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वाह जिन्दगी !

जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

January 26, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जीवन का संघर्ष सुनो, जब फल दिलवाने लगता है,
तब टूटा अन्तर्मन सुन लो, सच में हुलसाने लगता है,
सूखा हुआ समन्दर फिर, नव जीवन लाने लगता है,
जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

कटुवाणी से छलनी होना, जब विस्मृत करने लगते हैं,
स्वशब्दों परकर पुनर्विचार, हम मन्थन करने लगते हैं,
मन प्रिय वचनों की गहराई का सार समझने लगता है,
जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

दुःख में साथ न देने का जब, हम रोना रोने लगते हैं,
खुद की करनी को भूल,जगत के दोष गिनाने लगते हैं,
अगणित सुख को भूल मनुज कटु विगत चुनने लगता है,
जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

फसल सूख जाने का डर ही, हममें चेतनता भरता है,
यह डर कठिन परिश्रम हित, हमको प्रेरित करता है,
विविध साधनों द्वारा मानव, फसल को जीवन देता है,
जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

देखो फल के वृक्षों को हर समय में ना फल आता है,
जीवन संघर्षों का रण है,यह हर वृक्ष हमें समझाता है,
जब मानव, जीवन-संघर्षों का, सार समझने लगता है,
जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

छोटी- छोटी खुशियाँ भी,जब नजर चुराने लगती हैं,
सीधी, सादी, भोली बातें भी,बेमानी लगने लगती हैं,
शक के सागर को छोड़, सदभाव अपनाना पड़ता है,
जीवन का सच्चाअर्थ सुनो,तब मन समझाने लगता है।

रोगीकाया सुख भोग में जब असमर्थ बनाने लगती है,
जीवन की सुख समृद्धि का मतलब सिखाने लगती है,
सत्संग, प्राणायाम,व्यायाम सब ही यादआने लगता है,
जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

जीवन का असली अर्थ सुनो भ्रमवश खोजाने लगता है,
अपने पराए का भेदजान,जब मन यह रोवन लगता है,
तब आत्मबल, जीवटसंग सुखद संयोग बनाने लगता है,
जीवन का सच्चा अर्थ सुनो तब मन समझाने लगता है।

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काव्य

गलती तो हमारी है जो जिन्दा छोड़ देते हैं।[Galati To Hamari Hea Jo Jinda Chhor Dete hean.]

January 18, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

चन्द गद्दार गद्दारों की भाषा बोल जाते हैं,
अच्छी सच्ची बातों का उल्टा बोध देते हैं।
घर में अपनी माँ से जानेक्या बोलते होंगे,
मञ्चों से माँ भारती को डायन बोल देते हैं।

पैलेटगन की मार से नानी मरने लगती है,
पत्थर फेंकते दुष्टों को भटका बोल देते हैं।
नग्न भारत माँ चित्र नक़्शे पर खोल देते हैं,
मादरे वतन भारत को कैसा मोल देते हैं।

देश में अपने देशद्रोह के नारे बोल देते हैं,
गले मिल चन्द नेता मामले में झोल देते हैं।
नारीअस्मिता को बेशर्म हल्कातौल देते हैं,
लड़कों से गल्ती होजाती,ऐसा बोलदेते हैं।

जाति,प्रान्त, मज़हब का जहर घोल देते हैं,
लामबन्द न हो आवाम रास्ता मोड़ देते हैं।
देशोन्नति के बजाए स्वप्रगति पे जोर देते हैं,
पहचानो, रेखांकित करो साथ छोड़ देते हैं।

येनकेन लाल नीली बत्ती को जुगाड़ लेते हैं,
भ्रमित दुष्ट युद्धअपराधी भाषा बोल देते हैं।
भले जो खुद नहीं हैं,भलाई का बोध देते हैं,
खानदानी चोर, देवता को चोर बोल देते हैं।

अब लोग सत्य को सत्य, कहने से डरते हैं,
कलम के हत्यारे स्वार्थपूर्ण दृष्टिकोण देते हैं।
अराजक तत्व अराजकता का जाल देते हैं,
असली चेहरे पर नक़ली खोल ओढ़ लेते हैं।

बहुत पढ़ा गांधी इस समय में छोड़ देते हैं,
सुभाष चन्द बोस के पृष्ठों को खोल देते हैं।
अहसान फ़रामोश, शत्रु भाषा बोल देते हैं,
गलती तो हमारी है जो जिन्दा छोड़ देते हैं।

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वाह जिन्दगी !

मरना सिखाना होगा। [MARNA SIKHANA HOGA ]

January 5, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

भारत को फिर से गढ़ने में बहुतों को रीतना होगा।

भूले जो पाठ हैं परिश्रम का लगन से सीखना होगा।

दूजे को दिशा देने से पहले निजको सवाँरना होगा।

अपनी समस्या, प्रश्नों का हल खुद निकालना होगा।

 

न फँसे भौतिकता में हम, सादगी से विचारना होगा।

चकाचौँध जीवनोद्देश्य नहीं पीढ़ी को उबारना होगा।

धूम्रपान व मय प्याले में डूबे प्राणों को जगाना होगा।

क्या से क्या हो गया जीवन ये जगाकर बताना होगा।

 

खुद का जमीर गढ़, शेष जमीरों को जगाना होगा।

क्या अच्छा,क्या बुरा खुद सीखकर सिखाना होगा।

घनीभूत आग के दरिया से गुजर आगे जाना होगा।

झंझावातों से टकराने हेतु, मज़बूत तो बनना होगा।

 

सितमो ग़ुरबत की दुनियाँ में टूटने से बचाना होगा।

कैसे बचना, कैसे लड़ना है,तदबीर सिखाना होगा।

कैसे जीते हैं कद्दावर होके, खुद्दारी सिखाना होगा।

पैसा साधन है,साध्य नहीं हिकमत से बताना होगा।

 

रिश्ते जो टूटा है बाज़ारों में फिर से संभालना होगा।

सम्बन्धों के बिगड़ैल हाथी को खूँटे से बाँधना होगा।

शीशमहल की किरचों को सलीके से लगाना होगा।

जीना गर सिखा पाए नहीं तो, मरना सिखाना होगा।

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काव्य

सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् का भी भान होना चाहिए।

January 1, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जिन्दादिली से जीवन का वर्तमान जीना चाहिए,

मौसम हो चाहे सुअवसर, सानन्द रहना चाहिए।

जीवन का यही शुभ है ये सत जान लेना चाहिए,

वक़्त नहीं रुकता है इतना पहचान लेना चाहिए।

 

परिवर्तन न होगा विगत में, यह जान लेना चाहिए,

भविष्य की निश्चिचता नहीं, यह मान लेना चाहिए,

भूत,भविष्य की चिन्ता से न परेशान होना चाहिए,

वर्तमान में निज जीवट का इम्तिहान लेना चाहिए।

 

साथ चलते हुए पल को मनभर के जीना चाहिए,

मौजूदा वक्त के साथ, कदमताल करना चाहिए,

व्यथित करने वाले अतीत को,भूल जाना चाहिए,

आत्मसम्बल से लगन का पल्ला पकड़ना चाहिए।

 

हरपल चरित्रबल साध का उपक्रम होना चाहिए,

हर क्षण गरिमा युक्त निज आचरण होना चाहिए,

सत्,चित्,आनन्द के सत् स्वरुप का भान चाहिए,

अतःवर्तमान पर ही सर्वाधिक ध्यान होना चाहिए।

 

वर्तमान में जीने हेतु विगत को भूल जाना चाहिए,

आगत की व्यर्थ सोच से न हलकान होना चाहिए,

कल्पनाओं से न डरडरकर परेशान होना चाहिए,

कुण्ठा का वर्तमान से नहीं गठबंधन होना चाहिए।

 

वर्तमान में सुधार दुःख काअवसान होना चाहिए,

यह समय है कर्मयोग का, यह जान लेना चाहिए,

शुभ स्थापन का सच्चे मन से प्रयास होना चाहिए,

नश्वर,ईश्वर,प्रकृति,पुरुष का विश्वास होना चाहिए।

 

हर छण ही आनन्द का सरस पान होना चाहिए,

शाश्वत है वर्तमान का,स्वागतगान  होना चाहिए,

दुःखे सुखे समे कृत्वा की, पहचान होनी चाहिए,

जीवन है चलने का नाम, यह जान लेना चाहिए।

 

भारत में भारतवाली ही, रीति-नीति होनी चाहिए,

इसीपल से हम सबकी, सच्ची प्रीति होनी चाहिए,

मौत आनी है और आएगी,शुभ ज्ञान होना चाहिए,

सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् का भी भान होना चाहिए।

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