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वाह जिन्दगी !

बुढ़ापा दूर रखने के 8 अचूक उपाय

May 28, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बचपन, जवानी, बुढ़ापे का एक क्रम है और ये इस क्रम में ही आता है लेकिन हमारी जीवन शैली बुढ़ापे को शीघ्र निमंत्रण दे हमें निष्क्रिय कर रही है जबकि थोड़ा सा सचेत रहकर न हम बुढ़ापे को पीछे धकेल सकते हैं बल्कि बुढ़ापे में भी जवानों जैसे सक्रिय रह सकते हैं। आइये इसके कारण,निवारण पर विचार करते हैं।

1 – जल का सेवन –

जल का यथोचित सेवन होना चाहिए कुछ लोग कम सेवन करते हैं और इसके नुकसान शीघ्र परिलक्षित होने लगते हैं जो कब्ज,किडनी समस्या,ऊर्जा स्तर में कमी ,त्वचा का रुखापन,सिर दर्द आदि के रूप में सामने आता है। जब की अधिक जल का सेवन किडनी का कार्य भार बढ़ा देता है वात, पित्त, कफ के असन्तुलन का भी यह प्रमुख कारण है अधिक पानी के नुकसान बुढ़ापे को करीब लाने में मदद करते हैं।

अतः ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ को ध्यान में रखकर शरीर की मांग के अनुरूप पानी पीना चाहिए। जल घूँट घूँट कर बैठकर ही पीना चाहिए उकड़ूँ बैठकर पीएं तो सबसे अच्छा। फ्रिज के अधिक ठन्डे पानी से बचें। सदा सामान्य ताप युक्त जल का सेवन करें। पानी की स्वच्छता का ध्यान रखा जाए। कहीं का भी पानी न पीने लगें अच्छा होगा अपने साथ स्वच्छ जल रखें। दिन के पूर्वार्ध में अधिक और उत्तरार्ध में अपेक्षाकृत कम जल का सेवन करें।

2 – निद्रा –

संयमित निद्रा शरीर को व्यवस्थित रखने का एक उपक्रम है। आज लोगों को सोने का कार्यक्रम दुष्प्रभावित हुआ है कुछ लोग रात्रि में जागरण करते हैं और दिन में सोते हैं या देर तक सोते रहते हैं। कुछ दिन और रात दोनों में सोने की आदत विकसित कर लेते हैं रात्रि जागरण सम्पूर्ण दिनचर्या बिगाड़ बुढ़ापे को जल्दी बुलाने में मदद करता है,शरीर हर समय थका थका महसूस करता है।

हमारा शरीर रात्रि विश्राम व सूर्योदय के साथ जागृत रहकर कार्य करने में सुगमता महसूस करता है,जल्दी सोना और जल्दी जागना कई रोगों का उपचार है। इसीलिये सुबह को अमृत बेला गया है। त्वचा की चमक या आज वृद्धि का इससे सीधा सम्बन्ध है।

3 – गरिष्ठ भोजन व अधिक नमक –

गरिष्ठ  व अधिक नमक वाला भोजन सीधा झुर्रियों को निमन्त्रण पत्र है,नमक की अधिक मात्रा कोशिकाओं को शीघ्र बूढ़ा करती है जबकि नमक का कम सेवन कोशिकाओं की आयु में वृद्धि करता है। गरिष्ठ भोजन स्वाद में आपको अच्छा लग सकता है पर है वो धीमा जहर ही।एक तो गरिष्ठ और दूसरे काम चबाने से दाँतों का काम भी आँतों को करना पड़ता है जो कब्ज, अम्लता,उदर रोग, मोटापा, अजीर्ण को खुला आमन्त्रण देता है। आजकल जंकफूड और फास्ट फ़ूड ने सेहत का बेड़ा गर्क कर रखा है।शरीर को युवा और दीर्घकालिक क्रियाशील रखने के लिए सहज सुपाच्य व ताजा भोजन खूब चबा चबाकर करना चाहिए।

4 – व्यायाम –

व्यायाम,  प्राणायाम, योगासन, खेलकूद, दंगल, दौड़ आदि वह साधन हैं जिससे शरीर मानसिक रूप से अधिक युवा रहने हेतु तैयार होता है। ब्रह्म मुहूर्त की जादुई हवा तनमन को स्फूर्तिवान रखती है। और इनका अभाव हमें बुढ़ापे की और तेजी से बढ़ाता है।

5 – प्रवाह अवरुद्धन –

हमें मल, मूत्र के आवेग को बल पूर्वक नहीं रोकना चाहिए। शरीर पर अनावश्यक दवाब रखना उचित नहीं। छींक आदि के समय सामान्य ही रहना चाहिए।प्राकृतिक आवेग को रोकने से किडनी व आँतों पर अनावश्यक दवाब पड़ता है। और सम्पूर्ण शरीर इस व्याधि के नुक्सान झेलता है।

6 – नशा –

 सबको पता है होश में रहना परमावश्यक है लेकिन होश खोने वालों की कतार भी छोटी नहीं है। पता नहीं क्यों लोग नशा करते हैं व  अपनी जिन्दगी को छोटा और रोग ग्रस्त कर लेते हैं और जवानी में बुढ़ापे का शिकार हो जाते हैं। हमारा सारा चयापचय बिगड़ जाता है। प्रतिरक्षा तन्त्र ध्वस्त हो जाता है अपने साथ परिवार को गर्त में जाता देख नशेड़ी अवसादग्रस्त हो जाता है मस्तिष्क सोचने समझने की शक्ति खो तेजी से बुढ़ापे की और अग्रसर होता है।

प्रारम्भ से ही सचेत रहें, किसी के नशा करने के आमन्त्रण को सिरे से ठुकरा दें नहीं तो वही बात हो जाएगी मौत आई तो नहीं पर घर तो देख गयी। चिन्ता,परेशानी, समस्या प्रत्येक के जीवन में आती है सम्यक विमर्श करें स्वास्थ्य वर्धक चीजों का सेवन करें। सत्सङ्ग करें कुसंग से बचें। नशा किसी भी रूप में शरीर में प्रवेश न करे हमारा शरीर खुद इसको व्यवस्थित रखने का प्रयास करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय में कितना सुन्दर मार्ग सुझाया है – 

युक्ताहार-विहारस्य युक्त-चेष्टस्य कर्मसु

युक्त-स्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःख-हा ॥ १७ ॥

7 – प्रदूषण –

जल, वायु, ध्वनि के अलावा तमाम अन्य प्रदूषण मानव के जीवन को शीघ्र बुढ़ापे की और खींच कर ख़तम कर रहे हैं जबकि इन पर अंकुश लगाना,परिशोधन करना हमें आता है। मास्क का प्रयोग कोरोना ने हमें सीखा दिया जो दोपहिया वाहन चलाते हुए हेलमेट जितना ही आवश्यक है। प्रदूषण से बचने के यथा शक्ति प्रयास हमें दीर्घकालिक युवा रख सकता है निर्मल जल, वायु, आकाश अपरिहार्य है किसी ने  सचेत किया  –

हमीं गर्क करते हैं जब अपना बेडा तो बतलाओ फिर नाखुदा क्या करेंगे

जिन्हें दर्दे दिल से ही फुर्सत नहीं है फिर वो दर्दे वतन की दवा के करेंगे।

सचेत रहें,हर संभव बचाव का प्रयास करें।

08 – बुढ़ापा दिमाग की खिड़की से आता है। –

मानव मन अद्भुत है और सर्वाधिक सशक्त हैं विचार ,पहले हमारे मन में किसी भी वस्तु,क्रिया,सिद्धान्त को वरण करने का विचार आता है तत्पश्चात हमारी चेष्ठा उसे हमसे सम्बद्ध कर देती है यहाँ तककि हमारे शरीर पर हमारी सोच का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है यदि हम सकारात्मक सोच के हामी हैं तो व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। हम अलग लोगों को अलग अलग मिजाज का देखते हैं यह स्वभाव मानव मन की तरंग दिशा से ही निर्धारित होता है कुछ लोगों को युवावस्था में बुढ़ापे का और कुछ वयो वृद्धों को वृद्ध होने पर भी युवावस्था का आनन्द लेते देखा जा सकता है।

गलत चिन्तन, कामुक चिन्तन, नकारात्मक चिन्तन वह कारक है जो हमें अन्दर से खोखला कर कहीं का नहीं छोड़ता। हम वीर्य,ओज, तेज, स्फूर्ति खो बुढ़ापे के दुष्चक्र में फँस जाते हैं। सकारात्मक सोचें जिन्दादिली को व्यक्तित्व का हिस्सा बनाएं। याद रखें –

‘जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।’     

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वाह जिन्दगी !

अपनी कमजोरी को ताक़त में बदलें।Convert your weakness into strength.

May 9, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

साथियो, हम सब मानव हैं और मानवीय गुणों व मानवीय कमजोरियों से युक्त रहते हैं हमारा अपना मस्तिष्क हमारी सोच ,हमारे विचारों का उद्गम स्थल है जो बहुत सारी बाहरी शक्तियों से प्रभावित होता है और इसी क्रम में हमारा परिचय अपनी कमजोरियों से होता है  जो हमारी प्रगति यात्रा का सबसे बड़ा अवरोधक है आज की प्रस्तुति का मंतव्य ही यह है कि हम अपनी कमजोरियों को ताक़त में कैसे बदलें ?

कमजोरी है क्या ?-

What is weakness?

यह हमारी विचार प्रक्रिया का वह उत्पादन है जो हमारे मस्तिष्क ने हमें दिया है। मस्तिष्क जब किसी कार्य, विचार या कटु अनुभव के आधार पर पलायनवादी दृष्टिकोण अपनाने को विवश करता है वही हमारा कमजोर

बिन्दु है और हमारे व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दुश्मन। कोई भी कमजोरी तब तक कमजोरी है जब तक उसके सशक्तीकरण के प्रयास न किये जाएँ।

एक कमजोर रस्सी कुछ और रेशों के सहयोग से मजबूत हो सकती है इसी तरह कमजोरी सशक्त विचारों से दृढ़ इच्छा शक्ति का रूप धारणकर सबसे सशक्त पहलू का रूप धारण कर सकता है आपने देखा होगा  भौंरा विज्ञान के नियमों को धता बता अपने कमजोर पँखों से बखूबी उड़ता है।

कमजोरी को ताक़त में बदलने के आठ उपाय

Eight steps to turn weakness into strength –

इससे पहले की उन आठ अद्भुत उपायों से आपका परिचय कराऊँ। उनके सुदृढ़ीकरण हेतु मजबूत आधार बनाना आवश्यक होगा। इसीक्रम में आप सभी दिव्य चेतन आत्माओं से यह कहना प्रासंगिक होगा। कि जो कुछ हमारे अवचेतन मन से जुड़ जाता है वह फलीभूत होता है इसीलिए यह तथ्य कि ‘मैं अपनी कमजोरी को ताक़त में बदल सकता हूँ’ गहनता से दोहराएं और इसे चेतना की गहराई तक समाने दें।

यह कमजोरी वास्तव में एक चुनौती पूर्ण अवसर है जिसे पहचानने का अवसर हमें मिला है और इसी लिए कमजोरी का ताक़त में बदलना निश्चित है इसे अवश्यम्भावी बनाने वाले आठ कदम इस प्रकार हैं –

1 – कमजोरी का क्षेत्र पहचानें। (Recognize the region of weakness)

2 – सकारात्मक सोच। (Positive Approach)-

3 – डर का मुकाबला करें। (Face your fears)

4 – सभी विमाओं का गहन चिन्तन (Deep thinking about all dimensions)

5 – सकारात्मक व्यक्तित्वों का साथ (Associate with positive personalities)

6 – एक एक कर कमजोरी का निवारण करें। (Tackle a weakness at a time)

7 – विश्वास सुदृढ़ीकरण (Strengthening belief system)-

8 – स्व व्यक्तित्वानुसार सशक्तीकरण (Empowerment through self personalities)

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वाह जिन्दगी !

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।

May 8, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जोश दमखम के स्वामी थे हम, बताना चाहिए

बच्चे क्या करें, न पूछें फिर भी, बताना चाहिए,

गुमराह न हों, सत्य से वाकिफ कराना चाहिए।

सफेदी यूँही नहीं आई है, ये भी जताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।1।

देश की सीमाएं बदलीं कैसे ये सुनाना चाहिए।

पुनः गलती न हो कहीं राह तो दिखाना चाहिए,

कहाँ, क्या चूक हुई खुल करके जताना चाहिए,

उम्र कुछ नहीं संख्या है यह भी बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।2।

जवानी के दिशा बोधक किस्से सुनाना चाहिए,

जो गलत है गलत है बुरी शै से बचाना चाहिए,

नशा छोड़कर,आदर्श का पाठ पढ़ाना चाहिए,

गन्दा साहित्य नाश करेगा, भेद बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।3।

मूल्य अवरोहण न हो, सत्पथ दिखाना चाहिए,

ग़मों से जूझते कैसे, वह रास्ता बताना चाहिए,

कुछ मानें न मानें मगर, साम्य बैठाना चाहिए,

मगरूर न हों वे, सेहत के राज बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।।

जितना सम्भव हो, समय दर्पण दिखाना चाहिए,

मर्यादा सीमा रेखाएं, बे झिझक बताना चाहिए,

अस्तित्वबोध जरूरी है, दॉँवपेच सिखाना चाहिए,

गुर आत्मरक्षार्थ सभी, बेटियों को बताना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।।

ठोकरों से बचें कैसे अनुभव से सिखाना चाहिए,

कार्यनिर्वहन कहकर नहीं करके दिखाना चाहिए,

निज समस्या छोड़, देशहित पाठ पढ़ाना चाहिए,

‘नाथ’ यथा समय विश्वबन्धुत्व राग सुनाना चाहिए।

सचमुच बुजुर्गों को युवा दिवस मनाना चाहिए।।

मुक्तक 

शरीर में लहू लावे की तरह बहता है

इसका वही अन्दाज़ दिखाना चाहिए

सौंप रहे हैं, विरासत जिस पीढ़ी को

संरक्षण संवर्द्धन पाठ पढ़ाना चाहिए। 

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वाह जिन्दगी !

हम भुला न पाते हैं।

April 2, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।।

यहाँ इस शहर में बहुत मॉल नज़र आते हैं

कृत्रिमता युक्त चेहरे सौम्य न लग पाते हैं,

खो गयीं निमकौरियाँ पावन सी अमराइयाँ

पसीने से सरोबार कई चेहरे याद आते हैं। 

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।1।

खेत की पगडण्डियाँ फिर हमें बुलाते हैं

नंगे पैर चलने की अनुभूतियाँ जगाते  हैं

वर्षा की रिमझिम व मिट्टी की सुगन्धियाँ

आज भी हम को मौन रह कर बुलाते हैं।  

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।2

वो पुराने मञ्जर सुख -दुःख याद दिलाते हैं ,

भूलने की कोशिश की पर भुला न पाते हैं,

वो मेले, वो प्यारे दंगल और वो कबड्डियाँ

आज भी जेहन को खुशनुमा पल लौटाते हैं।  

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।3।

अब ना किसी मैदान में हम पतँग उड़ाते हैं

गुल्ली डण्डा, आइस पाइस कल की बातें हैं

खो गया सब कुछ वो चौपाल की कहानियाँ

टॉकीज में बैठ भी वो सब दिन याद आते हैं     

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।4।

वो रैले, वो झमेले, वो तबेले याद आते हैं

वो सरसों के पीत पुष्प क्यों हमें बुलाते हैं

नहीं भूल पाते चूल्हे चक्की वाली रोटियाँ

ओवन, ए० सी०, फ्रिज कत्तई न भाते हैं।   

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।5।

धीरे – धीरे हम सब यूँ ही बड़े हुए जाते हैं,

वो डालें, वो झूले, नहीं अब हमें बुलाते हैं

वो बरगद, पीपल, शीशम की परछाइयाँ

वो वृक्ष अपने साथी थे बहुत याद आते हैं।    

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।6।

वो लोरियाँ वो सावन गीत झुरझुरी जगाते हैं,

निःस्वार्थ उपजे अनमोल रिश्ते याद आते हैं,

किसी घर में घुस खाई हुई प्यारी चपातियाँ

उस ममता समता से अब अलग हुए जाते हैं।

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।7।

गेंदतड़ी चोरसिपाही सब खेल याद आते हैं,

बगिया में लबासादिया हम भुला न पाते हैं

वो नहर में तैरना और भोली सी बदमाशियाँ

खो गए वो सारे दिन अब साये नज़र आते हैं 

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।8।

बचपन मोबाइल में व्यस्त अब हम पाते हैं,

दौड़ धूप के खेल मोबाइल में खेल पाते है,

बहुत कुछ छूटता इनसे आती हैं बीमारियाँ,

पसीने की कहानियाँ ए ० सी ० में सुनाते हैं।     

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।9।

आज भी कुछ फूल पत्ते किताबों में पाते हैं

ये सब किस्से, यादों की बारात ले आते हैं,

आज भी याद हैं कुछ दीवाने व दीवानियाँ,

पत्नी के गुस्से के कारण हम बाँट न पाते हैं।        

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।10।

बचपन की किताबों की यूँ बहुत सी बातें हैं

वो सारी यादगार आज भी बाँट नहीं पाते हैं

बुजुर्ग सुनाते थे निज बचपन की कहानियाँ

हम नहीं कह पाते, अन्तर दिल जलाते हैं।          

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।11।

आजकल बिन बात के भी हम मुस्कुराते हैं,

बचपन के ठहाके मगर बहुत याद आते हैं,

वो कञ्चे, रस भरी वो सब्जी वाले, वालियाँ

जिन्हें हम भूलना चाहें वो जमकर याद आते हैं।          

छुटपन वाले दर और दीवार नज़र आते हैं

बचपन की कई घटना हम भुला न पाते हैं।12।

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वाह जिन्दगी !

सच्चाई की राह

March 30, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जब मेरा जन्म हुआ तब तक मेरा परिवार निर्धनता की श्रेणी में आ चुका था पिताजी उस समय एक शुगर फैक्ट्री में फिटर की हैसियत से कार्य  रहे थे मेरे पढ़ने के लिए वहाँ 12वीं तक विद्यालय था जिसे पूरा कर आगे पढ़ाना हालाँकि चार बच्चों वाले परिवार में विलासिता जैसा था लेकिन मेरे माता पिता ने जीवटता का परिचय दे आगे पढ़ाने का निश्चय किया। अपने स्नातक अध्ययन के दौरान कुछ धनार्जन कर परिवार का सहयोग करने की इच्छा बलवती हुई। तमाम प्रयास के बाद कोई आय का निश्चित साधन नहीं बन पा रहा था।

            एक दिन मैं अत्याधिक चिन्ता से व्यथित फैक्ट्री कालोनी में अपने दरवाजे पर मूढ़ा डाले बैठा था अचानक मुझे अपने एक परिचित का ध्यान आया जो गलत तरीके से चोरी, डकैती व ठगी के माध्यम से पैसे कमा रहा था और हमेशा उसकी जेब रुपयों से भरी रहती थी मैं उसके साथ काम करने के लिए उससे बात करने की सोचने लगा तभी मेरे से एक घर पहले रहने वाले मेरे इण्टर मीडिएट वाले प्रधानाचार्य जी आ गए उन्होंने मुझे चिन्तामग्न देखकर अपने पास बुलाया और परेशानी का कारण जानना चाहा मैंने सच सच जो मेरे मन में आ रहा था सब बता दिया। उन्होंने मुझे अपनी बैठक में बैठने का आदेश दिया।

            मैं स्वचलित यन्त्र सा उनके समक्ष बैठा था उन्होंने धीमी प्रभावशाली आवाज में मुझसे कहा कि तुम्हारे भविष्य की बहुत सकारात्मक सम्भावनाएं मुझे दीख पड़ती हैं मैंने तुममें एक अच्छे वक्ता और कवि के लक्षण देखे हैं मेर विद्यालय में तुम 7 वर्ष पढ़े हो,जहां तक मैं समझता हूँ तुम एक मेधावी छात्र हो और जिन लोगों के बच्चों को तुम आजकल पढ़ा रहे हो वो सब तुम्हारी तारीफ़ करते हैं क्या तुम किसी दूसरे का धन छीन सकोगे किसी अन्य को दुखी करके  खुद सुख प्राप्त कर सकोगे किसी अन्य की मेहनत की रोटी छीनकर स्वयम् खा सकोगे।

            मैं अवाक रह गया किंकर्त्तवय विमूढ़ता की स्थिति में मैंने सुना वे मुझसे पूछ रहे थे यदि तुम्हें कहीं जाने के लिए टिकट खरीदना हो और दो जगह से टिकट मिल रहे हों एक जगह  लगभग तीन सौ  लोग लाइन में हों और दूसरी जगह तीन तो किससे टिकट लेना पसन्द करोगे। मैंने शान्तिपूर्वक उत्तर दिया जहाँ तीन लोग खड़े हैं उन्होंने तुरन्त पुछा, क्यों ? मैंने कहा वहाँ जल्दी नम्बर आएगा और दूसरी जगह से तो टिकट मिलते मिलते ट्रेन छूट भी सकती है।

            प्रधानाचार्य जी मुस्कुराए और बोले यहाँ चोरों, डकैतों, ठगों, भ्रष्टाचारियों, बेईमानों और दुष्टों की बहुत लम्बी लम्बी पंक्तियाँ लगी हैं यदि उस लाइन में लग गए तो इस जन्म में तुम्हारा नंबर आ पाएगा इसमें संशय है दूसरी ओर सत्यनिष्ठ, ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ लोगों की लाइन बहुत छोटी है जहां तुम सच्चाई और लगन से अपनी पहचान बना सकते हो।

उन्होंने बताया एक बार इन्दिरा गाँधी ने भी कहा था -“मेरे दादाजी ने एक बार मुझसे कहा था कि दुनियाँ में दो तरह के लोग होते हैं वो जो काम करते हैं और जो श्रेय लेते हैं,उन्होंने मुझसे कहा कि पहले समूह में रहने की कोशिश करो वहाँ बहुत कम प्रतिस्पर्धा है।”

            प्रधानाचार्य जी की बातों ने मेरी तन्द्रा तोड़ दी थी मुझे लग रहा था की किसी ने झकझोर कर मुझे जगा दिया था उसी दिन से मैंने सच्चाई और कर्त्तव्य परायणता का जो पाठ सीखा उसी की बदौलत आज कई विषय में स्नातकोत्तर, एम० एड० ,नेट पीएच डी आदि करके एक प्रतिष्ठित पी ० जी ० महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर हूँ और मेरी कवितायें व वादविवाद परिक्षेत्र में जीता गया स्वर्णपदक मुझे अपने प्रधानाचार्यजी द्वारा बताई सच्चाई की राह पर चलने की अनवरत प्रेरणा देता है।

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वाह जिन्दगी !

मानसिक स्वास्थ्य(Mental-Health)

March 18, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व को आधार प्रदान करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है मानसिक स्वास्थ्य। सुन्दर सलोना मुखड़ा, सुन्दर गहरी झील सी आँखे, सुडौल शरीर में यदि मानसिक विकृति आ जाए तो व्यक्ति अपनी पहचान खो बैठता है। मानसिक स्वास्थय का अभाव जिन्दगी के 10 से 15 वर्ष तो कम कर ही देता है। सम्पूर्ण परिवार को एक त्रासदी, अनचाही यन्त्रणा भोगने को विवेश होना पड़ता है। शारीरिक आयु बढ़ने पर मानसिक आयु उससे साम्य रखने में खुद को असमर्थ पाती है। इसी लिए मानसिक स्वास्थय की यत्न पूर्वक रक्षा की जानी चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने हेतु उपाय

(Tips to maintain good mental health) –

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मानव शरीर, चेतन जगत का अद्भुत उपागम है और इस अद्भुत उपागम का सशक्त आलम्ब है उत्तम मानसिक स्वास्थय। विधाता विलक्षण शक्तियों को हमें प्रदान कर उनके संरक्षण की विशेष जिम्मेदारी भी हमें प्रदान करता है इस जिम्मेदारी का निर्वहन करने हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु आपसे साझा कर रहा हूँ जो इस प्रकार हैं। –

  • स्वयम् से प्रेम (Self-esteem ) –

यदि हम खुद से प्रेम नहीं कर सकते या खुद को सम्मान नहीं दे सकते तो अन्य के साथ भी हम केवल दिखावा कर सकते हैं उसमें प्रमाणिकता नहीं होगी। इसलिए सबसे पहले खुद की इज्जत करें और अपने प्रिय अच्छे कार्यों हेतु समय दें। प्रत्येक वह कार्य जो हमें सचमुच खुशी प्रदान करता है और दूसरों के दुःख का कारण नहीं बनता वह हमें पूर्ण मनोयोग से करना चाहिए। वह नृत्य, सङ्गीत, लेखन, बागवानी, प्रिय भोज्य पदार्थ बनाना आदि कुछ भी हो सकता है।

  •  आत्म संयम (Self-control) –

संसार की समस्त व्यवस्था का व्यवस्थापन हमारे वश में नहीं है हम अपने ऊपर ही नियन्त्रण कर लें यही बड़ी बात है दूसरों को दिशा भर देने का क्षमता भर प्रयास किया जा सकता है अपना कार्य पूर्ण करें दूसरे की प्रतिक्रिया भिन्न हो तो खिन्न न हों। सभी का मानसिक स्तर व क्षमता भिन्न होती है। संयम हमें व्यवस्थित रख मानसिक स्वास्थ्य को सम्बल देगा।

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: |

वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत: || 36||

अर्थात

जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज है- यह मेरा मत है॥36॥

  • सकारात्मकता का प्रशिक्षण (Training of positivity) –

अपने मष्तिस्क को सकारात्मकता प्रकीर्णन का अजस्र स्रोत बनाना है परिस्थितियों के वशीभूत नहीं हो जाना है उन्हें अपने अनुकूल बनाने की समग्र विशिष्ट रणनीति बनाकर अमल करने की आवश्यकता है इससे मष्तिस्क कुशल रहने हेतु सबल हो जाएगा और बहुत से मष्तिष्कों को दिशा देने में सफल रहेगा। मानसिक अस्वस्थता का तो सवाल ही नहीं उठ सकता।

  • व्यायाम, प्राणायाम (Exercise, Pranayam ) –

मानसिक रूप से सबल बनाने का यह सबसे सशक्त माध्यम है, व्यायाम प्राणायाम, एरोबिक्स, स्ट्रैचिंग आदि इस तरह की क्रियाएं हैं जिससे फेफड़े और हृदय शक्तिशाली हो जाते हैं और अधिक क्षमता से ऑक्सीजन ग्रहण कर पाते हैं इससे शरीर की सब क्रियाएं व्यवस्थित हो जाती हैं और हम मानसिक रूप से सबल कब हो गए यह विषम स्थिति आने पर ही पता चलता है और लोग आपके नेतृत्त्व में कार्य करने को लालायित रहते हैं। व्यायाम, प्राणायाम में निरंतरता रहना परमावश्यक है। ये अपनी क्षमता के अनुसार सभी कर सकते हैं। Education Aacharya पर YOU TUBE  पर TIP TO  TOP Exercise part 1  & 2  में सभी के करने वाली सरलतम क्रियाएं दी हैं। 

  • सत्संगति (Satsang)–

भारत में एक कहावत प्रसिद्ध है की खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है जिससे आशय है की साथ का संगति का प्रभाव पड़ता ही है इसीलिये अलग अलग तरह के लोग अलग अलग ग्रुप में दीख पड़ते हैं। चूंकि यहां बात मानसिक स्वास्थय के सम्बन्ध में हो रही है इसलिए यह बताएं प्रासंगिक हो जाता है कि सबल मानसिक स्वास्थ्य या सकारात्मक व्यक्तित्वों का साथ सत्संगति कहलायेगा तथा मानसिक उत्थान व सशक्तिकरण में योग देगा। इसीलिए घर में उच्च मानसिक क्षमता वाले व्यक्तित्वों के ही चित्र लगाए जाएँ भले ही वे सशरीर हों या नहीं।

  • विचार विनिमय व तार्किकता  (Exchange of thoughts and reasoning)–

सत्य और तार्किकता का चोली दामन का  साथ है इसे झुठलाया नहीं जा सकता। मानसिक उत्थान हेतु हमें अध्ययन, मनन, चिन्तन, अनुभव का आधार लेकर स्वस्थ विचार विनिमय में सक्रियता दिखानी चाहिए और सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। किसी भी विवाद में बातचीत बंद नहीं करनी चाहिए हम सब आपस में दुश्मन नहीं हैं जो विचार त्याज्य है वह तार्किकता की कसौटी पर हार जाएगा और सबल मानसिक स्वास्थय का पथ प्रशस्त होगा तथा मन पर कोइ बोझ नहीं रहेगा। और हम पुनः उद्घोष कर सकेंगे। –

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

अर्थात

सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगल के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।

  • स्वयम् को समय और उपहार दें (Give yourself time and gifts,  ) –

यदि हम मानसिक रूप से सशक्त महापुरुषों का अध्ययन करें तो पाएंगे की इन्हें गढ़ने में एकान्त और इनके खुद के विचारों को धार इन्होने स्वयम् के लिए समय निकाल कर दी है। वह समय कोई भी हो सकता है,स्थितप्रज्ञता की स्थिति तभी बनती है श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय में भगवन कहते हैं –

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। 69 

अर्थात्

सभी प्राणियों के लिये जब रात होती है, तब सयंमी(मुनि) जागता रहता है और जब सभी प्राणियों के लिये जागने का समय होता है तब मुनि के लिये रात होती है।

मानसिक बल से युक्त होने हेतु हमें खुद को गढ़ना होगा तथा अपने लिए दंड व उपहार का निर्णयन करना होगा।

  • समाज सेवा और चैन की नींद (Social service and sleep in peace) –

मानसिक स्वास्थ्य की उच्चता का एक मापन यह भी है की हम अपना ही नहीं समाज के उत्थान में योग दें सकें। रामचरित मानस में आया है –

”परहित सरिस धरम नहिं भाई ।

  पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।”

यह परहित चिन्तन जहां हमें मानसिक रूप से सशक्त करता है वहीं इससे मिलने वाली संतुष्टि चैन की नींद लाने में मदद करती है इससे हम उत्तरोत्तर मानसिक स्वास्थय की स्थिति को प्राप्त करते हैं।

            अन्ततः कहा जा सकता है कि खुद से हारना छोड़ दो आप इतने अधिक मानसिक स्वास्थ्य के मालिक बन जाओगे की दुनियाँ आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी।    

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वाह जिन्दगी !

तनाव मुक्ति (STRESS RELIEF)

March 14, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

संसार का सर्व श्रेष्ठ प्राणी मनुष्य कहा जाता है लेकिन किसी भी मनुष्य के ऊपर हावी हो सकता है तनाव। इसने अवतारों को भी नहीं बख्शा। भले ही आप उसे लीला कह लें। जिसने इन तनावों का जितनी कुशलता से निवारण किया वह उतना अधिक सफल हुआ। तनावों से बचाने के लिए न तो आपके ऊपर मनोवैज्ञानिक भारी भारी सिद्धान्तों का बोझ डालूँगा और न धर्माचार्यों के चक्र व्यूह में आपको फँसाऊँगा। यह एक असन्तुलन है जिसे सहजता से सन्तुलन की दहलीज पर लाया जा सकता है। तमाम साहित्य और दृश्य श्रव्य सामग्री से जो जवाब नहीं मिल पाया वह लगभग 500 लोगों के विचारों से मुझे प्राप्त हुआ आपके साथ उसी प्रतिक्रिया को बिन्दुवत तनाव मुक्ति के स्वीकृत विचारों के रूप में आपसे साझा करता हूँ। विश्वास रखिये तनाव उड़न छू हो जाएगा।

 तनाव से मुक्ति के उपाय –

आप इनकी सरलता पर मत जाना ये लोगों के विचारों का सार है जिन्हें इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।

1⇒ प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में जागरण –

सुबह चार बजे उठने से पूरे दिन की दिनचर्या व्यवस्थित हो जाती है याद रखें हमें तनाव प्रबन्धन नहीं करना है प्रबन्धन अच्छी चीजों का किया जाता है तनाव का तो समूल विनाश किया जाना है इसीलिए जब उचित समय पर जागेंगे तो सारे कार्यों को समय मिल सकेगा और तनाव उत्पत्ति के कई कारण दम तोड़ देंगे।

2⇒ शौच स्नानादि क्रिया –

दैनिक क्रियाओं का व्यवस्थित सम्पादन करेंगे मल त्याग से पूर्व पर्याप्त जल का सेवन मौसम के अनुसार करेंगे। मालिश और रगड़ रगड़ कर स्नान की आदत का अनुपालन करेंगे।दन्त धावन के पश्चात आँख पर छपाके लगाते समय मुँह में पानी अवश्य भरा हो। समय प्रबन्धन का विशेष ध्यान रखेंगे। यहीं से खुशनुमा दिन हमारी प्रतीक्षा करेगा। ध्यान रखें इन छोटी छोटी बातों का तनाव मुक्ति से सीधा सम्बन्ध है।

3⇒ चिन्तन – मनन व व्यूह रचना –

आदि शक्तियों और अच्छे अच्छे विचारों का चिन्तन मनन करने के साथ पूरे दिन के कार्यों हेतु व्यवस्थापन की व्यवस्थित रणनीति बनाई जानी चाहिए। किसी तरह का कोई बोझ मन पर नहीं रखना चाहिए। कोई बोझिल विचार लम्बे समय तक जुड़कर तनाव में परिवर्तित होता है इसीलिये उसे प्रारम्भ में ही दरकिनार कर देना चाहिए।

4⇒ आसन, प्राणायाम, व्यायाम –

आसन और व्यायाम तन के तनाव का निदान करता है और प्राणायाम मन को तनाव से बचाता है तन मन इससे तनाव मुक्त व्यवहार का निर्वहन करने का आदी हो जाता है अचेतन मष्तिस्क अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ मानस में शक्ति संचरण के प्रवाह को बनाये रखता है।

5⇒ ऊर्जा स्तर उन्नयन –

हमारा शरीर एक अत्याधिक उन्नत किस्म का यन्त्र है जो अपने आप अपने को ठीक करने करने की व्यवस्था करता है और तनाव शैथिल्य हेतु दर्द, आँसू, ऐंठन, बेहोशी, उन्माद आदि का प्रगटन करता है और कालान्तर में स्वयं को ठीक कर लेता है। लेकिन लगातार तनाव उत्पादक विचार का चिन्तन इस शरीर को अपूरणीय क्षति पहुँचाता है इसीलिए हमें अपने शरीर के ऊर्जा स्तर को बनाये रखना है और हर वह सकारात्मक कार्य करना है जिससे हम अपने आप को तरोताज़ा महसूस करते हैं फिर चाहे संगीत सुनना हो ,तैरना हो, नृत्य हो, या आपकी अन्य कोई अभिरुचि का क्षेत्र। कुछ नहीं कर सकते तो पूर्ण श्वांस प्रश्वांस ही करें।

6⇒ स्वास्थ्य अनुकूल व्यवहार –

हमारी सम्पूर्ण क्रियांए मर्यादित व शारीरिक क्षमता में अभिवृद्धि करने वाली हों, किसी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तु का सेवन न करने की आदत व्यवहार में लाई जानी चाहिए। नशे की चीजों का तत्काल प्रभाव से परित्याग किया जाना चाहिए। स्वस्थ मस्तिष्क से किसी समस्या पर जितना गहन अध्ययन किया जा सकता नशे की हालत में कदापि सम्भव नहीं। स्वास्थय के अनुकूल कृत्यों को व्यवहार में लाने की आदत का परिष्करण किया जाना चाहिए।

7⇒ यथा योग्य निद्रा व जागरण –

किसी भी कार्य का अतिरेक सन्तुलन बिगाड़ने का कार्य करता है इसी लिए यथायोग्य आहार विहार के साथ नींद की उचित मात्रा भी परम आवश्यक है श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण जी ने अपने मुखारबिन्द से कहा –

युक्ताहार विहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ।।

अर्थात दुःखों का नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार विहार करने वाले का, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का तथा यथा योग्य सोने और जागने वाले का ही सिद्ध होता है।

और जब दुखों का ही नाश हो जाएगा तो तनाव कहाँ बचेगा।

8⇒ सकारात्मक चिन्तन –

यदि नकारात्मकता हार का कारण है तो सकारात्मकता जीत की। शत प्रतिशत यह मानने की आवश्यकता है नकारात्मकता मष्तिस्क और शरीर की सबसे बड़ी दुश्मन है इससे हृदयाघात  होता है और रोग प्रतरोधक क्षमता पर बुरा असर होता है जो तनाव का प्रमुख कारण है इसीलिये सकारात्मक चिन्तन से जुड़ें। ऐसे साहित्य ,व्यक्ति, विचार का अनुकरण करें जो आपको सकारात्मक प्रेरणा देने में सक्षम हो।कितना सही कहा गया है कि –

“Positive thinking can reduce your stress level, help you feel better about yourself and improve your overall well-being and outlook.”

“सकारात्मक सोच आपके तनाव के स्तर को कम कर सकती है, आपको अपने बारे में बेहतर महसूस करने में मदद करती है और आपके समग्र कल्याण और दृष्टिकोण में सुधार करती है।”

अन्ततः कहा जा सकता है कि अपना तनाव हम स्वयम् दूर कर सकते हैं और दूसरों की मदद भी कर सकते हैं, यहाँ बताये गए तरीकों पर सकारात्मकता के साथ अमल करें बाकी सब शुभ ही होगा। मुस्कुराइए आपके जीवन प्रगति की चाभी आपके हाथ है।

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वाह जिन्दगी !

नारी की सुबह …………..

March 7, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गर कोख में हत्या कर दोगे,

उसको पढ़ने भी ना दोगे।

पिछड़ के तम को बढ़ाएगी,

गर केवल अपनी थोपोगे।

नारी की सुबह कब आएगी ?

नारी की सुबह कब आएगी ?

वैषम्य द्वार यदि खोलोगे,

अधिकार समान भी ना दोगे।

वह कैसे सेहत बनाएगी,

खाने में भेद यदि रक्खोगे।  

नारी की सुबह कब आएगी ?

नारी की सुबह कब आएगी ?

कौशल से विमुख यदि कर दोगे

आर्थिक रीढ़ यदि तोड़ोगे।

निज पैरों पर कैसे खड़ी होगी,

यदि बन्धन में तुम जकड़ोगे।   

नारी की सुबह कब आएगी ?

नारी की सुबह कब आएगी ?

यदि आपस में तुम उलझोगे

नारी शक्ति को ना नवस्वर दोगे।

तब घर नवज्योति क्यों आएगी,

मिलजुल जब प्रगति पथ रोकोगे। 

नारी की सुबह कब आएगी ?

नारी की सुबह कब आएगी ?

यदि बाधाएं खड़ी तुम कर दोगे,

उसको केवल नव सपने दोगे।

फिर कैसे वह साम्य बनाएगी,

जब केवल भ्रम ही भ्रम दोगे।       

नारी की सुबह कब आएगी ?

नारी की सुबह कब आएगी ?

……………………………………

यदि छीन के हक़ तुम ले लोगी

खुद को हल्का नहीं तोलोगी।

आत्मविश्वास शक्ति बढ़ जाएगी

और पिछले सितम सब धो लोगी।        

नारी की सुबह तब आएगी। 

नारी की सुबह तब आएगी।

जब याचक स्वर तुम खो दोगी,

निज बाजू में ताक़त भर लोगी।

मति रूढ़ि से विमुख हो जाएगी,

प्रगतिपथ पर स्वयं ही बढ़ लोगी।          

नारी की सुबह तब आएगी। 

नारी की सुबह तब आएगी।

जब चिन्तन को नव दिशा दोगी

खुद बढ़ नवमार्ग तुम खोलोगी।

भावना – भेद, ख़तम हो जाएगी,

निज दम पर समरसता घोलोगी।             

नारी की सुबह तब आएगी। 

नारी की सुबह तब आएगी।

पढ़ लिख नवचिन्तन जोड़ोगी,

नव कौशल खुद संग जोड़ोगी।

जग प्रकृति हैरान हो जाएगी,

जब खुद को बदलकर रख दोगी।         

नारी की सुबह तब आएगी। 

नारी की सुबह तब आएगी।

आक्षेपों का तार्किक जवाब दोगी,

सच दुनियाँ, सम्मुख रख दोगी।

‘नाथ’ दुनियाँ कायल हो जाएगी,

जब प्रतिमान स्वयं के गढ़ लोगी।             

नारी की सुबह तब आएगी । 

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वाह जिन्दगी !

DEPRESSION अवसाद

March 6, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अवसाद (Depression)एक स्वनिमन्त्रित मानसिक रोग कहा जाता है और अवसादग्रस्तता अनिद्रा, चिड़चिड़ापन,अनायास गुस्सा, नकारात्मकता गुमसुम रहना, अचानक एकान्त प्रियता, असन्तुलित व्यक्तित्व आदि आदि के रूप में पारिलक्षित होने लगता है। यह अवसाद मानव पर जब भारी पड़ने लगता है तो मानव हारने लगता है। यहाँ प्रस्तुत है अवसाद भगाने के अचूक उपाय, जो अवसाद ग्रस्तता के रूप के अनुसार अपनाए जा सकते हैं। –

1- सुबह जल्दी उठें –

ब्रह्म मुहूर्त में उठना या सूर्योदय से पूर्व उठना अपनी दिनचर्या बना लें और उठते ही अपने ईष्ट को जिन्दगी नया दिन, नया अवसर देने के लिए धन्यवाद कहें। जो लोग विभिन्न मन्त्रोच्चार करते हैं करें लेकिन अपनी भाषा अपनी बोली में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अपने शब्दों में अभिव्यक्त करें। नित्य कर्मों से मुस्कुराते हुए आनन्द के साथ निवृत्त हों। नया सुखद समय प्रतीक्षारत है ,याद रखें –

हर सुबह नव जीत का ख़ास पैगाम लाती है।

सद्पात्र को स्वर्णिम अवसर ये बाँट आती है।।

(2) – शरीर को समय दें –

शरीर प्रकृति प्रदत्त एक विशिष्ट नेमत है यह अद्भुत जादुई शक्ति का निमित्त साधन है शरीर को व्यवस्थित रखने हेतु रक्तसञ्चार व्यवस्थित रखना परमावश्यक है। इस हेतु प्रातः भ्रमण, दौड़, व्यायाम, मालिश, प्राणायाम आदि अपनी क्षमता के अनुसार करें। निःसन्देह प्राणायाम इसमें सर्वोत्तम है। यह अवसर चूक न जाएँ। स्नानादि के उपरान्त अपने दैनिक कार्यों के सम्पादन हेतु खुद को खुशी खुशी तैयार करें। ध्यान दें –

काया प्रकृति प्रदत्त अनुपम उपहार है,

क्या इसके साथ सम्यक में व्यवहार है।

सुसमय ही सचेत हों अन्यथा पछतायेंगे,

क्यों कि स्वस्थ तनमन असली श्रृंगार है।

(3) – सहज सुपाच्य भोजन –

अवसाद भगाने का सूक्ष्म तरीका भोजन में छिपा है, गरिष्ठ भोजन का सेवन न करें, भूख से थोड़ा काम खाएं, ताजा खाने का प्रयास करें। भूख से अधिक न खाएं क्योंकि यदि कुण्डलिनी की समस्त शक्ति पचाने में व्यस्त रहेगी तो उन्नति पथ कब प्रशस्त करेगी। तरल, पोषक, रेशेदार,शरीरानुरूप भोजन शान्त मनोरम वातावरण में करें। याद रखें –

सुपाच्य भोजन हम सब को स्वीकार हो जाए।

अवसाद की कड़ी टूटे और बेड़ा पार हो जाए ।

(4) – मादक पदार्थों का त्याग –

आज विविध प्रकार के मादक पदार्थ उपयोग में लाये जाते हैं नशे का एक बहुत बड़ा तन्त्र विकसित हो गया है अनपढ़ से लेकर पढ़ी लिखी मानवता इसकी गिरफ्त में है इसके दुष्चक्र ने अवसाद को मिटाने में बहुत बड़ी बाधा खड़ी की है तत्काल प्रभाव से इसका परित्याग सुनिश्चित करना होगा। educationaacharya.com पर इस सम्बन्ध में ‘नशा छोड़ देते हैं लोग’ शीर्षक से ऐसी पंक्तियाँ लिखी गई हैं कि आप सोचने पर विवश हो जाएंगे। इसीलिए कहना पड़ता है। –

मादक पदार्थ सच में,

हमारी खिल्ली उड़ाते हैं।

हम गटकते हैं उन्हें,

और वो हमें खा जाते हैं।

(5) – शौक पालें –

अवसाद से बचाव हेतु एक सरल मन्त्र है- व्यस्त रहें, मस्त रहें, स्वस्थ रहें। इसीलिए खाली न बैठें। जो भी अच्छा लगता है यथा समाज सेवा, संगीत, लेखन, बागवानी, अध्ययन, भजन, क्रीड़ा कुछ भी करें। खुलकर जियें। अवसाद की फुरसत ही नहीं मिलेगी।   

(6) – सकारात्मक चिन्तन –

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है,

मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।

उक्त पंक्तियों में किसी विद्वान ने समाज को दिशा देने का प्रयास किया है। वास्तव में सकारात्मक चिन्तन हमारे व्यवहार में नई ऊर्जा भर देता है समस्याएं तो राम, कृष्ण के सम्मुख भी आईं पर उनके कृत्य हमारे आदर्श हैं। जो भी महान हुआ है वह सकारात्मक चिन्तन से मानस को आकण्ठ डुबाने वाला मष्तिस्क है। दशरथ माँझी, स्वामी रामदेव, ए पी जे कलाम, सरदार बल्लभ भाई पटेल …आदि का उदाहरण लिया जा सकता है।

(7) – क्रोध करने से बचें –

अवसाद पीड़ित अनायास क्रोध करता है, चिड़चिड़ापन का असर कम होने पर ग्लानि अनुभव करता है इसलिए क्रोध आने पर संयम रखें। 3 मिनट गहरी गहरी श्वांस लें और प्रभावी चिन्तन का प्रयास करें। सोलह कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण चन्द्र महाराज ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा – 

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।

(8) – भरपूर नींद लें –

अवसाद की औषधियों में भरपूर सुलाने की व्यवस्था रहती है इसी लिये खूब श्रम करें। रात्रि में शयन पूर्व गर्म जल से या मौसमानुकूल जल से स्नान करें। हरी इलायची का सेवन करें। खुद को प्रसन्न रखें। अधिगमार्थी अध्ययनोपरान्त सोने की आदत डालें। इतना सोएं कि स्नायु सबल हो सकें व उठने  पर स्वयम् को तरोताज़ा महसूस कर सकें। याद रखें-

नींद केवल, वह नहीं

जो हमको, सुलाती है,

ये औषधि है, गात की

पुनः नवजीवन लाती है।

            यहाँ केवल आठ सरलतम उपाय दिए गए हैं जिन्हे आसानी से अपनाया जा सकता है और दीर्घकालिक दवाओं की नौबत आने से पूर्व स्वयम् को मज़बूत किया जा सकता है।

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वाह जिन्दगी !

चलो सोचो सँभलो फिरसे ……………

March 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

करो ये खाई मत चौड़ी, सभी उस प्रभु के जाए हैं।

बनाया है तुमको जिसने उस प्रभु ने  हम बनाए हैं।

तुम्हारा और मेरा सूरज घर क्या अलग से आता है।

सँभल करके चलो यारो यह अन्तर खुद के जाए हैं।

चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।1।

जितने भी झगड़े जहाँ के हैं वो सब हमने कराए हैं।

धरम की गलत व्याख्या से वह निकल कर आये हैं।

इस तन का तेज हो या खूँ, सभी समता दिखाता है।

बताओ ये फिर कहें कैसे, कि अन्तर प्रभु बनाए हैं।

चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।2।

करें हैं जो करम हम ने, सब फल वैसे ही आये हैं।

गर बबूल बोये हमने फिर आम की क्यों इच्छाएं हैं।

जो तुम सब को जगाता है, वही हम को जगाता है।

तुम और हममें अन्तर क्या ये भ्रम किसने बनाए हैं।   

चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।3।

सब पुष्प पौधे और ये जीव, सभी चेतनता लाये हैं।

कहीं हैं वल्लरी फूलीं कहीं अजब पेड़ों के साये हैं।

प्रकृति का हर एक मौसम सुनो समता सिखाता है।

दुःख में हैं सब दुःखी होते, खुशी में सब हरषाये हैं।

चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।4।

चाहे पशु हो या फिर पक्षी सभी प्रकृति के जाए हैं।

प्रेम सबको सुखद लगता फिर भी घृणा के साए हैं।

जो हम सब को श्वासें देता, वही सबको जिलाता है।

फिर चेतन,चेतन में अन्तर क्यों, क्यों ये वर्जनाएं हैं।

चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।5।

शरीर के सारे पुर्जों की, समझो एक सी ऊर्जाएं हैं।

जो अन्तर हैं मूल्यों के, नव सोच की नव विमाएँ हैं।

चलो अन्तर मिटाते हैं जागो अब नव तेज आता है।

‘नाथ’ सबसे ही यह कहता, प्रगति शुभकामनाएं हैं।

चलो सोचो सँभलो फिर से शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।6।

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