शोध का परिक्षेत्र अत्यन्त व्यापक है और किसी भी परिणाम तक पहुँचने हेतु पग पग पर तथ्यों के गुण दोष का विवेचन करने पर यथार्थ का बोध होता है शोध कार्य से सामान्यीकरण तक पहुँचने के लिए भी न्यादर्श के गुण दोषों को समझना परम आवश्यक है। यद्यपि न्यादर्श अत्याधिक उपयोगी है लेकिन इसके भी कुछ गुण दोष हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।
MERITS OF SAMPLING
न्यादर्शकेगुण
01 – समय की बचत /Saving of time
02 – श्रम की बचत /Saving of labour
03 – गहन व सूक्ष्म अध्ययन /In-depth and detailed study
04 – प्रशासकीय सुविधा /Administrative convenience
05 – विशिष्ट दशाओं में उपयोगी /Useful in specific conditions
06 – लोच का गुण /Quality of flexibility
07 – मितव्ययता/ Economy
DEMERIS OF SAMPLING
न्यादर्शकेदोषअथवासीमाएं
01 – प्रतिनिधि न्यादर्श चयन दुष्कर / Representative sample selection is difficult
02 – पक्षपात की सम्भावना /Possibility of bias
03 – पर्याप्त ज्ञान का अभाव / Lack of sufficient knowledge
04 – विशिष्ट ज्ञान आवश्यक /Special knowledge required
05 – न्यादर्श पर स्थिर रहना कठिन /Difficult to stick to the sample
06 – न्यादर्श सार्वभौमिक विधि नहीं /Sampling is not a universal method
07 – न्यादर्शन प्रयोज्य की अस्थिरता / Instability of sampling subject
ज्ञान के सम्यक विकास को जो आलम्बन प्राप्त होता है, उसके मूल में विद्यमान है शोध।
शोध प्रारूप में उसे उद्देश्य तक ले जाने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है न्यादर्श।
न्यादर्श का भलीभाँति अधिगम करने के लिए परम आवश्यक है कि न्यादर्श के प्रारूप को अधिगमित किया जाए। आज इसी विषयवस्तु पर विचार का महत्त्वपूर्ण दिवस है।
प्रारूप (FORMAT) –
न्यादर्श के विविध नाम, विविध विधियों और विविध प्रकारों का वर्णन देखने सुनने को मिलता है लेकिन सुविधाजनक और सरलतम सामान्य रूप से अधिगमित करने हेतु न्यादर्श के प्रकारों का इस प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता है।
यादृच्छिकन्यादर्श (Random Sampling) –इस विधि द्वारा जनसँख्या के प्रत्येक सदस्य के चुने जाने की सम्भावना बराबर रहती है इसमें एक का चुना जाना दूसरे पर कोई असर नहीं डालता। प्रसिद्द विचारक गुडे व हैट ने इस सम्बन्ध में कहा –
“The unit of the universe must be so arranged that the selection process give equi-probability of selection to every unit in that universe.” Goode and Hatt,
“Random Sampling is one in which every unit of the population or the population as a whole gets an equal opportunity to be included in the sample.”
इसमें सामान्यतः निम्न विधियों को प्रयोग में लाते हैं –
लॉटरी विधि २- सिक्का उछालकर ३ – पासा फैंक कर ४- टिपिट तालिका द्वारा (41600 – 10400)
स्तरीकृतन्यादर्श (Stratified Sampling) –
यह विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है इसमें किन्ही विशेषताओं के आधार पर जनसंख्या को अलग अलग स्तरों या वर्गों में बाँट लिया जाता है तत्पश्चात इसी में से यादृच्छिक विधि से अभीष्ट न्यादर्श का चयन कर लेते हैं। जैसा कि Dictionary of Education के पृष्ठ संख्या 506 पर लिखा है –
” Stratified Sample is a sample obtained by dividing the entire population into categories or strata according to some factor or factors and sampling proportionality and independently from each categories usually being done randomly.”
इस विधि में कुल जनसंख्या को कुछ इकाइयों में या समूहों में बाँट लेते हैं इसे ग्रुप न्यादर्श भी कहते हैं इन्हीं गुच्छों या समूहों में से यादृच्छिक तरीके से अभीष्ट न्यादर्श को चुन लिया जाता है। जैसा कि Fred N Karlinger महोदय कहते हैं। –
“Cluster Sampling most used method in survey’s, is the successive random sampling of units or sets or subsets.”
इस विधि में कुल जनसँख्या का संख्यात्मक मान पता होना जरूरी है इस पूरी सूची को किसी भी तरह से जैसे वर्णमाला या क्रमिक नम्बर से क्रमबद्ध कर लेते हैं ,सभी को एक ही विधि से लिखा जाता है इसके बाद एक क्रम से इकाई या व्यक्ति का चयन करते हैं जैसे हर 20 वां व्यक्ति अभीष्ट न्यादर्श में शामिल होगा। अर्थात यदि 1000 में से 50 को न्यादर्श रूप में लेना है तो 1000 में 50 का भाग देने से पता चल जाएगा कि हर 20वां व्यक्ति लेना होगा।
बहुस्तरीयन्यादर्श (Multistage Sampling) –
जब क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत होता है तो इस विधि को प्रयोग में लाया जाता है इसमें इकाइयों का चयन विविध स्तरों से किया जाता है इनको ज्ञात करने हेतु प्रमुख आधार यादृच्छिक न्यादर्शन ही होता है इसमें विविध स्तरों से किसी के भी चयन की सम्भावना बनी रहती है और सभी स्तरों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है। शिक्षा शब्दकोष में पृष्ठ 507 पर लिखा –
” Multistage Sampling is sampling carried out in a successive stages; for example, selecting several clusters randomly from each of a number of stratified clusters.” Dictionary of Education p.507
अभ्यंशन्यादर्श (Quota Sampling) – यह असम्भाव्य न्यादर्श की एक महत्त्वपूर्ण विधि है यह काफी कुछ स्तरीकृत न्यायदर्शन जैसी लगती है लेकिन इसमें प्रत्येक स्तर या वर्ग हेतु कोटा पूर्व निर्धारित होता है जिसकी जानकारी शोधकर्ता को रहती है इसे स्पष्ट करते हुए करलिंगर(Kerlinger) महोदय कहते हैं –
“One form of non probability sampling is Quota Sampling, in which knowledge of strata of the population sex, race, region and so on is used to select sample members that are representative ,typical and suitable for certain research purposes.” Fred N Kerlinger
सोद्देश्यन्यादर्श (Purposive Sampling) –
सोद्देश्य न्यादर्शन विधि में उद्देश्य प्रमुख होता है ,इस उद्देश्य के अनुसा ही शोध कर्त्ता अपनी इच्छाओं व विवेक का प्रयोग करता है उद्देश्यानुरूप विविध इकाइयों का चयन अभीष्ट न्यादर्श हेतु किया जाता है शेष को छोड़ दिया जाता है। समग्र का प्रतिनिधित्व करने वाला न्यादर्श बन सके इस बात का प्रमुखतः ध्यान रखा जाता है। इस सम्बन्ध में Guillford महोदय ने लिखा –
“A purposive sample is one arbitrarily selected because there is a good evidence that sample is very representative of the total population.”
J.P.Guillford, Fundamentalof statistics in Psychology and Education.(1956) p.199
आकस्मिकन्यादर्श ( Incidental Sampling) –
यह वह न्यादर्श है जो सहजता से सुविधानुसार उपलब्ध हो जाता है एवम् इसी कारण इसे सुविधाजनक न्यायदर्शन (Convenient Sampling ) के नाम से भी जाना जाता हैशिक्षाशब्दकोषमें पृष्ठ 506 पर इस सम्बन्ध में लिखा है कि –
“Incidental Sample is a group used as a sample solely because it is readily available.”
Dictionary of Education p. 506
निर्णितन्यादर्श (Judgement Sampling) –
इसमें शोध कर्त्ता अपने किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं निर्णीत इकाइयों के समूह का चयन करता है इस चयनित न्यादर्श को निर्णित न्यादर्श कहा जाता है।
जिस चराचर जगत में मानव रहता है उसमें उस जैसे जीवों की संख्या अरबों खरबों में है। जिस क्षेत्र पर शोध कार्य सम्पन्न किया जाना होता है उसमेंसभी से आंकड़े एकत्रित करना न तर्क संगत है और न व्यावहारिक। जिस तरह भगौने में बनाने वाले चावलों में से एक निकालकर सम्पूर्ण के पकने का अहसास हो जाता है यहाँ एक चावल प्रतिनिधिकारी शक्ति के रूप में कार्य करता है लेकिन मानव चेतन है और प्रत्येक मानव के कार्य व्यवहार सोचने का ढंग पृथक पृथक होता है इसीलिये सम्पूर्ण जनसंख्या में से शोध हेतु प्रतिनिधिकारी संख्या की आवश्यकता होती है उस निश्चित जनसंख्या (Papulation) को ही न्यादर्श (Sample)कहते हैं। मानविकी या सामाजिक शोध कार्यों में न्यादर्श बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। विज्ञान विषयों के परिक्षेत्र में न्यादर्श चयन की समस्या नहीं होती यद्यपि न्यादर्श वहां भी प्रयोग किया जाता है।
न्यादर्शकीपरिभाषा / Definition of Sampling –
विविध विद्वानों ने इसे विविध प्रकार से पारिभाषित किया है प्रस्तुत हैं कुछ परिभाषाएं –
“A statistical sample is a miniature picture or cross section of the entire group of aggregate from which the sample taken.”
Scientific Social Survey and Research, p 302
न्यादर्शकेचयनकीआवश्यकताक्यों ?
/ Why is there a need for sample selection?
01 – समग्र का प्रतिनिधित्व / Representation of the whole
02 – समाज के समुचित निर्देशन हेतु / For proper direction of society
03 – मितव्ययी प्राविधि / Economical method
04 – कुशल समय प्रबन्धन सम्भव / Efficient time management is possible
05 – सम्पूर्ण जनसंख्या का अध्ययन सम्भव / Study of entire population is possible
06 – गहन शुद्धतम जानकारी सम्भव /Deepest and most accurate information possible
07 – असम्भव परिक्षेत्र का अध्ययन सम्भव / Studying the impossible area is possible
न्यादर्शकीपरिसीमाएं / limitations of sampling –
01 – पूर्वधारणा का प्रभाव / Effect of prejudice
02 – पक्षपात की सम्भावना / Possibility of bias
03 – पूर्ण जनसँख्या का प्रतिनिधित्व दुष्कर / Difficult to represent the entire population
04 – योग्य कार्यकर्त्ता अभाव / Lack of qualified workers
05 – प्रयोज्य की गाम्भीर्य हीनता / Serious lack of usability
06 – यादृच्छिक तकनीक सर्वोत्तम तो नहीं / Random technique is not the best
उक्त सम्पूर्ण विवेचन न्यादर्श के बारे में बताने में सक्षम है लेकिन इसके बारे में विस्तार से जानना शोधार्थियों और उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों हेतु आवश्यक है न्यादर्श के प्रारूप पर आगे विचार कर आपके समक्ष रखने का प्रयास किया जाएगा .
मापन की दुनियाँ निराली है हमारी दृष्टि ,हमारा दृष्टिकोण जब परिमार्जित रूप से शोध का आधार तैयार करता है तब परम आवश्यक भूमिका का निर्वहन करते हैं आँकड़े। शोध हेतु सामाजिक, आर्थिक, भौतिक, मनोवैज्ञानिक जो आँकड़े प्राप्त होते हैं उनके आधार पर ही विविध मापन सम्भव होता है। इन्ही से व्यावहारिक विज्ञानों को आधार मिलता है। एस ० एस ० स्टीवेंस महोदय ने मापन को चार स्तरों में विभाजित किया है कुछ विज्ञ जनों ने इन स्तरों को स्केल कह कर वर्णित किया है जो इस प्रकार है –
1 – शाब्दिक स्तर (Nominal Level) or शाब्दिक पैमाना (Nominal Scale)
2 – क्रमिक स्तर (Ordinal Level) or क्रमिक पैमाना (Nominal Scale)
3 – अन्तराल स्तर (Interval Level) or अन्तराल पैमाना (Nominal Scale)
4 – आनुपातिक स्तर (Ratio Level) or आनुपातिक पैमाना (Nominal Scale)
डॉ अमरजीत सिंह परिहार ने मापन के इन चार स्तरों के आधार पर मापन के चार प्रकार इस प्रकार बताए हैं
1 – शाब्दिक मापन (Nominal Measurement)
2 – क्रमिक मापन (Ordinal Measurement)
3 – अन्तराल मापन (Interval Measurement)
4 – आनुपातिक मापन (Ratio Measurement)
अधिगम व अध्ययन के दृष्टिकोण से विभिन्न स्तरों को इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है
1 – शाब्दिक स्तर (Nominal Level) –
इस स्तर पर केवल गुण को ध्यान में रखा जाता है चाहे वस्तु हो या व्यक्ति। इसे नामित और वर्गीकृत स्तर भी कहा जाता है। व्यावहारिक विज्ञानों में इस स्तर को प्रयोग में लाया जाता है उदाहरण के रूप में रहने या निवास के आधार पर शहरी या ग्रामीण, लिङ्ग के आधार पर महिला पुरुष , अध्ययन हेतु स्नातक स्तर पर कला, विज्ञान, वाणिज्य वर्ग में विभाजित करना। इसी तरह अगर बरेली को सुरक्षा के दृष्टिकोण से 5 भागों में बांटना हो और समस्त मोहल्लों को 5 भागों में बाँटकर बरेली-1, बरेली -2, बरेली – 3, बरेली – 4, बरेली – 5 आदि नाम दिय जाए तो इसे नामित या शाब्दिक स्तर कहेंगे।
अतः यहाँ यह कहा जा सकता है कि गुणात्मक चरों के आधार पर मापन का यह स्तर शाब्दिक स्तर (Nominal Level) कहलाता है।
2 – क्रमिक स्तर (Ordinal Level) –
इस स्तर में गुण के आधार पर प्राणी या वस्तु का मापन करते हैं और इस आधार पर वर्ग विशेष को संकेत या नाम दे दिया जाता है। इस मापनी में विशेषताओं या योग्यताओं के आधार पर एक क्रम आरोही या अवरोही बना लिया जाता है। इसी आधार पर श्रेणी या विशेष क्रम प्रथम, द्वित्तीय, तृतीय आदि विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में प्रदान किया जाता है।इस क्रमित मापनी को कोटिकरण मापनी या क्रम सूचक मापनी भी कहते हैं। श्रेष्ठता के आधार पर विश्व सुन्दरी, खिलाड़ी,नौकरी हेतु चयन, विविध सेवाओं में चयन में यही आधार बनाता है।
3 – अन्तराल स्तर (Interval Level) –
इसे मापन के स्तरों में तृतीय स्थान प्रदान किया गया है इसमें ऊपर के दो स्तरों में सुधार किया गया है यद्यपि यह वास्तविक शून्य से प्रारम्भ नहीं होता लेकिन अन्तराल बराबर रखा जाता है इसका बहुत अच्छा उदाहरण थर्मामीटर है वास्तव में अन्तराल मापनी में वस्तु या प्राणी के किसी गुण का मापन इकाइयों के माध्यम से किया जाता है। इनमें दो लगातार अंकों के बीच समान अन्तर रहता है।इस मापनी के द्वारा सापेक्षिक मापन(Relative measurement) किया जाता है न कि निरपेक्ष मापन (Absolute measurement)।
4 – आनुपातिक स्तर (Ratio Level) –
यह उक्त तीनों मापनियों से उच्च स्तर की है इसमें उक्त तीनों की विशेषताएं समाहित रहती हैं वास्तविक शून्य बिन्दु मौजूद रहता है और यह शून्य बिन्दु कल्पित नहीं होता। लम्बाई, दूरी, भार आदि के मापन हेतु हम यहीं से प्रारम्भ करते हैं वास्तविक शून्य बिन्दु ही अनुपात मापनी का प्रारम्भिक बिंदु मन जाता है। इस मापन द्वारा प्राप्त संख्यात्मक मान बताता है कि यह दूरी उसकी दो गुनी या चार गुनी है। इसकी लम्बाई उसकी आधी है आदि अर्थात मापित शील गुणों के मध्य अनुपात इसके द्वारा प्राप्त संख्या द्वारानिर्धारित किया जाता है। उदाहरणार्थ यदि मेरा वजन 110 कि० ग्रा० और X महोदय का 55 कि० ग्रा० है तो हम दोनों का भार अनुपात 2 :1 हुआ। इस तथ्य से यह भी स्पष्ट होता है कि यह स्तर केवल भौतिक चरों का मापन कर सकता है अभौतिक का नहीं।
सम्पूर्ण विश्व और इसके विविध तत्व अपने आपको मापन से पृथक नहीं कर सकते। जहाँ परिमाण है, जहाँ अंक है, जहाँ तुलना है, MKS, FPS या CGS कोई भी प्रणाली हो गुण, अवगुण या मानवीय चेतना का कोई भी आयाम हो मापन की परिधि में आ जाता है।
वर्तमान काल जिसे हम विज्ञान का युग कहते हैं इसकी सम्पूर्ण प्रगति का आधार यह मापन ही है।जन्म से मृत्यु तक हर आयु वर्ग में समय, दूरी, गति, धन, नौकरी, व्यवसाय, कालांश,अध्ययन, न्यादर्श हर जगह मापन है। मापन हमारे साथ इस तरह सन्नद्य है कि हम चाह कर भी इससे अलग नहीं हो सकते। मीठा, नमकीन, ऋतु परिवर्तन, पृथ्वी परिभ्रमण सम्पूर्ण प्रकृति इसके आगोश में अपने को सुगम बनाती है। रॉसमहोदय ने तो यहाँ तक कहा –
“If all the instruments and means of measurement were to disappear from this world, modern civilization would collapse like a wall of sand.”
आज के सभी गैजेट्स और हमारी पूरी दिनचर्या मापन से युक्त हैं।
MEANING AND DEFINITION
आशयवपरिभाषा –
यद्यपि मापन को परिभाषा में बाँधना या अभिव्यक्त करना एक दुष्कर कार्य है लेकिन अधिगम योग्य बनाने हेतु कहा जा सकता है कि परिमाणात्मक रूप से अपने अवलोकन को अभिव्यक्त करना ही मापन है। वास्तव में मापन भौतिक पदार्थ की विशेषता या गुण को अंकात्मक मान प्रदान करना है। किसी व्यक्ति के गुण, बुद्धि, मानसिक स्तर या किसी भी तुलना हेतु महत्त्व पूर्ण कारक मापन है।
“Measurement is the process of assigning symbols to dimensions of a phenomenon in order to characterise the status of the phenomenon as precisely as possible.” – Bradfield and Mordock
“Measurement has been defined as the process of obtaining a numerical description of the extent to which a person or thing possesses some characteristics.”
उक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मापन से वस्तुओं, व्यक्तियों को गुण धर्मों के आधार पर अंक, शब्द, अक्षर या संकेत प्रदान किये जाते हैं।
Functions of Measurement/ मापनकेकार्य –
1 – शीलगुणनिर्धारण।/ Determination of Trait
2 – तुलना / Comparison
3 – भविष्यकथन /Prediction
4 – वर्गीकरण / Classification
5 – निदान / Diagnosis
6 – निर्देशनवपरामर्श / Guidance and Counseling
7 – शोध / Research
उक्त सम्पूर्ण विवेचन यह स्पष्ट करता है कि ज्ञान के परिक्षेत्र में जो भी नए नए आयाम जुड़ते जा रहे हैं मापन भी अपने परिक्षेत्र का तदनुरूप विस्तार व रूप परिवर्तन करता जा रहा है।
शोध उपकरण से आशय उन साधनों से है जिनका उपयोग करके समंकों का
एकत्रीकरण किया जाता है यह अध्ययन हेतु डेटा संग्रह का उपागम बन जाता है। शोध को
सही दिशा मिल जाती है यदि सम्यक उपकरण का प्रयोग किया जाता है। कभी कभी शोध के
स्वरुप के अनुसार एक से अधिक उपकरणों की आवश्यकता परिलक्षित होती है। लेकिन कुल
मिलाकर है यह एक साधन ही,
जो डाटा (समंक ) संग्रहण में हमारी मदद करता
है।
शोध की दृष्टि से आज बहुत से उपकरण विद्यमान हैं सर्वेक्षण,केस स्टडी, प्रश्नावली, साक्षात्कार, अभिरुचि व निर्धारण पैमाने आज समंक संग्रहण हेतु प्रयुक्त किये जाते हैं। लेकिन किसी भी शोध उपकरण या मनोवैज्ञानिक परीक्षण की गुणात्मकता हेतु यह आवश्यक होगा कि वह निम्न विशेषताओं को धारण करे।
कसौटियाँ या विशेषताएँ (Criteria or Characteristics) –
आज शोध को सही दिशा देने हेतु यह आवश्यक है कि समंक सही प्राप्त हों ,क्योंकि समंकों के बारे में कहा जाता है कि
समंक झूठ नहीं बोलते पर स्वयं झूठे हो सकते हैं। आज डाटा एकत्रीकरण हेतु हम
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का सहारा लेते हैं। Klausmeier & Goodwin महोदय कहते हैं –
“Good standardized tests must meet the criteria of
validity, reliability, and usability.”
जिन गुण धर्मों के आकलन हेतु हम शोध उपकरण या मनोवैज्ञानिक परीक्षण
का निर्माण करते हैं उस सम्पूर्ण साधन को उस गुण के मापन हेतु ही समर्पित रहना
चाहिए। Douglas and
Holland का मानना है –
“A good examination must possess a number of
characteristics, and these characteristics become the basic principles
underlying the construction of each test.”
एक अच्छे मनोवैज्ञानिक या शोध परीक्षण को कुछ व्यावहारिक व कुछ
तकनीकी कसौटियों पर परखना होगा ,जिन्हे
इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।
सामान्य सम्भावना वक्र आज की ऐसी आवश्यकता है कि विविध विज्ञानों में इसका प्रयोग किया जाता है मनोविज्ञान और शिक्षा भी इससे अछूता नहीं है। यदि किसी चर से सम्बन्धित प्राप्ताङ्क वितरण किसी ग्राफ पेपर के माध्यम से दिखाने का प्रयास करेंगे तो घण्टे जैसी आकृति दिखाई पड़ती है खासकर तब जब वितरण का परिक्षेत्र बड़ा होता है यही आकृति सामान्य सम्भावना वक्र कहलाती है।
सामान्य सम्भावना वक्र से आशय (Meaning of normal probability curve)–
सामान्य सम्भावना वक्र एक गणितीय वक्र है जो आवृत्ति के वितरण को
सामान्य रूप से निरूपित करता है। जब हम किसी परीक्षण से प्राप्त अंकों के आधार पर
आवृत्ति वितरण बनाते हैं और इसे ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित करते हैं तो जो वक्र बनता
है उसे अवलोकित वक्र कहते हैं जब यही किसी बड़े यादृच्छिक समूह के आंकड़ों पर अवलम्बित
होता है तो वक्र की आकृति घण्टे के आकार की (Bell Shaped) होती है समूह का आकर बड़ा होने पर यह घण्टाकृति ही सामान्य सम्भावना
वक्र (NPC) या Normal
Probability Curve के
नाम से जानी जाती है। इस सम्बन्ध में डॉ ० डी ० एन ० श्रीवास्तव ने लिखा –
“सामान्य सम्भावना वक्र एक गणितीय आदर्श वक्र ही नहीं है बल्कि यह एक
सैद्धान्तिक वक्र भी है जिसकी पूर्ण प्राप्ति बहुत कठिन है लेकिन इसके बाद भी
व्यावहारिक समस्याओं से सम्बन्धित चरों के अध्ययन में इस वक्र का बहुत अधिक उपयोग
है।”
सामान्य सम्भावना वक्र की विशेषताएं (Characteristics of Normal Probability
Curve) –
यथार्थ तथ्य यह है की सामान्य सम्भाव्यता वक्र का व्यावहारिक उपयोग
है और इसे सांख्यिकीय परिक्षेत्र से जुड़े अध्ययन कर्त्ता को जानना ही चाहिए इसकी
कतिपय प्रमुख विशेषताओं को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं।–
01 – आकृति (Shape) –
सामान्य प्रायिकता वक्र का आकार घण्टाकार (Bell Shaped),पूर्ण सममिति (Symmetrical),एकल बहुलांकी (Uni modal) तथा सामान्य वक्रता वाला (Mesokurtic) होता है। इसके मध्य में सर्वाधिक प्राप्तांकों की संख्या होती है।
02 – सामान्य सम्भावना वक्र का समीकरण (Equation of Normal Probability Curve)
–
सामान्य प्रायिकता वक्र NPC की गणितीय समीकरण (Mathematical Equation) को इस प्रकार दिया जाता है इससे NPC का X अक्ष से विस्तार और Y अक्ष की ऊँचाई का निर्धारण किया जाता है –
x = मध्यमान से विचलन, x =X –M
Y= X अक्ष के ऊपर वक्र की ऊँचाई
N = कुल आवृत्ति
σ = प्राप्ताँकों का मानक विचलन
e = स्थिरांक, जिसका मान 2.71828
होता है।
π = स्थिरांक,जिसका मान 3.1416
होता है।
03 – केन्द्रीय मानों की समानता (Equality of Central Tendency Measures) –
सामान्य सम्भावना वक्र में केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीनों मानों में
समानता रहती है। कहने का आशय यह है कि
मध्यमान (M), मध्यांक (Mdn) और बहुलांक (Mo) तीनों का मान एक ही होता है अर्थात ये
तीनों ही NPC के मध्य बिंदु पर स्थित होते हैं। यानी
M =
Mdn = Mo
04 – विषमता गुणाङ्क ( Cofficient of Skewness ) –
सामान्य सम्भावना वक्र में पूर्ण सीमितता पाई जाती है अतः सामान्य
सम्भावना वक्र का विषमता गुणाङ्क शून्य माना जाता है अर्थात
Sk =0
05 – वक्रता या कुकुदता गुणाङ्क (Cofficient of Kurtosis )–
सामान्य सम्भावना वक्र (NPC)न तो बहुत अधिक नुकीला होता है और न चपटा बल्कि यह औसत ऊँचाई वाला वक्र होता है सामान्य
सम्भावना वक्र के वक्रता गुणाङ्क का मान 0.263 होता है अर्थात
Ku = 0.263
06
– अनन्त स्पर्शी (Agymptotic) –
सामान्य सम्भावना वक्र के दाहिने और बांए चोर को यदि X – अक्ष पर निरीक्षित किया जाए तो दिखाई पड़ेगा कि इसका विस्तार ऋण अनन्त (-∞) से धन अनन्त (+∞) तक फैला होता है। इसी कारण सामान्य सम्भावना वक्र के दाएं और बांए सिरे कभी X – अक्ष को स्पर्श नहीं करते। अपनी इसी विशेषता के कारण इस वक्र को अनन्त स्पर्शी कहा जाता है जैसा कि पूर्व के चित्रों से स्पष्ट है।
07 – क्षेत्रफल
सम्बन्ध (Area under NPC) –
सामान्य प्रायिकता वक्र (NPC)
एवम् आधार
रेखा के मध्य का क्षेत्रफल सामान्य प्रायिकता वक्र का क्षेत्रफल कहलाता है।
प्राप्तांकों का के ±1σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या का 2
/3 क्षेत्रफल यानि
68.26 %भाग आ जाता है।
सामान्य सम्भावना वक्र के ±2σ
के अन्तर्गत
वितरण या जनसँख्या या प्राप्तांकों का 95.44 % क्षेत्र आ
जाता है।
सामान्य सम्भावना वक्र के ±3
σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या या प्राप्तांकों का 99.72
% क्षेत्रफल आ जाता है।
चूँकि ±3 σ के अन्तर्गत वितरण या जनसँख्या के 99.72 % प्राप्तांक आ जाते हैं अतः व्यावहारिक समस्याओं के समाधान हेतु यह मान लिया जाता है कि सामान्य प्रायिकता वक्र के ±3 σ के बीच लगभग समग्र परिक्षेत्र या प्राप्तांक आ जाते हैं।
08 – मानक
प्राप्तांकों में परिवर्तन (Conversion in Standard Scores) –
सामान्य सम्भावना वक्र के प्राप्तांकों को मानक प्राप्तांकों (Standard Scores) में परिवर्तित किया जा सकता है। मानक प्राप्तांकों को मानक दूरी (σ distance द्वारा व्यक्त करते हैं )यह Z प्राप्तांक कहलाता है।
Z=(X-M )/σ = x/σ
=
09
–चतुर्थांशों में सामान अन्तर(similar difference in quartiles) –
सामान्य सम्भावना वक्र के पहले और तीसरे चतुर्थांश का मध्यांक से
सामान अंतर होता है। यह अन्तर चतुर्थांश विचलन (Q) के बराबर होता है। इस समान अन्तर को सम्भाव्य त्रुटि Probable Error या P.E कहते हैं।
10
– Q व S.D में सम्बन्ध (Relationship between Q and SD) –
सामान्य सम्भावना वक्र में चतुर्थांश विचलन (Q) का मान प्रामाणिक विचलन (SD) के मान का लगभग 2/3
होता है।
सामान्य सम्भावना वक्र के उपयोग (Applications of NPC) –
शिक्षा,समाज शास्त्र, मनोविज्ञान आदि के अधिकाँश चर सामान्य सम्भावना वक्र या सामान्य
प्रायिकता वक्र के अनुरूप वितरित होते हैं। इसके अतिरिक्त मापन व मूल्याङ्कन के
परिक्षेत्र में सामान्य प्रायिकता वक्र का अत्याधिक महत्त्व है। चिन्ता, बुद्धि,
स्मृति आदि से सम्बंधित मापों ,प्राप्तांकों को सामान्य प्रायिकता वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता
है अर्थात यह सामाजिक विज्ञानों के प्राप्तांकों, वितरणों को व्यवस्थित क्रम देने में सहयोगी की भूमिका का निर्वहन
करता है। इसके विविध उपयोग इस प्रकार हैं –
1 – किसी समूह में किसी दिए गए प्राप्ताङ्क से कम या अधिक अंक प्राप्त
करने वालों की संख्या ज्ञात करना।
2 – किसी समूह में दिए गए दो प्राप्तांकों के बीच पाए जाने वाले
शिक्षार्थियों की संख्या ज्ञात करना।
3 – परीक्षण के प्रश्नों के कठिनाई स्तर को ज्ञात करना।
4 – योग्यता का प्रसार ध्यान में रखते हुए सामान्य प्रायिकता वक्र के
आधार पर विभिन्न उप समूहों में विभाजित करना।
5 – किसी समूह में किसी विशेष स्थिति वाले छात्रों हेतु प्राप्ताङ्क
सीमायें ज्ञात करना।
एक शोध कर्त्ता जब अपना शोध कार्य पूर्ण करता है तब वह शोध के लाभ को जन जन तक या तत्सम्बन्धी परिक्षेत्र के लोगों को उससे परिचित कराना चाहता है और शोध से प्राप्त दिशा पर विद्वत जनों काप्रतिक्रियात्मक दृष्टि कोण जानना चाहता है ऐसी स्थिति में सहज सर्वोत्तम विकल्प दिखता है -शोध पत्र
शोधकर्त्ता के हाथ में परिकल्पना एक ऐसा साधन है जो शोध का दिशा निर्धारक व प्रणेता है। वास्तव में परिकल्पना निम्न कार्यों को स्वयं में समाहित कराती है –
(1 )-औचित्य पूर्ण मार्गदर्शन (Proper Guidance )-
परिकल्पना का महत्वपूर्ण कार्य शोधकर्त्ता को उचित दिशा निर्देश उपलब्ध कराना है इससे संदिग्धता व भ्रम की स्तिथि समाप्त हो जाती है एवं सम्यक तथ्यों व आंकड़ों के संकलन को सही दिशा मिल जाती है जिसकी तत्सम्बन्धी शोध हेतु आवश्यकता होती है।
(2)-प्रक्रिया निर्धारक( Determiner of procedure)-
परिकल्पना द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि कार्य हेतु उपयुक्त तरीका व उत्तम क्रियाविधि क्या होनी चाहिए इससे अनावश्यक भटकाव नहीं होता।
(3)-तथ्यात्मक चयन में महत्वपूर्ण भूमिकाI (Important role in selection of facts)-
इससे समस्या सम्बन्धी तथ्यों का चयन सरल हो जाता है क्योंकि समस्या का दायरा तय हो जाने से तत्सम्बन्धी आंकड़ों का संग्रहण निश्चित हो जाता है चरों का निर्धारण हो जाने से शोध को सम्यक दिशा प्राप्त हो जाती है।
(4)-पुनरावृत्ति सम्भव (Replication possible)-
शोध निष्कर्षों का मूल्यांकन विश्वसनीयता व वैद्यता की कसौटी पर कसा जाता है यह विश्वसनीयता व वैद्यता बार बार मुल्यांकनोपरांत सुनिश्चित होता है अतः शोध कार्य में पुनरावृत्ति सम्भव है जोकि परिकल्पना के अभाव में सम्भव नहीं है।
(5)- सार निकालने में सहायक (Helps in recapitulation )-
परिकल्पनाओं की स्थिति के विश्लेषणोपरान्त उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति तय होती है जो समस्या के चयन,परिकल्पना उद्देश्य निर्धारण ,उपकरण चयन समंक संग्रहण व विश्लेषण की वैज्ञानिक प्रक्रिया से गुजरती है इस प्रकार प्राप्त तथ्यात्मक परिणाम के विवेचन से शोध सार प्राप्त करते हैं जो परिकल्पना अभाव में संभव नहीं।
परिकल्पना का महत्त्व ( Importance of Hypothesis)
(1)ज्ञान को अद्यतन करने का महत्वपूर्ण उपकरण (Powerful tool for the advancement of knowledge)-
चूंकि इससे ज्ञान को दिशा मिलाती है इसलिए नवीन ज्ञान तक पहुँचना व उससे जुड़ना सरल हो जाता है जिसे स्वीकारते हुए फ्रेड एन करलिंगर कहते हैं –
परिकल्पनाएँ ज्ञान की समृद्धि हेतु शक्तिशाली उपकरण हैं क्योंकि वे मनुष्य को अपने से बाहर आने के योग्य बनाती हैं।
“Hypothesis are powerful tools for the advancement of knowledge because they enable men to get out side himself.” – Fred N Karlingar
(2)- अन्तरिम स्पष्टीकरण में सहायक (Helps in tentative Explanation)-
अनुसंधान कार्यों की संरचना समझना और समझाने योग्य बनाना व सम्यक व्याख्या में परिकल्पना महत्वपूर्ण योग है जैसा कि चैपलिन महोदय ने कहा –
“परिकल्पना एक अवधारणा है जो अन्तरिम स्पष्टीकरण करती है। “
“Hypothesis is an assumption which serves as a tentative explanation.” -Chaplin
(3)-नवीन शोध कार्यों का निर्देशक (Guide for further investigation)-
परिकल्पना जहां पूर्व कल्पित एवं विचारपूर्ण कथ्य होता है वहीं भविष्य के शोध हेतु निर्देशन कार्य भी करता है सी0 वी 0 गुड तथा डी 0 ई 0 स्केट्स के शब्दों से स्पष्ट है।
” परिकल्पना एक सुनिश्चित अनुमान या निष्कर्ष होता है जिसे अवलोकित तथ्यों तथा दिशाओं को स्पष्ट करने के लिए एवं अन्वेषण को निर्देशित करने के लिए बनाया जाता है। “
“A hypothesis is a shrewd guess or interference that is formulated and provisionally adopted to explain observed facts a condition and to guide further investigation.” C.V. Good, D. E. Scates
(4)-प्रायोगिक परिकल्पनाओं के सत्यापन में सहायक ( Helpful for Experimental Verification )-
परिकल्पना एक महत्वपूर्ण कारक इसलिए भी है क्योंकि इससे आनुभविक या प्रायोगिक परिकल्पना के सत्यापन में मदद मिलती है जैसा कि एम वर्मा के शब्दों से स्पष्ट है :-
“सिद्धान्त जब औपचारिक व स्पष्टता में किसी परीक्षणीय प्रतिज्ञप्ति के रूप में अभिकथित करके आनुभविक या प्रायोगिक रूप से सत्यापित किया जाता है ,परिकल्पना कहा जाता है। “
“Theory when stated as a testable proposition formally,clearly and subjected to empirical or experimental verification is known as hypothesis)” -M.Varma
अच्छी परिकल्पना की विशेषताएं (Characteristics of good hypothesis):-
अनुसन्धान परिमाणोन्मुख होता है परिणामों को उचित दिशा व विश्वसनीय बनाने में परिकल्पना के स्तर का विशिष्ट योगदान होता है अनुसन्धानकर्त्ता अपनी समझ विवेक आवश्यकता व उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना बनाता है लेकिन अच्छी परिकल्पना निर्माण शोध को निश्चित ही सम्यक दिशाबोध कराता है एक अच्छी परिकल्पना में निम्न गुणों का समावेशन देखने को मिलता है :-
(1)- उपयुक्त हल (Adequate Solution )-
एक अच्छी परिकल्पना शोध समस्या को उपयुक्त हल सुझाती है एक समस्या के निदान हेतु विभिन्न उपकल्पनाएँ हो सकती हैंपर समस्या की विभिन्न विमाओं के अध्ययनोपरान्त उपयुक्त हल सुझाने वाली परिकल्पना का चयन करना ही उत्तम होगा।
(2)-स्पष्टता ( Clarity)-
समस्या में प्रयुक्त चरों के बीच सम्बन्धों को स्पष्ट करने में परिकल्पना को सक्षम होना चाहिए, बोधगम्य परिकल्पना के होने पर शोध को उपयुक्त गरिमा स्तर प्राप्त होगा।
(3)-सरलता (Simplicity )-
परिकल्पना की सरलता प्रयोग को सरल बना देती है इससे उसकी वैधता सरल मापनीय बन जाती है। भ्रम का अन्देशा नहीं रहता इसलिए सुगम बोधगम्य ,स्पष्ट परिकल्पना अपने आप में विशिष्ट होती है।
(4 )-सत्यापनीय (Verifiable )-
परीक्षणीय होना परिकल्पना की महत्वपूर्ण विशेषता है परिकल्पना के रूप में मापनीय कथन का प्रयोग होने से आनुभविक परीक्षण भी सम्भव हो जाता है।
(5 )-विनिर्दिष्टता (Specificity)-
यह परिकल्पना की महत्वपूर्ण विशिष्टता है एक अच्छी परिकल्पना विशिष्ट क्षेत्र स्पष्ट निर्देशन व वर्णन में सक्षम होती है अत्याधिक विस्तृत परिक्षेत्र वाली परिकल्पना का परीक्षण दुष्कर हो जाता है।
(6 )-मितव्ययता(Frugality )-
एक अच्छी परिकल्पना को अधिक व्यय साध्य न होकर मितव्ययी होना चाहिए यह अभाव में प्रभाव दिखाने वाली लघुस्पष्ट व बोधगम्य हो।
एक अच्छी परिकल्पना तार्किक रूप से बोध गम्यताव व्यापकता का गुण स्वयं में सन्निहित रखती है इसके द्वारा सभी महत्वपूर्ण पक्षों के समावेशन का प्रतिनिधित्व तार्किक रूप से दीख पड़ता है।
(8 )-संगतता (Consistency )-
एक अच्छी परिकल्पना समय के साथ भी अच्छा सामञ्जस्य रखती है यह उस समय तक ज्ञात तथ्यों सिद्धान्तों नियमों से संगतता रखती है और निगमनात्मक चिन्तन पर आधारित होती है।
अच्छी परिकल्पना को बनाना श्रम साध्य है उक्त विशेषता युक्त परिकल्पनाएं अच्छी परिकल्पना की श्रेणी में रखी जा सकती हैं।
सर्व राक्षस सङ्घाना राक्षसा ये च पूर्वजाः। अलमेकोअपि नाशाय वीरो वालिसुतः कपिः।।
उक्त पंक्तियों में गीता प्रेस ,गोरख पुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण ,द्वितीय खण्ड के एकोनषष्टितमः सर्गः के 14वें श्लोक में हनुमान जी की परिकल्पना है कि :- सम्पूर्ण राक्षसों व उनके पूर्वजों को भी यमलोक पहुँचाने हेतु वाली के वीर पुत्र कपिश्रेष्ठ अङ्गद ही पर्याप्त हैं।
वास्तव में परिकल्पना अन्तिम उत्तर न होकर सुझाया गया कथन या प्रस्ताव ही है।