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दर्शन

J. Krishnamurti 

August 13, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


जिड्डू कृष्णमूर्ति (1895 -1986 )

आधुनिक युग का वह पुरोधा जिसे हम श्रेष्ठ दार्शनिक, चिन्तक, शिक्षा शास्त्री के रूप में स्वीकारते हैं। इनके क्रान्तिकारी विचारों ने मानवता की दिशा निर्धारण का गम्भीर प्रयास किया मानव को विविध संकीर्णताओं से ऊपर उठा यथार्थ ज्ञान दर्शन का साक्षात्कार कराया और तत्कालीन मानवता को सरल दिशा बोध का सम्यक प्रयास किया।

जीवन की विसंगतियों से जूझते हुए ये थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्षा डॉ ० एनी बेसेन्ट के सम्पर्क में आये इनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्होंने इनकी शिक्षा दीक्षा का भार अपने ऊपर ले लिया और उच्च शिक्षा की प्राप्ति हेतु इंग्लैण्ड भेजा। जब इन्हे 1922 में अध्यात्म की अनुभूति हुयी तभी से इनके जीवन की दिशा मानव कल्याणार्थ चिन्तन के धरातल पर उतरी। मानव को दुखों से छुटकारा दिलाने का मार्ग तलाशना ही जीवन का उद्देश्य हो गया।

इन्होंने बौद्धिक वर्ग के बीच अपनी बात रखने के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड, भारत, हालेण्ड  में व्याख्यान दिए। इनके विचारों में प्यार (Love) पर विशेष ध्यान देने की ओर ध्यानाकर्षण किया गया। इन्होने कहा –

“यदि आपके हृदय में प्यार है तो फिर किसी ईश्वर को तलाश करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि प्यार ही ईश्वर है।”

प्यार हेतु ये आत्म ज्ञान और आत्म शोध को आवश्यक तत्व स्वीकारते हैं।

शैक्षिक चिन्तन (Educational thinking)-                                                       

इन्होंने अपने विचारों के प्रसार हेतु व्याख्यान, पुस्तक लेखन, व्याख्यान संग्रह प्रकाशन आदि को माध्यम बनाया आज इनकी कैसेट्स भी उपलब्ध है इनका मूल कार्य अंग्रेजी में है लेकिन आज विविध भारतीय भाषाओँ में इनका अनुवाद हो चुका है। हिन्दी  में अनुवादित कुछ रचनाओं को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –

संस्कृति का प्रश्न,स्कूलों के नाम पत्र, हिंसा से परे, ज्ञान से मुक्ति, जीवन की पुस्तक,प्रथम एवं अंतिम मुक्ति,जो मनुष्य कुछ नहीं है वह सुखी है, ध्यान, आनन्द की खोज,दिमाग ही दुश्मन है?, ईश्वर क्या है?, प्रेम क्या है?,  मन क्या है?, शिक्षा क्या है?, जीवन और मृत्यु, सत्य और यथार्थ, सोच क्या है? आदि ।

शिक्षा से आशय /Meaning of education -

इनके द्वारा  स्थापित संस्था ‘कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन’ आज भी इनके विचारों के क्रियान्वयन कर रही है  इनके लेखन व विचारों से शिक्षा की प्रभाव शीलता स्पष्ट होती है इन्होने कहा –

“शिक्षा द्वारा ही मनुष्य को जीवन का सही अर्थ समझाया जा सकता है और शिक्षा द्वारा ही उसको गलत रास्ते से सही रास्ते पर लाया जा सकता है।”

इनका मानना हे कि शिक्षा  विश्व को वस्तुगत रूप से देखना सिखाती है इसीलिये जे ० कृष्णमूर्ति  महोदय स्पष्ट रूप से कहते हैं –

“शिक्षा का कार्य तुम्हें एक पूर्णतया मित्र बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से संसार का सामना करने में सहायता करना है।”

“The function of education is to help you to face the world in a totally different intelligent way.”

अर्थोपार्जन को यह मात्र एक पक्ष के रूप में स्वीकारते हैं और रटना, डिग्री प्राप्त करना, परीक्षा पास करना आदि को शिक्षा नहीं मानते ये कहते हैं –

“अन्तः मन का ज्ञान ही शिक्षा है।”

शिक्षा के उद्देश्य /Aims of education –
बहुत से विद्वानों से भिन्न मत रखते हुए जे ० कृष्ण मूर्ति महोदय कहते हैं -
"To be really educated means not to confirm, not to imitate, not to do what millions and millions are doing.  If you feel like doing that,  do it, but be awake to what you are doing.''
"वास्तविक रूप से शिक्षित होने का अर्थ करोड़ों जो कर रहे हैं उससे अनुरूपता, उसका अनुसरण, उसे करना नहीं है। यदि तुम वह करना चाहते हो तो करो? परन्तु जो कुछ तुम कर रहे हो उसके प्रति जागरूक रहो। ''
 जे ० कृष्ण मूर्ति एकीकृत मानव, समग्र या सम्पूर्ण मानव के प्रगटन हेतु शिक्षा को एक आवश्यक कारक के रूप में स्वीकार करते हैं और इसकी प्राप्ति हेतु शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य इनके विचारों द्वारा स्पष्ट होने लगते हैं जिन्हे हम इस प्रकार क्रम दे सकते हैं -
1 - आत्म ज्ञान का उद्देश्य/ Purpose of self-knowledge - 

इनका मानना है कि प्रत्येक मानव स्वयं को जानने का प्रयास करे इनका अपने को जाने से आशय चेतन आत्म तत्व को जानने से नहीं है बल्कि ये चाहते हैं  कि शिक्षा यह जानने में मदद करे कि हम क्षण क्षण क्या हैं अर्थात विभिन्न क्षणों में हम क्या सोचते, विचार करते, अनुभव करते हैं हमें उसे जानने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा न हो कि जिस धर्म का उद्भव मानव से हुआ है वह उसका गुलाम बनकर न रह जाए।

2 - सृजन शीलता का विकास/ Development of creativity - 

इससे इनका  आशय शरीर, आत्मा, मन तीनों की सृजनशीलता से है। विद्यार्थियों को स्वतंत्र निर्णयन के अवसर प्रदान किये जाएँ इनके ऊपर अपने विचार थोपने का प्रयास न किया जाए। यह भयमुक्त वातावरण सृजनशीलता की वास्तविक पृष्ठ भूमि तैयार करेगा।

3 - वर्तमान महत्त्वपूर्ण/ Importance of Present time -  

ये कहते हैं कि काल की सत्ता नहीं है और शुद्ध चेतना मात्र का अस्तित्व है। हमारे जीवन का वर्तमान क्षण ही प्रिय अप्रिय भूत या भविष्य से सम्बन्ध रखने वाला हो सकता है इसीलिये ये जीवन में वर्तमान को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। अतः शिक्षा वर्तमान में जीना सिखाये।

4 - विज्ञान का यथोचित समावेशन /Reasonable inclusion of science- 

ये विज्ञान व तकनीकी के विरोधी नहीं थे इनका मानना था की विज्ञान को मानव के विकास का सहयोगी होना चाहिए। ये विज्ञान के सम्यक प्रयोग द्वारा मानव मात्र का कल्याण करना चाहते थे।विज्ञान व तकनीकी को कोई ऐसा कार्य सम्पादित नहीं करना चाहिए जो मानवता विरोधी हो।मानव मात्र के कल्याणार्थ अध्यात्म और विज्ञान का यथायोग्य सम्मिलन भी होना चाहिए।

5 - संवेदनशीलता में वृद्धि /Increased sensitivity-

इनका मानना था कि बालकों को प्रतिस्पर्धा और भय मुक्त वातावरण मिले अनुशासन के साथ संवेदनशीलता का गन अपरिहार्य है। बच्चों में प्रेम का ऐसा प्रस्फुटन हो जिससे वे प्रकृति व मानव मातृ से प्रेम करना सीख सकें। वे इतने संवेदनशील बनें की क्रोध, घृणा, हिंसा, द्वेष को भाव पूर्ण तिरोहित हो जाए।

6 -व्यावसायिक योग्यता का विकास/ Development of professional competence- 

यह नितान्त पलायनवादिता की जगह व्यावहारिकता से बालक को जोड़ना चाहते थे इसी लिए बालक को व्यावसायिक निपुणता सिखाना चाहते थे क्योंकि जीवन यापन हेतु कोइ न कोइ व्यवसाय प्रत्येक को करना ही होता है।शिक्षा को इंगित करते हुए मानव को एक विशेष सन्देश देते हुए इन्होने कहा –

“Education must help in facing the world in a totally different, intelligent way, knowing you have to earn a livelihood, knowing all the responsibilities the miseries of it all.” Begning of Learning, p 171 

“यह जानते हुए की तुमने जीविकोपार्जन करना है, सम्पूर्ण जिम्मेदारियों को निभाना है उस सबका दुःख उठाना है। शिक्षा को तुम्हें एक पूर्णतया मित्र, बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से संसार का सामना करने में सहायता करनी चाहिए। ”

7 - नवीन मूल्यों की वाहक संस्कृति का निर्माण/ Creating a culture of new values- 

इनका स्पष्ट रूप से मानना था कि विविध संस्कृतियों का प्रभाव हमारे दृष्टिकोण को संकीर्ण कर देता है जबकि आवश्यकता है पूर्व धारणाओं व पूर्वाग्रहों से मुक्त होने की। शिक्षा का उद्देश्य ऐसी अन्तः चेतना व आत्मिक उत्थान की पृष्ठ भूमि बनाना है जो दृढ़तापूर्वक हमें पूर्वाग्रहों के खिलाफ खड़ा कर सके। तभी नवीन मूल्यों व नव संस्कृति का उद्भवन सम्भव हो सकेगा।

पाठ्यक्रम Syllabus

जे ० कृष्णमूर्ति जी का मानना था कि पाठ्यक्रम ऐसा हो जो सम्पूर्ण मानव बनाने में सहयोग प्रदान कर सके। इन्होने आर्थिक पक्ष की सबलता हेतु व्यावसायिक शिक्षा, भौतिक विज्ञान, मानवोपयोगी विज्ञान तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया। तथा भावात्मक पक्ष के प्रबलन हेतु सृजनात्मकता, सौन्दर्य बोध, कविता कला, सङ्गीत को पाठ्यक्रम में स्थान देने की बात कही है।

शिक्षण विधियाँ Teaching methods

इन्होंने अधिगम की प्रभावशीलता की वृद्धि हेतु निम्न विधियों का समर्थन किया।

1 – निरीक्षण विधि

2 – अनुभव आधरित विधि

3 – स्वाध्याय

4 – परीक्षण विधि

5 – श्रवण

6 – शान्ति व मनन

7 – ध्यान

 इन्होने ध्यान की महत्ता की गहन अनुभूति की। जिससे उसके गूढ़ अर्थ निकलते हैं ये मानते हैं कि ध्यान इच्छा शक्ति, निष्प्रयोजन, और चेष्टा विहीन होता है। जिससे एकाग्रता उद्भूत होकर आत्म ज्ञान के प्रति सचेष्ट रखती है।

अध्यापक/Teacher

इन्होने बहुत स्पष्ट रूप से यह स्वीकार किया की गुरु एक एकीकृत मानव होना चाहिए वह धैर्य की प्रतिमूर्ति हो और बच्चों के साथ उसका व्यवहार प्रेम पूर्ण हो। अपनी इच्छा थोपने की जगह वह विद्यार्थियों की सीखने में मदद करने वाला हो। इस प्रकार अच्छा अध्यापक वह होगा जो प्रेम के आधार पर बच्चों में लोकप्रिय होगा।  

विद्यार्थी/Student

ये विद्यार्थियों को ऐसी चेतना से युक्त करना चाहते हैं  जो उनमें वह शक्ति पैदा कर सके जिससे वे स्वयम् मूल्य सिद्धान्त व नियमों का चयन कर सकें। वे यह बिलकुल नहीं चाहते की उनपर किसी तरह के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक,धार्मिक पूर्वाग्रह थोपे जाएँ। इन्होने विद्यार्थियों से स्पष्ट रूप से कहा –

“Education implies to live a life of  tremendous order in which obedience is under stood, in which it is seen where conformity in necessary and where it is totally unnecessary, as to see when you are imitating.” Ibid p.187 

“वास्तविक शिक्षा एक जबरदस्त व्यवस्था का जीवन जीना है जिसमें आज्ञापालन को समझ लिया जाता है, जिसमें यह जान लिया जाता है कि कहाँ अनुरूपता आवश्यक है और कहाँ वह पूर्णतया अनावश्यक है, यह देख लिया जाता है कि कब आप अनुकरण कर रहे हैं।”

अनुशासन/Discipline

ये विद्यार्थियों को आतंरिक व वाह्य दोनों प्रकार की स्वतन्त्रता देना चाहते हैं। और आत्म अनुशासन के प्रचलित सिद्धान्तों को भी नहीं मानते। लेकिन साथ हे यह भी कहते हैं की स्वतन्त्रता का अर्थ स्वछंदता नहीं है दूसरों का ध्यान रखा जाए उनके प्रति विवेकशील, नम्र व यथोचित व्यवहार किया जाए।

विद्यालय /School

यह प्रभावी अधिगम, अध्यापन, व्यवस्थापन हेतु विद्यालय की भूमिका को स्वीकार करते थे। इन्होने विद्यालय सुसंचालन हेतु प्रशासन में अध्यापक व विद्यार्थियों की भागीदारी की बात कही। ये चाहते थे कि विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या को सीमित रखा जाए। विद्यालय की समस्याओं के निराकरण हेतु शिक्षक परिषद व छात्र परिषद का निर्माण किया जाए। छात्र परिषद में भी शिक्षकों का प्रतिनिधित्व हो ,विद्यालय की साफसफाई ,अनुशासन, भोजन आदि की जिम्मेदारी विद्यार्थियों को दी जाए। ऐसे पर्यावरण का निर्माण किया जाए जिससे विद्यार्थी अपनी शक्तियों को पहचान सकें और स्वयम् समस्या निराकरण में सक्षम बन सकें।

                               अन्य आवश्यक पक्ष/ Other necessary dimensions
 

1  – नैतिक व धार्मिक शिक्षा

2  – जन शिक्षा

3  – स्त्री शिक्षा

4  – व्यावसायिक शिक्षा

 
                   शैक्षिक चिन्तन का मूल्याङ्कन/Assessment of academic thinking

जे ० कृष्णमूर्ति महोदय शिक्षा को साधारणतया जिन अर्थों में स्वीकार किया जाता है उसके अनुसार ये पुनः विचार की विषय वस्तु है इन्होने कहा –

“Education generally used to mean learning out of books, storing up information and using it either selfishly or a particular cause or a particular sect, and marketing oneself important in that sect of organisation.”

“साधारणतया शिक्षा का अर्थ पुस्तकों को पढ़ना, जानकारी का संग्रह करना और उसे या तो स्वार्थ के लिए या किसी विशिष्ट कारण के लिए, किसी विशेष सम्प्रदाय के लिए स्वयं को उस सम्प्रदाय में अथवा संगठन में महत्त्वपूर्ण बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। ”

ये अन्तः चेतना के विकास की बात करते हैं जबकि सर्वांगीण विकास में प्रगति के अधिक बीज संग्रहीत हैं।

उद्देश्यों के क्रम जो पूर्ण मानव के विकास की बात इनके द्वारा रखी गयी उसके निर्माण हेतु सुझाये गए साधन और बताया गया पाठ्यक्रम अपर्याप्त है। यहां तक स्पष्ट परिलक्षित होता है कि अन्तः चेतना विकास की यात्रा इस पाठ्य क्रम से होना संभव नहीं है। शिक्षण विधियों में मनोवैज्ञानिकता अच्छी विचारधारा है पर कोई नई विधि सुझाई नहीं गयी है। गुरु शिष्य सम्बन्धों को ये आवश्यक नहीं मानते और कहते हैं –

“Disciple means one who learns but the generally accepted meaning is that a disciple is one who follows someone, some guru, some silly person. But both the follower and the one who follows are not learning,”

“शिष्य का अर्थ है जो सीखता है परन्तु शिष्य का साधारण स्वीकृत अर्थ वह है जो किसी का, किसी गुरु का, किसी बुद्धिहीन व्यक्ति का अनुसरण करता है,ऐसी स्थिति में गुरु और शिष्य दोनों नहीं सीख रहे हैं।”

यदि निष्पक्षता के चश्मे से देखा जाए तो इसमें सत्य का अंश परिलक्षित होता है। शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु जो कम संख्या विद्यालय से संयुक्त करने की बात इन्होने की वह सैद्धांतिक दृष्टिकोण से अच्छी लगती है पर भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में व्यावहारिक नहीं है।

कुल मिलाकर इनके विचार नवपरिवर्तन की इच्छा से युक्त लगते हैं पर स्पष्ट रूप रेखा के अभाव में मजबूत सम्बल नहीं मिल सका है। ध्यान, आत्म ज्ञान ,आत्म शोध हेतु स्तर का अभाव दिखता है। परन्तु इनके द्वारा स्थापित विद्यालय प्रेम, सौंदर्य बोध, सहयोग की अपनी विचार श्रृंखला  के कारण ये हमेशा याद किये जाएंगे।    

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शिक्षा

Education as a tool of Modernization in the Indian context.

August 6, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


भारतीय सन्दर्भ में आधुनिकीकरण के एक उपकरण के रूप में शिक्षा

भारत में शिक्षा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से अब तक एक बहुत बड़ा सफर तय कर चुका है। बदलते परिवेश के साथ और तत्कालीन परिस्थितियों के साथ जन सामान्य पर पड़ने वाले प्रभाव का इतिहास गवाह रहा है इसने बोलने, आचार, व्यवहार, संस्कृति,  वेश भूषा, रहन सहन में होने वाले परिवर्तनों को बहुत अच्छी तरह से निरीक्षित किया है। इन तमाम परिवर्तनों के आधार पर यह  पूर्वक कहा जा सकता है कि शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण साधन है जो हमारे पूरे परिवेश, सम्पूर्ण समाज को वक्त के साथ चलना सिखा सकता है।शिक्षा ही वह महत्त्वपूर्ण उपकरण है जो हमें आधुनिकता से जोड़ सकता है।

आधुनिकी करण क्या है?

What is modernization?

आधुनिकीकरण  वह  प्रत्यय है जो हमें समय के साथ कदमताल करना सिखाता है हर काल की अपनी परम्पराएं, मर्यादाएं, मूल्य होते हैं जो भारत में निरन्तर  परिवर्द्धित व परिवर्तित होते रहे हैं और भारतीयों ने इन्हे आवश्यकतानुसार अङ्गीकार किया है। डॉ ० सत्यदेव सिंह ने आधुनिकीकरण के सन्दर्भ में कहा –

“आधुनिकीकरण एक ऐसी गत्यात्मक प्रक्रिया है जिसमें कोई समाज नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकियों का लाभ लेते हुए परम्परागत अथवा अर्ध परम्परागत स्थिति से हटकर अपने संगठन संरचना, मूल्य, अभिप्रेरणा, उद्देश्य तथा आकांक्षाओं में आवश्यक परिवर्तन कर लेता है।”

“Modernization is such a dynamic process in which a society moves from a traditional or semi-traditional position, taking advantage of the latest scientific techniques, to make necessary changes in its organizational structure, values, motivation, objectives and aspirations.”

आधुनिकीकरण की परिभाषा में व्यक्ति व उसकी ज्ञानात्मक स्थिति के अनुसार यद्यपि परिवर्तन परिलक्षित होते हैं लेकिन कोठारी कमीशन  ने भारतीय समाज के आधुनिकता से जुड़ने के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट रूप से कहा –

“The most distinct feature of modern society, in contrast with a traditional one, is its adoption of a science-based technology.”

“आधुनिक समाज की सबसे विशिष्ट विशेषता, पारंपरिक समाज के विपरीत, विज्ञान आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाना है।”

अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में आधुनिकी करण से आशय बदलते समय के साथ बदलते प्रतिमानों, संसाधनों, वैज्ञानिक प्रगति और आवश्यक प्रगतिशील बदलाव के साथ अनुकूलन करने से है।

Education as a tool of Modernization

आधुनिकीकरण के एक उपकरण के रूप में शिक्षा-

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब हम भारत का आकलन करते हैं तो यह प्रत्यक्षतः अनुभूति होती है कि शिक्षा केवल समस्या समाधान का ही उपकरण नहीं है बल्कि यह वह विशिष्ट उपागम है जो हमें समय के साथ चलना सिखाता है वास्तविक आधुनिकता का सच्चा उपकरण शिक्षा है इसे नकारा नहीं जा सकता। निम्न आधारों पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है –

1 – सामाजिक सकारात्मक परिवर्तन/ Positive Social Change

2 – सांस्कृतिक परिवर्तन / Cultural change

3 – आर्थिक परिवर्तन / Economic change

4 – बौद्धिक परिवर्तन / Intellectual change

5 – मूल्यों व उद्देश्यों में परिवर्तन / Change in values ​​and objectives

6 – विज्ञान व तकनीकी की सहज स्वीकृति / Easy acceptance of science and technology

7 – समन्वय व सामञ्जस्य की बदलती अवधारणा / Concept of coordination and harmony

 8 – कुरीति निवारण में सञ्चारी साधनों का प्रयोग / Use of communicative means in the prevention of      evil.

उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा वह साधन है जो हमें आधुनिकता से जोड़ता है व अन्धानुकरण से बचाता है जो परम आवश्यक है। डॉ सत्य देव सिंह का विचार दृष्टव्य है –

“यदि कोई समाज अन्य समाजों का अन्धानुकरण करता है तो कालान्तर में अन्धानुकरण करने वाला समाज अपना आस्तित्व समाप्त कर सकता है।”

“If a society blindly imitates other societies, then over a period of time the society which blindly imitates its existence.”. 

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