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शिक्षा

TEACHER AS AN AGENT OF CHANGE AND LIFE SKILLS TRAINER.

July 2, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


परिवर्तन के एजेंट और जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक

जीवन की यात्रा शैशव से शुरू होकर बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के पायदान पर पैर रखते हुए बढ़ती है लेकिन जीवन पर्यन्त माँ – बाप के अतिरिक्त एक और जो हमारी खुशी में आनन्दित होने वाला व्यक्तित्व होता है वह जिसे दुनियाँ शिक्षक के रूप में जानती है। शिक्षक यूँ तो बहुत सी भूमिकाओं का निर्वहन करता है लेकिन यहाँ शीर्षक के अनुरूप हम उसके दो रूपों की चर्चा करेंगे।

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of teacher as an agent of change –

परिवर्तन के एजेंट के रूप में परिवर्तन का प्रमुख अभिकर्त्ता शिक्षक इस लिए है क्योंकि मान बाप जिन गुणों को अपने बच्चे में अधूरा छोड़ देते हैं उसकी पूर्णता का गुरुत्तर दायित्व शिक्षक द्वारा निर्वाहित होता है। टूटे फूटे अक्षरों से धारा प्रवाहित सम्प्रेषण के साथ बालक विश्लेषण और संश्लेषण की शक्ति से युक्त होता है। जीवन पर्यन्त विविध परिवर्तनों के मूल में कहीं नींव  ईंट के मानिन्द शिक्षक को नकारा नहीं जा सकता। इसीलिये अरस्तु(Aristotle ) ने कहा –

“जन्म देने वालों से अच्छी शिक्षा देने वालों को अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए; क्योंकि उन्होंने तो बस जन्म दिया है ,पर उन्होंने जीना सिखाया है।”

“Those who give good education should be given more respect than those who give birth; Because they have just given birth, but they have taught how to live.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of Teacher as Life Skills Trainer-

जीवन में बहुत कुछ अधिगमित किया जाता है और व्यवहार में परिवर्तन, आदत का बनना, कार्य कुशलता की वृद्धि परिणाम होता है प्रशिक्षण का। इस प्रशिक्षण क्रिया  को सम्पन्न करने का गुरुत्तर दायित्व है गुरुवर का। यहॉं जीवन कौशल प्रशिक्षक आशय जीवन काल में उपयोगी कौशलों के प्रशिक्षण प्रदाता से है . स्कूल, समाज और जेण्डर सुग्राह्यता में यह प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है। इसीलिये श्रद्धेय  अब्दुल कलाम (Abdul Kalam) जी ने कहा –

 “If a country is to be corruption free and become a nation of beautiful minds, I strongly feel there are three key societal members who can make a difference. They are the father, the mother and the teacher.”

“अगर किसी देश को भ्रष्टाचार – मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, मेरा दृढ़तापूर्वक  मानना  है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं. पिता, माता और गुरु.”

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक / Teachers as an Agent of Change –

शिक्षक मार्ग दर्शक, परामर्श दाता, नेतृत्व कर्त्ता और सुविधा प्रदाता के रूप में तो परिवर्तन का वाहक बनता ही है इसके अलावा भी निम्न कारक उसे परिवर्तन के अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करते हैं। –

1 – भाषा बोध / Language Comprehension

2 – अधिगम स्तर समायोजन / Learning Level Adjustment

3 – व्यवहार परिवर्तन / Behavior Change

4 – समय के साथ ताल मेल / Rhythm matching with time

5 – लिंग भेद के प्रति सम्यक दृष्टिकोण विकास / Development of proper attitude towards gender discrimination

6 – सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास / Development of positive attitude

7 – समस्या समाधान योग्यता / Problem solving ability

8 – व्यक्तित्व परिवर्तक / Personality changer

9 – मानसिक, बौद्धिक उत्थान / Mental, Intellectual development

10 – सर्वांगीण विकास / All round development

11 – प्रेरणा प्रदाता / Inspiration provider

विलियम आर्थर वार्ड (William Arthur Ward) ने कितने सुन्दर ढंग से समझाया

‘’The mediocre teacher tells. The good teacher explains. The superior teacher demonstrates. The great teacher inspires.”

‘‘एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है. एक अच्छा शिक्षक समझाता है. एक बेहतर शिक्षक कर के दिखाता है.एक महान शिक्षक प्रेरित करता है.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक / Teacher as Life Skills Trainer –

जीवन में उत्तरोत्तर विकास के सोपानों से अपने विद्यार्थी को जोड़ने हेतु शिक्षक विविध कौशलों में पारंगत कर स्थिति से समायोजन करना चाहता है। कुछ कौशलों को इस प्रकार क्रम दया जा सकता है –

01 – व्यावसायिक दक्षता कौशल / Professional competence skills

02 – सृजनात्मक कौशल / Creative skill

03 – जागरूकता कौशल / Awareness skill

04 – प्रभावी सम्प्रेषण कौशल / Effective communication skill

05 – समस्या समाधान कौशल / Problem solving skill

06 – निर्णयन कौशल / Decision making skills

07 – संवेग नियन्त्रण कौशल / Emotion control skills

08 – तनाव नियन्त्रण कौशल / Stress management skills

09 – समायोजन कौशल / Adjustment skills

10 – परानुभूति कौशल /Empathic skill

इनके अतिरिक्त विविध कौशलों की आवश्यकता समय सापेक्ष होती है अध्यापक चेतना से युक्त प्राणी है और आवश्यकतानुसार निर्णय लेने में सक्षम है।

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शिक्षा

ADVANCEMENT OF KNOWLEDGE AND SEA CHANGES IN DISCIPLINARY AREAS.

June 30, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


ज्ञान की उन्नति और विषयात्मक परिक्षेत्र में विस्तृत परिवर्तन

ज्ञान की उन्नति से आशय / Advancement of Knowledge

भारतीय ज्ञानकाश में ज्ञान से प्रदीप्त विद्वानों की एक विस्तृत श्रृंखला है। निरन्तर बदलते काल खण्डों ने वैश्विक परिक्षेत्र को बहुत से ज्ञानियों के आलोक से प्रदीप्त किया है ज्ञान एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया अपने साथ विविध सकारात्मक परिवर्तन करती चलती है जो ज्ञान की उन्नति का पथ प्रशस्त करते हैं यद्यपि ज्ञान प्राप्ति का पथ दुरूह व कण्टकाकीर्ण होता है पर इसपर चलने वाले विज्ञजन लगातार होते आये हैं। इस प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में होने वाली, मानव उत्थान में सहयोगी क्रियात्मक तलाश ही ज्ञान की उन्नति को परिलक्षित करती है।

            ज्ञान की उन्नति की यह बयार अपने साथ परिवर्तनों की आँधी लेकर चलती है जो विविध विषयात्मक परिक्षेत्र में होते हैं।

DISCIPLINARY AREAS / विषयात्मक परिक्षेत्र –

जब ऋषियों, मनीषियों, वैज्ञानिकों, ज्ञानियों की ज्ञान पिपासा नित नए परिक्षेत्र तलाशती है तो विविध क्षेत्र ज्ञान आप्लावित हो जाते हैं और उनमे व्यापक परिवर्तन होते हैं यहां जिस डिसिप्लिनरी एरिया की बात की जा रही है वह मुख्यतः बी०एड ० पाठ्यक्रम से सम्बन्धित हैं उन  DISCIPLINARY AREAS / विषयात्मक परिक्षेत्र को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है  –

(i) – सामाजिक विज्ञान / Social Science

(ii) – विज्ञान / Science

(iii) – गणित / Mathematic

(iv) – भाषाएँ / Languages

ज्ञान की उन्नति के प्रभाव / Effects of the Advancement of Knowledge –

Or  ज्ञान की उन्नति से विस्तृत परिवर्तन / Sea change due to advancement of knowledge

जिस तरह से सूर्य की धूप मुठ्ठी में बन्द नहीं की जा सकती, पुष्प की खुशबू विस्तार पाती ही है उसी प्रकार ज्ञान की उन्नति का प्रभाव समग्र क्षेत्रों पर पड़ता है निश्चित रूप से बी ० एड ० पाठ्यक्रम में प्रदत्त विषयात्मक परिक्षेत्र पर भी उनका प्रभाव परिलक्षित होता है यहां सुविधा की दृष्टि से एक -एक का अध्ययन करेंगे –

1 – सामाजिक विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव / Impact of the Advancement of Knowledge on the Social Sciences

A -विविध विषयों का अद्वित्तीय संयोजन / Unique Combination of Various Subjects
B – मानवीय सम्बन्धों के अध्ययन में अमूल्य योगदान / Invaluable contribution to the study of human relations

C – समृद्ध सामाजिक जीवन का आधार / Base of a prosperous social life

D – स्वस्थ सामाजिक परिवेश / Healthy social environment

E - प्राचीन और अद्यतन का अद्भुत समावेश / wonderful mix of ancient and modern
F - भावी जीवन की तैय्यारी/ Preparation for future life

G – जागरूकता विकास समस्या समाधान में सहायक/Awareness Development Helpful in Problem Solving

H – सत्य व ज्ञान की खोज की प्रेरक / Motivator of search for truth and knowledge

2 – विज्ञान पर ज्ञान की उन्नति का प्रभाव / Impact of the Advancement of Knowledge on the Science

आज का युग विज्ञान का युग है और विज्ञान के आधार पर भौतिक युग में हम अपने को यथार्थ के अधिक निकट पाते हैं ज्ञान के प्रस्फुटन से विज्ञान को भी दिशा मिली और इसने मानव की जिंदगी आसान करने में अहम् भूमिका अभिनीत की। कुछ परिवर्तन के क्षेत्र इस प्रकार हैं –

01 – स्वास्थ्य व चिकित्सा / Health and Medicine

02 – कृषि / Agriculture

03 – उद्योग / Industry

04 - सञ्चार / Communication

05 – परिवहन / Transport

06 – मनोरञ्जन/ Entertainment

07 – खाद्यान्न उत्पादन व संरक्षण / Food production and preservation

08 – अन्तरिक्ष / Space

09 – युद्ध / War

10 - घरेलू साधन / Household appliances
      उक्त के अतिरिक्त भी बहुत से परिक्षेत्र गिनाये जा सकते हैं उनमें मुख्य है मूल्य सम्वर्धन - बौद्धिक मूल्य (Intellectual Values), नैतिक मूल्य (Moral Values), व्यावहारिक मूल्य (Practical Values), मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological Values), साँस्कृतिक मूल्य (Cultural Values), सौन्दर्यात्मक मूल्य (Aesthetic value),, व्यावसायिक मूल्य  (commercial value) आदि।
 

गणित के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes due to advancement of knowledge in the field of mathematics –

दुनियाँ में ज्ञान का सागर हिलोरें मार रहा है बहुत सा ज्ञान कल्पना से यथार्थ की और चलता है तो बहुत सा यथार्थ की मज़बूत नीव पर समस्या समाधान की योग्यता रखता है गणितीय आधार ऐसा ही है जिसमें एक सिद्धान्त एक दिशा का बारम्बार सत्य यथार्थ बोध कराता है। ज्ञान की उन्नति ने इसे नीरसता से सरस यथार्थ की और अग्रसारित किया है कुछ परिवर्तन इस प्रकार हैं –

0 1 – बौद्धिक मूल्य/ Intellectual Value

0 2 - नैतिक मूल्य / Moral Values

 0 3 – सामाजिक मूल्य / Social Value

0 4 – प्रयोगात्मक मूल्य / Experimental value

0 5 – अनुशासनात्मक मूल्य / Disciplinary Values

0 6 – सांस्कृतिक मूल्य / Cultural Values

0 7 – जीविको पार्जन मूल्य/ Livelihood Earning Value

0 8 – मनोवैज्ञानिक मूल्य/ Psychological Value

0 9 – कलात्मक मूल्य/ Artistic value

1 0 – अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य/ International value

   वास्तव में मानव मानस को सत्य का महत्त्वपूर्ण बोध गणित ने कराया और दिशा दी इसीलिये प्लेटो महोदय को कहना पड़ा –

 “Mathematics is a subject which provides opportunities for training the mental powers.”

”गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने के अवसर प्रदान करता है।”

भाषा के क्षेत्र में ज्ञान की उन्नति से होने वाले परिवर्तन/Changes brought about by the advancement of knowledge in the field of language –

भाषा ही वह माध्यम है जिसने दूरियों को मिटा निकटता स्थापित करने का काम किया है ज्ञान की प्रगति ने हमें विविध भाषाओं को समझने में मदद की है और सभी क्षेत्रों में उच्च प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं परिवर्तनों को इस प्रकार इंगित किया जा सकता है –

1- ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन / Main source of knowledge

2 – राष्ट्रीय एकता की दिशाबोधक /Guide of National Integration

3 – विचार विनियम में सरलता / Ease of exchange of thoughts

4 – व्यक्तित्व निर्माणक/ Personality builder

5 – अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को बढ़ावा /Promotion of international relations

6 – सामाजिक जीवन का प्रगति आधार / Progress Basis of Social Life

7 – चिन्तन, मनन का आधार / Thinking, the basis of meditation

8 – प्रगति का आधार /The basis of progress

9 – कला,सभ्यता,संस्कृति,साहित्य का आधार /The basis of art, civilization, culture, literature    

अब तक का प्रस्तुतीकरण यह भी बोध कराता है कि और भी बहुत सारे परिवर्तन इसमें शामिल होने से रह गए हैं छोटे से काल खंड में विवेचना दुष्कर है जैसे शोध परिक्षेत्र  क्रान्ति इसी ज्ञान प्रस्फुटन का परिणाम है अन्यथा यह तीव्रता संभव ही नहीं थी। ज्ञान की उन्नति मानव को सर्वोत्कृष्ट प्रदान करने में सभी परिक्षेत्रों में मदद करेगी और सभी क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन निरंतर होते रहेंगे।

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शिक्षा

Education and Economic Development

May 5, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शिक्षा और आर्थिक विकास

भारत वह देश है जो सनातन ज्ञान के अविरल प्रवाह का हामी रहा है ऋषि मुनि परम्परा से आज तक शिक्षा ने विविध आयाम तय किये हैं और आज यह आर्थिक विकास के प्रमुख सम्बल के रूप में जानी जाती है। बदलते सामाजिक परिवेश में जन जन की आकांक्षा के अनुरूप उद्देश्य की प्राप्ति में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आज जब कि यह कहा जाने लगा है की ज्ञान, ज्ञान के लिए नहीं। तो नई भूमिका अपने आप ही बन जाती है और शिक्षा नए परिवेश में सामाजिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बन जाती है। शिक्षा की विविध शाखाएं अर्थोपार्जन हेतु जनमानस की आवश्यकता बन जाती हैं। आर्थिक विकास भी नए आयाम की उपलब्धता हेतु शिक्षा की भूमिका को नकार नहीं सकता।

आर्थिक विकास से आशय / Meaning of Economic Development

आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जो जन जन की आय में उत्तरोत्तर वृद्धि का सूचक है प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि उस राष्ट्र की आर्टिक प्रगति का सूचक है लेकिन सकल राष्ट्रीय आय सामान्यतः सकल राष्ट्रीय उत्पाद द्वारा तय होती है। भारतीय परिवेश में आर्थिक विकास वह अवधारणा है जो आर्थिक,सामाजिक,व सांस्कृतिक विकास में सकारात्मक योग देती है। परिवर्तन अवश्यम्भावी है लेकिन जब परिवर्तन राष्ट्र के आर्थिक उत्थान का कारण बने तो शैक्षिक उपादानों का महत्त्व स्वयं सिद्ध हो जाता है।

            जब देश के समस्त साधनों का कुशलतापूर्ण दोहन देशी साधनों द्वारा इस प्रकार किया जाता है कि उससे प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय सकारात्मक रूप से दीर्घ काल के लिए प्रभावित हो व मानव विकास सूचकांक व मानवीय जीवन स्तर प्रगति के उत्तरोत्तर सोपान तय करने लगे तब यह आर्थिक विकास का द्योतक होगा।

            आर्थिक विकास की परिभाषा / Definition of Economic Development

कुछ विद्वानों के आर्थिक विकास सम्बन्धी विचारों को कृतज्ञता पूर्वक हम इसे अधिगमित करने हेतु प्रयुक्त कर सकते हैं।

 मेयर व बाल्डविन महोदय के अनुसार-

“आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थ व्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय दीर्घकाल में बढ़ती है।”

 “Economic development is the process by which the real national income of an economy increases in the long run.”

 विलियमसन तथा बर्टिक ने कहा कि

 “आर्थिक विकास उस प्रक्रिया को सूचित करता है जिसके द्वारा किसी देश अथवा प्रदेश के निवासी उपलब्ध संसाधनों का अयोग प्रति व्यक्ति वस्तु व सेवाओं के उत्पादन में नियमित वृद्धि के लिए करते हैं।” 

“Economic development refers to the process by which the residents of a country or region utilize the available resources for a steady increase in per capita production of goods and services.”

जैकब वाइनर ने आर्थिक विकास को  पारिभाषित करते हुए कहा कि-

 ”आर्थिक विकास प्रति व्यक्ति आय के स्तरों में वृद्धि अथवा आय के विद्यमान उच्च स्तरों के अनुरक्षण से संबन्धित है।”

“Economic development is related to increase in the levels of per capita income or maintenance of existing high levels of income.”

आर्थिक विकास के घटक / Components of Economic Development

मानव समाज की इकाई है सामाजिक आर्थिक स्तर का उन्नयन मानव की आर्थिक प्रगति से सीधे सम्बन्ध रखती है आर्थिक विकास के सुनिश्चयन हेतु निम्न घटक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।

1 – मानवीय घटक

i – अनुकूल वातावरण / friendly environment

ii – सक्षम प्रबन्धन / Efficient Management

iii – कुशल श्रमिक / Skilled workers

iv – उत्तम विकास योजना /Good development plan

v – आत्म प्रेरणा / self motivation

vi – उच्च स्तरीय तकनीकी प्रशिक्षण /high level technical training

vii – मानवीय शक्ति / human power

2 – आर्थिक घटक

i – सुदृढ़ परिवहन व्यवस्था / Strong Transport System

ii – प्राकृतिक संसाधन / Natural Resources 

iii – पूँजी /Capital

iv – जनसँख्या / Population

v – तकनीकी प्रगति /Technological Progress

vi – पूँजी उत्पादन अनुपात / Capital Output Ratio

vii – शासकीय नीतियाँ / Government Policies

आर्थिक विकास के उद्देश्य / Aims of Economic Development –

भारत में विविध पञ्च वर्षीय योजनाओं द्वारा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के प्रयास हुए लेकिन गलत आर्थिक नियोजन व स्वार्थपरता के कारण वे सम्यक गति न पकड़ सके। सैद्धान्तिक रूप से इनमें निम्न उद्देश्य पारिलक्षित हुए –

01 – आर्थिक विकास को गति /Speed ​​up economic development

02 – आत्मनिर्भरता / Self reliance

03 – रोजगार की उपलब्धता / Availability of employment

04 – गरीबी उन्मूलन / Poverty Alleviation

05 – निवेश वृद्धि / Investment Growth

06 – कुशल श्रम में वृद्धि / Increase in skilled labor

07 – गरीबी अमीरी की खाई कम करना / Reducing the gap between poverty and wealth

08 – स्वदेशी को बढ़ावा / Promotion of indigenous

आर्थिक विकास  शिक्षा का योगदान /Contribution of Education to Economic Development

1 – कुशल श्रम की उपलब्धता / Availability of skilled labor

2 – विविध परिक्षेत्र हेतु विशेषज्ञ /Specialist for various fields

3 – तकनीकी क्रान्ति /Technological revolution

4 – ग्रामीण उद्योगों हेतु प्रशिक्षण / Training for Rural Industries

5 – कार्य कुशलता में वृद्धि / Increase work efficiency

6 – उच्च शिक्षा को प्रश्रय / Patronage of higher education

7 – प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग /Use of natural resources

8 – सम्यक प्रबन्धन /Proper management

उक्त विवेचन यह स्पष्ट करता है कि बिना शिक्षा के प्रगति को पंख नहीं लग सकते यदि बदलती दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलना है तो आर्थिक प्रगति का सुनिश्चयन करना ही होगा जो बिना गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के सम्भव नहीं।

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शिक्षा

Liberalization / उदारीकरण

May 4, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

उदारीकरण से आशय / Meaning of Liberalization

आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद कुछ सङ्कीर्ण नेतृत्व शक्तियों की स्वार्थपरता के कारण घाटे का सौदा रहा है और हमारी उदारता हमें बहुत भारी पड़ी है एक रुपया बराबर एक डॉलर से प्रारम्भ सफर आज रुपए के भारी अवमूल्यन तक जा पहुँचा है। उदारीकरण विश्व बन्धुत्व या वैश्विक परिवार के विचार तले पनपने वाली सह अस्तित्व वाली विचार धारा है।

यहाँ जिस उदारीकरण की बात की जा रही है वह शैक्षिक परिक्षेत्र से सम्बन्धित है। पहले राजा, जमींदार, प्रजा, कारिन्दे  आदि शब्द आम थे और शासक वर्ग व कार्य करने वाले वर्ग हेतु अलग अलग तरह की शिक्षा का प्रावधान था और यह अन्तर कार्य की प्रकृति के कारण था धीरे धीरे राजा राजवाड़ा वाली व्यवस्था बदल गई और शिक्षा का भेद भी पुरानी बात हो गई। आज अधिकाँश जगह लोकतान्त्रिक व्यवस्था है और शिक्षा की एक उदार व्यवस्था है जो किसी से कोई भेद नहीं करती।

उदारवादी शिक्षा से आशय  / Meaning of liberal education –

            वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य यह परिलक्षित करता है कि आज सभी को सभी विषय पढ़ने का अधिकार है। योग्यता, रूचि और आर्थिक क्षमता के आधार पर किसी भी शैक्षिक विषय का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है इसी को उदारवादी शिक्षा के नाम से जाना जाता है।

प्रसिद्द शिक्षाविद सुरेश भटनागर व मुनेन्द्र कुमार अपनी पुस्तक ‘समकालीन भारत और शिक्षा’ में लिखते हैं –

“उदार शिक्षा सामान्य शिक्षा है, जिसमें साहित्य, कला, सङ्गीत, इतिहास,नीति शास्त्र,राजनीति आदि की शिक्षा की प्रधानता होती है।”   

 “Liberal education is general education, in which education of literature, art, music, history, ethics, politics, etc. has priority.”

इन विद्वानों ने उदारवादी शिक्षा से इतर अर्थों में उपयोगिता वादी शिक्षा को लेते हुए कहा –

“उपयोगितावादी शिक्षा में आर्थिक प्रश्न जुड़े रहते हैं। यह व्यावसायिक, कार्योन्मुख, क्रिया केन्द्रित, अर्थोपार्जन व जीविको पार्जन के उद्देश्यों को लेकर चलती है। इसमें कला, शिल्प, व्यवसाय, रोजगार परक विषयों की प्रधानता होती है।” 

“Economic questions remain attached to utilitarian education. It runs for the purposes of vocational, work-oriented, activity-oriented, earning and earning a living. There is importance of art, craft, business, employment-oriented subjects in this.”

            आज की उदारवादी शिक्षा में उक्त दोनों के दर्शन होते हैं व्यवहार में कोइ भेद नहीं दीखता। कतिपय विद्वान् आज के परिदृश्य में उदारवादी और उपयोगितावादी शिक्षा के विचार की उपादेयता नहीं स्वीकारते।

उदारवादी शिक्षा का महत्त्व / Importance of liberal education :-

वर्तमान परिदृश्य हमें उदार होने हेतु निर्देशित अवश्य करता है लेकिन पूर्ण सावधानी की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। हमें ध्यान रखना होगा की हमारी उदारता हमें और आने वाली पीढ़ी के लिए नुकसान दायक न बन पड़े। निःस्वार्थ भाव से और सचेष्ट रहकर उदारवादी शिक्षा अपनाने के महत्त्व को इस प्रकार बिन्दुवार वर्णित किया जा सकता है –

1 – आत्म अनुशासन स्थापन / Self discipline

2 – उत्तरदायित्व युक्त स्वतन्त्रता / Freedom with responsibility

3 – सकारात्मक व्यक्तिगत उद्देश्य निर्धारण / Positive personal goal setting

4 – संस्थागत उच्च प्रतिमान स्थापन / Institutional high standard setting

5 – सह अस्तित्व धारणा का विकास / Development of coexistence concept

6 – ध्येय उन्मुख / Goal oriented

7 – स्वावलम्बन व उच्च आदर्श स्थापन / Self reliance and high ideal setting

8 – सद्प्रेरणा / motivation

9 – संस्कृति व सभ्यता का संरक्षण व विकास / Protection and development of culture and civilization

उदारीकरण का मूल्याँकन / Evaluation of Liberalization

उदारीकरण के निष्पक्ष मूल्याङ्कन हेतु उसके लाभों और सीमाओं पर दृष्टिपात करना आवश्यक है आइए इस के प्रमुख बिन्दुओं पर विचार करते हैं।

उदारीकरण के लाभ / Benefits of liberalization –

1 – स्वस्थ प्रतिस्पर्धा / healthy competition

2 – विश्व स्तरीय उत्पादन /World class production

3 – उत्पादन क्षमता में वृद्धि / Increased production capacity

4 – तुलनात्मक ज्ञानात्मक वृद्धि / Comparative cognitive growth

5 – शोध स्तर का उच्चीकरण / Upgradation of research level

6 – तुलनात्मक अध्ययन सम्भव / Comparative study possible

उदारीकरण की सीमाएं / Limitations of Liberalization –

उदारीकरण के लाभ अधिकाँश सैद्धान्तिक हैं व्यावहारिक रूप से इसकी कमियाँ जग जाहिर हैं जिन देशों में राष्ट्रवादी ज्वार देखने को नहीं मिलता या काम मिलता है वहाँ इसके नकारात्मक प्रभाव अधिक देखने को मिलते हैं। यथा –

1 – स्वदेशी उद्योगों पर सङ्कट / Crisis on indigenous industries

2 – बहुराष्ट्रीय उद्योगों का बेलगाम प्रभाव / Rampant influence of multinationals

3 – शोध साहित्य की निर्बाध चोरी / Open plagiarism

4 – मूल्यों में अवनमन / Depression in Values

5 – राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा / Promotion of political corruption

6 – मुद्रा अवमूल्यन / Currency devaluation

7 – राष्ट्रीय हितों का ह्रास / Loss of national interest

8 – स्वदेशी तकनीक को नुकसान / Loss of indigenous technology

9 – अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा / Unhealthy competition

            उदारीकरण के सच्चे लाभ आदर्श वैश्विक परिदृश्य में ही सम्भव है सारे राष्ट्र अपने दृष्टिकोण से विचार करते हैं और अभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है सारे राष्ट्र, विश्व को एक परिवार मानने लगे इसीलिये भारत को बहुत सोच समझ कर सीमित उदारीकरण को राष्ट्रोत्थान के दृष्टिकोण से करना होगा। स्वयम पहल करके विश्व स्तरीय नेतृत्व को दिशा दी जा सकती है लेकिन हवन करते हाथ नहीं जलने चाहिए।

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शिक्षा

CONCEPT AND CHARACTERISTICS OF CULTURE

March 18, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

संस्कृति की अवधारणा व विशेषताएं

संस्कृति शब्द का उच्चारण होते ही हमारा अन्तर्मन मर्यादा का बोध करने लगता है साधारणतः संस्कृति में वह सब कुछ संयुक्त होता है जो मानव द्वारा समाज में रहकर जाना जाता है कलाएं, कानून, नैतिकता, धार्मिक परम्पराएँ, शिष्टाचार मर्यादाएं, रीति रिवाज, व्यवहार, सङ्गीत, भाषा, साहित्य आदि सभी कुछ इसमें शामिल है।

CONCEPT OF CULTURE (संस्कृति की अवधारणा)

संस्कृति की अवधारणा को समझने हेतु कुछ विज्ञजनों की संस्कृति के आशय को इंगित करने वाली परिभाषाओं के आलोक में समझने का प्रयास करते हैं। प्रसिद्द समाजशास्त्री मैकाइवर एण्ड पेज के शब्दों में –

“Culture is the expression of our nature in our modes of living and of thinking, in our everyday intercourse in art, in literature, in religion, in recreation and in enjoyment.”- Meciver and page

“हमारे रहने, विचार करने प्रतिदिन के कार्यों, कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन और आनन्द में संस्कृति हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।”

लुण्डवर्ग महोदय संस्कृति की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहते हैं –

“Culture may be defined as a system of socially acquired and transferred standard to judgement, belief and conduct, as well as the symbolic and material products of the resulting conventional patterns of behavior.” –Lundberg

“संस्कृति को उस व्यवस्था के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम सामाजिक रूप से प्राप्त और आगामी पीढ़ियों को सञ्चरित कर दिए जाने वाले निर्णयों,विश्वासों, आचरणों तथा व्यवहार के परम्परागत प्रतिमानों से उत्पन्न होने वाले प्रतीकात्मक और और भौतिक तत्वों को सम्मिलित करते हैं।”

टायलर महोदय ने संस्कृति की अवधारणा को सुन्दर शब्दों में यूँ संजोया है –

“Culture is that complex whole which includes knowledge, beliefs, art, morals, law, customs and any other capabilities and habits acquired by man as a member of society.” – Tylor

“संस्कृति वह जटिल सम्पूर्णता है जिसमें ज्ञान,विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा तथा इसी प्रकार की ऐसी सभी क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है जिन्हे मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है। ”

यदि हम उक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करें तो एम०  एल० मित्तल के तत्सम्बन्धी ये विचार सत्य प्रतीत होते हैं। –

“किसी समुदाय या समाज के रहने सहने के समग्र तरीकों या जीवन विधि को संस्कृति कहते हैं। इसमें धर्म, कला, दर्शन, विज्ञान, आचार विचार, रीति रिवाज, रहन सहन, भाषा, वेशभूषा, खानपान, मशीनें, उपकरण, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था आदि सभी तत्व सम्मिलित होते हैं। ”

“The overall way of life or way of life of a community or society is called culture. It includes religion, art, philosophy, science, ethics, customs, living, language, costumes, food, machines, equipment, political and economic All the elements of system etc. are included.’’

CHARACTERISTICS OF CULTURE

संस्कृति की विशेषताएं

1 – संस्कृति अनुभव आधारित (Culture based on experience)

लुण्डवर्ग महोदय के अनुसार

“Culture is not related to a person’s innate tendencies or biological heritage, but it is based on social learning and experiences.”

 -Lundberg

“संस्कृति व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियों अथवा जैवकीय विरासत से सम्बन्धित नहीं होती, बल्कि यह सामाजिक सीख व अनुभवों पर आधारित होती है।”

2 – संस्कृति में स्थानान्तरण की शक्ति (The power of transference in culture)

3 – हर समाज में सांस्कृतिक विविधता (Cultural diversity in every society)

4 – संस्कृति में सामाजिकता का गुण (Sociability in culture)

ए ० डब्ल्यू० ग्रीन महोदय के अनुसार –

“Culture is the socially transmitted system of idealized ways in knowledge, practice and belief along with the artifacts that knowledge and practice maintain as they change in type.” – Green A.W.

“संस्कृति ज्ञान, व्यवहार, विकास की उन आदर्श पद्धतियों को तथा ज्ञान और व्यवहार से उत्पन्न हुए साधनों की व्यवस्था को कहते हैं, जो सामाजिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती हैं।”

5 – संस्कृति में अनुकूलन निहित (Adaptation inherent in culture)

6 – समाज का आदर्श संस्कृति है (Culture is the ideal of society)

इसीलिये व्हाइट महोदय को कहना पड़ा –

“Culture is a symbolic, continuous, cumulative and progressive process.”

“संस्कृति एक प्रतीकात्मक, निरन्तर, संचई और प्रगतिशील प्रक्रिया है।”

7 – संस्कृति, आवश्यकता पूर्ति में सक्षम (Culture, capable of meeting the need)

8 – मानवीय समाज की धरोहर (Heritage of human society)

रेडफील्ड महोदय के अनुसार –

“संस्कृति कला और उपकरणों से अभिव्यक्त परम्परागत ज्ञान का वह संगठित रूप है, जो परम्परा द्वारा संगठित होकर मानव समूह की विशेषता बन जाता है। ”

“Culture is the organised body of conventional understanding, manifest in art and artifact, which persisting through traditions, characterizes human group. – Redfield

उक्त अवधारणाओं व विशेषताओं के अध्ययन से यह पूर्णतः स्पष्ट भान होता है कि संस्कृति जन्मजात न होकर स्वीकार्य गुणों,  विचारों व व्यवहारों का समूह है जैसा वेरको व अन्य के इन विचारों से भी स्पष्ट  होता है – 

“Although the investigations of Social Scientists have shown that culture is not innate but learned, nevertheless the pressure to acquire this learning is so strong that is inescapable.” –Verco and others

“यद्यपि समाज शास्त्रियों की खोजों ने सिद्ध कर दिया है कि संस्कृति जन्मजात न होकर सीखी जाती है, फिर भी इनके सीखने को इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है कि इनकी अवहेलना नहीं की जा सकती।”

                                                        

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शिक्षा

FUNCTIONS OF EDUCATION शिक्षा के कार्य

January 8, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


शिक्षा वह उपागम है जो इसे धारण करने वाले व्यक्तित्व हेतु प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता है। इसके माध्यम से हमें वह दिशा मिलती है जो हमारे जीवन के उद्देश्य तय करने और उन्हें प्राप्त करने में हमारा सहयोग प्रदान करती है। विविध विद्वानों ने शिक्षा के कार्य सम्बन्धी अपने विचारों की शब्द माला का गुम्फन इस प्रकार किया है।

जॉन ड्यूवी महोदय कहते हैं –

“शिक्षा का कार्य असहाय प्राणी के विकास में सहायता पहुँचाना है, जिससे वह सुखी, नैतिक व कुशल मानव बन सके।”

“The work of education is to help in the development of a helpless creature so that it can become a happy, moral and efficient human being.”

डॉ जाकिर हुसैन महोदय का कहना है –

“शिक्षा का कार्य बालक के  मस्तिष्क को शुद्ध, नैतिक और बौद्धिक मूल्यों का अनुभव करने में इस प्रकार सहायता प्रदान करना है कि वह मूल्यों से प्रेरित होकर उनको सर्वोत्तम प्रकार से अपने कार्य और अपने जीवन में प्राप्त करें।”

“The function of education is to help the child to perceive pure, moral and intellectual values ​​in his mind in such a way that he is inspired by these values ​​to achieve them in the best possible way in his work and his life.”

रमन बिहारी लाल महोदय कहते हैं –

“सच बात तो यह है कि शिक्षा के अपने में कोई कार्य नहीं होते। कोई व्यक्ति, समाज अथवा राज्य शिक्षा के द्वारा जो प्राप्त करना चाहता है वे ही शिक्षा के उद्देश्य होते हैं और इन उद्देश्यों की पूर्ति करना ही शिक्षा के कार्य होते हैं।”

“The truth is that education does not have any functions in itself. What a person, society, or state wants to achieve through education are the objectives of education, and fulfilling these objectives is the function of education.”

शिक्षा के प्रमुख कार्यों का वर्गीकरण / Classification of major functions of education –

विविध परिभाषाओं का अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा को तत्कालीन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कुछ कार्य करने ही होते हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है –

A – व्यक्तिगत तथा सामाजिक विकास / Individual and Social Development

       (a) व्यक्तिगत विकास

(1) -उत्तम चरित्र की प्राप्ति

जर्मन विचारक हर्बर्ट महोदय कहते हैं –

“शिक्षा अच्छे नैतिक चरित्र का विकास है।”

“Education is the development of good moral character.”

(2) – व्यावसायिक कुशलता

स्पेन्सर महोदय कहते हैं कि –

“किसी भी व्यवसाय के लिए तैयार करना हमारी शिक्षा का मुख्य अंग है। ”

“Preparation for any vocation is a core part of our education.”

 (3) – व्यक्तित्व विकास

फ्रेडरिक ट्रेसी के अनुसार –

“सम्पूर्ण शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य व्यक्तित्व के आदर्श की पूर्ण प्राप्ति है।  यह आदर्श संतुलित एवम समग्र व्यक्तित्व है। ”

“The real aim of all education is the complete attainment of the ideal of personality. This ideal is a balanced and holistic personality.”

 (4) – वातावरण से समायोजन

टॉमसन महोदय के अनुसार –

“वातावरण शिक्षक है और शिक्षा का कार्य है छात्र को उस वातावरण के अनुकूल बनाना जिससे कि वह जीवित रह सके और अपनी मूल प्रवृत्तियों को संतुष्ट करने के लिए अधिक से अधिक संभव अवसर प्राप्त कर सके।”

“Environment is the teacher and the function of education is to adapt the student to that environment so he may live and get the maximum possible opportunities to satisfy his basic instincts.”

 (5) – आत्म निर्भरता

डॉ ० राधा कृष्णन महोदय कहते हैं –

“छात्रों को जीविका उपार्जन करने में सहायता देना शिक्षा का एक कार्य है।”

“To help the students to earn a living is one of the functions of Education.”

 (6) – मानसिक विकास

रमन बिहारी लाल महोदय के अनुसार  –

“मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है। शिक्षा के द्वारा उसका शारीरिक और मानसिक विकास होना ही चाहिए। ”

“Man is a psycho-physical being. He must have physical and mental development through education.”

 (7) – आध्यात्मिक चेतना का विकास

डॉ ० राधा कृष्णन महोदय के अनुसार –

“शिक्षा का उद्देश्य न तो राष्ट्रीय कुशलता है, न सांसारिक एकता अपितु व्यक्ति को यह अनुभूति कराना है कि उसके पास बुद्धि से भी परे एक तत्त्व है जिसे तुम चाहो तो आत्मा कह सकते हो।”

“The aim of Education is neither national efficiency nor world solidarity, but making the individual feel that he has something deeper than intellect, call it spirit if you like.’’

 (8) – जन्मजात शक्तियों का विकास

जर्मन शिक्षाशास्त्री पेस्टालोजी के अनुसार –

“शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील विकास है।”

“Education is a natural, harmonious, and progressive development of man’s innate powers.”

 (9) – समृद्धता –

ड्यूबी महोदय का विचार है –

“जीवन का मुख्य कार्य है प्रत्येक पग पर अपने अनुभवों द्वारा जीवन को समृद्ध करना।”

   “The main task of life is to enrich life with your experiences at every step.”

(b) सामाजिक विकास

1 – सामाजिक नियन्त्रण

2 – सामाजिक परिवर्तन–

रमन बिहारी लाल महोदय के अनुसार –

“शिक्षा मनुष्यों में अपनी भाषा, रहन सहन, खानपान एवं व्यवहार की विधियों और रीतिरिवाजों में अपने अनुभवों के आधार पर आवश्यक परिवर्तन एवं विकास की क्षमता पैदा करती हैं और वे इन सबमें निरन्तर परिवर्तन एवं विकास करते हैं। इसे समाजशास्त्रीय भाषा में सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।”

“Education inculcates in human beings the capacity for necessary change and development in their language, living conditions, food and behavior methods, and customs on the basis of their experiences, and they continuously change and develop in all these. This is called the social change in sociological language.”

3 – सामाजिक सुधार

4 – संस्कृति का संरक्षण, हस्तान्तरण व विकास 

5 – राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्ति

6 – सामाजिक सकारात्मक भावना

एच ० गार्डन महोदय के अनुसार –

“शिक्षक को यह जानना आवश्यक है की उसे सामाजिक प्रक्रिया को उन व्यक्तियों को समझाना चाहिए, जो इसे समझने में असमर्थ हैं।”

“It is necessary for the teacher to know that he should explain the social process to those persons who are unable to understand it.”

B – सांस्कृतिक विरासत का सम्प्रेषण / Transmission of cultural heritage

शिक्षा वह साधन है जिसके माध्यम से यह महत्त्व पूर्ण कार्य सम्पादित होता है इस हेतु वह इन कार्यों को करती है –

1 – संरक्षण / Protection

2 – विकास / Development

3 – हस्तान्तरण /Transfer

4 – सांस्कृतिक विलम्बन में कमी /Reduction of cultural lag

5 – गतिशीलता / Mobility

6 – विविध संस्कृतियों से समायोजन / Adjusting to Diverse Cultures

C – कौशलों का अर्जन / Acquisition of skills – आज प्रतिस्पर्धा का युग है और इसमें ठीके रहने के लिए यह परम आवश्यक है कि स्वप्रगति के सुनिश्चयीकरण हेतु कौशलों का निरंतर अर्जन किया जाए। शिक्षा इन कौशलों का सुदृढ़ीकरण हेतु इन कौशलों को अर्जित कराने का कार्य करती है –

1 – भाषाई कुशलता / Linguistic Proficiency

2 – सृजनात्मक कुशलता / Creative skills

3 – व्यावसायिक कुशलता / Professional skills

स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार –

“केवल पुस्तकीय ज्ञान से काम नहीं चलेगा। हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे कोई व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके।”

“Mere bookish knowledge will not do. We need that education by which a person can stand on his own feet.”

4 – सामाजिक कुशलता / Social skills

5 – प्रतिस्पर्धात्मक कुशलता / Competitive Proficiency

D – मानव मूल्यों का अर्जन व उत्पादन / Acquisition and generation of human values

आज विविध परिक्षेत्र में मानवीय मूल्यों का अवनमन दीख पड़ता है अतः शिक्षा को निम्न कार्य अवश्यमेव सम्पादित करने होंगे। –

→ सामाजिक मूल्य / Social values

→ आर्थिक मूल्य / Economic values

→ राजनैतिक मूल्य / Political values

→ सांस्कृतिक मूल्य / Cultural values

E – अवकाश हेतु शिक्षा /Education for leisure

→ स्वास्थ्य व्यवस्थापन / Health Management

→ भविष्य व्यवस्थापन / Future Management

→ सशक्त सम्बन्ध स्थापन / Strong Relationship Establishment

→ मनः रञ्जन / Entertainment

→ आत्मनिरीक्षण / Introspection

F – सामाजिक एकजुटता / Social Cohesion

→ सहिष्णुता विकास / Tolerance development

→ सह अस्तित्व बोध / Coexistence sense

→ प्रगति उन्मुखता / Progress orientation

→ सामाजिक निष्ठा बोध / Social loyalty

→ लोचशीलता / Flexibility

G – राष्ट्रीय एकता हेतु शिक्षा / Education for National Integration

1 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा / Through co-curricular activities

2 – आध्यात्मिक चेतना विकास / Spiritual consciousness development

3 – अधिकार व कर्त्तव्य ज्ञान / Rights and  duty knowledge

4 – राष्ट्रीय लक्ष्य बोध / National vision

5 -सामाजिक कर्त्तव्य बोध / Sense of social duty

6 – परिवर्तन ग्राह्यता / Change susceptibility

7 – धार्मिक सहिष्णुता / Religious tolerance

8 – भावात्मक एकता विकास / Emotional integration development

       जवाहर लाल नेहरू ने कहा –

 ” भावात्मक एकता से अभिप्राय, अलगाव की भावना का दमन तथा मस्तिष्क एवं ह्रदय की एकता से है।”

“By Emotional integration, I mean the integration of our minds and hearts, the suppression of the feelings of separation.”

H – अन्तर्राष्ट्रीय समझ हेतु शिक्षा / Education for Inter-National understanding

अन्तर्राष्ट्रीय परिक्षेत्र में शिक्षार्थियों की समझ में अभिवृद्धि हेतु शिक्षा को निम्न कार्यों को यथायोग्य गुणवत्ता पूर्ण ढंग से करना होगा जिसके प्रभावी परिणाम देखने को मिलेंगे।

1 – अन्तर्राष्ट्रीय पहचान रखने वाले व्यक्तित्वों से परिचयी करण / Introduction to personalities having international identity – जन्मदिन, निर्वाण दिवस, विशिष्ट कार्य सम्पादन दिवस मनाकर / By celebrating Birthday, Nirvana Day, Special Work Achievement Day

2 – विशिष्ट अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्वों के ऑडियो वीडिओ क्लिप द्वारा / By Audio video clips of eminent international personalities.

3 – अन्तर्राष्ट्रीय क्रीड़ा प्रतिस्पर्धा का आयोजन / Organization of international sports competition

4 – अन्तर्राष्ट्रीय साझा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन / Organizing International Shared Cultural Program

5 – भ्रमण द्वारा / by excursion

6 – शैक्षिक आदान प्रदान / – Academic Exchange

7 – शिक्षण विधि में सम्यक परिवर्तन / Due change in teaching method

8 – विविध भाषा में शोध परिणाम अनुवाद / Translation of research results in various languages

I – मानव संसाधन हेतु शिक्षा / Education for Human Resource Development –

आज भारत व चीन अधिक जनसँख्या वाले देशों की श्रेणी में आते हैं लेकिन जब अधिसंख्य जनसँख्या उत्पादक कार्यो से जुड़ जाती है तो यही जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में देश को विकसित करने में योग देती है और शिक्षा मानव संसाधन के विकास में योग की दर को बढ़ाने का श्रेष्ठतम साधन है इसके द्वारा ही विविध कार्यों हेतु कौशल सिखाए जाते हैं। आज के तमाम प्रशिक्षण कॉलेज इस पावन कर्म में लगे हैं। मानव संसाधन का जितना अच्छा प्रयोग जो देश करेगा वह उतनी तीव्रता से प्रगति करेगा। प्राइवेट और सरकारी दोनों परिक्षेत्रों को इस दिशा में तीव्र प्रयास करने होंगे।

उक्त परिक्षेत्रों के अतिरिक्त आज और बहुत से कार्य शिक्षा के गिनाये जा सकते हैं और इनमे बदलते सामाजिक उद्देश्यों के साथ परिवर्तन होता रहेगा।

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शिक्षा

Globalization / वैश्वीकरण)

December 29, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


वैश्वीकरण का अर्थ (Meaning of Globalization) –

वैश्वीकरण विचारों का वह प्रवाह है जिससे सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित होता है, वैश्वीकरण आंग्ल भाषा के शब्द Globalization का हिन्दी रूपान्तरण है विकिपीडिया के अनुसार – वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपान्तरण की प्रक्रिया है इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताक़तों का एक संयोजन है।

यद्यपि इसकी परिभाषा को लेकर विविध मत दिखाई पड़ते हैं ऐसा लगता है की वैश्वीकरण का चोला ओढ़कर भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा ही अपना प्रभाव दिखा रही है।

विकिपीडिया की इस परिभाषा को विविध विद्वानों द्वारा विशेष महत्त्व प्रदान किया गया –

“Globalization, or globalisation, is the process of interaction and integration among people, companies, and governments worldwide.” 

 “वैश्वीकरण, या वैश्वीकरण, दुनिया भर में लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच बातचीत और एकीकरण की प्रक्रिया है।”

टर्बर्टसन के अनुसार –

“Globalization is a concept that is related to the shrinking of the world and the consciousness and closeness of the whole world.”

“वैश्वीकरण एक ऐसी अवधारणा है जिसका सम्बन्ध विश्व के सिकुड़ने तथा पूरे विश्व की चेतना और घनिष्ठता से है।”

वैश्वीकरण को अधिगमित करने हेतु कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया में सम्पूर्ण जगत का एकीकरण एक परिवार के रूप में होता है और लोग अपनी आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक, और सामाजिक दूरियों को मिटाकर एकीकृत होते हैं। इससे भौगोलिक दूरियाँ सिमट जाती हैं।

वैश्वीकरण और शिक्षा (Globalization and Education)  –

वैश्वीकरण और शिक्षा आज एक दूसरे की आवश्यकता बन गए हैं जहाँ वैश्वीकरण हेतु शिक्षा की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता वहीं यह कहने में भी कोइ अतिशयोक्ति नहीं कि शिक्षा पर वैश्वीकरण का प्रभाव स्पष्ट पारिलक्षित होता है। ये दोनों आपस में एक दूसरे से इतने गुत्थमगुत्था हैं कि दोनों की एक दूसरे पर अन्योन्याश्रिता स्पष्ट महसूस की जा सकती है। इन सम्बन्धों को इन बिंदुओं द्वारा और स्पष्ट किया जा सकता है –

01 – उद्देश्य निर्धारण/Objective setting

02 – विविधता / Diversity

03 – व्यक्तिगत और सामाजिक विकास / Personal and Social Development

04 – श्रेष्ठ नागरिक निर्माण/ best citizen building

05 – संचार माध्यम का कुशल प्रयोग/Efficient use of media

06 – सांस्कृतिक उन्नयन/ Cultural upgrade

07 – जनतन्त्र अभ्युत्थान/ Democracy Resurgence

08 – स्वस्थ प्रतिस्पर्धा/ Healthy Competition

09 – समरसता वृद्धि/ Harmony Growth 

वैश्वीकरण का शिक्षा के उद्देश्यों पर प्रभाव (Impact of Globalization on the Objectives of Education) –

 वर्तमान समय यह माँग कर रहा है कि वैश्वीकरण की जरूरतों को समझा जाए और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन आज की आवश्यकता है .बदलते वैश्विक परिदृश्य में जहाँ स्व के मूल्यों, मौलिकताओं, संस्कृति व रीति रिवाजों का संरक्षण आवश्यक है वहीं वक़्त के साथ कदमताल भी आवश्यक है अतः वैश्वीकरण का शिक्षा के उद्देश्यों पर पड़ने वाले प्रभावों को सतर्कता के साथ अंगीकार करना होगा या नियन्त्रित रखना होगा . वर्तमान हेतु आवश्यक उद्देश्यों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

1 – सहअस्तित्व की स्वीकार्यता / Acceptance of coexistence

2 – वैश्विक एकता को बढ़ावा / Promoting global unity

3 – व्यापक दृष्टिकोण का विकास / Development of Broad Perspective

4 – स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक भावना का विकास / Development of healthy competitive spirit

5 – आधुनिकता का समावेशन / Absorption of modernity

6 – व्यावसायिक कुशलता को महत्त्व / Importance of professional skills

उक्त उद्देश्य आज के वैश्वीकरण की आवश्यकता भी हैं और मानव के संरक्षण हेतु आवश्यक भी अतः इन्हें शिक्षा को अंगीकार करना ही होगा .

वैश्वीकरण का मूल्याँकन / Evaluation of globalization –

 वर्तमान ने मानव को उस स्थल पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ प्राचीन भारतीय सह अस्तित्व व सह विकास के भाव का पोषण वैश्वीकरण के रूप में पारिलक्षित हुआ है .वैश्वीकरण के मूल्यांकन हेतु उसके लाभ व सीमांकन का विश्लेषण करना समीचीन होगा .जिसे इस प्रकार क्रम दे सकते हैं .

वैश्वीकरण से लाभ / Benefits from globalization –

1 – विश्व व्यापार को बढ़ावा / boost world trade

2 – वैश्विक समस्या का समाधान / global problem solving

3 – विश्व बन्धुत्व को बढ़ावा / promotion of universal brotherhood

4 – तकनीकी सुविधाओं का विकास / development of technical facilities

5 – वैश्विक ज्ञान प्राप्ति / global knowledge acquisition

6 – राष्ट्रीय सशक्तीकरण / national empowerment

वैश्वीकरण की सीमाएं / Limitations of Globalization –

1 – अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा / unhealthy competition

2 – नैतिक मूल्य अवनमन / moral degradation

3 – राष्ट्रीय आय दुष्प्रभावित / national income affected

4 – प्रतिभा पलायन / brain drain

5 – नव शिक्षण प्रतिभा विकास में बाधक / Barriers to new teaching talent development

6 – विकासशील राष्ट्रों को क्षति / damage to developing nations

उक्त लाभों व सीमाओं को दृष्टिगत रखते हुए यह महसूस किया जा सकता है कि वैश्वीकरण आज की आवश्यकता है लेकिन प्रत्येक राष्ट्र को इसे राष्ट्रोन्नयन के आलोक में देखना होगा. बिना सहअस्तित्व व परस्पर सहयोग की भावना विकसित हुए वैश्वीकरण के सात्विक लक्ष्यों की प्राप्ति दूर की कौड़ी ही सिद्ध होगी. यद्यपि इसके सकारात्मक प्रभाव अधिक पारिलक्षित होते हैं और यह उचित ही होगा कि समस्त राष्ट्र सकारात्मकता के आलोक में सामान आचार संहिता बना तत्सम्बन्धी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करें .

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शिक्षा

प्रत्यक्षीकरण / PERCEPTION

November 2, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रत्यक्षीकरण से आशय / Meaning of perception-

ज्ञानात्मक मानसिक क्रिया को प्रत्यक्षीकरण कहा जाता है इसके द्वारा ज्ञान चक्षुओं द्वारा किसी की भी उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है कुछ विचारक संवेदी उत्तेजना व परिणामी संवेदना के बीच प्रयुक्त चर को प्रत्यक्षीकरण स्वीकार करते हैं।

चैपलिन (19750) महोदय कहते हैं –

“Perception is an interviewing variable inferred from the organism’s ability to discriminate among stimuli.”  

“प्रत्यक्षीकरण एक मध्यवर्ती चर है जिसका अनुमान उत्तेजनाओं के बीच प्राणी द्वारा भेदीकरण की योग्यता से होता है।”

वास्तव में प्रत्यक्षीकरण वह है जिसका इन्द्रियों द्वारा बोध होता है इसी से एक विशेष दृष्टिकोण का निर्माण या विकास होता है और हम कोई राय को बनाते हैं।

यह स्वीकार करना भी तर्क संगत होगा कि –

प्रत्यक्षीकरण =  संवेदना + अर्थ + सोच + स्मृति 

यह परिस्तिथि का अपरोक्ष बोध कराने वाली मानसिक प्रक्रिया है इसक अर्थ संवेदनाओं के व्याख्या करने से भी लिया जा सकता है।

सामाजिक प्रत्यक्षीकरण / SOCIAL PERCEPTION –

सामाजिक प्रत्यक्षीकरण के प्रत्यय का विकास समय 1940 स्वीकारा जाता है कुछ मनोवैज्ञानिक ऐसे भी हुए जिन्होंने व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण को ही सामाजिक प्रत्यक्षीकरण स्वीकार किया। हीडर (1958) महोदय ने कहा कि –

“We shall speak of thing perception as non social perception when we mean the perception of inanimate objects,  and of person perception when we mean the perception of another person.” 

“निर्जीव वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण को गैर सामाजिक प्रत्यक्षीकरण व व्यक्तियों के प्रत्यक्षीकरण को सामाजिक प्रत्यक्षीकरण कहते हैं।”

बैरोन व बिर्ने (1969) महोदय के अनुसार –

“Social perception is the process through which we seek to know and under land other persons.”

“सामाजिक प्रत्यक्षीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम दूसरे व्यक्ति को जानने समझने का प्रयास करते हैं।” 

 उक्त परिभाषाएं यह कहने में सक्षम हैं कि

 (A) – सामाजिक प्रत्यक्षीकरण से समाज व व्यक्ति दूसरे समाज व व्यक्ति को समझने का प्रयास करता है।

 (B) – इससे एक दूसरे के प्रति धारणा बनाने में मदद मिलती है।

 (C) – व्यक्ति स्वयं को भी उस सामाजिक परिवेश में समझने का प्रयास करता है।

प्रत्यक्षीकरण के निर्धारक / Determinants of perception –

प्रत्यक्षीकरण के अन्तर्गत व्यक्ति  प्रत्यक्षीकरण, स्व प्रत्यक्षीकरण, सामाजिक प्रत्यक्षीकरण की विवेचना की जाती है। वर्तमान के विविध विद्वानों के विचार विश्लेषण के आधार पर प्रत्यक्षीकरण निर्धारकों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है :-

1 – उत्तेजना कारक (Stimulus Factors) – उत्तेजना कारक से आशय उन व्यक्ति सम्बन्धी कारकों से है जिनके आधार पर एक दूसरे का विश्लेषण कर राय का निर्धारण किया जाता है। उदाहरणार्थ – एक दूसरे से होने वाला प्यार बहुत कुछ उत्तेजना कारकों पर निर्भर करता है। यह विविध निर्णयों का आधार बनाता है। उत्तेजना कारकों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है –

अशाब्दिक संकेत / Nonverbal cues – जब हम किसी को प्रत्यक्षतः देखते हैं तो इस प्रत्यक्षीकरण में सामने वाले की शरीर रचना व शील गुणों का प्रभाव प्रथम दृष्टिवा पड़ता है इसीलिये विभिन्न विद्वतजन शरीर रचना व व्यक्तित्व संगठन के बीच गहन सम्बन्धों की स्वीकारोक्ति देते हैं। देखने को मिलता है कि इस आधार पर लोग राय बना लेते हैं और निर्णय तक पहुंचते हैं लेकिन इस धारणा निर्माण की प्रक्रिया में बहुत से मध्यवर्ती चर भी सक्रिय  हो जाते हैं। क्रेशमर (Kretchmer,1925) कहते हैं –

“मोटे तथा नाटे शरीर वाले लोग सुस्त,खुशमिजाज,मिलनसार,तथा आरामतलब होते हैं। दुबले, पतले तथा  लम्बे शरीर वाले लोग सक्रिय, चिड़चिड़े, तथा क्रोधी होते हैं। सुगठित शरीर वाले लोग सामाजिक, सन्तुलित तथा फुर्तीले होते हैं।”

a – शारीरिक हावभाव व मुद्रा (Body gesture and posture) – अलग अलग संस्कृतियों के लोगों के शरीर विविध हाव भाव व मुद्रा प्रदर्शित करते हैं। जिनमें अन्तर दीख पड़ता है। यथा चुम्बन लेना, आलिङ्गन करना, हाथ मिलाना, स्पर्श करना आदि।

शरीर मुद्रा से वैर भाव, तनाव, व विभिन्न संवेगों का परिचय मिलता है विविध अध्ययनों ने भी शारीरिक मुद्राओं और उसके विभिन्न शील गुणों के बीच सम्बन्धों के प्रमाण दिए हैं।

b – मुखाकृति / Facial Expressions –

यह भी एक अशाब्दिक संकेत स्वीकार किया जाता है तथा विभिन्न विद्वानों ने इसके आधार पर भी अपना विवेचन प्रस्तुत किया है। सेकर्ड 1945 के अनुसार – काले मोटे चमड़े वाले लोगों को वैरपूर्ण, घमण्डी, बेईमान,आदि समझा जाता है।

एक अन्य अध्ययन में सेकर्ड तथा मुथार्ड 1955 के अनुसार –

मोटी त्वचा वाले व्यक्तियों को प्रायः घटिया, गँवार व असंवेदनशील समझा जाता है। ऊँची पेशानी को तीव्र बुद्धि का संकेत माना जाता है।

उक्त अध्ययनों के आधार पर कहा जा सकता है की मुखाकृति प्रत्यक्षीकरण का एक प्रमुख कारक है।    

 c – आवाज – इसे उत्तेजना कारकों में गिना जाता है। व्यक्ति की बोल चाल व प्रभावशीलता के आधार पर बहुत से निर्णय लिए जाते हैं। बोलने की गति, लहजा, उच्चारण, तथ्य प्रस्तुतीकरण से विविध तथ्यों यथा उसका समुदाय, परिवार, संस्कार आदि का पता चलता है।

d – पहनावा व रहन सहन – अशाब्दिक प्रत्यक्षीकरण का महत्त्वपूर्ण उपागम पहनावा व रहन सहन है इसके आधार पर महिला, पुरुष, हिन्दू, मुस्लिम, सिख आदि को पहचाना जा सकता है। वर्दी देखकर अलग अलग सुरक्षा संवर्ग के लोगों को पहचाना जा सकता है। रहन सहन के अंदाज भी प्रत्यक्षीकरण में सहयोग करते हैं।

2 – प्रत्यक्षीकरणकर्त्ता निर्धारक / Perceiver Determinants –

यह अक्षरशः सत्य है कि प्रत्यक्षीकरण करने वाले का दृष्टिकोण तत्सम्बन्धी धारणा के गठन में महत्त्वपूर्ण है एक ही व्यक्ति किसी का भाई, किसी का पिता, किसी का बेटा, किसी का प्रेमी और किसी का पति, रूप में देखा जाता है। प्रत्यक्षीकरण की इस विभिन्नता का कारण वह व्यक्ति नहीं बल्कि प्रत्यक्षीकरण करने वाले लोग हैं। प्रत्यक्षीकरणकर्त्ता निर्धारकों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।

a - संज्ञानात्मक योग्यता /Cognitive ability – 

प्रत्यक्षीकरण करने वाले की संज्ञानात्मक योग्यता का सीधा असर प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है यह सर्व विदित है की अधिक बुद्धिमान व्यक्ति का प्रत्यक्षीकरण स्तर कम बुद्धिमान व्यक्ति से अच्छा व सटीक होगा। अपनी योग्यता के कारण वह तुलनात्मक रूप से श्रेष्ठ धारणा निर्माण में सक्षम होगा।

b - संज्ञानात्मक प्रणाली/Cognitive system - 

व्यक्ति के व्यवहार में सैद्धान्तिक व व्यावहारिक आधार पर अंतर देखने को मिलता है एक व्यावहारिक परिक्षेत्र में रहने वाला सैद्धांतिक की तुलना में अच्छा प्रत्यक्षीकरण कर सकेगा। ऐसा बहुधा देखने को  मिलता है। व्यावहारिक क्षमता वाले व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ जाती है इस लिए वह प्रत्यक्षीकरण व निर्णयन में अधिक सक्षम हो जाता है।

C-संज्ञानात्मक जटिलता/cognitive complexity - संज्ञानात्मक जटिलता अधिक होने पर बारीकी से और विशेष ध्यान पूर्वक प्रत्यक्षीकरण की क्रिया को अंजाम दिया जाता है। बीरी (1955) के अनुसार - 

निरीक्षक की संज्ञानात्मकता जटिलता का निश्चित प्रभाव व्यक्ति के प्रति उसके प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है।

d - उदारवाद व रूढ़िवाद/Liberalism and conservatism- 
यह दोनों ही प्रत्यक्षीकरण को प्रभावित करते हैं। ये दोनों ही हठधर्मिता को प्रश्रय देते हैं इससे सही प्रत्यक्षीकरण मुश्किल हो जाता है,
चैपलिन (1975) के अनुसार -

उदारवादी व्यक्ति की अपेक्षा रूढ़िवादी व्यक्ति के निर्णय पर पुराने मूल्यों तथा परम्परावादी उन्मुखता का प्रभाव अधिक देखा जाता है।

मैक क्लोस्की(1958)  ने अपने अध्ययन के परिणाम स्वरुप पाया कि –

रूढ़िवादी लोग अपने प्रत्यक्षीकरण व निर्णय में दृढ़, असहनशील, अटल, तथा जिद्दी होते हैं।

e – पूर्व धारणा / Prejudice–

कोई भी पूर्व धारणा प्रत्यक्षीकरण पर अनुकूल प्रभाव नहीं डालती। प्रजातीय, धार्मिक, जातिगत, यौन, सम्प्रदायगत पूर्व धारणाएं निष्पक्ष प्रत्यक्षीकरण की बाधा बनती हैं। यह  बाधा प्रत्यक्ष भी हो सकती है और अपत्यक्ष भी। हम अपने समुदाय, वर्ग, धर्म, जाति का जो प्रत्यक्षीकरण करते हैं वैसा दूसरे समुदाय,वर्ग, धर्म, जाति  का नहीं अर्थात पूर्व धारणा का प्रभाव प्रत्यक्षीकरण पर स्पष्ट रूप से पड़ता है।

f – यौन भिन्नता / Sex difference –

दैनिक जीवन के विविध अनुभवों व विविध अध्ययन ये स्पष्ट करते हैं कि प्रत्यक्षीकरण पर यौन भिन्नता का प्रभाव दृष्टिगत होता है। कभी इस आधार पर निर्णय में देरी होती है मैं 28 अक्टूबर 2022 को दैनिक जागरण, मुरादाबाद  की एक खबर की और आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा जिसमें कहा गया कि –

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने एक ऐतिहासिक कदम  उठाते हुए महिला और पुरुष क्रिकेटरों को सामान मैच फीस देने का फैसला किया है। बीसीसीआइ सचिव जय शाह ने यह घोषणा की।

g – आयु /Age – विविध अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि आयु का प्रभाव प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है अधिक आयु के व्यक्ति की मनोवृत्ति, आवश्यकता, आकांक्षा, सपने और युवा आयु की सोच और प्रत्यक्षीकरण में अंतर स्वाभाविक है। परिपक्वता, बुद्धिमत्ता, अनुभव जो आयु बढ़ने के साथ मिलते हैं प्रत्यक्षीकरण पर प्रभाव डालते हैं। कई अध्ययन इस बात को प्रमाणित करते हैं कि कम उम्र की अपेक्षा अधिक उम्र के लोग मानवजातीय पूर्वधारणाओं पक्षपातों से अधिक पीड़ित होते हैं।

इसके अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे कारक हैं जो प्रत्यक्षीकरण को प्रभावित करते हैं इस पर स्थान, समय, सत्ता सभी का प्रभाव पारिलक्षित होता है। यह संस्कृति, संस्कार, परिवेश, चिन्तन आदि कारकों से भी प्रभावित होता है। यह व्यक्ति व्यक्ति व सामाजिक भिन्नताओं में भी अलग अलग होता है।

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शिक्षा

EDUCATION IN VEDIC PERIOD

October 28, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


वैदिक काल में शिक्षा

वैदिक शिक्षा से आशय / Meaning of Vedic education

वैदिक शिक्षा से आशय उस शिक्षा से है जो मानव का सर्वाङ्गीण विकास कर सके और वह जीवन का परम लक्ष्य धर्म के मार्ग पर चलकर प्राप्त कर सके। इन अर्थों को समाहित करते हुए अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“Education was regarded as a source of illumination and power which transforms and ennobles our nature by the progressive and harmonious development of our physical mental, intellectual and spiritual powers and faculties.”

A.S.Altekar : Education in Ancient India, 1973.p.8

“शिक्षा को ज्ञान प्रकाश और शक्ति का ऐसा स्रोत माना जाता था जो हमारी शारीरिक, मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों तथा क्षमताओं का उत्तरोत्तर और सामंजस्य्पूर्ण विकास करके हमारे स्वभाव को परिवर्तित और उत्कृष्ट बनाती है।”

यह शिक्षा मूलतः वेदों पर आधारित थी और आध्यात्मिक अलख जगाने वाली अर्थात अन्तर्ज्योति के जागरण व आध्यात्मिक पथ को आलोकित  वाली थी। वेद में शिक्षा का प्रयोग विद्या, बोध, ज्ञान, विनय आदि के लिए किया गया है। इसी लिए कहा था कि

  -“ज्ञानं मनुजस्य तृतीय नेत्रं ”

लेकिन सायण महोदय ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में पृष्ठ 49 पर लिखा है –

“जो स्वर, वर्ण, मात्रा, आदि के उच्चारण  – प्रकार का उपदेश दे, शिक्षा दे वही शिक्षा है।”

वैदिक कालीन शिक्षा के उद्देश्य / Objectives of Vedic period education

वैदिक कालीन शिक्षा में मानव मूल्य उसे इह लौकिक और पार लौकिक ज्ञान प्राप्ति का निर्देश देते थे पर पारलौकिक अर्थात परा विद्या को अधिक महत्तव प्रदान किया जाता था।

1 – नैतिक उन्नयन / moral elevation

2 – चारित्रिक विकास / Character development

3 – आध्यात्मिक मानसिक उत्थान / Spiritual upliftment

4 – व्यक्तित्व का विकास / Personality development

5 – राष्ट्रीय संस्कृति संरक्षण व प्रसार / National Culture Preservation and Dissemination

6 – मोक्ष की प्राप्ति / Attainment of salvation

उक्त विविध तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“Infusion of a spirit of pity and religiousness, formation of character, development of personality, inculcation of civic and social duties promotion of social efficiency and preservation and spread of national culture may be described as the chief aims and ideals of ancient Indian Education.”

“प्राचीन भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों व आदर्शों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है -ईश्वर भक्ति की भावना का एवम धार्मिकता का समावेश, चरित्र का निर्माण, व्यक्तित्व का विकास,सामाजिक कर्त्तव्यों को समझाना, सामाजिक कुशलता की उन्नति व संस्कृति का संरक्षण तथा प्रसार ।”

शिक्षा व्यवस्था /  Organization of education –

वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था को समझने हेतु इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है –

1 – विद्यारम्भ संस्कार / Vidyarambha Sanskar

2 – उपनयन संस्कार / Upanayana ceremony

3 – पाठ्यक्रम / Syllabus

4 – शिक्षण विधि / Teaching Method

5 – शिक्षण अवधि / Teaching period

6 – संस्थान का अध्ययन समय / Institute study time

7 – अवकाश व शिक्षणसत्र / Vacation and academic session

8 – शिक्षण शुल्क व आर्थिक व्यवस्था / Tuition fee and financial system

9 – परीक्षा तथा उपाधियाँ / Exams and degrees

10 – समावर्तन संस्कार / Samavartan Sanskaar

विविध शिक्षाएं / Miscellaneous teachings –

सैन्य शिक्षा

व्यावसायिक शिक्षा

पुरोहितीय शिक्षा

महिला शिक्षा

कला कौशल की शिक्षा

आयुर्वेद की शिक्षा

पशु चिकित्सा

शिक्षण संस्थाओं के विविध रूप / Various forms of educational institutions –

1 – गुरुकुल

2 – ऋषि आश्रम

3 – चरण

4 – परिषद्

5 – सम्मेलन

6 – परिब्राजक उपदेश

प्रमुख शिक्षा केन्द्र /  Major Educational Center –

वैदिक कालीन शिक्षा के केन्द्र सम्पूर्ण भारत में फैले थे दक्षिण भारत में माल खण्ड, तन्जौर, कल्याणी, उत्तर भारत में मिथिला, कन्नौज, धार, तक्षशिला प्रमुख शिक्षा केंद्र थे। कर्नाटक, काञ्ची, काशी, और नासिक में भी शिक्षण कार्य होता था।

वैदिक कालीन शिक्षा का मूल्याङ्कन / Evaluation of Vedic period education –

वैदिक कालीन शिक्षा के मूल्याङ्कन हेतु इसके गुण दोषों पर दृष्टिपात करना आवश्यक होगा इसलिए पहले जानते हैं इसके गुण

वैदिक कालीन शिक्षा के गुण / Virtues of Vedic Period Education –

1 – नागरिकता के उच्च गुणों का समावेशन। Inclusion of high qualities of citizenship

इस सम्बन्ध में अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“The success of educational system in infusing a sense of civic responsibility was also remarkable.”

“नागरिक उत्तरदायित्व की भावना अनुप्राणित करने में शिक्षा प्रणाली की सफलता भी अनूठी थी।”

2 – आध्यात्मिकता को प्रश्रय / support spirituality

3 – चारित्रिक सुगठन / Character formation

इस सम्बन्ध में अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“There is no exaggeration and that the educational system of the country had succeeded remarkably in its ideas of raising the national character to a high level.”

“इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि देश की शिक्षा प्रणाली उच्च स्तर के राष्ट्रीय चरित्र के उत्थान के अपने आदर्श में सफल रही थी।”

4 – व्यक्तित्व का विकास / Personality development

5 – गुरु शिष्य सम्बन्ध / Teacher-disciple relationship

6 – विशेषज्ञ तैयार करने में सफल / Successful in producing experts

अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“The educational system did not aim to act imparting a general knowledge of a number of subjects; its ideal was to train experts in different branches.”

“अनेक विषयों का सामान्य ज्ञान देने के कार्य का लक्ष्य इस शिक्षा प्रणाली का नहीं था। इसका आदर्श विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञ तैयार करना था।”

7 – साहित्य व संस्कृति के संरक्षण व प्रसार में सफल / Successful in the preservation and dissemination of literature and culture –

अल्तेकर महोदय का कहना है –

“The ancient Indian system of education has been eminently successful in its aim of the preservation of ancient literary and cultural heritage.”

“प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली प्राचीन साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के अपने उद्देश्य में विशेष सफल रही।”

वैदिक कालीन शिक्षा की सीमाएं / Limitations of Vedic Period Education –

निम्न सीमाएं वैदिक कालीन शिक्षा में दृष्टिगत होती हैं –

1 – धर्म पर अधिक बल / More emphasis on religion

2 – लौकिक विज्ञानों की उपेक्षा। Neglect of cosmic sciences

अल्तेकर महोदय ने कहा –

“Secular sciences like history, economics, politics, mathematics, and astronomy did not receive as much attention as theology, philosophy, ritualism, and sacred law.”

“लौकिक विज्ञानों जैसे इतिहास, अर्थ शास्त्र,राजनीति, गणित और ज्योतिष इतना ध्यान नहीं पा सके थे जितना धर्म शास्त्र, दर्शन, कर्मकाण्ड वाद, और पवित्र कानून। ”

3 – साधारण जनता की प्रगति में असमर्थ / Incapable of progress of the general public

4 – लोक भाषाओँ के प्रति उदासीन / Indifferent to folk languages

अल्तेकर महोदय ने कहा –

“Hindu educational system was unable to promote the education of the masses, probably because of its concentration on sanskrit and the neglect of vernaculars.”

“सम्भवतः हिन्दू शिक्षा प्रणाली जनसाधारण की शिक्षा की उन्नति करने में असमर्थ रही क्योंकि इसका लोक भाषाओँ की उपेक्षा और संस्कृत भाषा पर ध्यान केन्द्रित था।”

5 – नारी शिक्षा की अवहेलना / Disregard for women’s education 

6 – शूद्र शिक्षा की उपेक्षा / neglect of shudra education

एफ ई केई महोदय कहते हैं –

“The Brahmnik educational system become stereotyped and formal and unable to the needs of a progressive civilization.”

“ब्राह्मणीय शिक्षा प्रणाली रूढ़िगत एवं औपचारिक हो गई थी और प्रगतिशील सभ्यता की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असमर्थ थी।”

उक्त विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जा सकता है कि तत्कालीन परिस्थितियों के दृष्टिकोण से वैदिक कालीन शिक्षा सर्वोत्तम शिक्षा व्यवस्था थी इसने शिक्षा के क्षेत्र में महान विदुषी महिलाओं व महान विचारकों व शोध पिपासुओं को जन्म दिया तथा उस ज्ञान ज्योति को और अधिक जाज्वल्यमान करने में योगदान दिया इसीलिये एफ ई केई महोदय को लिखना पड़ा कि –

“Not only did the brahman educators develop a system of education which survived the crumbling of empires and changes of society but they also, through all those thousands years, kept aglow the torch of higher learning.” 

“ब्राह्मण शिक्षकों ने एक शिक्षा प्रणाली को केवल विकसित ही नहीं किया जो साम्राज्यों के पतन समाज के परिवर्तनों में जीवित रही वरन उन्होंने हजारों वर्षों तक उच्च शिक्षा की ज्योति को प्रज्ज्वलित रखा।”

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शिक्षा

गम्भीरता (Seriousness)

October 16, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जब गम्भीरता पर विचार करते हैं तब कई शब्द मानस से टकराते हैं जिन्हे इसके आशय के आसपास स्वीकारा जाता है। जैसे अचञ्चलता, गम्भीर होने का भाव, गहनता, गाम्भीर्य, उदात्तता, गहराई, चिन्तनशीलता, सोच विचार का भाव, सन्जीदगी, स्थिरचित्त, स्थिर मनस्कता, उद्वेगहीनता, शान्त चित्तता, अचपलता आदि आंग्ल भाषा के भी कुछ शब्द जेहन में आते हैं जैसे Grimness, Sobriety, Solemnity, Seriousness आदि।

लेकिन सारे शब्दों पर उदारता पूर्ण विचार करने और वाक्यों में प्रयोग करने पर यह स्पष्ट भान होता है कि कोई शब्द दूसरे का वास्तविक पर्याय नहीं हो सकता।

गम्भीरता से आशय (Seriously intended)

      आज गम्भीरता  स्वविवेक बुद्धि  के अनुसार विविध तरीके से व्याख्यायित किया जाता है एक व्यक्ति अपने जीवन काल के अलग अलग खण्डों में इसका अलग अलग अर्थ व्याख्यायित करता है।

    यहां मेरे द्वारा भी अपने बुद्धि विवेक द्वारा इसे जैसा समझा है देने का प्रयास है आपका मत भिन्न हो सकता है उसे आप कमेण्ट में देकर दिशाबोध करा सकते हैं। हम मानते हैं कि ज्ञान अनन्तिम होता है।

साधारणतः कम बोलने वाला, शान्त चित्त, उच्च विवेक स्थिति के कारण सुख दुःख में समभाव रखने वाला अन्तर्मुखी व्यक्ति गम्भीर की श्रेणी में आता है और यही गुण गम्भीरता कहलाता है।

यह स्थिर प्रज्ञता के अधिक निकट है गम्भीरता में हमारा समर्पण श्रेष्ठ ज्ञान के प्रति है श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 54 वें  श्लोक में अर्जुन का प्रश्न और  55  वें में केशव के समाधान से हम अर्थ के नज़दीक पहुँचते हैं। अर्जुन कहते हैं –

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |

स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥54॥

हे  केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?

भगवन कहते हैं –

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |

आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55||

हे अर्जुन, जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही सन्तुष्ट रहता है उस काल में वह स्थिरप्रज्ञ कहा जाता है।

व्यक्ति स्व स्वरुप में स्थिर रहकर स्वाभाविक गाम्भीर्य प्राप्त करता है। अष्टावक्र गीता के ग्यारहवें प्रकरण में अष्टावक्र जी कहते हैं –

यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बन्धनं तदा।

मत्वेति हेलया किञ्चित् मा गृहाण विमु़ञ्च मा ।।8.4।

जब तुच्छ पदार्थों से संयुक्त अहंकार नहीं रहता, तभी मुक्ति होती है और बन्धन तब होता है जब तुच्छ अहंकार मन में विकास करे ऐसा मानकर अपनी इच्छा से न कुछ ग्रहण करो और न ही कुछ छोड़ो।

अतः यह स्पष्ट भान होता है कि गम्भीरता श्रेष्ठ ज्ञान लब्धि के बाद का स्वाभाविक स्वभाव है यह कहाँ, कब, किससे कितना विनिमय व क्या यथोचित  करना है का संज्ञान कराता है। चिन्तनशीलता को समाधान तक पहुँचाता है।

गम्भीरता क्या नहीं है ? (What is not seriousness?)

वर्तमान में कठिन प्रतिस्पर्धा व अस्तित्व रक्षा प्रबल आवश्यक कर्मक्षेत्र बनकर उभरे हैं और इस क्रम में मूल्य ह्रास के भी नए प्रतिमान गढ़े गए हैं और गम्भीरता के सम्बन्ध में कुछ मिथ्या धारणाएं बनी हैं। असल में निम्न परिक्षेत्र गम्भीरता नहीं स्वीकारे जाएंगे।

1 – अज्ञान के कारण शान्त स्थिति गम्भीरता नहीं है।

2 – समस्या से भागकर निष्क्रिय होना गम्भीरता नहीं है।

3 – रूढ़ता गम्भीरता नहीं है।

4 – मौन को प्रत्येक प्रश्न का समाधान मानना गम्भीरता नहीं है।

5 – प्रभावी क्रोध व दुराग्रह गम्भीरता नहीं है।

6 – समभाव से विरक्ति गम्भीरता नहीं है।

7 – स्वाभाविक उथलापन गम्भीरता नहीं है।

8 – प्रदर्शनकारी चिन्तनशीलता गम्भीरता नहीं है।

वस्तुतः बहुत सी भ्रान्तियाँ दिग्भ्रमित कर हमें गम्भीरता का वाह्य मुखौटा दिखाती हैं। हमें सजगता से सार्थक गाम्भीर्य का अवलोकन करना होगा।

 गम्भीरता के आधारभूत तत्व (fundamentals of seriousness) –

स्वभाव में गम्भीरता स्वतः आ जाती है किसी के कहने से नहीं स्व में डूबने से, मैं केवल शरीर नहीं के भाव से और हमारे चिन्तन की तीव्रता हमें कब गम्भीर कर देती है पता भी नहीं चलता। हमसे पहले अन्य को इसका अहसास पहले होता है। कुछ कारक भी इसके लिए उत्तरदाई हैं यथा –

1 – यथार्थ स्थिति परिस्थिति

2 – क्षमता आधारित

3 – अद्यतन अर्जित ज्ञान से प्रभावित

4 – विवेक व विश्लेषण शक्ति आधारित

5 – अनुभव आश्रित

गम्भीरता के लाभ (Benefits of seriousness) –

व्यवहार के गम्भीर होने पर स्वतः कुछ लाभ होने लगते हैं यथा

1 – ऊर्जा का समुचित प्रयोग

2 – भटकाव पर नियन्त्रण

3 – दिशाबोध जागृति में अहम्

4 – अनुभूति जागरण

5 – सम्यक ज्ञान प्राप्ति में सहयोगी

यहाँ यह कहना सामयिक होगा की हमारे पास गाम्म्भीर्य युक्त पूर्वजों की एक लम्बी श्रृंखला है विदेह जनक, याज्ञवल्क्य, प्रसिद्द विद्वान् की विदुषी धर्मपत्नी भारती, विद्योत्तमा, प्रभु श्री राम, युधिष्ठर, केशव, कर्ण, महर्षि पाणिनि और वर्तमान उद्यमी,वैज्ञानिक, चिन्तक आदि।

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