पर्यावरण में दो शब्द निहित हैं परि +आवरण अर्थात जो हमें हर ओर से ढके हो। इसमें किसी प्रकार का असन्तुलन ही प्रदूषण का परिचायक है जहाँ वस्तुएं ,जल ,वायु ,आकाश हमें प्रभावित करता है वहीं विचार भी पथ भ्रष्ट हो नैतिक प्रदूषण का कारक बनाते हैं। कोई विचार या वाद किस तरह से प्रदूषण का कारक बन सकता है यह इस लेख में स्पष्ट नजर आता है :-