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शोध

Collection of data

April 21, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

समंकों का एकत्रीकरण

किसी शोध कार्य को सम्पन्न करने हेतु जब हम उस विषय का परिचय दे चुके होते हैं और तत्सम्बन्धी साहित्य का अध्ययन कर चुके होते हैं और इसके बाद के महत्त्वपूर्ण चरण पर पहुँचते हैं तो समंकों का एकत्रीकरण सबसे अधिक आवश्यक होता है। सारी गणना, विश्लेषण, परिणाम और उसकी व्याख्या को इसके अवलम्बन की आवश्यकता होती है।समंकों का संग्रहण अपने शोध के अनुसार किया जाता है। ये समंक दो प्रकार के होते हैं जिन्हें विविध प्रकार से हम संग्रहीत करते हैं।

प्राथमिक समंक और इनका संग्रहण / Primary data and its collection

द्वित्तीयक समंक और इनका संग्रहण / Secondary data and its collection 

प्राथमिक समंक और इनका संग्रहण / Primary data and its collection – 

            प्राथमिक समंक उन समंकों को कहा जाता है जिन्हे प्रथम बार नवीन सिरे से इकठ्ठा किया जाता है और इसी कारण ये वास्तविक होते हैं। प्राथमिक समंकों के एकत्रीकरण में व्यावहारिक रूप से अधिक श्रम आवश्यक होता है।

द्वित्तीयक समंक और इनका संग्रहण / Secondary data and its collection  –

            द्वित्तीयक समंक उन समंकों को कहा जाता है जिन्हें पहले ही किन्ही अन्य माध्यमों से इकट्ठे किया जा चुका होता हैं विविध सांख्यिकीय प्रक्रियाएं पहले ही से पूर्ण की जा चुकी होती हैं। इनका अपने शोध की आवश्यकतानुसार आधार रूप में प्रयोग किया जाता है और इस स्रोत का स्पष्टीकरण भी कर दिया जाता है।

            उक्त दोनों प्रकार का संग्रहण चयनित शोध के अनुसार निर्धारित किया जाता है प्राथमिक और द्वित्तीयक समंक अलग अलग तरह से इकट्ठे किये जाते हैं प्राथमिक समंकों को मूल रूपेण इकठ्ठा किया जाता है जबकि द्वित्तीयक समंक कोइ इकट्ठे कर चुका होता है। इनका केवल संकलन स्वनुसार करना होता है। आइये इनके संग्रहण की प्रविधियों पर दृष्टिपात करते हैं।

 प्राथमिक समंक संग्रहण प्रविधियाँ  / Primary data collection techniques –

इस हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली प्रविधियाँ इस प्रकार हैं –

                                [A]  अवलोकन प्राविधि /Observation technique –

पी ० वी ० यंग (P V Yong ) ने इसे समझाते हुए बताया –

“अवलोकन स्वाभाविक घटना का उसके घटित होने के समय पर आँख के माध्यम से क्रमबद्ध एवम् विचारपूर्वक किया हुआ अध्ययन है। अवलोकन का उद्देश्य जटिल सामाजिक घटना, सांस्कृतिक प्रतिरूप अथवा मानव व्यवहार के अन्तर्गत सार्थक अन्तर्सम्बन्धित तत्वों की प्रकृति एवम् विस्तार को प्रकट करना होता है।”

“Observation is a systematic and deliberate study through the eye of spontaneous occurrence at the time they occur. The purpose of observation is to perceive the nature and extent of significant interrelated elements within complex social phenomena, cultural pattern or human conduct.”

P.V.Young. Scientific social survey and Research. New Delhi. Prentic Hall India (p) limited (1956)  p. 154

(01) – नियन्त्रण आधारित / Control based

(a) – नियन्त्रित अवलोकन /Controlled observation

पी ० वी ० यंग (P V Yong ) के अनुसार –

“नियन्त्रित अवलोकन सुनिश्चित एवम् पूर्व व्यवस्थित योजनाओं के अनुसार सम्पन्न किया जाता है, जिसमें यथेष्ट प्रायोगिक प्रक्रिया सम्मिलित की जा सकती है।”

“Controlled Observation is carried on according to define pre-arranged plans which may include considerable experimental Procedure.”

P.V.Young. op. cit. p. 164

(b) – अनियन्त्रित अवलोकन / Uncontrolled observation

गुडे एवम् हैट (Goode and Hatt) के अनुसार 

“सामाजिक सम्बन्धों के विषय में अधिकांश ज्ञान जो लोगों के पास है, अनियन्त्रित अवलोकन से व्युत्पादित होता है।”

“Most of the knowledge which people have, about social relations is derived from uncontrolled observation whither participant or non-participant .

W.J.Goodeand P,K.Hatt: p.120

(02) – सहभागिता आधारित / Participation based

(a) – सहभागी अवलोकन / Participant observation –

सहभागी अवलोकन को असंरचित अवलोकन (Unstructured Observation) भी कहते हैं। इसमें अध्ययन से सम्बन्धित समूह का अंग बनकर अवलोकन कर्त्ता तत्सम्बन्धी क्रियाओं में खुद सहभागी बनकर अवलोकन करता है तथा आंकड़े प्राप्त करके अभिलेख तैयार करता है।

(b) – असहभागी अवलोकन / Non-participant observation-

असहभागी अवलोकन को संरचित अवलोकन (Structured Observation) भी कहा जाता है। इसमें खुद सहभागी न बनकर सामान्य परिस्थितियों में सम्बन्धित समूह के व्यक्तियों का अवलोकन किया जाता है।

                                  [B]   साक्षात्कार प्राविधि (Interview Technique) –

जब शोधकर्त्ता तत्सम्बन्धी प्रयोज्य से उसकी मनोवृत्तियों, रुचियों, योग्यताओं, अभिवृत्तियों से सम्बन्धित तथ्यों का सङ्कलन आमने सामने की बातचीत के माध्यम से करता है। तो इसे साक्षात्कार प्राविधि कहा जाता है। इस सम्बन्ध में जॉन डब्लू बेस्ट (John W Best) के अनुसार

“साक्षात्कार एक मौखिक प्रश्नावली है। उत्तर को लिखे बिना विषयी अथवा साक्षात्कार देने वाला आमने सामने आत्मीयता से वांछित सूचना मौखिक रूप से देता है।”

“The interview is an oral questionnaire installed of writing the response, the subject or interviewer gives the needed information verbally in a face to face relationship.”

 John W Best op.cit. p.182

साक्षात्कार से सम्बन्धित तथ्यों के आधार पर सामान्य रूप से चार भागों में विभक्त किया जा सकता है।

1 – उद्देश्य समर्पित साक्षात्कार /Objective dedicated interview –

2 – अन्तः क्रिया आधारित साक्षात्कार / Interaction based interview

3 – संख्या आधारित साक्षात्कार / Number based interview

4 – संरचना आधारित साक्षात्कार / Structure based interview

1 – उद्देश्य समर्पित साक्षात्कार /Objective dedicated interview –

  • a- निदानात्मक साक्षात्कार / diagnostic interview
  • b- उपचारात्मक साक्षात्कार / therapeutic interview
  • c- शोध साक्षात्कार / research interview

2 – अन्तः क्रिया आधारित साक्षात्कार / Interaction based interview

      a- केन्द्रित साक्षात्कार / Focused interview

  • b- अनिर्देशित साक्षात्कार / Unguided interview
  • c- पुनरावृत्त साक्षात्कार / Repeated interview

3 – संख्या आधारित साक्षात्कार / Number based interview

  • a- व्यक्तिगत साक्षात्कार
  • b- सामूहिक साक्षात्कार

4 – संरचना आधारित साक्षात्कार / Structure based interview

  • a- संरचित साक्षात्कार / Structured interview
  • b- असंरचित साक्षात्कार / Unstructured interview(

                                             [C] – समाजमितीय प्राविधि ( Sociometric Technique) –

विविध सामाजिक परिस्थितियों व समूह के सदस्यों के पारस्परिक व्यावहारिक सम्बन्धों व पसन्द नापसन्द का  समाजमिति प्राविधि द्वारा किया जाता है। समाजमितिका अर्थ स्पष्ट करते हुए जॉन डब्लू बेस्ट (John W Best)  महोदय ने लिखा है –

“समाजमिति सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन करने के लिए एक प्राविधि है, जो एक समूह में व्यक्तियों के मध्य विद्यमान है।”

“Sociometry is a technique of describing social relationships that exist between individuals in a group.”

 John W Best op.cit. p.191

समाजमितीय तकनीक से प्राप्त आंकड़ों को समाजमितीय मेट्रिक्स , समाज आलेख, समाजमितीय सूचकांक आदि के द्वारा विश्लेषित किया जा सकता है।

द्वित्तीयक समंकों का संग्रहण / Collection of Secondary Data

जब द्वित्तीयक समंकों की बात करते हैं तो इसका सीधा सा आशय है कि वह समंक जो पहले ही उपलब्ध है इसको न केवल एकत्रित किया गया है बल्कि इसका विश्लेषण भी किया जा चुका है। द्वित्तीयक समंकों का प्रयोग करते समय शोधार्थी को विविध स्रोतों पर गौर करना होता है। समझ बूझ कर उनका चयन शोधार्थी पर निर्भर करता है। सामान्यतः ये प्रकाशित होते हैं। यथा :-

1 – विविध आधिकारिक वेव साइट्स से

2 – शासन के विविध प्रकाशनों में

3 – अन्तर्राष्ट्रीय निकायों व उनके सहायक संगठनों का प्रकाशन

4 – तकनीकी व व्यापक पत्रिकाओं द्वारा

5 – पुस्तक,पत्रिकाओं व समाचार पत्रों से

6 – विविध बैंक, स्टॉक एक्सचेंज, संघों की रिपोर्ट से

7 – विश्व विद्यालय व अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट द्वारा

8 – विविध ई पत्रिकाओं से

9 – सार्वजनिक रिकार्ड, आंकड़ों व ऐतिहासिक प्रकाशित दस्तावेजों से  

10 – अन्य विविध स्रोतों से    

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शोध

Difference between questionnaire and schedule

April 6, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


प्रश्नावली व अनुसूची में अन्तर

शोध की दुनियाँ में समंक एकत्रित करने के बहुत से लोकप्रिय तरीके हैं उन्हीं तरीकों में प्रश्नावली और अनुसूची भी आते हैं यद्यपि इन दोनों ही विधियों में बहुत कुछ प्राकृतिक समानता है।  इसी कारण कुछ लोगों को इनमें अन्तर करने में परेशानी महसूस होती है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से दोनों में बहुत सी समानताएं दीख पड़ती हैं। तकनीकी दृष्टि से सूक्ष्म विश्लेषण दोनों के अन्तर का प्रगटन करता है जिसे इस प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है। –

      प्रश्नावली/Questionnaire              अनुसूची/Schedule  
01-प्रश्नावली को विविध तरीकों से लोगों के पास भेजने की व्यवस्था की जाती है इसे मेल की माध्यम से, डाक से , वाहक के माध्यम से भेजकर उन लोगों तक पहुँचाया जाता है जिनका दृष्टिकोण लेना होता है।01-अनुसूची को शोधकर्त्ता या उसके प्रगणक के द्वारा ही लेकर जाया जाता है वह दृष्टिकोण जानकार स्वयं भरता है। आवश्यकता होने पर अनुसूची के प्रश्नों या तथ्यों की व्याख्या भी की जाती है।
02-समंकों को एकत्रित करना प्रश्नावली के माध्यम से सस्ता पड़ता है केवल प्रश्नावली को छपवाने का व उसे विविध माध्यम से मंतव्य तक पहुँचाना पर खर्चा करना होता है जो अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है।02-अनुसूची द्वारा समंकों का एकत्रीकरण अपेक्षाकृत महँगा पड़ता है क्योंकि प्रगणकों को प्रशिक्षण देना या खुद जाकर समंक एकत्रित करने में अच्छाखासा खर्चा हो जाता है।
03 – प्रश्नावली को हम छोड़कर चले आते हैं इसे किसके द्वारा भरा जा रहा है निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। भ्रम की सम्भावना बनी रहती है।03 -चूँकि अनुसूची हम स्वयं या हमारा प्रगणक खुद उसे पूछ पूछ कर भरता है तो ऐसे में प्रत्यक्ष समक्ष होने से कोई किसी तरह का भ्रम नहीं रह जाता।
04 -प्रश्नावली के बारे में यह सर्व विदित है कि यह जितनी भेजी जाती है उतनी लौटती नहीं। कई बार लोग जान बूझकर प्रश्नावली भरकर नहीं भेजते। बे मन से की गई आलसययुक्त प्रतिक्रिया भी सम्यक नहीं कही जा सकती।    04 -अनुसूची प्रगणक द्वारा भरे जाने के कारण ज्यादा प्रभावी बन पड़ती है सारे जवाब पाने की सम्भावना के उत्तरोत्तर नए आयाम प्राप्त होते हैं क्योंकि प्रगणक और उत्तर देने वाले आमने सामने होते हैं।
05 -प्रश्नावली का प्रयोग करने पर व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं हो पाता जिस माध्यम से प्रश्नावली भरने भेजी जाती है उसी माध्यम से मँगाई जाती है और व्यक्तिगत सम्पर्क सम्भव नहीं हो पाता।05 – अनुसूची भरने तो प्रगणक स्वयं उपस्थित रहता है और उत्तरदाताओं के साथ सहज, सरल सम्पर्क स्थापित होता है। 
06 – प्रश्नावली का प्रयोग करने वाले सभी शोधार्थियों को यह कटु अनुभव होता है कि इसके माध्यम से सम्पूर्ण प्रक्रिया गति नहीं पकड़ पाती और धीमी गति कभी कभी इतनी अधिक होती है कि प्रश्नावली वापस आने की आस भी धूमिल हो जाती है।06 – अनुसूची का प्रयोग करने पर यह बाधा उपस्थित नहीं हो पाती। और समय पर परिणाम प्राप्त हो जाता है क्योंकि प्रगणक स्वयं सारे कार्य अपनी उपस्थिति में ही पूर्ण कर लेता है।
07 – प्रश्नावली विधि में हम न्यादर्श बड़ा ले सकते हैं क्योंकि इसका बड़े क्षेत्र में वितरण सम्भव होता है और दूरदराज के क्षेत्रों से भी समंक संग्रहण सम्भव हो जाता है।07 – प्रगणकों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजना सम्भव नहीं हो पाता  इसलिए व्यापक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी सम्भव नहीं हो पाता।
08 – प्रश्नावली का उपयोग करने पर अवलोकन विधि का प्रयोग सम्भव नहीं है।08 -अनुसूची भरने के साथ अवलोकन विधि का प्रयोग निस्संदेह किया जा सकता है।
09 -प्रश्नावली विधि का प्रयोग करने के लिए यह परम आवश्यक है कि उत्तरदाता सहयोग की भावना से युक्त हो और पढ़ा लिखा हो।09 – अनुसूची का प्रयोग करने पर यह आवश्यक नहीं रह जाता कि उत्तरदाता पढ़ा लिखा ही हो यदि वह निरक्षर होगा तब भी दृष्टिकोण का अंकन किया जा सकता है।
10 – प्रश्नावली के माध्यम से प्राप्त जानकारी अधूरी, अपर्याप्त, गलत, व सन्देहयुक्त होने का जोखिम बना रहता है। कई बार प्रश्नावली के आइटम ही समझ में नहीं आते और जवाब तय कर दिया जाता है।10 -अनुसूची से प्राप्त जानकारी अधिक सटीक होती है क्योंकि प्रगणक प्रश्न समझ न आने पर स्पष्टीकरण देने के लिए मौजूद रहता है।
11 –  प्रश्नावली की गुणवत्ता के साथ उसे आकर्षक बनाने का प्रयास भी करना पड़ता है आन्तरिक गुणवत्ता पर ही प्रश्नावली की सफलता निर्भर करती है।11 -अनुसूची के परिणामों की विश्वसनीयता गणना करने वाले लोगों की ईमानदारी व क्षमता पर निर्भर करती है इसमें भौतिक रूप या साजसज्जा का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि इसे प्रगड़क  द्वारा खुद भरा जाता है।
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शोध

INTERDISCIPLINARY APPROACH TO EDUCATIONAL RESEARCH

April 3, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शैक्षिक अनुसन्धान के लिए अन्तर-विषयक दृष्टिकोण

वैदिक काल से आज तक शिक्षा के क्षेत्र में अंतर दृष्टिगत होते रहे हैं जिस काल की जैसी आवश्यकता होती है शिक्षा उसी तरह के पथ प्रशस्त करती है लेकिन आज शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक प्रसार हुआ है और ज्ञान के विस्फोट जैसी स्थिति दृष्टिगत होने लगी है। शिक्षा के प्रसार के साथ इसकी गुणवत्ता का अवनमन चिन्ता  का विषय बनता जा रहा है। इस क्षेत्र में इतनी जटिल समस्याओं का प्रादुर्भाव हुआ कि उनका समाधान ऊँट के मुँह में जीरे के मानिन्द दिखने लगा।

            आज सभी विज्ञ-जन  यह महसूस कर रहे हैं कि उक्त समस्याओं का समाधान किसी एक विशेषज्ञ या किसी एक क्षेत्र विशेष द्वारा सम्भव नहीं है आज विविध विषयों के विषय विशेषज्ञ व विशेषज्ञों के विशेष समूह के समन्वित प्रयास से ही समस्या समाधान सम्भव है दूसरे शब्दों में अन्तर विषयक शोध विशेषज्ञों से समस्या समाधान में योग मिल सकता है।

अन्तर-विषयक का अर्थ / Meaning of inter disciplinary –

उदग्र अधिगम और सामानान्तर अधिगम के साथ आज हम अनेकों विषयों को परस्पर सम्बन्धित पाते हैं। अनुसन्धान के क्षेत्र में अन्तर विषयकता से आशय परस्पर सम्बन्धित विषय आधारित शोध विशेषज्ञों के समूह कृत शोध अध्ययनों से है। अतः विविध विषयों के शोध विशेषज्ञों द्वारा एक प्रयोजन को ध्यान में रखकर समस्या समाधान हेतु जो शोध अध्ययन किया जाता है। इस उपागम को अन्तर विषयकता या अन्तर विषयक उपागम (INTERDISCIPLINARY APPROACH) कहा जाता है।

परिभाषाएं / Definitions –

इसको पारिभाषित करते हुए शिक्षा शब्दकोष में कहा गया कि –

“आन्तरिक – विषयक उपागम अध्ययन की एक विधि है, जिसके द्वारा ज्ञान के अनेक पृथक पृथक क्षेत्रों से विशेषज्ञ अथवा श्रेष्ठ शोध कार्यकर्त्ता एक विशेष समस्या के परीक्षण में एक साथ लाये जाते हैं, जो सभी उन उपागमों के लिए प्रासंगिक हैं। “

“Inter – disciplinary approach is a method of study by which experts or the best research workers from many different fields of learning, are brought together in the examination of a particular problem, that is relevant to all their approaches.” 

Dictionary of Education, p .311

शिक्षा आयोग ने अपने मत को स्पष्ट करते हुए कहा –

“विभिन्न संस्थानों और शिक्षक वर्ग के लिए पैटर्न्स के मध्य विषयों के नए संयोजन, सहयोग की नई विधियाँ इसके लिए आवश्यक होंगी। क्षेत्र अत्यंत विशाल है परन्तु उदाहरण के तौर पर हम एक क्षेत्र ‘शिक्षा‘ को उद्धृत कर सकते हैं। इसकी समस्याओं का उनकी समस्त जटिलताओं के साथ अध्ययन करने के लिए शिक्षा, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, तुलनात्मक धर्म, अर्थ शास्त्र, लोक प्रशासन और क़ानून के विभागों के मध्य अन्तर – विषयक उपागम आवश्यक हो जाता है।”

“This will need new combinations of subjects, new methods of cooperation between different institutions and new patterns of staffing. The field is vast But by way of illustration, we may refer to one field; education. For a study of its problems in all their complexity, an inter-disciplinary approach is needed between the departments of education, sociology, psychology, comparative religion, economics, public administration and law.”

Report of the Education Commission. P.319

अन्तर विषयक उपागम की विशेषताएं / Features of interdisciplinary approach –

01 – एक विषय विशेषज्ञ सक्षम नहीं / One subject expert is not competent   –     जटिल समस्या –

02 – विशेषज्ञों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता /Coordinated efforts of experts are required

03 – सामान कार्यविधि / Common methodology  

04 – समन्वित विश्लेषण द्वारा परिणाम/ Results through integrated analysis  

05 – विविध आवश्यक विषयों को पूर्ण सम्मान।/ Full respect for the diverse disciplines required.

06 – वैधता व विश्वसनीयता / Validity and reliability

07 – समन्वित प्रभावी अनुसन्धान प्रतिवेदन / Coordinated Effective Research Report

अन्तर विषयक उपागम से शैक्षिक शोध में लाभ

Benefits of interdisciplinary approach in educational research –

01 – समन्वित प्रयास से सूक्ष्म विश्लेषण सम्भव / Coordinated efforts make detailed analysis possible

02 – विशेषज्ञों की सहयोग भावना का विकास / Development of a spirit of cooperation among experts

03 – विशेषज्ञों के ज्ञान व अनुभव का लाभ /Benefit from the knowledge and experience of experts

04 – शिक्षा का व्यवस्थित अग्रसरण /Systematic advancement of education

05 – जटिल शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन/Study of complex educational problems

06 – शोध निष्कर्षों की विश्वसनीयता व वैद्यता /Reliability and validity of  research findings

07 – शैक्षिक अनुसन्धान का समुन्नत स्तर /Advanced level of educational research

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शोध

Educational Research

March 31, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शैक्षिक अनुसन्धान

मानव की उत्तरोत्तर प्रगति में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योग है समाज में उठने वाली किसी भी समस्या के समाधान हेतु शिक्षा की और देखा जाता है और शिक्षा अपने अनुसंधान पर निर्भर करती है। शैक्षिक अनुसन्धान वह साधन है जो विवेक पूर्ण,व्यवस्थित अध्ययन के माध्यम से समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।

आज प्रत्येक क्षेत्र में सम्यक व व्यवस्थित शोध का आधार लेकर प्रगति की आधार शिला रखी जाती है बजट बनाने, नीति निर्माण,भविष्य के संसाधन विकास हेतु और विविध योजनाओं को उसके अंजाम तक पहुंचाने हेतु शोध की आवश्यकता महसूस की जाती है। शैक्षिक शोध की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयुक्त शोध शैक्षिक शोध कहा जाता है।

शैक्षिक शोध की परिभाषा / Definition of Educational Research –

विविध विद्वानों ने शैक्षिक शोध का अर्थ स्पष्ट करने हेतु अपने भावों को इस प्रकार गुम्फित किया है।

 –जॉन डब्लू बेस्ट (John W Best) के अनुसार

“शैक्षिक अनुसंधान, शैक्षिक परिवेश में छात्र कैसे व्यवहार करते हैं ,के सिद्धान्तों के परीक्षण करने और विकास से सम्बन्धित है।” 

“Educational research is concerned with the development and testing of theories of how students behave in an educational setting.”

प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री John W. Creswell (जॉन डब्ल्यू. क्रेसवेल) के अनुसार

“Educational research is a systematic and organized approach to asking questions, collecting and analyzing data, and effectively reporting findings to understand and improve educational practices and policies.”

“शैक्षिक अनुसंधान प्रश्न पूछने, डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने, तथा शैक्षिक प्रथाओं और नीतियों को समझने और उनमें सुधार करने के लिए निष्कर्षों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का एक व्यवस्थित और संगठित दृष्टिकोण है।”

आर डब्लू एम ट्रैवर्स (R.W.M.Travers) महोदय के अनुसार

“शैक्षिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जो शैक्षिक परिस्थितियों में व्यवहार विज्ञान के विकास की ओर निर्देशित हैं। ”

“Educational research is that activity which is  directed towards development of science behaviour in educational situations.”

An introduction to Educational Research .(1954) p 5

शैक्षिक अनुसन्धान का क्षेत्र / Field of academic research –

जादू शब्द जब संसार में प्रचलित हो रहा होगा तब तक निश्चित से दो वर्गों का अभ्युदय हो चुका     होगा एक वह जो इससे प्रभाव में आ जाए एक वह जो ट्रिक का प्रयोग करके सामने वाले भ्रमित कर सके। वास्तव में जब तक आवरण है और सच्चाई परदे में है विश्व उत्थान बाधित ही रहेगा। सारी सच्चाई को सामने लाने के लिए और तमाम समस्याओं का निदान शोध के आधार पर ही सम्भव है। आज हर क्षेत्र में समस्याएं विद्यमान है शिक्षा जगत भी इससे अछूता नहीं है। शिक्षा क्षेत्र की समस्याओं के निदान में शैक्षिक शोध में अपार सम्भावनाएं छिपी हैं। शैक्षिक अनुसंधान के विविध क्षेत्रों को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।

1 – शिक्षा दर्शन Educational Philosophy

2 – विविध स्तरीय परिक्षेत्र / Different Level Fields

3 – शिक्षा मनोविज्ञान / Educational Psychology

4 – मौलिकता विवेचन / Originality Discussion

5 – शिक्षा का इतिहास / History of Education

6 – शैक्षिक समाजशास्त्र / Educational Sociology

7 – तुलनात्मक शिक्षा / Comparative Education

8 – शैक्षिक प्रशासन / Educational Administration

9 – शैक्षिक मापन व मूल्यांकन /Educational Measurement and Evaluationशैक्षिक शोध का क्षेत्र कोई भी हो शोध अपना कार्य पूर्ण करता ही है शोध वह दिशाबोध है जो हमें सकारात्मक दिशा प्रदान करता है और हम समस्या के निदान तक पहुंचते हैं।

शैक्षिक शोध की आवश्यकता क्यों ? 

Why is educational research needed? –

आज का शैक्षिक शोध कहीं भ्रमित हो गया है। शोध को सही दिशा देने के लिए जो शोध निर्देशक कार्य करा रहे हैं उनमें से कुछ भटक कर स्वार्थी हो गए हैं लेकिन शोध का स्तर कहीं दुष्प्रभावित हो रहा है। लेकिन सत्य स्थापन हेतु फिर भी शोध परमावश्यक है शोध का क्षेत्र व्यापक है और आज के भारत को सकारात्मक शोध की आवश्यकता है निम्न कारणों से शैक्षिक शोध की आवश्यकता है।

01 – ज्ञान परिमार्जन व विकास हेतु /For knowledge refinement and development

02 – उद्देश्य प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन / Important means of achieving the objective

03 – नवीन ज्ञान प्रसार हेतु / For spreading new knowledge

05 – अंतर्राष्ट्रीयता व सद्भावना हेतु /For internationalism and goodwill

06 – उद्देश्य प्राप्ति का व्यवहारिक साधन / Practical means of achieving the objective

07 – ज्ञान पिपासा पूर्ति का प्रमुख साधन / The main means of satisfying the thirst for knowledge

08 – कुशल प्रशासन हेतु / For Efficient administration

09 – अध्यापन की प्राण ऊर्जा स्थायित्व हेतु /For the stability of the life energy of teaching

10 – वैश्विक प्रगति के साथ सामञ्जस्य / Keeping pace with global progress.

11 – विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास हेतु /For the development of the feeling of universal     brotherhood

सच मानो तो आज सत्य शोधक समाज की आवश्यकता है लेकिन भौतिकता की अन्धी दौड़ ने हमारी सोच पर आवरण चढ़ा दिया है जिससे सत्य की वास्तविक अनुभूति नहीं हो पा  रही है। आशा की किरण आने वाले कल में सच्चा शोध ही हो सकता है।

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शोध

ACTION RESEARCH

March 29, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

क्रियात्मक अनुसन्धान

मानव की प्रारम्भिक अवस्था से आज तक बहुत से परिवर्तन हुए हैं और यह परिवर्तन निरन्तर जारी हैं,  विशिष्ट शोध पर्यवेक्षकों की अनुपस्थिति में स्वयम् अध्यापकों, विद्यार्थियों और विविध संस्थानों द्वारा किसी समस्या पर स्वयं शोध क्रिया सम्पन्न की जाती है क्रियात्मक अनुसन्धान के नाम से जानी जाती है। इसके माध्यम से हम अपने क्षेत्र, संस्थान, लोगों की विविध समस्याओं का अध्ययन कर समाधान व कारणों का अध्ययन करते हैं।

इस प्रकार का शोध शिक्षा के क्षेत्र में अपेक्षाकृत शोध का नया दृष्टिकोण है क्रियात्मक अनुसंधान में समस्या से जूझ रहे लोग स्वयं अपनी समस्या को समझने के क्रम में शोध करते हैं विशेषज्ञ की आवश्यकता महसूस नहीं की जाती। इस प्रकार का शोध क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से जाना जाता है। क्रियात्मक अनुसन्धान को भली भाँति समझने हेतु कुछ विद्वानों के दृष्टिकोण का अध्ययन करना सम्यक रहेगा।  

क्रियात्मक अनुसन्धान की परिभाषाएं / Definitions of Action research –

विविध विद्वानों ने तत्सम्बन्धी विविध आयामों को समेटते हुए अपने शब्दों को गुंथित कर जो विचार अभिव्यक्त किये हैं उनमें से कुछ प्रभावी अधिगम के दृष्टिकोण से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।

जे डब्लू बैस्ट (J.W.Best) के अनुसार

“क्रियात्मक अनुसन्धान किसी सिद्धान्त के विकास की अपेक्षा तात्कालिक उपयोग पर केंद्रित रहता है। इसमें वर्तमान स्थानीय परिस्थितियों से सम्बन्धित वास्तविक समस्याओं पर ही बल दिया जाता है।”

“Action research is focused on the immediate application, not on the development of theory. It has placed its emphasis on a real problem- here and now in a local setting.” 1963,p.10

गुड (Good) महोदय के अनुसार

“क्रिया -अनुसन्धान शिक्षकों, निरीक्षकों और प्रशासकों द्वारा अपने निर्णयों और कार्यों की गुणात्मक उन्नति के लिए प्रयोग किये जाने वाला अनुसन्धान है।”

“Action research is research used by teachers, supervisors and administrators to improve the quality of their decisions and action.” p.464

मोले (Mouley) महोदय के अनुसार

“मौके पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान को, जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है। शिक्षा में साधारणतया क्रियात्मक अनुसन्धान के नाम से जाना जाता है। ”

“On the spot research aimed at the solution of an immediate problem is generally known in education as action research.” 1964 p.406

कोरे (Korey) महोदय के अनुसार

“शिक्षा में क्रिया अनुसन्धान, कार्य कर्त्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसन्धान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।”

“Action research in education is research undertaken by practitioners in order that they may improve their practices.” p.241

क्रियात्मक अनुसन्धान की समस्याएं / Problems of action research –

प्रशिक्षणार्थियों को यह जानना परम आवश्यक है कि क्रियात्मक अनुसन्धान हेतु विद्यालय के कौन से विषय हो सकते हैं ? उन्हें समस्या के नाम से जाना जाता है और इसकी विविध समस्याओं को क्रियात्मक अनुसन्धानका क्षेत्र भी कहा जा सकता है मोटे तौर पर कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है ये समस्याएं समय के साथ बदल जाएंगी कुछ नई भी उत्पन्न होंगी। विद्यालय परिक्षेत्र की समस्याओं को इस प्रकार कर्म दिया जा सकता है।

01 – बालमनोविज्ञान व व्यवहार सम्बन्धित समस्याएं / Child psychology and behavior related      problems

02 – शिक्षण अधिगम सम्बन्धित समस्याएं / Problems Related to Teaching Learning

03 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं से सम्बन्धित समस्याएं / Problems related to co-curricular activities 

04 – परीक्षा सम्बन्धित समस्याएं / Examination related problems

05 – अनुशासन सम्बन्धित समस्याएं / Discipline related problems

06 – विद्यालय प्रशासन सम्बन्धित समस्याएं / School administration related problems

07 – अध्यापक सम्बन्धित समस्याएं / Teacher related problems

08 – अभिभावक दखलन्दाजी सम्बन्धित समस्याएं / Problems related to parent interference

विद्यालय में क्रियात्मक अनुसन्धान का प्रयोजन / Purpose of action research in school –

क्रियात्मक अनुसन्धान का प्रयोजन अलग अलग संस्थाओं हेतु उनकी आवश्यकता के दृष्टिकोण से भिन्न हो सकता है। सामान्यतः इसका  विविध तत्सम्बन्धी क्षेत्रों में उन्नयन ही है। विविध विज्ञ जनों के विचारों के आधार पर सामान्यतः यह प्रयोजन कहे जा सकते हैं।

01 – विद्यालयी वातावरण में सिद्धान्तों का परीक्षण / Testing of theories in school environment

02 – प्रजातन्त्रात्मक मूल्यों का स्थापन / Establishment of democratic values ​​

03 – विद्यालय संगठन व व्यवस्था सुधार / Improvement of school organization and system

04 – विद्यालय के चेतना तत्वों का सामान्य उन्नयन / General upgradation of school consciousness    elements

05 – प्रधानाचार्य, प्रबन्धक, निरीक्षक, अध्यापकों व अन्य कर्मचारियों को उत्तर दायित्व के प्रति सजग करना / Making the principal, manager, inspector, teachers and other employees aware of their responsibilities  

06 – जब जागो तब सवेरा का व्यावहारिक प्रयोग। Practical use of Jab Jago Tab Savera.

07 – विद्यालय क्रियाओं में सुधार / Improvement in school activities

08 – सामूहिक कार्यों को सकारात्मक दिशा बोध / Positive direction to collective work

क्रियात्मक अनुसंधान के पद / Steps of Action Research –

क्रियात्मक अनुसन्धान से वांछित फल प्राप्त करने के लिए यह परमावश्यक है कि समस्त आवश्यक पदों पर गम्भीरता पूर्वक कार्य किया जाए। इन पदों को भली भाँति जानने जानने समझने की आवश्यकता है जिन्हे इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है।

01 – समस्या को स्पष्ट रूपेण समझना / Understand the problem clearly                   

02 – कार्य प्रस्तावों पर गहन विमर्श / In-depth discussion on work proposals

03 – उद्देश्य व परिकल्पना / Purpose and Hypothesis 

04 – तथ्य संग्रहण व क्रियात्मक कार्यक्रम / Fact gathering and action plan

05 – विश्लेषण व परिणाम / Analysis and results

06 – समस्त क्रियात्मक कार्य का मूल्याङ्कन / evaluation of overall performance

07 – परिणाम का प्रचार प्रसार / Dissemination of results

क्रियात्मक अनुसंधान का महत्त्व  / Importance of Action Research –

हर समाज के अपने नियम, रीति रिवाज और मान्यताएं होती है और इस क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों पर इसका प्रभाव परिलक्षित होता है। संस्थान यान्त्रिक न होकर धरातल पर व्यावहारिक रूप से जुड़े रहें। इस हेतु क्रियात्मक अनुसन्धान और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं आइये इसके महत्त्व पर विचार निम्न बिन्दुओं के आलोक में करते हैं।

1- संस्थान में सुधार का महत्त्व पूर्ण आलम्ब / An important pillar of institutional reform

2 -जनतन्त्रात्मक मूल्य संरक्षक / Guardians of democratic values

3 – यान्त्रिक की जगह व्यावहारिक / Practical instead of mechanical

4 – दैनिक अनुभव से लाभ उठाने हेतु प्रेरक / Motivation to benefit from everyday experience

5 – विद्यालयी शिक्षा के समस्त अंगों के सकारात्मक उत्थान में सक्षम / Capable of positive upliftment of all aspects of school education

6 – विद्यालय का समाज के लघु रूप में स्थापन / Establishing school as a miniature society

7 – छात्रों का सर्वांगीण विकास / All round development of students

8 – परस्पर प्रेम, सहयोग, सद्भावना वृद्धि / Increase in mutual love, cooperation and goodwill

9 – विज्ञान सम्मत विधियों को प्रश्रय /Promotion of scientific methods       

क्रियात्मक अनुसन्धान की महत्ता सर्व विदित है इसे विविध विद्यालयों द्वारा अपनाया जाना आज की आवश्यकता है इसकी महत्ता को समझते हुए कोरे (Corey)महोदय ने उचित ही कहा है –

“हमारे विद्यालय तब तक जीवन के अनुकूल कार्य नहीं क्र सकते हैं, जब तक शिक्षक, छात्र, निरीक्षक, प्रशासक और विद्यालय संरक्षक इस बात की निरन्तर जाँच न करें कि वे क्या क्र रहे हैं। इसी प्रक्रिया को मैं क्रिया अनुसंधान कहता हूँ।”

”Our schools cannot function sustainably unless teachers, students, inspectors, administrators and school patrons constantly examine what they are doing. This process is what I call action research.”

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शोध

SUNITA WILLIAM

March 18, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुनीता विलयम्स

19 सितम्बर1965 को अमेरिका के ओहियो राज्य के यूक्लिड नगर स्थित क्लीव लैण्ड में एक बालिका का जन्म हुआ जिसे सुनीता लिन पांड्या विलियम्स के नाम से आज जाना जाता है। इन्होने हाई स्कूल मेसाचुसेट्स से किया और 1987 में  संयुक्त राष्ट्र की नौसैनिक अकादमी से फिजीकल साइंस में बीएस (स्नातक स्तर ) की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से एम एस (इन्जीनियरिंग मेनेजमेन्ट में) की उपाधि प्राप्त की।

ख्याति प्राप्त डॉ० दीपक पण्ड्या जो तन्त्रिका विज्ञानी (एम डी) हैं और भारत के गुजराज प्रान्त से हैं सुनीता की माँ बॉनी जालोकर पाण्ड्या स्लोवेनिया की हैं इनका एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहिन भी हैं जब सुनीता एक वर्ष की भी नहीं हुयी थीं इनके पिता अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन में आकर बसे।

व्यावसायिक जीवन वृत्त –

अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेन्सी NASA में इनका चयन 1998 में हुआ एवम् प्रशिक्षण कार्य प्रारम्भ हुआ। अमेरिका के अन्तरिक्ष मिशन पर  वाली यह दूसरी भारतीय मूल की महिला हैं। प्रथम महिला भारतीय मूल की महिला कल्पना चावला थीं। सुनीता विलियम्स का भारत दौरा सन 2007 के सितम्बर – अक्टूबर माह में हुआ। इन्होने 30 अलग अलग अन्तरिक्ष यानों द्वारा 2770 उड़ानें भरी हैं। सुनीता विलयम्स अमेरिकन हैलीकॉप्टर एसोसिएशन, सोसाइटी ऑफ़ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पाइलेट्स, सोसाइटी ऑफ़ फ्लाइट टेस्ट इन्जीनियर्स  आदि संस्थाओं से भी सम्बद्ध हैं।

व्यक्तिगत जीवन परिदृश्य –

कुशल तैराक व पशु प्रेमी सुनीता की अभी अपनी कोई संतान नहीं है ये धर्मार्थ धन संग्रह में योगदान देती हैं। इन्होने गोताखोरी और मैराथन धाविका के रूप में भी पहचान बनाई है। व्यावहारिक क्षेत्र में नौ सेना पोत चालक, हैलीकॉप्टर पाइलट, परीक्षण पाइलट, पेशेवर नौसैनिक व अब अन्तरिक्ष यात्री के रूप में विश्व पटल पर असाधारण कीर्तिमान बनाने वाली विशिष्ट महिला हैं लगन और आत्म विश्वास से भरपूर यह व्यक्तित्व दिशाबोध व जिन्दादिली की अद्भुत मिसाल है। इन्होने अपने सहपाठी माइकल जे विलियम्स से विवाह किया।

 सम्मान –

भारत सरकार ने सन 2008 में इन्हें विज्ञान एवम् अभियान्त्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त इन्हे नेवी कमेंडेशन मैडल, नेवी एण्ड मैरीन कॉर्प अचीवमेण्ट मैडल तथा ह्यूमेटेरियन सर्विस मैडल आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है।

तत्सम्बन्धी वर्तमान परिदृश्य –

साहस की विशेष प्रतिमान बनीं सुनीता विलयम्स नौ माह से अन्तरिक्ष में फँसी है बहुत से महत्त्वपूर्ण कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने वाली यह विशिष्ट दिव्यात्मा व साथी वुच विल्मोर सचमुच अभिनन्दनीय हैं। स्पेस एक्स का क्रू – 10 मिशन , रविवार (1 6 /03 /2025) को सफलता पूर्वक अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुँच गया। टेक्सास से शुक्रवार को, ड्रेगन केप्सूल  लांच किया गया। दैनिक जागरण ने बताया कि इस उड़ान में नासा के एनी मैकक्लेन, निकोल एयर्स जापान के जेएक्सए से ताकुआ ओनिशी और रूस के किरिल पेस्कोव शामिल थे नासा के अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स, बुच विल्मोर और रूसी अन्तरिक्ष यात्री अलेक्सांद्र गोर्बुनोव स्पेस एक्स के ड्रेगन अन्तरिक्ष  पृथ्वी पर लौटने वाले हैं। लौटने के बाद भी लंबा समय यहां के वातावरण से अनुकूलन में लगता है, क्रू के सदस्यों से मिलन की खुशी की हम केवल कल्पना कर सकते हैं इसकी असली खुशी तो सुनीता ने जो महसूस की उसकी अभिव्यक्ति दुष्कर है।

आज 18 /03 /2025 के दैनिक जागरण से ज्ञात हुआ कि आज  मंगलवार की शाम को सुनीता विलयम्स व बुच विल्मोर की नौ माह बाद वापसी होगी। नासा क्रू -9 मिशन के अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन से पृथ्वी पर लौटने का लाइव कवरेज प्रदान करेगा। मिशन प्रबन्धक 18 मार्च की शाम हेतु अनुकूल परिस्थतियों के आधार पर नज़र बनाये हैं। यद्यपि ड्रेगो केप्सूल की अनडाकिंग ढेर सारे कारकों पर निर्भर करती है और आने के बाद भी बहुत सी समस्याओं से जूझना होता है जैसे दृष्टि पर कुप्रभाव, चलने में मुश्किल, चक्कर आना, बेबी फीट यानी तलवे का बच्चे जैसा मुलायम हो जानाआदि आदि।

लेकिन क्रू मेम्बर्स के साथ गले मिलना, गर्मजोशी से स्वागत करना, डान्स करना, साथ साथ फोटो खिंचवाना खुश दिखना सभी उनकी जिंदादिली की जीवंत मिसाल हैं ऐसे अद्भुत व्यक्तित्वों पर पृथ्वीवासियों को नाज है।                    

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Uncategorized•शोध

MERITS AND DEMERIS OF SAMPLING

January 13, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

न्यादर्श के गुण और दोष

शोध का परिक्षेत्र अत्यन्त व्यापक है और किसी भी परिणाम तक पहुँचने हेतु पग पग पर तथ्यों के गुण दोष का विवेचन करने पर यथार्थ का बोध होता है शोध कार्य से सामान्यीकरण तक पहुँचने के लिए भी न्यादर्श के गुण दोषों को समझना परम आवश्यक है। यद्यपि न्यादर्श अत्याधिक उपयोगी है लेकिन इसके भी कुछ गुण दोष हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।

MERITS OF SAMPLING

न्यादर्श के गुण

01 – समय की बचत /Saving of time

02 – श्रम की बचत /Saving of labour

03 – गहन व सूक्ष्म अध्ययन /In-depth and detailed study

04 – प्रशासकीय सुविधा /Administrative convenience

05 – विशिष्ट दशाओं में उपयोगी /Useful in specific conditions

06 – लोच का गुण /Quality of flexibility

07 – मितव्ययता/ Economy

DEMERIS OF SAMPLING

न्यादर्श के दोष अथवा सीमाएं

01 – प्रतिनिधि न्यादर्श चयन दुष्कर / Representative sample selection is difficult

02 – पक्षपात की सम्भावना /Possibility of bias

03 – पर्याप्त ज्ञान का अभाव / Lack of sufficient knowledge

04 – विशिष्ट ज्ञान आवश्यक /Special knowledge required

05 – न्यादर्श पर स्थिर रहना कठिन /Difficult to stick to the sample

06 – न्यादर्श सार्वभौमिक विधि नहीं /Sampling is not a universal method

07 – न्यादर्शन प्रयोज्य की अस्थिरता  / Instability of sampling subject

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शोध

न्यादर्श के प्रारूप / SAMPLING PATTERN

January 11, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

ज्ञान के सम्यक विकास को जो आलम्बन प्राप्त होता है, उसके मूल में विद्यमान है शोध।

शोध प्रारूप में उसे उद्देश्य तक ले जाने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है न्यादर्श।

न्यादर्श का भलीभाँति अधिगम करने के लिए परम आवश्यक है कि न्यादर्श के प्रारूप को अधिगमित किया जाए। आज इसी विषयवस्तु पर विचार का महत्त्वपूर्ण दिवस है।

प्रारूप (FORMAT) –

न्यादर्श के विविध नाम, विविध विधियों और विविध प्रकारों का वर्णन देखने सुनने को मिलता है लेकिन सुविधाजनक और सरलतम सामान्य रूप से अधिगमित करने हेतु न्यादर्श के प्रकारों का इस प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता है। 

                        न्यादर्श  के  प्रकार  / TYPES OF SAMPLING

सम्भाव्यता नमूनाकरण (Probability Sampling)गैर सम्भाव्यता नमूनाकरण  (Non-probability Sampling)
यादृच्छिक न्यादर्श (Random Sampling) स्तरीकृत न्यादर्श (Stratified Sampling) गुच्छ न्यादर्श (Cluster Sampling)         क्रमबद्ध न्यादर्श (Systematic Sampling) बहुस्तरीय न्यादर्श (Multistage Sampling)अभ्यंश न्यादर्श (Quota Sampling) सोद्देश्य न्यादर्श (Purposive Sampling) आकस्मिक न्यादर्श ( Incidental  Sampling) निर्णित न्यादर्श (Judgement Sampling)

 सम्भाव्यता नमूनाकरण (Probability Sampling) –

यादृच्छिकन्यादर्श (Random Sampling) – इस विधि द्वारा जनसँख्या के प्रत्येक सदस्य के चुने जाने की सम्भावना बराबर रहती है इसमें एक का चुना जाना दूसरे पर कोई असर नहीं डालता। प्रसिद्द विचारक गुडे व हैट ने इस सम्बन्ध में कहा –

“The unit of the universe must be so arranged that the selection process give equi-probability of selection to every unit in that universe.” Goode and Hatt,

“दैव निदर्शन के लिए समग्र की सभी इकाइयों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया जाता है कि चयन प्रक्रिया समग्र की प्रत्येक इकाई को चुनाव की सम्भावना प्रदान कर सके।“

कुछ इसी तरह के भाव संजोते हुए Frankyates ने अपनी पुस्तक Sampling methods for Censues and Surveys में कहा –

” देव निदर्शन वह है जिसमें समग्र अथवा जनसँख्या की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में सम्मिलित होने का समान अवसर प्राप्त होता है।“

आंग्ल अनुवाद –

“Random Sampling is one in which every unit of the population or the population as a whole gets an equal opportunity to be included in the sample.”

इसमें सामान्यतः निम्न विधियों को प्रयोग में लाते हैं –

  • लॉटरी विधि २- सिक्का उछालकर ३ – पासा फैंक कर ४- टिपिट तालिका द्वारा (41600 – 10400)

स्तरीकृत न्यादर्श (Stratified Sampling) –

यह विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है इसमें किन्ही विशेषताओं के आधार पर जनसंख्या को अलग अलग स्तरों या वर्गों में बाँट लिया जाता है तत्पश्चात इसी में से यादृच्छिक विधि से अभीष्ट न्यादर्श का चयन कर लेते हैं। जैसा कि Dictionary of Education  के पृष्ठ संख्या 506 पर लिखा  है –

” Stratified Sample is a sample obtained by dividing the entire population into categories or strata according to some factor or factors and sampling proportionality and independently from each categories usually being done randomly.”

“स्तरीकृत न्यादर्श एक न्यादर्श है. जो समस्त समग्र को कुछ तत्व/तत्वों के आधार पर स्तरों / वर्गों में विभाजित करके प्रत्येक श्रेणी से आनुपातिक एवम् स्वतन्त्र रूप से न्यादर्श चुनकर प्राप्त किया जाता है। सामान्यतया न्यादर्श यादृच्छिक रूप से चुना जाता है।“

गुच्छ न्यादर्श (Cluster Sampling)-

इस विधि में कुल जनसंख्या को कुछ इकाइयों में या समूहों में बाँट लेते हैं इसे ग्रुप न्यादर्श भी कहते हैं इन्हीं गुच्छों या समूहों में से यादृच्छिक तरीके से अभीष्ट न्यादर्श को चुन लिया जाता है। जैसा कि Fred N  Karlinger महोदय कहते हैं। –

“Cluster Sampling most used method in survey’s, is the successive random sampling of units or sets or subsets.”

Fred N Karlinger, op ct p 130      

“सर्वेक्षणों में बहुतायत में प्रयुक्त गुच्छ न्यायदर्शन इकाइयों अथवा समूहों अथवा उपसमूहों का क्रमिक यादृच्छिक न्यायदर्शन है।“

क्रमबद्ध न्यादर्श (Systematic Sampling) –

इस विधि में कुल जनसँख्या का संख्यात्मक मान पता होना जरूरी है इस पूरी सूची को किसी भी तरह से जैसे वर्णमाला या क्रमिक नम्बर से क्रमबद्ध कर लेते हैं ,सभी को एक ही विधि से लिखा जाता है इसके बाद एक क्रम से इकाई या व्यक्ति का चयन करते हैं जैसे हर 20 वां व्यक्ति अभीष्ट न्यादर्श में शामिल होगा। अर्थात यदि 1000 में से 50 को न्यादर्श रूप में लेना है तो 1000 में 50 का भाग देने से पता चल जाएगा कि हर 20वां व्यक्ति लेना होगा।

बहुस्तरीय न्यादर्श (Multistage Sampling) –

जब क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत होता है तो इस विधि को प्रयोग में लाया जाता है इसमें इकाइयों का चयन विविध स्तरों से किया जाता है इनको ज्ञात करने हेतु प्रमुख आधार यादृच्छिक न्यादर्शन ही होता है इसमें विविध स्तरों से किसी के भी चयन की सम्भावना बनी रहती है और सभी स्तरों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है। शिक्षा शब्दकोष में पृष्ठ 507 पर लिखा –

” बहु स्तरीय न्यायदर्शन क्रमिक स्तरों में क्रियान्वित किया जाने वाला न्यादर्शन है। उदाहरण के लिए स्तरीकृत समूहों की प्रत्येक संख्या से यादृच्छिक रूप से अनेक समुहों को चुनना। “

” Multistage Sampling is sampling carried out in a successive stages; for example, selecting several clusters randomly from each of a number of stratified clusters.” Dictionary of Education p.507

गैर सम्भाव्यता नमूनाकरण (Non-probability Sampling) –

अभ्यंश न्यादर्श (Quota Sampling) – यह असम्भाव्य न्यादर्श की एक महत्त्वपूर्ण विधि है यह काफी कुछ स्तरीकृत न्यायदर्शन जैसी लगती है लेकिन इसमें प्रत्येक स्तर या वर्ग हेतु कोटा पूर्व निर्धारित होता है जिसकी जानकारी शोधकर्ता को रहती है इसे स्पष्ट करते हुए करलिंगर(Kerlinger)  महोदय कहते हैं –

” असम्भाव्यता न्यादर्श न्यायदर्शन का एक रूप कोटा / अभ्यंश न्यादर्शन है, जिसमें समग्र के स्तरों –यौन, प्रजाति, क्षेत्र और ऐसे ही, का ज्ञान न्यादर्श सदस्यों को चुनने के लिए प्रयुक्त होता है ,जो निश्चित शोध उद्देश्यों के लिए प्रतिनिधिक, विशिष्ट और उपयुक्त हैं।” 

“One form of non probability sampling is Quota Sampling, in which knowledge of strata of the population sex, race, region and so on is used to select sample members that are representative ,typical and suitable for certain research purposes.” Fred N Kerlinger

सोद्देश्य न्यादर्श (Purposive Sampling) –

सोद्देश्य न्यादर्शन विधि में उद्देश्य प्रमुख होता है ,इस उद्देश्य के अनुसा ही शोध कर्त्ता अपनी इच्छाओं व विवेक का प्रयोग करता है उद्देश्यानुरूप विविध इकाइयों का चयन अभीष्ट न्यादर्श हेतु किया जाता है शेष को छोड़ दिया जाता है। समग्र का प्रतिनिधित्व करने वाला न्यादर्श बन सके इस बात का प्रमुखतः ध्यान रखा जाता है। इस सम्बन्ध में Guillford महोदय ने लिखा –

“सोद्देश्य न्यादर्श स्वेच्छा से चयनित (न्यादर्श) है क्योंकि यह एक अच्छा साक्ष्य है ,जो समस्त समग्र का वास्तविक प्रतिनिधि है। “

“A purposive sample is one arbitrarily selected because there is a good evidence that sample is very representative of the total population.”

J.P.Guillford, Fundamentalof statistics in Psychology and Education.(1956) p.199

आकस्मिक न्यादर्श ( Incidental  Sampling) –

यह वह न्यादर्श है जो सहजता से सुविधानुसार उपलब्ध हो जाता है एवम् इसी कारण इसे सुविधाजनक न्यायदर्शन (Convenient Sampling ) के नाम से भी जाना जाता है शिक्षा शब्दकोष में पृष्ठ 506 पर इस सम्बन्ध में लिखा है कि –

“प्रासंगिक न्यादर्श एक एकाकी न्यादर्श के रूप में प्रयुक्त एक समूह है क्योंकि यह सरलता से प्राप्य है।“

“Incidental Sample is a group used as a sample solely because it is readily available.”

Dictionary of Education p. 506

निर्णित न्यादर्श (Judgement Sampling) –

इसमें शोध कर्त्ता अपने किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं निर्णीत इकाइयों के समूह का चयन करता है इस चयनित न्यादर्श को निर्णित न्यादर्श कहा जाता है।

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शोध

SAMPLING

January 4, 2025 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

न्यादर्श

जिस चराचर जगत में मानव रहता है उसमें उस जैसे जीवों की संख्या अरबों खरबों में है। जिस क्षेत्र पर शोध कार्य सम्पन्न किया जाना होता है उसमेंसभी से आंकड़े एकत्रित करना न तर्क संगत है और न व्यावहारिक। जिस तरह भगौने में बनाने वाले चावलों में से एक निकालकर सम्पूर्ण के पकने का अहसास हो जाता है यहाँ एक चावल प्रतिनिधिकारी शक्ति के रूप में कार्य करता है लेकिन मानव चेतन है और प्रत्येक मानव के कार्य व्यवहार सोचने का ढंग पृथक पृथक होता है इसीलिये सम्पूर्ण जनसंख्या में से शोध हेतु प्रतिनिधिकारी संख्या की आवश्यकता होती है उस निश्चित जनसंख्या (Papulation) को ही न्यादर्श (Sample)कहते हैं। मानविकी या सामाजिक शोध कार्यों में न्यादर्श बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। विज्ञान विषयों के परिक्षेत्र में न्यादर्श चयन की समस्या नहीं होती यद्यपि न्यादर्श वहां भी प्रयोग किया जाता है।

न्यादर्श की परिभाषा /  Definition of Sampling –

विविध विद्वानों ने इसे विविध प्रकार से पारिभाषित किया है प्रस्तुत हैं कुछ परिभाषाएं –

गुड व हैट महोदय के अनुसार –

” एक निदर्शन जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि विशाल समग्र का एक छोटा प्रतिनिधि है। “

“A Sample, as the name implies, is a smaller representation of a larger whole,”

Goode & Hatt, Methods in Social Research, p-209

कुछ इसी तरह के भाव सिन पाओ येंग ने भी प्रस्तत किये हैं –

“एक सांख्यिकीय निदर्शन, सम्पूर्ण समूह का प्रतिनिधि अंश है।“

“A statistical sample is a cross -section of the entire group.”

Hsin Pao Yang, Fact Finding with Rural People, p 35

बोगार्डस महोदय के अनुसार

” निदर्शन किसी पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार इकाइयों के समूह में से एक निश्चित प्रतिशत को चयन करना है। “

” Sampling is the selection of certain percentage of a group of items according to a pre determined plans.”

 Bogards, Sociology, p 548

एक अन्य विद्वान् पी ० वी ० यंग के अनुसार –

“एक सांख्यिकीय निदर्शन उस सम्पूर्ण समूह अथवा योग का एक लघु चित्र अथवा प्रतिनिधि अंश है जिसमें से वह निदर्शन लिया गया है। “

“A statistical sample is a miniature picture or cross section of the entire group of aggregate from which the sample taken.”

Scientific Social Survey and Research, p 302

न्यादर्श के चयन की आवश्यकता क्यों ?

/ Why is there a need for sample selection?

01 – समग्र का प्रतिनिधित्व / Representation of the whole

02 – समाज के समुचित निर्देशन हेतु / For proper direction of society

03 – मितव्ययी प्राविधि / Economical method

04 – कुशल समय प्रबन्धन सम्भव / Efficient time management is possible

05 – सम्पूर्ण जनसंख्या का अध्ययन सम्भव / Study of entire population is possible

06 – गहन शुद्धतम जानकारी सम्भव /Deepest and most accurate information possible

07 – असम्भव परिक्षेत्र का अध्ययन सम्भव / Studying the impossible area is possible

न्यादर्श की परिसीमाएं / limitations of sampling –

01 – पूर्वधारणा का प्रभाव /  Effect of prejudice

02 – पक्षपात की सम्भावना / Possibility of bias

03 – पूर्ण जनसँख्या का प्रतिनिधित्व दुष्कर / Difficult to represent the entire population

04 – योग्य कार्यकर्त्ता अभाव / Lack of qualified workers

05 – प्रयोज्य की  गाम्भीर्य हीनता / Serious lack of usability

06 – यादृच्छिक तकनीक सर्वोत्तम तो नहीं / Random technique is not the best

उक्त सम्पूर्ण विवेचन न्यादर्श के बारे में बताने में सक्षम है लेकिन इसके बारे में विस्तार से जानना शोधार्थियों और उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों हेतु आवश्यक है न्यादर्श के प्रारूप पर आगे विचार कर आपके समक्ष रखने का प्रयास किया जाएगा .

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शोध

LEVELS OF MEASUREMENT / मापन के स्तर

April 21, 2024 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मापन के स्तर

मापन की दुनियाँ निराली है हमारी दृष्टि ,हमारा दृष्टिकोण जब परिमार्जित रूप से शोध का आधार तैयार करता है तब परम आवश्यक भूमिका का निर्वहन करते हैं आँकड़े। शोध हेतु सामाजिक, आर्थिक, भौतिक, मनोवैज्ञानिक जो आँकड़े प्राप्त होते हैं उनके आधार पर ही विविध मापन सम्भव होता है। इन्ही से व्यावहारिक विज्ञानों को आधार मिलता है।  एस ० एस ० स्टीवेंस महोदय ने मापन को चार स्तरों में विभाजित किया है कुछ विज्ञ जनों ने इन स्तरों को स्केल कह कर वर्णित किया है जो इस प्रकार है –

1 – शाब्दिक स्तर (Nominal Level)  or  शाब्दिक पैमाना (Nominal Scale)

2 – क्रमिक स्तर (Ordinal Level)  or  क्रमिक पैमाना (Nominal Scale)

3 – अन्तराल स्तर (Interval Level)  or अन्तराल पैमाना (Nominal Scale)

4 – आनुपातिक  स्तर (Ratio Level)  or  आनुपातिक पैमाना (Nominal Scale)

डॉ अमरजीत सिंह परिहार ने मापन के इन चार स्तरों के आधार पर मापन के चार प्रकार इस प्रकार बताए हैं

1 – शाब्दिक मापन  (Nominal Measurement)

2 – क्रमिक मापन (Ordinal Measurement)

3 – अन्तराल मापन (Interval Measurement)

4 – आनुपातिक  मापन (Ratio Measurement)

अधिगम व अध्ययन के दृष्टिकोण से विभिन्न स्तरों को इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है

1 – शाब्दिक स्तर (Nominal Level) –

इस स्तर पर केवल गुण को ध्यान में रखा जाता है चाहे वस्तु हो या व्यक्ति। इसे नामित और वर्गीकृत स्तर भी कहा जाता है। व्यावहारिक विज्ञानों में इस स्तर को प्रयोग में लाया जाता है उदाहरण के रूप में रहने या निवास के आधार पर शहरी या ग्रामीण, लिङ्ग के आधार पर महिला पुरुष , अध्ययन हेतु स्नातक स्तर पर कला, विज्ञान, वाणिज्य वर्ग में विभाजित करना। इसी तरह अगर बरेली को सुरक्षा के दृष्टिकोण से 5 भागों में बांटना हो और समस्त मोहल्लों को 5 भागों में बाँटकर बरेली-1, बरेली -2,  बरेली – 3, बरेली – 4, बरेली – 5 आदि नाम दिय जाए तो इसे नामित या शाब्दिक स्तर कहेंगे।

अतः यहाँ यह कहा जा सकता है कि गुणात्मक चरों के आधार पर मापन का यह स्तर शाब्दिक स्तर (Nominal Level) कहलाता है।

2 – क्रमिक स्तर (Ordinal Level) –

इस स्तर में गुण के आधार पर प्राणी या वस्तु का मापन करते हैं और इस आधार पर वर्ग विशेष को संकेत या नाम दे दिया जाता है। इस मापनी में विशेषताओं या योग्यताओं के आधार पर एक क्रम आरोही या अवरोही बना लिया जाता है। इसी आधार पर श्रेणी या विशेष क्रम प्रथम, द्वित्तीय, तृतीय आदि विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में प्रदान किया जाता है।इस क्रमित मापनी को कोटिकरण मापनी या क्रम सूचक मापनी भी कहते हैं। श्रेष्ठता के आधार पर विश्व सुन्दरी, खिलाड़ी,नौकरी हेतु चयन, विविध सेवाओं में चयन में यही आधार बनाता है।

3 – अन्तराल स्तर (Interval Level) –

इसे मापन के स्तरों में तृतीय स्थान प्रदान किया गया है इसमें ऊपर के दो स्तरों में सुधार किया गया है यद्यपि यह वास्तविक शून्य से प्रारम्भ नहीं होता लेकिन अन्तराल बराबर रखा जाता है इसका बहुत अच्छा उदाहरण थर्मामीटर है वास्तव में अन्तराल मापनी में वस्तु या प्राणी के किसी गुण का मापन इकाइयों के माध्यम से किया जाता है। इनमें दो लगातार अंकों के बीच समान अन्तर रहता है।इस मापनी के द्वारा सापेक्षिक मापन(Relative measurement) किया जाता है न कि निरपेक्ष मापन (Absolute measurement)।

4 – आनुपातिक  स्तर (Ratio Level) –

यह उक्त तीनों मापनियों से उच्च स्तर की है इसमें उक्त तीनों की विशेषताएं समाहित रहती हैं वास्तविक शून्य बिन्दु मौजूद रहता है और यह शून्य बिन्दु कल्पित नहीं होता। लम्बाई, दूरी, भार आदि के मापन हेतु हम यहीं से प्रारम्भ करते हैं वास्तविक शून्य बिन्दु ही अनुपात मापनी का प्रारम्भिक बिंदु मन जाता है। इस मापन द्वारा प्राप्त संख्यात्मक मान बताता है कि यह दूरी उसकी दो गुनी या चार गुनी है। इसकी लम्बाई उसकी आधी है आदि अर्थात मापित शील गुणों के मध्य अनुपात  इसके द्वारा प्राप्त संख्या द्वारानिर्धारित किया जाता है। उदाहरणार्थ यदि मेरा वजन 110 कि० ग्रा० और X महोदय का 55 कि० ग्रा० है तो हम दोनों का भार अनुपात 2 :1 हुआ। इस तथ्य से यह भी स्पष्ट होता है कि यह स्तर केवल भौतिक चरों का मापन कर सकता है अभौतिक का नहीं।

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