष्टि कोण ध्येय समर्पित है अतः इसमें ऐसी उच्छृंखलता को कोई स्थान नहीं है जो ध्येय प्राप्ति में बाधा बने। स्वतः अनुशासन ही इसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। विविध स्वतन्त्रता यथा समय, स्थान, दृष्टिकोण, विषय चयन के साथ यह अनुशासन दिखावा नहीं चाहता। बिना स्वयं को अनुशासित किये और बिना गम्भीर प्रयासों के उदात्त दृष्टिकोण के विकास की सोच भी भ्रामक रहेगी। इसीलिये पूर्ण मनोयोग से स्वानुशासन पर विवेक सम्मत जोर देना होगा।

नई शिक्षा नीति 2020 और उदार शिक्षा प्रवृत्ति  (New education policy 2020 and liberal education trend) –

NEP 2020 ने भी प्रत्येक शैक्षिक स्तर पर उदार शिक्षा प्रवृत्ति को पारिलक्षित किया है।  स्नातक स्तर पर एक वर्ष पढ़ने पर सर्टिफिकेट ,दो वर्ष अध्ययन पर डिप्लोमा, तीन वर्ष अध्ययन पर डिग्री प्राप्त होना उदार शिक्षा का ही लक्षण है इसके अलावा विविध विषयों के चयन की स्वतन्त्रता, व्यावहारिक विषय से जुड़ने के अवसर प्रदान कर नई शिक्षा नीति 2020 ने  उदार शिक्षा प्रवृत्ति का ही परिचय दिया है।

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शिक्षा

बाधा ( Barrier )

February 21, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है

मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।

साथियों जीवन में उतार – चढ़ाव, ऊँच – नीच, उठना – गिरना, खुशी – ग़म, विश्वास – धोखा, दिन -रात, उजाला – अँधेरा आता ही रहता है इन समस्त सामयिक प्रक्रियाओं में परेशानियाँ, बाधाएँ हमें विचलित कर सकती हैं हमारा जीवट, हमारा आत्म बल ही हमें निजात दिला सकता है। हमें समय रहते बाधा निवारण के उपाय करने होते हैं अन्यथा हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं बचता।

यहाँ बाधा से मेरा अभिप्राय किसी भूत बाधा, प्रेत बाधा,तन्त्र बाधा आदि से नहीं है। मेरा बाधा से आशय कार्य की सफलता में बाधक व्यावहारिक तत्वों और मनोभावों से है।

हमें अपने आप में जूझने का माद्दा पैदा करना है किसी विद्वान् ने बहुत सही कहा कि –

हारा वही जो लड़ा नहीं।

ये परेशानियाँ, ये बाधाएं हमें सशक्त बनाती हैं जीवन के कैनवास में रंग भरती हैं रास भरती हैं  श्री राम नरेश त्रिपाठी जी ने तो मृत्यु का भी स्वागत करने की प्रेरणा दी है उन्होंने कहा –

निर्भय स्वागत करो मृत्यु का

मृत्यु एक है, विश्राम स्थल।

जीव जहाँ से फिर चलता है

धारण कर नव जीवन सम्बल।

हमारी परम्पराएँ, हमारी मान्यताएं, हमारे सशक्त पूर्वज सभी हमें बाधाओं से टकराने का निर्देश देते हैं। किसी से धोखा मिलने पर, किसी के छल से, कोई आपत्ति आने पर, अचानक विषम स्थिति पैदा होने पर, हमें अपना मानसिक संतुलन नहीं खोना चाहिए बल्कि और दृढ़ता युक्त होकर अन्य के लिए भी प्रेरणावाहक की भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। याद रखें पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की उन पंक्तियों को जिसमें उन्होंने हुंकार भरी –

बाधाएं आती हैं आएं,

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अँगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालायें,

निज हाथों से हँसते हँसते,        

आग लगा कर जलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।

वक्त साथ कदमताल करते हुए आइए चलते हैं उस पक्ष की ओर जहाँ लोग आपके हतोत्साह का कारण बनेंगे। वे आपको डराते हुए कहेंगे – कहना सरल है करना कठिन। वास्तव में ये वही लोग हैं जो न कुछ खुद कुछ कर सकते हैं और न ही किसी की प्रगति में मील का पत्थर बन सकते हैं इन गति अवरोधकों से बहुत सचेत रहने की जरूरत है। ये किसी भी कार्य के प्रति आपके मन में भय जगा सकते हैं और किसी भी रूप में आ सकते हैं यथा साथी, रिश्तेदार, सम्बन्धी, चिकित्सक, माता, पिता, गुरु या तथाकथित शुभ चिन्तक। कोई भी इस भूमिका को निर्वाहित कर सकता है। आपको अपने आपको आत्मविश्वास से युक्त कर यथार्थ के धरातल पर खड़ा करना है और व्यावहारिक विश्लेषण, संश्लेषण के आधार पर यथोचित निर्णय लेना है याद रखें –

रास्ता किस जगह नहीं होता

सिर्फ हमको पता नहीं होता

छोड़ दें डर कर रास्ता ही हम

ये कोई रास्ता नहीं होता।

इसीलिये शान्त चित्त रहकर हमें स्वयम मार्ग तलाश करना चाहिए। लोग क्या कहेंगे इसकी कत्तई चिन्ता नहीं करनी चाहिए और उन लोगों की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए  कोरे भाग्यवादी होते हैं और कहते फिरते हैं जो भाग्य में लिखा है वही होगा। हमें अपना भाग्य खुद ही गढ़ना है। हम आज जो हैं अपने पूर्व विचार और कर्मों की वजह से हैं। भाग्य पर भरोसे की जगह सम्यक रणनीति बनाकर क्रियान्वयन करें। अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ जी ने कितना सुन्दर भाव अभिव्यक्त किये हैं –

देख कर बाधा विविध, बहुविघ्न घबराते नहीं।

रह भरोसे भाग्य के, दुःख भोग पछताते नहीं।

काम कितना भी कठिन हो किन्तु उकताते नहीं।

भीड़ में चञ्चल बने, जो वीर दिखलाते नहीं।

हो गए एक आन में, उनके बुरे दिन भी भले।

सब जगह सब काल में, वे ही मिले फूले फले।

एक बार हाँ सिर्फ एक बार दृढ़ सङ्कल्प लें, निर्विकल्प होकर सङ्कल्प लें। दृढ़ होकर अपने सपने पूरे करने के लिए चलें। सफलता आपके कदम चूमेगी। अरे हमारा सौभाग्य है हम उस देश में जन्मे हैं जिसमें शरीर के मरने की बात होती है आत्मा की नहीं। भगवान् कृष्ण ने स्वयम् अपने मुख़ार बिन्दु से कहा।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः

न चैनं क्लेदयन्त्यपो न शोषयति मारुतः ॥ 2.23॥

आइए अब आपको उस ओर ले चलता हूँ जहाँ आपके बहुत सारे प्रश्न, उत्तर पा सकते हैं समाधान प्राप्त कर सकते हैं। आखिर आज का सामान्य मानव चाहता क्या है ? धन, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक उन्नति, अच्छे पैसे वाली नौकरी, आजीवन आर्थिक सुरक्षा।  कुछ मानव आध्यात्मिक प्रगति, शोध, अच्छा स्वास्थ्य आदि की भी कामना करते होंगे।

उक्त की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा क्या है ? अगर हम आत्म मंथन करेंगे तो पाएंगे कि सबसे बड़ी बाधा हम स्वयं हैं हम आलस्य, प्रमाद से युक्त हैं हमारे कार्यों में निरन्तरता नहीं है  अपने उद्देश्य की प्राप्ति का जुनून हम अपने आप में जगा नहीं पाए हैं। आधे अधूरे मन से किये गए प्रयास मंजिल तक नहीं पहुँचते यह हम सब जानते हैं फिर भी अपनी असफलता का ठीकरा दूसरे के पर फोड़ने की  आदत बन गयी है। कभी कभी अपनी मेहनत के फल की सहज चोरी देखते हुए भी हम जाग्रत नहीं होते। जिस दिन इन विकारों को हम अपने से दूर कर पाएंगे इस दुनियाँ के विविध आकांक्षित फल हमारे पहलू में होंगे। सफलता, अच्छा स्वास्थ्य, ऊँची प्रतिष्ठा, अच्छा पद, मान सम्मान  इन सबके पीछे  कड़ी मेहनत छिपी है याद रखें सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता।

यदि आप सचमुच सफल होना चाहते हैं तो अपने आप से उक्त प्रश्न करें, समाधान आपके संयत मन में छिपा है। सही दिशा में अनवरत प्रयास  सफलता की कुञ्जी है। बाधा निवारण का उपाय है।

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शिक्षा

TEACHER AS AN AGENT OF CHANGE AND LIFE SKILLS TRAINER.

July 2, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


परिवर्तन के एजेंट और जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक

जीवन की यात्रा शैशव से शुरू होकर बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के पायदान पर पैर रखते हुए बढ़ती है लेकिन जीवन पर्यन्त माँ – बाप के अतिरिक्त एक और जो हमारी खुशी में आनन्दित होने वाला व्यक्तित्व होता है वह जिसे दुनियाँ शिक्षक के रूप में जानती है। शिक्षक यूँ तो बहुत सी भूमिकाओं का निर्वहन करता है लेकिन यहाँ शीर्षक के अनुरूप हम उसके दो रूपों की चर्चा करेंगे।

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of teacher as an agent of change –

परिवर्तन के एजेंट के रूप में परिवर्तन का प्रमुख अभिकर्त्ता शिक्षक इस लिए है क्योंकि मान बाप जिन गुणों को अपने बच्चे में अधूरा छोड़ देते हैं उसकी पूर्णता का गुरुत्तर दायित्व शिक्षक द्वारा निर्वाहित होता है। टूटे फूटे अक्षरों से धारा प्रवाहित सम्प्रेषण के साथ बालक विश्लेषण और संश्लेषण की शक्ति से युक्त होता है। जीवन पर्यन्त विविध परिवर्तनों के मूल में कहीं नींव  ईंट के मानिन्द शिक्षक को नकारा नहीं जा सकता। इसीलिये अरस्तु(Aristotle ) ने कहा –

“जन्म देने वालों से अच्छी शिक्षा देने वालों को अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए; क्योंकि उन्होंने तो बस जन्म दिया है ,पर उन्होंने जीना सिखाया है।”

“Those who give good education should be given more respect than those who give birth; Because they have just given birth, but they have taught how to live.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of Teacher as Life Skills Trainer-

जीवन में बहुत कुछ अधिगमित किया जाता है और व्यवहार में परिवर्तन, आदत का बनना, कार्य कुशलता की वृद्धि परिणाम होता है प्रशिक्षण का। इस प्रशिक्षण क्रिया  को सम्पन्न करने का गुरुत्तर दायित्व है गुरुवर का। यहॉं जीवन कौशल प्रशिक्षक आशय जीवन काल में उपयोगी कौशलों के प्रशिक्षण प्रदाता से है . स्कूल, समाज और जेण्डर सुग्राह्यता में यह प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है। इसीलिये श्रद्धेय  अब्दुल कलाम (Abdul Kalam) जी ने कहा –

 “If a country is to be corruption free and become a nation of beautiful minds, I strongly feel there are three key societal members who can make a difference. They are the father, the mother and the teacher.”

“अगर किसी देश को भ्रष्टाचार – मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, मेरा दृढ़तापूर्वक  मानना  है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं. पिता, माता और गुरु.”

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक / Teachers as an Agent of Change –

शिक्षक मार्ग दर्शक, परामर्श दाता, नेतृत्व कर्त्ता और सुविधा प्रदाता के रूप में तो परिवर्तन का वाहक बनता ही है इसके अलावा भी निम्न कारक उसे परिवर्तन के अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करते हैं। –

1 – भाषा बोध / Language Comprehension

2 – अधिगम स्तर समायोजन / Learning Level Adjustment

3 – व्यवहार परिवर्तन / Behavior Change

4 – समय के साथ ताल मेल / Rhythm matching with time

5 – लिंग भेद के प्रति सम्यक दृष्टिकोण विकास / Development of proper attitude towards gender discrimination

6 – सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास / Development of positive attitude

7 – समस्या समाधान योग्यता / Problem solving ability

8 – व्यक्तित्व परिवर्तक / Personality changer

9 – मानसिक, बौद्धिक उत्थान / Mental, Intellectual development

10 – सर्वांगीण विकास / All round development

11 – प्रेरणा प्रदाता / Inspiration provider

विलियम आर्थर वार्ड (William Arthur Ward) ने कितने सुन्दर ढंग से समझाया

‘’The mediocre teacher tells. The good teacher explains. The superior teacher demonstrates. The great teacher inspires.”

‘‘एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है. एक अच्छा शिक्षक समझाता है. एक बेहतर शिक्षक कर के दिखाता है.एक महान शिक्षक प्रेरित करता है.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक / Teacher as Life Skills Trainer –

जीवन में उत्तरोत्तर विकास के सोपानों से अपने विद्यार्थी को जोड़ने हेतु शिक्षक विविध कौशलों में पारंगत कर स्थिति से समायोजन करना चाहता है। कुछ कौशलों को इस प्रकार क्रम दया जा सकता है –

01 – व्यावसायिक दक्षता कौशल / Professional competence skills

02 – सृजनात्मक कौशल / Creative skill

03 – जागरूकता कौशल / Awareness skill

04 – प्रभावी सम्प्रेषण कौशल / Effective communication skill

05 – समस्या समाधान कौशल / Problem solving skill

06 – निर्णयन कौशल / Decision making skills

07 – संवेग नियन्त्रण कौशल / Emotion control skills

08 – तनाव नियन्त्रण कौशल / Stress management skills

09 – समायोजन कौशल / Adjustment skills

10 – परानुभूति कौशल /Empathic skill

इनके अतिरिक्त विविध कौशलों की आवश्यकता समय सापेक्ष होती है अध्यापक चेतना से युक्त प्राणी है और आवश्यकतानुसार निर्णय लेने में सक्षम है।

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शिक्षा

ADVANCEMENT OF KNOWLEDGE AND SEA CHANGES IN DISCIPLINARY AREAS.

June 30, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


ज्ञान की उन्नति और विषयात्मक परिक्षेत्र में विस्तृत परिवर्तन

ज्ञान की उन्नति से आशय / Advancement of Knowledge

भारतीय ज्ञानकाश में ज्ञान से प्रदीप्त विद्वानों की एक विस्तृत श्रृंखला है। निरन्तर बदलते काल खण्डों ने वैश्विक परिक्षेत्र को बहुत से ज्ञानियों के आलोक से प्रदीप्त किया है ज्ञान एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया अपने साथ विविध सकारात्मक परिवर्तन करती चलती है जो ज्ञान की उन्नति का पथ प्रशस्त करते हैं यद्यपि ज्ञान प्राप्ति का पथ दुरूह व कण्टकाकीर्ण होता है पर इसपर चलने वाले विज्ञजन लगातार होते आये हैं। इस प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में होने वाली, मानव उत्थान में सहयोगी क्रियात्मक तलाश ही ज्ञान की उन्नति को परिलक्षित करती है।

            ज्ञान की उन्नति की यह बयार अपने साथ परिवर्तनों की आँधी लेकर चलती है जो विविध विषयात्मक परिक्षेत्र में होते हैं।

DISCIPLINARY AREAS / विषयात्मक परिक्षेत्र –

जब ऋषियों, मनीषियों, वैज्ञानिकों, ज्ञानियों की ज्ञान पिपासा नित नए परिक्षेत्र तलाशती है तो विविध क्षेत्र ज्ञान आप्लावित हो जाते हैं और उनमे व्यापक परिवर्तन होते हैं यहां जिस डिसिप्लिनरी एरिया की बात की जा रही है वह मुख्यतः बी०एड ० पाठ्यक्रम से सम्बन्धित हैं उन  DISCIPLINARY AREAS / विषयात्मक परिक्षेत्र को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है  –

(i) – सामाजिक विज्ञान / Social Science

(ii) – विज्ञान / Science

(iii) – गणित / Mathematic

(iv) – भाषाएँ / Languages

ज्ञान की उन्नति के प्रभाव / Effects of the Advancement of Knowledge –

Or  ज्ञान की उन्नति से विस्तृत परिवर्तन / Sea change due to advancement of knowledge

जिस तरह से सूर्य की धूप मुठ्ठी में बन्द नहीं की जा सकती, पुष्प की खुशबू विस्तार पाती ही है उसी प्रकार ज्ञान की उन्नति का प्रभाव समग्र क्षेत्रों पर पड़ता है निश्चित रूप से बी ० एड ० पाठ्यक्रम में प्रदत्त विषयात्मक परिक्षेत्र पर भी उनका प्रभाव परिलक्षित होता है यहां सुविधा की दृष्टि से एक -एक का अध्ययन करेंगे –

1 – सामाजिक विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव / Impact of the Advancement of Knowledge on the Social Sciences

A -विविध विषयों का अद्वित्तीय संयोजन / Unique Combination of Various Subjects
B – मानवीय सम्बन्धों के अध्ययन में अमूल्य योगदान / Invaluable contribution to the study of human relations

C – समृद्ध सामाजिक जीवन का आधार / Base of a prosperous social life

D – स्वस्थ सामाजिक परिवेश / Healthy social environment

E - प्राचीन और अद्यतन का अद्भुत समावेश / wonderful mix of ancient and modern
F - भावी जीवन की तैय्यारी/ Preparation for future life

G – जागरूकता विकास समस्या समाधान में सहायक/Awareness Development Helpful in Problem Solving

H – सत्य व ज्ञान की खोज की प्रेरक / Motivator of search for truth and knowledge

2 – विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव / Impact of the Advancement of Knowledge on the Science

आज का युग विज्ञान का युग है और विज्ञान के आधार पर भौतिक युग में हम अपने को यथार्थ के अधिक निकट पाते हैं ज्ञान के प्रस्फुटन से विज्ञान को भी दिशा मिली और इसने मानव की जिंदगी आसान करने में अहम् भूमिका अभिनीत की। कुछ परिवर्तन के क्षेत्र इस प्रकार हैं –

01 – स्वास्थ्य व चिकित्सा / Health and Medicine

02 – कृषि / Agriculture

03 – उद्योग / Industry

04 - सञ्चार / Communication

05 – परिवहन / Transport

06 – मनोरञ्जन/ Entertainment

07 – खाद्यान्न उत्पादन व संरक्षण / Food production and preservation

08 – अन्तरिक्ष / Space

09 – युद्ध / War

10 - घरेलू साधन / Household appliances
      उक्त के अतिरिक्त भी बहुत से परिक्षेत्र गिनाये जा सकते हैं उनमें मुख्य है मूल्य सम्वर्धन - बौद्धिक मूल्य (Intellectual Values), नैतिक मूल्य (Moral Values), व्यावहारिक मूल्य (Practical Values), मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological Values), साँस्कृतिक मूल्य (Cultural Values), सौन्दर्यात्मक मूल्य (Aesthetic value),, व्यावसायिक मूल्य  (commercial value) आदि।
 

गणित के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes due to advancement of knowledge in the field of mathematics –

दुनियाँ में ज्ञान का सागर हिलोरें मार रहा है बहुत सा ज्ञान कल्पना से यथार्थ की और चलता है तो बहुत सा यथार्थ की मज़बूत नीव पर समस्या समाधान की योग्यता रखता है गणितीय आधार ऐसा ही है जिसमें एक सिद्धान्त एक दिशा का बारम्बार सत्य यथार्थ बोध कराता है। ज्ञान की उन्नति ने इसे नीरसता से सरस यथार्थ की और अग्रसारित किया है कुछ परिवर्तन इस प्रकार हैं –

0 1 – बौद्धिक मूल्य/ Intellectual Value

0 2 - नैतिक मूल्य / Moral Values

 0 3 – सामाजिक मूल्य / Social Value

0 4 – प्रयोगात्मक मूल्य / Experimental value

0 5 – अनुशासनात्मक मूल्य / Disciplinary Values

0 6 – सांस्कृतिक मूल्य / Cultural Values

0 7 – जीविको पार्जन मूल्य/ Livelihood Earning Value

0 8 – मनोवैज्ञानिक मूल्य/ Psychological Value

0 9 – कलात्मक मूल्य/ Artistic value

1 0 – अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य/ International value

   वास्तव में मानव मानस को सत्य का महत्त्वपूर्ण बोध गणित ने कराया और दिशा दी इसीलिये प्लेटो महोदय को कहना पड़ा –

 “Mathematics is a subject which provides opportunities for training the mental powers.”

”गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने के अवसर प्रदान करता है।”

भाषा के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes brought about by the advancement of knowledge in the field of language –

भाषा ही वह माध्यम है जिसने दूरियों को मिटा निकटता स्थापित करने का काम किया है ज्ञान की प्रगति ने हमें विविध भाषाओं को समझने में मदद की है और सभी क्षेत्रों में उच्च प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं परिवर्तनों को इस प्रकार इंगित किया जा सकता है –

1- ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन / Main source of knowledge

2 – राष्ट्रीय एकता की दिशाबोधक /Guide of National Integration

3 – विचार विनियम में सरलता / Ease of exchange of thoughts

4 – व्यक्तित्व निर्माणक/ Personality builder

5 – अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को बढ़ावा /Promotion of international relations

6 – सामाजिक जीवन का प्रगति आधार / Progress Basis of Social Life

7 – चिन्तन, मनन का आधार / Thinking, the basis of meditation

8 – प्रगति का आधार /The basis of progress

9 – कला,सभ्यता,संस्कृति,साहित्य का आधार /The basis of art, civilization, culture, literature    

अब तक का प्रस्तुतीकरण यह भी बोध कराता है कि और भी बहुत सारे परिवर्तन इसमें शामिल होने से रह गए हैं छोटे से काल खंड में विवेचना दुष्कर है जैसे शोध परिक्षेत्र  क्रान्ति इसी ज्ञान प्रस्फुटन का परिणाम है अन्यथा यह तीव्रता संभव ही नहीं थी। ज्ञान की उन्नति मानव को सर्वोत्कृष्ट प्रदान करने में सभी परिक्षेत्रों में मदद करेगी और सभी क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन निरंतर होते रहेंगे।

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