शोध उपकरण से आशय उन साधनों से है जिनका उपयोग करके समंकों का
एकत्रीकरण किया जाता है यह अध्ययन हेतु डेटा संग्रह का उपागम बन जाता है। शोध को
सही दिशा मिल जाती है यदि सम्यक उपकरण का प्रयोग किया जाता है। कभी कभी शोध के
स्वरुप के अनुसार एक से अधिक उपकरणों की आवश्यकता परिलक्षित होती है। लेकिन कुल
मिलाकर है यह एक साधन ही,
जो डाटा (समंक ) संग्रहण में हमारी मदद करता
है।
शोध की दृष्टि से आज बहुत से उपकरण विद्यमान हैं सर्वेक्षण,केस स्टडी, प्रश्नावली, साक्षात्कार, अभिरुचि व निर्धारण पैमाने आज समंक संग्रहण हेतु प्रयुक्त किये जाते हैं। लेकिन किसी भी शोध उपकरण या मनोवैज्ञानिक परीक्षण की गुणात्मकता हेतु यह आवश्यक होगा कि वह निम्न विशेषताओं को धारण करे।
कसौटियाँ या विशेषताएँ (Criteria or Characteristics) –
आज शोध को सही दिशा देने हेतु यह आवश्यक है कि समंक सही प्राप्त हों ,क्योंकि समंकों के बारे में कहा जाता है कि
समंक झूठ नहीं बोलते पर स्वयं झूठे हो सकते हैं। आज डाटा एकत्रीकरण हेतु हम
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का सहारा लेते हैं। Klausmeier & Goodwin महोदय कहते हैं –
“Good standardized tests must meet the criteria of
validity, reliability, and usability.”
जिन गुण धर्मों के आकलन हेतु हम शोध उपकरण या मनोवैज्ञानिक परीक्षण
का निर्माण करते हैं उस सम्पूर्ण साधन को उस गुण के मापन हेतु ही समर्पित रहना
चाहिए। Douglas and
Holland का मानना है –
“A good examination must possess a number of
characteristics, and these characteristics become the basic principles
underlying the construction of each test.”
एक अच्छे मनोवैज्ञानिक या शोध परीक्षण को कुछ व्यावहारिक व कुछ
तकनीकी कसौटियों पर परखना होगा ,जिन्हे
इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।
सामान्य सम्भावना वक्र आज की ऐसी आवश्यकता है कि विविध विज्ञानों में इसका प्रयोग किया जाता है मनोविज्ञान और शिक्षा भी इससे अछूता नहीं है। यदि किसी चर से सम्बन्धित प्राप्ताङ्क वितरण किसी ग्राफ पेपर के माध्यम से दिखाने का प्रयास करेंगे तो घण्टे जैसी आकृति दिखाई पड़ती है खासकर तब जब वितरण का परिक्षेत्र बड़ा होता है यही आकृति सामान्य सम्भावना वक्र कहलाती है।
सामान्य सम्भावना वक्र से आशय (Meaning of normal probability curve)–
सामान्य सम्भावना वक्र एक गणितीय वक्र है जो आवृत्ति के वितरण को
सामान्य रूप से निरूपित करता है। जब हम किसी परीक्षण से प्राप्त अंकों के आधार पर
आवृत्ति वितरण बनाते हैं और इसे ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित करते हैं तो जो वक्र बनता
है उसे अवलोकित वक्र कहते हैं जब यही किसी बड़े यादृच्छिक समूह के आंकड़ों पर अवलम्बित
होता है तो वक्र की आकृति घण्टे के आकार की (Bell Shaped) होती है समूह का आकर बड़ा होने पर यह घण्टाकृति ही सामान्य सम्भावना
वक्र (NPC) या Normal
Probability Curve के
नाम से जानी जाती है। इस सम्बन्ध में डॉ ० डी ० एन ० श्रीवास्तव ने लिखा –
“सामान्य सम्भावना वक्र एक गणितीय आदर्श वक्र ही नहीं है बल्कि यह एक
सैद्धान्तिक वक्र भी है जिसकी पूर्ण प्राप्ति बहुत कठिन है लेकिन इसके बाद भी
व्यावहारिक समस्याओं से सम्बन्धित चरों के अध्ययन में इस वक्र का बहुत अधिक उपयोग
है।”
सामान्य सम्भावना वक्र की विशेषताएं (Characteristics of Normal Probability
Curve) –
यथार्थ तथ्य यह है की सामान्य सम्भाव्यता वक्र का व्यावहारिक उपयोग
है और इसे सांख्यिकीय परिक्षेत्र से जुड़े अध्ययन कर्त्ता को जानना ही चाहिए इसकी
कतिपय प्रमुख विशेषताओं को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं।–
01 – आकृति (Shape) –
सामान्य प्रायिकता वक्र का आकार घण्टाकार (Bell Shaped),पूर्ण सममिति (Symmetrical),एकल बहुलांकी (Uni modal) तथा सामान्य वक्रता वाला (Mesokurtic) होता है। इसके मध्य में सर्वाधिक प्राप्तांकों की संख्या होती है।
02 – सामान्य सम्भावना वक्र का समीकरण (Equation of Normal Probability Curve)
–
सामान्य प्रायिकता वक्र NPC की गणितीय समीकरण (Mathematical Equation) को इस प्रकार दिया जाता है इससे NPC का X अक्ष से विस्तार और Y अक्ष की ऊँचाई का निर्धारण किया जाता है –
x = मध्यमान से विचलन, x =X –M
Y= X अक्ष के ऊपर वक्र की ऊँचाई
N = कुल आवृत्ति
σ = प्राप्ताँकों का मानक विचलन
e = स्थिरांक, जिसका मान 2.71828
होता है।
π = स्थिरांक,जिसका मान 3.1416
होता है।
03 – केन्द्रीय मानों की समानता (Equality of Central Tendency Measures) –
सामान्य सम्भावना वक्र में केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीनों मानों में
समानता रहती है। कहने का आशय यह है कि
मध्यमान (M), मध्यांक (Mdn) और बहुलांक (Mo) तीनों का मान एक ही होता है अर्थात ये
तीनों ही NPC के मध्य बिंदु पर स्थित होते हैं। यानी
M =
Mdn = Mo
04 – विषमता गुणाङ्क ( Cofficient of Skewness ) –
सामान्य सम्भावना वक्र में पूर्ण सीमितता पाई जाती है अतः सामान्य
सम्भावना वक्र का विषमता गुणाङ्क शून्य माना जाता है अर्थात
Sk =0
05 – वक्रता या कुकुदता गुणाङ्क (Cofficient of Kurtosis )–
सामान्य सम्भावना वक्र (NPC)न तो बहुत अधिक नुकीला होता है और न चपटा बल्कि यह औसत ऊँचाई वाला वक्र होता है सामान्य
सम्भावना वक्र के वक्रता गुणाङ्क का मान 0.263 होता है अर्थात
Ku = 0.263
06
– अनन्त स्पर्शी (Agymptotic) –
सामान्य सम्भावना वक्र के दाहिने और बांए चोर को यदि X – अक्ष पर निरीक्षित किया जाए तो दिखाई पड़ेगा कि इसका विस्तार ऋण अनन्त (-∞) से धन अनन्त (+∞) तक फैला होता है। इसी कारण सामान्य सम्भावना वक्र के दाएं और बांए सिरे कभी X – अक्ष को स्पर्श नहीं करते। अपनी इसी विशेषता के कारण इस वक्र को अनन्त स्पर्शी कहा जाता है जैसा कि पूर्व के चित्रों से स्पष्ट है।
07 – क्षेत्रफल
सम्बन्ध (Area under NPC) –
सामान्य प्रायिकता वक्र (NPC)
एवम् आधार
रेखा के मध्य का क्षेत्रफल सामान्य प्रायिकता वक्र का क्षेत्रफल कहलाता है।
प्राप्तांकों का के ±1σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या का 2
/3 क्षेत्रफल यानि
68.26 %भाग आ जाता है।
सामान्य सम्भावना वक्र के ±2σ
के अन्तर्गत
वितरण या जनसँख्या या प्राप्तांकों का 95.44 % क्षेत्र आ
जाता है।
सामान्य सम्भावना वक्र के ±3
σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या या प्राप्तांकों का 99.72
% क्षेत्रफल आ जाता है।
चूँकि ±3 σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या के 99.72 % प्राप्तांक आ जाते हैं अतः व्यावहारिक समस्याओं के समाधान हेतु यह मान लिया जाता है कि सामान्य प्रायिकता वक्र के ±3 σ के बीच लगभग समग्र परिक्षेत्र या प्राप्तांक आ जाते हैं।
08 – मानक
प्राप्तांकों में परिवर्तन (Conversion in Standard Scores) –
सामान्य सम्भावना वक्र के प्राप्तांकों को मानक प्राप्तांकों (Standard Scores) में परिवर्तित किया जा सकता है। मानक प्राप्तांकों को मानक दूरी (σ distance द्वारा व्यक्त करते हैं )यह Z प्राप्तांक कहलाता है।
Z=(X-M )/σ = x/σ
=
09
–चतुर्थांशों में सामान अन्तर(similar difference in quartiles) –
सामान्य सम्भावना वक्र के पहले और तीसरे चतुर्थांश का मध्यांक से
सामान अंतर होता है। यह अन्तर चतुर्थांश विचलन (Q) के बराबर होता है। इस समान अन्तर को सम्भाव्य त्रुटि Probable Error या P.E कहते हैं।
10
– Q व S.D में सम्बन्ध (Relationship between Q and SD) –
सामान्य सम्भावना वक्र में चतुर्थांश विचलन (Q) का मान प्रामाणिक विचलन (SD) के मान का लगभग 2/3
होता है।
सामान्य सम्भावना वक्र के उपयोग (Applications of NPC) –
शिक्षा,समाज शास्त्र, मनोविज्ञान आदि के अधिकाँश चर सामान्य सम्भावना वक्र या सामान्य
प्रायिकता वक्र के अनुरूप वितरित होते हैं। इसके अतिरिक्त मापन व मूल्याङ्कन के
परिक्षेत्र में सामान्य प्रायिकता वक्र का अत्याधिक महत्त्व है। चिन्ता, बुद्धि,
स्मृति आदि से सम्बंधित मापों ,प्राप्तांकों को सामान्य प्रायिकता वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता
है अर्थात यह सामाजिक विज्ञानों के प्राप्तांकों, वितरणों को व्यवस्थित क्रम देने में सहयोगी की भूमिका का निर्वहन
करता है। इसके विविध उपयोग इस प्रकार हैं –
1 – किसी समूह में किसी दिए गए प्राप्ताङ्क से कम या अधिक अंक प्राप्त
करने वालों की संख्या ज्ञात करना।
2 – किसी समूह में दिए गए दो प्राप्तांकों के बीच पाए जाने वाले
शिक्षार्थियों की संख्या ज्ञात करना।
3 – परीक्षण के प्रश्नों के कठिनाई स्तर को ज्ञात करना।
4 – योग्यता का प्रसार ध्यान में रखते हुए सामान्य प्रायिकता वक्र के
आधार पर विभिन्न उप समूहों में विभाजित करना।
5 – किसी समूह में किसी विशेष स्थिति वाले छात्रों हेतु प्राप्ताङ्क
सीमायें ज्ञात करना।
एक शोध कर्त्ता जब अपना शोध कार्य पूर्ण करता है तब वह शोध के लाभ को जन जन तक या तत्सम्बन्धी परिक्षेत्र के लोगों को उससे परिचित कराना चाहता है और शोध से प्राप्त दिशा पर विद्वत जनों काप्रतिक्रियात्मक दृष्टि कोण जानना चाहता है ऐसी स्थिति में सहज सर्वोत्तम विकल्प दिखता है -शोध पत्र
शोधकर्त्ता के हाथ में परिकल्पना एक ऐसा साधन है जो शोध का दिशा निर्धारक व प्रणेता है। वास्तव में परिकल्पना निम्न कार्यों को स्वयं में समाहित कराती है –
(1 )-औचित्य पूर्ण मार्गदर्शन (Proper Guidance )-
परिकल्पना का महत्वपूर्ण कार्य शोधकर्त्ता को उचित दिशा निर्देश उपलब्ध कराना है इससे संदिग्धता व भ्रम की स्तिथि समाप्त हो जाती है एवं सम्यक तथ्यों व आंकड़ों के संकलन को सही दिशा मिल जाती है जिसकी तत्सम्बन्धी शोध हेतु आवश्यकता होती है।
(2)-प्रक्रिया निर्धारक( Determiner of procedure)-
परिकल्पना द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्य हेतु उपयुक्त तरीका व उत्तम क्रियाविधि क्या होनी चाहिए इससे अनावश्यक भटकाव नहीं होता।
(3)-तथ्यात्मक चयन में महत्वपूर्ण भूमिकाI (Important role in selection of facts)-
इससे समस्या सम्बन्धी तथ्यों का चयन सरल हो जाता है क्योंकि समस्या का दायरा तय हो जाने से तत्सम्बन्धी आंकड़ों का संग्रहण निश्चित हो जाता है चरों का निर्धारण हो जाने से शोध को सम्यक दिशा प्राप्त हो जाती है।
(4)-पुनरावृत्ति सम्भव (Replication possible)-
शोध निष्कर्षों का मूल्यांकन विश्वसनीयता व वैद्यता की कसौटी पर कसा जाता है यह विश्वसनीयता व वैद्यता बार बार मुल्यांकनोपरांत सुनिश्चित होता है अतः शोध कार्य में पुनरावृत्ति सम्भव है जोकि परिकल्पना के अभाव में सम्भव नहीं है।
(5)- सार निकालने में सहायक (Helps in recapitulation )-
परिकल्पनाओं की स्थिति के विश्लेषणोपरान्त उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति तय होती है जो समस्या के चयन,परिकल्पना उद्देश्य निर्धारण ,उपकरण चयन समंक संग्रहण व विश्लेषण की वैज्ञानिक प्रक्रिया से गुजरती है इस प्रकार प्राप्त तथ्यात्मक परिणाम के विवेचन से शोध सार प्राप्त करते हैं जो परिकल्पना अभाव में संभव नहीं।
परिकल्पना का महत्त्व ( Importance of Hypothesis)
(1)ज्ञान को अद्यतन करने का महत्वपूर्ण उपकरण (Powerful tool for the advancement of knowledge)-
चूंकि इससे ज्ञान को दिशा मिलाती है इसलिए नवीन ज्ञान तक पहुँचना व उससे जुड़ना सरल हो जाता है जिसे स्वीकारते हुए फ्रेड एन करलिंगर कहते हैं –
परिकल्पनाएँ ज्ञान की समृद्धि हेतु शक्तिशाली उपकरण हैं क्योंकि वे मनुष्य को अपने से बाहर आने के योग्य बनाती हैं।
“Hypothesis are powerful tools for the advancement of knowledge because they enable men to get out side himself.” – Fred N Karlingar
(2)- अन्तरिम स्पष्टीकरण में सहायक (Helps in tentative Explanation)-
अनुसंधान कार्यों की संरचना समझना और समझाने योग्य बनाना व सम्यक व्याख्या में परिकल्पना महत्वपूर्ण योग है जैसा कि चैपलिन महोदय ने कहा –
“परिकल्पना एक अवधारणा है जो अन्तरिम स्पष्टीकरण करती है। “
“Hypothesis is an assumption which serves as a tentative explanation.” -Chaplin
(3)-नवीन शोध कार्यों का निर्देशक (Guide for further investigation)-
परिकल्पना जहां पूर्व कल्पित एवं विचारपूर्ण कथ्य होता है वहीं भविष्य के शोध हेतु निर्देशन कार्य भी करता है सी0 वी 0 गुड तथा डी 0 ई 0 स्केट्स के शब्दों से स्पष्ट है।
” परिकल्पना एक सुनिश्चित अनुमान या निष्कर्ष होता है जिसे अवलोकित तथ्यों तथा दिशाओं को स्पष्ट करने के लिए एवं अन्वेषण को निर्देशित करने के लिए बनाया जाता है। “
“A hypothesis is a shrewd guess or interference that is formulated and provisionally adopted to explain observed facts a condition and to guide further investigation.” C.V. Good, D. E. Scates
(4)-प्रायोगिक परिकल्पनाओं के सत्यापन में सहायक ( Helpful for Experimental Verification )-
परिकल्पना एक महत्वपूर्ण कारक इसलिए भी है क्योंकि इससे आनुभविक या प्रायोगिक परिकल्पना के सत्यापन में मदद मिलती है जैसा कि एम वर्मा के शब्दों से स्पष्ट है :-
“सिद्धान्त जब औपचारिक व स्पष्टता में किसी परीक्षणीय प्रतिज्ञप्ति के रूप में अभिकथित करके आनुभविक या प्रायोगिक रूप से सत्यापित किया जाता है ,परिकल्पना कहा जाता है। “
“Theory when stated as a testable proposition formally,clearly and subjected to empirical or experimental verification is known as hypothesis)” -M.Varma
अच्छी परिकल्पना की विशेषताएं (Characteristics of good hypothesis):-
अनुसन्धान परिमाणोन्मुख होता है परिणामों को उचित दिशा व विश्वसनीय बनाने में परिकल्पना के स्तर का विशिष्ट योगदान होता है अनुसन्धानकर्त्ता अपनी समझ विवेक आवश्यकता व उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना बनाता है लेकिन अच्छी परिकल्पना निर्माण शोध को निश्चित ही सम्यक दिशाबोध कराता है एक अच्छी परिकल्पना में निम्न गुणों का समावेशन देखने को मिलता है :-
(1)- उपयुक्त हल (Adequate Solution )-
एक अच्छी परिकल्पना शोध समस्या को उपयुक्त हल सुझाती है एक समस्या के निदान हेतु विभिन्न उपकल्पनाएँ हो सकती हैंपर समस्या की विभिन्न विमाओं के अध्ययनोपरान्त उपयुक्त हल सुझाने वाली परिकल्पना का चयन करना ही उत्तम होगा।
(2)-स्पष्टता ( Clarity)-
समस्या में प्रयुक्त चरों के बीच सम्बन्धों को स्पष्ट करने में परिकल्पना को सक्षम होना चाहिए, बोधगम्य परिकल्पना के होने पर शोध को उपयुक्त गरिमा स्तर प्राप्त होगा।
(3)-सरलता (Simplicity )-
परिकल्पना की सरलता प्रयोग को सरल बना देती है इससे उसकी वैधता सरल मापनीय बन जाती है। भ्रम का अन्देशा नहीं रहता इसलिए सुगम बोधगम्य ,स्पष्ट परिकल्पना अपने आप में विशिष्ट होती है।
(4 )-सत्यापनीय (Verifiable )-
परीक्षणीय होना परिकल्पना की महत्वपूर्ण विशेषता है परिकल्पना के रूप में मापनीय कथन का प्रयोग होने से आनुभविक परीक्षण भी सम्भव हो जाता है।
(5 )-विनिर्दिष्टता (Specificity)-
यह परिकल्पना की महत्वपूर्ण विशिष्टता है एक अच्छी परिकल्पना विशिष्ट क्षेत्र स्पष्ट निर्देशन व वर्णन में सक्षम होती है अत्याधिक विस्तृत परिक्षेत्र वाली परिकल्पना का परीक्षण दुष्कर हो जाता है।
(6 )-मितव्ययता(Frugality )-
एक अच्छी परिकल्पना को अधिक व्यय साध्य न होकर मितव्ययी होना चाहिए यह अभाव में प्रभाव दिखाने वाली लघुस्पष्ट व बोधगम्य हो।
एक अच्छी परिकल्पना तार्किक रूप से बोध गम्यताव व्यापकता का गुण स्वयं में सन्निहित रखती है इसके द्वारा सभी महत्वपूर्ण पक्षों के समावेशन का प्रतिनिधित्व तार्किक रूप से दीख पड़ता है।
(8 )-संगतता (Consistency )-
एक अच्छी परिकल्पना समय के साथ भी अच्छा सामञ्जस्य रखती है यह उस समय तक ज्ञात तथ्यों सिद्धान्तों नियमों से संगतता रखती है और निगमनात्मक चिन्तन पर आधारित होती है।
अच्छी परिकल्पना को बनाना श्रम साध्य है उक्त विशेषता युक्त परिकल्पनाएं अच्छी परिकल्पना की श्रेणी में रखी जा सकती हैं।
सर्व राक्षस सङ्घाना राक्षसा ये च पूर्वजाः। अलमेकोअपि नाशाय वीरो वालिसुतः कपिः।।
उक्त पंक्तियों में गीता प्रेस ,गोरख पुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण ,द्वितीय खण्ड के एकोनषष्टितमः सर्गः के 14वें श्लोक में हनुमान जी की परिकल्पना है कि :- सम्पूर्ण राक्षसों व उनके पूर्वजों को भी यमलोक पहुँचाने हेतु वाली के वीर पुत्र कपिश्रेष्ठ अङ्गद ही पर्याप्त हैं।
वास्तव में परिकल्पना अन्तिम उत्तर न होकर सुझाया गया कथन या प्रस्ताव ही है।
शोध कार्य की परिणति जब लघुशोध (Dissertation) या शोधग्रन्थ (Thesis) के रूप में हो जाती है तो कार्य पूर्ण नहीं हो जाता तथा कम शब्दों में सम्पूर्ण शोध कार्य को “शोध सार” के रूप में बोधगम्य बनाया जाता है जिससे कम समय में तत्सम्बन्धी कार्य क्षेत्र के बुद्धिजीवी उसे समझ सकें।
किसी भी क्षेत्र में शोध करने से पूर्व मनोमष्तिष्क में एक तूफ़ान एक हलचल महसूस होती है, शोध परिक्षेत्र की तलाश प्रारम्भ होती है, विषय की तलाश से लेकर परिणति तक का आयाम मुखर होने लगता है और इसी मनोवेग वैचारिक तूफ़ान को शोध एक सृजनात्मक आयाम देता है एवं अस्तित्व में आता है शोध प्रोपोज़ल या शोध प्रारूपिका। हमारे शोधार्थियों में इसके लिए शब्द प्रचलन में है: —-Synopsis.