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वाह जिन्दगी !

यादों पर छा जाते हैं वो बचपन वाले पल।

July 27, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बहुत आते हैं याद, वो बचपन वाले पल,

बिसरा नहीं पाते हैं, लड़कपन वाले दल,

स्लेट,बत्ती,खड़िया और तख्ती वाले रण,

तख्ती का बैट बनाते नटखटपन के क्षण।

               यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

काजल तेल फुलेल व गणवेशों वाले पल,

कॉपी,कलम,स्याही गेंदतड़ियों वाले क्षण,

बोलसमन्दर,विषअमृत आइसपाइस दल,

चोर सिपाही और कबड्डी कुश्तीवाले बल।

               यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

चम्मच,लंगड़ी,जलेबी,कुर्सी दौड़ों वाला कल,

राष्ट्रीयपर्वों का मीठा जन्माष्टमी का कुल्हड़,

हर क्षण उत्साहों से भर जाता था तन मन,

कदमताल,लेजम,दिल्ली की जन गण मन।

                यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

सब्जी वाली नानी को छेड़ने वाले चञ्चल,

झूठे टोटके, गाली सुनने के अद्भुत क्षण,

सोतेसाथी को खाट सहित लेजाने के पल,

उसके हड़बड़ाने की राह तकता दलबल।

                यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

कॉपी में कॉमिक्स छिपा पढ़ने को विकल,

जोक कहानी अन्त्याक्षरियों में होता रमण,

बाबा,चाचा व बुआ की कहानियों के तल,

झूठ उड़ी अफवाहों संग कौतूहल के क्षण।

                 यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

फुटबॉल,क्रिकेट,टी0टी0 के साथबीते पल,

एकसाथ ही फिल्म देखना भूल पिटाई डर,

जादू के खेल के मध्य करते थे जब हुल्लड़,

बात बात पर शर्त लगाना कहाँ गए वो पल।

                  यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

जामुन,मीठा,रेवड़ी,मूँगफली की तड़तड़,

दूधपीना दण्ड लगाना हर सवाल का हल,

अटक लड़ाई ले भिड़जाना याद है वो पल,

चन्दा करके खेल कराना गुजर गए वो पल।

                 यादों पर छाजाते हैं वो बचपन वाले पल।

बरसातों में खूब भीगकर आने वाले पल,

होली क्रिसमस ईद व दिवाली वालाकल,

देर रात तक गन्ना खाते स्वांग रचाते पल,

कैसा भी हो समारोह रहते थे, हम तत्पर।

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काव्य

नशा छोड़ देते हैं लोग।

July 24, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

कैसे अपनी जिन्दगी ही नर्क बना लेते हैं लोग,

सुबह उठते ही मुँह में खैनी दबा लेते हैं लोग,

खैनी खाना खुद को खाने का ही आमन्त्रण है,

जानबूझकर खुद की दावत उड़ा लेते हैं लोग।  

अब तो बाली उम्र में गुटका चबा लेते हैं लोग,

पूरा पाउच मुँह में पलट के दिखा देते हैं लोग,

गुटका खाना क्षय रोगों को खुला निमन्त्रण है,

वैधानिक चेतावनी, हवा में उड़ा देते हैं लोग।  

शराब पीना नारियों को भी सिखा देते हैं लोग,

अपने हाथ घर द्वार में अगन लगा लेते हैं लोग,

पता नहीं मद्यपान में दिखता क्या आकर्षण है?

महफ़िल में मय में डूब कैंसर बुला लेते हैं लोग।

ब्राउनसुगर चस्का युवाओं में लगा देते हैं लोग,

नवोदित नक्षत्रों को राख राख बना देते हैं लोग,

ये गलत लत बल, वीर्य, ओज का तीव्र क्षरण है,

क्यों नवयौवन,ऊर्जस्वी जीवन मिटा देते हैं लोग?

हुक्का बीड़ी सिगरेट का सुट्टा लगा लेते हैं लोग,

साथ ही भाँग, गाँजा हमसफर बना लेते हैं लोग,

क्या जिन्दगी के धुआँ होने में कोई आकर्षण है,

फिरभी बैठे ठाले जिन्दगी को रुठा देते हैं लोग।  

मार्फीन,कोकीन,धतूरा क्या क्या खा लेते हैं लोग,

कई रोगों को जान बूझ घर का पता देते हैं लोग,

जानते हुए रोग युक्त होना जीवन का प्रत्यर्पण है,

तो भी इस प्रत्यर्पण में जिन्दगी खपा देते हैं लोग। 

अफीम सुलफा चरस की लत लगा लेते हैं लोग,

बीयर से शुरू हो शुद्ध एल्कोहल ले लेते हैं लोग,

ये आफतों का खुशनुमा जिन्दगी  में संक्रमण है,

इससे संक्रमित हो के जिन्दगी मिटा लेते हैं लोग। 

खुलीआँखों अन्धेपन का स्वाँग रचा लेते हैं लोग,

खुद के हाथों खुद को निवाला बना लेते हैं लोग,

आधुनिक दुनियाँ में विविध कैंसर का प्रसारण है,

तड़पन लख खुद को क्यों नहीं बचा लेते हैं लोग। 

दृढ़ता से नशामुक्ति को कदम बढ़ा देते हैं लोग,

कलुषित भावना में खुद आग लगा  देते हैं लोग,

नकारात्मकता छोड़ना सकारात्मक परिवर्तन है,

नशा छोड़ के जिन्दगी को गले लगा लेते हैं लोग। 

विकल्पों में निर्विकल्प हो नशा छोड़ देते हैं लोग,

नशीली दुनियाँ से हट उजाला खोज लेते हैं लोग,

धुआँ होती जिंदगी में संभलना प्रकाश विवर्तन है,

धन्य हैं जो स्वजीवट से अलख जगा देते हैं लोग।     

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वाह जिन्दगी !

भोले बाबा से मिला दे वो महीना चाहिए।

July 21, 2019 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

न धूम चाहिए न धमाका चाहिए,कुविचार जो बदल दे वो सलीका चाहिए।

न दौलत चाहिए न शौहरत चाहिए,मानवता को जगा दे वो तरीका चाहिए।

न रौनक चाहिए न महफ़िल चाहिए,जो ईश से मिला दे वो गलीचा चाहिए।

न सोना चाहिए न चाँदी चाहिए,जो अमनो चैन ला दे वो खलीफा चाहिए।

न सूरज चाहिए न चन्दा चाहिए,विचारों में चमक ला दे वो ही गीता चाहिए।

न कमी चाहिए न अतिरेक चाहिए,चल  जाएँ सारे काम वो सुभीता चाहिए।

न जादू चाहिए न टोना चाहिए, जो सद्कर्म पथ दिखा दे वो नगीना चाहिए।

न ताज चाहिए न तिज़ारत चाहिए,भोले बाबा से मिला दे वो महीना चाहिए।

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